भारत की रचना

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मुक्तेश्वर। छोटी-सी जगह. भरा पूरा कस्बा। ब्रिटिश शासन में किसी अंग्रेज़ गवर्नर का निवास स्थान होने के कारण यहाँ पर अधिकांशतः इमारतें उसी काल की बनी हुई थीं- लाल और मज़बूत पक्की ईंटों की विशाल इमारतें देखते ही लगता था कि आज भी वे इस आधुनिक युग की बनी बिल्डिंगों के मुकाबले अत्यधिक प्रबलता के साथ अपनी दृढ़ता का प्रमाण दे रही थीं, साथ ही समझनेवालों के लिए अतीत की उन कठोर और ज़ख्मी स्मृतियों को भी उनके मानसपटल पर आज भी प्रतिबिंबित कर देती थीं जबकि अंग्रेज़ों के एक अदना सिपाही तक ने हमें अंगुलियों पर नचाया था। अधिकांश सभी कुछ तो उसी ही समय का आज भी जैसा-का-तैसा था- मिशन अस्पताल, क्रिश्चियन कालेज, स्कूल, जीसस किड्स होम, चर्च की गगनचुंबित क्रास की चोटी एवं रेलवे स्टेशन इत्यादि तक, परन्तु फिर भी सरकार ने अभी तक इस कस्बे को तहसील तक ही सीमित रहने दिया था। पर इतना अवश्य था कि लोगों में जाति-पांति और पक्षपात का भेद समाप्त हो जाए, इसलिए एक राजकीय कालेज और राजकीय अस्पताल अवश्य ही खुलवा दिया था।

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भारत की रचना - 1

भारत की रचना (एक बेहद मार्मिक उपन्यास) प्रथम भाग प्रथम परिच्छेद *** मुक्तेश्वर। छोटी-सी जगह. भरा पूरा कस्बा। ब्रिटिश में किसी अंग्रेज़ गवर्नर का निवास स्थान होने के कारण यहाँ पर अधिकांशतः इमारतें उसी काल की बनी हुई थीं- लाल और मज़बूत पक्की ईंटों की विशाल इमारतें देखते ही लगता था कि आज भी वे इस आधुनिक युग की बनी बिल्डिंगों के मुकाबले अत्यधिक प्रबलता के साथ अपनी दृढ़ता का प्रमाण दे रही थीं, साथ ही समझनेवालों के लिए अतीत की उन कठोर और ज़ख्मी स्मृतियों को भी उनके मानसपटल पर आज भी प्रतिबिंबित कर देत ...Read More

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भारत की रचना - 2

भारत की रचना - धारावाहिक - दूसरा भाग और इस तरह समय की दीवारें बढ़ती रहीं। अतीत की हरेक समय की नई-नवेली पत्तों के बीच स्वतः ही बंद होती गई। कितने ही मौसम बदल गए। पलक झपकते ही तारीखें हफ्तों में, फिर महीनों में, और महीनों से वर्षों में परिणत होती चली गईं। इस समय संसार में न जाने कितने ही नए कमसिन पुष्पों ने जन्म ले लिया और न जाने कितने ही लोग समय-असमय उठकर इस संसार से सदा को चले भी गए। लगता था कि जैसे एक पूरा युग समाप्त हो चुका था। दीनानाथ चर्च की पास्टरी ...Read More

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भारत की रचना - 3

भारत की रचना - धारावाहिक- तृतीय भाग ***थोड़े-से दिन और सरक गए।रचना कालेज जाती रही। भारत भी कालेज आ था। वक्त की बढ़ती हरेक तारीख और आकाश में सरकती हुई प्रत्येक बदली के साथ-साथ भारत की रचना के सपनों का सरताज बनकर उसके दिल की सोई हुई कमसिन प्यार की भावनाओं में दखलअंदाज़ी करने लगा। करने लगा, तो रचना ने भी अपनी ओर से इसका कोई विरोध नहीं किया। दिल-ही-दिल में वह भारत को अपना समझकर, उसे अपने मन में और भी पास बुलाने लगी- उसके प्रति न जाने कितने ख्वाब सजाने लगी। अक्सर ही वह भारत के विषय ...Read More

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भारत की रचना - 4

भारत की रचना/धारावाहिक/ चतुर्थ भाग रात बढ़ रही थी। उसके हॉस्टल की सारी लड़कियां उसके दिल के जज्बातों से जैसे मदहोश होकर सो चुकी थीं। स्वयं उसकी रूम-मेट अपनी नींद में बेसुध थी। परंतु रचना, वह कहीं अन्यत्र ही थी। उसका दिल कहीं और जाकर जैसे खो गया था। अपने दिल की प्यारभरी स्मृतियों में वह अभी तक जाग रही थी। रात्रि का दूसरा पहर आरम्भ हो चुका था। वातावरण किसी सर्द लाभ के समान ठंडा पड़ गया था। आकाश पर तारिकाएं छोटे-छोटे नासमझ और नादान बच्चों के समान रचना को देखती थीं और शायद उसकी मनोदशा को समझ ...Read More

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भारत की रचना - 5

भारत की रचना /धारावाहिक / पांचवां भाग सुबह हो गई। दिन निकल आया- नया दिन। हाॅस्टल के घने वृक्षों चिड़ियां बोलने लगीं। लड़कियां उठकर अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गईं। परंतु रचना अपने बिस्तर से उठ भी नहीं सकी। उठने का उसका म नही नहीं हुआ। सारे बदन में उसके दर्द हो रहा था। इस दर्द के कारण उसकी रग-रग तक दुखने लगी थी। पिछली कई रातों तक जागने के कारण आज उसकी तबियत पहले से और अधिक खराब हो गई थी। उसका ज्वर भी बढ़ गा था। सारा शरीर आग के समान तप रहा था। तब शीघ्र ...Read More

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भारत की रचना - 6

भारत की रचना / धारावाहिक / छटवां भाग दूसरा दिन रविवार था। छुट्टी का दिन-काॅलेज बंद- मुक्तेश्वर के मुख्यतः ही बाजार बंद थे। अभी सुबह की मधुर उषा में प्रातः की चिड़ियों ने चहकना और बोलना आरम्भ ही किया था, अस्पताल के अधिकांशतः मरीज अभी भी उनींदा हालत में थे, परंतु फिर भी अन्य कर्मचारियों और बाहर के आने वाले लोगों की हल्की चहलकदमी आरंभ हो चुकी थी। रचना भी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। वह जाग तो रही थी, परंतु फिर भी जैसे सोई-साई-सी अवस्था में ही थी। तभी राॅबर्ट जार्ज ने उसके वार्ड में प्रवेश किया। ...Read More

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भारत की रचना - 7

भारत की रचना / धारावाहिक / सातवाँ भाग हॉस्टल में आ जाने के पश्चात्, जब वातावरण और माहौल फिर परिवर्तित हुआ तो रचना का स्वास्थ पुनः अपने पहले जैसे रूप और रंग पर आ गया। शीघ्र ही वह पूर्ण स्वस्थ होकर कॉलेज जाने लगी; टूटे-टूटे मन से इच्छा न होते हुए भी उसको अपने कदम कक्षाओं की ओर धकेलने पड़ते थे। कॉलेज में उसकी अरुचि का कारण भी विशेष ही था। वह शरीर से तो स्वस्थ हो चुकी थी, परंतु मन से अभी तक बीमार ही थी- उसकी अस्वस्थता का जो मुख्य कारण था, वह केवल यही, कि इतने ...Read More

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भारत की रचना - 8

भारत की रचना / धारावाहिक आठवाँ भाग रात ढले ज्योति और रचना, दोनों ही अपने कमरे में थीं. सारी भी 'स्टडी' समाप्त हो जाने पश्चात अपने-अपने कमरों में बंद हो चुकी थीं. इसके साथ ही धीरे-धीरे हॉस्टल का अमुचा वातावरण अंधेरी अंधेरी रात के साए में लिपटता गया. चारो तरफ मूकता एक तीसरे आगुन्तक के समान रात्रि की इस खामोशी का दामन थामकर अपना अधिकार कर बैठी. ज्योति और रचना भी लेती हुई थीं. अपने कमरे में 'स्टडी' समाप्त करके वे सोने तो आ गई थीं, पर उनकी आँखों में नींद नहीं थी. नींद न आने का कारण रचना ...Read More

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भारत की रचना - 9

भारत की रचना / धारावाहिक नवां भाग कॉलेज लग रहा था. सारे विद्द्यार्थी अपनी-अपनी कक्षाओं में बैठे हुए अध्ययन रहे थे. कॉलेज के प्रांगण में चारों तरफ मौन छाया हुआ था. कुछेक मनचले और शरारती विद्द्यार्थी अपनी कक्षाओं में न होकर कॉलेज के बाग़-बगीचों में बैठी हुई छात्राओं को ताक रहे थे. कभी-कभार उनकी हंसी का कोई ठहाका, क्षण भर में ही कॉलेज की सारी शान्ति का कान मरोड़कर रख देता था. जिन विद्द्यार्थियों व छात्राओं की कक्षाएं खाली थीं, वे भी अपनी कक्षाओं में न होकर, वृक्षों, और झुरमुटों की आड़ में बैठे हुए वार्तालाप में मग्न थे. ...Read More

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भारत की रचना - 10

भारत की रचना / धारावाहिकदसवां भाग'?'- रचना ने पुन: आश्चर्य से देखा, तो वह आगे बोली,'तुम बहुत ही अच्छी हो. कितने वर्षों से मैं तुम्हारे साथ हूँ और कभी भी कोई शिकायत मुझे आज तक नहीं मिली है. साथ में पढ़ने में भी तुम सदैव अच्छी ही रही हो.''ये तो सब आपकी दुआओं का फल है और परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह बना रहा है कि मैं ऐसा कर सकी.'रचना ने उसकी बात को सुनकर कहा तो लिल्लिम्मा जॉर्ज ने बात आगे बढ़ाई. वे बोलीं,'किसी का भी रहा हो लेकिन, सबसे बड़ी बात तुम्हारी मेहनत, लगन और सदैव ही ...Read More

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भारत की रचना - 11

भारत की रचना / धारावाहिकग्यारहवां भाग फिर जैसे ही कॉलेज के घंटे ने वहां की खामोशी को भंग कर तो रचना ने शीघ्र ही अपनी पुस्तकें समेटीं और उन्हें बगल में दबाए हुए, वह शीघ्र ही कक्षा से बाहर निकलने को हुई, तो अचानक ही उसकी सहेली ज्योति ने उसे टोक दिया. ज्योति रचना को आश्चर्य से निहारते हुए बोली कि,'अरी ! कहाँ चल दी, इतनी जल्दी? सब कुशल तो है?'हां, ठीक है. मैं अभी आती हूँ.' रचना बगैर रुके हुए ही बोली, तो ज्योति को आश्चर्य हुआ. वह एक संशय के साथ, उससे भेद भरे ढंग से पूछ ...Read More

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भारत की रचना - 12

भारत की रचना / धारावाहिकबारहवां भाग फिर रचना चुपचाप जाकर अपनी कक्षा में बैठ गई. ज्योति भी अभी तक आई था. वैसे वह ज्योति की आदत जानती थी. अवश्य ही वह कहीं बातों में व्यस्त हो चुकी होगी. उसके साथ की अन्य लड़कियां भी अभी तक कक्षा में नहीं आ सकी थीं. रचना का मन अब यूँ भी कॉलेज में उचाट होने लगा था. कॉलेज में रहने का उसे कोई बहाना भी नज़र नहीं आता था. भारत की प्रतीक्षा और उसकी चाहत में बिछी हुई रचना की आँखें केवल स्मृतियों के सहारे किसी आस पर रोज़ ही प्रतीक्षा करती ...Read More

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भारत की रचना - 13

भारत की रचना / धारावाहिकतेरहवां भागउसे देखकर तो रचना के तो तन-बदन में एक सिहरन-सी उठकर रह गई. परन्तु भारत को निर्भीक अपने सामने खड़ा देखकर, जैसे खीझकर उससे बोला,'आपकी तारीफ़?''भारत !.''भारत. . .? यानी अभिनेता मनोजकुमार?' रॉबर्ट ने व्यंग से पूछा.'जी नहीं. साहित्य कुमार 'भारत' हूँ मैं. धानपुरा का धान और चावल बेचनेवाला भारत.''हमारे बीच में यूँ कूदने की मूर्खता?''मेरी नहीं, तुम्हारी है.'भारत ने उत्तर दिया तो रॉबर्ट और भी अधिक झुंझला गया. वह तैश में आकर बोला,'तुम्हारा कहने का मतलब?''यही कि, जब रचना को तुम्हारा यहाँ आना पसंद नहीं है, तो फिर मत आया करो. वैसे भी ...Read More