निरुत्तर

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वंदना एक बहुत ही कुशल प्रेरक वक्ता थी। वह अपने प्रेरणात्मक भाषणों से समाज को एक नई दिशा देने की जवाबदारी लेना उसका कर्तव्य समझती थी। लोगों को उसकी कही बातें बहुत अच्छी लगती थीं। लेकिन प्रश्न यह था कि उनमें से कितने लोग उन बातों को अपने जीवन में अपनाते हैं या उस हॉल से बाहर निकलते ही सब हवा के साथ उड़ाकर अपने घर लौट जाते हैं। वंदना केवल लिखती ही नहीं थी, वह जो भी लिखती थी उसे ख़ुद के जीवन में शामिल भी करती थी। इसीलिए उसका स्वयं का घर सुख और शांति का सुंदर मंदिर बन गया था। आज छुट्टी का दिन था और वंदना को सुबह से ही अपनी माँ कामिनी की बहुत याद आ रही थी। उसने सुबह-सुबह अपने घर के सारे काम निपटाना शुरू कर दिया। सात बजते ही उसने अपने पति राकेश को खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ उठाते हुए आवाज़ लगाई, “राकेश … राकेश … उठो ना … देखो मैं चाय लेकर आई हूँ।”

Full Novel

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निरुत्तर - भाग 1

वंदना एक बहुत ही कुशल प्रेरक वक्ता थी। वह अपने प्रेरणात्मक भाषणों से समाज को एक नई दिशा देने जवाबदारी लेना उसका कर्तव्य समझती थी। लोगों को उसकी कही बातें बहुत अच्छी लगती थीं। लेकिन प्रश्न यह था कि उनमें से कितने लोग उन बातों को अपने जीवन में अपनाते हैं या उस हॉल से बाहर निकलते ही सब हवा के साथ उड़ाकर अपने घर लौट जाते हैं। वंदना केवल लिखती ही नहीं थी, वह जो भी लिखती थी उसे ख़ुद के जीवन में शामिल भी करती थी। इसीलिए उसका स्वयं का घर सुख और शांति का सुंदर मंदिर ...Read More

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निरुत्तर - भाग 2

अपनी माँ से मिलने की ख़ुशी में वंदना फटाफट तैयार हो गई। उसके बाद वह राकेश के साथ अपनी और भैया भाभी को सरप्राइज देने के लिए उनके घर के लिए रवाना हो गई। घर पहुँचते ही कार से उतरते समय वंदना ने राकेश से कहा, “राकेश, हमें देखकर माँ कितनी ख़ुश हो जाएगी ना।” “हाँ वंदना माँ के लिए बेटी का ससुराल से मायके आना, बहुत ही ख़ुशी के पल होते हैं जिसका उन्हें हमेशा ही इंतज़ार रहता है।” “राकेश हमारी अम्मा मुझे कभी भी मना नहीं करतीं, हमेशा ख़ुशी से भेज देती हैं।” “वंदना ...Read More

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निरुत्तर - भाग 3

वंदना के मायके में इस तरह का गंभीर माहौल देखकर राकेश को समझ नहीं आ रहा था कि वह करे। इस समय वहाँ पर अपनी उपस्थिति से वह बहुत असहज महसूस कर रहा था। दर्द से भरे शब्दों में वंदना ने कहा, “भैया अभी तो केवल एक ही वर्ष हुआ है तुम्हारा विवाह को। इस एक वर्ष में तुमने अपनी माँ के 26 वर्ष कैसे भुला दिए? उनके लाड़ दुलार, उनके तुम्हारे पीछे भागते रहने के सारे लम्हे तुम्हारी आँखों से कैसे ओझल हो गए? काश तुमने पहले ही बार में विशाखा का मुँह बंद कर दिया होता तो ...Read More

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निरुत्तर - भाग 4

विशाखा अब आज़ाद थी। उसे तो कामिनी के जाने का ज़्यादा अफ़सोस भी नहीं था। दो-तीन दिन के बाद वह अपने पति प्रकाश के साथ उसके मायके आई। दरवाज़े पर दस्तक की आवाज़ सुनते ही विशाखा की भाभी मधु ने लपक कर दरवाज़ा खोला। विशाखा और प्रकाश को अपने सामने देखते ही मधु के होश उड़ गए। उसने कहा, “अरे दीदी अचानक?” “हाँ भाभी, मम्मा पापा की बहुत याद आ रही थी सोच रही हूँ थोड़े दिनों के लिए उन्हें मेरे साथ ले जाऊँ। उन्हें भी थोड़ा चेंज मिल जाएगा।” विशाखा के बोले यह शब्द काफ़ी थे, मधु का ...Read More

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निरुत्तर - भाग 5

विशाखा के माता पिता की प्रकाश के घर आकर रहने की ख़बर दो-तीन दिन के अंदर ही वंदना और के पूरे परिवार तक भी पहुँच गई। यह ख़बर सुनने के बाद कि विशाखा के माता-पिता वृद्धाश्रम में थे और वह वहाँ से उन्हें अपने साथ ले आई है; वंदना का मन मान ही नहीं रहा था, उसे लग रहा था कि अब एक बार उसे विशाखा और प्रकाश से मिलना चाहिए।उसने राकेश से अपने मन की बात कही तो राकेश ने कहा, “क्या करना है वंदना, अब रहने दो।” कामिनी ने सुना तो उन्होंने कहा, “वंदना जाने दे बेटा। ...Read More

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निरुत्तर - अंतिम भाग

विशाखा अब वंदना की ज़ुबान से निकले कड़वे शब्दों को सुनकर मन ही मन पछता रही थी कि यह क्या कर डाला। उसे अपनी सास कामिनी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए था।विशाखा की माँ उर्वशी ने कहा, “वंदना बेटा तुम्हारी हर बात सोलह आने सच है। विशाखा ने गलती की। हमने उसकी गलती को बढ़ावा दिया शायद अपने स्वार्थ की ख़ातिर कि यहाँ हम सुख सुविधा से रहेंगे। यह हमारी गलती है बेटा।” विशाखा ने हिम्मत करते हुए कहा, “हाँ वंदना मुझे माफ़ कर दो।” वंदना ने कहा, “आंटी जी मैं इस समय प्रेगनेंट हूँ पर डरती हूँ; ...Read More