सर्कस

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हम लोग हमेशा सर्कस से जुडे हुए लोगों के जीवन के बारे में, जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते है। उनका खानाबदोशजीवन, मंच पर अभिनय, साहसिक खेल, जानवरों की दुनिया, रोज की तालियाँ, लेकिन जिंदगी उतनी ही खतरों और कठिनाइयों से भरी। वैसे देखा जाए तो दुनिया के हर आदमी के उपर किताब बन सकती है। लेकिन सर्कस का अनोखा जीवन सबको लुभाता है। सर्कस के बारे में जो कुछ लिखा है वह जानकारी इंटरनेट से संकलित की है। इस किताब के सभी पात्र और घटनाएँ काल्पनिक है। सिर्फ भोपाल वायु दुर्घटना हादसे का सबके उपर क्या असर हुआ होगा इसका थोडा जिक्र किया है।

Full Novel

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सर्कस - 1

मन की बात हम लोग हमेशा सर्कस से जुडे हुए लोगों के जीवन के बारे में, जानने के बहुत उत्सुक रहते है। उनका खानाबदोशजीवन, मंच पर अभिनय, साहसिक खेल, जानवरों की दुनिया, रोज की तालियाँ, लेकिन जिंदगी उतनी ही खतरों और कठिनाइयों से भरी। वैसे देखा जाए तो दुनिया ...Read More

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सर्कस - 2

सर्कस : २ शाम का वक्त था। सभी काम से घर लौट आ गए। घर में बच्चों शोर, पुरुष वर्गों की आपस में बातचित, दादा-दादी के भजन कीर्तन, रसोई से महिलाओं की आवाज, बर्तनों के आवाज, वातावरण में फैली भोजन की खुशबू, यह देखते देखते मुझे मजा आने लगा। ...Read More

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सर्कस - 3

सर्कस: ३ सुबह हो गई। एक अलग, अपरिचित उर्जा की लहरें वातावरण को पुलकित कर रही थी। भरे मन को, एक नये लक्ष्य की ओर प्रेरित करने वाले विचारों से अब मैं उत्साहित अनुभव कर रहा था। आज चाचाजी के साथ अरुण वर्माजी से मिलने जाना है, यह ...Read More

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सर्कस - 4

सर्कस : ४ सप्ताह का समापन धमाकेदार रहा। दिल्ली दर्शन, खरिदारी, हॉटेलिंग ऐसी मौज-मस्ती हम भाई-बहन मिलकर कर रहे थे। फिर अल्मोडा जाने से पहले मैं ओैर चाचाजी अरुण चाचाजी से मिलकर आ गए। इस बार दादाजी भी हमारे साथ थे। उन्होंने अरुणचाचाजी से अपने अनुभवों के आधार पर काफी चर्चा ...Read More

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सर्कस - 5

सर्कस : ५ सुबह उठा, तब दिशाएँ हल्के-हल्के खुल रही थी। पंद्रह दिन का शारीरिक ओैर मानसिक अब खत्म हो गया। अब जो था वह आगे एक स्पष्ट खुला क्षितिज। उसके तरफ जाने का रास्ता, कितना भी उबड-खाबड क्यों ना हो मंजिल का पता मालुम होना चाहिए। फिर रास्तें ...Read More

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सर्कस - 6

सर्कस : ६ सुबह जब मैं नींद से जगा, तो आँगन में पेडों की डालियों पर खिले की सुगंध ओैर पेड पर बैठे पंछियों की चहचहाहट सुनकर मन प्रसन्न हो उठा। आज भी मन पर कोई बोझ नही था, तो सुबह खुशनुमा थी। कुछ देर तक ...Read More

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सर्कस - 7

सर्कस : ७ रोज की तरह, आदत के नुसार पाँच बजे नींद खुल गई। उठकर खिडकियाँ दी तो ठँडी हवाँ के झोंके से पुरा कमरा ताजगी से भर गया। सुहावने मौसम से दिन तरोताजा महसुस होने लगा, मन उल्हासित हो उठा। जल्दी-जल्दी सब रोज के कामकाज खत्म कर के मैं ...Read More

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सर्कस - 8

सर्कस : ८ घर में कदम रखते ही सबके जिज्ञासा भरे सवाल शुरू हो गए। मुझे भी अलग दुनिया के किस्से सुनाने में मजा आ रहा था। फिर तरोताजा होते हुए हम खाना खाने बैठ गए, तभी फिर से वही की बातें चलती रही। चाचाजी ने कहा “ श्रवण, तुम थक ...Read More

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सर्कस - 9

सर्कस : ९ आज दिल्ली में हमारा आखरी शो था। तीन दिन के बाद यहाँ से दुसरी जानेवाले थे तो इस समय काम के लिए सर्कस में रहना अनिवार्य था। उसके पहले मेरी तैयारी पूरी हो जानी चाहिए। कल पिताजी भी अल्मोडा से आए थे तो मेरी एक बडी ...Read More

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सर्कस - 10

सर्कस:१० हम लडकों ने पहले ही तय किया था कि अरुण सर जहाँ बैठेंगे उन्ही के अगल-बगल सीट पकडेंगे। हमारे ग्रुप में अब लडकियाँ भी शामिल हो गई थी। उस वजह से सफर का रंग कुछ ओैर ही हो गया। धीरज ने बताया सफर में अरुण सर बहोत नई-नई बाते, कहाँनिया, मजेदार किस्से ...Read More

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सर्कस - 11

सर्कस : ११ सुबह जल्दी ही सब तैयार हो गए। आज सर्कस के मैदान पर जाना था। शहर के बडे मैदान पर सर्कस लगनेवाली थी। शहर का कोई रहवासी जादा तर उस मैदान के तरफ जाता नही था, पर खेल प्रतियोगिता, ऑर्केस्ट्रा, मेले लग जाने के बाद उस ...Read More

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सर्कस - 12

सर्कस : १२ आज से सर्कस के खेल शुरू होने वाले थे। सही मायने में मेरे काम पहला दिन। आदत के नुसार पाँच बजे ही मैं उठ गया। हम लोगों को कमरा मिल गया था, दस लडके उसमें समाए थे। यहाँ आते ही अपनी-अपनी चारपाई, छोटी अलमारी, कमरे में लगा दी थी, ...Read More

13

सर्कस - 13

सर्कस : १३ आज तो मुझे छुट्टी थी, तीन महिने के बाद एक छुट्टी जादा दी जाती। के साथ उस दिन मिटिंग रहती थी। अगले विभाग का चुनाव इस मिटिंग में किया जाएगा। पहले तीन महिने कैसे गुजर गए पता ही नही चला। मेकप की कला, वहाँ काम करनेवाले लोगों की ...Read More

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सर्कस - 14

सर्कस : १४ सुबह हो गई। अपना रोज का काम खतम करने के बाद मैं बाहर आ नहाने के बाद कमरे में बैठना मुश्किल हो जाता था। शुरू-शुरू में बाकी लोगों की ओैर जानवरों की आवाज से बहुत परेशान रहा। नींद ही नही आती थी। घर में मेरे लिए स्वतंत्र कमरा था ...Read More

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सर्कस - 15

सर्कस : १५ सुबह जलदी निंद खुल गई, अपना सब काम खतम करके पढाई करने बैठ गया। पहुँचने के बाद केवल एक दिन का ही फासला था की इम्तहान शुरू हो रहे थे। पाँच दिन में इम्तहान खतम। मेरी पढाई पूरी होते-होते, लोग उठते गए। हमारे कंपू के साथ नाश्ता किया, फिर अरुणसर के ऑफिस ...Read More

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सर्कस - 16

सर्कस:१६ स्टेशन पर गाडी पहुँच गई। सफर से अब शरीर उब चुका था। घर जाते वक्त सब मिलने की उत्सुकता, आनंद था लेकिन आते वक्त तो मन थोडा उदास ही हो गया। सामान निकालने लगा तो इतने में ही धीरज अंदर आया ओैर बडे प्यार से मुझे गले लगाया। उसके आनंद में मेरी ...Read More

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सर्कस - 17

सर्कस:१७ सुबह उठ गया इस विचार से की आज कुछ नया सीखने मिलेगा। अभी तो पढाई शुरू करूंगा इसलिए यह समय तो खाली था। कॉलेज के सर ने कुछ नोट्स, किताबे देकर रखी थी। बॅग में से कपडे भी अलमारी में लगाने रह गए थे लेकिन अभी रखने ...Read More

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सर्कस - 18

सर्कस: १८ सुबह अरुणसर ने महत्वपूर्ण पेपर्स, चाबीयों का गुच्छा, रुपयों से भरी एक ब्रीफकेस जॉनभाई को कर दी, फिर बाकी लोगों को लेकर वह रेल्वे स्टेशन रवाना हुए। जबलपूर से भोपाल लगभग सात-सवा सात घंटे का सफर था। वह जाने के बाद चारों ओर घुमके कही ...Read More

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सर्कस - 19

सर्कस:१९ समय का पहिया घुम रहा था। मार्कोस के मृत्यु का सदमा अब धीरे-धीरे कम होने लगा, कभी किसी के लिए रुकता नही यही सही है, सबका दैनंदिन चक्र शुरू हो गया। मौत का कुवाँ के खेल कुछ दिन के लिए बंद कर दिए। मार्कोस के असिस्टंट तो थे ...Read More

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सर्कस - 20 (अंतिम भाग)

सर्कस:२० दुसरे दिन सुबह छह बजे के बाद भोपाल गॅस दुर्घटना की खबर चारों ओर फैल गई। डिसेंबर १९८४, मध्य प्रदेश, भोपाल के युनियन कार्बाइड फॅक्टरी सी प्लान्ट से, रात को जहरिले वायु का रिसाव हुआ ओैर हवा के बहाव के कारण पुरे शहर में फैल गया। गहरी नींद ...Read More