कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२

(37)
  • 80.7k
  • 2
  • 40.3k

अब सभी सकुशल अपना अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे,सबसे पहले त्रिलोचना और कौत्रेय के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ,इसी मध्य भैरवी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया,उस बालिका के आने से समूचे राजमहल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई,अचलराज भी अपनी पुष्प सी पुत्री को देखकर फूला ना समा रहा था ,त्रिलोचना भैरवी के पास उसकी पुत्री से भेंट करने आई तब भैरवी ने प्रसन्नतापूर्वक त्रिलोचना से कहा.... "त्रिलोचना! आज से मेरी पुत्री तुम्हारी पुत्रवधू हुई,जब दोनों बालक एवं बालिका वयस्क हो जाऐगें तो तब हम इनका विवाह कर देगें" "हाँ! मुझे कोई आपत्ति नहीं ,किन्तु तुम पहले महाराज अचलराज से तो पूछ लो, भला वे अपनी पुत्री को मेरी पुत्रवधू बनाऐगे या नहीं"त्रिलोचना बोली.... "मुझे कोई आपत्ति नहीं है त्रिलोचना! मैं तो कब से यही विचार बना रहा था और कौत्रेय तो मेरा मित्र है,मुझे तो प्रसन्नता होगी यदि हम सम्बन्धी बन गए तो",अचलराज बोला.... "मित्र! ये तो तुम्हारी महानता है जो तुम महाराज होकर भी अपनी पुत्री को मेरी पुत्रवधू बनाकर मुझे सौंपना चाहते हो", कौत्रेय बोला...

Full Novel

1

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१)

अब सभी सकुशल अपना अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे,सबसे पहले त्रिलोचना और कौत्रेय के यहाँ पुत्र का जन्म मध्य भैरवी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया,उस बालिका के आने से समूचे राजमहल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई,अचलराज भी अपनी पुष्प सी पुत्री को देखकर फूला ना समा रहा था ,त्रिलोचना भैरवी के पास उसकी पुत्री से भेंट करने आई तब भैरवी ने प्रसन्नतापूर्वक त्रिलोचना से कहा.... "त्रिलोचना! आज से मेरी पुत्री तुम्हारी पुत्रवधू हुई,जब दोनों बालक एवं बालिका वयस्क हो जाऐगें तो तब हम इनका विवाह कर देगें" "हाँ! मुझे कोई आपत्ति नहीं ,किन्तु तुम पहले ...Read More

2

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(२)

दाईमाँ को देखते ही भूतेश्वर बोला.... "दाईमाँ! आप गईं नहीं" "नहीं! मुझे कुछ संदेह सा हो रहा था क्योंकि पुत्री के जन्म लेते ही उसके मुँख में दाँत थे,जो कि ऐसा असम्भव है किसी भी नवजात बालक या बालिका के दाँत नहीं होते,जो प्रेत योनि का होता है उसी नवजात शिशु के दाँत जन्म के समय से ही होते हैं"दाईमाँ बोली..... "तो अब आपका क्या विचार है?",भूतेश्वर ने पूछा.... "मैंने तुम्हारे और कालवाची के मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन लिया है,इसलिए अब मुझे सब ज्ञात हो चुका है,तुम्हारा अपनी पत्नी और पुत्री के संग चामुण्डा पर्वत जाना अति ...Read More

3

कालवाची-प्रेतनी रहस्य--सीजन-२-भाग(३)

अब भूतेश्वर ने इस विषय पर बहुत सोचा और कालवाची एवं महातंत्रेश्वर के विचारों के पश्चात वो इस निष्कर्ष पहुँचा कि कालवाची सत्य कह रही है,यदि उसकी पुत्री जीवित रही तो उसे भी अपना जीवन जीने हेतु कालवाची की भाँति ही संघर्ष करना पड़ेगा जो कि उचित नहीं है और उसने वही किया जैसा कि कालवाची ने कहा था,दोनों ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उस शिशु कन्या को एक काली अँधेरी कन्दरा में छोड़कर दिया और कन्दरा के द्वार पर एक बड़ा सा पत्थर लगा दिया जिससे वो शिशु कन्या वहाँ से निकल ना सके और वे अपने ...Read More

4

कालवाची--प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(४)

विराटज्योति ने राजमहल के बाहर आकर अपने सेनापति दिग्विजय सिंह को आदेश दिया कि वो सैनिकों को टुकड़ियों में करना होगा तभी हम उस स्थान को सरलता से चारों ओर से घेर सकते हैं,जहाँ पर वे सभी दस्यु रह रहे हैं... "जी! महाराज! सारा कार्य योजनानुसार ही होगा,आप तनिक भी चिन्ता ना करें,हम सभी की विजय निश्चित है",सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "जी! आप सभी से मैं ऐसी ही आशा रखता हूँ",विराटज्योति बोला... "जी! महाराज! हम आपकी आशा को निराशा में कदापि नहीं बदलेगें" सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "तो चलिए! इस कार्य को सफल बनाने हेतु प्रस्थान करते हैं",विराटज्योति बोला.... ...Read More

5

कालवाची--प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(५)

विराटज्योति विजयी होकर लौटा था इसलिए राजमहल में हर्षोल्लास का वातावरण छा गया,विराटज्योति को सफलता प्राप्त हुई है,ये सूचना राजमहल में बिसरित हो चुकी थी,किन्तु अभी तक विराटज्योति राजमहल ना पहुँचा था क्योंकि वो सेनापति दिग्विजय सिंह के संग उन नवयुवतियों को उनके यथास्थान पहुँचाने गया था,जब उसने सभी युवतियों को उनके परिजनों तक पहुँचा दिया तो तब वो राजमहल पहुँचा, जहाँ विराटज्योति की पत्नी चारुचित्रा आरती का थाल सजाकर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी,विराटज्योति जब चारुचित्रा के समक्ष पहुँचा तो चारुचित्रा की प्रसन्नता का पार ना रहा और वो प्रसन्नतापूर्वक उसकी आरती उतारने लगी,आरती उतरवाने के पश्चात विराटज्योति ...Read More

6

कालवाची--प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(६)

इसके पश्चात दोनों अपनी व्यवस्था बनाकर वैतालिक राज्य की ओर चल पड़े,कालवाची और भूतेश्वर अभी वैतालिक राज्य पहुँचे ही कि उन दोनों को अचलराज ने बंदी बनाकर बंदीगृह में डलवा दिया,कालवाची और भूतेश्वर सैनिकों से पूछते रहे कि उन दोनों का अपराध क्या है परन्तु किसी सैनिक ने उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया,इसके पश्चात जब वे वैतालिक राज्य के बंदीगृह में पहुँचे तो तब उनसे भेंट करने अचलराज वहाँ पहुँचा,अचलराज को देखकर कालवाची अत्यधिक प्रसन्न हुई और उससे बोली... "मुझे पूर्ण विश्वास था अचलराज की तुम यहाँ अवश्य आओगें,देखो ना हम दोनों को बिना किसी अपराध के तुम्हारे सैनिकों ...Read More

7

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(७)

यशवर्धन का कथन सुनकर चारुचित्रा ने उसकी ओर ध्यान देखा,इसके पश्चात उससे बोली.... हाँ! मैं ही हूँ,किन्तु तुम थे इतने समय से ? मैं...मेरे विषय में तुम ना ही जानो तो ही अच्छा रहेगा ,यशवर्धन बोला.... ऐसा क्या हो गया यशवर्धन! जो तुम ऐसीं बात़ें कर रहे हो ,चारुचित्रा ने यशवर्धन से पूछा.... ये तो तुम्हें भलीभाँति ज्ञात है चारुचित्रा! कि मैं क्या कहना चाहता हूँ यशवर्धन बोला... तुम अभी तक मुझसे क्रोधित हो उस बात को लेकर ,चारुचित्रा ने पूछा... मैं भला तुमसे क्यों क्रोधित होने लगा,तुम्हारा जीवन है एवं तुम्हें इस बात की पूर्ण स्वतन्त्रता है कि तुम किसे चुनो, तुम्हारे लिए ...Read More

8

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(८)

हाँ! मैं धवलचन्द्र हूँ! कालबाह्यी! तुम इतने दिवस से मुझसे मिलने नहीं आई तो मैं स्वयं ही तुमसे मिलने आया ,धवलचन्द्र बोला.... यदि तुम्हें यहाँ किसी ने देख लिया तो हम दोनों का सारा रहस्य खुल जाएगा ,मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली... मुझे राजमहल में आते कोई नहीं देख सकता कालबाह्यी!,तुम्हें ज्ञात है ना कि मेरे पास कैंसी कैंसी शक्तियाँ हैं ,धवलचन्द्र बोला.... तुम्हारी शक्तियों के विषय में मुझे ज्ञात है धवलचन्द्र! किन्तु तब भी तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था,कुछ तो सोच विचार कर लिया करो ,मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली... क्यों नहीं आना चाहिए था,क्या मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा,मुझे तुम्हारी याद ...Read More

9

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(९)

वो उसके कक्ष की ओर गई और उसने कक्ष के वातायन से बाहर से ही देखा कि यशवर्धन गहरी में लीन है,इसलिए वो उसे ऐसे ही सोता हुआ छोड़कर वापस आ गई एवं पुनः अपने बिछौने पर आकर लेट गई,बिछौने पर लेटे लेटे उसने अपने भूतकाल में प्रवेश किया,वो उस समय में जा पहुँची जब वो व्यस्क हो चुकी थी और प्रेम क्या होता है ये उसे भलीभाँति ज्ञात हो चुका था,उसने अपना यौवन अपने होने वाले प्रेमी के लिए सम्भाल रखा था और वो उसकी प्रतीक्षा में थी कि कब उसका प्रेमी उससे आकर ये कहे कि वो ...Read More

10

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१०)

और उस दिन के पश्चात् चारुचित्रा ने यशवर्धन से बात करना बंद कर दिया था और इधर यशवर्धन अपने पर क्षण क्षण पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा,वो चारुचित्रा से क्षमा चाहता था जो कि वो देने के लिए तत्पर ना थी,चारुचित्रा की दृष्टि में यशवर्धन का अपराध क्षमा के योग्य नहीं था,इसी मध्य यशवर्धन और विराटज्योति की मित्रता अब भी स्थिर रही,उसे तो इन सब के विषय में कुछ ज्ञात ही नहीं था और एक दिवस विराटज्योति ने यशवर्धन से आकर कहा.... "मित्र! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मुझे प्रेम हो गया है", "कौन है वो भाग्यशाली ...Read More

11

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(११)

उसने अपने राजसी वस्त्र अपने शरीर से उतारे और साधारण से वस्त्र पहनकर वो चारुचित्रा के बगल में बिछौने आकर लेट गया,चारुचित्रा भी उस समय चुपचाप लेटकर कुछ सोच रही थी तब विराटज्योति ने उससे पूछा.... "क्या सोच रही हो प्रिऐ!" "यही कि पहले आप मुझसे कितना प्रेम करते थे किन्तु अब आपके पास मेरे लिए समय ही नहीं है",चारुचित्रा बोली... "ऐसी बात नहीं है प्रिऐ! तुम जानती तो हो ना कि आजकल राज्य में कैसीं परिस्थितियाँ चल रहीं हैं,इसका तात्पर्य ये बिलकुल नहीं है कि मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम कम हो गया है",विराटज्योति बोला... तब चारुचित्रा बोली... "जी! ...Read More

12

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१२)

यशवर्धन के राजमहल से चले जाने के पश्चात् चारुचित्रा और विराटज्योति अपने कक्ष में वापस आए और विराटज्योति चारुचित्रा बोला.... "प्रिऐ! यशवर्धन चला क्यूँ गया,तुम्हें कुछ अनुमान है कि क्या कारण हो सकता है उसके यहाँ से जाने का" "मुझे इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है स्वामी!",चारुचित्रा ने झूठ बोलते हुए कहा.... "हाँ! तुम्हें भी इस विषय में कैंसे ज्ञात हो सकता है,इतने वर्षों के पश्चात् यशवर्धन लौटकर आया है,किसी को इसका कारण ज्ञात नहीं कि वो हम सभी को छोड़कर क्यों चला गया था",विराटज्योति बोला... "जी! और आज वो पुनः यहाँ से चला गया",चारुचित्रा बोली... "हाँ! ...Read More

13

कालवाची-प्रेतनी रहस्य--सीजन-२--भाग(१३)

दूसरे दिवस सायंकाल के समय यशवर्धन चारुचित्रा से भेंट करने राज्य के बाहर वाले मंदिर में पहुँचा,वो चारुचित्रा की कर ही रहा था कि वहाँ चारुचित्रा आ पहुँची और उसे देखकर बोली... "यशवर्धन!कैंसे हो"?, "मैं तो एकदम ठीक हूँ,तुम बताओ कि कैंसी हो",यशवर्धन ने चारुचित्रा से पूछा... "मैं ठीक नहीं हूँ यशवर्धन! इसलिए तो मैं तुमसे भेंट करना चाहती थी",चारुचित्रा बोली... "तुम्हें चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है चारुचित्रा! तुम निश्चिन्त होकर अपनी समस्या मुझसे कह सकती हो",चारुचित्रा बोली... "मैं मनोज्ञा को लेकर चिन्तित हूँ,क्योंकि उसके आने के पश्चात् ही महल में समस्याएँ खड़ी हुईं हैं",चारुचित्रा बोली... "मुझे विस्तारपूर्वक ...Read More

14

कालवाची-प्रेतनी रहस्य--सीजन-२-भाग(१४)

वो युवती भी भोजनालय में भोजन करने हेतु आई थी,ऐसा प्रतीत होता था कि वो उस राज्य की रहने नहीं थी,किसी विशेष उद्देश्य हेतु वो वैतालिक राज्य में आई थी,क्योंकि इतनी रात्रि को भले परिवार की युवतियाँ भोजनालय में भोजन करने हेतु नहीं आती,यशवर्धन उसकी ओर ध्यान से देख रहा था,वो युवती भी यशवर्धन से बात करना चाहती थी,इसलिए वो यशवर्धन के समीप आकर बोली.... "कहीं आप राजकुमार यशवर्धन तो नहीं", "जी! मैं यशवर्धन ही हूँ किन्तु आपने मुझे कैंसे पहचाना",यशवर्धन ने उससे पूछा... "जी! आप वैतालिक राज्य के पूर्व राजा अचलराज और उनकी पत्नी भैरवी को जानते हैं,वे ...Read More

15

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(१५)

उस समय मनोज्ञा के मुँख की प्रसन्नता देखने योग्य थी,वो चारुचित्रा को ये अनुभव कराना चाह रही थी कि कितनी भी चतुर और बुद्धिमान क्यों ना बन जाओ,परन्तु मेरे आगें तुम कुछ भी नहीं हो,मैं तुम्हारे सभी क्रियाकलापों पर दृष्टि रख रही हूँ,तुम मुझसे कुछ भी नहीं छुपा सकती,किन्तु उस समय चारुचित्रा ने मौन रहना ही उचित समझा,वो मनोज्ञा से कोई भी वाद विवाद नहीं करना चाहती थी,उसने उससे केवल इतना ही पूछा.... "तुम्हें कैंसे ज्ञात हुआ कि मैं राजकुमार यशवर्धन से भेंट करने गई थी", "जिस रथ पर आप गईं थीं ना! तो उसका सारथी मेरा मित्र है",मनोज्ञा ...Read More

16

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१६)

राजमहल के बाहर प्रतीक्षा करते करते यशवर्धन ने मान्धात्री से कहा.... "अब आप मुझे धवलचन्द्र के विषय में बताए उसका मनोज्ञा बनी कालबाह्यी के संग क्या सम्बन्ध है"? तब मान्धात्री बोली... "तनिक धैर्य धरे,मैं आपको सब बताती हूँ उसके विषय में", ऐसा कहकर मान्धात्री ने यशवर्धन को धवलचन्द्र के विषय में बताना प्रारम्भ कर दिया,वो बोली... "धवलचन्द्र मगधीरा राज्य के राजा विपल्व चन्द्र का पुत्र है,उसकी माता का नाम हिरणमयी था,कालवाची ने ही विपल्व चन्द्र की हत्या की थी,कालवाची विपल्व चन्द्र के रचे हुए षणयन्त्र से सभी को बचाना चाहती थी,वो विपल्व चन्द्र की हत्या तो नहीं करना चाहती ...Read More

17

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(१७)

प्रातःकाल होते ही विराटज्योति राजमहल वापस लौट आया और आते ही वो अपने कक्ष की ओर बढ़ चला तो बनी कालबाह्यी उसके पास आकर बोली.... "महाराज! कृपया! मेरी भूल क्षमा करें,किन्तु अभी आप अपने कक्ष में ना जाकर यदि किसी और कक्ष में जाकर विश्राम कर लें तो उचित होगा", "किसी और कक्ष में,वो भला क्यों?",विराटज्योति ने चिन्तित होकर मनोज्ञा से पूछा... "क्योंकि महारानी चारुचित्रा उस कक्ष में विश्राम कर रहीं है,उनकी निंद्रा में विघ्न पड़ेगा,क्योंकि वो रात्रिभर जागतीं रहीं हैं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली... "वो यूँ ही मेरी चिन्ता करके रात्रि रात्रि भर जागतीं रहतीं,रानी चारुचित्रा को मेरी इतनी ...Read More

18

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१८)

विराटज्योति के जाते ही चारुचित्रा वहीं धरती पर बैठकर फूट फूटकर रोने लगी एवं उसे आत्मग्लानि का अनुभव हो था,वो सोच रही थी कि वो विराटज्योति को क्या समझ रही थी और वो क्या निकला,जिस यशवर्धन को वो आज तक बुरा व्यक्ति समझती आ रही थी,वास्तविकता में वो तो कभी ऐसा था ही नहीं ,उससे कितनी बड़ी भूल हो गई,उसने स्वयं ही अपने जीवन को जटिल बना लिया एवं कुछ समय पश्चात् जब वो जी भरकर रो चुकी तो वो धरती से उठकर अपने बिछौने पर आकर लेट गई,वो दिनभर अपने कक्ष से बाहर नहीं निकली और ना ही ...Read More

19

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१९)

चारुचित्रा को मौन देखकर मनोज्ञा बोली... "क्या हुआ रानी चारुचित्रा! आप मौन क्यों हो गईं,महाराज द्वारा छले जाने पर उनसे प्रतिशोध नहीं लेगीं", तब चारुचित्रा बोली... "नहीं! मनोज्ञा! मेरी ऐसी प्रकृति नहीं है कि मैं उनसे प्रतिशोध लूँ,वे मेरे स्वामी हैं,अपने माता पिता की सर्वसम्मति से ही मैंने उनसे विवाह किया था और ईश्वर साक्षी है कि मैं उनसे कितना प्रेम करती हूँ,यदि इतनी सी बात पर मैं उनसे प्रतिशोध लेने लग जाऊँ तो इसका तात्पर्य है कि हम दोनों का सम्बन्ध कच्चा है और जब सम्बन्ध कच्चा हो जाता है तो कोई भी तीसरा व्यक्ति उनके मध्य घुसकर ...Read More

20

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(२०)

कालबाह्यी के वहाँ से जाने के पश्चात् चारुचित्रा के मुँख की मुस्कान देखने योग्य थी,वो प्राँगण में लगे स्तम्भ समीप खड़ी मंद मंद मुस्कुरा रही थी,तभी उसके पास विराटज्योति आकर बोला.... "क्या हुआ रानी चारुचित्रा! आप बड़ी प्रसन्न दिखाई दे रहीं हैं", तब चारुचित्रा बोली... "मेरी प्रसन्नता का कारण आप हैं महाराज! बस आप यूँ ही मुझसे प्रेम करते रहेगें तो मैं सदैव यूँ ही प्रसन्न रहूँगी,एक स्त्री विवाह के पश्चात् केवल तभी प्रसन्न रह सकती है जब उसका स्वामी उससे प्रेम करें,उसे सम्मान दे,किसी समस्या को लेकर उससे विचार परामर्श करें,एक विवाहिता स्त्री को केवल इतना ही चाहिए ...Read More

21

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(२१)

विराटज्योति को चिन्तित देखकर मनोज्ञा बनी कालबाह्यी उसके पास जाकर बोली.... "इतने चिन्तित ना हों महाराज! मैं आपकी व्यथा समझ सकती हूँ,जब कोई हमारे साथ विश्वासघात करता है तो ऐसा ही प्रतीत होता है" "मनोज्ञा! अभी तुमसे मेरा वार्तालाप करने का मन नहीं है,तुम शीघ्रतापूर्वक अतिथि कक्ष से बाहर चली जाओ एवं रानी चारुचित्रा को भी अपने संग ले जाओ,मैं अभी एकान्त चाहता हूँ" इसके पश्चात् मनोज्ञा उस स्थान से उठकर चारुचित्रा के समीप आकर बोली... "रानी चारुचित्रा! चलिए आप अपने कक्ष में चलकर विश्राम कीजिए", चारुचित्रा का भी मन नहीं था विराटज्योति से वार्तालाप करने का इसलिए वो ...Read More

22

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(२२)

जिस समय चारुचित्रा ईश्वर के समक्ष प्रार्थना कर रही थी उस समय उसके आँखों के अश्रु अविरल बहते ही रहे थे,कुछ समय प्रार्थना करने के पश्चात् वो राजमहल के प्राँगण में चिन्तित होकर टहलने लगी,तभी उसके समीप कालबाह्यी आकर बोली.... "रानी चारुचित्रा! आप तनिक भी चिन्ता ना करें,महाराज को कुछ नहीं होगा" "मुझे झूठी सान्त्वना मत दो कालबाह्यी!",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली... "आपके कहने का तात्पर्य नहीं समझी मैं",कालबाह्यी बोली... "तात्पर्य....तुम तात्पर्य जानना चाहती हो तो सुनो, मैं ये पूर्ण विश्वास के साथ कह सकती हूँ कालबाह्यी! कि ये सबने तुमने ही किया है",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली... "जी! आपका अनुमान ...Read More

23

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(२३)

तभी मनोज्ञा बनी कालबाह्यी ने रानी चारुचित्रा को देख लिया तो महाराज से बोली... "महाराज! ऐसा प्रतीत होता है रानी चारुचित्रा ने हमारे मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन लिया है", "हाँ! सुन तो लिया किन्तु मुझे महाराज एवं उनके प्रेम पर पूर्ण विश्वास है",चारुचित्रा बोली... "जी! महारानी! आपका विश्वास महाराज ने टूटने नहीं दिया" और ऐसा कहकर वो वहाँ से चली गई,समय यूँ ही बीत रहा था यशवर्धन को उस राज्य एवं विराटज्योति का शत्रु घोषित कर दिया गया,इसलिए वो राज्य के समीप वाले वन में छुपकर रहने लगा,अब वो वैतालिक राज्य नहीं लौट सकता था,इसलिए उसने मान्धात्री ...Read More

24

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(२४)

जब कालबाह्यी अपनी माता कालवाची से विलग हुई तो उससे बोली.... "ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आपसे मेरा पूर्व सम्बन्ध है,नहीं तो मुझे इतनी शान्ति एवं सन्तुष्टि का अनुभव नहीं होता", "कुछ सम्बन्ध ऐसे होते हैं मनोज्ञा! जो हृदय से जुड़े होते हैं,उन्हें ना तो समय तोड़ सकता है और ना ही विपरीत परिस्थितियाँ",कालवाची बोली... "कदाचित! आपका कथन सत्य है",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली.... इसके पश्चात् कालबाह्यी वहाँ से चली गई,कुछ समय तक सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा,इसके पश्चात् जब विराटज्योति वहाँ से चला गया तो तब कालवाची अचलराज और भैरवी से बोली.... "मेरी पुत्री से मेरी भेंट ...Read More

25

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--(अन्तिम भाग)

उधर यशवर्धन चारुचित्रा को उठाकर ऊँचे पहाड़ के पास जो वन था,वो उसे वहाँ लेकर पहुँच गया और उसने को धरती पर लिटा दिया,तब तक मान्धात्री भी वहाँ आ पहुँची और उसने यशवर्धन से पूछा... "ये कौन है,मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये तो रानी चारुचित्रा हैं" "हाँ! ये चारुचित्रा ही है,इसे कालबाह्यी ने अपनी शक्तियों द्वारा ऐसा बना दिया है,यदि हमने कुछ ना किया तो चारुचित्रा कुछ समय पश्चात् समाप्त हो जाऐगी"यशवर्धन बोला.... तब चारुचित्रा लरझती स्वर में यशवर्धन से बोली..... "तुम मेरी चिन्ता मत करो यशवर्धन! कदाचित मेरी यही नियति है,यदि मेरी मृत्यु के पश्चात् सब ...Read More