स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें 42000 गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। इस क्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग दशार्ण (धसान) नदी के कारण दशार्ण कहलाता था। चन्देलों का इतिहास नन्नुक (831-850ई0) से प्रारम्भ होता है। विभिन्न शासकों ने खजुराहो (खर्जूरवाहक), महोबा (महोत्सव), कालिंजर को अपनी राजधानी बनाया। परमर्दिदेव (1165-1203ई0) के काल में महोत्सव वैभवपूर्ण नगर था। कीर्ति सागर, मदन सागर,विजय सागर, कल्याण सागर, राहिल सागर द्वारा जल की आपूर्ति की जाती थी। बारहवीं शती के उत्तरार्द्ध में चाहमान, गहड़वाल, चन्देल मध्यदेश के प्रमुख राज्य थे। इनके आपसी द्वन्द्व ने इतिहास की दिशा ही बदल दी। विक्रम संवत्1236 में चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय ने महोत्सव पर आक्रमण किया जिसका उल्लेख उनके मदनपुर शिलालेख में किया गया है- अरुण राजस्य पौत्रेण श्री सोमेश्वर सूनुना।
कंचन मृग - प्रस्तावना
उपोद्घात कंचन मृग (उपन्यास) स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। इस क्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग ...Read More
कंचन मृग - 1 अपराध हुआ रानी जू
1. अपराध हुआ रानी जू ‘चित्ररेखा’ , चित्ररेखा दौड़ती हुई चन्द्रावलि के सामने अपराधी की भाँति आकर खड़ी हो उसकी खड़े होने की मुद्रा से चन्द्रा को हँसी आ गई। उसने पूछा ‘आज इतने श्रृंगार की आवश्यकता कैसे पड़ी, चित्रे?’ चित्रा की आँखें ऊपर न उठ सकीं। चित्रा चन्द्रा की मुँहबोली सेविका होने के साथ ही अभिन्न सहेली भी थी। चित्रा के मन की बातें चन्द्रा पढ़ लेती थी और चित्रा से भी चन्द्रा के अन्तर्मन की बात छिपती न थी। सावन का महीना लग चुका था। विवाहिताएं मैके आकर किलोल करने लगीं थीं। चित्रा के माता-पिता का देहान्त ...Read More
कंचन मृग - 2 जइहँइ वीर जू
2. जइहँइ वीर जू- बालक उदास था। आँखें भरी हुई थीं। माँ से कहा कि उसे सैन्य बल में लिया गया। माँ घर की देहरी पर बैठी पत्तल बना रही थी। ‘पतरी तव हइ पेट पालइ का, काहे बिलखत हव’ ‘म्वहिं का कुछ करै का है। तैं दिन भर लगी रहति ह्या तबहुन पेट न भरत। म्वहिं यहइ काम करैं-क है का? ‘हाथ पांव चलइहव तौ रोटी मिलइ ! ये ही मा सुख मिलइ।’ ‘काम मा म्वहिं लाज नाहीं आवइ। घ्वरसवार बनै क मन रहइ। घ्वर सवार कइ कमाई ज्यादा हवै। का त्वार मन नाहीं कि म्वहिं कुछ ज्यादा ...Read More
कंचन मृग - 3 उड़ि जा रे कागा
3. उड़ि जा रे कागा रूपन को घर छोड़े पूरे बारह महीने बीत गए। पुनिका प्रायः आकर रूपन की को ढाढ़स बँधाती, पत्तल बनाने में उसकी सहायता करती । रूपन को दम मारने की फुर्सत नहीं थी। वह उदयसिंह का विश्वास पात्र सैनिक था। उदयसिंह हर कहीं उसे साथ रखते। रूपन भी अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। ‘न’ करना उसने सीखा नहीं था। संकटपूर्ण स्थितियों का सामना करने में वह दक्ष हो गया था। पर घर छूट गया था। माँ घर पर थी। कुछ ड्रम्म और संदेशा मिल जाता पर उसके मन की साध धरी की ...Read More
कंचन मृग - 4. माई साउन आए
4. माई साउन आए- बारहवीं शती का उत्तरार्द्ध। महोत्सव वास्तव में उत्सवों का नगर था। नर-नारी उल्लासमय वातावरण का करने में संलग्न रहते। ऋतुओं के परिवर्तन के साथ ही नगर का परिवेश बदल जाता । सावन में घर-घर झूले पड़ जाते। नीम या इमली की डाल पर बड़े-बड़े रस्से लगाकर लकड़ी के मोटे पटरे बाँध दिये जाते। नवयुवतियाँ साँझ ढलते ही झूलों पर झूलतीं और कोमल कंठों से सावन गातीं। उन गीतों को सुनकर हर व्यक्ति जीवन की कटुता भूल जाता। अभावों और आकांक्षाओ की अनापूर्ति के मध्य भी जीवन की सरसता छलक उठती। रस बरसने लगता। चन्द्रा के ...Read More
कंचन मृग - 5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है
5. सत्ता को कभी-कभी निर्मम होना पड़ता है- महारानी मल्हना मूर्च्छित हैं। सेविकाएं उन्हें सँभालने का प्रयास कर रही उनकी आँखों से निरन्तर अश्रु बह रहे हैं। चित्रा भी पहुँच कर पंखा झलने लगती है। कुछ क्षण में महारानी की आँख खुलती है। उसी समय मन्त्रिवर माहिल प्रवेश करते हैं। महारानी की प्रश्नवाचक मुद्रा माहिल को अन्दर तक बेध देती है पर वे उत्तरीय सँभालते हुए बोल पड़ते हैं- ‘महाराज ने उचित ही किया महारानी। एक राज्य में दो सत्ता केन्द्र नहीं हो सकते जैसे एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती।’ महारानी ने माहिल पर एक बेधक ...Read More
कंचन मृग - 6. हमें थोड़े करवेल्ल चाहिए
6. हमें थोड़े करवेल्ल चाहिए-नगर के एक मार्ग पर अयसकार रोहित जा रहा था। दूसरी ओर से एक व्यक्ति चाल से आते हुए दिखा। रोहित पूछ बैठा ‘सुना नहीं आपने ?’‘क्या ?’‘दशपुरवा खाली करने का आदेश दे दिया गया है।’‘मुझे कुछ भी पता नहीं। राजा महाराजाओं के पीछे मैं नहीं रहता। कोई आता है कोई जाता है विद्या हेतु अधिकांश समय काशी रहा। हमें थोड़े कारवेल्ल चाहिए, उन्हें लेने जा रहा हूँ। पत्नी ने कहा है। उसकी इच्छा है तो कारवेल्ल लाऊँगा ही ?’‘यह कारवेल्ल क्या है ?’‘अरे कारवेल्ल नहीं जानते। करेला को कारवेल्ल कहा जाता है।’‘आपका पाणिग्रहण कुछ ...Read More
कंचन मृग - 7. यह क्या हो गया दीदी ?
7. यह क्या हो गया दीदी ? दशपुरवा में आल्हा की बैठक में भारी भीड़ है। सभी अपने-अपने ढंग सोच विचार में मग्न हैं। बहुत से लोग प्रतिक्रिया न व्यक्त कर आल्हा के निर्देश की प्रतीक्षा में हैं। रूपन ने पहुँच कर प्रणाम करते हुए निवेदन किया कि महाराज ने भेंट करने की अनुमति नहीं दी। उनकी इच्छा है कि तत्काल हम लोग यहाँ से कहते कहते रूपन की आँखों में अश्रु भर आए। बैठक में सभी के मुखमण्डल पर विभिन्न प्रकार के भाव आ-जा रहे थे। कुछ आक्रामक तेवर के साथ कुछ कहना चाहते थे आल्हा ने रोक ...Read More
कंचन मृग - 8. हर व्यक्ति चुप है
8. हर व्यक्ति चुप है- चन्द्रा मुँह ढाँप बिस्तर पर पड़ी है। चित्रा पंखा झल रही है। चित्रा चन्द्रा प्रसन्न करना चाहती है पर उसे कोई युक्ति नहीं सूझती। उसने शक्ति भर प्रयास भी किया पर चन्द्रा के कष्ट को कम न कर सकी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? चन्द्रा की विकलता कम होने की अपेक्षा बढ़ती जा रही थी। चित्रा मन बहलाने के लिए कोई कथा या संवाद सुनाने का प्रयास करती पर इससे चन्द्रा की अशान्ति कम न होती। कभी-कभी मन और उद्विग्न हो उठता। चित्रा ने कहा कि लहुरे वीर से ...Read More
कंचन मृग - 9-10. विश्वास नहीं होता मातुल
9. विश्वास नहीं होता मातुल आल्हा प्रस्थान का निर्देश दे ही रहे थे कि माहिल आते दिखाई पड़ गए। रुक गए, माहिल को प्रणाम कर पूछा, मातुल कोई नया संदेश ?’ कोई नवीन संदेश नहीं है। सत्ता केन्द्र षड्यन्त्र के केन्द्र बनते जा रहे हैं जिस पर विश्वास कीजिए, वही जड़ काटने का प्रयास करता है। आपके निष्कासन से मुझे भयंकर पीड़ा हो रही है’, कहते-कहते माहिल की आँखों में आँसू आ गए।‘इतने दिन का ही अन्नजल विधि ने लिख रखा था मातुल । माँ शारदा की अनुकम्पा बनी रहे तो सभी कष्टों का निवारण होता रहेगा। महाराज सुखी ...Read More
कंचन मृग - 11-12. अब वे अकेले हो गए हैं
11. अब वे अकेले हो गए हैं- प्रातः लोग तैयारी कर ही रहे थे कि शिशिरगढ़ से पुरुषोत्तम कुछ अश्वारोहियों के साथ आ पहुँचे। उन्होंने आल्हा का चरण स्पर्श किया। आल्हा ने उन्हें गले लगा लिया तथा वस्तु स्थिति से अवगत कराया। उदय सिंह और देवा ने भी आकर पुरुषोत्तम का चरण स्पर्श किया। ‘हम लोग अलग न जाकर शिशिरगढ़ में ही वास करें, पुरुषोत्तम ने प्रस्ताव किया। ‘शिशिरगढ़ भी महोत्सव का ही अंग है। यहाँ निवास महाराज परमर्दिदेव की आज्ञा का उल्लंघन होगा,‘आल्हा ने संकेत किया।’ ‘अब चंदेल सीमा के बाहर ही निवास उचित होगा। जो आरोप हम ...Read More
कंचन मृग - 13-14. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें
13. मेरी यात्रा को गोपनीय रखें-मध्याह्न भोजन के पश्चात महाराज जयचन्द अलिन्द से निकलकर उद्यान का निरीक्षण कर रहे उद्यान की हरीतिमा नेत्रों को प्रीतिकर लग रही थी। इसी बीच प्रतिहारी ने आकर निवेदन किया-‘महाराज, एक साधु आप से मिलना चाहते हैं। उन्होंने अपना अन्य कोई परिचय नहीं दिया। कहते हैं कि महाराज से ही निवेदन करूँगा।’‘यहीं ले आओ।’‘कुछ क्षण में साधु प्रतिहारी के साथ उपस्थित हुए। महाराज साधु को लेकर अलिन्द में आ गए। महाराज के संकेत पर सेविकाएँ हट गई। सेविकाओं के हटते ही साधु ने जटा हटा दी। माहिल ने महोत्सव की नवीनतम जानकारी दी और ...Read More
कंचन मृग - 15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है
15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है उदयसिंह का मन अब भी अशान्त था। शिविर के निकट ही कच्चे बाबा का आश्रम था। वे उस आश्रम की ओर बढ़ गए। आश्रम के निकट ही गंगा का निर्मल जल प्रवाहित हो रहा था। बाबा जिनकी अवस्था पचास से अधिक नहीं रही होगी, एक वट वृक्ष के नीचे कुशा की आसनी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे थे। उनके पास कुछ जिज्ञासु मार्गदर्शन हेतु इकठ्ठा थे। उदयसिंह ने निकट जा कर प्रणाम किया। बाबा के संकेत करते ही उदयसिंह भी निकट ही एक आसनी पर बैठ गए। उदयसिंह की आँखों को ...Read More
कंचन मृग - 16. जौरा यमराज को भी कहते हैं
16. जौरा यमराज को भी कहते हैं सायंकाल महाराज जयचन्द ने मंत्रिपरिषद के सदस्यों से विचार-विमर्श प्रारम्भ किया। जयचन्द परमर्दिदेव का सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण था। महाराज परमर्दिदेव द्वारा निष्कासित व्यक्ति को शरण देने का अर्थ महोत्सव से अपने सम्बन्धों को कटु बनाना था। पण्डित विद्याधर ने दोनों राजकुलों की महान परम्पराओं का उल्लेख करते हुए सुझाव दिया कि महाराज परमर्दिदेव से सम्बन्ध बनाए रखना ही उचित है। कुछ अन्य सदस्यों ने माण्डलिक की प्रशंसा की। उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा एवं रण कौशल रेखांकित किया। यह भी कहा गया कि इन्हें शरण दे देने से कान्य कुब्ज का सैन्यबल अधिक सुदृढ़ हो जाएगा। ...Read More
कंचन मृग - 18. दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है
18. दिल्ली की ओर भी प्रस्थान कर सकता है- महाराज पृथ्वीराज जिन्हें ‘राय पिथौरा’ के नाम से भी जाना है, को सत्ता सँभाले अभी पाँच वर्ष ही हुए थे। उनमें युवा रक्त फड़फड़ा रहा था। वे धनुर्विद्या में पारंगत थे। उन्होंने शब्द बेधते हुए बाण चलाने की कला सीखी थी। उनके यहाँ चामुण्डराय, चन्द, कदम्बवास, कन्ह जैसे कुशल योद्धा थे। कदम्बवास और माँ कर्पूरदेवी के संरक्षण में ही अवयस्क पृथ्वीराज ने राज भार सँभाला था। पर अब वे अनुभवों की सीढ़ी पर एक एक पग आगे बढ़ रहे हैं। कदम्बवास का संरक्षण अब भी था पर महाराज अब स्वतन्त्र ...Read More
कंचन मृग - 19. पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए?
19. पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए? पारिजात शर्मा कहाँ नहीं गए? नदियों के श्मशान घाट पर महीनों बिताने के भी वे सुमुखी का पता नहीं लगा सके। उनकी दाढ़ी बढ़ गई थी। बाल बढ़कर उलझ गए थे। वस्त्रों से भद्रता का अंश निकल चुका था। कहीं कुछ मिलता तो खा लेते। निरन्तर चिन्ता मग्न चलते रहते। आज वेत्रवती के तीर पहुँचकर वे पूरी तरह थक चुके थे। घाट पर पहुँच, उन्होंने नदी का जल पिया। घाट पर लगे एक अश्वत्थ पेड़ के नीचे बैठते ही, उन्हें नींद आ गई। फिर वही स्वप्न, जिसे वे सैकड़ों बार देख चुके हैं। ...Read More
कंचन मृग - 17. ऋण चुकाने का अवसर आ गया
17. ऋण चुकाने का अवसर आ गया कान्य कुब्ज नरेश का विशाल सभा कक्ष। पंडित विद्याधर सहित मन्त्रिगण अपने पर आ चुके। वनस्पर बंधु भी सभा में आकर महाराज की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कुछ क्षण में ही महाराज जयचन्द श्री हर्ष एवं कुँवर लक्ष्मण के साथ आकर अपना आसन ग्रहण करते हैं। महाराज जयचन्द अपने हाथ से आचार्य को ताम्बूल वीटक प्रदान करते हैं, यह सम्मान श्री हर्ष को ही प्राप्त है। आचार्य श्री हर्ष स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति हैं, वे किसी से दबते नहीं। महाराज से भी उचित अनुचित पर चर्चा करते और उचित का ही पक्ष लेते। ...Read More
कंचन मृग - 20. यह युद्ध नहीं युद्धों की श्रृंखला थी
20. यह युद्ध नहीं युद्धों की श्रृंखला थी- चाहमान नरेश का अंतरंग सभा कक्ष, जिसमें मन्त्रिगण एवं मुख्य सामन्त हैं। महाराज पृथ्वीराज के प्रवेश करते ही सभी लोगों ने खड़े होकर महाराज का स्वागत किया। बाइस वर्षीय महाराज की आँखों में राज्य विस्तार की आकांक्षा झलक रही थी। युवा रक्त युद्ध भूमि में अपना प्रदर्शन करने के लिए हरहरा रहा था। आखेट में रात्रि जागरण के कारण आँखें लाल हो उठी थीं। आज की सभा में चामुण्डराय अधिक उत्तेजित थे। उनकी एक सैन्य टुकड़ी को महोत्सव में अपमानित होना पड़ा था। उन्होंने महाराज के सम्मुख निवेदन किया, ‘महाराज, महोत्सव ...Read More
कंचन मृग - 21. धौंसा बजा
21. धौंसा बजा- शिशिर गढ़ पर वत्सराज पुत्र पुरुषोत्तम शासन कर रहे थे। वत्सराज संस्कृत में श्लोक रचते थे। ‘रूपक शतकम्’ की रचना की थी। पुरुषोत्तम बात के धनी थे। उनकी प्रकृति गम्भीर थी। उन्होंने महोत्सव की प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने दी। पर यह ऐसा अवसर था जब माण्डलिक और उदयसिंह गाँजर क्षेत्र में कान्यकुब्जेश्वर का कर उगाहने में लगे थे। तालन और देवा भी उन्हीं के साथ थे। महोत्सव से माण्डलिक के निष्कासन से उन्हें कष्ट हुआ था पर आल्हा द्वारा शिशिरगढ़ रुकने में असमर्थता व्यक्त करने पर उन्हें लगा था कि वे अकेले हो गए हैं। ...Read More
कंचन मृग - 22-23. पत्र अपने पास रख लिया
22. पत्र अपने पास रख लिया- शिशिरगढ़ चामुण्डराय ने घेर लिया, यह सूचना प्राप्त होते ही महाराज परमर्दिदेव चिन्तित उठे। उन्होंने अपने मन्त्रियों से विचार विमर्श किया। सभी को यह आशंका हो रही थी कि चाहमान सेनाएँ महोत्सव की ओर भी प्रस्थान कर सकती है। मन्त्रिवर माहिल ने कहा कि वे महाराज पृथ्वीराज के मित्र हैं। उन्हें अपने पक्ष में कर लेंगे ब्रह्मजीत एवं समरजीत दोनों राजकुमारों को लगा कि मातुल पर बहुत विश्वास करना उचित नहीं है पर वे किसी विकल्प पर नहीं पहुँच सके। महारानी मल्हना ने महाराज से कहा कि आल्हा एवं उदयसिंह का निष्कासन उचित ...Read More
कंचन मृग - 24. आसौं कै सावन राजा घर करौं
24. आसौं कै सावन राजा घर करौं- शिशिरगढ़ पतन की सूचना जैसे ही परमर्दिदेव को मिली, वे चिंतित हो उन्होंने अन्तरंग सभा में विचार-विमर्श किया पर किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके। माहिल उन्हें बार-बार समझाते रहे कि यदि चाहमान नरेश आक्रमण करते हैं तो वे सँभाल लेंगे। अन्तरंग सभा के अन्य सदस्यों ने जानना चाहा कि वे कौन सी प्रक्रिया अपनाएँगे किन्तु माहिल ने स्पष्ट नहीं किया। महोत्सव में युद्ध कला में निष्णात वीरों का अभाव न था। पर इनमें से किसी ने भी किसी युद्ध का नेतृत्व नहीं किया था। परमर्दिदेव अब अधिकतर अस्वस्थ रहते। उन्होंने युद्ध ...Read More
कंचन मृग - 25. उन्हें सूचित करना ही होगा
25. उन्हें सूचित करना ही होगा- परमर्दिदेव अन्तरंग सभा में चाहमान माँगों पर विमर्श कर रहे थे। एक तीर दुर्ग के अन्दर आते कई लोगों ने देखा। जैसे ही तीर गिरा, चन्दन ने उठा कर उसे मन्त्री देवधर को दिया। तीर की रचना विशिष्ट थी। इस पर भगवती दुर्गा का चित्र बना था । तीर दुर्ग के निकट से ही फेंका गया था। देवधर चिन्तित हुए। दुर्ग के इतने निकट चामुण्डराय का कोई धनुर्धर आया और उसी ने शर सन्धान किया। उन्होंने तीर को महाराज के सामने प्रस्तुत किया। महाराज ने तीर को देखा पर माँग पत्र पर विचार ...Read More
कंचन मृग - 26. उदय सिंह शय्या पर उठ बैठे
26. उदय सिंह शय्या पर उठ बैठे रात्रि का पिछला प्रहर। उदयसिंह अपनी शय्या पर उठ बैठे। उन्होंने एक स्वप्न देखा है। चाहमान की विशाल वाहिनी ने महोत्सव को घेर लिया है। नगरवासियों का साँस लेना दूभर हो गया है। दशपुरवा में कदम्बवास की सेना आमोद मना रही है। चामुण्डराय कीर्ति सागर पर अधिकार किए बैठा है। महारानी और चन्द्रा के अश्रु सूखते नहीं हैं। वे लहुरे वीर का नाम लेते ही विलख पड़ती हैं। उन्होंने पुष्पिका को जगाया। उसे स्वप्न की बात बताई। पुष्पिका ने गणना करके बताया कि भुजरियों का पर्व निकट है। उदय सिंह ने शय्या ...Read More
कंचन मृग - 27. पर्व हम कराएँगे
27. पर्व हम कराएँगे- महोत्सव में महाराज परमर्दिदेव प्रतिदिन स्थिति का आकलन करते,पर भुजरियों के पर्व के सम्बन्ध में निर्णय नहीं कर सके। पर्व का दिन निकट आ रहा था। महारानी मल्हना का संकट बढ़ता जा रहा था। हर व्यक्ति पर्व की ही बात करता। चन्द्रा वामा वाहिनी बना, चर्चा का विषय बन गई थी। लोग व्यंग्य करते, पुरुष चूड़ियाँ पहनेंगे और नारियाँ नेतृत्व करेंगी। पर महारानी को युद्ध की विभीषिका का अनुमान था। वे जोखिम नहीं उठाना चाहती थीं। उन्हें अपनी असमर्थता पर क्षोभ हो रहा था। चन्द्रा के आ जाने पर उन्होंने कहा, ‘तुमने वामा वाहिनी बना ...Read More
कंचन मृग - 28. भुजरियाँ सिराने का पर्व
28. भुजरियाँ सिराने का पर्व- भुजरियाँ सिराने का पर्व। उत्साह की हिलोर में बालिकाएँ प्रातः से ही तैयारी में हो गईं। घर-घर चर्चा होने लगी कि जोगियो ने पर्व कराने का संकल्प लिया है। वे आ ही रहें होंगे। चन्द्रा भी अपनी वामा वाहिनी के साथ कीर्तिसागर जाने का उपक्रम कर रही हैं। समरजीत तैयार खड़े हैं। महारानी ने शिविकाएँ सुसज्जित कर लीं। महिलाएं बच्चे सभी आज उत्फुल्ल दिखाई पड़ रहे थे। समय हो रहा था। जोगी अभी पहुँच नहीं पाए थे। बालिकाएँ बार-बार महारानी से पूछतीं। महारानी अन्दर जातीं, बाहर आतीं। जोगियों के न आने से, वे उद्विग्न ...Read More
कंचन मृग - 29. मुझे स्वयं अस्त्र उठाना पड़ेगा
29. मुझे स्वयं अस्त्र उठाना पड़ेगा- कान्यकुब्जेश्वर के अन्तःपुर में राजमहिषी अलिन्द में बैठी कुछ सोच रही थीं। इसी प्रतिहारी ने वेणु को उपस्थित किया। ‘वेणु जी, क्या आप कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि महाराज श्री हर्ष के प्रभाव से मुक्त हो सकें!’ ‘ऐसा क्यों सोच रही हैं महारानी?’ ‘मैं प्रश्न का उत्तर चाहती हूँ, प्रति प्रश्न नहीं।’ ‘क्षमा करें महारानी, मैं प्रश्न के निहितार्थ को नहीं समझ सका। इसीलिये प्रश्न करना पड़ा। महाराज आचार्य श्री हर्ष को दो वीटक ताम्बूल देकर आसनारूढ़ करते हैं। उनकी सम्मतियों का मान करते हैं। उनके प्रभाव से मुक्ति…….. ’ ‘तुम्हारी दृष्टि ...Read More
कंचन मृग - 30. प्राण दान दे चुका हूँ
30. प्राण दान दे चुका हूँ- महाराज परमर्दिदेव ने अपने राज कवि जगनायक को बुलवाया। उनसे विमर्श हुआ। महाराज माण्डलिक को मनाने की बात कही। जगनायक बात और तलवार दोनों के धनी थे। पर राजनीतिक षड्यन्त्र में उनकी रुचि नहीं थीं। वे भी माण्डलिक को निष्कासित करने के पक्ष में नहीं थे। पर महाराज की आज्ञा का सक्रिय विरोध भी उन्होंने नहीं किया। वे माण्डलिक के स्वभाव को जानते थे। माण्डलिक गम्भीर प्रकृति के बात के पक्के थे। वे निर्णय सोच विचार कर लेते। एक बार निर्णय कर लेते तो उस पर अडिग रहते। उन्हें महोत्सव से निष्कासित किया ...Read More
कंचन मृग - 31. धरती की पुकार को कोई नहीं सुन रहा
31. धरती की पुकार को कोई नहीं सुन रहा- कच्चे बाबा का आश्रम। प्रातः उदयसिंह और पुष्पिका ने प्रवेश एक शिष्य ने बाबा को सूचित किया। बाबा एक आस्तरण पर बैठे थे। उन्होंने दोनों को वहीं पर बुलवा लिया। प्रणाम निवेदन कर दोनों निकट ही एक आस्तरण पर बैठ गए। ‘संकट का समय है’, बाबा ने स्वयं कहा। ‘चाहमान नरेश परमर्दिदेव पर आक्रमण की योजना बना रहे हैं। जन धन की हानि के अतिरिक्त उन्हें क्या मिलेगा? सीमाप्रान्त पर निरन्तर आक्रमण हो रहे हैं। दस्युओं का आंतक बढ़ गया है। नारियाँ रक्षित नहीं हैं। ऐसी स्थिति में महायुद्ध? महोत्सव ...Read More
कंचन मृग - 32. बेतवा का पानी लाल हो गया
32. बेतवा का पानी लाल हो गया- राजकवि जगनायक के साथ माण्डलिक, उदयसिंह, देवा, तालन तथा कुँवर लक्ष्मण राणा तैयार हुए। महाराज जयचन्द ने कुँवर लक्ष्मण राणा को सावधान किया। चाहमान नरेश चन्देलों से निर्णायक युद्ध करना चाहते हैं। भयंकर युद्ध की संभावना है। कुँवर की पत्नी पद्मा को भी युद्ध की भयंकरता का अनुमान हो गया था। कुँवर को विदा करते समय उसकी आँखों से अश्रु छलक आए। हाथी व्रजराशिन को मोदक खिलाते हुए उसने कहा, ‘कान्यकुब्ज की लाज रखना। कुँवर को तुम्हें सौंपती हूँ।’ व्रजराशिन ने सूँड़ उठा कर पद्मा को आश्वस्त किया। टीका लगा कर कुँवर ...Read More
कंचन मृग - 33. जूती पिन्हाइए
33. जूती पिन्हाइए- कान्यकुब्जेश्वरी अत्यन्त उद्विग्न हैं। उन्हें आचार्य श्रीहर्ष प्रतिद्वन्द्वी दिखाई पड़ते। यद्यपि महाराज महारानी का सम्मान करते पर वे श्रीहर्ष की बात भी नहीं टालते थे। यही बात महारानी को अखरती। उन्हें लगता कि श्री हर्ष भविष्य में उनके विकास में बाधक हो सकते हैं। कभी-कभी वे महाराज को भी तोलने का प्रयास करतीं। उन्हें लगता कहीं श्रीहर्ष का पलड़ा भारी न पड़ जाए। उन्होंने कई आचार्यो, व्यक्तियों को जाँचा पर कोई श्री हर्ष को पदचयुत करने में समर्थ होगा ऐसी सम्भावना उन्हें नहीं दिखी। उनकी उद्विग्नता बढ़ती जा रही थी। उन्हें पता चला कि आचार्य श्री ...Read More
कंचन मृग - 34. चन्द दुःखी हुए
34. चन्द दुःखी हुए- महाराज पृथ्वीराज अपने मन्त्रणा कक्ष में आ चुके थे। उन्होंने महोत्सव की छिटपुट लड़ाइयों को का खेल कहकर अपना असन्तोष प्रकट किया। चामुण्डराय और कदम्बवास यद्यपि दो बार महोत्सव की सेनाओं से आमने-सामने हो चुके थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी। दुर्ग को नष्ट कर पाना अत्यन्त कठिन था। शिशिरगढ़ विजय से चामुण्डराय जितने उत्साहित थे उतना ही वेत्रवती के झाबर की असफलता से दुःखी। ‘अब हम निर्णायक युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं महाराज’ चामुण्डराय ने कहा। संयमाराय ने इसका समर्थन किया। ‘निर्णायक युद्ध के लिए पूरी शक्ति के साथ आक्रमण करना ...Read More
कंचन मृग - 35. चुनौतियाँ बड़ी थीं
35. चुनौतियाँ बड़ी थीं- उदयसिंह ने महोत्सव आकर दशपुरवा को व्यवस्थित किया। चुनौतियाँ बड़ी थीं। आक्रमण कारियों के गुप्तचर एवं कष्टपूर्ण यात्राएँ करके भी सूचना संकलित करते। उन्हें अपने शासकों तक पहुँचाते। छोटे-छोटे राज्यों के साथ ही चाहमान, गहड़वाल, चन्देल जैसे विस्तृत भू-भाग के शासक अपनी महात्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु निरन्तर संघर्ष रत रहते। चन्देल शासक विद्याधर के समय में महमूद ने कान्यकुब्ज, कालिंजर पर आक्रमण कर अपनी उपस्थिति अंकित कराई। पूरे उत्तर भारत में निरन्तर युद्ध होने के कारण कुशल योद्धओं की माँग बनी रहती। योद्धा भी जिसका नमक खाते, अदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जंगल ...Read More
कंचन मृग - 36. भीत नहीं हूँ मैं
36. भीत नहीं हूँ मैं- चित्ररेखा उद्यान में पुष्प इकट्ठा कर रही थी। पुष्पिका के आ जाने से उसका बढ़ गया था। चन्द्रा के लिए जिन पुष्पों को चुनती उसी तरह के पुष्प पुष्पिका के लिए भी। वही पुष्पिका और चन्द्रा के बीच संवाद सूत्र का भी काम करती। सूर्योदय होने में अभी कुछ देर थी। क्षितिज के छोर सिन्दूरी होने लगे थे। कुसुमित पुष्पों की सुगन्ध से उद्यान सुवासित था। चित्ररेखा ने दृष्टि घुमाई तो चन्दन पीछे खड़ा था। ‘मैं कुछ सहायता करूँ,’ उसने कहा। ‘पुष्प मुझे ही चुनना है इसमें सहायता की कोई आवश्यक ता नहीं। तुम्हें ...Read More
कंचन मृग - 37. न बहुत निकट न दूर
37. न बहुत निकट न दूर- महारानी मल्हना ने महाराज से अनुमति ले मन्त्रणा के लिए मन्त्रियों एवं अधिकारियों आमन्त्रित किया। महाराज परमर्दिदेव, महारानी मल्हना, चन्द्रा ब्रह्मजीत , माण्डलिक, उदयसिंह, जगनायक, धर्माधिकारिन सहित महासचिव देवधर मन्त्रणा कक्ष में आसीन हुए। विशेष आमन्त्रित में कुँवर लक्ष्मण राणा भी उपस्थित थे। महारानी ने महासचिव देवधर से प्रकरण रखने के लिए इंगित किया। मन्त्री माहिल को इस मन्त्रणा से अलग रखा गया। महासचिव देवधर ने गुप्तचरों से प्राप्त सूचनाओं को क्रमवार रखा। महाराज पृथ्वीराज महोत्सव के साथ निर्णायक युद्ध की तैयारी कर रहे हैं, यह जानकर सभा चिन्तित हुई। ‘‘क्या कोई ऐसा ...Read More
कंचन मृग - 38. कच्चे बाबा की व्यथा
38. कच्चे बाबा की व्यथा- कच्चे बाबा आज अत्यन्त व्यथित हैं। जब से उन्होंने सुना है कि चाहमान नरेश चन्देलों से निर्णायक युद्ध करने का व्रत लिया है, उनकी एकान्त साधना प्रायः समाप्त हो गई है। वे बार बार स्मरण करते, जब पश्चिमी सीमाएं अरक्षित हो रही हैं, चाहमान नरेश का यह व्रत संगत नहीं है। उन्होंने कुछ प्रबुद्ध सन्तों को इक्ट्ठा कर इस अभियान को रोकने का मन बनाया। अपने शिष्यों के माध्यम से उन्होंने शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन, नाथ सभी से सम्पर्क साधा पर कोई भी इस कार्य में हाथ डालने को तैयार नहीं हुआ। लूट दस्यु, ...Read More
कंचन मृग - 39. हम कला बेचते नहीं
39. हम कला बेचते नहीं- महोत्सव में भी युद्ध की तैयारियाँ चल रही थीं। सेनाओं का अभ्यास, प्रशिक्षण निरन्तर रहा। रोहित को तो एक क्षण का भी अवकाश नहीं था। शस्त्रों का निर्माण उसी की देखरेख में हो रहा था। अयसकारों की टोलियाँ अत्यन्त उत्साह से अपने कार्य में जुटी थीं। उदयसिंह, ब्रह्मजीत, लक्ष्मण राणा विचार-विमर्श कर रणनीति निश्चित करते और उसी के अनुरूप तैयारियों को अन्तिम रूप देते। महाराज परमर्दिदेव और महारानी मल्हना भी समीक्षा बैठकों को आहूत कर आश्वस्त होते। विश्वकर्मा पाल्हण के साथ आज कुँवर लक्ष्मण राणा , उदयसिंह, ब्रह्मजीत, चन्द्रा, पुष्पिका खर्जूरवाहक जा रहे हैं। ...Read More
कंचन मृग - 40. कहने को रह ही क्या गया?
40. कहने को रह ही क्या गया? बाबा पारिजात के साथ चलते हुए चन्द के आवास के सम्मुख उपस्थित पारिजात दिल्ली का कण-कण छान चुके थे। कवि चन्द का आवास ढूँढ़ने में उन्हें कठिनाई नहीं हुई। आवास अपनी भव्यता में राजप्रासाद का आभास करा रहा था। द्वार पर एक प्रहरी नियुक्त था। पारिजात ने उसी से चन्द के बारे में पूछा। उसने बताया कि महाकवि माँ शारदा की आराधना हेतु शारदा मन्दिर गए हुए हैं। बाबा पारिजात के साथ तुरन्त शारदा मन्दिर की ओर बढ़ गए। मन्दिर में माँ शारदा की विशाल प्रतिमा देखकर बाबा गद्गद हो गए। उन्होंने ...Read More
कंचन मृग - 41. सुमुखी की खोज
41. सुमुखी की खोज- खर्जूरवाहक से लौटकर उदयसिंह अपने उद्यान में पुष्पिका के साथ बैठे पारिजात और कच्चे बाबा सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे। ‘पारिजात पत्नी सुमुखी का कोई सुराग नहीं लग सका, हमें पता करना चाहिए।’ कान्यकुब्ज से लौटने के बाद उदयसिंह और पुष्पिका दोनों इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें पारिजात का ध्यान ही न आया। आज पुष्पिका द्वारा इंगित करने पर उदयसिंह को चिन्ता हुई। उन्होंने, उठते हुए कहा, ‘पहले पारिजात का घर देख लेते हैं।’ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पारिजात का घर देखकर उदयसिंह विह्वल हो उठे। पड़ोसी भी सुमुखी के बारे में कोई सूचना ...Read More
कंचन मृग - 42. काश, वह बालक होती
42. काश, वह बालक होती- महाराज परमर्दिदेव का मन्त्रणा कक्ष। महारानी मल्हना, कुमार ब्रह्मजीत, मन्त्री देवधर, कंचुकी गदाधर, माण्डलिक उदयसिंह, देवा, कुँवर लक्ष्मण राणा विचार विनिमय हेतु आ चुके हैं। कुछ ही क्षण में आचार्य जगनायक भी आ गए। महामन्त्री देवधर ने महाराज की आज्ञा पाकर युद्ध की तैयारियों का विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने उन सामन्तों एवं का नाम गिनाया जो चन्देलों की सहायता करने के लिये प्रस्तुत थे। युद्ध की तैयारियों से सभी संतुष्ट दिखे। ‘कुँवर ब्रह्मजीत का गौना होना आवश्यक है।’ मल्हना ने कहा। ‘इसी के साथ गौने की भी तैयारी हो’, उदयसिंह ने बात जोड़ी। ‘युद्ध ...Read More
कंचन मृग - 43. पर सिद्धि योग नहीं है
43. पर सिद्धि योग नहीं है- उदयसिंह, देवा और कुँवर लक्ष्मण राणा तापस वेष में सुमुखी की खोज में रहे। चर्मण्वती की वादियों में घूमते हुए एक पहाड़ी पर रात्रि निवास किया। पहाड़ी बहुत ऊँची नहीं थीं। पहाड़ी के ऊपर एक कुंड था। उसका जल निर्मल था। उसी में सायंकाल स्नान कर सन्ध्या वन्दन किया। उदयसिंह ने देवा से ज्योतिषीय गणना करने के लिए कहा। थोड़ी देर तक गणना करने के पश्चात् उन्होंने कहा,’ सुमुखी कहीं निकट ही होनी चाहिए।’’ ‘‘यहीं निकट ही?’‘हाँ’’ ‘तो शीघ्र ही उधर प्रस्थान करना चाहिए।’’ कुँवर लक्ष्मण राणा ने कहा। ‘पर सिद्धियोग नहीं हैं।’ ...Read More
कंचन मृग - 44. वे स्वयं जाएँगे
44. वे स्वयं जाएँगे- चन्द्रिका की मठिया में महारानी मल्हना और चन्द्रा ध्यानस्थ बैठी हैं। माहिल कुछ क्षण बाद पहुँच जाते हैं। महारानी से थोड़ा हटकर वे भी बैठते हैं। माँ चन्द्रिका से निवेदन करते हुए वे रो पड़े।, ‘माँ ऐसा क्या किया है मैंने कि मुझ पर कोई विश्वास नहीं करता? अविश्वसनीय व्यक्ति का जीवन क्या व्यर्थ नहीं हैं माँ? क्या आप चाहती हैं कि मै अपना जीवन समाप्त कर दूँ। मेरा अकेला पुत्र महोत्सव की रक्षा हेतु बलिदान हो गया। मेरे पास क्या बचा है माँ? वंश दीपक देकर भी हम अविश्वसनीय हो गए। माँ, मुझे आज्ञा ...Read More
कंचन मृग - 45. शीघ्रता करो अन्यथा
45. शीघ्रता करो अन्यथा- उदयसिंह , देवा और कुँवर लक्ष्मण राणा अश्वारोहियों का पीछा करने के लिए चले किन्तु होने के कारण वे बहुत पीछे रह गए। दिन निकलने पर वे एक गाँव में पहुँचे। तीन अश्वों को लिया। अश्व यद्यपि बहुत स्वस्थ नहीं थे किन्तु उनकी तीव्र चाल ढाल से उदयसिंह को लगा कि इनसे काम लिया जा सकता है। अब अश्वारोही बहुत दूर जा चुके थे। तीनों यद्यपि रात्रि में जगने के कारण कुछ थकान का अनुभव कर रहे थे, पर अश्वारोहियों को पकड़ने की ललक उनमें स्फूर्ति का संचार कर रही थी। उन्होंने अल्प उपाहार लिया, ...Read More
कंचन मृग - 46. तो कौन बच सकेगा? (भाग-1)
46. तो कौन बच सकेगा? जैसे ही सूचना मिली कि कुँवर उदयसिंह और देवा आ गए हैं, महाराज ने के लिए सभी को बुला लिया। किन स्थितियों में कुमार को प्रस्थान करना पड़ा, महाराज ने स्वयं सभी को बताया। महारानी और चन्द्रा शोक विह्वल थीं। कुँवर लक्ष्मण राणा और उदयसिंह तत्काल जाने के लिए प्रस्तुत हो गए। संकट का समय था, विलम्ब और भी अनिष्टकर हो सकता था। कुँवर और उदयसिंह के साथ कुशल सैनिकों की टोलियां तैयार हुई। अग्रिम दल उनके साथ चल पड़ा। माण्डलिक और महासचिव देवधर के साथ दूसरा दल भी तैयार होने लगा। उदयसिंह ने ...Read More
कंचन मृग - 46. तो कौन बच सकेगा?(भाग-2)
रात्रि में कुँवर, उदयसिंह, देवा, तालन, धन्वा, व्यूह रचना पर विमर्श ही कर कर रहे थे कि रूपन उपस्थित उसने बताया कि कुमार की चिता यहीं जलेगी। माण्डलिक महाराज परमर्दिदेव के साथ प्रातः यहीं पहुचेंगे। सुरक्षा की व्यवस्था हमें करनी है। रातोरात सूखे चन्दन काष्ठ की व्यवस्था की गई। प्रातःहोते होते महाराज परमर्दिदेव, महारानी मल्हना, वेला, माण्डलिक, देवल, सुवर्णा , पुष्पिका कुमार के शव को लेकर युद्ध स्थल पर आ गए। चामुण्डराय को सूचना मिली उसने विघ्न उपस्थित करने का मन बनाया पर महाराज ने रोक दिया। यद्यपि कुँवर और उदयसिंह विघ्न से निपटने की योजना बना चुके थे ...Read More