आज से आपके लिए पेश कर रहा हूं एक ऐसी लडकी की कहानी जिसने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी मुश्किले चट्टानों की तरह उसकी जिंदगी में थी , मगर वो अपनी पूरी वफादारी और मजबूत ह्रदय के साथ जिंदगी से झूझती रही.. बिना किसी मजबूत सहारे के ..!ऐसी औरतें कमजोर लड़कि
Full Novel
दास्तान-ऐ अश्क-1
आज से आपके लिए पेश कर रहा हूं एक ऐसी लडकी की कहानी जिसने अपनी जिंदगी में कभी हार मानी मुश्किले चट्टानों की तरह उसकी जिंदगी में थी , मगर वो अपनी पूरी वफादारी और मजबूत ह्रदय के साथ जिंदगी से झूझती रही.. बिना किसी मजबूत सहारे के ..!ऐसी औरतें कमजोर लड़कि ...Read More
दास्तान-ए-अश्क-2
अपने ख्वाबो को जीने की उम्मिद लगाये बैठे थे पता नही था हमे एक झूठी आस सचाये बैठे पूरे जोश के साथ नाच गाना चल रहा था वेद प्रकाश जी की खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी उनके साथ पूरा परिवार मस्ती में डूबा हुआ था बहुत ही धूम धड़ाके और गाजे-बाजे के साथ उनकी बारात रवाना हुई!और वो परे सन्मानमय ढंग से अपनी बीवी को ब्याह कर अपने धर ले आये!जैसे ही बारात घर पर आई तो उनकी मां उमा देवीजीने अपनी बहू के ऊपर से पानी ओवार के पिया और उसकी सारी बलाए ली!अब लाला ...Read More
दास्तान-ए-अश्क -3
: कहानी की नायका का जन्म कुछ एसे हालात मे हुवा! 24 दिसंबर की वो रात !काला स्याह अंधेरा आई थी!सर्दी अपने पूरे यौवन पर थी! क्रिश्चियन मिशन हॉस्पिटल की सारी नर्से अपना पसंदीदा त्यौहार मनाने को उत्सुक थी!अगले दिन 25 दिसंबर क्रिसमस का दिन था!पूरा हॉस्पिटल रंग बिरंगी लाइट्स लडियां और क्रिसमस ट्री से सजाया गया थाभगवान ईसु के आगमन की तैयारियां पूरे जोर से चल रही थी!और उस दिन हॉस्पिटल में इतनी भीड़ भी नहीं थी!तकरीबन सारे केसिस समय से पहले निपटा दिए गए थे!मगर एक केस ऐसा था जो बहुत ही उलझा हुआ था मनोरमा देवी ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 4
(पीछले भाग मे दास्तान-ए-अश्क मे हमने देखा की क्रिसमस के दिन बच्ची का जन्म होता है! पूरा परिवार मनाता है.. अब आगे) वह शुरू से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थी.! पढ़ाई में सबसे अव्वल रहना जैसे उसका जूनून था!पढ़ाई के अलावा उसको कविताएं लिखने में दिलचस्पी थी!छोटी छोटी असरकारक कविताएं..!लेकिन वह थोड़ी शर्मीली थी!अपने आप में रहने वाली लड़की !इसी वजह से जो भी काम करती अच्छा हो या बुरा सब से छुपा कर करती!मासूम बच्ची थी बुरा तो क्या करेगी! मगर उसको भूख बहुत लगती थी तो मम्मी की डांट की वजहसे वह कुछ चीजें चुराकर ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 5
( पिछले पार्ट में हमने देखा की नाईका अखबार के लिए लिखे आर्टिकल प्रीति को पोस्ट करने है...! वो अपने बारे मे प्रीति को बताती है.. अब आगे.. 5 जब वह 10th क्लास में आई तब उसकी मां का बर्ताव उसके प्रति और भी रुखा हो गया!उसने अपनी मां से एक वादा किया!मम्मी तुम टेंशन मत लो तुम्हें जैसी बेटी चाहिए वैसी ही मैं बन कर दिखाऊंगी! तब उसकी मां ने मन का दुख जाहिर किया! मुझे ऐसी मोटी बेटी नहीं अच्छी नहीं ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 6
नरेन्दर ने हिम्मत झुटाकर उसका रास्ता रोका था!वो पसीने से तर थी..! दिल धाडधाड करके पसलीयां से टकरा रहा नजरे झुकाकर वो तडप कर बोली थी! नरेन्दर इस तरहा तुम मेरे रास्ते मे क्यो आते हो..? नरेन्दर गहरी गहरी झील सी आंखो से उसको देखते हुये बोला ! तुम मुझे बहोत अच्छी लगती हो और मै तुमसे शादी करना चाहता हुं..!वो हिचकिचाती हुई कहने लगी.! तुम जानते हो हम दोनो की बिरादरी अलग है! हमारे यहां शादीयां ऐसे नही होती.! वो कसमसाकर रह गया. उसके मासूम चहेरे पर उदासी ने घेरा डाला.!आर्जवित स्वरमे वह बोला!मै जानता हुं की तुम हिन्दु ...Read More
दास्तान-ए-अश्क -7
( पिछले पार्ट मे हमने देखा की कहानी की नाईका ईस बात से बहोत परेशान है कि नरेंद्र प्रेम करता है.. वो उसके साथ शादी करना चाहता है.. मगर नाईका अपने पेरन्टस का दिल दुखाने वाला काम नही करना चाहती... अब आगे...?) वो भारी मन और बोझिल कदमों से चलते हुए घर वापस आई !सारे रास्ते एक ही बात उसके दिमाग को कचोट रही थी !उसने जो किया वह सही था गलत ?मन काफीउदास था !बेचैनी बढ़ रही थी!और वो कर भी क्या सकती थी कुछ भी नहींकर पा रही थी! एक तरफ जहां उसको उम्मीद थी नए जीवन की!वहीं ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 8
(अगले पार्ट में हमने देखा कि प्रीति रोती हुई उसके पास आती है और कहती है कि मुझे बचा !वह लड़का उसके लिए ठीक नहीं था!अब आगे) रोते बिलखते प्रीति उसके सीने से लिपट कर कहती है दीदी मुझे बचा लो...! मुझे यह शादी नहीं करनी है..?घबराकर वह पूछती है ! क्या हुआ प्रीति ?क्या बात है? दीदी वह लड़का अच्छा नहीं है? वह लड़का किन्नरों के संग गाता बजाता है अजीब सी हरकतें करता रहता है..! तुझे यह बात किसने बताई..? संजीदगी से उसने पूछा था!मेरी ताई जी की छोटी बेटी ने यह बात मुझे बताइ है! ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 9
(अगले पार्ट में हमने देखा कि प्रीति रोती हुई उसके पास आती है और कहती है कि मुझे बचा !वह लड़का उसके लिए ठीक नहीं था!अब आगे) रोते बिलखते प्रीति उसके सीने से लिपट कर कहती है दीदी मुझे बचा लो...! मुझे यह शादी नहीं करनी है..?घबराकर वह पूछती है ! क्या हुआ प्रीति ?क्या बात है? दीदी वह लड़का अच्छा नहीं है? वह लड़का किन्नरों के संग गाता बजाता है अजीब सी हरकतें करता रहता है..! तुझे यह बात किसने बताई..? संजीदगी से उसने पूछा था!मेरी ताई जी की छोटी बेटी ने यह बात मुझे बताइ है! ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 10
9 (काफी वक्त हो गया जब मैंने कुंदनिका कापड़ियाजी की सात पगलां आकाशमां नोवेल पढी थी...!उनके जैसा तो जनम लु तबभी नही लिख सकता.. स्त्रीयां की छोटी बडी सब समस्याओं को बखुबी शब्दो में उतार कर एक अच्छा संदेश दिया था! तबसे धनक लगी थी..! एसी कहानिया लिखने की ! स्त्रीजीवन सामयिक मे बहोत सी प्रकाशित हुई..! लंबे अरसे बाद फिर वही अंदाज दोहराने का मौका मिला.. मेरे सभी पाठको ने मेरी कहानियां को सराहा है..! मेरे आप्तजनो की तरह सबने मेरे उत्साह को बरकरार रखा.. ये दास्तान-ए-अश्क मेरे सभी पाठको को समर्पित करता हुं..! तहे दिल से सबका शुक्र ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 11
( अगले पार्ट में हमने देखा कि सुहागरात के दिन नायिका का पति उसके साथ जानवरों जैसा बर्ताव करता और उसका शरीर जख्मी कर देता है उस पर चरित्र हीन होने का इल्जाम लगाता है वो रात कयामत की रात बन जाती है उसके लिए अब आगे थैंक यू सो मच फ्रेंड्स दास्तान ए अश्क की तरह आपने वह कौन थी कहानी को भी सराहा है और मुझे खुशी है कि आप लोग मुझे रेटिंग दे रहे हैं मातृभारती पर मुझे जो लोग नजर आए उनके नाम है ! दुर्गेश तिवारी, नमीता गुप्ता ,गायत्री गोयल ,भारती माथुर ,निकिता पंचाल, ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 12
(अगले पार्ट में हमने देखा की नाइका खुद पर हुए अत्याचार को अपने पिता से कहने के लिए मौके तलाश में है! मगर वह मौका ही नहीं मिल रहा! तभी प्रीति आकर उसे नरेंदर से मिलवा ने ले जाती है.. अब आगे..! ) ------------------------ बहुत मशक्कत से उसने खुद को संभाला!अपने आप से ही एक फैसला किया !वादा किया !आज के बाद वो सिर्फ अपने लिए जियेगी! जैसे जैसे समय गुजर रहा था उसके मन का बोझ बढ़ने लगा..! पापा जी से बात करनी थी ,और उसे अब तक मौका ही नहीं मिला था!पापा जी की ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 13
' कहीं चोट आई थी मुझे कहीं जुल्मों का मारा था मजमा था दिल की कशिश का उसका सहारा था' (दास्तान के अगले पार्ट में हमने देखा कि वह नरेंदर से मिलने जाती है तो नरेंदर उसकी बातें सुनकर गुस्सा हो जाता है उसको कस के पकड़ता है.. अब आगे) नरेंद्र का गुस्सा उसके शब्दों में उतर आता है ! मैं तुम्हारे जितना बेवका नहीं हुं! पत्थर दिल भी नहीं हूं! मैने तुमसे प्यार किया है! सपने में मैंने जो तुम्हारी छवि बना रखी है उस स्थान पर ना किसी और के लिए जगह है ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 14
आंखों मे कुछ तेरे अरमान छोड जायेंगे.. जिंदगी मे तेરે कुछ निशान छोड जायेंगे ले जायेंगे सिर्फ एक कफन लिये तेरे लिये सारा जहान छोड जायेंगे.. --------- ------ कहते हैं जिंदगी में अगर मन चाहा मिल जाए तो जिंदगी स्वर्ग बन जाती है..! लेकिन अनसुलझी जिंदगी जीना इतना आसान नहीं होता..! बहुत कठिन है जिंदगी की डगर.. जहां सिर्फ धुंध ही धुंध नजर आ रही हो..! वह इतनी निर्मोही है कि किसी को सुख झोली भर भर के देती है तो.. कोई अपने लिये मूठ्ठी आसमा को भी तरस जाता है..! प्रिय रीडर अापने अपने बेश किमती ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 15
"चल्ल बुल्लिया.. चल उथ्थे चल्लिये.. जिथ्थे सारे अन्ने.. ना कोई साड्डी जात पहचाने... ना कोई सान्नु मन्ने.. ( पंजाब एक मशहूर कवि कहते हैं "चल रे बलमा हम ऐसी जगह पर चले जाते हैं जहां सारे लोग अंधे हो कोई नात जात को पहचानता ना हो! जिनके लिए सब लोग एक जैसे हो!) जिंदगी ने मायुस कर दीया उसे.. अभी तो उसके सजने संवरने के दिन थे! सपनो की जगह आंखे अश्क से उभरने लगी थी! छोटी सी उम्र थी! इस छोटी सी उम्र में मासूम दिल को कांच की तरह चुभने वाली किरचो से भरा सफर.. जिस पर ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 16
" खामोश रहने से दम घुटता है ! और बोलने से जुबान छिलती है डर लगता है नंगे पांव से पांव के नीचे कोई कब्र हिलती है!" दास्तान.... आज सुबह से ही उसका सर बहुत भारी था! उसने जैसे ही उठने की कोशिश की चक्कर आए... उल्टी जैसा हुवा ! बडी मुश्किल से उठकर भारी कदमों से वो अपनी सास के पास आई! गभराहट के साथ डरती डरती बोली..! "मम्मी जी.. पता नही आज मुझे क्या हो रहा है! मेरा सर बहोत भारी हो गया है लगता है जैसे उल्टी हो जायेगी!!" उसकी सासुमा एकटुक उसे देखते हुई ...Read More
दास्तान-ए-अश्क -17
कोई अपना सा होता जो मेरे मन को छुता.. कोई सपना सा था जो सारी रात न रुठा कहा सिमट आई बरखा आंखो तले जमकर उसने मन के बोझ को है लूंटा 17 जैसे बरसों से बंजर उस घर की जमीन को पंख लग गए! परिवार के सारे सदस्य कोई अनछुए श्राप से मुक्त हो गए थे! कई सालों तक काले घने अंधेरे बादलों के नीचे दबी हुई जिंदगी तेजपूंज की किरनो से तरोताजा होकर खिल उठी! कुछ हद तक बोझ कम हुवा था! जैसे जीने का सहारा उसे मिल गया था..! अब वो एक एक दिन बेताबी ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 18
"अो ईश पलट कर मेरी जिंदगी देख लेता मेरी बर्बादी मे कही कोई कसर तो नही थी" ........... दास्तान-ए-अश्क ( पिछले पार्ट मे हमने देखा की उसकी प्रेग्नन्सी की बात जानने के बाद उसका पति उससे दुरी बनाता है.., आखिर क्या वजह थी.. जानने के लिए पढीये दास्तान-ए-अश्क आगे.. ) एक तूफान जो उसके जीवन में सैलाब लाने को तैयार था! अश्कों का सैलाब ! अश्क जो उसका पर्याय बन चुके थे ! सुबह में उठी और फिर से कोशिश में जुट गई , अपने पति को पाने की कोशिश में! उन्हें समझने की कोशिश है ,पर ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 19
एक ऐसा एहसास था!मानो उसके जिस्म पर बिच्छू रेग रहे हो..!क्या आज तक वह जूठन खाती रही?!जैसे किसी बदचलन से कोई मर्द संबंध नहीं रखना चाहता और उसे अपनी बीवी बनाने से हिचकिचाता है !"क्या ऐसे ही अगर किसी मर्द का चाल चलन खराब हो तो औरत को यह हक नहीं कि वह उसे छोड़ सके..?"पश्चिम देशो में शादी करना और तलाक देना बहुत सरल है ,लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं वहां शादी को आज भी सात जन्मों का बंधन माना जाता है!शादी करना और उसे निभाना चाहे मन से या बेमन से जरूरी होता है , ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 20
(पिछले पार्ट में हमने देखा कि प्रेगनेंसी के वक्त उसे सास ससुर सभी बताते हैं कि तुझे अपने मायके पड़ेगा.. यह सुनकर उसका मन काफी उदास हो जाता है वह अपने घर बिल्कुल ही नहीं जाना चाहते थे उसका मन उठ गया था पर कभी-कभी ना चाहते हुए भी रिश्ते निभाने पड़ते हैं अब आगे) -----अनचाहे मन से वो अपने कमरे में आकर रेडी होने लगती है !आज से गोद भराई के बाद मायके जाना था! प्रसव होने तक वहीं रहना था !ना चाहते हुए भी उसे वहां जाने के लिए मजबूर होना पड़ा !"बहु ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 21
वह कई दिनों से देख रही थी उसका नंना बहुत रोता था!दूध भी नहीं पीता था जैसे जैसे वह होता जा रहा था उसकी फिजिकल ग्रोथ बहुत कम थी! उस दिन उस को बहोत ज्यादा रोता हुवा देखकर बिलबिला उठी!"चुप हो जा बेटा ... क्यों रो रहा है इतना.?"पर आज वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था !हार कर वो अपनी सासू मां के पास गई ! "मम्मी... देखो ना नन्ना कितना रो रहा है..!मम्मी भी उसकी नीली पड रही बोडी को देखकर परेशान हो गई..! कुछ हद तक वो भी घबरा गई!आनन-फानन में उसे डॉक्टर ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 22
एक औरत जब कोई भी बात मन में ठान लेती है ,तो कहते हैं भगवान भी उसे उसकी जगह हिला नहीं सकते!उसने मन ही मन फैसला कर ही लिया था कि वह अपने बच्चे को ठीक करेगी!उस पर दिल और दिमाग से ध्यान देगी! उसे बिल्कुल ठीक कर देगी! लेकिन इस समय उसे अपने पति का साथ चाहिए था! जो उसके बच्चे का पिता था! लेकिन वह निर्मोही अपनी ही दुनिया में लीन रहता था! वो अपने बच्चे के लिए वो मानो एक पत्थर बन चुका था ! लेकिन उसने डॉक्टर के कहे अनुसार अपने बच्चे की परवरिश करनी ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 23
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं ज़िंदगी भी जान लेकर जाएगी - 'जोश' मलासियानी ................... .... बहुत ही बात थी उसको धिन्न हो उठी थी पुरुष जात से..! एक कांच के जैसा होता है स्त्री का ह्रदय..! और हमेशा दिमाग से सोचने वाला पुरुष उसे ठेस पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ता..! उसके साथ भी वैसा ही हुआ था अपनी नाबालिक उम्र में दूसरे बच्चे के बारे में सोचना भी जानबूझकर जिंदगी को दाव पर लगाने जैसा था..! सब आदमी ही तय करता है ..! औरत को कब मां बनना है ? और कब नहीं..? नफरत थी उसे ऐसे ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 24
किसी ने मुझे एक बहुत अच्छी बात बताई!"एक औरत वो होती है ,जिसके किचन में खाना बनाने के बहोत सारे व्यंजन- मसाले मौजूद होते हैं! उसके प्रयोग से वह दमदार खाना बना कर परिवार में वाहवाही की हकदार बनती है !और एक औरत वह होती है जिसके पास किचन में मसालों की मात्रा कम है, फिर भी उसके खाने में एक अलग ही लज्जत होती है ! इसका कारण आप जानते हो क्योंकि वह अपना काम दिल से करती हैं!थैंक यू सो मच उनकी इतनी अच्छी सोच के लिए..!------ ----------दास्तान-ए-अश्क.. दास्तान के पिछले पार्ट में हमने देखा कि इस कहानी ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 25
श्याम ढल रही थी! एक बेजान श्याम..! जो सुब्हा का उजाला लेकर आने का वादा करके जाती है..! मगर किसको सुब्हा की पहली किरन नसिब थी ये कोई नही जानता था..! जिंदगी अपने रंग बदल रही थी! कहीं कुछ टूटा था..! बस उस घर में कोहराम मच गया था..! सडक पर गुजरने वाला एक मस्त मौला मुसाफिर अपनी घुन मे गाये जा रहा था..! जो हमने दास्ता अपनी सूनाई..आप क्यु रोये..! तबाही तो हमारे दिल पे है छाई आप क्यु रोये..! लेकिन उसकी दास्ता कोई सून ने वाला नही था..! क्योंकि अभी तो बहुत कुछ बाकी था! अगर किसी को इस जहां में सुख नहीं मिलता तो अगले ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 26
मेरे सभी प्यारे दोस्तों.. अश्क' काफी लेट हुई है! उसके लिए क्षमा चाहता हूं कुछ तो मजबूरियां रही है जानता हूं कि आप सब मुझे समझेंगे! इस कहानी को जितना प्यार आप लोगों ने दिया है तो मैं भी अपना फर्ज समझता हूं कि कहानी को अपने आखरी मुकाम तक पहुंचाउ..! मुझे यकीन है आप लोग इस कहानी की नायिका के साथ आखरी मुकाम तक जुड़े रहेंगे...! फिर से आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया..! दास्तान-ए-अश्क -26 ------------------------- उस बड़ी कोठी का कलंक थी वह दर्द भरी आहे..! एक एक कोने से उठ रही किसी के ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 27
"मुझे मेरी उम्मीद से ज्यादा मिला अय जिंदगी अब कभी मुस्कुराने की गुस्ताखी नहीं करनी मुझे..? "मैडम जी आप हो..?" रज्जो की आवाज सुनकर उसका दिल उछल पड़ा! अपनी बेड से वह संभलकर उठी! पास ही बैठी गुड़िया ने ममा का हाथ पकड़ लिया! अपनी मां के पास बैठा सारंग दरवाजा खोलता उससे पहले तो अपने हाथों से डोर खोलकर रज्जो घर में आ गई! सामने दीवार के सहारे खड़ी अपनी मैडम को देख कर वो अवाक रह गई! यह कैसे हो गया? उसे अपनी आंखों पर यकिन नहीं हुवा! करीब आकर रज्जो ने मैडम जी के बाजुओं को ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 28
"बस करो रज्जो अब मुझसे और नहीं भागा जा रहा!" पसीने से भीगे कपडों में उसे घबराहट हुई तो बोल उठी! -कुछ देर कहीं बैठ जाते हैं!' "नहीं मैडम जी मैं आप को गिरने नहीं दूंगी! मेरा हाथ पकड़ कर आप बस तेजी से चलते रहो!" रज्जो मेडिकल से दवाइयां ले कर डॉक्टर लवलीन को दिखाने गई! तब डॉक्टर ने जो कुछ मैडम के लिए हिदायतें दी थी उसको वो स्ट्रिक्टली फॉलो कर रही थी! "डॉक्टर मेम ने सख्त शब्दों में कहां है, आपको मॉर्निंग-इवनिंग डेईली वॉक करवाना है! आज पहला दिन है तो सिर्फ 1 किमी ठीक है! ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 29
मेम साहब कलयुग के इस काले दौर में लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि अपने खून के रिश्तो भी लिहाज नहीं करते जान लेने की नौबत आये तो भी ले लेते हैं। और आपका तो अपना ही सिक्का खोटा निकला! दिमाग से पैदल है बाबूजी.. वरना आप जैसी औरत को पाकर उनकी जिंदगी जन्नत थी! वाकई मुझे ऐसे लोगों पर तरस आता है जिन्हें अपना बुरा भला नजर नहीं आता।मैं कुछ ज्यादा बोल गई हूं तो माफ करना, पर मुझसे आप की ये हालत देखी न गई।आपने उस वक्त मेरा हाथ थामा था जब मुझे काम की भी सख्त ...Read More
दास्तान-ए-अश्क - 30 - लास्ट पार्ट
कहते हैं ना मजबूरी इंसान को बहुत कुछ करवाती है जिंदगी में पहली बार उसने अपने भाइयों से मदद मरने से तो यह रास्ता उचित ही था l अब घर की चिंता नहीं थी मगर एक बात थी जो उसको खाए जा रही थी..l कोठी गिरवी पड़ी थी उसका सॉल्यूशन भाइयों से पैसा लेना हरगिज़ नहीं था l क्योंकि अपने ही हाथों से अपनी बर्बादी की वह नीव रखना नहीं चाहती थी..l संपत्ति का बंटवारा होने के बाद मुश्किलें बढ़ गई थी क्योंकि वो तो बिल्कुल नक्कारा था..l गृहस्ती को चलाया जा सके उतना भी घर में लाकर वो ...Read More