राज के जन्मदिन के दिन उसकी पत्नी बेला एक मैसेज छोड़कर कहीं चली गई। राज जब उसे खोजने निकला, तो राज के लिए एक राज़ इंतज़ार कर रहा था। क्या था वो राज़? पढ़िए राज और बेला की भावनात्मक प्रेम कहानी पहला प्यार। बिना लेखक की अनुमति के इस नॉवेल/कहानी या इसके किसी भी अंश की कॉपी और रिकॉर्डिंग किसी भी माध्यम में प्रकाशित न करें। Copyright, Kripadhaani, All rights reserved, 2024
Full Novel
पहला प्यार - भाग 1
2 फरवरी 1987कोहरे की चादर लपेटे जाड़े की अलसाई सुबह सूरज की झिलमिलाती किरणों के इंतज़ार में थी। चाय चुस्कियों और अख़बार की सुर्ख़ियों के साथ दिन का आगाज़ हो चुका था। मुँह अंधेरे सैर पर निकले कई लोग घरों को लौट रहे थे, तो कई जाने की तैयारी में थे।इन सबसे जुदा राज कंबल में दुबका दीन-दुनिया से बेख़बर मीठी नींद में समाया हुआ था। एकाएक साइड टेबल पर रखी घड़ी का अलार्म बज उठा और उसकी मीठी नींद में खलल पड़ गई। उसने आँखें खोलने की ज़हमत नहीं उठाई। नींद की ख़ुमारी में आँखें मूंदे-मूंदे ही बोला, ...Read More
पहला प्यार - भाग 2
'बड़ी अजीब हो बेला तुम और आज तो रहस्यमयी भी लग रही हो।' राज के होंठ बुदबुदा उठे।राज और का प्रेम विवाह हुआ था। लव मैरिज! अरेंज मैरिज के उस दौर में लव मैरिज आसान नहीं थी। मगर राज शुरुवात से ही मॉडर्न ख़यालातों का आदमी था। उसके रंग-ढंग देखकर और सोच-विचार जानकर उसके माँ-पिताजी भी समझ गए थे कि वो लड़का उनकी पसंद की किसी लड़की से शादी करने से रहा। इसलिए उन्होंने ये ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेने के बजाय उसके कंधे पर ही डाल दी थी। वह ख़ुद को किस्मत का धनी मानता था, जो उसकी ...Read More
पहला प्यार - भाग 3
दिन बीतने लगे और ऑफिस के बोरिंग रूटीन में बंधकर राज पेन फ्रेंड की बात भूल गया। मगर शायद मेहरबान थी। एक दिन जब वह ऑफिस से घर लौटा, तो फर्श पर पड़ा गुलाबी रंग का एक लिफ़ाफा नज़र आया, जो यक़ीनन डाकिया दरवाज़े के नीचे से अंदर सरका गया था। उसने लिफ़ाफ़ा उठाया। वह उसके ही नाम था। प्रेषक के नाम की जगह लिखा था - 'बेला!' नाम पढ़कर ही उसके दिल में एक हलचल हुई। लिफ़ाफा खोलने के पहले ही उसका यक़ीन पुख्ता हो चुका था कि ये ख़त ज़रूर उस पत्रिका में उसका नाम-पता देखकर भेजा ...Read More
पहला प्यार - भाग 4
राज को कुमार गौरव से जलन हो रही थी। जलन क्या? उसे तो उस पर बेतहाशा गुस्सा आ रहा गुस्सा निकालने का बड़ा अजीब तरीका निकाला उसने। पुराने अखबारों के ढेर में तीन घंटे सिर खपाकर रविवार के अंक में से उसने कुमार गौरव की तस्वीर ढूंढ निकाली और उसे काटकर अलग रख लिया। वह उस तस्वीर को जलाकर अपने दिल में सुलग रही जलन की आग को बुझाना चाहता था।मगर जाने क्या हुआ कि वह उस तस्वीर को जलाने के पहले आईने के सामने खड़ा हो गया और तस्वीर में दिख रहे कुमार गौरव से ख़ुद की तुलना ...Read More
पहला प्यार - भाग 5
बेला ने राज के लिए छोड़े कागज़ के पुर्ज़े में कब्रिस्तान का पता देते हुए लिखा था – ‘उस पर चले आना, जिस पर सफेद गुलाब रखा हो।‘ अब उस कब्र के सामने खड़े होकर राज यादों की कड़ियों को एक बार फिर जोड़ रहा था।बेला के उस ख़त का जवाब उसने कुछ यूं दिया था -'अगर मुझे प्यार करने की हिम्मत होगी, तो प्यार हासिल करने की भी। वैसे मेरा परिवार सपोर्टिव है, इसलिए बग़ावत की ज़रूरत मुझे कभी नहीं होगी। वैसे वे सपोर्टिव इसलिए भी है, क्योंकि जानते हैं कि मैं कभी उनके ख़िलाफ़ नहीं जाऊंगा और ...Read More
पहला प्यार - भाग 6
राज की नज़र कब्र पर रखे सफेद गुलाब के नीचे दबे लिफ़ाफ़े पर पड़ी। उसने लिफ़ाफ़ा उठाया और उसे लिया। उसमें एक ख़त था। वह ख़त निकालकर पढ़ने लगा।राज,हैरान होंगे आप! आपके जन्मदिन के दिन कौन सा उपहार देने के लिए मैंने आपको यहाँ बुलाया है? ये सवाल आपको परेशान ज़रूर कर रहा होगा। उपहार देने के पहले अपने दिल की कुछ बातें आपसे साझा करना चाहती हूँ। उम्मीद है इन बातों को आप समझ जायेंगे।मैं आपको अपनी सहेली के बारे में बताना चाहती हूँ। उसका नाम था - इसाबेला डिसूज़ा। हम दोनों पड़ोसी थे और एक ही कॉलेज ...Read More
पहला प्यार - भाग 7
इसाबेला को फौरन अस्पताल पहुँचाया गया, पर बचाया न जा सका। ज़िन्दगी के आखिरी लम्हों में मैं उसके साथ और उस वक़्त उसकी ज़ुबान पर आपका ही नाम था राज। उसके आखिरी शब्द थे – “मैं चाहती हूँ कि राज ख़ुश रहे और तुम उसे ख़ुश रख सकती हो बेला, क्योंकि उसकी ख़ुशी है - बेला!” उस वक़्त उसके इन शब्दों का मतलब मुझे समझ नहीं आया।उसके जाने के दो दिन बाद मैंने उसका कॉलेज बैग देखा, जो मेरे पास रह गया था। उसमें मुझे उसका ख़त मिला, जो उसने आपको लिखा था। उस ख़त में उसने वो बातें ...Read More
पहला प्यार - भाग 8 (अंतिम भाग)
आपके जन्म दिन का उपहार आपकी दोस्त इसाबेला है। आपको जानने का हक है कि आपकी दोस्त और पहला कौन थी? कैसी थी? और इसाबेला को भी हक़ है कि जिसकी वो दोस्त थी, जिसे उसने ख़ामोशी से चाहा, जिसका नाम आखिरी सांसों तक उसकी ज़ुबान पर था, वो उसके बारे में जाने। उसकी एक तस्वीर इस ख़त के साथ छोड़े जा रही हूँ। ये थी आपकी इसाबेला।“लिफ़ाफे में एक तस्वीर थी। राज ने उसे देखा और देखता रह गया। ख़त लिखते वक़्त वह जो कल्पना किया करता था, आज हक़ीकत बनकर उसके सामने थी। सूरज की किरण सी ...Read More