मैं, एक लेखिका, श्रुत कीर्ति अग्रवाल, आज पहली बार आपके साथ अपनी रचनाओं के माध्यम से नहीं, स्वयं अपने-आप को माध्यम बना आपके समक्ष हूँ। अभी तक मुझे लगता था कि अगर मैं अपनी सारी बातें अपने पात्रों के द्वारा आपसे कह ही सकती हूँ तो स्वयं को सामने लाने की आवश्यकता भी क्या है? पर पिछले कुछ दिनों में लेखकों के लिये आयोजित कुछ कक्षाओं ने मुझे यह सिखाया कि अगर आप अपने पाठकों से जुड़ाव चाहते हैं तो उनके साथ एक संवाद की स्थिति बना कर रखनी पड़ेगी। उनके मन के भाव समझने पड़ेंगे, प्रश्नों के जवाब देने होंगे। मैं स्वभाव से शायद अंतर्मुखी और शर्मीली हूँ और अक्सर स्वयं बारे में बातें करने में खुद को जरा असहज पाती हूँ अतः इस तरह संवाद बनाना मेरे लिये बहुत आसान नहीं था पर हाँ, अब जो ऐसा करने की कोशिश कर रही हूँ, कुछ नया करने का रोमांच जरूर महसूस हो रहा है। अगर आपने मेरे प्रयासों को पसंद किया और मैं आपके दिल तक पंहुचने में सफल हो गई तो सचमुच, आनंद आ जाएगा, उत्साह बढ़ेगा और संकोच त्याग, मैं बार-बार आपके सम्मुख आती रहूँगी।
Full Novel
गुलकंद - पार्ट 1
प्रिय पाठकों मैं, एक लेखिका, श्रुत कीर्ति अग्रवाल, आज पहली बार आपके साथ अपनी रचनाओं के माध्यम से नहीं, अपने-आप को माध्यम बना आपके समक्ष हूँ। अभी तक मुझे लगता था कि अगर मैं अपनी सारी बातें अपने पात्रों के द्वारा आपसे कह ही सकती हूँ तो स्वयं को सामने लाने की आवश्यकता भी क्या है? पर पिछले कुछ दिनों में लेखकों के लिये आयोजित कुछ कक्षाओं ने मुझे यह सिखाया कि अगर आप अपने पाठकों से जुड़ाव चाहते हैं तो उनके साथ एक संवाद की स्थिति बना कर रखनी पड़ेगी। उनके मन के भाव समझने पड़ेंगे, प्रश्नों के ...Read More
गुलकंद - पार्ट 2
गुलकंद पार्ट - 2 इस कमरे से उस कमरे भागती-दौड़ती अपनी पत्नी अन्नी को देख, वीरेश को उसपर कुछ सा आने लगा था। वह क्या जानता नहीं कि प्राइवेट स्कूल की इस नौकरी में इसके ऊपर काम का कितना बोझ रहता है! क्लासरूम में एक बार बैठने तक की इजाजत नहीं मिलती इनको.. इस वजह से टीचर्स की कुर्सियाँ तो हटा दी जाती हैं, पर क्योंकि स्कूल में आए दिन टीचर्स की किल्लत बनी ही रहती है, मैनेजमेंट इन लोगों से अपने सब्जेक्ट के अलावा भी कितनी ही क्लासेज़ लेने का प्रेशर बना कर रखता है। लगभग रोज ही ...Read More
गुलकंद - पार्ट 3
गुलकंद - 3 - काकाजी के व्यक्तित्व ने उसे सदैव प्रभावित किया था! हँसते-मुस्कुराते, मीठी बातें करते काकाजी के उसे अपने पिता का स्वभाव कभी अच्छा ही नहीं लगा। पर प्रभावित होने के बावजूद वह काकाजी को बस थोड़ा दूर-दूर से ही देखते रहने को मजबूर था कि उनके व्यवहार की पता नहीं कौन सी एक शुष्कता उसे उनके करीब जाने से, उनके सामने कुछ बोल पाने से रोक दिया करती थी। बाद में जब से नये मास्टर जी गाँव में आए, वह उनका ही मुरीद बन गया। वैसे उसके गाँव में उस समय पढ़ाई-लिखाई का कोई माहौल नहीं ...Read More
गुलकंद - पार्ट 4
गुलकंद पार्ट - 4 पद में छोटी होने के बावजूद वह काकी का प्रभाव ही था कि हर दो-चार पर बाऊजी किसी न किसी काम के लिये उनकी मदद करने को, समय मिलते ही, उनके यहाँ चले जाने फरमान अम्मा को पकड़ा दिया करते... कभी बेटी की विदाई के लिये पकवान बनाना, कभी चिऊड़ा कूटना, धान फटकना होता था... जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा-ज्यादा काम! बाऊजी के आदेश की अनदेखी अम्मा के लिये संभव नहीं थी पर यूँ नौकरों की तरह पराये घर में बार-बार काम करने जाना और इस तरह काकी की सरपरस्ती को स्वीकार कर लेना, उनके ...Read More
गुलकंद - पार्ट 5
गुलकंद पार्ट - 5 इस तरह से एक विजातीय अंजान लड़की से उसका ब्याह करना अम्मा को जरा भी नहीं आया था। इतनी सुन्दर, सुशील और घर-गृहस्थी के सारे काम कुशलता से करने वाली सत्तो भौजी की भतीजी बीना को जाने कब से पसंद करती आई थीं वह! एक तरह से जुबान भी दे चुकी थीं वह तो, पर उनके सीधे-साधे बेटे को, इतनी दूर अकेला पाकर शहर की जाने किस जादूगरनी ने उसपर जादू-टोना करके अपने वश में कर लिया.. अपना कुत्ता बना लिया। उनकी किस्मत तो हमेशा से खराब ही रही है, एक बार फिर दगा दे ...Read More
गुलकंद - पार्ट 6
गुलकंद पार्ट - 6 असली समस्या तब शुरू हुई जब बाऊजी नहीं रहे। उनकी उपस्थिति मात्र से सुचारू रूप चलने वाले कितने ही काम अकस्मात रूक गये। काकाजी के यहाँ से सब्जी-अनाज आना बंद हो गया और उसके हिस्से का खेत शून्य में विलीन हो गया। अम्मा एकाएक अकेली हो गईं और उनकी देखभाल उसके जिम्मे आ गई। अंतर्मन में आदर्शवादिता जोर मार रही थी.. अम्मा के हर सपने को पूरा करने का समय आ गया था। उनको वह सबकुछ दे देने की चाहत थी जिसके लिये कभी भी उन्होंने समझौता किया रहा हो। पर कैसे? उनके लिए ज्यादा ...Read More
गुलकंद - पार्ट 7
गुलकंद पार्ट - 7 उसके सीने से लग, अवश सी अन्नी रोए जा रही थी। उसको सांत्वना देता वीरेश भी बहुत परेशान था। उसके घर को जैसे कोई श्राप सा लग गया था। मानो हाथ में पकड़ी हुई चीजें गायब हुई जा रही थीं... अभी कहीं कुछ रखा, फिर वहाँ कुछ नहीं है। जैसे जादू का कोई शो चल रहा हो। किचन के सामान, कपड़े, पेन... मोबाईल चार्जर... और आज तो अन्नी की आलमारी से पच्चीस हजार रूपये कैश गायब हो गये हैं। चीजें यदि गलती से इधर-उधर रख दी जाएँ तो समय पर भले न मिलें, बाद में ...Read More
गुलकंद - पार्ट 8
गुलकंद पार्ट - 8 बैंकिंग आवर अपने पीक पर था और कस्टमर खचाखच भरे हुए थे। उधर अपनी कुर्सी बैठे वीरेश को लग रहा था मानों शरीर जवाब दिये जा रहा हो, हाथ-पैर ठंढे हो रहे हों। किसी भी काम के लिये मन एकाग्र हो ही नहीं पा रहा था तो 'डू नाॅट डिस्टर्ब' की तख्ती लगा खिड़की से सटे सोफे पर आ बैठा। कई-कई उनींदी रातों के बाद अब उसने यह तय किया था कि अम्मा उसकी पहली जिम्मेदारी हैं और उनको खुश रखने के लिये वह सबकुछ करेगा। सही-गलत का निर्णय समय पर छोड़ना होगा। अम्मा और ...Read More
गुलकंद - पार्ट 9
गुलकंद पार्ट - 9 इस दो बित्ते के फ्लैट में कोई भी बात किसी से छिपती नहीं है। अचानक की नजर पड़ी, बालकनी के कोने में उदास बैठी अन्नी के गले में बाँहें डाले प्रांशु उसके गले लग, गालों को चूम, उसे मनाने में लगा था। पता नहीं क्यों आज उनके मध्य होने वाली बातों को सुनने का लोभ संवरण नहीं हो सका और वह चुपचाप साथ वाले कमरे में आकर लेट गया! "इतना टेंशन बर्दाश्त नहीं होता बेटा! अब मुझे यह घर अपना जैसा लगता ही नहीं!" अनीता सिसक-सिसक कर कह रही थी। "मैं पापा से बात करूँगा ...Read More
गुलकंद - पार्ट 10 (अंतिम भाग)
गुलकंद पार्ट - 10 अंतिम भाग अनरसे वाकई बहुत अच्छे बने थे। भौंचक खड़ा वीरेश देख रहा था कि से भरी अम्मा बड़े प्यार से तीनों के टिफिन में ठूंस-ठूंस कर भर रही थीं... गुलकंद भरे पान भी रखे... "अपने दोस्तों को भी खिलाना! शाम को बताना उन्हें कैसा लगा?" वीरेश अम्मा के अंदर अचानक आए इस बदलाव को आश्चर्य से देख रहा था, पर घर के माहौल में वाकई परिवर्तन था। ऐसी क्या बात की प्रांशु ने इनसे? कौन सी शल्य क्रिया को अंजाम दे दिया चुपचाप? और आज वह यह कुछ सचमुच अन्नी से संबंध सुधारने की ...Read More