सेठ हीरा लाल अपनी पत्नी गायत्री के साथ रोज़ की ही तरह आज भी प्रातः काल सैर पर निकले थे। बारिश के दिन थे, बहुत ही खूबसूरत मौसम, ठंडी पवन, शरीर और मन को लुभा रही थी। प्रातः के लगभग पांच बजे का समय था। पति पत्नी काफ़ी लंबी दूरी तय करते थे। उन्हें सुबह की ठंडी हवा और प्रदूषण मुक्त वातावरण में सैर करना बहुत पसंद था। किंतु उस दिन कुछ अनहोनी होने वाली थी, शायद इसीलिए हीरा व गायत्री के घर से काफ़ी दूर निकलने पर मौसम का मिज़ाज एकदम बदल गया। मंद पवन के झोंके, आंधी में तब्दील हो गए, अनायास ही भारी वर्षा का आगमन हो गया, बिजली भी चमक रही थी। तभी गायत्री ने हीरा लाल से कहा, "सुनो जी मौसम तो काफ़ी ख़राब हो रहा है चलो जल्दी से घर की तरफ़ लौट चलते हैं।" हीरा लाल ने भी स्वीकृति में हाँ कहा और दोनों ने घर की तरफ़ मुड़ने का रुख किया। हीरा लाल का घर वहाँ से काफ़ी दूर था, अतः वह सोच रहे थे कि यदि कोई रिक्शा या टैक्सी मिल जाए तो उचित होगा। किंतु सुनसान सड़क पर उन दोनों के अतिरिक्त कोई भी नहीं था। चलते-चलते गायत्री की साड़ी का पल्लू एक झाड़ी में अटक गया। वह अपनी साड़ी का पल्लू निकालने के लिए जैसे ही नीचे झुकी, उसे किसी के रोने की धीमी-सी आवाज़ महसूस हुई। किंतु मौसम की वज़ह से वह आवाज़ स्पष्ट नहीं थी।
Full Novel
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 1
सेठ हीरा लाल अपनी पत्नी गायत्री के साथ रोज़ की ही तरह आज भी प्रातः काल सैर पर निकले बारिश के दिन थे, बहुत ही खूबसूरत मौसम, ठंडी पवन, शरीर और मन को लुभा रही थी। प्रातः के लगभग पांच बजे का समय था। पति पत्नी काफ़ी लंबी दूरी तय करते थे। उन्हें सुबह की ठंडी हवा और प्रदूषण मुक्त वातावरण में सैर करना बहुत पसंद था। किंतु उस दिन कुछ अनहोनी होने वाली थी, शायद इसीलिए हीरा व गायत्री के घर से काफ़ी दूर निकलने पर मौसम का मिज़ाज एकदम बदल गया। मंद पवन के झोंके, आंधी में ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 2
भले ही उस नवजात शिशु के साथ गायत्री और हीरा लाल जी का कोई सम्बंध नहीं था परन्तु झाड़ियों पड़े हुए उस शिशु को बचाने के लिए भगवान ने उन्हें चुना था। वह दोनों बाहर खड़े बेसब्री से डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ देर में डॉक्टर ने बाहर आकर बताया कि बच्ची का बचना मुश्किल है। गायत्री रोते-रोते डॉक्टर से उसे बचाने की मिन्नतें करने लगी। डॉक्टर ने उन्हें दिलासा दी और कहा हम पूरी कोशिश करेंगे, किंतु कम से कम 24 घंटे बच्ची को डॉक्टरों की निगरानी में रखना होगा। यदि इतना समय निकल गया तो ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 3
पिंकी के मुँह से यह सुनकर कि तुम जल्दी से अपने घर भाग जाओ, विजया हैरान रह गई। उसने “क्यों दीदी?” “कोई सवाल मत करो विजया मैं जैसा कह रही हूँ वैसा करो।” विजया घर की तरफ़ जाए तब तक शक्ति सिंह वहाँ आ गया, विजया को देखकर बुदबुदाया, “अरे कितनी प्यारी बच्ची है।” "बेटा तुम्हारा नाम क्या है?" उसका हाथ पकड़ते हुए वह बोला विजया चिढ़ कर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी। तब शक्ति सिंह ने उससे कहा, "बेटा डरो मत, मैं तुम्हारा नाम पूछ रहा हूँ, बता दो, फिर मैं तुम्हें जाने दूंगा।" तभी अचानक ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 4
शक्ति सिंह से मिल कर घर वापस आने के बाद हीरा लाल बहुत बेचैन थे, अपनी पत्नी को उन्होंने परिस्थिति से अवगत कराया और विजया का अधिक ख़्याल रखने की सलाह दी। गायत्री भी बेहद डर गई थी, उन्होंने अब विजया की तरफ़ और अधिक ध्यान देना शुरु कर दिया। विजया को उस पुरानी इमारत में जाने से भी मना किया। नादान विजया बार-बार प्रश्न करती रहती, "वहाँ क्या है मम्मा, वहाँ क्यों नहीं जाना चाहिए? वहाँ तो बहुत सारी दीदी और आंटी रहती हैं। एक दीदी तो मेरी दोस्त भी बन गई है और मुझे रोज़ बुलाती है।" ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 5
हीरा लाल जिस तरह से सभी के लिए कुछ ना कुछ करते ही रहते थे इसलिए शक्ति सिंह की नीलू ने तुरंत ही उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए कहा, "अरे बिल्कुल अंकल, कहिए ना क्या काम है आपको? मैं तो आपको नाम से जानती हूँ, मेरी सभी सहेलियाँ भी आपको अच्छी तरह पहचानती हैं और सब आपकी बेहद इज़्जत करती हैं।" "बेटा तुम्हारा नाम क्या है?" "नीलू नाम है अंकल मेरा।" "बेटा मुझे जो काम है, उसके लिए तुम्हें मेरे साथ बाहर चलना होगा। बेटा नीलू, वह काम ऐसा है जो तुम्हारे सिवा और कोई नहीं कर सकता।" ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 6
हीरा लाल से उस खंडहर जैसी इमारत का काला सच जानने के बाद नीलू ने कहा, "अंकल फिर हमें करना चाहिए अब इन लड़कियों को बचाने के लिए?" "बेटा जो काम को चला रहा है, मैं तुम्हें उसका नाम बताना चाहता हूँ लेकिन उसके लिए तुम्हें अपने मन मस्तिष्क को शांत रखना होगा।" "हाँ अंकल कौन है वह? आप मुझ से ऐसा क्यों कह रहे हैं लेकिन इतना तो तय है अंकल कि वह चाहे जो भी हो मैं डरूंगी नहीं। हर हालत में मैं आपका साथ दूंगी।" इतना कह कर नीलू उस नाम को सुनने का इंतज़ार करने ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 7
अपनी बेटी को उदास देख कर शक्ति सिंह ने चिंतित होते हुए पूछा, "बेटा क्या हो गया? तबीयत ठीक है क्या मेरी बच्ची की? चलो डॉक्टर को दिखा देते हैं।" नीलू देख रही थी कि उसे जरा-सा उदास देखकर पापा इतने चिंतित हो जाते हैं फिर दूसरी लड़कियों की तकलीफ़ उन्हें क्यों दिखाई नहीं देती। उसने कहा, "मैं ठीक हूँ पापा, डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है।" रात को सब अपने-अपने कमरे में सो गए, नीलू रात भर सोचती रही क्या करे? सुबह उठकर नीलू रोज़ की तरह चलने के लिए निकल गई, लेकिन हर सुबह की तरह वह वापस ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 8
उधर शक्ति सिंह अपनी बेटी नीलू को ढूँढने का भरसक प्रयास कर रहे थे और इधर नीलू ने उस के अंदर जाकर सब लड़कियों से बात की, वह हर लड़की से उसके बारे में सब कुछ जानना चाह रही थी। उसने सभी को दिलासा दिया कि वह शीघ्र ही उन सभी को यहाँ से निकाल लेगी। सभी लड़कियाँ नीलू से मिलकर बेहद ख़ुश थीं। एक आशा की किरण उनके अंदर प्रवेश कर गई थी कि शायद अब वह सभी इस नरक से बाहर निकल पाएंगी। नीलू ने जान बूझ कर वापस इमारत से बाहर निकलने की कोशिश की किंतु ...Read More
जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 9 - अंतिम भाग
गुर्गे कुछ समझ पाते उससे पहले ही नीलू का हाथ पकड़ कर शक्ति सिंह ने उससे कहा, "चलो बेटा चलते हैं।" "नहीं पापा, मैं अब घर कभी नहीं आऊंगी।" "क्या बोल रही हो नीलू? क्या हुआ बेटा तुम को?" "पापा मैं यहाँ की लड़कियों से मिली हूँ, जब तक आप उन्हें आज़ाद नहीं करेंगे, मैं भी यहाँ पर ही रहूंगी। पापा आपने मुझे इतने अच्छे संस्कार दिए हैं, फिर आप इन लड़कियों के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं।" "बेटा मैंने आज तक किसी लड़की को नहीं छुआ है।" "जानती हूँ पापा, मुझे अंदर सब कुछ मालूम हो गया ...Read More