दोपहर के तीन बज रहे थे। सूर्य का तेज मध्यम हो चला था। पर सड़कों पर अभी लोगों का आना जाना न के बराबर है। कोई कोई व्यक्ति किसी मजबूरी के चलते ही बाहर निकलने की हिम्मत दिखा पा रहा था। सुबह नौ बजे से अबतक सूर्य ने अपनी गर्म किरणें धरती पर तरकश के तीरों की तरह बरसा रखी थी। धरती तप कर लाल हो गई थी। जमीन पर पांव पड़ते ही पैर जल जाने निश्चित थे। ऐसे में यह अर्दली पाइप लेकर थाने के बाहर पानी से छिड़काव कर रहा था कि एक युवक साइकिल चलाते हुए आया और सीधे बरामदे में मेज सजाए बैठे सिपाही के पास जा पहुंचा । साहब साहब मेरे से एक बंदा मर गया।। यकीन करो साहब मैंने मारना नहीं था। वह खुद ही मर गया। साइकिल चलाने के श्रम से उस लड़के की सांस उखड़ रही थी। घबराहट के मारे उसका बुरा हाल हो गया था। इतना बोलते हुए वह बुरी तरह से थक गया, लग रहा था कि अगर दो मिनट और यहां ऐसे ही खड़ा रहा तो गश खाकर नीचे जमीन पर ही गिर पड़ेगा। उसने संभलने के लिए मेज का सिरा पकड़ लिया और लंबी सांसें लेकर खुद को संभालने का प्रयास किया।
पथरीले कंटीले रास्ते - 1
पथरीले रास्ते का जंगल 1 दोपहर के तीन बज रहे थे। सूर्य का तेज मध्यम हो चला था। सड़कों पर अभी लोगों का आना जाना न के बराबर है। कोई कोई व्यक्ति किसी मजबूरी के चलते ही बाहर निकलने की हिम्मत दिखा पा रहा था। सुबह नौ बजे से अबतक सूर्य ने अपनी गर्म किरणें धरती पर तरकश के तीरों की तरह बरसा रखी थी। धरती तप कर लाल हो गई थी। जमीन पर पांव पड़ते ही पैर जल जाने निश्चित थे। ऐसे में यह अर्दली पाइप लेकर थाने के बाहर पानी से छिड़काव कर रहा था ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 2
पथरीले कंटीले जंगल 2 लङके को उस बैंच पर बैठे बैठे आधे घंटे से ज्यादा हो गया । इस समय दीवार से सिर टिकाये , आँखे बंद किये अपनी ही सोचों में खोया हुआ था । मुंशी ने सिर उठाकर घङी देखी । चार बजने को हैं । अभी साहब आते होंगे । चार और सवा चार के बीच किसी भी समय आ टपकते हैं । उसने मेज पर बिखरी फाइलें एक ओर सरका कर एक के ऊपर एक करके टिकाई । एक फाइल खोल कर मेज पर टिकाकर उस पर पैंसिल टेढी करके रखी । ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 3
3 अभी तक आपने पढा , एक सीधा सा लङका रविंद्र सिंह गाँव चक्क राम सिंह में रहता । कालेज में पढता है । पुलिस में भर्ती का टैस्ट पास कर चुका है और इंस्पैक्टर बनने के सपने देख रहा है कि उसके हाथ से एक मर्डर हो जाता है । वह थाने में पेश होने जाता है । थानेदार मृतक का नाम सुन के चौंक जाता है । अब आगे ... थानेदार को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । ऐसा कैसे हो सकता है । इकबाल सिंह जैसे आदमी से दुश्मनी लेने की बात ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 4
पथरीले कंटीले रास्ते 4 लङके को थाने के लाकअप में छोङकर सिपाहियों को सतर्क रहने का हुक्म थानेदार सरकारी जीप में सवार हुआ और दस मिनट ही लगे होंगे कि वह आदेश अस्पताल के दरवाजे पर जा पहुँचा । उसने ड्राइवर को गाङी एक कोने में लगाने का आदेश दिया और उतरने के लिए दरवाजा खोला ही था कि परिसर में झुंड बनाकर खङे पत्रकारों में से एक पत्रकार की नजर उस पर पङ गयी । वह अपने कैमरामैन के साथ उसकी दिशा में भागा । तब तक थानेदार जीप से बाहर आया ही था कि ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 5
पथरीले कंटीले रास्ते 5 वह रात सब पर भारी गुजरी । इकबाल सिंह और उसके परिवार को तक विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनके साथ इतना बङा हादसा हो सकता है । उनका जान से प्यारा बेटा जिसको लेकर उन्होंने कई सुनहरे सपने देखे थे , अचानक उन्हे बीच रास्ते छोङकर चला गया । जैसे ही उन्हें बेटे की याद आती , वे रह रह कर सिसकियाँ भरने लगते । उनकी पत्नि की हालत उनसे कहीं ज्यादा खराब थी । उसे बार बार दंदौन लग जाती । दाँत भिंच जाते । बेहोश हो हो जाती ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 6
पथरीले कंटीेले रास्ते 6 केस तो शीशे की तरह साफ था । अपराध के बारे में पूछताछ की कोई गुंजाइश न थी फिर भी पुलिस रिमांड तीन दिन की मिल गयी थी तो कोर्ट की पेशी के बाद रविंद्र को एक बार फिर से थाने में ले आया गया । उसे लाकअप में छोङ सिपाही चाय पानी पीने इधर उधर हो गये थे । थानेदार थोङी देर अपनी कुर्सी पर बैठकर कुछ कागज वगैरह देखता रहा फिर अपने घर चला गया । रविंद्र अपनी उस 6 * 8 की कोठरी में जमीन पर बैठकर अपनी स्थिति ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 7
पथरीले कंटीले रास्ते 7 बग्गा सिंह घर तो जैसे तैसे पहुँच गया पर उसका सारा ध्यान में ही लगा था । हालांकि पुलिस की उसके साथ पूरी हमदर्दी थी पर घर तो घर होता है न और रविंद्र दो दिन से घर से दूर था । रोटी भी पता नहीं उसने खाई या नहीं । थाने में कैसे रात में सोया होगा । जमानत ही हो जाय तो इससे आगे का अगला कुछ सोचा जाय । हालांकि वकीलों ने पूरा होंसला दिया है कि रविंद्र को कम से कम सजा होगी । नहीं भी हो सकती ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 8
पथरीले कंटीले रास्ते 8 इसके अगले दो दिन बग्गा सिंह के भाग दौङ में ही बीते वह कभी गाँव के सिरमौर लोगों से मिलने जाता , उनके पैर पकङता । कभी थाने में रविंद्र से मिलने जाता । वहाँ पुलिस वालों की मिन्नत तरला करता कि रविंद्र का पूरा ध्यान रखें । उसे कोई तकलीफ न होने पाए । फिर वकीलों से मिलता कि उसके बेटे को सजा से छुङा लें । बरी हो जाय बेटा । इसके लिए अपनी तीन किल्ले पुश्तैनी जमीन बेच देगा वह । जमीन का क्या है , फिर बन जाएगी ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 9
पथरीले कंटीले रास्ते 9 रानी और बग्गा सिंह दोनों काफी देर तक जीप को जाते हुए देखते रहे जीप सङक का मोङ मुङ गयी और जाते जाते अपने पीछे धूल का गुबार छोङ गयी । उस धूल में सब कुछ आँखों से ओझल हो गया । जीप और उसके सिपाही भी और हथकङी में बंधा रविंद्र भी । पीछे बची रही तो सिर्फ धूल जो आँखों और नाक में भीतर तक समा गयी थी और अब आँखों में रङक रही थी । वहां से दोनों कचहरी के परिसर में ही एक कोने में लगे नल पर हाथ मुँह ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 10
पथरीले कंटीले रास्ते 10 यह जेलर साहब का आफिस था । बङा सा हालनुमा कमरा । सामने की दीवार पर महात्मा गाँधी , भीमराव अम्बेडकर और प्रधानमंत्री के बङे बङे चित्र लगे थे । प्रधानमंत्री की तस्वीर के ऐन नीचे एक रिवाल्विंग कुर्सी लगी थी । कुर्सी के आगे एक बङी सी मेज सजी थी । इस मेज पर एक ओर दो प्लास्टिक की ट्रे में कई ऱाइलें सजी थी । सामने दो काँच के गिलासों में पानी भरा था और ये दोनों गिलास बाकायदा ढक कर रखे गये थे । उनके सामने एक छोटा ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 11
पथरीले कंटीले रास्ते 11 केंद्रीय जेल का पहला फाटक था हरी भरी फुलवारी , रंग बिरंगे गेंदे गुलाब , डेलिया के फूलों से मह मह करती क्यारियों से सजे मैदान वाला । चारों ओर बिछी हरी हरी घास पर भरपूर पानी का छिङकाव किया गया था । सुंदर पार्क बने थे । जहाँ तहाँ सात आठ लोग इन क्यारियों में काम कर रहे थे । दूर दूर तक फूल ही फूल । खुशबू ही खुशबू । इस हरियाली को पार करते ही सामने था बहुत बङे गेट वाला एक और फाटक । रखवाली के लिए तैनात थे ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 12
पथरीले कंटीले रास्ते 12 रविंद्र को झाङू दिखाकर वह कैदी तो चला गया पर रविंद्र काफी देर सा खङा सोचता रहा कि क्या करे , कहाँ से शुरु करे । हर तरफ गर्दे के अंबार लगे थे । धूल मिट्टी से अटा पङा था पूरा कमरा । हालांकि कमरा बहुत छोटा सा था । मुश्किल से 8 *10 या 11 का होगा पर उसने तो कभी कसम लेने को भी झाङू न उठाई थी । कभी नौबत ही न आई थी । बी जी खुद ही सारा दिन लगी रहती । ठीक होती तब तो उन्होंने ही ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 13
पथरीले कंटीले रास्ते 13 बैरक की साफ सफाई निपट चुकी थी । रविंद्र और नरेश आपस में बातें कर थे । नरेश ने अपने अतीत के बारे में बताना शुरू किया ही था कि कैसे हालात से मजबूर होकर एक साधारण सीधा सादा आदमी चोर बन गया । रविंद्र उसके बारे में और विस्तार से जानना चाहता था कि घंटा दूसरी बार बजा । अचानक अलग अलग दिशाओं से कैदी लपकते हुए आते दिखाई दिये । सब हङबङी में थे । लगभग भागते हुए सारे कैदी जल्दी से जल्दी मेस में पहुँच जाना चाहते थे । कुछ नलके ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 14
पथरीले कंटीले रास्ते 14 अभी तक आपने पढा ... बठिंडा के आंचल में बसे गाँव चक राम सिंह का रविंद्र पाल सिंह बठिंडा कालेज से एम ए कर रहा था । साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ भी दे रहा था । आँखों में कई सुनहरे सपने झिलमिलाने लगे थे । एक दिन रोज की तरह वह रामपुरा बसस्टैंड पर उतरा । पानी पीने के लिए हैंडपम्प पर गया कि उसने देखा कि शैंकी और उसके दोस्त उसके दोस्त सरताज को घेर कर हाकियों , लाठियों से बुरी तरह से पीट रहे थे । रविंद्र ने टोका तो उन ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 15
पथरीले कंटीले रास्ते 15 रविंद्र से आगे आगे कुछ कदमों की दूरी पर काम करने वाले लोगों की टोलियाँ जा रही थी । उसने अपनी चाल तेज की । तेज कदम चलते हुए वह भी इन लोगों से जा मिला । करीब पंद्रह मिनट चल कर ये लोग एक बगीची में पहुँचे । फूलों की क्यारियों में इस समय सूरजमुखी , डहेलिया , गेदा , गुड़हल , बालसम , गैलार्डिया के फूल खिले हुए थे । सूरजुमखी के फूल सूरज की ओर मुख किये उसकी स्वर्ण रश्मियों के सुनहरे रस के रसपान से स्वयं को तृप्त कर ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 16
पथरीले कंटीले रास्ते 16 खाने में आज कढी चावल बने थे । सबको चावल के साथ तीन रोटी मिली । बाकी कैदी बाहर को चले तो वह भी रोटी डलवा कर बाहर पेङ के नीचे आ गया । पेङ की पत्तियां और डालियाँ थोङी थोङी देर में हिलती तो हवा का झोंका बदन को छू जाता । उसने खाना शुरु किया ही था कि प्लास्टिक का चम्मच पहले ग्रास में ही टूट कर दो टुकङे हो गया । वह बेबस सा इधर उधर देखने लगा । आसपास कई कैदी हाथों से खा रहे हैं । उंगलियाँ ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 17
पथरीले कंटीले रास्ते 17 फूलों में से झांकता हुआ गुणगीत का खिला हुआ गुलाब जैसा चेहरा उसे देकर अपनी ओर खींच रहा था । उसकी मादक मुस्कान उसे घायल कर रही थी कि वह बेबस हो गया । उसे छूकर देखने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढाया ताकि वह गुणगीत का आगे बढा हुआ हाथ थाम ले पर हाथ जा लगा उस जेल की तंग कोठरी की दीवार से । हाथ शायद जोर से दीवार से टकराया था । वह दर्द से बिलबिला उठा । एक झटके से उसकी नींद टूट गयी । उसने आँखें ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 18
पथरीले कंटीले रास्ते 18 बग्गा सिंह पिछले दस दिन से गवाह जुटाने के लिए कोशिश कर रहा पर इकबाल सिंह का आतंक बिना कहे ही इतना था कि कोई भी गवाही के लिए तैयार नहीं हो रहा था । जिससे भी बात की जाती , वही कहता कि उसने कुछ नहीं देखा । उसे तो पता ही नहीं चला कि कब कितना बङा कांड हो गया । वह तो जब सारे लोग दुकानों से निकल निकल कर बस अड्डे की ओर भागे तब वह भी देखने गया था । वहाँ पर खून में लथपथ शैंकी सङक पर ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 19
पथरीले कंटीले रास्ते 19 बस में खङे खङे उसकी टाँगे दुखने लगी थी । वह कभी एक पर खङे होने की कोशिश करता कभी दूसरी पर । बस में दोनों टांगे एक साथ नीचे टिकाने की सुविधा कहाँ थी । एक सवारी उतरती तो चार चढ जाती । आखिर बस रामपुरा के बस अड्डे पर पहुँची । सवारियाँ उतरने लगी तो वह भी उतरने के लिए दरवाजे की ओर बढा । नीचे खङी सवारियाँ बस में चढने के लिए उतावली हो रही थी और धक्का मार कर भीतर बढी चली आ रही थी । वह दरवाजे में ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 20
पथरीले कंटीले रास्ते 20 रविंद्र का दुनिया में आना बङी धूमधाम से मनाया गया था । ने आँगन में सुमंगला औरतों को बुलाकर सोहर और घोङियाँ पूरे इक्कीस दिन गँवाई थी । सबको हर रोज पाँच बङे पतासे दिये जाते । लोग बधाई देते तो दो लड्डू खाने को मिलते । सब मिठाई खाकर दुआएँ देते हुए विदा होते । खुसरों ने नाच नाच कर आँगन में धूल उङा दी थी । इतने वारने हुए थे कि ले रब का नाम । चमेली ने अपने आँचल में उसे लेकर जब लोरी गाई तो बापू जी ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 21
पथरीले कंटीले रास्ते 21 बग्गा सिंह की सारी रात आँखों में ही कटी । तरह तरह की उसे परेशान किये रही । वह कभी लेट जाता , कभी उठ कर बैठ जाता । कभी इस करवट लेटता , कभी उस करवट । करवट बदल बदल कर वह थक गया । लग रहा था कि आज की रात कभी खत्म ही नहीं होगी । बेटे को करीब दस दिन हो गये थे देखे हुए । पता नहीं किस हाल में होगा । भोर में ही वह उठ कर बैठ गया । अभी गुरद्वारे में भाई जी ने ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 22
पथरीले कंटीले रास्ते 22 इंतजार को कातिल और कयामत किसी ने ऐसे ही नहीं कहा । इंतजार घङियाँ बङी सुस्त होती हैं । इतना धीरे चलती हैं कि कभी खत्म होने में ही नहीं आती । जिसको किसी का इंतजार करने पङे , वही जानता है कितना तकलीफदेह होता है किसी का इंतजार करना । हर पल लगता है , सांसे रुक जाएंगी । काश इसे पंख मिले होते तो कितनी जल्दी बीत जाता । बग्गा सिंह को वहाँ खङा करके वकील गायब हो गया था । बग्गा सिंह को लग रहा था जैसे से यहाँ आये ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 23
23 कमरे में आये हुए उसे काफी देर हो गयी थी । ज्यों ज्यों वक्त बीत रहा था उसकी घबराहट बढती जा रही थी । क्या आज उसे बेटे से बिना मिले ही लौटना पङेगा । पाँच बजते ही मुलाकात का समय समाप्त हो जाता है । उसके बाद यहाँ किसी की मुलाकात नहीं होती और जिस तरह से वह दोपहर का आया अभी तक बेटे की एक झलक तक नहीं देख पाया , पाँच बजने में कितनी देर लगेगी । वह उठ कर बाहर के कमरे में खङे सिपाही के पास गया – हुजूर मेरा बेटा ...Read More
पथरीले कंटीले रास्ते - 24
24 जेल के उस मुलाकात के कमरे में बग्गा सिंह अपने बेटे के साथ दुख सुख बाँट रहा । बारह तेरह दिन बाद उसे बेटे से मिलने का अवसर मिला था और वह इस अवसर का पूरा पूरा लाभ उठाना चाहता था । इस बीच सिपाही दो बार आकर कमरे में झांक गये थे । बग्गा सिंह का मन अभी भरा नहीं था । उसे लग रहा था कि बेटे से आज पहली बार मुलाकात हो रही है । इससे पहले उसने इस बेटे को कभी देखा ही नहीं । कभी जाना ही नहीं । घर में ...Read More