किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म

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बुंदेलखंड की धरा, अद्भुत, अभूतपूर्व किस्से-कहानियों से अटी पड़ी है। यहाँ जन्म लेने वाले साधु-संत, कवि-साहित्यकार, रणबांकुरे, त्यागी- बलिदानी नर-नारियों के चरित्र आख्यान, अब तक छुटपुट ही सही, देश के छोटे-बड़े तमाम रचनाकारों ने अपने काव्य-आलेखों-कहानियों में समाहित किए हैं। परंतु नई पीढ़ी, जो अब किताबों से विमुख हो चुकी है, उसके सामने अपनी पहचान का संकट, विकराल रूप लेकर सामने उपस्थित है। जब हम अपनी संस्कृति, अपने महापुरुष, अपने क्षेत्र, अपनी भाषा और अपनी भूमि को पहचानेंगे, तभी खुद को भी पहचान पाएं

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किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 1

*किस्से वीर बुंदेलों के-1**वीरसिंह जू देव आख्यान-1*----------------------------------बुंदेलखंड की धरा, अद्भुत, अभूतपूर्व किस्से-कहानियों से अटी पड़ी है। यहाँ जन्म लेने साधु-संत, कवि-साहित्यकार, रणबांकुरे, त्यागी- बलिदानी नर-नारियों के चरित्र आख्यान, अब तक छुटपुट ही सही, देश के छोटे-बड़े तमाम रचनाकारों ने अपने काव्य-आलेखों-कहानियों में समाहित किए हैं। परंतु नई पीढ़ी, जो अब किताबों से विमुख हो चुकी है, उसके सामने अपनी पहचान का संकट, विकराल रूप लेकर सामने उपस्थित है। जब हम अपनी संस्कृति, अपने ...Read More

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किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 2

2/ किस्से वीर बुंदेलों के- राज धर्म2 महल के पहरे ( पौड़ीे ) के निचले हिस्से में, जहाँ एक लगा हुआ है, खड़े होकर, हम, महल और वीरसिंह देव के बारे में सुनी सुनाई बातें दोहरा रहे थे। हमें नहीं मालूम था कि हमारा यह वार्तालाप कोई और भी बहुत गौर से सुन रहा था। हमारे ठीक पीछे। नीचे की ओर जाती सीढ़ियों के ऊपरी मुहाने पर बने प्रस्तर द्वार की पथरीली चौखट से पीठ सटाए। यही थे राजा काका। राजा काका हमारे स्थानीय मित्रों के पूर्व परिचित थे। हमारे आपसी वार्तालाप में, राजाओं की निरंकुशता, नरसंहार, लूट और ...Read More

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किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 3

*महाराजा वीरसिंह जू देव आख्यान-1**राजधर्म*(बुंदेलखण्ड के ओरछा राज्य की एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित)*चैप्टर-2, "शिकार" ।*--------------------------------*भुवन भास्कर*, अस्तांचलगामी होकर हो चले थे। अरुणाभ क्षितिज की मनोहारी छटा दर्शनीय थी। तुंगारण्य महावन की सघन वृक्षावली के शीर्ष पर विंध्यश्रेणी श्रृंखला के, दो अन्यतम शिखरों के मध्य, शनैःशनैः गगन से धरा की ओर झुकते रवि की सुनहरी रस्मियाँ, समूचे नभ मंडल पर, एक अलौकिक 'जाल' सा निर्मित कर रही थीं। मानो तिमिर से संसार को सुरक्षित रखने के लिए, कोई कवच छत्र, एक निशा अवधि के लिए स्थापित हो रहा हो। दिवस अवसान समीप जानकर, अपनी पाल में लौट आए वन्य ...Read More

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किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 4

किस्से वीर बुंदेलों के -राजधर्म (वीर सिंह देव आख्यान) 4 तत्समय एक अन्य स्थिति यह थी कि बड़ौनी से कोस की दूरी पर, सम्राट अशोक, रूद्रसेन वाकाटक एवं समुद्रगुप्त के कालों में उत्तर दक्षिण की सुगम यात्रा के लिए, इस वन क्षेत्र के पूर्व उत्तर सीमांत के निकट, एक प्राचीन राजमार्ग स्थापित था, इसी राजमार्ग पर सम्राट अशोक का एक शिलालेख (गुजर्रा), तथा राजा टोड़रमल का शिलापट्ट (दरियापुर) भी स्थित हैं। इस राजमार्ग के दोनों ओर, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ग्रामीण बसाहट थी, (जो आज भी है) । इसी मार्ग की नदियों पर, दो जगह, अस्थाई निर्गम पुल बनाकर, आवागमन ...Read More

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किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 5

किस्से वीर बुंदेलों के-राज धर्म(वीरसिंह देव आख्यान)5 इसीलिए बृसिंगदेव का शासनकाल बुंदेलखंड का "स्वर्णयुग" कहा जाता है। उनके राज्य साहित्य, संगीत तथा ललित कलाओं के साथ-साथ, हिंदू धर्म के संरक्षण एवं उत्थान मूलक उपक्रमों का पर्याप्त विकास हुआ। काशी, मथुरा, अयोध्या, हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, उज्जैन, पुष्कर, सहित विभिन्न तीर्थ स्थलों पर मंदिर, घाट, धर्मशाला निर्मित कराने वाले, धर्मप्रेमी, न्यायमूर्ति, आदर्श राजा बृसिंगदेव द्वारा ही कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा, काशी विश्वनाथ मंदिर तथा कनक भवन मंदिर अयोध्या का उद्धार किया गया। आचार्य बल्लभ हरि की प्रेरणा से 81 मन स्वर्ण का तुलादान कर, ब्रज में गोवर्धन परिक्रमा का निर्माण कराया। ...Read More