कामदेव के वाण और प्रजातंत्र के खतरे यशवन्त कोठारी होली का प्राचीन संदर्भ ढूंढने निकला तो लगा कि बसंत के आगमन के साथ ही चारों तरफ कामदेव अपने वाण छोड़ने को आतुर हो जाते हैं मानो होली की पूर्व पीठिका तैयार की जा रही हो । संस्कृत साहित्य के नाटक चारूदत्त में कामदेवानुमान उत्सव का जिक्र है, जिसमंे कामदेव का जुलूस निकाला जाता था । इसी प्रकार ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक में भी बसंतसेना इसी प्रकार के जुलूस में भाग लेती है । एक अन्य पुस्तक वर्ष-क्रिया कौमुदी के अनुसार इसी त्योहार में सुबह गाने-बजाने, कीचड़ फेंकने के
अफसर का अभिनन्दन - holi pr vishesh
कामदेव के वाण और प्रजातंत्र के खतरे यशवन्त कोठारी होली का प्राचीन संदर्भ ढूंढने तो लगा कि बसंत के आगमन के साथ ही चारों तरफ कामदेव अपने वाण छोड़ने को आतुर हो जाते हैं मानो होली की पूर्व पीठिका तैयार की जा रही हो । संस्कृत साहित्य के नाटक चारूदत्त में कामदेवानुमान उत्सव का जिक्र है, जिसमंे कामदेव का जुलूस निकाला जाता था । इसी प्रकार ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक में भी बसंतसेना इसी प्रकार के जुलूस में भाग लेती है । एक अन्य पुस्तक वर्ष-क्रिया कौमुदी के अनुसार इसी त्योहार में सुबह गाने-बजाने, कीचड़ फेंकने के ...Read More
अफसर का अभिनन्दन -2
आज़ादी की तलाश में ..... यशवंत कोठारी आज़ादी की साल गिरह पर आप सबको बधाई, शुभ कामनाएं .इन सालों में क्या खोया क्या पाया , इस का लेखा जोखा कोन करेगा.क्यों करेगा . हर अच्छा काम मैने किया हर गलत काम विपक्षी करता है , ये लोग देश को आगे नहीं बढ़ने देते हैं , देश आजाद हो गया . हर आदमी को आज़ादी चाहिये. सरकार को अच्छे दिनों व् काले धन के जुमलों से आज़ादी चाहिए . अफसर को फ़ाइल् से आज़ादी चाहिए, बाबु को अफसर से आज़ादी चाहिए, मंत्री को चुनाव से आज़ादी चाहिए.जनता को महँगाई से ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 3
चुनाव में खड़ा स्मग्लर यश वन्त कोठारी वे एक बहुत बड़े स्मगलर थे। समय चलता रहा। वे भी चलते रहे। अब वे समाज सेवा करने लग गए। सुविधाएं बढ़ने लगीं। उनके पास सभी कुछ था। शा नदार कार, कोठी, और कामिनी। कोठी में सजा हुआ है डाइ्रग रुम और डाइंग रुम में आयातित राजनीति है। बड़े अजीब आदमी है। चूना भी फांक लेते है। क्यों कि पुरानी आदत है, छूटती नहीं। पाइप भी पीते है, नई-नई आदत है, होंठ तक जल जाते हैं। सूट भी पहन लेते हैं। इधर खादी भण्डार से भी कपड़े ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 4
चुनावी - अर्थशास्त्र यशवंत कोठारी विश्व के सबसे महंगे चुनाव भारत में होने जा रहे हैं .सत्रहवीं लोक सभा के लिए ये चुनाव पैसों की बरसात के सहारे सहारे चलेंगे. इस बार पैसा बरसेगा सत्तर लाख की सीमा बहुत पीछे रह जायगी. पिछले चुनाव में लगभग ४० हज़ार करोड़ लगा था ,बढ़ी महंगाई के अनुसार यह आंकड़ा एक लाख करोड़ तक जा पहुचे तो कोई आश्चर्य नहीं. अमेरिका के विशेषज्ञ इसे ७१००० हज़ा र करोड़ का मान कर चल रहे हैं,चंदा कहाँ से कितना आया इसपर चर्चा करना बेकार है.सब प्रत्याशी चुनाव जीतना चाहते है,कुछ भी खर्च ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 5
व्यंग्य-- चुनाव ऋतु –संहार यशवंत कोठारी हे!प्राण प्यारी .सुनयने ,मोर पंखिनी ,कमल लोचनी,सुमध्यमे , सुमुखी कान कर सुन और गुन ऐसा मौका बार बार नहीं आता ,इस कुसमय को सुसमय समझ और रूठना बंद कर ,चल आ जा ,मइके से लौट आ वहां रहने की ऋतुएं तो और भी आ जायगी .लेकिन हे मृग नयनी यह जो चुनाव रुपी बसंत आपने बाणों के साथ हिमालय से उतर कर पूरे आर्याव्रत में महंगाई की तरह बढ़ रहा है ,ऐसा सुअवसर बार बार नहीं आता है.इसका स्वागत करने के लिए तू मेके से लौट आ. देख! बाहर खिड़की से बाहर ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 6
दुनिया के मूर्खों एक हो जाओ यशवन्त कोठारी बासंती बयार बह है। दक्षिण से आने वाली हवा में एक मस्ती का आलम है। फाल्गुन की इस बहार के साथ-साथ मुझे लगता है मूर्खों, मूर्खता और तत्सम्बन्धी ज्ञान का अर्जन करने का यह सर्वश्रेष्ठ मौसम है। कालीदास हो या पद्माकर या जयदेव या निराला सभी ने बासंती ऋतु पर जी भर क प्रियों का याद किया है। मधुमास बिताया है । व्यंग्यकार का प्रिय विषय तो मूर्ख और मूर्खता है, अतः आज मैं मूढ़ जिज्ञासा करूंगा। पाठक कृपया क्षमा करें । सर्वप्रथम मूर्ख या मूढ़ शब्द को ...Read More
अफसर का अभिनंदन - ७
रचनाकारों के छाया –चित्र यशवंत कोठारी इधर मैं रचनाकारों के छाया चित्रों का अध्ययन कर रहा हूँ .वर्षों पहले धर्मयुग में किसी लेखक का फोटो छप जाता तो उसे बड़ा लेखक मान लिया जाता था, मेरे साथ यह दुर्घटना दो तीन बार हो चुकी थी. बहुत से रचनाकारों के चित्र बड़े विचित्र होते हैं ,कभी काका हाथरसी का स्टूल पर खड़े हो कर क्रिकेट की गेंद फेकने का फोटो बड़ा चर्चित हुआ था. धरम वीर भारती का सिगार पीते हुए फोटो भी यादगार था. एक बार होली अंक में रिक्शे पर बेठे लेखकों के फोटो छ्पे थे .बड़ा ...Read More
अफसर का अभिनंदन - 8
साहित्य में वर्कशॉप –वाद यशवन्त कोठारी इन दिनों सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वर्कशाप वाद चल है। भक्तिकाल का भक्तिवाद रीतिकाल का शृंगारवाद, आधुनिककाल के प्रगतिवाद, जनवाद, प्रतिक्रियावाद, भारतीयता वाद- सब इस वर्कशाप वाद यानि कार्यशाला काल में समा गये हैं। हर तरफ कार्यशालाओं, सेमिनारों, गोष्ठियों का बोलबाला है और लेखक, साहित्यकार इन वर्कशापों में व्यस्त हैं। कल तक जो लेखक साहित्यकार कहीं आना जाना पसंद नही करते थे वे आज हवाई जहाज के टिकट पर तृतीय श्रेणी में यात्रा कर वर्कशापों की शोभा बढ़ा रहे हैं। वैसे भी बुद्धिजीवियों की हालत यह है कि हवाई जहाज ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 9
सम्माननीय सभापतिजी यश वन्त कोठारी इधर श हर साहित्य, संस्कृति-कला का तो अकाल है, मगर सभापतियो अध्यक्षों और संचालको की बाढ़ आई हुई है। जहां जहां भी सभा होगी वहां वहां पर सभापति या सभा पिता या सभा पत्नी अवष्य होगी। हर भूतपूर्व कवि कलाकार, राजनेता, सेवानिवृत्त अफसर, दूरदर्षन, आकाषवाणी, विष्वविधालयों के चाकर सब अध्यक्ष बन रहे है। जो अध्यक्ष नहीं बन पा रहे है वे संचालक बन रहे है। कुछ तो बेचारे कुछ भी बनने को तैयार है। अध्यक्ष बना दो तो ठीक नही तो संचालक, मुख्य अतिथि, विषिप्ट अतिथि बनने से भी गुरेज नहीं करते। ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 10
लू में कवि यशवन्त कोठारी तेज गरमी है। लू चल रही है। धूप की तरफ देखने मात्र से बुखार जैसा लगता है। बारिश दूर दूर तक नहीं है। बिजली बन्द है। पानी आया नहीं है, ऐसे में कवि स्नान-ध्यान भी नहीं कर पाया है। लू में कविता भी नहीं हो सकती, ऐसे में कवि क्या कर सकता है? कवि कविता में असफल हो कर प्रेम कर सकता है, मगर खाप पंचायतों के डर से कवि प्रेम भी नहीं कर पाता। कवि डरपोक है मगर कवि प्रिया डरपोक नहीं है, वह गरमी की दोपहर में पंखा लेकर अवतरित ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 11
व्यंग्य सफल और स्वादिष्ट श्रद्धांजली यशवंत कोठारी साहित्य के भंडारे चालू आहे.कविता वाले कविता का भंडारा कर रहे हैं,कहानी वाले कहानी के भंडारे में व्यस्त है. नाटक वाले नाटकों के भंडारे कर रहें हैं.सर्वत्र भंडारे है,आपका मन करे वहां जीमे. इस महीने सरकारों ने अपनी थैली के मुहं खोल दिए हैं,माता के दरबार में हाजरी दे या भोले बाबा के राज में भंडारे में आपका स्वागत है.सरकार से नहीं बनती है तो ट्रस्ट ,फाउंडेशन ,समिति,विदेशी संस्थाओं से माल खीचों और भंडारे लगा दो.आप भी खाओ और दूसरों को भी खिलाओ. लेकिन पिछले दिनों एक अलग किस्म के भंडारे से ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 12
आओ अफवाह उड़ायें भारत अफवाह प्रधान देश है। अतः आज मैं अफवाहों पर चिन्तन करूंगा। सच पूछा तो अफवाहें उडा़ना राष्ट्रीय कार्य है और अफवाहें हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। अफवाहों की राष्ट्रीय गंगोत्री दिल्ली के शीर्ष से उड़कर देश के गांवों, कस्बों, शहरों नदी नालों मेूं तैरती रहती है। किसी भी ताजा अफवाह के हवा में तैरते ही एक नया माहौल जनता और आम आदमी में दिखायी देने लग जाता है। वास्तव में पूछा पाए तेा बिन अफवाह सब सून। जयपुर में त्रिपोलिया गजट शुरू से ही प्रसिद्ध रहा हैं। हर शहर के चौराहे पर पान की ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 13
होना फ्रेक्चर हाथ में ... यशवंत कोठारी आखिर मेरे को भी फ्रेक्चर का लाभ मिल गया.जिस उम्र में को मधुमेह ,उच्च रक्त चाप ,किडनी फेलियर ,या स्ट्रोक या ह्रदय की बीमारी मिलती है मुझे फ्रेक्चर मिला.मैंने सोचा अब इसी से काम चलाना होगा.मैंने प्रभु का धन्यवाद किया,और इस दर्दनाक हादसे पर यह स्वभोगी-स्ववित्तपोषित आलेख पेश-ए-खिदमत है.हुआ यों कि मैं सायंकालीन आवारा गर्दी के लिए निकला.गली पर ही एक एक्टिवा पर तीन बच्चियां तेज़ी से निकली ,मैं साइड में था ,मगर शायद दिन ख़राब था ,एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में मेरी पीठ पर दुपहिया वाहन ने तीनों लल्लियों ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 14
धंधा चिकित्सा शिविरों का ... यशवंत कोठारी हर तरफ चिकित्सा शिविरों की बहार हैं. जिसे देखो वो ही शिविर लगा रहा है. कहीं भी जगह दिखी नहीं की कोई न कोई शिविर लगाने वाला आ जाता है, मंदिर ,मस्जिद ,गुरु द्वारा , गिरजा घर , मैदान ,स्कूल, कालेज , हर जगह चिकित्सा शिविर के लिए मोजूं हैं.मैं इन शीविरों में गया. ज्यादातर शिविर किसी न किसी चेरिटी ट्रस्ट के नाम पर चलाये जाते हैं, ट्रस्ट, समिति , फाउन्डेशन आदि बनाकर आय कर बचाया जाता है, इन शी विरों का प्रचार प्रसार बड़े जोर शोर से किया जाता है, बड़े ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 15
बनते –बिगड़ते फ्लाई ओवर यशवंत कोठारी जब भी सड़क मार्ग से गुजरता हूँ किसी न किसी बनते बिगड़ते फ्लाई ओवर पर नज़र पड़ जाती है.मैं समझ जाता हूँ सरकार विकास की तय्यारी कर रही है,ठेकेदार इंजिनियर कमिशन का हिसाब लगा रहे हैं और आस पास की जनता परेशान हो रही हैं टोल नाके वाले आम वाहन वाले को पीटने की कोशिश में लग जाते हैं.फ्लाई ओवर का आकार -प्रकार ही ऐसा होता हैं की बजट लम्बा चो डा हो जाता है.अफसरों की बांछे खिल जाती हैं .सड़क मंत्री संसद में घोषणा करते हैं और लगभग उसी समय सड़क पर ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 16
व्यंग्य हम सब बिकाऊ हैं . यशवंत कोठारी इधर समाज में तेजी से ऐसे लोग बढ़ रहे जो बिकने को तैयार खड़े हैं बाज़ार ऐसे लोगों से भरा पड़ा हैं,बाबूजी आओ हमें खरीदों.कोई फुट पाथ पर बिकने को खड़ा है,कोई थडी पर ,कोई दुकान पर कोई ,कोई शोरूम पर,तो कोई मल्टीप्लेक्स पर सज -धज कर खड़ा है.आओ सर हर किस्म का मॉल है.सरकार, व्यवस्था के खरीदारों का स्वागत है.बुद्धिजीवी शुरू में अपनी रेट ऊँची रखता है ,मगर मोल भाव में सस्ते में बिक जाता है.आम आदमी ,गरीब मामूली कीमत पर मिल जाते है.वैसे भी कहा है गरीब की ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 17
मारीशस में कवि यशवंत कोठारी जुगाडू कवि मारीशस पहुँच गए.हर सरकार में हलवा पूरी जीमने का उनका अधिकार है,वे हर सरकार में सत्ता के गलियारे में कूदते फांदते रहते हैं और कोई न कोई जुगाड़ बिठा लेते हैं.जरूरत पड़ने पर विरोधियों का भी विरोध कर लेते हैं.एक ने पूछा –आप हर सरकार में कैसे घुस जाते हैं ?जवाब मिला-विद्वान सर्वत्र पूज्यते ,वापस उत्तर मिला-चमचा सर्वत्र विजयते .सम्मलेन दसियों हो गए हिंदी का क्या हुआ.यह यक्ष प्रश्न बना ही रहा.बहती गंगा में सब ने हाथ धो लिए.हर सरकार में एसा ही होता आया हैं.आगे भी होता रहेगा.सरकार केवल चुनाव जितना ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 18
युवा ,रोज़गार और सरकार यशवंत कोठारी देश भर में बेरोजगारी पर बहस हो रही है.संसद से लेकर तक हंगामा बरपा है.बेरोजगार युवाओं की लम्बी लम्बी कतारें कहीं भी देखि जा सकती है.सरकार एक पद का विज्ञापन करती है तो हजारों आवेदन आते है.लोग बेरोजगारों को पकोड़े बेचने तक की सलाह दे रहे हैं.कुछ लोग कह रहे है की रोजगार मांगने वाले नहिं रोजगार देने वाले बनो.लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? भारत एक युवा देश है चालीस प्रतिशत आबादी के युवा है जिन्हें रोज़गार चाहिए.स्टेट को आइडियल रोज़गार प्रदाता माना गया है लेकिन कोई भी राज्य ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 19
हिंदी -व्यंग्य में पीढ़ियों का अन्तराल यशवंत कोठारी काफी समय से हिंदी व्यंग्य का पाठक हूँ .अन्य भाषाओँ की रचनाएँ भी पढता रहता हूँ .उर्दू,गुजराती , मराठी ,अंग्रेजी व राजस्थानी में भी पढने के प्रयास किया है.पिछले कुछ वर्षों में हिंदी में नई पीढ़ी कमाल का लिख रहीं है.यहीं हाल अन्य भाषाओँ में भी है.टेक्नोलॉजी भी अपना कमाल दिखा रही है.तकनीक के हथियार के साथ लोग हुंकार भर रहे हैं ,पुरानों को कोई पढने की आवश्यकता नहीं समझता .पुराने लोगों ने बहुत मेहनत की,आजकल फटाफट का ज़माना है.शरद जोशी ने कुछ समय ही नौकरी की फिर फ्री लान्सिंग,परसाई जी ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 20
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा यशवन्त कोठारी हमारे देश का नाम भारत । भारत नाम इसलिए है कि हम भारतीय हैं । कुछ सिर फिरे लोग इसे इण्डिया और हिन्दुस्तान भी पुकारते हैं, जो उनको गुलामी के दिनों की याद दिलाते हैं । वैसे इस देश का नाम भारत के बजाय कुछ और होता तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता । हम-आप इसी तरह इस मुल्क के एक कोने में पड़े सड़ते रहते और कुछ कद्रदान लोग इस देश को अपनी सम्पत्ति समझते रहते । वैसे भारत पहले कृषि-प्रधान था, अब कुर्सी प्रधान है; पहले सोने ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 21
कहाँ गए जलाशय ? यशवंत कोठारी भयंकर गर्मी है देश –परदेश में पानी के लिए त्राहि त्राहि हो रही है.बूंद बूंद के लिए सर फूट रहे हैं .अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जायगा.देखते देखे हजारों जल स्रोत मर गए.उनका कोई अत –पता नहीं है.नदियाँ नाले बन गई.नाले लुप्त हो गए.झीले ,तालाब,पोखर ,कुएं बावड़िया सब धीरे धीरे नष्ट हो रहे हैं,जो लोग पचास साठ साल के हैं वे जानते हैं उनके आस पास के जल श्रोत याने वाटर बॉडीज समाप्त हो गए.जयपुर का राम गढ़ बांध मर गया ,कानोता बांध आखरी सांसे गिन रहा है अनुपम मिश्र ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 22
हेलमेट की परेशानी यशवन्त कोठारी वरमाजी राष्ट्रीय पौशाक अर्थात लुगी और फटी बनियांन में सुबह सुबह आ धमके। गुस्से में चैतन्य चूर्ण की पींक मेरे गमले में थूक कर बोले यार ये पीछे वाले हेलमेट की गजब परेशानी है। पहनो तो दोनो हेलमेट टकराते है, नहीं पहनो तो पुलिस वाले टकराते है। अब आप ही बताओं भाई साहब नब्बे बरस की बूढ़ी दादी या नानी को मंदिर दर्शन ले जाने वाला पोता या नाती इस दूसरे हेलमेट से कैसे जीते। दादी-नानी जिसकी गर्दन हिल रही है, कपडे नहीं संभाले जा रहे है वो बेचारी सर पर टोपलेनुमा ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 23
मेरे संपादक ! मेरे प्रकाशक!! यशवंत कोठारी (१) लेखक के जीवन में प्रकाशक व् सम्पादक का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है .एक अच्छा संपादक व् एक अच्छा प्रकाशक लेखक को बना या बिगाड़ सकता है. मुझे अच्छे प्रकाशक -संपादक मिले,बुरे भी मिले.किसी ने उठाया किसी ने गिराया, किसी ने धमकाया , किसी ने लटकाया , किसी ने अटकाया किसी ने छापा किसी ने अस्वीकृत किया ,किसी ने खेद के साथ अन्यत्र जाने के लिए कहा , किसी किसी ने स्वीकृत रचना वापस कर दी, कुछ ने स्वीकृत पांडुलिपियाँ ही वापस कर दी किसी ने विनम्रता से हाथ जोड़ लिए. ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 24
व्यंग्य धंधा धरम का यशवंत कोठारी आजकल मैं धरम-करम के धंधे में व्यस्त हूँ.इस धंधे में बड़ी बरकत है,बाकी के सब धंधे इस धंधे के सामने फेल हैं.लागत भी ज्यादा नहीं,बस एक लंगोटी,एक कमंडल,कुछ रटे रटाये श्लोक ,कबीर ,तुलसी के कुछ दोहे.बस काम शुरू.हो सके तो एक चेली पाल लो बाद में तो सब दोडी चली आएगी.जिस गाँव में असफल रहे हैं वहीं उसी गाँव के बाहर जंगल में धुनी ,अखाडा,आश्रम.डेरा खोल्दो.काम शुरू.लेकिन डर भी लग रहा है.इन दिनों बाबाओं की जो हालत हो रही है वो किसी से छिपी हुई नहीं हैं.कई बाबा जेल में है कई जेल ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 25
कला- हीन कला केंद्र यशवंत कोठारी हर शहर में कला केन्द्र होते हैं ,कलाकार होते हैं और कहीं कहीं कला भी होती है.रविन्द्र मंच,जवाहर कला केंद्र ,भारत भवन,मंडी हाउस ,आर्ट गेलेरियां आदि ऐसे ही स्थान है जहाँ पर कला के कद्रदान विचरते रहते हैं.सरकार ने संस्कृति की रक्षा के लिए एक पूरा महकमा बना दिया है जो कला संकृति की रक्षा के लिए कला कारों को हड़काता रहता है .चलो जल्दी करो मंत्रीजी के आने का समय हो गया है और तुम यहाँ क्या कर रहे हो जाओ कोस्टुम पहनो. सीधे खड़े रहो, सी एम् सर को प्रणाम करो, सचिव ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 26
प्रभु !हमें कॉमेडी से बचाओं यशवंत कोठारी इस कलि का ल में वर्षा का तो अकाल है मगर कॉमेडी की बारिश हर जगह हो रही हैं ,क्या अख़बार क्या टी वि चेनल क्या समाचार चेनल सर्वत्र कॉमेडी की छाई बहार है.दर्शक श्रोता कॉमेडी की बाढ़ में बह रहा है, चिल्ला रहा है,मगर उसे बचा ने वाला कोई नहीं है.उसे इस तथाकथित कॉमेडी मे से ही जीवन तत्व की ऑक्सीजन ढूंढनी है.शायद ही एसा कोई चेनल हो जो कॉमेडी नहीं परोस रहा है.कार्यक्रमों की स्थिति ये की इन प्रोग्रम्मों से अच्छी कामेडी तो घरों में बच्चे कर लेते हैं, स्कूल ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 27
प्रेस नोट की राम कहानी यशवन्त कोठारी इस क्षण भंगुर जीवन में सैकड़ो प्रेसनोट पढ़े। कई लिखे।छपवाये, मगर पिछले दिनो एक ऐसे प्रेस नोट से पाला पड़ा कि समस्त प्रकार के विचार मन में आ गये। मैंने अखबारों की नौकरी तो नहीं की मगर प्रेस नोट वाले नेताओं, अफसरो, उ़द्योगपतियों के बारे में जानकारी खूब हो गई। अक्सर प्रेस नोट लेकर अखबारों के दफतरो में दौड़ पड़ने वालो से भी मुलाकाते हो ही जाती है। सच पूछो तो बहुत से नेता तो केवल प्रेस नोट केबल पर ही बड़े नेता बन गये। उन्हे जनता से कोई लेना ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 28
सुब्रहमण्य भारती और भारतीय चेतना यशवंत कोठारी भारतीयता का सुब्रहमण्य भारती की कविताओं से बड़ा निकट का रहा है। वास्तव में जब सुब्रहमण्य भारती लिख रहे थे, तब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जन-आन्देालन की शुरूआत हो रही थी और भारती ने अपनी पैनी लेखनी के द्वारा राष्ट्री यता और राष्ट्र वाद की अलख जगाई थी। यही कारण था कि सुब्रहमण्य भारती के बारे में महात्मा गांधी ने लिखा- ‘मुझे सुब्रहमण्य भारती की रचनाओं जैसी कृतियां ही वास्तविक काव्य प्रतीत होती है, क्योंकि उनमें जन जन को अग्रसर करने की प्रेरणा है, जीवन की ज्योति जगाने ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 29
वन लाइनर ,फन लाइनर ,गन लाइनर :फेस बुकी टुकड़े यशवंत कोठारी 1-इधर मैने किताब बेचने के बारे में नया सोचा -किसी संपादक को किताब दो,फिर धीरे से एक रचना खिसका दो ,रचना छपेगी, उसके पारिश्रमिक को किताब बेचना कह सकते है,-मैं ऐसा सा कर चुका हूँ. २-मठाधिशों को मठ्ठाधिशों से बचाओ. ३-हिंदी व् मैथिली भाषा के बीच बहस जारी है,राजस्थानी भाषा वाले...- ४-एक बड़े मठाधीश हर साल एक ही नए प्रकाशक की पुस्तके अपने विभाग में खरीदते है,कुछ दिनों बाद उस संसथान से उनकी पुस्तक आती है ,यही बाजारवाद है . ५-वंश वाद संस्थाओं को नष्ट ...Read More
अफसर का अभिनन्दन - 30
बधाई से आर आई पी तक यशवंत कोठारी इन दिनों सोशल मीडिया पर जिन शब्दों का सब से ज्यादा मिस यूज हो रहा है उन में इन शब्दों का रोल सबसे ज्यादा है.सुबह उठते ही फेस बुक , वाट्स एप या कोई अन्य साईट खोलो इन शब्दों की झंकार कानों में बिना पड़े नहीं रहती .हालात ऐसे हैं पाठकों कि कहीं भी किसी का भी निधन हो जाये बस आर आई पि को चिपकाइए और आगे चल दीजिये. इस बात का कोई मतलब नहीं की मरने वाला कोन था, दाग कब है,उसकी मौत केसे व् कब हुई , ...Read More
युवा, रोज़गार और सरकार
युवा ,रोज़गार और सरकार --- देश भर में बेरोजगारी पर बहस हो रही है.संसद से लेकर सड़क तक बरपा है.बेरोजगार युवाओं की लम्बी लम्बी कतारें कहीं भी देखि जा सकती है.सरकार एक पद का विज्ञापन करती है तो हजारों आवेदन आते है.लोग बेरोजगारों को पकोड़े बेचने तक की सलाह दे रहे हैं.कुछ लोग कह रहे है की रोजगार मांगने वाले नहिं रोजगार देने वाले बनो.लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? भारत एक युवा देश है चालीस प्रतिशत आबादी के युवा है जिन्हें रोज़गार चाहिए.स्टेट को आइडियल रोज़गार प्रदाता माना गया है ...Read More
सेलफोन की माया
सेलफोन की माया यशवन्त कोठारी सेलफोन की छोटी काया में बड़ी माया है। सेलफोन की छाया में बड़े-बड़े गये हैं। वास्तव मंे सेलफोन बिन सब सून की स्थिति को समाज प्राप्त हो गया है। सेलफोन जिसके हाथ में नहीं है, उसके लिए यह संसार असार है। मिथ्या है माया जाल है। सेलफोन दुल्हन के पास है, दुल्हे के पास है । प्रेमी और प्रेमिका के पास है। श्मशान में भी लोग सेलफोन हाथ में लिए घूम रहे हैं। विधानसभा से लोकसभा तक सेलफोन छाया हुआ है। अध्यक्ष चिल्लाते रहते हैं और सदस्य सेलफोन सुनते रहते हैं। सेलफोन सुनने ...Read More
तबादलों का मौसम
तबादला करा लो यशवन्त कोठारी ये दिन तबादलों के दिन है । सरकारी, अर्ध सरकारी और सरकारी सभी प्रकार के कर्मचारियों, अधिकारियांे को तबादलों के भूकम्प का सामना करना पड़ रहा है । कोई घर के पास आना चाहता है तो कोई घर से दूर जाना चाहता है । कोई पत्नी बच्चों के शहर में नौकरी चाहता है तो कोई इस जंजाल से छूटने के लिए दूर चला जाना चाहता है । प्रान्तों की राजधानियांे और देश की राजधानी में तबादलों के आकांक्षी गरजी, अरजी और तबादलों के मारे बदनसीब नेताओं के बंगलो, दफ्तरों और दलालों ...Read More
औचक निरीक्षण से भौचक सब
ताज़ा व्यंग्य औचक निरीक्षण से भौचक सब यशवंत कोठारी उन्होंने कार्यालय का औचक निरीक्षण किया मैंने अख़बार में पढ़ा रह गया .मेरी तरह ही बाकि की दुनिया भी भौचक रह गयी .उनके जाने के बाद मैं उसी कार्यालय में गया सब कुछ सामान्य चल रहा था ,चाय –पानी समोसा कचोरी .जिनके रजिस्टर में निशान लगे थे वे घर चले गए ,जिन के नहीं लगे वे धूप सेंक रहे थे उनका तर्क था जिनको छुट्टी पर भेजा गया था उनके बिना काम नहीं हो सकता ,अब काम कल ही होगा ,मैं वापस आगया . नयी सरकार, नया जोश, अफसर,नेता, मंत्री ...Read More
भूतपूर्व प्रेमियों के नाम…
व्यंग्य - भूतपूर्व प्रेमियों के नाम… यशवंत कोठारी भाइयों और बच्चों के मामाओं , आप को व आप की को प्रणाम. आशा हैआप सब अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त या अस्त व्यस्त होंगे .मुझे आप सब की याद एक साथ आई सो यह सामूहिक पत्र जिसे आप सब व्हात्ट्स एप्प या एस एम् एस पर पढ़ सकते हैं . जानती हूँ आप लोग अब प्रोढ़ हैं हाई बी पी,मधुमेह थाइरोइड के रोगी है , चार सीढियाँ चढ़नें में हांफ जाते हैं मैं भी पहले जैसी नहीं रही फिर भी यह मेसेज . सब से पहले मुझे रमेश ने देखा ...Read More
मोबाइक-स्कूटर संवाद
मोबाइक-स्कूटर संवाद यशवन्त कोठारी एक दुपहिया वाहन स्टेण्ड पर एक नई चमचमाती मोटर साईकिल व एक खड़खड़िया स्कूटर पास-पास खड़े थे। दोनांे मंे संवाद हुआ। प्रस्तुत है संवाद के महत्वपूर्ण अंश। मोबाइक - कहो स्कूटर जी कैसे हो ? तुम्हारे साहब कैसे है। अब तुम्हारा जमाना गया। बु़ढ़ा गये हो। किसी कबाड़ी की सेवाएं लो। स्कूटर - इतना मत इतरा मोबाइक जवानी हम पर भी आई थी, मगर हमने मेहनत की खाई थी और इसी कारण इस प्रोढ़वय मंे ही अंजर-पंजर ढीले हो गये है। तुम तो सौलह श्रृंगार करके चलती हो। मोबाइक - ...Read More
मेरे मरने के बाद
मेरे मरने के बाद यशवन्त कोठारी मुझे आप सभी को सूचित करते हुए दुःख है कि मेरा निधन कल सायंकाल हो गया है ! मैैं अपने पीछे एक अदद पत्नी और दो ठो बच्चे छोडकर गया हूं। मेरी आयु हाई स्कूल प्रमाण पत्र के अनुसार कुल जमा इकतीस वर्ष थी। इतनी कम आयु में एक व्यंग्यकार का मर जाना साहित्य और समाज के लिए अपशकुन है। अतः मरने के बाद क्या क्या किया जाए, मैंने इसकी फेहरिस्त बना दी ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। नियमानुसार हिन्दी का लेखक जब तक जिन्दा रहता है ...Read More
मोची, बाजार और कुत्ता
मोची ,बाजार और कुत्ता यशवंत कोठारी कस्बे के बाजार के बीचों -बीच के ढीये पर कल्लू मोची बैठता उसके पहले उसका बाप भी इसी जगह पर बैठकर अपनी रोजी कमाता था। कल्लू मोची के पास ही गली का आवारा कुत्ता जबरा बैठता था। दोनों में पक्की दोस्ती थी। जबरा कुत्ता कस्बे के सभी कुत्तों का नेता था और बिरादरी में उसकी बड़ी इज्जत थी। हर प्रकार के झगड़े वो ही निपटाता था। कल्लू मोची सुबह घर से चलते समय अपने लिए जो रोटी लाता था उसका एक हिस्सा नियमित रूप से जबरे कुत्ते को देता था। दिन में ...Read More
सरकार और सेसर
ताज़ा व्यंग्य सरकार और सेंसर सरकार हे सरकार का सेंसरबोर्ड हें. जो सरकार के हिसाब से चलता हें. नहीं तो इस्तीफे की गंगा में बह जाता हैं मेरा सवाल हैं की केवल फिल्मों के लिए ही सेंसर बोर्ड क्यों. ? जब दुनिया भर के चैनलों पर बिना सेंसर के अश्लील धारावाहिकप्रसारित हो रहे हैं , तो फिर फिल्मों को सेंसर करने का क्या मतलब रह जाता हैं, समाचारों के चैनलों को छोड़ कर सभी चैनलों को सेंसर के दायरे में नहीं लाया जासकता तो फिल्मों ...Read More
फ्लेटों में रहन सहन
फ्लेटों में रहन सहन यशवंत कोठारी महानगरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी अब मध्यम वर्गीय आदमी फ्लेटों रहने की सोचने लगा है ,बाज़ार वाद के चलते बड़ी बड़ी कम्पनियां इस व्यापार में उतर गयी है, बड़ा मुनाफा है ,सरकार का सपोर्ट है ,बेंक लोन की आसान सुविधा है और चुकाने के लिए लम्बे समय की सहूलियत भी है ,एक तरह से किराये के मकान से बेहतर है और क़िस्त चुकाने मात्र से मकान खुद का हो जाता है .इस सुनहरे पहलू के बाद कुछ स्याह चित्र भी देखे जाने चाहिए. 1-फ्लेटों के जो चित्र दिखाए जाते हैं ...Read More