सन्यासी

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कभी कभी इन्सान अपने जीवन से विरक्त होकर इस सांसारिक जीवन से सन्यास लेकर सन्यासी बन जाता है, लेकिन क्या वो सच में इस संसार के चक्रव्यूह से निकल पाता है,शायद नहीं! क्योंकि सांसारिक जीवन को त्यागकर उस ईश्वर की शरण में जाना,इतना भी आसान नहीं होता जैसा कि हमें दिखाई देता है,क्योंकि हमें उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने के लिए आत्मिक परिपक्वता एवं अडिग विश्वास की जरूरत होती है और ये दोनों भाव हमारे भीतर यूँ ही प्रवेश नहीं करते,उसके लिए हमें कड़ी तपस्या और अपनी इन्द्रियों को वश में करना आना चाहिए..... क्या इस कहानी का नायक अपनी इन्द्रियों को वश में करके कड़ी तपस्या करने के बाद सन्यासी बन बन पाता है या नहीं आइए देखते हैं.... तो कहानी शुरू करते हैं....

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सन्यासी -- भाग - 1

कभी कभी इन्सान अपने जीवन से विरक्त होकर इस सांसारिक जीवन से सन्यास लेकर सन्यासी बन जाता है, लेकिन वो सच में इस संसार के चक्रव्यूह से निकल पाता है,शायद नहीं! क्योंकि सांसारिक जीवन को त्यागकर उस ईश्वर की शरण में जाना,इतना भी आसान नहीं होता जैसा कि हमें दिखाई देता है,क्योंकि हमें उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने के लिए आत्मिक परिपक्वता एवं अडिग विश्वास की जरूरत होती है और ये दोनों भाव हमारे भीतर यूँ ही प्रवेश नहीं करते,उसके लिए हमें कड़ी तपस्या और अपनी इन्द्रियों को वश में करना आना चाहिए..... क्या इस कहानी का ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 2

जयन्त अपनी साइकिल से जब काँलेज पहुँचा तो उसे बहुत भूख लगी थी,इसलिए कैन्टीन जाकर उसने कुछ खाने का कैन्टीन में कुछ भी उसके मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए वो वहाँ से वापस चला आया और तभी उसका दोस्त वीरेन्द्र उसे दूर से दिखा और उसने उसे देखकर हाथ हिलाया, इसके बाद वीरेन्द्र उसके पास आकर बोला.... "भाई! तेरा मुँह क्यों लटका हुआ है"? "यार! मेरा तो वही रोज रोज का टन्टा है,बाबूजी से बहसबाजी फिर इसके बाद भूखे काँलेज चले आना, कैन्टीन गया था कुछ खाने के लिए लेकिन वहाँ मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 4

दिनभर यूँ ही काँलेज में वक्त गुजारने के बाद जयन्त घर पहुँचा,उसने साइकिल की घण्टी बजाकर चौकीदार से बंगले गेट खोलने को कहा,जैसे ही नलिनी ने साइकिल की घण्टी की आवाज़ सुनी तो वो फौरन ही समझ गई कि उसका बेटा जय काँलेज से वापस आ गया है,इससे पहले की जयन्त अपने कमरे में पहुँच पाता, तो वो जयन्त के कमरे में पहुँचने से पहले ही कुछ मूँग दाल के लड्डू और मठरियाँ लेकर वहाँ पहुँच गई और जैसे ही जयन्त अपने कमरे में घुसा तो नलिनी ने उससे पूछा... "आ गया तू! मैं कब से तेरा इन्तजार कर ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 5

इसके बाद सुरबाला मुस्कुराते हुए जयन्त के कमरे से चली गई,सुरबाला के जाने के बाद नलिनी ने जयन्त से "जय! क्या तू सच में एक दिन सन्यासी बन जाऐगा?" अपनी माँ की बात सुनकर जयन्त मुस्कुराते हुए उनसे बोला... "क्या पता...हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है,ये तो दुनिया वालों पर निर्भर करता है कि वो मुझे क्या बनाते हैं?" "बेटा! ये तेरी जिन्दगी है,इसका फैसला तो तेरे हाथ में होना चाहिए कि तू क्या बनना चाहता है",नलिनी बोली.... "लेकिन माँ! दुनियावालों का मिजाज़ देखकर भरोसा उठ है मेरा सब पर से,सब के मन में केवल ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 6

सुबह हुई तो घर में बवाल मचा हुआ था,क्योंकि प्रयागराज ने जयन्त की शिकायत शिवनन्दन जी से कर दी कि इस बारें में शिवनन्दन जी को भी सब पता था क्योंकि उन्होंने रात में सब सुन लिया था,लेकिन किसी से कुछ बोले नहीं थे,उन्होंने सोचा इस मसले पर सुबह ही बात होगी,इसके बाद शिवनन्दन जी ने इस बात को लेकर जयन्त से बात करने की सोची,फिर जयन्त को सबके सामने पेश किया गया और तब शिवनन्दन जी ने जयन्त से पूछा.... "तुम्हें किसने अधिकार दिया पति-पत्नी के बीच में बोलने का" "कोई किसी को जानवरों की तरह पीटे जाएँ ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 8

जब दोपहर के बाद जयन्त काँलेज से लौटा और उसने सुना कि माँ को चोट लग गई है तो फौरन भागा भागा अपनी माँ के कमरे में पहुँचा और अपनी माँ नलिनी से चोट लगने का कारण पूछा,तब नलिनी ने उसे सारा हाल कह सुनाया.... तब जयन्त ने नलिनी से कहा... "माँ! जब तक तुम्हारी चोट ठीक नहीं हो जाती तो तब तक तुम कुछ भी काम नहीं करोगी" "अरे! ऐसा तो लगता रहता है,तो क्या घर के सारे काम काज छोड़कर आराम करने बैठ जाऊँ",नलिनी बोली... "और क्या? अब तुम केवल आराम करोगी,जिन्दगी भर बहुत कर लिया तुमने ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 7

इसके बाद गोपाली आँगन में गीले कपड़े सुखाने पहुँची,जहाँ पर उसकी जेठानी सुरबाला पहले से ही मौजूद थी,जो धूप मसाले सूखने के लिए डाल रही थी,वो लाल साबुत मिर्चों पर हाथ फेरते हुए गोपाली से बोली... "गोपाली! सच सच बताना,क्या हुआ था कल रात को"? "जीजी! तुम्हें सब पता ही तो है,फिर क्यों पूछती हो",गोपाली ने सुरबाला से कहा.... "बता ना! मैं किसी से कुछ ना कहूँगीं",सुरबाला बोली... तब गोपाली बोली.... "कल रात मुन्नीबाई कहीं और किसी नवाब के यहाँ मुजरा करने चली गई थी,इसलिए तुम्हारे देवर उससे मिल नहीं पाएँ,मैं रात मुन्ने को सुलाने की कोशिश कर रही ...Read More

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सन्यासी -- भाग - 3

छात्रों के बीच क्लास रूम में हो रही मार कुटाई जब चपरासी ने देखी तो उसने फौरन ही प्रिन्सिपल जाकर उन सभी की शिकायत कर दी,इसके बाद प्रिन्सिपल ने फौरन ही उन सभी अपने रुम में बुलाया और लड़ाई का कारण पूछा... तब मदन प्रिन्सिपल साहब से बोला.... "सर! मैं और सुधीर तो आपस में बातें कर रहे थे,पता नहीं अचानक जयन्त को क्या हुआ,वो हमारी बातों के बीच बिना मतलब कूद पड़ा" "सर! मदन झूठ बोल रहा है,भला! मैं बेवजह क्यों उलझूँगा किसी से",जयन्त बोला... "तो फिर बताओ कि पूरी बात क्या है?",प्रिन्सिपल साहब ने जयन्त से पूछा.... ...Read More