प्रिया के घर के सामने वाले खाली घर में महीनों से सन्नाटा पसरा था। उस घर के आँगन में धूल से नहाये हुए पत्ते, हवा के साथ यहाँ से वहाँ उड़ते नज़र आते थे। जगह-जगह पत्तों के छोटे-छोटे ढेर कचरे में अटक कर एकत्रित हो जाते और अपनी बर्बादी की कहानी ख़ुद ही बताते थे कि जब से उन्होंने वृक्ष को छोड़ा या यूं भी कह सकते हैं कि जब से वृक्ष ने उन्हें छोड़ा, उनकी ज़िन्दगी इसी तरह आवारगी की भेंट चढ़ गई है। यहाँ से वहाँ, इधर से उधर, उड़ते रहना ही उनका भाग्य हो गया है। कभी-कभी तो लोग उन्हें आग के हवाले तक कर देते हैं। काश उनका जीवन ऐसा नहीं होता।
दरिंदा - भाग - 1
प्रिया के घर के सामने वाले खाली घर में महीनों से सन्नाटा पसरा था। उस घर के आँगन में से नहाये हुए पत्ते, हवा के साथ यहाँ से वहाँ उड़ते नज़र आते थे। जगह-जगह पत्तों के छोटे-छोटे ढेर कचरे में अटक कर एकत्रित हो जाते और अपनी बर्बादी की कहानी ख़ुद ही बताते थे कि जब से उन्होंने वृक्ष को छोड़ा या यूं भी कह सकते हैं कि जब से वृक्ष ने उन्हें छोड़ा, उनकी ज़िन्दगी इसी तरह आवारगी की भेंट चढ़ गई है। यहाँ से वहाँ, इधर से उधर, उड़ते रहना ही उनका भाग्य हो गया है। कभी-कभी ...Read More
दरिंदा - भाग - 2
प्रिया अपने सामने वाले खाली घर में किसी के आ जाने से बहुत खुश थी। अब तक भी वह घर की तरफ़ देख रही थी। आज उसका उत्साह चरम सीमा पर था।उसने चहकते हुए विनोद से कहा, "पापा आख़िर इस घर का भाग्य खुल ही गया। अब हमारे घर की तरह वहाँ से भी बातें करने और हंसने की आवाज़ें आएंगी। शाम को कुर्सी डालकर वे लोग भी बाहर आँगन में बैठेंगे। कितना अच्छा लगेगा ना पापा?" "हाँ बेटा।" "पापा मैं उन लोगों से दोस्ती कर लूंगी।" "हाँ-हाँ कर लेना।" तभी अचानक उस घर से रोने की आवाज़ आने ...Read More
दरिंदा - भाग - 3
प्रिया को घर के अंदर से सिसकियों की आवाज़ लगातार सुनाई दे रही थी। लेकिन जब कुछ समय तक खिड़की खोलने नहीं आया तब यह सोचते हुए कि अंदर जो भी है वह बहुत तकलीफ में है उसने फिर से खिड़की को खटखटाया। अंदर अल्पा ने खटखटाने की आवाज़ तो सुन ली थी परंतु कौन होगा यह सोचकर वह खिड़की के पास नहीं आई। लेकिन जब बार-बार खिड़की खटखटाने की आवाज़ आने लगी तो उसे आना ही पड़ा। उसने आकर खिड़की का दरवाज़ा खोला। सामने एक प्यारी-सी लड़की को देखकर उसने अपने आंसुओं को पोछते हुए इशारे से ही ...Read More
दरिंदा - भाग - 5
प्रिया ने देखा रसोई में एक घड़े में पानी था लेकिन उसके अलावा उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं दिया। रसोई में कुछ बर्तन इधर उधर पड़े थे जो वहाँ की बदहाली के गवाह बने हुए थे। गैस स्टोव भी जाने कब से यूँ ही धूल खाया हुआ वहाँ की दर्दनाक कहानी बयाँ कर रहा था। ऐसे हालात देखकर प्रिया हैरान हो रही थी। वह सोच रही थी कि जेल भी शायद इतनी भयानक नहीं होती होगी। वह समझ गई थी कि यह लड़की तो पता नहीं कब से भूखी भी होगी। उसने गिलास में पानी भरकर अल्पा ...Read More
दरिंदा - भाग - 4
अगले दिन सुबह प्रिया उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। कुछ ही देर में फिर उसी बर्तन पटकने और रोने की आवाज़ें आने लगी। प्रिया घबरा रही थी, उसे डर भी लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी उसके पापा ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर ड्राइंग रूम में आए। अपने पापा को देखते ही प्रिया ने कहा, "पापा देखो ना वह अपनी पत्नी को फिर मार रहा है।" "प्रिया बेटा इस वक़्त हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। मेरे ऑफिस का समय हो रहा है चलो तैयार होकर ...Read More
दरिंदा - भाग - 7
प्रिया की हिम्मत देखकर अल्पा घबरा रही थी। उसने डरते हुए कहा, "पुलिस में शिकायत ...? नहीं-नहीं प्रिया रहने वह बड़ा ज़ालिम है, तुम्हें भी नुक़सान पहुँचाने की कोशिश करेगा। तुम इस झमेले में मत पड़ो।" परंतु प्रिया का इरादा तो पक्का था। उसने कहा, "कुछ नहीं होगा, तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगी।" इस तरह अल्पा को हिम्मत बँधा कर वह अपने घर लौट गई। घर जाकर उसने बहुत सोचा। राज की असलियत जानने के बाद पुलिस उसे पकड़ कर ले जाएगी। उसके बाद अल्पा जी फिर से अकेली हो जाएंगी। उनका तो दुनिया में कोई ...Read More
दरिंदा - भाग - 6
प्रिया अपने घर तो चली गई परंतु अल्पा से पूछे गये उस प्रश्न का उत्तर न मिलने से उसकी और बढ़ती जा रही थी कि आख़िर उसका पति उसे मारता क्यों है। शाम को उसने अपने पापा को बताया, "पापा मैं आज कॉलेज नहीं गई।" "क्यों बेटा ...? यह तो ग़लत किया तुमने।" "पापा मैं सामने वाली अल्पा जी के पास गई थी।" "क्या ...? यह क्या कह रही हो तुम? वहाँ तो ताला लगा है।" "पापा मैंने आज उस ताले की चाबी बनवा ली है।" यह शब्द सुनते ही विनोद उठकर खड़े हो गए उनके आश्चर्य का ठिकाना ...Read More