फादर्स डे

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सोमवार, 29/11/1999 पिनकोडः 412801, श्रीवाल, खंडाला, जिला सातारा, महाराष्ट्र। करीबी रेल्वे स्टेशनः दौन्दाज, 23.6 किलोमीटर। करीबी हवाई अड्डाः हडपसर, 40.5 किलोमीटर। आबादीः 6000 लगभग मुख्य व्यवसायः कृषि वैसे तो शिरवळ में सूर्योदय हमेशा ही इंडियन स्टैंडर्ड टाइम से 34 मिनट देरी से होता है। लेकिन आज, ऐसा महसूस हुआ कि सूर्य उगना ही नहीं चाहता था। शायद वह कुछ अप्रिय घटने को टालना चाहता हो। पर अफसोस, उगना उसकी मजबूरी थी। उसकी इस इच्छा ने शिरवळ के वातावरण को अधिक ही उदास बना दिया था। किसी रहस्य की ओर बढ़ते, अशुभ घटना के द्वार खटखटाते हुए समय जैसे आगे बढ़ता चला जा रहा था और जैसे ही शिरवळ के क्षितिज पर सूर्यकिरणों ने अपना जाल बिखेरा, हवाओं ने भी नीरा की लहरों पर उड़ने का एक खिन्न प्रयास किया। नीरा, भीमा नदी की सहायिका है। यही नीरा, आमतौर पर अपने ताजे पानी की रसधार के साथ पुणे और सोलापुर जिलों में खुशियां प्रवाहित करती है। आज, उसकी जगमगाहट कहीं खो सी गई थी। शिरवळ पर पसरी उदासीनता ने नीरा पर उड़ने वाले एकमात्र परिंदे को भी नहीं बख़्शा। परिंदे ने यू-टर्न लिया और शिरवळ की ओर मुड़ गया। उसने अपनी उड़ान को प्रतिष्ठित शुभमंगल किले पर रोकना पसंद किया। शायद, किले का शानदार ऐतिहासिक महत्व उसमें कुछ आत्मविश्वास भरता हो...

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फादर्स डे - 1

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 1 सोमवार, 29/11/1999 पिनकोडः 412801, श्रीवाल, खंडाला, जिला सातारा, महाराष्ट्र। करीबी रेल्वे स्टेशनः दौन्दाज, 23.6 करीबी हवाई अड्डाः हडपसर, 40.5 किलोमीटर। आबादीः 6000 लगभग मुख्य व्यवसायः कृषि वैसे तो शिरवळ में सूर्योदय हमेशा ही इंडियन स्टैंडर्ड टाइम से 34 मिनट देरी से होता है। लेकिन आज, ऐसा महसूस हुआ कि सूर्य उगना ही नहीं चाहता था। शायद वह कुछ अप्रिय घटने को टालना चाहता हो। पर अफसोस, उगना उसकी मजबूरी थी। उसकी इस इच्छा ने शिरवळ के वातावरण को अधिक ही उदास बना दिया था। किसी रहस्य की ओर बढ़ते, अशुभ घटना के द्वार खटखटाते ...Read More

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फादर्स डे - 2

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 2 सोमवार, 29/11/1999 भले ही, शिरवळवासियों का ध्यान इस ओर गया न हो, लेकिन साई को छोड़कर सारा कस्बा किसी विषाद की गिरफ्त में था। हमेशा की तरह घड़ी ने सुबह के सात बजाये और सूर्यकान्त की दिनचर्या रोज़ की ही तरह शुरू हो चुकी थी। वह तैयार होकर सोफे पर बैठा था, अपनी सुबह की चाय के इंतजार में। उसने शिरवळ के दैनिक अखबार ऐक्य को पढ़ना तो शुरू किया, पर न जाने क्यों उसका ध्यान नहीं लग रहा था। उसने अखबार किनारे रख दिया और किन्हीं ख्यालों में खो गया। उसने एक के ...Read More

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फादर्स डे - 3

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 3 सोमवार, 29/11/1999 सूर्यकान्त बाथरूम में घुसा, उसने बालों में शैम्पू तो लगाया लेकिन रगड़न गया। उसके विचारों की रेल चल पड़ी थी, ‘अंततः मेरे कठोर परिश्रम के वृक्ष पर फल लगने की बारी आ गई है। संकेत के जन्म के बाद मेरे करियर में जबर्दस्त उछाल आया है। दुःख तो इस बात का है कि मेरी कोई भी उपलब्धि प्रतिभा के मौन को तोड़ने में सफल नहीं रही है। मैं उसके व्यवहार को समझ ही नहीं पा रहा हूं। हमारे विवाह को कई साल बीत गए, हमारे बीच प्रेम का बंधन भी है, बावजूद ...Read More

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फादर्स डे - 4

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 4 सोमवार, 29/11/1999 बेचैन परिंदा शिरवळ शवदाहगृह की ओर उड़ चला। कहने की बात नहीं उस जगह पर नीरव शांति पसरी हुई थी; अक्षरशः श्मशान शांति। परिंदा यहां की नकारात्मक ऊर्जा से परेशान होकर आराम की तलाश में कुछ और दूर उड़ गया। उसने शवदाहगृह की अस्थाई दीवार का सहारा लिया, नल की टोंटी और बिजली के खंबे का आसरा लेने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ। अंततः, वह अंतिम संस्कार स्थान के नजदीक बनी लोहे की पटरी पर जा पहुंचा। अधजले शव से उसे कुछ ताप तो महसूस हुआ, लेकिन गरमाहट न मिली। वह ...Read More

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फादर्स डे - 5

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 5 सोमवार, 29/11/1999 तब ठीक दोपहर के 2 बजकर 3 मिनट हुए थे। फातिमा तो होश ही खो बैठी थी। वह टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट को देखती रह गई, समझ ही नहीं पा रही थी आखिर फोन किसने किया था, उसने जो कुछ कहा उसका मतलब क्या था और उसने ऐसा कहा किसलिए। वह हमेशा ही घर के भीतर रहती है, बाहरी दुनिया से उसे अधिक कुछ लेना-देना नहीं होता। उसने स्कूल जाकर औपचारिक पढ़ाई-लिखाई भी नहीं की थी। भाषा को दरकिनार कर भी दें, पर जिन शब्दों और जिस अंदाज से सामने वाला फोन पर बात ...Read More

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फादर्स डे - 6

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 6 सोमवार, 29/11/1999 शिरवळ बहुत कम जनसंख्या वाला स्थान है। यहां के निवासियों के परिवार से यहां रह रहे थे। सभी लोग एकदूसरे को बहुत अच्छे से जानते थे। शिरवळ में अभी तक शायद ही कोई ऐसी आपराधिक घटना घटी हो, जिसे लेकर लोगों को पुलिस की शरण लेनी पड़ी हो। आपस के मामूली झगड़ों को आपसी बातचीत से ही लोग सुलझा लेते थे। शहर का छोटा-सा एक भूगोल, और मामूली जनसंख्या के कारण यहां ठीक तरीके से पुलिस थाना भी नहीं थी। केवल एक छोटी-सी पुलिस चौकी भर थी, जहां पर हाई-वे एक्सींडेंट्स के ...Read More

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फादर्स डे - 7

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 7 सोमवार, त २९/११/१९९९ सूर्य अस्त के बाद शिरवल गाँव बिलकुल समझदार लड़के जैसा हो है धमाल बन्ध, मस्ती बन्ध, अग्नांकित बच्चे के जैसे हाथ पैर धोकर, शाम का खाना खतम कर के अध्ययन, पढ़ाई या गप्पे लड़ाने बैठ जाना । कुछ बेकार गाँव के बहूत ज्ञात अंबेमाता मंदिर पासके चौराहे एकठ्ठा होते । बीड़ी फूँक ना या तंबखू मसलकर हाथों से चूना जटकना । उसके बाद गाँव के सरपंच से लेकर वडा प्रधान को क्या करना चाहिए उसकी फिलसूफ़ी सुरू हो जाती थी । भले ही घर मे एक रुपए की कमाई ना हो ...Read More

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फादर्स डे - 8

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 8 सोमवार, 29/11/1999 स्कूल टीचर अंजली वाळिंबे के ‘न’ के जवाब से उस ग्रुप के ने राहत की सांस ली, जिन्हें पुलिस उनके घर पर शिनाख्त के लिए ले गई थी। दूसरी ओर, उनके जवाब ने सिपाहियों के मनोबल को गिराकर रख दिया। इस रात की सुबह नहीं...अब, वे जानते थे कि जांच एक लंबा समय लेगी। साई विहार में सूर्यकान्त और उनकी टीम माथापच्ची में जुटी हुई थी कि वे ऐसे कितने लोगों को जानते हैं जिनका हुलिया टीचर अंजली के उस विवरण से मिलता-जुलता है, जो संकेत को स्कूल से अपने साथ ले ...Read More

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फादर्स डे - 9

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 9 सोमवार २९/११/१९९९ सोमवार, तारीख २९ नवेंबर की देर रात और मंगलवार ता-३० मी के घंटों मेन बजी हुई मोबाइल की रिंग से सूर्यकांत पाटिल का दिल एक पल तो धड़कना चूक गया । ‘बोलिए रफीकभाई ....’ ‘भाऊ, इति रात्रिला कोणाला घेऊन येयायचा योग्य आहे का ?’ [भाई इतनी रात को किसी को लेकर आना ठीक हे क्या ?] ‘कुछ गलत नहीं है उसमें । हमारा इरादा नेक है । सवाल मेरे बेटे की लाइफ का है । ‘हम मांफ़ी मांग लेंगे आप फिकर मत करो । कहाँ हो आप ?’ ‘वो देगांव मेन नहीं ...Read More

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फादर्स डे - 10

लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 10 मंगलवार, 30/11/1999 मंगलवार के इन ठंडे, अंधेरे घंटों में लहू देखणे अपने ख्यालों में हुआ था कि वह कैसे इस पुलिस चौकी के घिसे हुए फर्नीचर को पॉलिश करेगा। नींद से वंचित, लाल आंखें लिए हुए लहू अपने ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि जांच के लिए जब उसका नाम पुकारा गया तो उसे सुनाई ही नहीं पड़ा। एक सिपाही ने उसे झकझोरा। लहू उठ खड़ा हुआ। उससे कोई सवाल पूछा जाता उससे पहले ही उसने हाथ जोड़कर सिपाही से कहा कि वह निर्दोष है। “काय नाय केलं( मैंने कुछ नहीं किया है). ...Read More

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फादर्स डे - 11

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 11 मंगलवार, 30/11/1999 लहू रामचंद्र देखणे जिस तरह से बात कर रहा था, सूर्यकान्त उससे प्रभावित हुआ। इससे पहले कि वह अपनी सहानुभूति जता पाता, लहू ने उससे कुछ पैसे मांग लिए। “पुलिस वालों ने मुझे रात-भर सोने नहीं दिया। मैं अपने घर वापस जाकर आराम करना चाहता हूं, पर मेरी जेब में घर जाने के लिए पैसे नहीं हैं। सर, यदि आप कुछ पैसे दे दें, तो बड़ा आभारी रहूंगा, ” वह बोला। लहू के दयनीय चेहरे की ओर देखते हुए, सूर्यकान्त उसको पैसों के लिए मना नहीं कर पाया। उसने अपनी शर्ट की ...Read More

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फादर्स डे - 12

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 12 मंगलवार, 30/11/1999 सूर्यकान्त गरम मिजाज़ का व्यक्ति था और उसका बर्ताव अशिष्ट, पर अपने के साथ तालमेल बिठाने वाला। ऐसा माना जाता है कि निर्दयी निर्माण उद्योग में टिके रहने के लिए ठेकेदारों को जिस तरह का काम करना पड़ता है, उसके कारण देर-सबेर उनके भीतर इस तरह की कुछ बुराइयां घर कर ही जाती हैं। यहां व्यक्ति को सौंपा गया काम तयशुदा समयसीमा में पूरा करने के लिए कई तरह के मजदूरों से निपटना पड़ता है। इन बातों को छोड़ भी दें तो सूर्यकान्त खुद की जिंदगी को पटरी पर रखना बहुत मुश्किल ...Read More

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फादर्स डे - 13

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 13 मंगलवार, 30/11/1999 जैसे ही संजय अंकल सौरभ के कमरे में दाखिल हुए, वह बहुत हो गया। वह आश्वस्त हो गया कि संकेत को घर वापस ले आया गया है। वह इस खुशखबर को अपने दोस्तों पायल और पराग के अलावा संकेत के साथियों माधुरी, स्वप्निल, अपर्णा और रोहण के साथ भी बांटना चाहता था। सूर्यकान्त का चचेरा भाई संजय भांडेपाटील सातारा जिले में पुलिस कॉंस्टेबल था। दोपहर 2.30 बजे वह साई विहार में आया। इस मुश्किल की घड़ी में वह अपने बड़े भाई की मदद के लिए साथ खड़ा होना चाहता था। पुलिस दल ...Read More

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फादर्स डे - 14

लेखक: प्रफुल शाह खंड 14 मंगलवार, 30/11/1999 ‘संकेत कल शाम तक घर वापस आ जाएगा...संकेत वापस आ जाएगा...वह घर जाएगा...’ साई विहार में इस समय मौजूद सभी लोगों के कानों में ज्योतिषी द्वारा कहे गये ये शब्द बार-बार गूंज रहे थे। सूर्यकान्त ने उस ज्योतिषी को कुछ पैसे देने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला। उसने लेने से इंकार कर दिया। उसने कहा इस समय वह कोई भी रकम नहीं लेगा। उसने कहा संकेत के वापस लौटने के बाद वह खुशी-खुशी पैसे स्वीकार कर लेगा। साई विहार में कई लोग उपस्थित थे, वह एक भला आदमी मालूम पड़ता ...Read More

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फादर्स डे - 15

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 15 मंगलवार, 30/11/1999 विष्णु भांडेपाटील को तंबाकू चबाने की आदत थी। आज, वह बाकी दिनों अधिक तंबाकू खा रहे थे। वह तंबाकू को अपनी हथेलियों में घिस रहे थे। ऐसा लग रहा था कि उनकी हथेलियों में इतनी ताकत आ गई थी कि तंबाकू तो क्या वे किसी लोहे के टुकड़े को भी मसल कर रखे देते। उन्होंने सूर्यकान्त की ओर देखा और कहा, “हे बघ, पोराला काय नाई होणार...(बच्चे के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा)। वह सुरक्षित घर लौट आएगा। लेकिन आज के बाद से अपने व्यवसाय में इतने अधिक व्यस्त मत रहा ...Read More

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फादर्स डे - 16

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 16 मंगलवार, 30/11/1999 सिपाही ने थोड़ा चौंककर, घबराई हुई नजरों से अपने अधिकारी की ओर अधिकारी माने उस पर चिल्लाए, “ऐकायला येत नाही कि खोपड़ी मधे उतरत नाही?(सुनाई नहीं देता या समझ में नहीं आता?)” सूर्यकान्त चकराया हुआ-सा अपना सिर खुजला रहा था। अपहरण करने वाले की ओर से कोई खबर नहीं थी और कोई न उसके सोच-विचार का ही कोई नतीजा सामने आ रहा था। प्रतिभा लगातार रो रही थी। सौरभ भी दुःख के गर्त में गिरा जा रहा था। सूर्यकान्त इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि अपने माता-पिता से नजरें मिला ...Read More

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फादर्स डे - 17

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 17 मंगलवार, 30/11/1999 सूर्यकान्त ने जब पुलिस वालों को संकेत के अपहरण मामले में उसके शेखर के शामिल होने की संभावना पर बातचीत करते सुना है, वह बहुत परेशान और आहत महसूस कर रहा है। उसने अपनी भावनाओं को इंस्पेक्टर माने के समक्ष व्यक्त भी करने की कोशिश की। “आप समझते क्यों नहीं? इस मामले में शेखर की भूमिका के बारे में विचार करके अपना समय बरबाद न करें। वह ऐसा काम कभी नहीं करेगा।” “सर, आपने प्रेम विवाह किया था। आपके इस रिश्ते को लेकर कई लोगों का विरोध था। आपके परिवार ने आपको ...Read More

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फादर्स डे - 18

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 18 गुरुवार, 02/12/1999 संकेत को गुम हुए आज चार दिन हो गए। नीरा नदी निरंतर गति से बह रही थी। दो सिपाही नदी के किनारे चलते हुए आपस में बात कर रहे थे। वे गुमे हुए बच्चे के मामले में किसी सुराग की तलाश में थे। “हम न जाने यहां कितनी ही बार आए हैं...” “क्या ये संभावना है कि बच्चा नदी में डूब गया हो, या किसी ने उसे नदी में धक्का दे दिया हो?” “नहीं, बॉडी नदी के अंदर चार दिनों तक नहीं रह सकती...” “यह सही है। इस तर्क को माने सर ...Read More

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फादर्स डे - 19

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 19 गुरुवार, 02/12/1999 शेखर ने साई विहार में दोपहर 2.30 बजे प्रवेश किया। वह पांच बाद घर लौटा था, इस बीच उसकी कोई खबर नहीं थी, कोई फोन नहीं था, किसी को भी मालूम नहीं था कि वह कहां है और कब वापस आने वाला है। उसके इस व्यवहार से शिरवळ निवासियों और पुलिस वालों के मन में संदेह पैदा होना स्वाभाविक ही था। शेखर को इस बात का लेकर काफी शर्मिंदा था कि पिछले चार दिनों से वह अपने भांजे को खोजने में परिवार वालों की मदद के लिए उपस्थित नहीं था। उसे इस ...Read More

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फादर्स डे - 20

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 20 रविवार, 05/12/1999 “अरे वाह, बहुत बढ़िया...इसका मतलब है एक दिन में बड़ी कमाई हो है...याद करने की कोशिश करो, और मुझे बताओ कि क्या पिछले सोमवार, 29 नवंबर को, कोई आदमी तुम्हारे बूथ पर एक तीन साल के बच्चे के साथ आया था?” “सोमवार...सोमवार...हां एक आदमी एक छोटे बच्चे के साथ आया था।” “वो कैसे आया था? पैदल चलकर? कार से?साइकिल से? या...” “जहां तक स्कूटर या बाइक पर।” “क्या तुम बादाम खरीदकर खा सकती हो?” “सर, मेरे सामान्य रहन-सहन का मजाक मत उड़ाइए। मुझे बड़ी मुश्किल से दो वक्त का खाना मिल पाता ...Read More

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फादर्स डे - 21

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 21 सोमवार, 06/12/1999 सूर्यकान्त ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर दौड़ाई। समय भाग था। वह असहाय महसूस कर रहा था। वह इस बात का अफसोस मना रहा था कि संकेत के साथ उसके बिताए हुए सुनहरे दिन अब कभी वापस नहीं आएंगे। उसने महसूस किया कि वक्त पिछले सोमवार पर ही ठहरा हुआ है, अफसोस, उसकी सांसें ठहरी हुई नहीं हैं। आज ठीक एक सप्ताह हो गया, संकेत को लापता हुए। सुबह के समय प्रतिभा रसोई में व्यस्त तो थी, पर उसका दिमाग एकदम खाली था। जिस समय वह नल के नीचे चावल ...Read More

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फादर्स डे - 22

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 22 सोमवार, 06/12/1999 शिरवळ की सबसे शानदार इमारत-साई विहार इन दिनों घर-घर में सबसे अधिक का विषय बनी हुई है। सुबह के 11.30 बजे हैं। भांडेपाटील के घर का टेलीफोन बजता है। पति के निर्देशानुसार प्रतिभा रिसीवर उठाती है। “हैलो...” “पिल्लू पाहिजे न तुला?”( तुम बच्चे को वापस चाहती हो न?) “कोण बोलते?”(कौन बात कर रहा है?) “तुमचा मुलगा माझ्या कड़े आहे...एक तासात एक लाख रुपए द्या...मुलगा संध्याकाळी देतो...”(तुम्हारा बेटा मेरे पास है...एक घंटे के भीतर मुझे एक लाख रुपए दो, बेटा शाम तक वापस मिल जाएगा।) “कुठे पैसे द्यायचे?”(पैसे कहां लाकर देना है?) “पत्ता ...Read More

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फादर्स डे - 23

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 23 सोमवार, 06/12/1999 ड्राइवर सीट पर बैठा सूर्यकान्त और उसके दोस्तों की टीम को अपहरणकर्ता डिमांड पूरा करने की जल्दबाजी थी। उनके पास फिरौती की रकम से भरा हुआ बैग था और वे तेजी से भागे जा रहे थे। अचानक, सूर्यकान्त चीखा और उनकी वैन एक झटके के साथ रुक गई। हर कोई चौंक गया। वे जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या। संजय, जो वैन में सूर्यकान्त की बगल में बैठा हुआ था, उसने बताया कि कोई जानवर उनकी वैन के सामने से भाग रहा था, ब्रेक न लगाते तो वैन के पहियों के ...Read More

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फादर्स डे - 24

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 24 सोमवार, 06/12/1999 पुलिस दल चौकस था। अपराधी ब्रीफकेस को उठाने के लिए जैसे ही में पहुंचतेगा, उसे धर दबोचने के लिए सभी तैयार थे। सूर्यकान्त, उसके दोस्त और पुलिस वाले अलग-अलग दिशाओं से ब्रीफकेस पर नजरें गड़ाए हुए थे। वे इस कदर दम साधे और चौकन्ने थे कि उनकी दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं। सूर्यकान्त ने संजय को एक अलग कार में घर वापस भेज दिया था। वह हर एक पल को गिन रहा था। इस लोकेशन पर उसे बिना मकसद, फालतू समय गंवाना भारी पड़ रहा था। दोपहर 3 बजे तक ...Read More

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फादर्स डे - 25

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 25 सोमवार, 06/12/1999 जब सूर्यकान्त और संजय अपनी वैन में पहुंचे तो हाईवे पर जमा पुलिस दल और सातारा से पहुंची पुलिस टीम के साथ-साथ पुणे ट्रैफिक पुलिस के सदस्यों को देखकर दंग रह गए। सूर्यकान्त इस बात को लेकर भयभीत हो गया कि एक बार फिर इतने सारे पुलिस वालों को देखकर अपराधी नाराज या परेशान न हो जाए। हे भगवान, मेरे संकेत की रक्षा करना... एक पुलिस वाला होकर भी संजय यह समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर पुलिस बल इतने कम समय में हाईवे पर पहुंच कैसे गया। कुछ देर ...Read More

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फादर्स डे - 26

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 26 मंगलवार, 07/12/1999 सूर्यकान्त और संजय रात 11 बजे घर वापस पहुंचे। दोनों ही थकान निराशा से घिरे हुए थे, उन्होंने घर पहुंचकर किसी से भी कोई बात नहीं की। सब उनकी ओर आशाभरी नजरों से देख रहे थे, जो कुछ हुआ उसके बारे में वे जानना चाहते थे। संजय एक कुर्सी पर बैठ गया और मौन तोड़ते हुए बोला, “अपहरण करने वाला पैसा ले गया है।” “संकेत अभी तक वापस क्यों नहीं आया है?” प्रतिभा ने सवाल किया। “वह वापस आएगा.. हो सकता है जहां उसने संकेत को रखा हो वहां तक पहुंचने में ...Read More

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फादर्स डे - 27

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 27 मंगलवार, 07/12/1999 जिस समय शिरवळ के निवासी संकेत के अपहरण, दी गई फिरौती और में छिपे रहस्य के बारे में चर्चा करने में व्यस्त थे, सूर्यकान्त का दिमाग उन अतिरिक्त एक लाख रुपए के बारे में सोचने में व्यस्त था. जो उस उसके वार्डरोब में मिले थे। वह उन्हें किस तरह सुरक्षित रखा जाए, ये भी सोच रहा था। सुरेश कुंभार न केवल उसे ईंट सप्लाई करने वाला व्यवसायी था, बल्कि वो एक अच्छा मित्र भी था। ‘सुरेश ने ये रुपए मुझे परसों दिए थे। जब मैंने उन्हें लेने से मना किया तो उसने ...Read More

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फादर्स डे - 28

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 28 बुधवार, 08/12/1999 हर गुजरते दिन के साथ, भांडेपाटील परिवार के लिए जीवन का हिसाब पाना कठिन होता जा रहा था। ऐसे कई अनुत्तरित सवाल थे जिन्होंने उनके खाते के हिसाब को बिगाड़ रखा था। दूसरी तरफ, उस दिन श्रीमंत मालोजीराजे सहकारी बैंक का कैशियर जमा और निकासी का हिसाब लगाने में व्यस्त था। उसने 500 रुपए के नोटों के दो बंडलों और सूर्यकान्त द्वारा भरी गई पे-इन-स्लिप को देखा। उसने जैसे ही नोटों को उलट-पुलट किया, उसने नोटों के नंबरों पर नजर दौड़ाई तो वह चौंक पड़ा। इन नोटों बिलकुल वही नंबर थे जो ...Read More

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फादर्स डे - 29

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 29 गुरुवार, 09/12/1999 सूर्यकान्त भांडेपाटील ने महसूस किया कि उसने जिंदगी के खेल में सबकुछ दिया है। लोग उसके बारे में, एक पिता के बारे में, जिसके अपने बच्चे का अपहरण हो गया है, ऐसा कैसे बोल सकते हैं? कैसे ऐसा बोल सकते हैं कि उसने फिरौती की रकम नहीं दी है? वे ऐसा कैसे बोल सकते हैं कि उसने पैसों को बिजनेस के नुकसान की भरपाई करने के लिए अपने पास रख लिया ? वे ऐसा कैसे कह सकते हैं कि अपहरण महज एक कहानी थी और उसने अपने बच्चे को गुजरात में किसी ...Read More

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फादर्स डे - 30

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 30 शुक्रवार, 09/12/1999 प्रतिभा के माता-पिता ने उसे अपने गांव मावली वापस लौटने के लिए उस पर शादी करन के लिए बहुत दबाव था। कभी यह सलाह के रूप में आता तो कभी समझ के तौर पर। प्रतिभा को लगने लगा था कि उसके लिए इतने दबाव का प्रतिरोध कर पाना एक समय के बाद संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए, उसने अपने माता-पिता की भावनाओं के साथ खेलने का मन बना लिया। उसने उन्हें आश्वासन दिया कि वह आगे से सूर्यकान्त से नहीं मिलेगी साथ ही उसने अपने माता-पिता से अनुरोध किया कि वह उसे ...Read More

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फादर्स डे - 31

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 31 शनिवार, 10/12/1999 शिरवळ के होटल के अलावा, गोलांडे उसी तरह का एक होटल चौफाळे भी चलाता था। ये शिरवळ वाले होटल से करीब दो किलोमीटर दूर था। यह होटल भी मजदूरों और ठेकेदारों के मिलने-बैठने का पसंदीदा स्थान था। इन दिनों जो बातें पहले होटल में गरमागरम बहस का विषय बनी हुई थीं, वही दूसरे में चल रही थीं, अमजद शेख़, सूर्यकान्त के मिक्सर ड्राइवर ताजुद्दीन खान की बेटी का दोस्त की गुमशुदगी की चर्चा। एक गुप्त भेदिये के जरिये इस छोटी-सी जानकारी को शिरवळ पुलिस चौकी तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा। ...Read More

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फादर्स डे - 32

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 32 शनिवार, 11/12/1999 साई विहार में नीरव शांति छाई हुई थी; बिलकुल वैसी ही जैसी युद्ध समाप्त होने के बाद रणक्षेत्र में छाई रहती है। अपनी बेगुनाही साबित होने की खुशी महसूस करने की बजाय सूर्यकान्त को दुःख हो रहा था इस बात का कि उसके परिवार ने उसके इरादों पर संदेह किया। दूसरों के लिए भी इतना आसान नहीं था, वे भी अपराधबोध से ग्रस्त थे, ‘आखिर उन्हें सूर्यकान्त के इरादे पर संदेह हुआ तो कैसे हुआ।’ लेकिन सबसे बुरी स्थिति प्रतिभा की थी। ‘मैंने अपने पति की मंशा पर शंका कैसे कर ली? ...Read More

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फादर्स डे - 33

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 33 शनिवार, 11/12/1999 यह मानव का स्वभाव ही है कि वह किसी की दोस्ती या को सहजता से नहीं ले पाता, पचा भी नहीं पाता। शिरवळ की गॉसिप गैंग भी सूर्यकान्त और रफीक़ की दोस्ती के बारे में तरह-तरह की बातें बनाने लगा। “रफीक़ संकेत के अपहरण से पहले तो सूर्यकान्त के इतने निकट नहीं था।” “हां, वे एकदूसरे को जानते-पहचानते ही तो थे।” “सड़क पर आमने-सामने पड़ जाएं तो वे एकदूसरे को देख कर मुस्कुराते भी नहीं थे।” “जब से संकेत गायब हुआ, रफीक़ लगातार सूर्यकान्त के साथ बना हुआ है।” “इसमें कोई गड़बड़ ...Read More

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फादर्स डे - 34

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 34 शनिवार, 11/12/1999 सूर्यकान्त अपनी पत्नी प्रतिभा, अपना प्यार और उसके बच्चे की मां को मेटरनिटी अस्पताल में ले जाने के लिए सातारा की सड़कों पर उड़ान भर रहा था। जीप को चलाते हुए उसने अपने गुस्से पर काबू रखने की बहुत कोशिश की। उसे मालूम था कि उसे प्रतिभा का ख्याल रखना है, साथ ही होने वाले बच्चे का भी। आज, नीरा के किनारे पर चलते हुए उसके सामने 8 अक्तूबर 1996 की शाम जीवंत हो उठी। ‘सड़क पर कितना भारी ट्रैफिक था। प्रतिभा की हालत नाजुक थी और मुझे उसकी सुरक्षित डिलेवरी के ...Read More

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फादर्स डे - 35

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 35 रविवार, 12/12/1999 प्रतिभा सुबह जल्दी जाग गई। सूर्यकान्त तो पहले ही जाग चुका था तैयार होकर उसे कहीं निकलने की जल्दी थी। प्रतिभा ने उसे देर रात तक कुछ लिखते हुए देखा था। उसने जनाबाई को इस बारे में बताया। जैसा कि हमेशा होता है, जनाबाई ने विष्णु को, विष्णु ने शालन को शालन ने शामराव को बात आगे बढ़ा दी। तो अब जब सूर्यकान्त साई विहार से बाहर निकलने को था, पांच जोड़ी आंखें सूर्यकान्त का पीछा कर रही थीं। वास्तव में वे जानना चाहते थे कि आखिर मामला क्या था। लेकिन सूर्यकान्त ...Read More

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फादर्स डे - 36

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 36 रविवार -13/12/1999 अजीतदादा पवार यानी महाराष्ट्र की राजनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ और उन्हें पवार के राजनैतिक वारिस के रूप में भी देखा जाता था। अल्पभाषी, प्रखर और मुद्दों पर बात करने वाले नेता। मकरंद, सूर्यकान्त और नितिन उनके सामने बैठे ही थे और उन्होंने अपने पीए को आदेश दिया, “सातारा के एसपी सुरेश खोपडे को फोन लगाइए।” कुछ ही देर में खोपड़े साहब लाइन पर आ गए। अजीत दादा ने सीधा सवाल किया, “संकेत भांडेपाटील नाम के एक छोटे बच्चे के अपहरण के मामले को तेरह दिन बीत गए, पुलिस कर क्या रही ...Read More

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फादर्स डे - 37

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 37 शनिवार -13/12/1999 न शिरवळ वासियों को न ही स्वतः सूर्यकान्त को इस बात पर हो रहा था कि अजीत दादा पवार जैसा वरिष्ठ और धुरंधर नेता इतनी तत्परता और सहजता से संकेत की खोज के लिए आगे आ सकता है। और तो और, खुद सातारा एसपी सुरेश खोपडे साई विहार को विजिट देंगे और आधा घंटा वहां रुकेंगे, यह भी कल्पना से बाहर की बात थी। भांडेपाटील परिवार का आत्मविश्वास अब मजबूत हो गया था कि संकेत अवश्य ही वापस आएगा। जल्द से जल्द वह मिल जाएगा। कुछ लोग समय की नब्ज बखूबी पहचानते ...Read More

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फादर्स डे - 38

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 38 रात के गहरे अंधकार में जब सोमवार, मंगलवार में बदल चुका, तब सूर्यकान्त और के दोपहिया ने पुणे में प्रवेश किया। आगे लंबा रास्ता और अपने गंतव्य के बारे में पूरी तरह से परिचित सूर्यकान्त सहजता से आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। पुणे के धनकवडी में पहुंच कर वह मकानों पर लिखे नाम पढ़ने लगा। चार-पांच मकानों के बाद ही उसने एक नाम पढ़ा- ‘भाऊ पारांडे’। पढ़ते ही उसने अपनी गाड़ी को ब्रेक मारा। इस कर्कश आवाज से दूर सो रहे कुत्ते हड़बड़ाकर जाग गए और भौंकने लगे। सूर्यकान्त ने भाऊ पारांडे ...Read More

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फादर्स डे - 39

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 39 बुधवार -15/12/1999 विचार...विचार...विचार...विचारों का चक्र सूर्यकान्त का पीछा छोड़ ही नहीं रहा था। किसी के शरीर में जिस तरह कांटे चिपके रहते हैं उसी तरह विचार भी सूर्यकान्त से चिपक कर रहते थे। एक विचार, एक सवाल का हल ढूंढ़ते साथ ही दूसरा विचार, दूसरा सवाल सामने आकर खड़ा हो जाता था। संकेत का अपहरण, उस सुबह उसके साथ बिताए हुए कुछ क्षण...प्रतिभा का दुःख...हताश-निराश सौरभ...पिता विष्णु की मौन लाचारी..आई जनाबाई की विवशता...खुद के भीतर संकेत के न होने के कारण विरह का गहरा जख्म...और उसपर रह-रह जम रही यादों की परतें। स्वयं के ...Read More

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फादर्स डे - 40

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 40 बुधवार 29/12/1999 प्रतिभा यंत्रवत काम कर रही थी। सौरभ बिना किसी जिद के चुपचाप नीचे करके नाश्ता कर रहा था। विष्णु भांडेपाटील भोजन का डिब्बा लेकर भोर के ऑफिस के लिए रवाना हो चुके थे। संकेत के गायब होने के बाद से सूर्यकान्त का कामकाज में बिलकुल मन नहीं लग रहा था। ऑफिस की सारी जिम्मेदारी विवेक भांडेपाटील और शेखर देशमुख ने इतनी अच्छी तरह से संभाल ली थी कि कामकाज संबंधी कोई भी परेशानी सूर्यकान्त तक पहुंच ही नहीं पाती थी। सूर्यकान्त के हाथ एक पुराना फोटो लगा। मित्रमंडली के साथ संकेत को ...Read More

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फादर्स डे - 41

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 41 रविवार -02/01/2000 तरह-तरह की कोशिशें, ईश्वर के समक्ष की गई प्रार्थनाएं, कठिन मन्नतें, विनम्र और सौहार्द्र अपीलें....मानसिक प्रताड़ना का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था क्योंकि 1999 का साल खत्म होकर 2000 का नवप्रभात उदित हो चुका था परंतु संकेत सूर्यकान्त भांडेपाटील का कोई अता-पता नहीं था। संकेत को आसमान खा गया या जमीन निगल गई? हवा के साथ किसी पंख की भांति कहीं उड़ गया या नीरा के जल के साथ प्रवाहित हो गया? जिस तरह चंद्रमा बादलों की ओट में छिप जाता है ठीक उसी तरह जानबूझकर कहीं छुपा हुआ तो ...Read More

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फादर्स डे - 42

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 42 सोमवार -03/01/2000 डिप्टी मिनिस्टर छगन भुजबल से बातचीत करते समय सूर्यकान्त की आवाज में और सौम्यता थी। संकेत के गुमने के बाद और उसके वापस लौटने के दिनों में बढ़ती दूरी के बीच सूर्यकान्त के स्वभाव में अनजाने ही बहुत अधिक अंतर आ गया था। पहले वाला ऊंची आवाज में बोलने वाला, छोटी-छोटी बात में भड़कने वाला और किसी की भी परवाह न करने वाला सूर्यकान्त इधर शांत, सौम्य और गंभीर हो गया था। आवेदन पत्र में लिखे गए शब्दों में अत्यधिक विनम्रता थी। बावजूद, उस बुझी हुई राख के नीचे धधकता हुआ अंगारा ...Read More

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फादर्स डे - 43

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 43 गुरुवार 27/01/2000 सूर्यकान्त भांडेपाटील संकेत अपहरण केस में पुलिस की ढीले-ढाले रवैये से त्रस्त गया। अपने गुस्से को काबू करने की जगह उसने सीधे खंडाला में प्रेस कॉन्फ्रेन्स लेकर अपने भीतर का गुस्सा बाहर निकालने का पक्का इरादा कर लिया। प्रेस रिपोर्टरों के लिए एक बड़ी हैरत की बात थी। एक पकी-पकाई स्टोरी हाथ लगने वाली थी। उन्होंने अब तक किसी अपह्रत बच्चे के पिता का रौद्र रूप प्रत्यक्ष रूप में देखा नहीं था। सूर्यकान्त के एक-एक वाक्य के साथ पत्रकारों के बॉलपेन की गति कागज पर तेजी से बढ़ती जा रही थी। अपह्रत ...Read More

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फादर्स डे - 44

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 44 शुक्रवार -28/01/2000 सूर्यकान्त द्वारा आहूत सनसनी फैलाने वाली प्रेस कॉन्फ्रेन्स, पुलिस विभाग पर सार्वजनिक पर लगाए गए आरोप, प्रशासन का सीधे-सीधे विरोध और आमरण अनशन की धमकी आज के समाचार पत्रों की सुर्खी थी। शिरवळ और साई विहार के नाम पर लाखों पाठकों की नजरें गड़ी हुई थीं। परंतु साई विहार के आसपास भी कोई फटक नहीं रहा था। घर के टेलीफोन घंटी ने चुप्पी साध ली थी। एक कॉल आया, तो सबकी जान ऊपर-नीचे होने लगी। शामराव ने फोन उठाया। “हैलो.... हो..हो...होय...बरोबर आहे....ओके।” रिसीवर क्रेडल पर रख रहे शामराव की ओर सभी उत्सुकता ...Read More

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फादर्स डे - 45

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 45 सोमवार 31/01/2000 सूर्यकान्त केवल अपना मंतव्य बताकर शांत नहीं बैठा। उसने खोज करने का से शुरू कर दिया। बीड़ में पांच लाख रुपयों की फिरौती के लिए अपहरण होने की खबर मिलते ही वह बीड़ की ओर भागा। अपह्रत बच्चा आठ दिनों के बाद पुणे से सुरक्षित वापस मिल गया। कोल्हापुर के पास हुपरी गांव के सात साल के बच्चे का खून कर दिया गया। कारण केवल यह था कि एक लाख रुपए की फिरौती नहीं मिल पाई। खून किए गए बच्चे का फोटो देखकर सूर्यकान्त व्यथित हो गया। शिरवळ गांव में सूर्यकान्त नाम ...Read More

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फादर्स डे - 46

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 46 सोमवार 07/02/2000 सूर्योदय में अभी वक्त था। दड़बों में बंद आलसी मुर्गों ने बांग अभी शुरू ही किया था। सूर्यकान्त की पूरी रात जाग कर गुजरी थी। बीच-बीच में वह एकाध झपकी ले-लेता था। रात-भर जागने के कारण उसकी आंखें लाल-लाल हो गई थीं। अलसुबह फटाफट तैयारी करने के बाद सूर्यकान्त और रफीक़ ने एमएच 11-5653 में मीटिंग की। एक्सीलेटर पर पैर दबाया। साई विहार में हरेक प्रार्थना कर रहा था, ‘हे ईश्वर, आज अमजद शेख मिल जाए। संकेत सुरक्षित घर वापस आ जाए।’ इस बदमाश अपपाधी के पीछे डेढ़ महीने से भागदौड़ चल ...Read More

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फादर्स डे - 47

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 47 सोमवार 07/02/2000 बेलसरे ने अमजद की पीठ पर हाथ फेरा, एक हाथ से उसकी को पकड़कर चेहरा ऊपर किया, अमजद की घबराई हुई आंखों में अपनी आंखें डालकर, तेज आवाज में पूछा, “क्या रे, तेरा निकाह हो गया क्या?” अमजद ने अपना सिर दाएं-बाएं हिलाकर नहीं में जवाब दिया। “ठीक है, तो अब चल पुलिस स्टेशन, हम सब मिलकर तेरा मेकअप करते हैं...तेरा ये चेहरा इतना सुंदर बना देंगे कि तू खुद भी अपने आपको पहचान नहीं पाएगा...चलो बारात सजाओ रे...दुल्हे की बहन और जीजा को भी साथ ले चलो।” लोबो ने स्थानीय पुलिस ...Read More

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फादर्स डे - 48

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 48 सोमवार 08/02/2000 पुलिस का डर, मारपीट, मानसिक वॉर-गेम, पूछताछ सब बेकार हो गया था। और जीजा ने सबकुछ कबूल कर लिया है- अमजद की गुनाह कबूली इसी पर आधारित रहने वाली थी, लेकिन अंधेरे में मारे गए इस तीर का भी कोई फायदा नहीं हुआ। पुलिस का गेम फेल हो गया था। पुलिस के सामने दो रास्ते थे। पहला, अमजद कठोर कलेजे वाला शातिर अपराधी है, जल्दी मुंह नहीं खोलेगा। यदि ऐसा हुआ तो उसकी जुबान खोलने के दूसरे कई रास्ते हैं और दूसरा, यानी अमजद वास्तव में निर्दोष होगा। लेकिन ये अमजद शेख ...Read More

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फादर्स डे - 49

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 49 बुधवार 09/02/2000 पुलिस विभाग के लंबे अनुभव के कारण सदानंद बेलसरे और बाकी लोगों यह समझ में आ चुका था कि अमजद निर्दोष है...या फिर वह सबकुछ सहन कर सकता है। किया हुआ कुकर्म छुपा सकने लायक ढीठ होगा वह...लेकिन इसकी संभवना कम ही दिख रही थी...बहुत कम...लेकिन पुलिस कहां हार मानने वाली थी। अमजद शेख को छोड़ देना इतना आसान भी नहीं था। संकेत अपहरण कांड में पहले संदेदास्पद आरोपी को पकड़ा गया था। लोगों और समाचार पत्रों का उत्साह देखते हुए उस उत्साह की हवा निकाल देना ठीक नहीं था। सूर्यकान्त और ...Read More

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फादर्स डे - 50

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 50 शनिवार -12/02/2000 संकेत का नाम ले-लेकर जिधर देखो उधर ही गपशप का दौर चलने था और उस गप्पबाजी का मुख्य केंद्र संकेत और सूर्यकान्त रहता था। “ये लो...अब अमजद शेख को छोड़ दिया।” “...संकेत को क्या सच में उठाया गया है? ” “हां भाई...मुझे भी शंका ही हो रही है...” “मुझे तो पहले से ही डाउट था कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है...!” “सूर्यकान्त ने ही कहीं छुपाकर रखा होगा...।” “हो भी सकता है। इस तरह पब्लिसिटी करके राजनीति में पैर जमाने का रास्ता निकाल लिया सूर्यकान्त ने। बड़े-बड़े नेताओं से मेल-मुलाकात कर ली, ...Read More

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फादर्स डे - 51

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 51 बुधवार 15/02/2000 रात नौ बजे महिंन्द्रा जीप क्रमांक एमएच 11-5653 बीड के रास्ते पर पड़ी। सूर्यकान्त और प्रतिभा को घर वालों ने खुशी-खुशी विदा किया। सभी ने अलग-अलग शब्दों में एक ही हिदायत दी, “संकेत से मिलते ही फोन पर हमारी उससे बात कराना। तुरंत फोन करना। हम राह देखेंगे।” सूर्यकान्त के जीप स्टार्ट करते ही प्रतिभा ने भी संकेत से जुड़ी यादों का सिलसिला शुरू कर दिया। जीप शिरवळ पुलिस चौकी की ओर मुड़ी। सदानंद बेलसरे और रमेश देशमुख भी सूर्यकान्त और प्रतिभा के साथ बीड के लिए रवाना हो गए। बेलसरे ने ...Read More

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फादर्स डे - 52

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 52 बुधवार 15/02/2000 बीड बालग्राम अनाथालय की लॉबी से वॉचमैन के चलने की आवाज प्रतिभा कानों तक पहुंच रही थी। बूट की खटखट नजदीक आती जा रही थी। बेचैन प्रतिभा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि इतना बड़ा कॉम्प्लैक्स बनाने की जरूरत क्या थी, कितनी देर लग रही है उसको वहां से यहां तक चलकर आने में। एक बच्चे को लेकर आने के लिए इतना समय? अब और इंतजार करना उसके बस के बाहर की बात हो गई थी इसलिए वह अपनी जगह से उठी और तेजी से चलते हुए दरवाजे के ...Read More

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फादर्स डे - 53

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 53 गुरुवार 16/02/2000 शेंदूरजणे गांव के रास्ते पर गाड़ी अचानक बंद पड़ गई। रास्ते के तरफ गन्ने के हरे-भरे खेत थे। सूर्यकान्त को ऐसा भ्रम होने लगा कि इन खेतों के बीच से संकेत दौड़ता हुआ उसकी ओर आ रहा है। संकेत की आवाज सुनाई देने लगी, “बचाओ, बचाओ...।” राजेंद्र कदम को कुछ सूझ नहीं रहा था। सूर्यकान्त ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। चक्कर आ जाने की वजह से वह गाड़ी का आधार लेकर खड़े होने की कोशिश कर रहा था। राजेंद्र घबरा गया। “भाऊ, तबीयत ठीक है न? ” सूर्यकान्त ने ...Read More

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फादर्स डे - 54

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 54 शुक्रवार 17/02/2000 संकेत अपहरण की घटना की जांच में जुटा त्रिकुट-थ्री मेन आर्मी अपना सही तरीके से कर रही थी। अब तक संकेत के अपहरण से संबंधित संदिग्धों के नामों में से एक भी नाम और उसकी जांच-पड़ताल छूटनी नहीं चाहिए, सूर्यकान्त का पक्का इरादा था। उसके इस इरादे के गवाह रफीक़ मुजावर और विष्णु मर्डेकर भी पूरे जोश के साथ काम में जुटे हुए थे। कात्रज के पास एक लाख रुपए की रकम गायब हुई- यह सच वहां के पुलिस वाले सालुंके ने उगल ही दिया था। उसी दिन उस जगह दिखाई पड़े ...Read More

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फादर्स डे - 55

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 55 शुक्रवार 05/06/2000 गुजरते हुए दिनों ने सूर्यकान्त और प्रतिभा को एक कठोर वास्तविकता को करने, पचाने की ताकत प्रदान की थी। दोनों ने ही मन ही मन इस बात को स्वीकार कर लिया था कि अब संकेत का मिल पाना असंभव है। इतने छोटे बच्चे को खोजना वास्तव में बहुत कठिन है। यदि अपने नसीब में होगा तो किसी बालसुधार गृह या अनाथालय में संकेत होगा...हो सकता है जिंदा ...???? लेकिन इतनी भयानक आशंका शब्दों में व्यक्त करने ताकत और हिम्मत दोनों की ही जिव्हा में नहीं थी। इस पर एक और नई धमकी ...Read More

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फादर्स डे - 56

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 56 मंगलवार 06/06/2000 सूर्यकान्त की सुबह मानो आगे सरक ही नहीं रही थी। रात्रि जागरण बावजूद उसकी नींद सुबह जल्दी ही खुल गई थी। दस बजे पुणे क्राइम ब्रांच ऑफिस खुलने के साथ ही वर्मा से जाकर मिलना था। सूर्यकान्त ने वर्मा को सारी बातें विस्तारपूर्वक बताईं। सूर्यकान्त को ऐसा महसूस हुआ कि वर्मा उसके काम में ज्यादा रुचि नहीं ले रहा है। आखिरकार वर्मा ने वही कहा, जिसकी सूर्यकान्त को आशंका थी, “हमारे लिए ये मामूली केस है। फालतू मामला है। वैसे, उसका फोन आने दीजिए, बाकी हम सब देख लेंगे।” सूर्यकान्त ने रिक्वेस्ट ...Read More

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फादर्स डे - 57

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 57 मंगलवार 06/06/2000 अचानक एक कॉन्स्टेबल की नजरों के सामने से सुजुकी समुराई बाइक तेजी भागी। उस आदमी ने एक गड्ढे में अपनी बाइक छिपा कर रखी थी। पुलिस की भागदौड़ के बीच वह उस गड्ढे तक दौड़कर पहुंचा और बाइक लेकर भाग गया। सभी को एक जगह इकट्ठा होने में पांच मिनट लग गए। इस भागदौड़ को देखकर सातारा पुलिस बल भी दौड़कर आ गया। दस मिनट इस घटना पर चर्चा करने और सबको सामान्य होने में लग गए। सूर्यकान्त को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह पूरी तरह से हताश हो गया। पुलिस ...Read More

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फादर्स डे - 58

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 58 सोमवार 10/07/2000 ‘सकाळ’ अखबार में रफीक़ मुजावर ने एक छोटी-सी खबर देखी। “निरा गांव फिरौती के लिए एक छोटे लड़के का अपहरण।” इस खबर में बच्चे का नाम या विस्तार से जानकारी नहीं दी गई थी, लेकिन रफीक़ ने सोचा कि सूर्यकान्त को इस बारे में बताना चाहिए। उसने जब सूर्यकान्त को फोन किया तब वह सातारा में था। रफीक़ से फोन पर बात करने के बाद सूर्यकान्त ने तुरंत सातारा पुलिस एसपी रामराव पवार को फोन लगाया। जल्दी से अपनी बात कह दी कि निरा गांव में एक बच्चे का अपहरण हुआ है, ...Read More

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फादर्स डे - 59

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 59 सोमवार 10/07/2000 शनिवार, आठ जुलाई को चंद्रकान्त सुबह से ही फोन का इंतजार कर थे। पूरी दोपहर गुजर जाने के बाद तीन बजे के बाद भापकर एसटीडी बूथ पर उसके लिए फोन आया। चंद्रकान्त के भाई ज्ञानेश्वर सोनावणे ने कॉल रिसीव किया। फोन करने वाले ने साफ-स्पष्ट हिंदी में बात करना शुरू किया। “एक लाख की व्यवस्था करके रखो। अगर लाख रुपया नहीं दिया तो अमित की एक-एक आंख का एक लाख चुकाना पड़ेगा। पैसा किधर चुकाना है,वो मैं कल बताऊंगा।” इस बीच, पुलिस की जांच धीमी गति से चल रही थी। उनके काम ...Read More

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फादर्स डे - 60

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 60 मंगलवार 11/07/2000 सूर्यकान्त को चंद्रकान्त की जुबानी जो कुछ भी सुनने को मिला उस उसका भरोसा ही नहीं बैठ रहा था। किस्सा हूबहू संकेत की ही तरह था। अपहरण के बाद फिरौती, पुलिस की मौजूदगी, विफलता, लाचार पिता, वेदना, बेचैनी और आखिर में नतीजा शून्य। एकदम अपने जैसा ही। अंधेरी रात, जगह और समय की परवाह न करते हुए सूर्यकान्त ने बुद्धिमानी से काम करने का तय किया। खुद को मिली जानकारी के आधार पर सूर्यकान्त ने जांच-पड़ताल करना शुरू किया। एकदम सहजता से, प्रेम से सवाल पूछने लगा। ‘आपके घर में कौन-कौन हैं?, ...Read More

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फादर्स डे - 61

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 61 शुक्रवार 14/07/2000 आज त्यौहार का दिन था। बैलों का उत्सव-पोला। किसान का सबसे बड़ा सुबह नहला-धुला के, सिंगों को रंगरोगन करके, झालर घंटियों से सजाकर बैलों की पूजा करने के बाद उन्हें मिष्टान्न खिलाकर उनके हक की छुट्टी देकर आराम करने दिया जाता है। किसान के ईष्ट की पूजा करने का दिन होता है बैलपोला। सूर्यकान्त के घर पर भी खेती-बाड़ी और बैल होने के बावजूद उसके मन में या ध्यान में इस त्यौहार की याद नहीं थी। उसका सिर तो भयंकर क्रोध से भनभना रहा था। उसे कहीं जाने की जल्दी तो अवश्य ...Read More

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फादर्स डे - 62

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 62 रविवार 16/07/2000 सूर्यकान्त एकदम प्रैक्टिकल आदमी निकला। वास्तविकता का ध्यान रखकर आगे बढ़ना सीख था। उसने अब तक बहुत दुनिया देख ली थी। उसकी गांठ में दुनियादारी का बड़ा अनुभव था। संकेत को गायब होकर अब काफी महीने गुजर गए थे। वह सुरक्षित वापस लौटेगा, इस पर अब उसे संदेह होने लगा था। लेकिन एक पिता का मन चीत्कार कर-कर के कहता था, ‘मेरे संकेत को कुछ नहीं होने वाला, वो जरूर मिलेगा।’ फिर भी, पुत्रप्रेम के वश में होकर अब कोई भी गलती न करते हुए लहू ढेकणे को जाल में फंसाना जरूरी ...Read More

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फादर्स डे - 63

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 63 मंगलवार 18/07/2000 सुबह के साढ़े चार बज गए लेकिन अभी-भी लहू अपने मुंह से बोलने को तैयार नहीं था। उसी समय सातारा पुलिस की गाड़ी आकर रुकी। हुआ यूं कि लहू को लेकर निकली जीप और काली सुजुकी समुराई अंकुश को रास्ते में गच्चा देकर किसी और ही तरफ मुड़ गई थी इसलिए अंकुश ने जेजुरी पुलिस स्टेशन की तरफ दौड़ लगाई थी और पुलिस चौकी में पहुंचकर उसने रोना-धोना मचा दिया था कि सूर्यकान्त भांडेपाटील ने उसके भाई यानी लहू रामचन्द्र ढेकणे का अपहरण कर लिया है। जांच-पड़ताल के नाम पर उनकी तरफ ...Read More

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फादर्स डे - 64

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 64 बुधवार 19/07/2000 अंकुश को मॉं और पत्नी का डर दिखाते ही वह लहू बात के लिए चला गया था। मांगे थे दस मिनट, लेकिन अंकुश सिर्फ तीन मिनट में ही वापस आ गया। सूर्यकान्त की विचारतंद्रा को तोड़ते हुए अंकुश ने बताया, “हां साहब, सब कुछ लहू ने ही किया है।” इतना सुनते ही सूर्यकान्त के सर से पांव तक आग लग गई। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। क्रोध, हताशा और वेदना-सभी भाव एकसाथ उसके चेहरे पर आ गए थे। सूर्यकान्त के चेहरे के हावभाव बदलते जा रहे थे। वह अंकुश या ...Read More

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फादर्स डे - 65

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 65 रविवार 16/07/2000 सूर्यकान्त कठोर मन का इंसान था। उसकी दृढ़ता का अंदाज किसी को नहीं था, खुद सूर्यकान्त को भी अपने मजबूत मनोबल के बारे में शायद पता न हो। आज संकेत की जांच छोड़कर अमित को खोजने के लिए मेहनत करने की उसकी मांग एक पिता के नाते क्रूरता भरी भले ही लग रही हो लेकिन एक सह्दय व्यक्ति के रूप में नतमस्तक करने वाली थी। रात को आठ बजे सभी गाड़ियां शेंदूरजणे से निकलीं। सूर्यकान्त गाड़ी में बैठा जरूर था लेकिन उसका मन और आत्मा उस गन्ने से हल्दी में बदल गए ...Read More

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फादर्स डे - 66

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 66 सोमवार 17/07/2000 एक बार फिर कलमुंहा सोमवार आ गया। संकेत अपहरण कांड का घटनापूर्ण, और धक्कादायक सोमवार। सुबह से ही सब बेचैन थे कि संकेत के बारे में क्या सुनने को मिलने वाला है। वो किस हाल में होगा? लेकिन सूर्यकान्त को नींद से जगाने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी। अब, उसको जल्दी जगाओ, ये इच्छा हर किसी के मन में थी। बाद में फिर सो जाए...पर वह संकेत के बारे में बताने के लिए कुछ देर के लिए जाग जाए। ग्यारह बज गए। प्रतिष्ठित लोगों ने आना शुरू कर दिया था। ...Read More

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फादर्स डे - 67

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 67 मंगलवार 18/07/2000 सातारा पुलिस की जांच-पड़ताल और सवाल-जवाबों का सिलसिला चालू था। लहू ढेकणे कोर्ट में हाजिर करने के बाद आठ दिन की यानी 24 जुलाई तक की पुलिस कस्टडी ले ली गई थी। पुलिस को अब उससे अधिक पूछताछ की आवश्यकता भी नहीं थी। साई विहार में सभी उदास थे। एकदम गुमसुम। उदासी के बादल घर से हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर भी सूर्यकान्त मित्रमंडली के साथ दौड़भाग कर रहा था। संकेत अपहरण केस का खुलासा हो चुका था। कुछ भी शेष नहीं था। सरकारी सिक्योरिटी पुलिस विष्णु मर्डेकर ...Read More

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फादर्स डे - 68

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 68 भारत-भर की निगाहें मुंबई पर टिकी हुई थीं। हिंदू ह्रदय सम्राट शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब की संभावित गिरफ्तारी होगी या नहीं? यदि हो गई तो उसके परिणाम क्या होंगे? मुंबई जल उठेगी? शिवसैनिक क्या कदम उठाएंगे? इसी राजकीय गरमागरमी के वातावरण में पूरे महाराष्ट्र में कानून और सुरक्षा की व्यवस्था तगड़ी बनी रहे और किसी भी तरह की अफरा-तफरी न मचे, दंगे न भड़कें इसकी सावधानी बरतने और मुस्तैद रहने के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई थी। सातारा शहर भी ठाकरे बुखार से तप रहा था। राजवाड़ा, मोती चौक, राजपथ, मार्केट यार्ड और ...Read More

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फादर्स डे - 69

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 69 24/07/2000 फिर वही काला सोमवार। सोमवार के भय से आज सूर्यकान्त की आंख जल्दी गई थी। अपने जागने की किसी को भी भनक न देकर वह सोफे पर चुपचाप आंख बंद करके बैठा रहा। दिमाग में सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था...लहू...लहू...लहू.. अथक प्रयासों के बाद लहू को पकड़कर पुलिस के सुपुर्द किया गया था...और वह दिनदहाड़े पुलिस की आंखों में धूल झोंककर जेल से फरार हो गया। सुबह सभी अखबारों की हेडलाइन का मुख्य विषय लहू ही था। “पोलिसांच्या हातावर तुरी देऊन क्रूरकर्मा लहु रामचंद्र ढेकणेचे पलायन.”(पुलिस की आंखों में धूल झोंककर ...Read More

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फादर्स डे - 70

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 70 मंगलवार, 20/11/2001 सूर्यकान्त भांडेपाटील जो चाहते थे वैसा ही कुछ मिलता-जुलता हुआ। पता नहीं भविष्य की घटना का संकेत था या फिर महज संयोग। सूर्यकान्त को पूरा भरोसा था कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है। जो मन ने कहा, वही किया। अच्छे-अच्छों को पानी पिला दे, लोगों के छक्के छुड़ा दे, ऐसी मारक और कातिल अदाओं वाली को वह आज अपने साथ घर ले जा रहा था। उसकी कोशिश यही थी कि गांव वालों की उस पर नजर न पड़ पाए। इसीलिए वह रास्ते में न तो किसी की ‘राम-राम’ का जवाब ...Read More

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फादर्स डे - 71

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 71 मंगलवार 31/08/2004 अमित चंद्रकान्त सोनावणे केस में सुनाई गई फांसी की सजा और संकेत भांडेपाटील केस में उम्र कैद के खिलाफ लहूकुमार रामचन्द्र ढेकणे ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। न्यायाधीश हेमन्त गोखले और न्यायाधीश एएस अग्यार की पीठ ने दोनों सुनवाइयों का फैसला सुनाया। पुणे जिले के पुरंदर तहसील के नीरा गांव स्थित अमित चंद्रकान्त सोनावणे के अपहरण और हत्या प्रकरण के संबंध में लहू को दी गई मृत्युदंड की सजा को रद्द कर दी गई। मृत्यु दंड के स्थान पर उसे केवल बीस साल की सख्त कैद की सजा दी ...Read More

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फादर्स डे - 72

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 72 साल 2006 अचानक सूर्यकान्त मन में एक विचार कौंधा। इसी गुमे हुए लाइसेंस की का उपयोग नया सिमकार्ड खरीदने के लिए तो किया नहीं गया होगा? दूसरा नया सिमकार्ड खरीदा गया था। कॉल रेकॉर्ड्स की जांच करने पर पता चला कि एक सिमकार्ड का उपयोग फिरौती मांगने के लिए किया गया था और दूसरे का उपयोग पर्सनल कामों के लिए हो रहा था। स्मार्टमैन। लेकिन सूर्यकान्त उससे अधिक स्मार्ट था। फिरौती के लिए उपयोग की गई सिम से सातारा के चंदू भाई को बहुत सारे फोन कॉल किए गए थे। उस नंबर के सभी ...Read More

73

फादर्स डे - 73

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 73 गुरुवार 26/02/2009 कराड में बरामद किया गया बच्चे के शव अंधेरी पुलिसस स्टेशन के में दे दिया गया था। पहले दिन बुधवार को अंधेरी में रहने वाले बदनसीब माता-पिता अंकुश तुकाराम दलवी और मनीषा अंकुश दलवी के करुण रुदन ने अपने बेटे साहिल अंकुश दलवी का शव पहचान लिया था। साहिल का अपहरण हुआ था। ये जानकारी पहले ही सूर्यकान्त तक पहुंच गई थी। सूर्यकान्तने साहिल अंकुश दलवी अपहरण-हत्या की घटना की पूरी जानकारी फोन पर लेना शुरू किया। उनका पता, अपहरण की तारीख, अंदाजन समय और वर्तमान में रह रहे घर के आसपास ...Read More

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फादर्स डे - 74

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 74 शनिवार 28/02/2009 पुलिस द्वारा उमेश जाधव को रिहा कर देने के कारण अंकुश दलवी यकायक आघात-सा लगा। उसने यह बात सूर्यकान्त को फोन करके बताई, लेकिन सूर्यकान्त को इस पर अधिक आश्चर्य नहीं हुआ। हत्या का संदिग्ध आरोपी यदि भाग जाता तो पुलिस की बड़ी बदनामी होती इसलिए पुलिस ने शायद यह विचार किया होगा कि पहले अधिकाधिक सबूत और गवाह जुटा लिए जाएं, उसके बाद आगे बढ़ा जाए-सूर्यकान्त ने इस तरह से सोचा। लेकिन तब तक यदि संदिग्ध आरोपी भाग गया तो? कहीं जाकर छिप जाए तो फिर कहीं उसे ढूंढ़ने में कानून ...Read More

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फादर्स डे - 75

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 75 सिंतबर 2014 लहू ढेकणे पेरौल पर खत्म कर अभी जेल में आया नहीं था। का सिरदर्द बढ़ता जा रहा था। नियमानुसार अंकुश ढेकणे ने लहू को जेल में वापस लाने की जिम्मेदारी ली थी लेकिन जेल रेकॉर्ड में लहू के वापस आने की कोई सूचना पंजीबद्ध नहीं होने के कारण वह जेल से दोबारा फरार होने की नियमानुसार विज्ञापन नहीं दिया गया था। वरना इस कारण गंभीर अपराध दाखिल होकर लहू नियमानुसार कसूरवार ठहराया जाता और उसको सजा भी दी जाती। जरा कल्पना करें कि ऐसा नराधम खतरनाकर खूनी चुपचाप पुणे पहुंच गया होता ...Read More

76

फादर्स डे - 76

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 76 रविवार 17/05/2015 सूर्यकान्त ने अब लहू के पैरों का हिस्सा और मृतदेह के पैरों हिस्सा ठीक से देखा। लैपटॉप की स्क्रीन पर दोनों फोटो को बार-बार ज़ूम करके देखा। पैर के प्रत्येक भाग को ज़ूम किया। एक भाग देखने के बाद दूसरे भाग को देखने की ओर भागा। अचानक सूर्यकान्त ने टेबल पर अपनी हथेली को ठोका। “कुछ तो गड़बड़ है। दोनों पैर, यानी लहू का और शव का पैर मैच नहीं हो रहे हैं।” उसने पुलिस द्वारा की गई टिप्पणियों पर नजर दौड़ाई। अंकुश ढेकणे के कहे मुताबिक शर्ट और पैंट लहू के ...Read More

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फादर्स डे - 77

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 77 शनिवार 24/05/2015 ऐसे ही एक दारू की दुकान में पियक्कड़ दत्तात्रय और लहू की हो गई। दत्तात्रय का डीलडौल लहू से मेल खाता था। उस पर से दत्तात्रय को पीने की जबर्दस्त लत थी। लहू मन ही मन खुश हुआ। काम के लायक शिकार गांठने में ईश्वर ने उसकी मदद कर दी थी। लहू ने दत्तात्रय के साथ दोस्ती करना शुरू की। धीरे-धीरे औपचारिक बातचीत पक्की दोस्ती में बदल गई। संबंध मजबूत करने का एकमात्र रास्ता दारू के ग्लास से होकर जाता था। लहू उदार मन से दत्तात्रय को रोज दारू पिलाने लगा। साथ ...Read More

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फादर्स डे - 78

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 78 सोमवार 13/02/2017 सूर्यकान्त भांडेपाटील की सुबह रोज की आदत के मुताबिक अखबार और चाय कप के साथ हुई। उसकी खोजी नजरें खबरों के महासागर में से कोने में दबी छिपी, अधम वृत्ति के शिकार हुए संकेत को खोजती थीं। वह नए लहू को गिरफ्तार करवाने के लिए दृढ़संकल्प था। कुछ दूर पर खड़ी प्रतिभा शांति से चाय का कप हाथ में पकड़कर उसको देख रही थी। अब, चाय का कप टीपॉय पर छोड़ने की जगह उसे इंतजार करना अच्छा लगने लगा था। पति ने इतना बड़ा सेवायज्ञ करने का व्रत लिया हो तो फिर ...Read More

79

फादर्स डे - 79

लेखक: प्रफुल शाह खण्ड 79 मंगलवार 14/02/2017 डॉक्यू-नॉवेल ‘दृश्यम अदृश्यम’ प्रकरण अंतिम चरण में है। इसके वास्तविक पात्रो की यात्रा निरंतर बढ़ती रहेगी। कथा-प्रवाह को घटनास्पद बनाने के लिए पात्रों की मन-वेदनाएं भला कितना उठाव दे सकती हैं? भले ही ये कथा पूरी हो गई हो, फिर भी वे वेदनाएं समाप्त नहीं हुई हैं। उनके मनजगत पर एक दृष्टिपात करने की मंशा से तीनों मुख्य पात्रों से की गई थोड़ी-सी बातचीत के अंशः “गाडीत फिरण्याचा संकेतच हट्ट सुर्यकांत कधी ही विसरणार नाही.”(संकेत की गाड़ी में घूमने की जिद सूर्यकान्त कभी-भी भूल नहीं सकता) मासूम बेटे के अपने जीवन से ...Read More