मेरा जन्म गोरखपुर से लगभग 20 कि.मी.दूर खजनी के एक गाँव विश्वनाथपुर में को हुआ था | यह गाँव सरयूपारीण ब्राम्हणों के सुप्रसिध्ध गाँव सराय तिवारी का ही एक हिस्सा था | मेरे गाँव से लगभग एक कि.मी.की दूरी पर आमी नदी बहा करती थी जो अब लुप्तप्राय हो चली है | उस आमी नदी और उसके ठीक किनारे स्थित कपूरी (मलदहिया) आम के बहुत बड़े बागीचे { जिसे हमलोग बडकी बगिया कहा करते थे } को मैं अब भी भूल नहीं पा रहा हूँ क्योंकि उससे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियाँ हैं | आप कल्पना कीजिए कि बचपन में आप किसी ऐसे ही बागीचे में पहुंचे हों ,उन्मुक्त रूप से नदी में नहा रहे हों , डाल पर चढ़ कर आम तोड़ चुके हों और अब आम खाए जा रहे हों ... सच एकदम सच और विश्वास मानिए ऐसा भी हुआ है कि तैयारी के साथ तो बागीचा हम पहुंचे ना हों और नदी देखकर नहाने के लिए मन मचल उठा हो तो... तो बस कपड़ा फेंका और कूद गए नदी में .. और जब तक आम की दावत समाप्त हुई कपडे भी सूख जाया करते थे |
प्रफुल्ल कथा - 1
मेरा जन्म गोरखपुर से लगभग 20 कि.मी.दूर खजनी के एक गाँव विश्वनाथपुर में को हुआ था | यह गाँव ब्राम्हणों के सुप्रसिध्ध गाँव सराय तिवारी का ही एक हिस्सा था | मेरे गाँव से लगभग एक कि.मी.की दूरी पर आमी नदी बहा करती थी जो अब लुप्तप्राय हो चली है | उस आमी नदी और उसके ठीक किनारे स्थित कपूरी (मलदहिया) आम के बहुत बड़े बागीचे { जिसे हमलोग बडकी बगिया कहा करते थे } को मैं अब भी भूल नहीं पा रहा हूँ क्योंकि उससे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियाँ हैं | आप कल्पना कीजिए कि बचपन में आप ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 2
मैं एक अदना लेखक , जब कभी कुछ लिखता हूँ तो मेरे मन में इस बात की धुकधुकी लगातार ही रहती है कि मेरा लिखा पाठकों के मन को छू सकेगा या नहीं ? यदि छू जाता है तो उसका ‘फीडबैक’ मिल जाता है और यदि नकार दिया जाता है तो उसका ‘फीडबैक’ भी निश्चित ही मिलता है | इस ‘फीडबैक’ का मुझ पर ,मेरे लेखन पर भी असर पड़ता है और मैं पाठकों के मनोनुकूल अगला आलेख लिखने की फिर- फिर कोशिश में जुट जाता हूँ ..और आप तो जानते ही हैं कि “कोशिश करने वालों की हार ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 3
जीवन समय - समय पर रंग बदलता रहता है और आप उसी रंग में रंगते चले जाते हैं | अब कैशौर्य से युवा हो रहा था | वर्ष 1969 में अब इंटरमीडिएट का छात्र था | हाई स्कूल ईसाई शैक्षणिक संस्थान से किया तो अब मैं आर्य समाज संगठन के एक विद्यालय में पढने लगा था | दोनों एक दूसरे के सर्वथा विपरीत | वहां मसीही प्रार्थना हुआ करती थी और यहाँ वैदिक | गोरखपुर उन दिनों जातिवाद के भरपूर प्रभाव में था और शैक्षणिक संस्थान भी इससे अछूते नहीं थे | तुलसीदास इंटर कालेज ब्राम्हण समुदाय का था ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 4
तह पर तह लगाकर जम चुकी हैं मेरी ज़िन्दगी की यादें ......यादें कुछ खट्टी , कुछ मीठीं | एक ख़याल आया कि क्यों ना इन यादों से भरी संदूक की धूल हटाकर देखी जाय जिसमें बचपन की शरारतें हैं , युवावस्था के सपने हैं , गृहस्थ जीवन का ताना बाना है , नौकरी की धूप - छाँव और सम्बन्धों का बनता - बिगड़ता गणित , इतना ही नहीं कडवाहटें - टीस - चुभन भी है , ढेर सारे लोगों का मिलना- बिछड़ना है .. हाँ , वही सब कुछ जो आपकी ज़िंदगी में भी होता रहता है ...तो इन ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 5
किसी ने क्या खूब लिखा है –‘जीवन में यह अमर कहानी , अक्षर अक्षर गढ़ लेना , शौर्य कभी जाए तो सैनिक का जीवन पढ़ लेना ! ‘ शायद नियति मेरे साथ भी यही किस्सा रचती जा रही थी | आठवीं या नौवीं कक्षा से अपने पिताजी के सानिध्य में साहित्य और लेखन से मेरा जुड़ाव हो चला था | उनके रफ़ लेखों को मैं अपनी अच्छी हस्तलिपि देता था और उसे पत्र- पत्रिकाओं में भेजने ,छपने के बाद उसका संग्रह करने का काम बखूबी करने लगा था | जब पारिश्रमिक आता तो मुझे भी पिताजी इनाम देते ..और ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 6
किसी ने क्या खूब कहा है ; “ आत्मकथा लिखते समय लेखक को अपनी आलोचनाओं की परवाह नहीं करनी चाहे क्यों ना ज़माना बैरी हो जाय !” सचमुच आत्म की कथा लिखते समय लेखक स्वयम इतना सतर्क और पारदर्शी होता है कि मानो वह आइने के सामने खड़े होकर अपने एक -एक वस्त्र उतार रहा होता है और निर्वस्त्र होकर भी संतुष्ट नहीं हो पाता है | वह स्वयं सतर्क रहता है कि उसकी लेखनी पर कोई उंगली ना उठाये ! कहा जाता है कि महिलाएं आँखें देखकर किसी पुरुष का मन पढ़ने में सिद्धहस्त होती हैं | एक ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 7
हां, तो थाम कर ज़िन्दगी का हाथ अपनी ज़िंदगी हौले - हौले अपने पग धरते निकल पड़ी थी | हर ओर अपनी बाहें फैलाए हुए बुला रही थीं तो अजनबी लोगों और परिस्थितियों से जूझने में आत्मविश्वास परीक्षा लेने को तत्पर था | मुझे पता नहीं था कि अब पढाई के बाद किन- किन दौर से गुज़रना होगा, कितनी बार सूखे पत्तों सा बिखरना भी होगा ! कभी ठहराव सी लगेगी ज़िन्दगी तो कभी अभाव सी | लेकिन अपने शहर के साहित्यिक कोहिनूर फि़राक़ साहब ने भी क्या खूब कहा है – “ ये माना ज़िन्दगी है चार दिन ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 8
किसी ने सच ही लिखा है कि शब्दों में धार नहीं बल्कि आधार होना चाहिए | जिन शब्दों में होती है वो मन को काटते हैं और जिन शब्दों में आधार होता है वे मन को जीत लेते हैं | ” इस आत्मकथात्मक यात्रा में, जिसके आप सभी सहयात्री हैं , पता नहीं मेरे शब्द आपको आधार प्रदान कर पा रहे हैं अथवा नहीं ! मेरी यह लगातार कोशिश है कि यह लेखन मेरी निजी जीवन की ताक झाँक के साथ उस काल और उन महत्वपूर्ण घटनाओं को भी समेटे हुए हो जो प्राय: आप सभी के जीवन में ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 9
कथा सम्राट प्रेमचन्द का कहना है कि “ लिखते तो वह लोग हैं जिनके अन्दर कुछ दर्द है, अनुराग लगन है, विचार है | जिन्होंने धन और भोग - विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया , वह क्या लिखेंगे ?” आज जब मैं इन पन्नों पर अपने आप को उतार रहा हूँ तो लगता है कि उस दौर की मेरी परेशान ज़िंदगी में सब ‘चिल’ हो जाएगा किसको पता था , मुझे भी तो नहीं ! सोचिए,अगर मुझ जैसा साहित्यिक रूचि वाला नौजवान सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने की जद्दोजहद वाली कोर्ट - कचहरी ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 10
मैं उन दिनों में जब कि अपनी ही आत्मकथा "प्रफुल्ल कथा “ लिख रहा हूँ और इन पन्नों द्वारा तक पहुंचा रहा हूँ तो यह महसूस कर रहा हूँ कि आत्मकथा लेखक के लिए यह मुश्किल होता है कि वह उस संस्थान का जिक्र अपने संस्मरण में न लाए (या कम से कम लाए ) जहां उसने जीवन के 25-30 या उससे भी ज्यादे साल गुजारे हों |आकाशवाणी में काम करने वाले तमाम प्रतिभावान लोगों ने भी जब अपनी आत्मकथाएं लिखीं तो शायद उनके सामने भी यही सवाल खड़ा हुआ होगा |मैं ऐसी आत्मकथाओं में आकाशवाणी के प्रतिबिम्बन को ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 11
चढ़ते सूरज की तरह मेरा जीवन एक -एक पायदान ऊपर चढ़ने लगा | पता ही नहीं चला कि मैं बच्चे से युवा हुआ , तरुण हुआ और वयस्कता की ओर बढ़ चला हूँ ! नौकरी मिलने और शादी होने और फिर बच्चे पैदा हो जाने के बाद से ऐसा लगने लगा कि अब जीवन की दुपहरिया भी तो आ चुकी है |नाचीज़ की नौकरी मिलने की कहानी आप सुन चुके हैं | कहाँ मुझे काले कोट, सफेद पैंट में कचहरी जाना था और कहाँ अब मैं अपने मनचाहे एयरकन्डीशंड प्रसारण संगठन और स्टूडियो में पदासीन था ! कहाँ हर ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 12
हसन कमाल ने फिल्म “निकाह” के लिए एक लोकप्रिय नज़्म लिखी है –“ अभी अलविदा मत कहो दोस्तों,न जाने कहां मुलाकात हो |क्योंकि,बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी,ख्वाबों में ही हो चाहे मुलाकात तो होगी |”इसी में शायर ने आगे यह भी कहा है-“ये साथ गुज़ारे हुए लम्हात की दौलत,जज्बात की दौलत, ये खयालात की दौलत |कुछ पास न हो पास, ये सौगात तो होगी |”सचमुच आज अपनी आत्मकथा लिखते हुए मैं शायर की लिखी इस नज़्म की आत्मा में बैठा कर अपने दिन बिता रहा हूँ |अपने जीवन को अलविदा कहने का समय आ गया है ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 13
साल 2015 की शुरुआत में ही 4 जनवरी की सुबह समाचार आया कि गोरखपुर में मेरे घर के सामने माता जी (मक्खू बाबू की पत्नी ) का देहांत हो गया है | जाना चाहता था किन्तु नहीं जा सका क्योंकि उसी बीच दिल्ली भी जाना था | वर्ष 2010 में जब से मेरे दाहिने हिप ज्वाइंट का री- रिप्लेसमेंट हुआ तब से मुझे हर साल फालो अप के लिए अपने चिकित्सक के पास दिल्ली जाना होता है |सो वर्ष 2015 की 16 तारीख की रात में हम लोग नई दिल्ली के लिए रवाना हुए |वहां मैक्स में डा. एस. ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 14
उन दिनों गोरखपुर की दुनिया बहुत सीमित हुआ करती थी | एक ओर एयर फ़ोर्स स्टेशन शहर का आखिरी माना जाता था तो दूसरी ओर तुर्कमानपुर | एक ओर रुस्तमपुर ढाला तो दूसरी ओर आम बाज़ार और फिर आगे चलकर मेडिकल कालेज | सायकिल आवागमन की मुख्य सवारी हुआ करती थी और आप सायकिल उठाकर कुछ ही देर में पूरा शहर नाप सकते थे | लगभग आधे शहर में रामगढ़ ताल अपने घने शैवाल के साथ शबाब बिखेरा करता था | राप्ती नदी शहर का श्रृंगार बनकर अपनी समृद्ध जल भंडारण पर इतना इतराती थी कि वर्षाकाल में बाढ़ ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 15
मेरे पिताजी ने बहुत संजो कर सरया तिवारी गांव के समूचे “राम” घराना वंशावली की कलात्मक सूची रखी है बहुत बड़े वंश -वृक्ष को आधार बनाकर जिनमें आवश्यकतानुसार शाखा- प्रशाखाओं की डालियाँ निकली हुई हैं और उन पर यथासम्भव नाम भी अंकित हैं |वे अब अपडेट नहीं हो पा रही हैं ......और शायद यह सम्भव भी नहीं है क्योंकि पहले के गांव सरया तिवारी में बसे राम घराना का कुनबा अब बहुत विशाल हो चला है | उन सभी का उल्लेख कर पाना तो सम्भव नहीं है किन्तु मैं अपने विश्वनाथपुर टोले के वंशजों की यथाशक्ति सूची नीचे दे ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 16
मेरे पाठकों , मैं इस समय अपनी उम्र की सत्तरवीं सीढ़ी पर पहुँच चुका हूँ | अब सब कुछ का समय आ चला है तो उन सभी का शुक्रिया अदा करना भी अपना धर्म बनता है जिन्होंने मुझे सांप बनकर काटना चाहा ...(और मुझे बच निकलने की सीख मिली ) .तो सीढियों की तरह अभी सहारा बनकर माँ की थपकियों जैसी थपकियाँ देकर दुलराया , सांत्वना दिया कि संकट क्षणिक आपदा होती है उससे डरो नहीं उसका सामना करो , पिता की तरह हमेशा अच्छी राह दिखाई , भाई की तरह टूटने के दौर में अपना कंधा दिया और ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 17
मुझे अपने पितामह पंडित भानुप्रताप राम त्रिपाठी और पिताजी आचार्य प्रतापादित्य की तरह डायरी लिखने का शौक था |वे स्वांतः सुखाय के लिए लिखते थे | इन दिनों जब अपनी आत्मकथा लिख रहा हूँ उसके लेखन में मेरी वे डायरियाँ भी काम आ रही हैं | तो शुरु करूँ ? वर्ष 1978 के अगस्त माह के मेरे वेतन का विवरण कुछ इस प्रकार था -मूल वेतन चार सौ चालीस , डी.ए.118-80, ए.डी.ए.66 रुपये |कुछ कटौती आदि के बाद कुल वेतन 607 रुपये तीस पैसे मिला था | मेरे पास खर्च करने के लिए कुछ खास मद नहीं था लेकिन ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 18
आकाशवाणी की अपनी सेवा में दो बार कार्यक्रम अधिकारी के रुप में मैं आकाशवाणी लखनऊ में नियुक्त था। एक 1992से 1993तक लगभग एक साल और दूसरी बार 2003से 2013 में अपने रिटायरमेंट तक। दोनों बार आकाशवाणी लखनऊ की पोस्टिंग के दिन मेरे लिये स्वर्णिम काल सिद्ध हुए । पहली बार स्व.श्री मुक्ता शुक्ला मैडम बाधवा,सोमनाथ सान्याल सहायक केन्द्र निदेशक के रुप में मेरे "बास " रहे। "बिग बास" की भूमिका में थे उन दिनों केन्द्र निदेशक के रुप में कार्यरत स्व.श्री रामधनी राम(जो आगे चलकर मेरे दूसरे टेन्योर में उप महानिदेशक मध्य क्षेत्र-1 बनकर वहीं आ गये थे ) ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 19
मेरे जीवन में बाल्य काल से अभी तक साहित्य मेरे माथे का चन्दन बना रहा है। शायद यदि शरीर मस्तिष्क ने साथ दिया तो जीवन के अंतिम क्षण तक इसका साथ बना रहे है। कोई क्यों लिखता है ? अगर वह नहीं लिखता तो क्या हो जाता ? या कि , लिखना उसका व्यसन है ,शौक है ,अनिवार्यता है , प्रतिबद्धता है ,उसकी उँगलियों , उसके विचार या भावनाओं की खुजली है ? ये या इन जैसे तमाम यक्ष प्रश्न आपके , हम सबके मन में उठ सकते हैं | इनके उत्तर भी अलग - अलग हो सकते हैं ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 20
आकाशवाणी की सेवा में अनेक निदेशकों और सहायक निदेशकों का साह चर्य मिला। उनसे सुख भी मिला और दुःख कहां और किनसे शुरू करूँ?इलाहाबाद के बी. एस. बहल से जो मेरे पहले निदेशक थे या डा. गुलाब चंद से जो मेरे अंतिम निदेशक /अपर महानिदेशक थे। काज़ी अनीस उल हक़, मैडम किश्वर सुल्तान, डा. उदय भान मिश्र, प्रेम नारायण, नित्यानंद मैथानी, सनीलाल सोनकर, बी. आर. शर्मा, डा. एम रहमान, मुक्ता शुक्ला, करुणा श्रीवास्तव, सोमनाथ सान्याल, मो. अली मौज, रामधनी राम.... ढेर सारे लोग जो या तो अब सामाजिक हाशिए पर चल रहे हैँ या स्वर्ग सिधार गए हैं।कुछ कुर्सी ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 21
अपनी इस आत्मकथा में ढेर सारे नायक- नायिकाएं और खलनायक -खल नायिकाएं भी हैँ, विदूषक भी। उनका अगर उल्लेख तो यह आत्मकथा विशाल रूप ले लेगी। लेकिन उन्हें छोड़ा भी तो नहीं जा सकता है!बहरहाल इस समय मैं एक बहुत ही उम्दा, गायकी का एक नायाब हीरा राहत अली की बात करना चाहूंगा। जब स्व.नित्यानंद मैठाणी ने वर्ष 2009 में संगीत की दुनिया में मसीहा बनकर उभरे राहत अली साहब पर किताब लिखने की योजना बनाई तो मैं आकाशवाणी लखनऊ में ही कार्यरत था |बीसवीं सदी के आठवें और नौवें दशक में ‘ग़ज़लों के बादशाह’ के रूप में राहत ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 22
पाठकों ,आत्मकथा अधूरी रहेगी अगर मैं उस घटना का जिक्र नहीँ करूंगा जिसमें मुझे देश के प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने ने सम्मानित किया था। अखिल भारतीय स्तर पर सम्पन्न प्रतियोगिता में मेरे साहित्यिक योगदान को पुरस्कृत और सम्मानित किया था।आपको कुछ अटपटा या फिर कुछ चटपटा सा लग सकता है मेरा यह वृत्तान्त का ।लेकिन ,यह मेरी जिन्दगी का एक रोमांचक सच है जिससे मैं आपको रू -ब- रू करा देना चाहता हूँ ।इसलिए भी कि 'न जाने किस घड़ी में जिन्दगी की शाम हो जाए..!'यह वाकया जिन दिनों का है उन दिनों मुझे आकाशवाणी की समूह 'ग' सेवा में ...Read More
प्रफुल्ल कथा - 23
आकाशवाणी इलाहाबाद केंद्र पर जबरन दूसरी बार भेज दिए जाने और उस अवधि में वहाँ बेमन से काम करने बाद मैनें 13 जुलाई 1984 को समान पद पर आकाशवाणी गोरखपुर ज्वाइन कर लिया | यहाँ मेरे सहकर्मी के रूप में कुछ नए लोग भी आ चुके थे |जैसे - वी० के० श्रीवास्तव, दिनेश गोस्वामी , अनिल भारती,बृजेन्द्र नारायण,सुनीता काँजीलाल , विनय कुमार आदि | मुझे केंद्र पर एडजेस्टमेंट की कोई दिक्कत ही नहीं थी |जाना पहचाना केंद्र था ,जाने पहचाने लोग थे | कवि–संपादक डा०धर्मवीर भारती ने अपनी कविता “मैं क्या जिया” में जीवन की परिभाषा कुछ इस प्रकार ...Read More