उसकी आँखों में भर आए आँसू उसके गालों पर गिरने ही वाले थे। आँसुओं से भरी उसकी आँखों में भीड़ और उनके हाथों में लहराते तिरंगे के अक्स दिखाई दे रहे थे। ज़ीरो डिग्री टेम्प्रेचर वाली कड़ाके की ठंड के कारण उसने ढेरों गर्म कपड़ों से ख़ुद को पूरी तरह से ढका हुआ था। आँखें और उसके आस-पास का कुछ ही हिस्सा खुला हुआ था। वह भीड़ से थोड़ा अलग हटकर खड़ी थी। भीड़ भारत-माता की जय के साथ-साथ उस नेता का भी ज़िंदाबाद कर रही थी, जिसको, जिसके पूर्वजों, पार्टी को वह अपने सुखी-समृद्ध परिवार, पूरे जम्मू-कश्मीर की तबाही का ज़िम्मेदार मानती है। वह उसे, उसके परिवार को अपने हाथों से उसी क्रूरता से सज़ा देना चाहती है, जैसी क्रूर यातनाएँ, व्यवहार, जेहादी दहशतगर्दों ने उसे और उसके परिवार को दीं थीं। वह उस व्यक्ति को बिल्कुल क़रीब से देखना चाहती थी, जो प्रौढ़ावस्था से आगे निकल जाने के बावजूद देश और दुनिया में अपनी बेवुक़ूफ़ियों के कारण एक राष्ट्रीय जोकर, मंद-बुद्धि बालक के रूप में जाना जाता है।
Full Novel
साँसत में काँटे - भाग 1
भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव उसकी आँखों में भर आए आँसू उसके गालों पर गिरने ही वाले थे। आँसुओं से उसकी आँखों में भीड़ और उनके हाथों में लहराते तिरंगे के अक्स दिखाई दे रहे थे। ज़ीरो डिग्री टेम्प्रेचर वाली कड़ाके की ठंड के कारण उसने ढेरों गर्म कपड़ों से ख़ुद को पूरी तरह से ढका हुआ था। आँखें और उसके आस-पास का कुछ ही हिस्सा खुला हुआ था। वह भीड़ से थोड़ा अलग हटकर खड़ी थी। भीड़ भारत-माता की जय के साथ-साथ उस नेता का भी ज़िंदाबाद कर रही थी, जिसको, जिसके पूर्वजों, पार्टी को वह अपने सुखी-समृद्ध परिवार, ...Read More
साँसत में काँटे - भाग 2
भाग -2 इसके बाद तो आतंकवादियों को जैसे और छूट दे दी गई। वहाँ भूले से भी तिरंगा दिखना सिर्फ़ बंद हो गया, बल्कि जलाया भी जाने लगा। लेकिन उसके बाद समय ने करवट ली, कांग्रेसी सत्ता से बेदख़ल कर दिए गए, जिस नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने उन्नीस सौ बानवे में आतंकवादियों की लाख धमकियों के बाद भी अभिशप्त लाल-चौक पर तिरंगा लहराया था, उसी ने देश की कमान सँभाल ली और देश के माथे पर लगा कलंक, अभिशप्त धारा ३७०, ३५ए जैसी धाराओं को समाप्त कर दिया। जिनके कारण जम्मू-कश्मीर देश के अंदर ही एक अलग क्रूर जेहादी ...Read More
साँसत में काँटे - भाग 3
भाग -3 उसके अब्बा ने कहा, “हमारा परिवार पाँचों वक़्त का नमाज़ी है। अल्लाह के ही बताए रास्ते पर है, मज़हब के लिए ख़ानदान के कई लोग अपनी क़ुर्बानी दे चुके हैं।” लेकिन दहशतगर्द अपनी ही बात करते रहे, उनके हिसाब से पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करना ही पूरा मुसलमान होना नहीं है। उन्होंने बार-बार क़ुरान के पारा दस, सूरा नौ, तौबा आयत पाँच की इस बात, “अतः जब हराम (वर्जित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों (बहुदेववादियों) को क़त्ल करो जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और हर घात में उनकी ख़बर लेने की लिए बैठो। फिर ...Read More
साँसत में काँटे - भाग 4 (अंतिम भाग)
भाग -4 उसके अब्बू कुछ देर सोचने के बाद बोले, “हमारी यही तो ग़लती, ग़लतफ़हमी है कि, हम जिन को अपना फ़रिश्ता समझते रहे, वो एक दरिंदे से ज़्यादा और कुछ भी नहीं हैं, जो अपनी दरिंदगी से मज़हब को बदनाम कर रहे हैं, और हम-लोग आँख मूँद कर उनको मदद करते आ रहे थे। “जिन्हें हम काफ़िर समझ रहे हैं, उनके बीच जाने से डर रहे हैं, मुझे मालूम है कि हम उनके बीच इन दरिंदों से ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे। हमें वह कुछ भी नहीं होने देंगे। तुम जम्मू, दिल्ली की बात छोड़ो पूरे मुल्क में हर मुस्लिम ...Read More