‘जीवन संघर्ष और उत्कट जिजीविषा से जुडी हैं संग्रह की कहानियां’ मानव जीवन और उसके कार्य व्यवहार सदा ही अनंत कौतुक - कौतूहलों व जिज्ञासाओं का केंद्र रहे हैं । साहित्य किसी भी कालखंड के क्रिया कलापों व गतिविधियों को जानने समझने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है । साहित्य के द्वारा हम अपने पास-पड़ौस, परिवेशीय जीव जगत के अलावा दुनिया के कोने कोने में फैले जीव जगत व उसके कार्य व्यवहार के बारे में जानते और अनुभव करते हैं। यह अनुभव पाठक के तौर पर न केवल हमें समृद्ध करते हैं बल्कि हमारा दृष्टिकोण या नजरिया भी बनाते हैं। अपने उद्भव काल से ही 'कहानी' साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा रही है। साहित्य की अन्य विधाओं के इतर कहानी का यह सर्वाधिक स्वाभाविक गुण है कि वह हर आयु वर्ग के व्यक्ति को रुचती और आकर्षित करती है। बाल मन कहानियाँ सुनते-सुनाते ही किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में कदम रखता है। उम्र के इस हर पड़ाव पर कहानी हमकदम की तरह मजबूती से साथ निभाती है । इसलिए यहाँ तक कहा जाता है कि 'कहानियाँ हमारी जीवन यात्रा में सर्वाधिक कुशल मार्गदर्शक होती हैं।'
Full Novel
रावी की लहरें - भाग 1
सुरेश बाबू मिश्रा (कहानी संग्रह) ‘जीवन संघर्ष और उत्कट जिजीविषा से जुडी हैं संग्रह की कहानियां’ मानव जीवन उसके कार्य व्यवहार सदा ही अनंत कौतुक - कौतूहलों व जिज्ञासाओं का केंद्र रहे हैं । साहित्य किसी भी कालखंड के क्रिया कलापों व गतिविधियों को जानने समझने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है । साहित्य के द्वारा हम अपने पास-पड़ौस, परिवेशीय जीव जगत के अलावा दुनिया के कोने कोने में फैले जीव जगत व उसके कार्य व्यवहार के बारे में जानते और अनुभव करते हैं। यह अनुभव पाठक के तौर पर न केवल हमें समृद्ध करते हैं बल्कि ...Read More
रावी की लहरें - भाग 2
अनोखी आभा नवम्बर का महीना था। रात के दस बजे थे। मैदानी इलाकों में नवम्बर में हल्की सर्दी महीना माना जाता है। दिन में गुनगुनी धूप निकलती है और शाम होते-होते मौसम हल्का ठंड हो जाता है। मगर कश्मीर में नवम्बर में भी अच्छी खासी सर्दी पड़ती है। कभी-कभी तो बर्फबारी भी शुरू हो जाती है । परवेज रसूल गुलमर्ग में अपने घर में बैड पर रजाई में लेटा हुआ था। वह सोने की कोशिश कर रहा था। तभी उसके दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई। वह आश्चर्य में पड़ गया । इतनी रात में इस सर्दी की ...Read More
रावी की लहरें - भाग 3
घायल सैनिक पूरे गाँव में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि गाँव की के पास किसी की लाश पड़ी हुई है। कश्मीर के बारामूला सैक्टर में ऊँची पहाड़ी के पास बसा हुआ यह एक छोटा सा गाँव था । जहाँ पचास-साठ परिवार रहते थे। आनन-फानन में गाँव के सारे लोग पहाड़ी के पास जमा हो गए। लाश पहाड़ी के नीचे एक झाड़ी में पड़ी हुई थी। दो नवयुवकों ने लाश को झाड़ी से बाहर निकाला। सब लोग यह देखकर हैरान रह गये कि वह एक सैनिक की लाश थी। उसके सीने में गोली ...Read More
रावी की लहरें - भाग 4
बिखरा हुआ लहू शाम का धुंधलका धीरे-धीरे चारों ओर छाने लगा था । बार्डर पर तैनात बी.एस.एफ. के रघुराज सिंह ने सरहद की ओर देखा था । दूर-दूर तक फैले कटीले तार भारत - पाक सरहद के गवाह थे। रघुराज सिंह पिछले दस सालों से सरहद पर तैनात है। इन दस सालों में सरहद पर कुछ नहीं बदला है। दूर-दूर तक फैली रेत, गर्मियों में लू के थपेड़े, रेत के अंधड़ और दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही सब कुछ वैसा ही है, जैसा दस साल पहले था । दुनियां जाने कहां से कहां तक पहुंच गई ...Read More
रावी की लहरें - भाग 5
रावी की लहरें रेशमा रावी नदी के किनारे बैठी हुई थी। वह एकटक नदी की शांत लहरों को रही थी । लहरें शांत गति से बह रही थी। चारों तरफ गहरी निस्तब्धता थी । यहां से बहती हुई रावी नदी पाकिस्तानी की सीमा में प्रवेश कर जाती है । यहीं पर भारत और पाकिस्तानी की सरहद मिलती है। रेशमा कश्मीर में रहती थी। वह सोपिया रेंज के एस.पी. के. आर. खान की इकलौती सन्तान थीं। काफी देर तक रेशमा नदी की फेनिल लहरों को निहारती रही। फिर उसकी नजरें पश्चिम की तरफ उठ गई । उसे सरफराज के ...Read More
रावी की लहरें - भाग 6
रतनारे नयन शंकर और तराना नकटिया नदी के किनारे एक टीले पर बैठे हुए थे। दुनिया की चिन्ता से दूर दोनों यहां, इस एकान्त में अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे। शंकर गिटार बजा रहा था और तराना गाना गा रही थी । गिटार की आवाज और गाने की ध्वनि इस शान्त जगह पर दूर-दूर तक गूंज रही थी । शंकर की उम्र यही ग्यारह - बारह साल रही होगी। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार का किशोर था । उसके पिता की शहर में किराना की दुकान थी। शंकर देखने भालने में बेहद सुन्दर और पढ़ने में ...Read More
रावी की लहरें - भाग 7
कार्यशैली क्या? उन्होंने दस लाख रुपए लेने से मना कर दिया", मंत्री जी को अपने कानों पर विश्वास हो रहा था । "हाँ मैं सच कह रहा हूँ मंत्री जी । मैं कल खुद ब्रीफकेस में दस लाख रुपए लेकर डी. एम. साहब के पास गया था। मगर डी.एम. साहब ने ब्रीफकेस को हाथ तक नहीं लगाया।” ठेकेदार आर. पी. चड्ढा बोले । मंत्री जी खामोशी से सारी बातें सुन रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि कोई अफसर इतनी बड़ी रकम लेने से कैसे इनकार कर सकता है।" “मंत्री जी कुछ करिए, अगर यह ...Read More
रावी की लहरें - भाग 9
चौधरी काका का सपना चौधरी काका की पूरे गाँव में तूती बोलती थी । जो बात उन्होंने कह वह पत्थर की लकीर हो गई। किसी में हिम्मत नहीं थी उनकी बात काटने की । वह खानदानी रईस थे। कई सौ बीघे खेती थी उनके पास । गाँव में ही उन्होंने सड़क किनारे चीनी मिल लगा रखी थी। गाँव के ज्यादातर पुरुष उनके खेतों या मिल में काम करते थे। कई एकड़ में बनी उनकी हवेली आस - पास के गाँव में बड़ी हवेली के नाम से जानी जाती थी । चौधरी काका का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावी था। लम्बी ...Read More
रावी की लहरें - भाग 8
जमीन का पट्टा रविवार का दिन था। मैं अपने एक वकील मित्र के घर बैठा हुआ शाम की पी रहा था। वकील साहब के कुछ और मित्र भी आए हुए थे। विभिन्न विषयों पर बातें हो रही थी । मैं चुपचाप बैठा हुआ सबकी बातें सुन रहा था। उसी समय एक बूढ़ा आदमी वहाँ आ गया। वह ठेठ देहाती लग रहा था। बूढे ने वकील साहब को नमस्ते की और पूछा - 'हमें मुकदमा जीते हुए तीन महीने हो गए, पर आपने जमीन पर कब्जा अभी तक नहीं दिलवाया। उसमें कितना और समय लगेगा, साहब?' वकील साहब ने ...Read More
रावी की लहरें - भाग 10
रमिया इस बार हम लोगों ने राष्ट्रीय सेवा योजना का शिविर रतनपुरा गाँव में लगाने का फैसला किया रतनपुरा शहर से दस किलोमीटर दूर एक पिछड़ा हुआ गाँव है । गाँव में अनपढ़ लोगों की तादाद ज्यादा है। बस सुबह ही लड़कों को यहां छोड़ गई थी। मैं और शर्मा जी बाद में आये थे। हम लोगों को दस दिन तक लड़कों के साथ ही रहना था। आज शिविर का पहला दिन था। दिन भर लड़के काम में लगे रहे थे, इसलिए खाना खाने के बाद सब जल्दी ही सो गए थे। रात के ग्यारह बज रहे थे। ...Read More
रावी की लहरें - भाग 11
हाशिए पर के लोग ठाकुर रिपुदमन सिंह बेचैनी से अपनी चौपाल पर टहल रहे थे। उनके चेहरे पर और झुंझलाहट के भाव थे । पुश्तों से रमनगला के लोग उनके खेतों पर मजदूरी करते चले आ रहे थे। जो ठाकुर साहब ने दे दिया वह रख लिया, कभी उफ्फ तक नहीं की। मगर पिछले चुनावों से हवा का रुख बदल गया था। आज तक जितने भी चुनाव हुए थे रमनगला के लोगों ने आँख मूँद कर उसी कन्डीडेट का समर्थन किया जिसके लिए रिपुदमन सिंह ने हुक्म कर दिया। मगर इस चुनाव में रिपुदमन के लाख डराने-धमकाने के ...Read More
रावी की लहरें - भाग 12
बचपन की होली उस समय मैं बदायूँ नगर के एस. के. इण्टर कालेज में फस्ट ईयर में पढ़ था। कालेज में होली की छुट्टियाँ हो गई थी, और मैं होली मनाने गाँव आ गया था। उन दिनों होली का त्योहार कम से कम एक सप्ताह तक चलता था। मेरा गाँव चंदोखा दातागंज तहसील में रामगंगा नदी के किनारे बसा हुआ था। शिक्षा और विकास की दृष्टि से उन दिनों हमारा गाँव बहुत पिछड़ा हुआ था । दातागंज से गाँव तक आने-जाने का कोई साधन नहीं था। आठ किलोमीटर की दूरी पैदल, साइकिल या बैलगाड़ी से तय करनी पड़ती ...Read More
रावी की लहरें - भाग 13
बड़े ठाकुर दरबान बुद्धा सिंह ने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर डाली। रात के ग्यारह बज चुके इतनी रात बीत गई, मगर एम. एल. ए. साहब अभी क्षेत्र के दौरे से नहीं लौटे थे। बुद्धा सिंह उन्हीं के आने की प्रतीक्षा में जाग रहा था। सुस्ती दूर करने के लिए उसने बीड़ी सुलगाई। जब इससे भी सुस्ती दूर न हुई तो वह उठकर लॉन का चक्कर लगाने लगा। तभे गेट पर किसी गाड़ी की हैड लाइट्स पड़ी। दरबान बुद्धा सिंह ने लपक कर गेट खोला। एम.एल. ए. साहब लौट आए थे। गाड़ी लॉन में आकर चरमरा कर ...Read More
रावी की लहरें - भाग 14
अंतिम परिणति भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के इमरजेंसी वार्ड के सामने युवा उद्योगपति मधुरेश अपनी पत्नी रेखा के साथ से टहल रहे हैं। उनके चार वर्षीय पुत्र राहुल का ऑपरेशन होना है। राहुल उनकी एक मात्र सन्तान है । इसलिए दोनों के हृदय धड़क रहे हैं। पैसे के मद में हर समय ऐठे रहने वाले मधुरेश आज अस्पताल के वार्ड ब्याय से भी 'भाई साहब' कहकर बात कर रहे हैं। ऑपरेशन की तैयारी हो चुकी है। मधुरेश डॉक्टर साहब से गिडगिड़ा कर बोले, "डाक्टर साब, मेरे बच्चे को बचा लो, चाहे जितना रुपया खर्च हो जाए ।' "हर परेशानी ...Read More
रावी की लहरें - भाग 15
ऐश्वर्य की लालसा पहाड़ों की सुरमई वादियों की गोद में दूर-दूर तक फैले हरे-हरे चाय के बागानों को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने जमीन पर दूर-दूर तक हरी चादर बिछा दी हो। बागानों के बीचो-बीच बना था मेजर रमनदीप का खूबसूरत और भव्य मकान। मेजर रमनदीप अब अपने पैरों पर नहीं चल पाए थे। एक एक्सीडेंट में उनका पैर खराब हो चुका था इसलिए वह व्हील चेयर का सहारा लेते थे और घर की बालकोनी से ही अपने चाय के बागानों को देखा करते थे। उनके बागानों में दर्जनों स्त्री-पुरुष काम किया करते थे। उस ...Read More
रावी की लहरें - भाग 16
स्मृतियाँ देहरादून की सुरमई बादियों में कदम रखते ही मेरी वे सारी यादें ताजा हो गई, जिनकी वजह मैंने देहरादून छोड़ा था। हालांकि तब के देहरादून और अब के देहरादून में जमीन आसमान का फर्क आ चुका था। पहले यहाँ इतनी चकाचौंध नहीं थी, जितनी आज है, न ही इतनी चैड़ी सड़कें थीं, न ही इतना बड़ा बाजार था और न ही बाजार में इतनी भीड़ होती थी, जब से इसे उत्तराखण्ड की राजधानी बनाया गया, तब से इसकी काया पलट हो गई। कई शहरों के लोग यहाँ आकर रहने लगे। सिर्फ यह सोचकर कि पहाड़ों में रहने ...Read More
रावी की लहरें - भाग 17
बाबा सन्ता सिंह सतलज नदी धीमी चाल से बह रही थी । उसके दोनों किनारों पर दूर-दूर तक फैली हुई थी। वैसाख की तेज दोपहरी में रेत के कण चांदी के समान चमक रहे थे। चारों ओर तेज धूप फैली हुई थी, इसलिए दूर-दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। झुलसा देने वाली गर्म लू चल रही थी । तभी दूर कहीं से किसी गाने की आवाज सुनाई पड़ी | आवाज़ धीरे - धीरे पास आती गई। यह आवाज़ सन्तासिंह की थी । सन्तासिंह तन्मय होकर भजन गा रहे थे। सन्तासिंह को आस-पास के गाँवों का ...Read More
रावी की लहरें - भाग 18
आखिरी सफर नगरपालिका की घड़ी ने टन - टन कर चार घंटे बजाए थे । चार बज गए, हड़बड़ा कर उठकर बैठ गया । वह शौच आदि से निपटने चला गया। रमेश लौट कर आया तो उसने देखा कि अनवर अभी तक सोया पड़ा है। रमेश अनवर को झिंझोड़ते हुए बोला - 'जल्दी उठो अनवर, चार बज गये हैं। अगर बारामूला जाने वाली पाँच बजे की बस निकल गई तो दिन छिपने से पहले गाँव पहुँचना मुश्किल हो जायेगा । अनवर कुछ देर तक अलसाया सा पड़ा रहा, फिर जमुहाई लेते हुए उठ खड़ा हुआ। अभी तक उस ...Read More
रावी की लहरें - भाग 19
इज़्ज़त के रखवाले शाम का समय था । सूर्य देवता अस्ताचल गमन की तैयारी में थे । दरख्तों परछाइयाँ लम्बी होने लगी थीं। ऐसे में एक साइकिल सवार चन्दनपुर जाने वाली पगडंडी पर साइकिल दौड़ाए चला जा रहा था। शायद वह अंधेरा होने से पहले ही चन्दनपुर पहुँच जाना चाहता था। वह साइकिल सवार कोई और नहीं चन्दनपुर गाँव का ग्राम पंचायत सैक्रेटरी राजाराम था। राजाराम ब्लाक से लौट रहा था। उसके हल्के में चन्दनपुर के अलावा पाँच-छः गाँव और आते थे। राजाराम बड़ा चलू पुर्जा था। अपनी छः-सात साल की नौकरी में ही उसने लाखों रुपया पैदा ...Read More
रावी की लहरें - भाग 20
भाग्य परिवर्तन मैं एक बैठक में भाग लेने महानगर आया हूँ। रेल से उतर कर मैं प्लेटफार्म पर आ । चाय पीने की तलब लग रही है, इसलिए मैं होटल की ओर चल देता हूँ। मैं होटल में जाकर बैठ गया। नौकर ने चाय का कप लाकर मेरी मेज पर रख दिया। अभी मैंने चाय का पहला ही घूंट भरा था कि होटल का मालिक मेरे पास आकर खड़ा हो गया। उसने हाथ जोड़कर मुझसे नमस्ते की । मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा । उसने पूछा, “आपने पहचाना नहीं साहब?" अब मैंने ध्यान से उसकी ओर देखा । ...Read More
रावी की लहरें - भाग 21
अनोखी चमक डाक्टर प्रवीण को धर्मपुरा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात हुए लगभग छ: महीने बीत चुके थे। सेवा भावना और मरीजों के साथ मधुर व्यवहार से उन्होंने गांव के सभी लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली थी। मास्टर रेवती रमण के परिवार के डाक्टर प्रवीण की बड़ी घनिष्ठता हो गई थी। उनके बच्चों को वे अंग्रेजी तथा विज्ञान पढ़ा देते थे। अक्सर प्रवीण को रात का खाना वहीं खाना पड़ता था । आज भी वे वहीं खाना खाने के बाद परिवार के लोगों के साथ गपशप कर रहे थे। बातचीत के बीच मास्टर रेवती रमण ...Read More
रावी की लहरें - भाग 22
सुख का महल एस.पी. दिनेश वर्मा अपने ड्राइंग रूम में चहलकदमी कर रहे हैं। उनके बाल बिखरे हुए कपड़े अव्यवस्थित हैं। उनके चेहरे से गहन चिन्ता झलक रही है। आज चार दिन हो गए हैं उनकी बेटी रागिनी के अपहरण को । अथक प्रयासों एवं भागदौड़ के बावजूद भी वह उसका कोई सुराग नहीं पा सके हैं। सुरक्षा की दृष्टि से जिले के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बावजूद इस समय वह अपने को अत्यन्त असहाय महसूस कर रहे हैं। वह टहलते - टहलते रुक जाते हैं, कुछ सोचते हैं, और फिर टहलने लगते हैं। चौदह वर्षीय ...Read More
रावी की लहरें - भाग 23
गुबार “पापा आ गए, पापा आ गए।" कहते हुए दिवाकर के दोनों बच्चे दिवाकर से लिपट गए। " बड़ी देर कर दी आने में।" दिवाकर की पत्नी बोली । दिवाकर ने कुछ जवाब नहीं दिया और गुमसुम सा बैड पर बैठ गया ।" मेरी किताब लाए पापा ?" “आज ध्यान नहीं रहा, कल ले आऊंगा।" दिवाकर ने अनमने भाव से उतर दिया ।" परसों मेरा टैस्ट है। आपसे कितने दिन से कह रहे हैं। आप रोज़ यही कह देते हैं पर लाते कभी नहीं हैं। अब मैं टैस्ट कैसे दूंगा?" “कल ज़रूर ले आऊँगा ।" "आप रोज़ ऐसे ...Read More
रावी की लहरें - भाग 24
अमर शहादत शाम का समय था। पार्क में चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था। यह पार्क शहर के एक सुनसान जगह पर था, इसलिए यहाँ इक्का-दुक्का लोग ही घूमने आते थे। बाबा सुखदेव सिंह पार्क में बनी एक बेंच पर बैठे विचारों में खोए हुए थे। बाबाजी को काबुल में रहते हुए लगभग एक महीना बीत चुका था । श्रद्धालुओं की सेवा भक्ति में कोई कमी नहीं आयी थी। रोज़ बाबाजी को नये-नये उपहार मिलते, चढ़ावा चढ़ता, परन्तु बाबाजी जिस काम के लिए आए थे, उसके पूरे होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। इसलिए उनका ...Read More
रावी की लहरें - भाग 25 (अंतिम भाग)
सम्बन्ध आरती अपने पति की फैक्ट्री के निकट बने एक कैफे में बैठी हुई थी । उनकी निगाहें फैक्ट्री के मेन गेट की ओर उठ जाती थीं। उसे अपने पति के फैक्ट्री से बाहर निकलने का इन्तजार था । कल उसे उसकी घनिष्ठ सहेली रेनू ने बताया था कि तुम्हारे पति हर महीने की पहली तारीख को किसी के घर रुपये देने जाते हैं। रेनू ने पहले भी कई बार इस बारे में आरती से बात करनी चाही थी मगर आरती को अपने पति देवेश पर इतना अधिक विश्वास था कि उसने रेनू की बातों पर कोई ध्यान ...Read More