बालक के माता और पिता, दो पंख ही तो होते हैं उसके, जिनकी सहायता से बालक अपनी बुलन्दियों की ऊँचे से ऊँची उड़ान भर पाता है। एक बुलन्द हौसला होतें हैं, अदम्य-शक्ति होते हैं और होते हैं एक आत्म-विश्वास, उसके लिये, उसके माता और पिता। आकाश को अपनी मुट्ठी में बन्द कर लेने की क्षमता होती है उसमें। ऊर्जा और शक्ति के स्रोत, सूरज को भी, गाल में कैद कर लेने की क्षमताहोती है बाल-हनुमान में। अदम्य शक्ति और ऊर्जा के स्रोत सूरज और चन्दा तो मात्र खिलौने ही होते हैं बाल-कृष्ण और बाल-हनुमान के लिये। क्योंकि ऊर्जा और शक्ति का अविरल स्रोत होता है उसके साथ, उसके पास, उसके माता और पिता। शिव और शक्ति के इर्द-गिर्द ही तो परिक्रमा करते रहते हैं बाल-गणेश और उनकी कृपा मात्र से ही तीनों लोकों में वन्दनीय हो जाते हैं, पूजनीय हो जाते हैं और प्रथम-वन्दन के योग्य हो जाते हैं बाल-गणेश। इस उपन्यास में पाखी हर घटना का मुख्य पात्र है। उपन्यास की हर घटना पाखी के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। पाखी के पिता सीबीआई अफसर भास्कर भट्ट जी की भ्रष्टाचारी और असमाजिक तत्वों के द्वारा हत्या करा दी जाती है। पाखी किस प्रकार से समाज और कानून की व्यवस्था से लड़ कर उन्हें दण्डित कराती है, अत्यन्त रोचक घटना बन पड़ी है।
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पर-कटी पाखी - प्रस्तावना
प्रस्तावना बालक के माता और पिता, दो पंख ही तो होते हैं उसके, जिनकी सहायता से बालक अपनी बुलन्दियों ऊँचे से ऊँची उड़ान भर पाता है। एक बुलन्द हौसला होतें हैं, अदम्य-शक्ति होते हैं और होते हैं एक आत्म-विश्वास, उसके लिये, उसके माता और पिता। आकाश को अपनी मुट्ठी में बन्द कर लेने की क्षमता होती है उसमें। ऊर्जा और शक्ति के स्रोत, सूरज को भी, गाल में कैद कर लेने की क्षमताहोती है बाल-हनुमान में। अदम्य शक्ति और ऊर्जा के स्रोत सूरज और चन्दा तो मात्र खिलौने ही होते हैं बाल-कृष्ण और बाल-हनुमान के लिये। क्योंकि ऊर्जा और ...Read More
पर-कटी पाखी - 1
1.पर-कटी पाखी. कल से ही तो चालू होने वाले हैं पाखी के प्रिलिम ऐग्ज़ामस्। पढ़ते-पढ़ते मन बदलने के लिये टैरस पर आ गई। ऊपर आकाश पतंगों से अटा पड़ा था और नीचे टैरस लोगों से। ऐसी कोई भी छत न थी जिस पर कि दस-बीस लोगों का जमावड़ा न हो। उत्तरायण का पर्व जो था, अपने चरम पर। और उसके अड़ौस-पड़ौस के सभी लोग अपनी-अपनी पतंगों को ऊँचे से ऊँचा उड़ाने में और दूसरों की पतंगों को काटने में प्रयत्न-शील थे। सभी ओर से बस एक ही तो आवाज़ आ रही थी और वो थी, वो काटा..., वो काटा... ...Read More
पर-कटी पाखी - 2 - अपना ही प्रतिविम्ब.
2. अपना ही प्रतिविम्ब. अपना ही प्रतिविम्ब तो दिखाई दे रहा था पाखी को, इस बेचारी, बेवश, विवश और *पर-कटी चिड़िया* में। हाँ, अपना ही प्रतिविम्ब। कुछ इसी तरह से तो, पाखी का भी एक पर कट गया था। अभी, कुछ दिन पहले ही। जब पाखी के पापा का रोड-ऐक्सीडेन्ट हो गया था। और रोड-ऐक्सीडेन्ट ही क्यों, अगर इस घटना को फुटपाथ-ऐक्सीडेन्ट कहा जाय तो ज्यादा उचित होगा। फुटपाथ पर ही तो चल रहे थे पाखी के पापा। रोज़ की तरह ही तो गये थे वे अपने मित्र डॉक्टर गौरांग पटेल के साथ, सुबह-सुबह मॉर्निंग-वॉक पर। और तभी किसी ...Read More
पर-कटी पाखी - 3 - सुरक्षा-कवच.
3. सुरक्षा-कवच. अपनी *पर-कटी चिड़िया* की सुरक्षा और सुरक्षित स्थान को लेकर पाखी बहुतचिन्तित थी। वह एक ऐसे स्थान तलाश में थी जहाँ उसकी *पर-कटी* को सम्पूर्ण-सुरक्षा मिल सके और उसकी उचित देखभाल भी हो सके। और जब उसके मन में सम्पूर्ण-सुरक्षा और सुरक्षा-कवच का ख्याल आया तो उसे पक्षियों के पिंजरे से अधिक सुरक्षित और दूसरा कोई भी स्थान नज़र नहीं आया। जिसमें बन्द होने के बाद, पक्षीस्वयं में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाता है और फिर उसे किसी भी सुरक्षित स्थान पर रखा जा सकता है। वहाँ पर उसके लिये दाना-पानी आदि की व्यवस्था भी की ...Read More
पर-कटी पाखी - 4. नया ठिकाना.
4. नया ठिकाना. -आनन्द विश्वास आज स्कूल में भी सारे दिन उदास ही रही पाखी। शायद उसे अपनी कम अपनी *पर-कटी* की चिन्ता कुछ ज्यादा ही सता रही थी। उसे रह-रह कर यही ख्याल आ रहा था कि वह किस प्रकार से, और कैसे कर सकेगी अपनी *पर-कटी चिड़िया* की उचित सुरक्षा-व्यवस्था। उसने अपने प्रिलिम-ऐग्ज़ामस् तो दिये, पर बे-मन और बिना पढ़े ही। रात भर तो बीता था उसका जागते ही जागते अस्पताल में अपनी *पर-कटी चिड़िया* की देख-भाल में और रिसेस में भी उसका नाश्ता करने का मन ही नहीं हुआ। भूख न लगने का कारण भी समझा ...Read More
पर-कटी पाखी - 5. बात उस दिन की.
5. बात उस दिन की. -आनन्द विश्वास आज पिंजरे भी वही हैं,अस्पताल भी वही है और उन पिंजरों के के स्थान भी वही हैं। सब कुछ तो वही है। बिलकुल वैसा का वैसा ही, पहले जैसा ही। पर हाँ, बदल गये हैं तो बस, पिंजरे के अन्दर के पक्षी, और बदल गये हैं पाखी और पलक के आदर्श, सिद्धान्त और उद्देश्य भी। पहले इन पिंजरों में कभी तोते हुआ करते थे। जो हर किसी आते-जाते को राम-बोलो,राम-बोलो,बोला ही करते थे और जिनकी प्यारी-प्यारी मधुर कर्ण-प्रिय आवाज को सुनकर, हर किसी के चहरे पर हल्की-सी स्मित या मुस्कान तो आ ...Read More
पर-कटी पाखी - 6. पुलिस की तफ्शीस
6. पुलिस की तफ्शीस -आनन्द विश्वास माननीय न्यायालय के आदेश का तत्काल असर से पालन किया गया और सीबीआई भास्कर भट्ट जी की मौत की गुत्थी को सुलझाने और अपराधियों को पकड़कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे तक पहुँचाने की महत्व-पूर्ण जबाबदारी पुलिस-विभाग के सीनियर कर्तव्य-निष्ठ पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर को सौंपी गई और साथ ही विभाग द्वारा उन्हें हर प्रकार की सुविधा, सहायता और सहयोग भी प्रदान किया गया। घटना-स्थल से प्राप्त सभी आवश्यक सामिग्री,तथ्य, सबूत, फ्लॉरेंसिक साइन्स लेबोरेटरी से प्राप्त फिंगर-प्रिंटस्की रिपोर्ट आदि का अध्ययन करने के बाद पुलिस ऑफीसर निष्ठा नायर ने यह उचित समझा ...Read More
पर-कटी पाखी - 7. पतंग वाला.
7. पतंग वाला. -आनन्द विश्वास पाखी के बंगले से तीन बंगले छोड़ कर ही तो है चौथा बंगला, बंगला तेरह। सेठ भगवान दास जी का आलीशान भव्य चार-मंजिला वैभव-शाली बंगला। इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का काम होता है सेठ जी के यहाँ। बहुत पहुँचे हुऐ आदमी हैं सेठ भगवान दास जी। सभी राजनैतिक पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं से ही नहीं बल्कि देश की जानी-मानी हस्तियों और उद्योगपतियों से अच्छे सम्बन्ध हैं इनके। सेठ भगवान दास जी का एक लड़का भी है गोपाल सेठ, उम्र लगभग उन्नीस-बीस साल। कॉलेज के प्रथम बर्ष का स्टूडेन्ट। काफी मोटा होने के कारण लोग उसे गोलू नाम ...Read More
पर-कटी पाखी - 8. फाइल की तलाश.
8. फाइल की तलाश. -आनन्द विश्वास सीनियर सीबीआई ऑफीसर भास्कर भट्ट जी की मौत के बाद सीबीआई ऑफिस में एक सन्नाटा-सा ही पसर कर रह गया था। चपरासी से लेकर ऑफीसर तक, हर एक के मन में केवल एक ही प्रश्न था कि क्या निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्तव्य के पालन करने का यही पुरस्कार होता है जो कि हमारे निष्ठावान ऑफीसर श्री भास्कर भट्ट जी को मिला है। सबको अफ़सोस था अपने निष्ठावान ऑफीसर का, अपने बीच में न होने का। उनकी कमी तो विभाग को हमेशा ही खलती रहेगी। पर फिर भी समय को तो आगे ...Read More
पर-कटी पाखी - 9. न्यायालय से.
9. न्यायालय से. -आनन्द विश्वास लगभग सात साल से ऊपर का समय तो हो गया था, लाखन सिंह और अन्य साथियों पर भ्रष्टाचार और घोटालों से सम्बन्धित केस को चलते-चलते। हजारों-करोड़ रुपये डकार चुके थे नेताजी और उनके साथी। कहीं सरकारी तिजौरी से तो कहीं जनता की गाढ़ी कमाई की जमा राशि से। कहीं पर सरकार को चूना लगाया तो कहीं भोली-भाली जनता को उल्लू बनाया और अपना उल्लू सीधा कर लिया, राजनीति में कुशल चालाक नेता लाखन सिंह ने। पर कानून की दृष्टि से तो सब आरोप ही आरोप थे अभी तक। अभी तक तो उसके निर्णय का ...Read More
पर-कटी पाखी - 10. पर-कटी फुर्र.
10. पर-कटी फुर्र. *पर-कटी चिड़िया* से चिरौंटे के मिलने का सिलसिला आज भी बन्द नहीं हुआ था। हाँ, इतना जरूर था कि कभी कभार चिरौंटे की जगह *पर-कटी* के बेटा-बेटी आ जाया करते थे। शायद उम्र का तकाज़ा रहा हो या फिर कुछ अधिक व्यस्तता। पर सिलसिला तो आज भी जारी था। *पर-कटी चिड़िया* की देखभाल और सेवा-सुश्रुषा में कभी भी कोई कमी नहीं आई। न तो पाखी और पलक की ओर से ही और ना ही चिरौंटे और उसके बेटा-बेटी की ओर से ही। इतना ही नहीं पाखी और पलक के साथ-साथ गोलू, श्रेया और परी का योगदान ...Read More