सेकेण्ड वाइफ़

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नवंबर का दूसरा सप्ताह बस जाने ही वाला था। मौसम बहुत सुहावना हो रहा था। लेकिन मेरा मन बड़ा अशांत था। थका-थका सा, अपना स्ट्रॉली बैग खींचता हुआ ट्रेन की एक बोगी में चढ़ गया। कई सीटों पर इधर-उधर दृष्टि फेंकता हुआ एक सीट पर बैठ कर खिड़की खोल ली, प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत चहल-पहल थी। पिछले कुछ वर्षों में नया रंग-रूप पा जाने से स्टेशन चमक रहा था। सारी व्यवस्था बड़ी चाक-चौबंद लग रही थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यह अस्त व्यस्त, अव्यवस्था का शिकार कुछ वर्ष पहले वाला काशी स्टेशन है। ट्रेन के लखनऊ प्रस्थान में दस मिनट बाक़ी था। बोगी में इक्का-दुक्का लोग सवार हो रहे थे। मैं बड़े व्यथित भाव से इंजन की ओर मुँह किए प्लेटफ़ॉर्म पर इधर-उधर, जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी, वहाँ तक देख रहा था। मन में एक ही बात घूम रही थी कि पत्नी की मूर्खता के कारण यहाँ आना निरर्थक हुआ। सारे प्रयास करने के बावजूद काम नहीं हो पाया। बार-बार कहा था कि मुझे समय नहीं मिल पा रहा है, तुम पेपर्स बहुत ध्यान से चेक करके रखना। कोई कमी न रहे।

Full Novel

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सेकेण्ड वाइफ़ - भाग 1

भाग-1 प्रदीप श्रीवास्तव नवंबर का दूसरा सप्ताह बस जाने ही वाला था। मौसम बहुत सुहावना हो रहा था। लेकिन मन बड़ा अशांत था। थका-थका सा, अपना स्ट्रॉली बैग खींचता हुआ ट्रेन की एक बोगी में चढ़ गया। कई सीटों पर इधर-उधर दृष्टि फेंकता हुआ एक सीट पर बैठ कर खिड़की खोल ली, प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत चहल-पहल थी। पिछले कुछ वर्षों में नया रंग-रूप पा जाने से स्टेशन चमक रहा था। सारी व्यवस्था बड़ी चाक-चौबंद लग रही थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यह अस्त व्यस्त, अव्यवस्था का शिकार कुछ वर्ष पहले वाला काशी स्टेशन है। ट्रेन के ...Read More

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सेकेण्ड वाइफ़ - भाग 2

भाग-2 प्रदीप श्रीवास्तव वह मोबाइल पर फिर कुछ टाइप करने लगीं। दोनों हाथों से मोबाइल पकड़े अँगूठे से बड़ी से टाइप कर रही थीं। अगला स्टेशन आने तक उनकी टाइपिंग चलती रही। जब-तक गाड़ी प्लेटफ़ॉर्म पर रुकी तब-तक उन्होंने लंबा-चौड़ा मैटर टाइप कर व्हाट्सएप या फिर मेल पर किसी को भेज दिया। इसके बाद मोबाइल को बैग में रख दिया और बच्चों के साथ सिंक में हाथ धोकर आईं। फिर सैनिटाइज़र से सैनिटाइज़ भी किया। यह सब देख कर मुझे याद आया कि चलते समय मिसेज ने सैनिटाइज़र, दो एन-नाइंटी फ़ाइव, और दो दर्जन ट्रिपल लेयर वाले मॉस्क दिए ...Read More

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सेकेण्ड वाइफ़ - भाग 3

भाग-3 प्रदीप श्रीवास्तव मैं बोलने ही जा रहा था कि अचानक ही उसने अपनी मध्यम हील की गुलाबी सी पहनी और बाएँ मुड़ कर गैलरी में आगे बढ़ गई। मैं ग़ौर से उन्हें जाते हुए देखता रह गया। मुझे याद आया कि सहपाठिनी को भी ऐसे ही देखता रह जाता था। मैं एक बार पुनः प्रयास करने के लिए फिर प्रस्थान बिंदु पर खड़ा था। उनके जाते ही मेरे मन में आया कि मैं भी उसी ओर जाऊँ जिधर वह गई हैं। फिर सोचा उससे पहले मैं लड़के से बात करना शुरू करूँ। लेकिन उसने माँ के जाते ही ...Read More

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सेकेण्ड वाइफ़ - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग-4 प्रदीप श्रीवास्तव इस संशय के बीच एक बजते ही मैं बात करने के लिए मोबाइल उठाता और फिर देता। डर यह भी था कि कहीं धनश्री जाग गई तो? बड़ी देर तक तरह-तरह की उलझनों से लड़ने के बाद आख़िर दो बजे छत पर जाकर उन्हें कॉल की। दो रिंग होने के बाद ही उन्होंने कॉल रिसीव कर ली। उन्होंने हेलो कहा। आवाज़ पहचान कर मैंने जैसे ही उनका नाम लिया, तो वह हँसती हुई बोलीं, 'कॉल करने की हिम्मत जुटाने में एक घंटा लग गया।' मैंने कहा कि, 'मैं संकोच कर रहा था कि तुम्हारे हस्बैंड ने ...Read More