वह तेज-तेज चलने की कोशिश में हैं, पर अब उन्हें महसूस होने लगा है कि, इस तरह तेज चलना उनके लिए संभव नहीं रहा! पिछले कुछ समय से ऐसा होने लगा है कि तेज चलने की कोशिश में सांस उखड़ने लगती है। उन्होंने चाल धीमी कर दी है! वह मुख्य सड़क पर थोड़ा सा चलकर दायीं तरफ वाली सड़क पर मुड़ जाते हैं! दोनों तरफ आम, जामुन, महुआ के पेड़ों से आच्छादित ये सड़क उन्हें अपने गाॅँव की सड़क की याद दिला देती है।
Full Novel
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 1
वह तेज-तेज चलने की कोशिश में हैं, पर अब उन्हें महसूस होने लगा है कि, इस तरह तेज चलना लिए संभव नहीं रहा! पिछले कुछ समय से ऐसा होने लगा है कि तेज चलने की कोशिश में सांस उखड़ने लगती है। उन्होंने चाल धीमी कर दी है! वह मुख्य सड़क पर थोड़ा सा चलकर दायीं तरफ वाली सड़क पर मुड़ जाते हैं! दोनों तरफ आम, जामुन, महुआ के पेड़ों से आच्छादित ये सड़क उन्हें अपने गाॅँव की सड़क की याद दिला देती है। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 2
तब वो वक्त था जब दंगे फसाद आज की तरह आम बात नहीं थे। इंदिरा गांधी की हत्या और बाद भड़के दंगे ... उस पीढ़ी का पहला त्रासद अनुभव था। पर वो सब सिर्फ खबरों के द्वारा सुना जाता ...पढ़ा जाता था। हमारी कहानी के नायक नायिका दिल्ली से मीलों दूर थे ... और खासतौर पर अप्पी के लिए तो दिल्ली और उसके आस-पास की घटनाओं का उतना ही महत्व था जैसे आज की पीढ़ी के लिए गाजा पट्टी पर चल रहा युद्ध। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 3
उन्होंने तैयार होते हुए शीशे मंे खुद को देखा है...... कितने कमजोर हो गये हैं.... आप। अपना अच्छे से ख्याल रखते.....? लगा अप्पी की आवाज है ये......पता नहीं कब से ऐसा होने लगा है वो अपने आप को अप्पी की नजर से देखने लगे हैं कोई कैसे अनुपस्थित रहते हुए भी हरदम उपस्थित रहता है। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 4
......उन्हे आज भी याद है वो दिन, वो तारीख। इलहाबाद मेडिकल काॅलेज में वो हाउस जाब कर रहे थे..... दिन की ड्यूटी। ऐसे में पोस्टमैन जब वह पत्र देकर गया तो उन्होंने बिना खोले ही उसे टेबल पर रख दिया था। इतनी व्यस्तता रहती थी कि दिमाग ने ये सोचने की जहमत भी नहीं उठाई..... कि लिफाफे में लिखा नाम ’अपराजिता राव’ कौन है भला। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 5
अपराजिता जी नमस्कार। आपका पत्र मिला, विलम्ब के लिए माफी चाहता हूॅँ। पत्र पढ़ के काफी हर्ष हुआ यह जान के भी हुई कि जिसे हम अच्छी तरह जानते न हो..... उसपे मेरा इतना प्रभाव पड़ सकता है। आपका पत्र पढ़ के तो कोई भी प्रभावित हो जायेगा। मैं तो जरूर आपकी खुशी चाहूॅँगा..... इसलिए आपको पत्र लिख रहा हूॅँ। हिन्दी में मै बहुत कम पत्र लिखता हूॅँं इसलिए पत्र में गलती होगी तो माफ कीजिएगा। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 6
कदमों की आहट सुनकर......सुविज्ञ ने हड़बड़ा कर डायरी मेज पे रख दी भीतर एक गिल्टी सी महसूस हुई...... बाहर नीरू की चिढ़ी हुई आवाज़ आ रही थी। ‘‘हद है अप्पी..... कितनी देर लगा दी.....’’ ‘’पता है कौन आया है......‘’? .......... ‘’सुविज्ञ भैया आये है.....’’ ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 7
‘‘ तो क्या हुआ.....? अभी हुई तो नहीं......‘‘ सुविज्ञ की आवाज में दृढ़ता थी। ‘‘ सच, आज मझे इस बात विश्वास तो हो ही गया...... के मैनें एक सही और बेहद प्यारे इन्सान से प्यार किया है...... आप कितने नर्म दिल के हैं न..... चलिए अब...... वरना कही मैं सचमुच न आपसे शादी रचा बैठू......‘‘ कहकर अप्पी उठ गई.....नीरू पर नजर पड़ी तो हंसते हुए उसे छेड़ने लगी..... ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 8
सुविज्ञ जब फ्रेश होकर आया तो नीरु और अप्पी तैयार थीं..... अप्पी उसी साड़ी में थी... ऊपर से शाॅल हुआ था उसने! चाय पीते हुए फिर वही बातें..... अप्पी खामोश पर भीतर की कलथन का क्या करे...... मन हो रहा था सुविज्ञ को पकड़ कर रो पड़े ..... न जाने दे उसे कहीं..... चेहरे पर जैसे सबकुछ हृदय का आकर लिख गया था..... बाँच मन की सारी बात..... अभी कुछ क्षण पहले तक कुछ कीमती खो देने के एहसास से भरी तड़प के बाबजूद जो आत्मविश्वास, ऊँचाई, धैर्य...... उसके पोर-पोर में एक उजास की तरह व्याप्त था..... अब उसकी जगह निहायत बेचारगी सिमट आई थी। उसने अपने दोनो हांथों को शाॅल के भीतर यूूँ समेट रखा था ज्यूँ अपने दर्द को समेट रखा हो। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 9
सुविज्ञ की शादी से लौटकर नीरू जब बड़े उत्साह से अप्पी से मिलने हाॅस्टल गई तो अप्पी को गर्दन रजाई लपेटे पड़े पाया। नीरू को देख वह थोड़ी चेती थी .... मुस्कुराई भी थी... पर बोल एक शब्द भी नहीं पाई थी। भयंकर सिरदर्द और तेज बुखार ने उसे पस्त कर दिया था।.... शाम को ही मौसाजी और मौसी जी भी आये ... वार्डन से बातें की और जब वो लोग लौटे तो कार की पिछली सीट पर अप्पी भी मौसी की गोद में सिर धरे पड़ी थी ...। एक-एक करके अप्पी का सारा समान भी हाॅस्टल के कमरे से मौसी की कोठी में आता जा रहा था ... अप्पी आश्चर्य प्रकट करती ... आखिर तबियत संभालते ही उसे हाॅस्टल चले जाना था। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 10
बड़ा ... दिन लगा दी अप्पी बहनी ... सब लोग करीब-करीब आ गये हैं .... आप के मम्मी पापा सुविज्ञ भैया का पूरा परिवार भी। अप्पी ने लक्ष्य किया सुविज्ञ का नाम सुनकर अभिनव के माथे पर बल पड़ गये थे। उसे एकदम से टूर की एक घटना याद हो आई। वह रीमा अभिनव और कुछऐक और लड़के लड़कियाँ सर के साथ मद्रास मंे शाॅपिग करने निकले थे। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 11
नीरू ने अप्पी को देखकर उत्साह दिखाया।टूर की बाते पूछीं ..... क्या-क्या शाॅपिंग की ... क्या - क्या देखा। ही देर अप्पी का मन उकता गया .... जी चाहा अभी उठ कर यहाँ से इस भीड़ भाड़ हज हज से ... इस घर से भाग खड़ी हो.... अच्छा नीरू दी ... मैं सोने जा रही हँू ..... शाम को बात करेंगे ..... ’’ कहकर वह उठ गई। भन्नाई हुई ही वह ऊपर कमरे में पहुँची। जाने कैसी चिड़चिड़ समा गई सुविज्ञ को अपने कमरे में देखकर। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 12
समय तो अपनी गति से चलता ही है ... बीतता भी है। अप्पी अपने रिसर्च वर्क में व्यस्त थी। में उसे एडहाॅक पर नियुक्ति भी मिल गई थी। अभिनव .... कभी इलाहाबाद कभी दिल्ली चला जाता महीने दो महीने के लिए। वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में लगा हुआ था। अप्पी के पापा उसके लिए लड़का तलाश रहे थे ... पर बात कहीं भी नहीं बन रही थी। अप्पी के परिवार में रिश्तेदारी में लड़कियाँ एक-एक कर ब्याही जा रही थीं ... पर, अप्पी का रिश्ता कहीं पक्का नहीं होता। मम्मी का तो चिंता से बुरा हाल ...। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 13
सुविज्ञ जब हाॅस्पिटल से घर आये थे... तो लाॅन में अप्पी को देख जानी कैसी खिन्नता मन में उठी वह सुरेखा के साथ खुश थे..... एक भरे पूरे पन का एहसास, एक निश्चिंतता थी उसके होने पर! पर, ये अप्पी...... इसे देख उनके भीतर एक छटपटाहट सी क्यों मच जाती है.... सब ठीक-ठाक चलता हुआ..... एका-एक अपनी लय खोता हुआ सा क्यों लगता है..... इसी छटपटाहट के साथ पूरी उम्र कैसे गुजारेंगे वो। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 14
अप्पी को लखनऊ से आये हुये महीना भर से ऊपर ही हो गया था..... आते ही अस्वस्थ हो गई शायद मन पर जो बोझ धर लेती है उसका असर तन पर दिखने लगता है..... उसने न तो सुविज्ञ को फोन ही किया इस दौरान न तो खत ही लिखा। हर सुबह एक नामालूम सी उम्मीद जगती शायद आज सुविज्ञ का फोन आ जाये...... पर दिन बीत जाने पर फिर वही उदासी भरी खिन्नता सवार हो जाती उस पर! वह अपने को दपटती.... क्यों उसने ऐसी बेजा ख्वाहिशें पाल रखी हैं...... ये तो अपने को जान बूझकर दर्द के रास्ते पर ले जाना हुआ! एक हफ्ते से मौसा मौसी भी नहीं थे.... गाँव गये थे! अभिनव का भी न कोई फोन न कोई खत ही आया...... सभी व्यस्त हैं..... वही एक खलिहर है..... सबको याद करती हुई पड़ी है! बहुत हुआ..... ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 15
सुविज्ञ ने कार पोर्च में खड़ी की...... अप्पी गेट में ताला बंद कर रही थी......। ’’मैं कर दूँ......’’ सुविज्ञ एक पास आ गये थे.....’’ ’’बस हो गया......’’ अप्पी ने कहा और दोनो साथ ही अंदर आ गये...... अप्पी ने दीवान पर से कुशन मसनद हटाकर तकिया और चद्दर रखा..... किचन में जाकर पानी की बोतल और गिलास लाकर टेबल पर रखा, अपने लिये भी एक बोतल निकाल कर लायी......’’ ’’और कुछ..... चाहिए....’’ उसने पूछा..... ’’नहीं..... ठीक है......’’ सुविज्ञ अपने जूते खोलते हुए बोले! ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 16
अप्पी ने फोन पर ही सुविज्ञ को अपने विवाह की खबर दे दी थी ..... सुनकर कई देर सुविज्ञ रह गये थे ...... फिर बोले थे - ‘‘ काॅग्रेच्युलेशन ’’ अप्पी को उनकी आवाज़ से कुछ पता नहीं चला ...... अप्पी ने शादी का फैसला जल्दबाजी में नहीं किया था ..... शादी तो उसे करनी ही थी। पापा कब से लड़के देख रहे हैं ..... अप्पी ने कभी उन्हें मना नहीं किया ! अपनी एक सेटल लाइफ उसे भी चाहिए ..... शादी न करने की उसके पास कोई स्पष्ट वजह भी तो नहीं.... ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 17
अप्पी इंतजार करती रही अभिनव अब उसे कहेगा.... बहुत हुआ अब कुछ लिखो पढ़ो.... अपनी पी.एच.डी. कम्पलीट करो...। अभिनव उठता.... और ... जब तक आॅफिस न चला जाता, अप्पी एक पैर पर खड़ी होती..... उसके जाने के बाद बाकी का सारा काम समेटना, लंच की व्यवस्था..... सास, ससुर का नाश्ता खाना...... दोपहर दो बजे तक का वह थक कर चूर हो जाती। डेढ़ घंटे ही उसके अपने होते जिसमें वह सुबह का आया अखबार जिसे सबने पढ़कर लावरवाही से इधर उधर डाला होता उन्हें इकठ्ठा कर कमरे में लाकर पलटती और कभी कभी तो उसे भी पूरा न पढ़ पाती और नीद में गर्क हो जाती ! ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 18
अप्पी को डायरी लिखने की आदत थी ... अपनी एहसासात वह डायरी में दर्ज करती रहती थी ..... कभी मुझे में त्वरित उठे विचारों को नोट कर लेती कि बाद में कुछ भूल न जाये। कम से कम लिखने की निरन्तरता तो बनी रहती थी। पर उसका मन रिक्त हो गया था ये जानकर कि उसके पीछे उसकी डायरी .... उसके पत्रों ... कागजो की खोद बीन की जाती है। वह लिखते -लिखते ... सब छोड़ उठ जाती थी ... पर कोई भी मम्मी पापा, भाई बहन ... ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 19
बरसों बरस बीत गये उस बात को पर वो रात कभी नहीं बीती अप्पी के जीवन से। बाद उसके जीवन में कितने-कितने तीखे नुकीले मंजर आये... कुछ बदलता भी कैसे... जब साथ वही था ... वह कुछ नहीं बदल पाई थी ... हाॅँ, उस के भीतर बदल गया था सब... वह कोमल सी चीज भी जो अभिनव के लिए उसके दिल में थी एकायक काछ कर साफ कर दी गई थी .... विडंबना थी कि वह अब भी अभिनव के साथ थी ... जबकि साथ तो उस रात से ही छूट गया था.. तभी से वह अकेली हो गयी थी... निपट अकेली। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 20
अभिनव के स्थानान्तरण होते रहते थे। हर बार नयी जगह, नये परिवेश में जमना .... अप्पी को पसंद था यह उसके मन का जीवन था। अपूर्व बड़ा हो रहा था, अप्पी खाली हो रही थी। अब समय का पहाड़ था उसके पास... खालीपन कचोटता। नींद नहीं आती ... लगता समय व्यर्थ जा रहा है। शुक्र था, तमाम घसर-पसर के बावजूद एक आदत अब भी बदस्तूर जारी थी, किताबे और पत्र पत्रिकायें पढ़ने की। अभिनव तो इससे भी चिढ़ता था जिधर देखो अखबार... किताब, पत्रिकायें.... ठीक से क्यों नहीं रखती इन्हें ...? अप्पी अनुसना कर देती। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 21
ये यही समय है... पूरे विश्व में आंतकवाद नामक फैले जहर का समय... दुनियंाँ का कोई कोना न तो बचा है न कोई कौम। हर एक अपनी कौम का वर्चस्व चाहता है... उसे पीड़ित बताता है और प्रतिशोध से भरा हथियार लेकर खड़ा है। कब किस ओर धमाके हो जायें.... पता नहीं। पहले एक निश्चित... वार-जोन होता था..... बैटिल ग्राउंट। आम आदमी उधर का रूख नहीं करता था। उसे उधर नहीं जाना ... उधर युद्ध लड़ा जा रहा है। पर अब है क्या ऐसा ...? सारी दुनियां हो गयी है बैटिल ग्राउंट ....। कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं ...खेल का मैदान हो... पिक्चर हाॅल हो... बच्चों का स्कूल हो या बाजार! माॅल हो या रेलवे स्टेशन .... हवाई जहाज हो या रेलगाड़ी. .... होटल हो या संसद भवन कुछ भी नहीं छूटा ... सब इस युद्ध की जद में है...। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 22
अप्पी के सीने पर बोझ सा था... कुछ छुपाना मतलब कुछ गलत.... उसने तो यही .... जाना था तभी अब तक का उसका जीवन पानी जैसा पारदर्शी था ...। पर अब सब खदबदा गया सा .... कोई मिलावट सी ....कुछ रंग से घुले हुए ... ऐसे में साफ कैसे दिखाई दे कुछ .... अब जीवन के इस मोड़ पर? जिस उम्र में लोग बातें छुपाते हैं... खास तौर पर प्रेम की बातें.... उस उम्र में अप्पी ने ऐसी कोई तरतीब नहीं की। लोग प्रेम को छुपाते हैं... खासतौर पर उसके जैसी मध्यवर्गीय लड़कियों के लिए प्रेम सेम फिजूल की बकवास से ज्यादा माने नहीं रखती। ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 23
रिफ्रेशर के लिए अप्पी इलाहाबाद थी। संयोग ही था सुविज्ञ परिवार सहित इलाहाबाद आ रहे थे भांजे की शादी ... अप्पी के रिफ्रेशर कोर्स के अन्तिम चार दिन बचे थे ... जब सुविज्ञ ने फोन पर उसे बताया था...‘‘हम मिल सकते हैं..।’’ ‘‘नहीं।’’ अप्पी ने कहा था... ‘‘क्यो जान.? फिर पता नहीं कब मौका मिले।’’ ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 24
मिनाक्षी देख रही थी सामने काउच पर गहरी नींद में डूबी अप्पी को! एक हाथ गाल के नीचे दबाये......! बच्चो सरीखा निर्विकार चेहरा.....इस उम्र में भी चेहरे पर एक दूधिया शांति ! ये कैसे ऐसी निश्चित हो सकती है......? ...Read More
तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 25
उपसंहार कल शाम में आयी डाक सुविज्ञ के चेम्बर में उनके टेबल पर बायीं ओर की टेª में अन्य लिफाफों साथ रखी थी। सफेद लम्बे लिफाफे पर नजर पड़ते ही... अप्पी। दिमाग में कौधा... हाॅँ, अप्पी का ही खत था ये ....। उन्होंने उसे बिना खोले ही मेज की दराज में डाल उसे लाॅक कर दिया था.. उम्र के इस पड़ाव पर भी अप्पी का पत्र उनमें अतिरिक्त कुछ संचारित तो कर ही देता है... यह अतिरिक्त कुछ पता नहीं रोमांच है ... भय है या फिर कुछ ऐसा जो अब भी अनाम है। ...Read More