कुतिया

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इस दिवाली की रात शायदा करीब करीब 2/3 बजे होंगे मेरी नींद खुल गई थी मे कमरे से बाहर निकला सोचा कुछ टहल के फिर बिस्तर पर गिरा जाए ताकि सुबह तक आंख ना खुले, हमारे प्लांट के कंपाउंड में चक्कर काट रहा था, दूर से बड़ी गाड़ी के हॉर्न की ओर दूर मिलों की सायरन बजती, कभी कभी तिमरो धुन बड़ी जोर पकड़ लेती थी तभी मेरे कानो मे कुछ दर्द से छटपटा रहा हो वैसी आवाज सुनाई थी मेने ध्यान लगाकर सुना कहा से ये आवाज आई देखा तो हमारे स्टोर रूम की तरफ से आ रही थी और वोह आवाज एक कुतिया की थी (कुतिया बड़ा ग़ज़ब का शब्द हे हमारा समाज अक्सर स्त्री को सुनाता रहेता है)

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कुतिया - 1

इस दिवाली की रात शायदा करीब करीब 2/3 बजे होंगे मेरी नींद खुल गई थी मे कमरे से बाहर सोचा कुछ टहल के फिर बिस्तर पर गिरा जाए ताकि सुबह तक आंख ना खुले, हमारे प्लांट के कंपाउंड में चक्कर काट रहा था, दूर से बड़ी गाड़ी के हॉर्न की ओर दूर मिलों की सायरन बजती, कभी कभी तिमरो धुन बड़ी जोर पकड़ लेती थी तभी मेरे कानो मे कुछ दर्द से छटपटा रहा हो वैसी आवाज सुनाई थी मेने ध्यान लगाकर सुना कहा से ये आवाज आई देखा तो हमारे स्टोर रूम की तरफ से आ रही थी ...Read More

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कुतिया - 2

इस दिवाली की रात शायदा करीब करीब 2/3 बजे होंगे मेरी नींद खुल गई थी मे कमरे से बाहर सोचा कुछ टहल के फिर बिस्तर पर गिरा जाए ताकि सुबह तक आंख ना खुले, हमारे प्लांट के कंपाउंड में चक्कर काट रहा था, दूर से बड़ी गाड़ी के हॉर्न की ओर दूर मिलों की सायरन बजती, कभी कभी तिमरो धुन बड़ी जोर पकड़ लेती थी तभी मेरे कानो मे कुछ दर्द से छटपटा रहा हो वैसी आवाज सुनाई थी मेने ध्यान लगाकर सुना कहा से ये आवाज आई देखा तो हमारे स्टोर रूम की तरफ से आ रही थी ...Read More