आषाढ़ का महिना था, हल्की ठंडी हवा गुनगुना रही थी और धीमे धीमे भोर की खुशबू फैल रही थी और प्रकृति ये संदेश दे रही थी की कुछ ही क्षणों में सूर्योदय होने को है ... राकेश वही रोज की तरह मंदिर के पीछे वाले मैदान में लेटा हुआ था..मच्छरदानी के अभाव में अपने घुटने और हाथो को कस के बांधे हुए छोटे बच्चे की भांति सो रहा था ,,मच्छर बार बार कानो में आरती कर रहे थे, वह हर बार जोर से सिर को भनभनाता,लेकिन इस बार मानो मच्छरों ने संगीत कार्यक्रम आयोजन कर लिया हो इस तीव्रता से एक दर्जन भर लगभग उसके कानो में झूँ..झूँ..कर रहे थे,अब उसे उठना ही पड़ा और उठते ही राकेश ने सीधे बॉटल उठाई मंदिर की टंकी से भरी और स्टेशन की और चला गया ... नित्य क्रिया से निवृत्त हो, रैन बसेरे को चला गया
Full Novel
युवा किंतु मजबूर - पार्ट 1
{ पार्ट -1} आषाढ़ का महिना था, हल्की ठंडी हवा गुनगुना रही थी और धीमे धीमे भोर की खुशबू रही थी और प्रकृति ये संदेश दे रही थी की कुछ ही क्षणों में सूर्योदय होने को है ... राकेश वही रोज की तरह मंदिर के पीछे वाले मैदान में लेटा हुआ था..मच्छरदानी के अभाव में अपने घुटने और हाथो को कस के बांधे हुए छोटे बच्चे की भांति सो रहा था ,,मच्छर बार बार कानो में आरती कर रहे थे, वह हर बार जोर से सिर को भनभनाता,लेकिन इस बार मानो मच्छरों ने संगीत कार्यक्रम आयोजन कर लिया हो ...Read More
युवा किंतु मजबूर - पार्ट 2
चुनाव का नतीजा आ चुका था, खाने के पैकेट और मोबाइल बांटने वाली पार्टी जो सत्ता में थी, उसे का सामना करना पड़ा। विपक्षी दल ने मंदिर और धर्मस्थलों के नाम पर वोट बटोर कर अपनी सरकार बना ली। वास्तविकता में केवल मुखौटे बदले है जबकि नीयत वही है... जो गरीब कल किसी और के सामने आंसु बहा रहा था वो अब किसी और के सामने रोएगा। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में अस्सी से नब्बे फीसद लोग यदि सरकार के दिए हुए अनाज पर गुजारा कर रहे है , जनसंख्या का अगर ये हाल है तो यह स्वयं स्वतंत्रता पर ...Read More
युवा किंतु मजबूर - पार्ट 3
राकेश ठेला सरकाते सरकाते मंदिर के पीछे वाले मैदान में आ गया। अभी सवेरे के साढ़े आठ ही बजे हल्की हल्की धूप आने लगी थीं।राकेश ठेले के पास ही नीचे बैठ गया। जुराबे खोल दी और कंबल को भी उतार कर ठेले के ऊपर टांग दिया।वह केवल लंबी बाजु के शर्ट और पेंट पहने था।अब उसे यह तो एहसास हो गया कि आज बाज़ार नहीं खुलेगा। तो वह शांति से बैठ गया।सब्जियों पर पानी का छींटा मार उन्हें कपड़े से ढक कर छोड़ दिया। बचे हुए पैसे निकाल कर गिने तो केवल बाईस सो रुपए निकले। बाकी तो सब्जियों ...Read More
युवा किंतु मजबूर - पार्ट 4
दो महीने बीत चुके थे राकेश अब फिर से बेरोजगार हो चुका था। सब्जी के व्यापार में घाटा लगने वजह से उसने दुबारा धंधे का नहीं सोचा। इधर किशोर बनारस में वहाँ के प्रसिद्ध लेखक प्रशांत आलोक जी के साथ मिल कर साहित्य क्षेत्र मे लगा हुआ है। राकेश सुबह रोज उठता और बस स्टैन्ड पर सामान ढोने का काम करता। शाम को खाना खा कर सो जाता। उसके पास एक थैला था। जिसमे दो बुशर्ट ओर एक पेंट थी और अखबार मे पलेट कर बंधी हुई किशोर की डायरी। वह दिन भर बस इधर उधर घूमता रहता। और ...Read More