मानव सभ्यता के इतिहास में पंचमहल धरती का अपना एक अनूठा गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। पूर्व सताब्दियों के साथ अष्टमी सताब्दी भी नवीन अनुभूति के, कई पन्ने पलटती दिखीं है।महाकवि भवभूति जैसे महान संत-कवि की धरोहर में सिन्धु, पारा, महावर और लवणा (नौंन) सरिताएं अपने कई नवगीत गातीं दिखीं हैं। महाकवि कालीदास का मेघदूत भी, इन सरिताओं का साक्षी रहा है। पद्मावती (पवाया) की पावन स्थली, इस त्रिवेणी संगम (सिंध-पारा-नौंन) की कड़ी के रूप में, कवि की जन्म – क्रीणा स्थली, नौंन नदी का अपना एक सह्रदय अनूठा चिन्तन स्थान रहा है। इस सरिता ने कई क्षेत्रों के साथ, इस पंचमहली क्षेत्र को भी अनूठा वरदान दिया है। धन, धान्य और वैभव से भरपूर सम्पन्न बनाया है। इस अद्भुत अनूठी अनुकम्पा के लिए मेरा अपना आभार प्रदान करना परम कर्तव्य बनता है। इसी क्रम में, खण्ड काव्य- जीवन सरिता नौंन- आप सभी सुधीर चिंतकों, साधनारतसाधियों को समर्पित है। इसकी सफलता के लिए आपका चिंतन स्वरूप ही, साक्षी होगा। धन्यवाद।
Full Novel
जीवन सरिता नोंन - १
खण्ड काब्य-जीवन सरिता नौंन (लवणा सरिता) ‘परोपकाराय बहन्ति नद्याः’ अर्पण – परम पूज्या – लवणसरिता – (नौंन नदी) कल्लोलित मन-ज्यों द्रुमोंमृदुपात, झूमते झुक झूलते, जल, वात से बतियात। जल पिऐं पशु, विहग, मानव- शान्त,पाते शान्ति, बुद्धि बल मनमस्त पाते, मिटे मन की भ्रान्ति।।1।। परम पावन, पतित पावन, ब्रम्ह का अवतंश, जान्हवी- सी जानकर, पूजन करूं तेरा। जीव का जीवन, स्वजन उद्धार कारक, लवणा सरिता को, सतत वंदन है मेरा।।2।। समर्पण – परम पूज्यनीय मातु, जन्म तब गोदी पाया। जीवन दायकु द्रव्य, प्रेम-पय सुखद पिलाया। स्वच्छ बसन पहिनाय, शीत खुद ने अपनाया। मेरे सुख-दुख बीच आपका रूप समाया। ...Read More
जीवन सरिता नौंन - २
पूर्व से गभुआरे घन ने, करी गर्जना घोर। दिशा रौंदता ही आता था, तम का पकड़े छोर।। ग्राम मृतिका प्यार से करतीं थीं, जो प्यार। जिसे सहारा, महानीम का, मिलता था हर बार।। 5।। खड़ा उटज के मध्य, कि जैसे- गिरवर नीचे श्याम। अपने आश्रय से कुटिया को, देता सदां विराम।। यहां बैठकर, जन-मानव को, मिलती न्यारी शांति। जैसे कल्पवृक्ष के नीचे, मिट जातीं, सब भ्रान्ति।।6।। मंद-मंद बह रहा पवन तहां, कुटिया के हर द्वार। मनहु सरस्वती की वीणा के, बजते हों सब तार।। सूरज घन पट से झांखा, ज्यौं मांद मध्य से शेर। चांदी की वर्षा-सी हो रही, ...Read More
जीवन सरिता नौन - ३
प्रथम अध्याय पंचमहल और गिर्द स्थली, अब कब होगी गुल्जार। कई दिनौं से प्रकृति यहां की,करती रही विचवार।। विनपानी पशु-जन,खग कुल आकुल होते। डीम-डिमारे खेत यहां के,विन पानी के रोते।।1।। बहैं अनूठी वयार यहां,पतझड़ का गहरा साया। पर्वत के प्रस्तर खण्डों से,गहन ताप ही पाया।। कोयल, कीर, पपीहा यहां पर,मन से कभी न गाते। लगता, इनके जन्म भूमि से,रहे न कोई नाते।।2।। राजा-कृषक, श्रमिक सब ही का,एक पाबस आधार। पावस, मावस-सी अंधियारी,कैसे – कब ? उद्धार।। जीव जन्तु, तृण , द्रुमादिक,सबका जीवन पानी। बिन पानी, हरियाली गायब,सब धरती अकुलानी।।3।। प्रकृति जानती है, जीवों के,सब जीवन का राज। कहो कबै ...Read More
जीवन सरिता नौन - ४
जड़ – जंगम, घबड़ाये भारी, हिल गए पर्वत सारे। त्राहि। त्राहि मच गई धरा पर, जन जीवन हिय हारे।। तपन पर्वतहिले, चटके, स्रोत निकल तहांआए। निकले उसी बाव़डी होकर मीठा जल बावडी का पाए।।18।। जड़ जंगम, स्याबर सबका, रक्षण प्रभु ने कीना। यौं ही लगा,इसी बावडी ने, अमृतजल दे दीना।। इक झांयीं सिया सी मृगाजल में, लोग जान न पाए। लुप्त हो गई इसी बाव़डी, यह संत जन रहे बताए।। 19।। जंगल,जन- जीवौं हितार्थ, प्रकटी तहां, गंगा आई। सब जन जीवी मिलकर, करतेस्तुति मन भाई।। सिया बाबड़ी गंग, नाम धरा,सब संतन ने उसका। प्रकटी- गंगा भू-लोक, सुयश छाया जग ...Read More
जीवन सरिता नौन - ५
दूसरा अध्याय बांटत द्रव्य अपार, चल दई आगे गंगा माई। पर्वत काटत चली, गुप्त कहीं प्रकट दिखाई।। पर्वत अन्दर भण्डारन, विन्ध्याटवी हर्षायी। खुशियां लिए अंक में अपने, नौनन्दा पर आई।।35।। नौंनन्दा, गो नन्दा हो गया, अति मन में हर्षाया। नौन नदीयहां लवण हो गई, लवणा नाम सुहाया।। सिया राम कह, सियाबाई से, चलती यहां तक आई। कई नाम, धायी बन बहती, भरती गहबर खाई।।36।। गिर्द क्षेत्र को धन्य कर दिया, गिरदावरी की न्यारी। विन्ध्याचल को काटत, पाटत, कहीं न हिम्मत हारी।। बड़भागी नौंनन्दा हो गया, बड़भागी जन जीवन। सबने समृद्धि पायीं सारी, कहीं न कोई टीमन।।37।। हिमगिरि से ज्यौं ...Read More
जीवन सरिता नौन - ६
नौं सौ रसियों की रसभीनी, मन अबनी सरसाई। गौरव बांटत दोनों कर, बनवार शहर पर आई।। अवध धाम बनवार गया, सरयू नदि सी पाकर। तन मन के मल दूर हो गए, पाबन जल में नहांकर।।51।। अगम पंथ में,पंथ बनाती, ग्राम ककरधा आई। छिद्र –छिदा के सभी मैंटकर हृद पर नहर विठाई।। शूल मिटाती द्विकूलों के किशोरगढ़ को पाया। रूप किशोर बनाया उसका,भदेश्वर को सरसाया।।52।। कहां भदेश असुर का स्थल, शाप मुक्त सा कीना। पंच महल की भूमि बना जो, सबका स्वर्ण नगीना।। दौलत बांटत दौलत पुर को, रिझा-रिझौरा काया। दौनी को गौनी सी करके, मैंना चमन बनाया।।53।। बेरों के ...Read More
जीवन सरिता नौन - ७
स्वीकारो इस पाबन जल को, मुझको यहां मिलाओ। खुशी हुआ तब सुनत मैंगरा, आओ भाई आओ।। चीनौरिया मिल, चला ग्राम गोबरा आया। कोशा को अपना कर चलता, मिलघन को सरसाया।।69।। धीरज धार धिरौरा चल दी, मिलघन से बतियायी। जाबल और कटीला से मिल, ग्राम लिधोरा आई।। लयी बिठाय किशोली ओली, झोली भर दी सारी। चली अगारी सभी बांटती, श्री नगर की तैयारी।। 70।। -------------- तृतीय अध्याय यहां बनाया विश्राम स्थली, फ्लाई बांध अनूपम। प्राकृतिक सौन्दर्य धरा का, अद्भुत अगम सरूपम।। गिरती जल धारा ऊपर से, लगत नर्मदा माई। सुहानी फुहारैं बन जल गिरता, सहात्राधार कहाई।। 71।। जलधारा का वेग ...Read More
जीवन सरिता नौन - ८
चतुर्थ अध्याय सरित तीर पर, बुर्ज बैठकर, जल प्रवाह की क्रीड़ा देखी। उठते थे बुलबुले, घुमड़ती , अन्तर मन पीड़ा देखी।। तीव्र दाहतम अन्तर ज्वाला, खौल रहा हो जैसे पानी। छर्राटे-सा ध्वनित हो रहा, पेर रहा ज्यौं कोई घानी।।86।। बायु वेग से, नभ मण्डल में, घुमड़ाते घन, घोरै करते। जलधारा में उठत बुलबुले, किसका वेग, वेग को भरते।। लगता विधि ने, निज रचना में, कितने ही ब्राह्माण्ड बनाए। अगम निराली ही माया थी, क्षण निर्मित, क्षण ही मिट जाए।।87।। हो मदमत लहर जब उठती, तट को उद्बोधन सा देती। अथवा प्रिय की गोद, भुजाओं में लिपटी अंगड़ाई लेती।। धारा ...Read More
जीवन सरिता नोन - ९ (अंतिम भाग)
सप्तम अध्याय दूर हुआ भ्रम, जाग गई ज्यौं, अपने अस्त्र संभाले। तोड़ा कुड़ी का दर्रा- पाठा,तब आगे के पथ सोचो क्या मनमस्त यहां, हर लीला है न्यारी। चलते रहना ही जीवन है,कुछ करो नई तैयारी।।137।। बन विकराल नौंन तब चल दी, दई पाषाणें तोड़। खड़ा बेरखेरा कर जोड़त, करो कृपा, सब छोड़।। आर्त अर्चना सुनी नौंन ने, सौम्य रूप अपनाया। दोनों तरफ भरी हरियाली, प्रेम- प्यार बर्षाया।।138।। आगे चली निहारत चहुदिस, बेरखेड़ा को कर पार। भरका, खायीं बनाई लवणा, खोड़न के चहुं द्वार।। आगे बढकर, लोहागढ़ की, बुर्जों से जा टकरानी। लोहागढ़ का किला अजब, जो जाटों की छावनी।।139।। ...Read More