सामने खुली किताब के खुले पन्ने को पलटते हुए स्वस्ति अनायास ही रुक गई! उसने एक पल ठहरकर पढ़ना शुरू किया! “प्रेम के अलावा प्रेम की कोई और इच्छा नहीं होती। पर अगर तुम प्रेम करो और तुमसे इच्छा किये बिना न रहा जाए तो यही इच्छा करो कि तुम पिघल जाओ प्रेम के रस में, और प्रेम के इस पवित्र झरने में बहने लगो।” – खलील ज़िब्रान
Full Novel
मन कस्तूरी रे - 1
सामने खुली किताब के खुले पन्ने को पलटते हुए स्वस्ति अनायास ही रुक गई! उसने एक पल ठहरकर पढ़ना किया! “प्रेम के अलावा प्रेम की कोई और इच्छा नहीं होती। पर अगर तुम प्रेम करो और तुमसे इच्छा किये बिना न रहा जाए तो यही इच्छा करो कि तुम पिघल जाओ प्रेम के रस में, और प्रेम के इस पवित्र झरने में बहने लगो।” – खलील ज़िब्रान ...Read More
मन कस्तूरी रे - 2
अरे, मूवी शुरू होने में थोड़ी सी देर है और अभी तक तुम यहाँ बैठी हो। चलो भी, मूवी हो जाएगी, जानेमन!!! कार्तिक ने एकाएक पीछे से आकर उसे बाँहों में भरते हुए ज़ोर से हिला दिया। अपने ही ख्यालों में डूबी जाने कब से ऐसे ही बैठी थी, एकाएक चौंक गई थी स्वस्ति। उफ्फ्फ ये कार्तिक भी न!!! ऐसा ही है वह, बेसब्र और आकस्मिक। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 3
इन दिनों एक कोर्स के सिलसिले में स्वस्ति को कुछ किताबों के लिए रोज मंडी हाउस जाना पड़ रहा उस लगता है, वहां से लौटते हुए मेट्रो से अधिक सुविधाजनक कोई और वाहन हो ही नहीं सकता! मंडी हाउस से चली मेट्रो जब राजीव चौक पर रुकी तो स्वस्ति मेट्रो से उतर गई। यहाँ से दूसरी मेट्रो लेनी है स्वस्ति को। ओह माय गॉड!!! राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर कितनी भीड़ थी आज। वही रोज का हाल है। हमेशा की तरह पूरा मेट्रो स्टेशन भरा पड़ा है। जहाँ देखो लोग ही लोग.... देखो तो तिल रखने की भी जगह नहीं। कितनी भीड़ और बेशुमार भीड़। मानो सारा संसार इस मेट्रो स्टेशन में समाने को तैयार है। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 4
रात भर बतियाई थीं दोनों! माँ जानती हैं किसी को आज सुबह जागने की जल्दी नहीं! उन्होंने कमला से काम करने को कहा ताकि उन बातूनी सहेलियों की नींद में कोई खलल न पड़े! सुबह माँ को एक बहुत जरूरी कार्यक्रम में जाना था। जाते हुए दोनों के लिये नाश्ता बना गई थीं वे ताकि दोनों को कोई परेशानी न हो। माँ आखिर माँ है। वे घर ने रहें या बाहर दोनों के स्वाद और पसंद का ख्याल रखना उनकी आदत में शामिल है! वे जानती हैं रोशेल को उनके हाथ के बने आलू के परांठे और दही का नाश्ता कितना पसंद है! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 5
“उसे आईलाइनर पसंद था, मुझे काजल। वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी, और मैं अदरक की चाय पे। उसे क्लब पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें। शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे, मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था। लेखक बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता। वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी, मैं असम के चाय के बागानों में खोना चाहता था। मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर सूरज डूबना देखना चाहता था। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 6
ये मन का मौसम है न कब बदल जाये क्या कहिये। फिर हर दिन एक सा नहीं होता। एक मन पर उदासी का कोहरा छाया नहीं कि संभलते-संभलते वक्त लग ही जाता है। बहुत मूडी हो गई है आजकल स्वस्ति। उस दिन मन कुछ उदास था स्वस्ति का तो अलमारी से पापा की तस्वीर निकालकर बैठ गई। सामने पापा की तस्वीर थी और स्वस्ति जैसे ऐसी यादों में कहीं डूब गयीं जो उसने कभी देखी नहीं थी सुनी भर थीं। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 7
बहुत मुश्किल थे वे दिन भी। इतने संघर्षमय जीवन में कहीं कोई अपना नहीं। तब बहुत अकेली थी दोनों बेटी और उनका दिल्ली जैसे महानगर में बस जाना भी इतना आसान कहाँ था। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की परिकल्पना पुरुष के साथ के बगैर बेमानी है। एक स्त्री सामाजिक ढांचे में तभी फिट बैठती है जब उसके पिता, पति, भाई या पुत्र के रूप में एक पुरुष उसके जीवन में मौजूद रहे। पर वृंदा के साथ ले देकर एक बेटी ही थी। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 8
ये प्रेम शब्द ही ऐसा है। विचित्र सी मिठास से भरा एक शब्द और कैसी है ये मिठास, क्या कभी कोई परिभाषित कर पाया है। दरअसल ये तो गूंगे का गुड़ है जो मुंह में घुलकर आत्मा तक को मिठास से तो भर देता है पर जिसका स्वाद बता पाना उसके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। कम से कम दुनियावी जबान में तो यह बिल्कुल भी मुमकिन नहीं! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 9
उस रात फिर से स्वस्ति के सपने में वह समय रेखा थी! मतलब समयरेखा पर अलग-अलग अंकों पर खड़े और शेखर! दोनों के बीच के फासले में छाए थे वे अंक जो उन दोनों के बीच के उम्र के फासले को दर्शाते थे! ये समयरेखा का सपना उसके मन की इच्छाओं का प्रतीक था या उसकी कामनाओं का ये जानना था स्वस्ति को! सुबह से मन इस सपने में उलझा था! उस दिन भीनी भीनी धूप खिली थी! स्वस्ति का मन हुआ रोशेल से मिलने और मिलकर अपना स्वप्न बतियाने का! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 10
आज सुबह जल्दी आँख खुल गई तो स्वस्ति ने कुछ पेंडिंग काम निपटाने का प्लान किया! सबसे पहले इमेल्स फिर मेसेजेज पढ़े कुछ देर और फिर उसने अपने कॉलम के लिए लेख लिखना शुरू किया! जाने क्यों आज मौसम की तरह मूड भी अच्छा था तो स्वस्ति ने एक ही सिटिंग में पूरा लेख लिख दिया! काफी देर से टाइप करते-करते थक गई थी वह! फाइनल एडिटिंग से पहले थोड़ा ठहरना चाहती है वह! उसने लैपटॉप को सामने टेबल पर रखा और यूँ ही सामने की ओर देखते हुए थोड़ा रिलैक्स होकर अपने कुर्सी पर बैठ गई! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 11
रेस्टोरेंट से वे दोनों सीधे शेखर के फ्लैट पर चले गए। शेखर जल्दी ही विदेश चले जाएँगे यह ख्याल अपने मन से निकाल नहीं पा रही है। इससे पहले भी वे देश विदेश की यात्राओं पर जाते रहे हाँ पर स्वस्ति ने ऐसा कभी फील नहीं किया। अपने मन की इस उथलपुथल पर आज उसका कोई नियन्त्रण क्यों नहीं है! जबकि वह कितनी संयमित और संतुलित है इसकी प्रशंसा स्वयं शेखर भी करते रहे हैं! उसके व्यक्तित्व के ठहराव और परिपक्वता के वे कायल हैं! वह खुद नहीं जान पा रही है कि उसे क्या हुआ है? क्या स्वस्ति बदल रही है। शायद हाँ, अपने प्रेम से उसकी उम्मीदें और ख्वाहिशें दोनों बदल रही हैं पर इसमें गलत भी क्या है। अंततः वे दोनों प्रेमी हैं। ये कोई अनोखी बात तो नहीं! वह अपने प्रेमी के इतने समय तक विदेश जाने से पहले का समय उनके साथ बिताना चाहती है। सिंपल....! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 12
ये रोशेल थी फोन पर! हम्म...तो इतने दिनों बाद आखिर फुरसत मिल ही गई मैडम को...स्वस्ति सोच रही थी! बात हुई दोनों की! बहुत दिनों बाद! दोनों ही के पास एक दूसरे को बताने के लिए बहुत कुछ था! रोशेल की आवाज़ में ख़ुशी की जो महक थी वह फोन से निकलकर पूरे माहौल को महका रही थी! स्वस्ति ने ऐसे में अपनी परेशानियों और टेंशन की बात करना स्थगित कर दिया! वह रोशेल को ही सुनती रही! उसके सुख को महसूस करती रही! गोवा से लौट रही है वह कल! अच्छा लगा स्वस्ति को! ज़िदगी के इस फेज में उसे शिद्दत से रोशेल की जरूरत महसूस हो रही थी! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 13
आज तेज धूप खिली है! लग रहा है जैसे ये धूप अपने साथ अवसाद के अँधेरे कोनों की कालिमा कहीं दूर ले जाएगी! कॉलेज की छुट्टी है। स्वस्ति और माँ दोनों आज घर पर हैं! स्वस्ति ने तय किया आज कुछ समय वह केवल माँ के साथ बिताएगी। आज उसने खुद माँ की पसंद का नाश्ता बनाया। माँ को पोहे बहुत पसंद है न। उसने पोहे और अदरक वाली चाय बनाई और माँ को बहुत प्यार से नाश्ता खिलाया। ...Read More
मन कस्तूरी रे - 14
अँधेरे की काली चादर को हौले से सरकाकर सूरज ने पहली किरण को एक इशारा किया और उसने आहिस्ता धरती की सतह की ओर बढ़ना शुरू किया! इधर उषा ने आँखें खोली और उधर पक्षियों ने अपने पंख संवारने शुरू किये! उनकी चहचहाहट से गुलजार होने लगी पूरी कायनात! गिलहरियाँ पेड़ों की जड़ों में दौड़ रही हैं, हवा से पत्ता लहराकर सुबह का स्वागत कर रहे हैं! सूर्य का साथ घोड़ों वाला स्वर्णिम रथ अब धरती तक पहुँच चुका है! पत्ता पत्ता बूटा बूटा सुबह की अगवानी को तैयार खड़ा है! हर ओर उल्लास और ताजगी का वातावरण है! ...Read More
मन कस्तूरी रे - 15
ये बुखार कई दिन चला। कभी चढ़ जाता तो कभी दवा के असर से उतर जाता है। एक दिन ऐसा नहीं रहा जब दोनों वक्त बुखार न चढ़ा हो! दवा बराबर चलती रही! डॉक्टर घोष ने बताया था माँ कि वायरल है, इन दिनों हवा में है! अब हुआ है तो इसकी कुछ दिन की अवधि है! ये कुछ दिन तक तो रहेगा ही तो ज्यादा घबराने की बात नहीं है। तो बुखार आता रहा, उतरता रहा! बुखार जब भी आता तो इतना तेज़ आता कि घबरा जाती थीं माँ! उन्हें लगने लगा कहीं कुछ और तो नहीं! ...Read More