यह इक्कीसवीं शती का प्रारंभ है। पूर्व और पश्चिम की विकास यात्रा में नव उदारीकरण की लहलहाती फसल के बीच इंच इंच घिसटती मानवता । उद्यमिता के नए प्रारूपों के बीच व्यष्टि की बंधक होती हनक । बाज़ार भरे हुए, ग्राहकों की जेबें टटोलते, भीड़ के बीच आदमी का अकेलापन । समाज जिसे बहुध्रुवीय, बहुलतावादी होने का मुगालता था एकरूपता की मार से कराहता हुआ । धर्म और नस्ल के नए नए प्रयोग हित अनहित के प्रश्नों को निबटाते हुए। सत्ता के लिए इनका सटीक उपयोग मानवमन के बीच भयानक द्वन्द्वका सृजन करता हुआ । सत्ताधारी की भाँति पंथों के अगुवा भी ताल ठोंक कर जन-जन के बीच लकीर खींचते हुए। लहू-लुहान शाकुनपाँखी की भाँति सहा खीझा आम जन । बहेलिए छुट्टा घूमते हुए लक्ष्य साधने में मग्न । 'मा निषाद ' का उद्घोष भी प्रभावहीन । जन आक्रोश सार्थक दिशा की तलाश में। आशा और निराशा के बीच जूझते युवाजन । पंछी की भाँति उड़ता मनुष्य पड़ोसियों से समरस न हो पाने के लिए अभिशप्त । सत्ता, शक्ति और वैभव के लिए कैसे कैसे नृत्य? पर समरसता, सदभावना की भी एक अन्तर्धारा अविरल बहती जन मानस को सींचती चलती। यही तो हर युग की कथा है। |
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शाकुनपाॅंखी - 1 - उपोद्घात
उपोद्घात यह इक्कीसवीं शती का प्रारंभ है। पूर्व और पश्चिम की विकास यात्रा में नव उदारीकरण की लहलहाती फसल बीच इंच इंच घिसटती मानवता । उद्यमिता के नए प्रारूपों के बीच व्यष्टि की बंधक होती हनक । बाज़ार भरे हुए, ग्राहकों की जेबें टटोलते, भीड़ के बीच आदमी का अकेलापन । समाज जिसे बहुध्रुवीय, बहुलतावादी होने का मुगालता था एकरूपता की मार से कराहता हुआ । धर्म और नस्ल के नए नए प्रयोग हित अनहित के प्रश्नों को निबटाते हुए। सत्ता के लिए इनका सटीक उपयोग मानवमन के बीच भयानक द्वन्द्वका सृजन करता हुआ । सत्ताधारी की भाँति पंथों ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 2 - फिर वही सान्ध्य भाषा
3. फिर वही सान्ध्य भाषा प्रातराश एवं विश्राम के बाद संयुक्ता ने पुनः कारु से अपनी बात स्पष्ट करने लिए कहा।" मैंने इस शरीर को नष्ट करने का मन बना लिया था, रानी जू। आपके स्नेह ने ही मुझे जीवन दान दिया है। मुझे पुनर्जन्म मिला है, रानी जू ।' 'मेरा स्नेह भी किसी के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है यह आज जाना। पर यह तो बता कि तू अपना शरीर क्यों नष्ट करना चाहती थी? इतना सुन्दर कान्तिमय शरीर क्या नष्ट करने के लिए बना है?""ग्लानिवश, रानी जू ।''फिर वही सान्ध्य भाषा। मैं कहती हूँ, तू स्पष्ट कह ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 3 - कान्यकुब्ज
4. कान्यकुब्ज महाराज जयचन्द्र का अधिकांश समय यज्ञ की तैयारियों की समीक्षा कर आवश्यक निर्देश देने में ही बीत । हरकारे दौड़ लगाते । सेवक हाथ बाँधे खड़े मिलते। राजपरिवार के लोग सेवा भाव में अधिक विनम्र हो गए थे। यवन, तुर्क, तातार सैनिकों के लिए यह कुतूहल पूर्ण आयोजन था। सुरक्षा आदि के लिए जहाँ उन्हें लगाया जाता पूरी निष्ठा से अपना कार्य करते । सिर पर कफन बाँधकर सैनिक नमक अदा करने के लिए प्रस्तुत रहते । विरोधियों का नमक जानबूझ कर लोग न खाते पर इक्का दुक्का विश्वासघात की भी घटनाएँ घट ही जातीं। सामान्य जन ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 4 - तेरी आँखें
5. तेरी आँखें संयुक्ता पाठ का अध्ययन करने के साथ ही सामयिक घटनाओं पर चर्चा छेड़ देती, ‘आर्ये, सुनती शाकम्भरी नरेश ने तुरुष्क सुल्तान शहाबुद्दीन गोरी पर विजय पाई ?"'उचित ही सुना तुमने ।' आर्या कह उठीं। 'पर यह सब कैसे हो गया? आपके श्रीमुख से सुनना चाहती हूँ।''तू शाकम्भरी नरेश में कुछ अधिक रुचि ले रही है।' 'नरेश में नहीं, मैं उस घटना से रोमांचित हूँ इसलिए ।''सभी रोमांचित हो उठते हैं उस विवरण को सुनकर मैं तुझे बता रही हूँ। पर मेरी टिप्पणी व्यर्थ नहीं है। तेरी आँखें'....., कहते हुए आर्या हँस पड़ीं। संयुक्ता के मुख मंडल ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 5 - शाकुनपाँखी नहीं हूँ मैं
7. शाकुनपाँखी नहीं हूँ मैं 'महाराज की दृष्टि बचाकर कार्य करना कितना दुष्कर है?' महिषी शुभा टहलती हुई सोच हैं। अलिन्द के सामने पाटल पुष्प एक दूसरे को धकिया रहे हैं । 'फूलों की तरह सूचनाओं में गन्ध होती है क्या? सूचनाओं के लिए गुप्तचर न जाने किन वेषों एवं कठिनाइयों के बीच कार्य करते हैं?' वे एक पुष्प तोड़ती रह गईं। महिषी का सौन्दर्य चर्चा में रहता ही था, अब संयुक्ता की चर्चा अपनी पेंगें बढ़ा रही है । गली- वीथिकाओं में लोग माँ-बेटी के सौन्दर्य की गर्मागरम किंवदन्तियाँ परोसते । अकलुष सौन्दर्य की अबूझ पहेलियाँ कही जातीं ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 6 - सन्देश
9. सन्देश पृथ्वीराज दिल्लिका की बैठक में चाचा कन्ह देव, महाकवि चन्द, सन्धिविग्रहिकामात्य वामन, सेनाधिपति स्कन्द, चन्द्र पुण्डीर, केहरी पज्जूनराय, सलखपरमार, जैतराव, निड्डर, वीर सिंह, लखन बघेल, जाम राय यादव, पहाड़राय तँवर के साथ विचार विमर्श कर रहे हैं। तराइन की अभूत पूर्व विजय से सभी के चेहरे दमक रहे हैं यद्यपि सैन्यबल की एक टुकड़ी भटिन्डा को अवमुक्त कराने में लगी है। महाराज प्रसन्न मुद्रा में भटिन्डा की स्थिति पर विचार कर रहे हैं। इसी बीच प्रतिहारी ने माथ नवा निवेदन किया कि एक ब्राह्मण महाराज से कुछ निवेदन के लिए उपस्थित है। महाराज के संकेत पर प्रतिहारी ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 7 - समरसता की चिन्ता
10. समरसता की चिन्ता कच्चे बाबा गंगा तट पर स्थित अपने छोटे से आश्रम में एक आसनी पर बैठे पारिजात शर्मा कन्धे पर उत्तरीय डाले आए। बाबा के सामने ही बैठ गए। उन्होंने बताया, “कान्यकुब्ज नरेश का राजसूय यज्ञ प्रारंभ हो गया है।''हूँ' बाबा के मुख से निकला। ‘अनेक सामन्त सेवा कार्य हेतु आ गए हैं । चाहमान नरेश पृथ्वीराज की एक मूर्ति द्वारपाल की जगह लगाई गई है।' पारिजात बताते रहे।बाबा जैसे चौंक पड़े हों, कहा, 'उचित नहीं किया कान्यकुब्ज नरेश ने। स्वेच्छा से सेवा कार्य करने की परम्परा है। मूर्ति लगाकर तो अपमानित करना हुआ । क्या ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 8 - सत्ता सुख
12 सत्ता सुख कन्हदेव की उपलब्धियाँ उन्हें लोक में प्रतिष्ठित कर रही थीं। जिधर भी जाइए, उन्हीं की चर्चा न जाने कितनी किंवदन्तियाँ उनके साथ जुड़ गई थीं। उनके सामने कोई अपनी मूँछ को हाथ नहीं लगा सकता था। बड़े बड़े योद्धाओं की उनके सामने घिग्घी बँध जाती । बालुकाराय के बध ने उनकी ख्याति में चार चाँद लगा दिए थे । व्यक्ति का तेज उसके आगे आगे चलता है। कन्हदेव के साथ भी यही घटित हो रहा था। उनके सामने जो भी पड़ता, माथ नवा लेता । यदि कोई माथ नवाने में चूक जाता तो उसे कन्हदेव का ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 9 - सभा में हल्ला मच गया
14. सभा में हल्ला मच गया सज्जित सभागार इत्र और चन्दन की सुगन्ध से महमहा रहा है। राजा और सज्जित मंच पर अपनी आभा बिखेर रहे हैं। कान्यकुब्ज के सामन्त एवं अधिकारी अपने आसनों पर बैठ चुके हैं। सभी सन्नद्ध चौकन्ने । महाराज भी आकर बैठे। सभी ने उनका स्वागत किया। सभी की आँखें मंच के भीतरी द्वार पर लग गई। राजपुत्री की आकांक्षा पाले हुए राजपुत्रों का हृदय धक-धक कर रहा है । चारण विरुद बखानने के लिए शब्दों पर धार चढ़ा रहे हैं। महाराज की दृष्टि बार बार द्वार की ओर जाती । प्रतीक्षा का एक एक ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 10 - बरद्द दुबला क्यों है?
16. बरद्द दुबला क्यों है? स्नान कर चन्द ने धवल वस्त्र धारण किया। सभी ने मधुपर्क पान किया। ग्यारह वेष बदलकर तथा चन्द के सेवक के रूप में पृथ्वीराज तैयार हुए। सभी के वेष एक थे। नगर हाट को देखते हुए चन्द के नेतृत्व में सभी आगे बढ़े। कान्यकुब्ज के पास विपुल सम्पत्ति थी। हाट की दुकानों से वैभव टपकता । नागरिकों की वेष-भूषा आकर्षक थी, व्यवहार संस्कृत, संयत, उल्फुल्लतादायक । सभी जिज्ञासु की भाँति हाट का निरीक्षण करते चलते रहे । व्यवस्थित पण्यशाला में वणिक् ग्राहकों को प्रभावित करने में लगे थे। मंदिरों की घंटियाँ बजती रहीं। जगह ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 11 - पंछी उतरो द्वार
18. पंछी उतरो द्वार पूर्वप्रत्यूष काल । नगर निद्रामग्न । पक्षी भी अपने घोसलों में दुबके हुए। गंगा के जल की ध्वनि । रात की साँय साँय । संयुक्ता दो सेविकाओं के साथ बार बार खिड़कियों से झाँकती। 'समय खिसक रहा है', उसने कहा । 'महाराज आते ही होंगे,' एक ने कहा ।‘अवश्य आएँगे। वे महाराज हैं', दूसरी ने जोड़ दिया। संयुक्ता की व्यग्रता बढ़ती जा रही है । 'उन्हें आना ही होगा,' वे बुदबुदा उठीं। 'माँ यदि सहयोग कर पातीं। उनकी अपनी विवशता है, मेरी भी ।' सम्पूर्ण कान्यकुब्ज का विरोध.....वह सिहर उठी । 'नहीं, मैं निश्चित कर ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 12 - डर किस बात का?
19. डर किस बात का? पेशावर के अपने शिविर में शहाबुद्दीन चहलकदमी कर रहे हैं। पार्श्व में पहाड़ियों पर सूर्य की किरणें सोना बरसा रही हैं। हवा तेज है, सुल्तान के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ । चोबदार ने प्रवेश कर आदाब किया, हुजूर एक फ़कीर .... ।'' ले आओ', सुल्तान के मुख से निकला। उनकी दृष्टि द्वार पर ही टिक गई। चोबदार के साथ फकीर । बाल बिल्कुल सफेद । चेहरे पर इत्मीनान की रौनक । चोगा साफ धवल । फ़कीर ने एक नज़र सुल्तान को देखा । चोबदार वहाँ से हट गया। 'सुल्तान, मैं भी गोर का ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 13 - उठो वीरवर
20.उठो वीरवर गुरु श्री राम पुरोहित और चन्द आज बहुत दुःखी दिख रहे थे। उन्होंने महाराज से भेंट करना था पर महाराज आज अन्तःपुर से बाहर ही नहीं निकले। हाहुलीराय राज सभा में अपमानित होकर अपनी गढ़ी को लौट चुके हैं। महाराज ने मंत्रणा सभा में बैठना कम कर दिया है। सोमेश्वर और प्रताप सिंह के व्यवहार अधिक संदेहास्पद लग रहे हैं। गुप्तचरों ने सूचना दी कि धर्मायन के यहाँ गज़नी के तुर्कों का आना जाना बढ़ गया है। पर सबसे अधिक उद्वेलित करने वाली सूचना शहाबुद्दीन गोरी के बारे में थी। अपने चुने हुए तुर्क, ताजिक, खल्जी और ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 14 - रातभर सो न सका वह
21. रातभर सो न सका वह हाहुलीराय चाहमानों का सामन्त था पर वह इस समय नाराज़ होकर काँगड़ा में रहा था। पृथ्वीराज के सामन्त जैतराव ने भरी सभा में उसे श्वान कह दिया था। उसके अहं को ठेस लगी और उसने दिल्लिका और अजय मेरु से अपने को अलग कर लिया। पृथ्वीराज ने हाहुलीराय को मनाने के लिए चन्द को तैयार किया ।चन्द यह जानते थे कि हाहुलीराय को अपने पक्ष में करना कठिन है। पर यह आपत्ति काल था। सैन्य संगठन को शक्तिशाली बनाना आवश्यक था। धरती की पुकार को अनुभव करते हुए वे काँगड़ा पहुँचे । चन्द ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 15 - सावन चिरई ना घर छ्वाड़इ
22. सावन चिरई ना घर छ्वाड़इ किमामुल मुल्क रुहुद्दीन हम्जा भागते हुए महाराज पृथ्वीराज की सभा में उपस्थित हुए। का जमावड़ा था। चामुण्ड, जामराय, कूरम्भ, पावस पुण्डीर, मदन सिंह परिहार, जैतराव, गुरुराम पुरोहित सहित अनेक वीर सभा में बैठे हुए थे। हम्ज़ा ने महाराज को आदाब किया और शाह की चिट्ठी का ख़रीता निकाला। महाराज के संकेत पर गुरुराम पुरोहित ने खरीता लिया। कातिब को पढ़ने के लिए दिया। उसने पढ़ना शुरू किया- या तो कानों में गुलामी का छल्ला पहन इस्लाम कुबूल करो या........।’ पत्र पढ़ते ही पूरी सभा तमतमा उठी। चामुण्ड राय से रहा नहीं गया। खड़े ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 16 - आग रात भर जलती रही
23. आग रात भर जलती रही तराइन के मैदान में पानी की सुविधा देखकर सेना के शिविर लगने लगे। अपने अपने सैन्य दलों के लिए भोजन की व्यवस्था में लग गए। शिविर पाल शिविर को व्यवस्थित करने में व्यस्त हो गए। घोड़ों की काठी खुल गई। अश्वारोही रक्षाकवच उतारकर समूहों में बैठकर विश्राम करने लगे। सरसुती नदी के किनारे कोसों तक सैन्य शिविर ही दिखाई पड़ने लगे । महाराज ने सायंकाल सामन्तों एवं सेनाध्यक्षों को बुलाकर मंत्रणा की । राजकवि चन्द का अभाव उन्हें खटकता रहा। तब तक चन्द के सहयोगी आ उपस्थित हुए। उन्होंने महाराज से कहा 'महाराज, ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 17 - उन्हें विश्वास नहीं हुआ
24. उन्हें विश्वास नहीं हुआ ब्राह्म मुहूर्त का समय। दूर से आती हुई पपीहे की ध्वनि पक्षियों की फड़-फड़ झाड़ियों के बीच से मयूर मयूरी की सुगबुगाहट अभी आसमान में लालिमा का कोई चिह्न नहीं था। पक्षि शावक कुलबुलाकर आँख मूँद लेते। घाघस मुआ... मुआ की ध्वनि कर अभी चुप हुआ है। श्रृगाल छिपने के स्थान पर जाने वाले हैं। चाहमान शिविर में कुछ थोड़े से लोग उठकर नित्यकर्म की ओर उन्मुख हो रहे थे। बहुत से लोग अभी सोते हुए पुरवा का आनन्द ले रहे थे। अचानक घोड़े हिनहिना उठे। लोग जब तक कुछ समझें, शिविर पर तीर ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 18 - महावर भी नहीं छूटा
25. महावर भी नहीं छूटा थावक जो तराइन के मैदान से भाग कर सूचना देने के लिए दौड़ पड़े उनमें से अजयमेरु जाने वाले धावक पृथ्वीराज के छोटे भाई हरिराज को सूचना दे अर्न्तधान हो गए थे। हरिराज इसी लिए शाह के हाथों नहीं लग सके। वे गुप्त मार्ग से अजयमेरु से बाहर निकल गए। धावकों के दूसरे दल ने दिल्लिका पहुँच राजकुमार गोविन्द और कन्ह पुत्र को सूचना दी। आग की भांति यह सूचना राज प्रासाद सहित सम्पूर्ण दिल्लिका में फैल गई। नगर वासी चकित थे । यह असंभव कैसे संभव हो गया? हर कोई दूसरे से पूछता ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 19 - मस्ज़िद तामीर हो गई
27. मस्ज़िद तामीर हो गई अजयमेरु को शाह के सैनिकों ने जी भर लूटा। सरस्वती मंदिर को तोड़कर मस्जिद का कार्य चलता रहा। शाह को अजयमेरु में आज तीसरा दिन है। नगर और उसके आसपास भय और आतंक कुलांचे मार रहा हैं। खेल खेल में बहुत से लोग मौत के घाट उतार दिए गए।शाह अपने सिपहसालारों के साथ बैठक कर रहे थे। इसी बीच पहरेदार से एक सूफी ने पूछा, 'सुल्तान हैं?' 'हाँ हैं', ख़ास लोगों के साथ इजलास कर रहे हैं।......'पहरेदार ने कहा ।'उन्हें बताओ एक फ़कीर मिलना चाहता है।' पहरेदार ने सुल्तान को सिर नवा तीन बार ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 20 - ये आँखें
28. ये आँखें जिस इमारत में पृथ्वीराज का कैद किया गया था उस पर सख़्त पहरा था। पृथ्वीराज एक में बैठा अपने क्रिया कलापों के बारे में सोचता रहा। कहाँ वह चाहमान नरेश था, आज बन्दी है। कल क्या होगा? उसकी भूख प्यास गायब हो गई। भृत्य आता भोजन के लिए निवेदन करता पर पृथ्वीराज इनकार कर देता। बहुत आवश्यक हुआ तो जल ग्रहण कर लेता। जो सदैव अपने सहयोगियों, कर्मकरों से घिरा रहता था, आज सूनी दीवारें ही उसका हाल चाल पूछतीं । उसका परिवार, उसके लोग किन स्थितियों में हैं? प्रजा किन संकटों का सामना कर रही ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 21 - दिए जले
29. दिए जले 'कला भारती' से प्रतिष्ठित रानी शुभा देवी ने देखा कि राज प्रासाद गोधूलि होते ही जगमगा । दीपमालिकाएँ सजाई जा रही हैं। दीपोत्सव का हेतु क्या है? उसने कारु से पूछा। 'पता करती हूँ स्वामिनी', कहकर कारु दौड़ गई। शुभा अलिन्द में टहलने लगी । दौड़ती हुई कारु लौटी। कुछ कहने के पहले वह फफक पड़ी, शुभा ने पूछा, "क्या हुआ कारु ।' कारु बोल न पाई । सिसकियां रुक न सकीं। 'स्वामिनी,' बड़ी मुश्किल से कह पाई कि सिसकियाँ फिर तेज़ हो गई। 'कुछ तो बता । बात क्या है? रो क्यों रही है?' शुभा ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 22 - पस्त न समझें
30. पस्त न समझें बन्दीगृह का कपाट जोर से खुला। भृत्य उन कपाटों को धीरे से खोलते थे । शाह का कोई सिपहसालार कपाट खुलवाता तो जोर की आवाज़ होती । कपाट खुलने की आवाज़ से पृथ्वीराज को लगा कोई अधिकारी होगा। कोई नई विपत्ति, यही सोच वह मौन ही रहा। अब तो आँखें भी नहीं हैं। केवल ध्वनि सुनकर ही अनुमान लगा सकता है। पदचाप निकट आता गया । 'महाराज,' यह सम्बोधन सुनकर वह चौंक पड़ा। पूछ पड़ा,'कौन?"'मैं', प्रताप सिंह ने कहा।'देख रहे हो प्रताप ?''देख रहा हूँ महाराज ।''मैंने कितनी बार शाह के सिपहसालारों को बन्दी बना ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 23 - पता नहीं कौन भेदिया निकल आए ?
31. पता नहीं कौन भेदिया निकल आए ? अजयमेरु पर अपना कब्ज़ा जमा फौज के एक हिस्से को वहां सुल्तान अपने सिपहसालारों के साथ दिल्लिका पहुँच गया। शहर में लूट मच गई। इन्द्रप्रस्थ में सुल्तान की फ़ौजों ने अपना शिविर लगाया। मंदिर और मिहिरपल्ली की वेधशालाएँ ध्वस्त कर दी गई। कुहरम और समाना में कुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में फ़ौजों का एक बड़ा दल व्यवस्था देखने के लिए नियुक्त किया गया। दिल्लिका का शासन कन्ह के बेटे को सौंप दिया गया। पर अजयमेरु में गोविन्द और दिल्ली में कन्हपुत्र मात्र कठपुतली थे । असली सत्ता सुल्तान के सिपहसालारों के ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 24 - बनना ही चाहिए
33. बनना ही चाहिए कच्चे बाबा अपने आश्रम में पौधों के आसपास उगे खतपरवार को निकालने में लगे थे। बालक दौड़ता हुआ आया, 'गुरुदेव, एक फ़कीर आए हुए हैं। वे आपसे मिलना चाहते हैं। गुरुजी ने बुलाया है।' बाबा चल पड़े। खुरपी एक किनारे रख दिया। हाथ पैर धोया । अंगरखे से हाथ पोंछते हुए आ गए। विहल होकर गले मिले। फकीर को आसनी पर बिठाया, स्वयं भी पार्श्व में बैठ गए। पारिजात बच्चों को पढ़ाने के लिए चले गए।फ़क़ीर के पैर में कांटे चुभ गए थे। कच्चे बाबा एक सुई लेकर आए । बैठकर स्वयं फ़क़ीर के पैरों ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 25 - तुम यही कहोगे !
35. तुम यही कहोगे ! चन्द चलते रहे। उन्होंने एक जंगल में स्कन्द को खोज निकाला। दोनों गले मिले। तक स्कन्द के अश्रु गिरते रहे। मन जब कुछ शान्त हुआ तो स्कन्द ने चाहमान नरेश के बन्दी होने की जानकारी दी। यह भी बताया कि किस प्रकार उन्हें बन्दीगृह से निकालने की योजना बनी है। दोनों भावी कार्यक्रमों पर चर्चा कर ही रहे थे कि चंचुक ने आ कर प्रणाम किया ।'कोई नई सूचना? स्कन्द ने पूछा । 'मंत्रिवर, सब कुछ उलट गया।' कहते हुए चंचुक रो पड़ा । 'महाराज की आँखें निकाल ली गईं। उन्हें ग़ज़नी ले जाया ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 26 - केवल क्रोध से काम न चलेगा
36. केवल क्रोध से काम न चलेगा हरिराज और स्कन्द एक घने जंगल में बैठे विचार कर रहे थे। साथ थोड़े से सैनिक थे। शेष को अलग अलग स्थानों पर गुप्त रूप से रहने के लिए कहा गया था। सूचना मिलते ही सब को इकट्ठा होना था। चर्मण्वती का बीहड़ निकट था जिसमें पूरी की पूरी सेना ऐसे गुम हो जाती जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोसों लम्बे चौड़े सघन वन में दिन में ही डर लगता । 'गोविन्द और कन्हकुमार को मोहरा बनाया गया है। वे बच्चे हैं, उन्हें इतनी समझ नहीं है कि कुछ सार्थक सोच ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 27 -मन बहुत अशान्त है महाराज
37. मन बहुत अशान्त है महाराज 'मुझे आजीवन कंटकों से ही जूझना पड़ेगा? कान्यकुब्ज में पैर रखते ही एक परिवेश क्या विकसित हुआ, जीवन भर के लिए काँटा बो गया। पर मैं भी दिखा दूँगी कि जीवट किसे कहते हैं। मैं विधवा होकर इस परिवार में आई। महाराज की पत्नी बनी। पुत्री चाहमान पराभव के साथ ही स्वर्ग चली गई। एक पुत्र राज्याभिषेक के लिए पूरी तरह सक्षम पर प्रारंभिक वैधव्य का टीका वहाँ भी बाधक । जैसे वैधव्य का वरण मेरे अधिकार में था। जिस शुचिता की बात पंडितों ने उठाई है उस पर क्या प्रश्न चिह्न नहीं ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 28 - रणभेरी बज उठी
39. रणभेरी बज उठी महाराज को गुप्तचरों ने सूचित किया कि शहाबुद्दीन गोरी की सेनाएं कान्यकुब्ज की ओर बढ़ हैं। वे चिन्तित हो उठे। पंडित विद्याधर कान्यकुब्ज छोड़कर चले गए हैं। कान्यकुब्ज की सेनाएँ कर उगाही के लिए सुदूर क्षेत्रों में व्यस्त हैं। इस समय की विडम्बना कहें या कुछ और। चाहमानों से युद्ध करते कान्यकुब्ज की सेना खप गई थी। पुनर्गठन के बाद भी सैन्यबल अभी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाया । कान्यकुब्ज सैन्यबल की प्रशंसा के पुल बांध दिए जाते थे पर इस समय ? तराइन युद्ध के बाद अनेक चाहमान सामन्तों ने अपने को स्वतंत्र ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 29 - आओ चलें
41. आओ चलें कान्यकुब्ज को दूसरा काशी कहा जाता था। जयचन्द्र के वीरगति पाने की सूचना मिलते ही पूरे में हाहाकार मच गया। 'माँ, यह संकट का समय है । मुदई की ओर निकल चलने का ही एक विकल्प है।' जाह्नवी जैसे अपनी चेतना खो बैठी हैं। उनकी ओर से कोई आवाज़ नहीं आई।'माँ', हरि ने माँ के कन्धे पर हाथ रखा।'समय बहुत कम है माँ। तनिक भी असावधानी हमें विपत्ति में डाल देगी।' 'ऐं.... वे कहाँ गए ? महाराज को सूचित करो न संकट है तो महाराज....।' जाह्नवी का विचारक्रम टूट चुका था। ऐसी आपदाओं में यह असामान्य ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 30 - अजयमेरु में दीप जले
42. अजयमेरु में दीप जले आज अजयमेरु में घर घर दीप जल रहे हैं। चाहमान नरेश हरिराज ने सुल्तान सैनिकों को भगा दिया है। वीथियाँ और गलियारे जगमगा रहे हैं। गोविन्द को भागकर रणथम्भौर के किले में शरण लेनी पड़ी जहाँ किमामुल मुल्क रुहुद्दीन हम्ज़ा किले की देखरेख कर रहे हैं। हरिराज और स्कन्द को इतना जन समर्थन मिलेगा इसकी कल्पना भी करना कठिन था । गोविन्द से जुड़े भट उसके साथ चले गए। हरिराज ने स्वतंत्र होकर कार्य करना प्रारंभ किया। सुल्तान के सैनिकों से त्रस्त समाज राहत का अनुभव करने लगा। घर घर पुनः मंगलगान । स्कन्द ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 31 - मुक्ति कहाँ ?
44. मुक्ति कहाँ ? हरिश्चन्द्र मुदई से चलकर गोमती तट पर आ गया, कान्यकुब्ज छूटने की कसक मन में हुए। तुर्क, दुर्गों, पण्यशालाओं पर काबिज तो हो रहे थे पर बहुत सा क्षेत्र अब भी उनकी पहुँच से बाहर था । वनों, बीहड़ों में कौन जाता ? हरिश्चन्द्र पिता के विशाल साम्राज्य को बचा तो नहीं सका पर उसके कुछ भू भाग अभी उसी के कब्जे में थे। गोमती और गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में अनेक विषय अभी भी उसके अधिकार में थे। उस समय जनपद स्तरीय क्षेत्र को 'विषय' कहा जाता था जो विषयपति के अधीन होते थे। ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 32 - वह समाधिस्थ हो जाती
46. वह समाधिस्थ हो जाती कान्यकुब्ज पतन के बाद राजकुमार हरिश्चन्द्र मुदई छोड़कर गोमती तट स्थित गढ़ी की ओर कर गए। कारु दुःखी थी। शुभा ने प्राण छोड़ दिया था । संरक्षिका के बिना राजकुमार के साथ जाना उसने उचित नहीं समझा । शुभा ने जो सम्मान दिया था उसे अब गहड़वाल परिवेश में पाना कठिन था। वह मुदई में ही रुक गई। दो सप्ताह एक खंडहर में किसी प्रकार बिताया । वंशीधर कृष्ण की आराधना करती और चौबीस घण्टे में एक बार भोजन कर पड़ी रहती। तुरुष्कों का आतंक कम हुआ तो लोग इधर-उधर आने जाने लगे। एक ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 33 - लौहभित्ति को लौटाना ही होगा
48. लौहभित्ति को लौटाना ही होगा तुर्क सीमाएँ जब चन्देलों से मिलीं, वे भी खटकने लगे । कुतुबुद्दीन चन्देलों घेरने चल पड़ा। कालपी के निकट दोनों सेनाएं भिड़ीं पर परमर्दिदेव को लगा कि कालिंजर दुर्ग से युद्ध करना अधिक सुविधा जनक होगा। अपनी सेना को उन्होंने कालिंजर में व्यवस्थित किया। दुर्ग कालिंजराद्रि पहाड़ी पर बना है जिसे सतयुग में रत्नकूट, त्रेता में महागिरि, द्वापर में पिंगालु तथा कलयुग में कालिंजराद्रि कहा गया । पहाड़ी सप्तभुजी हैं तथा दुर्ग में प्रवेश के लिए सात द्वार, सभी उत्तर पूर्व की ओर । पहाड़ी की चोटी पर बने दुर्ग के तीन ओर ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 34 - किंवदंतियों से भर उठे चतुष्पथ
49. किंवदंतियों से भर उठे चतुष्पथ नालन्दा महाविहार मगध की राजधानी राजगृह से उत्तर पश्चिम एक योजन पर स्थित बौद्ध और जैन दोनों धर्मों का विशिष्ट केन्द्र । बुद्ध के शिष्य उपतिष्य सारिपुत्र नालन्दा में ही जन्मे और वहीं निर्वाण प्राप्त किया। उनकी स्मृति में एक चैत्य का निर्माण वहीं हुआ ।जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने वहाँ लगभग चौदह वर्षों तक निवास किया। अनेक जैन मंदिर निर्मित किए गए। एशिया के अनेक देशों के छात्र नालन्दा विद्यापीठ में आकर पढ़ते। चीनी यात्री हैनत्सांग और इत्सिंग सातवीं सदी में यहाँ पढ़ते रहे। उस समय दस हजार विद्यार्थी ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 35 - बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा
51. बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा बिहार में तुर्कों की विजय हुई तो अनेक ज्योतिषी पंडित, बंगभूमि की प्रस्थान कर गए। अफगानी नजूमी, रम्माल, और दरवेश भी तुर्कों का विरुद बखानते घूमते । बहुत से सूफी भी इस्लाम के पक्ष में वातावरण बनाने के प्रयत्न में समाज में पैठ बनाते । तुर्क शासक उन्हें प्रश्रय देते, उनसे भेदिए का भी काम लेते। सेन वंश के लक्ष्मण सेन जिनकी अभिरुचि साहित्य में अधिक थी, बंगभूमि में शासन कर रहे थे। किसी समय उन्होंने बिहार के अनेक शासकों को करद बनाते हुए काशी और प्रयाग तक अपना दबदबा बनाया था। ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 36 - मध्याह्न का समय
53. मध्याह्न का समय दक्षिण बिहार के जंगलों, पहाड़ियों को पार करते हुए बख्तियार की खल्जी सेना भाग रही । बख्तियार ने योजना बनाई कि पूरी सेना कई टोलियों में चले जिससे किसी को पता न चले कि सेना जा रही है। सभी के हौसले बुलन्द हैं अधिक सम्पत्ति मिलने की सम्भावना उनमें नया जोश भर रही है। घोड़ों को दौड़ाते, । लूट में अस्त्र खनकाते अश्वारोही भाग रहे हैं। नदी, नदिकाओं को पार करते हुए अश्वारोहियों की टोलियाँ कभी आगे, कभी पीछे हो जातीं। कभी सरपट भागते, कभी दुलकी चाल का आनन्द लेते । घुड़सवारों की दौड़ । ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 37 - जब अब्बू ने बुलाया है..
55. जब अब्बू ने बुलाया है.. सुल्तान ने कुतुबुद्दीन को सिन्ध बुलाया है। खोख्खरों ने ग़ज़नी जाने वाले मार्ग छेंक लिया है। भारत से कोई सामग्री ग़ज़नी नहीं पहुँच पा रही। इल्तुतमिश बदायूँ के अपने प्रासाद में पत्नी के साथ बैठे हैं। सेविका ने आकर आदाब किया?'हुजूर, कुहराम से कासिद आया है।''हाज़िर करो।'क़ासिद ने आकर सिर झुका आदाब किया। कुतुबुद्दीन की चिट्ठी निकाल कर दी । इल्तुतमिश ने पढ़ा। कासिद को सेविका विश्रामकक्ष में ले गई।'चिट्ठी में क्या है?"'मुझे सिन्ध की ओर जाना है। सुल्तान की ओर से बुलाहट है।' 'क्या कोई दिन ऐसा भी है जब हम आराम ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 38 - अन्दखुद
57. अन्दखुद अन्दखुद में शहाबुद्दीन गोरी छिपा तो, पर बचाव की कोई उम्मीद नहीं थी । उसकी सेना नष्ट चुकी थी। जो बचे थे उसमें से अधिकांश तितर बितर हो गए थे। गोरी को लगा कि उसकी मौत निश्चित है। उसके साथ जो थोड़े से सैनिक थे, वे भी पराजय से हताश थे। अन्दखुद का किला बहुत सुरक्षित नहीं था । युद्धभूमि से ही किले पर पत्थर फेंका जा सकता था। ख्वारिज्म समरकन्द और कर खिताइस की फ़ौजों से वह घिर गया। ख्वारिज्म़ के शाह को मैदानी जंग में उसने हरा अवश्य दिया था पर ख्वारिज्म़ का किला पूरी ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 39 - जीतेंगे हम
58. जीतेंगे हम 'जीतेंगे हम', रावत पाथे ने माथे का पसीना पोंछा 'नील कंठ महादेव की कृपा होगी तो ही हमारी जीत होगी।' एक शबर नायक ने अपना धनुष टंकारा । वदवारी विषय का ककरादह। रावत पाथे ने चन्देल ध्वज फहरा दिया है। पर सैन्य व्यूह रचना एक दम भिन्न । सैनिक दिखते ही नहीं। इधर-उधर बिखरे हुए, जो दिखते हैं वे भी आमने-सामने युद्ध की अपेक्षा दाँव देकर छकाने की मनःस्थिति में युद्ध की रणनीति बदल जाएगी, ऐसा कोई सोचता नहीं था। शबर, भोजक, पुलिन्द भी साथ आ गए हैं चंदेलों के कवचधारी सैनिक नहीं हैं ये, पर ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 40 - आहत मन
59. आहत मन जल्हण कालिन्दी तट पर रुके। अश्व को थोड़ी दूर पर उगे एक शहतूत के पेड़ से दिया। वस्त्र उतार कर स्नान के लिए नदी में उतर गए। स्नान किया। अर्यमा का अर्घ्य देकर निकले। तट पर ही बैठ गए। यमुना की लहरों को देखते रहे । लहरें उनके मन को उद्वेलित करने लगीं। जीवन अब लहरों की थपेड़ों में ही बीतना है। महाराज पृथ्वीराज भी नहीं रहे। शहाबुद्दीन ने उनकी आँखें निकलवा ही ली थी। महाराज पेट चाककर चल बसे। जल्हण राय पिथौरा दुर्ग को देखते रहे। कभी इस पर चाहमान नरेश का ध्वज लहराता था ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 41 - क्या होगा गिरधारी ?
60. क्या होगा गिरधारी ? उत्तर भारत में शहाबुद्दीन की सेनाएँ अपना आधिपत्य जमाने में लगी थीं। चाहमान, गहड़वाल चन्देल तीन बड़ी शक्तियाँ यद्यपि तुर्कों से पराजित हो गईं पर किसी ने मन से इस हार को स्वीकार नहीं किया। जैसे ही अवसर मिलता विद्रोही आक्रमण कर दुर्गों को अपने कब्जे में कर लेते। चाहमान बार बार विद्रोह करते रहे । यही स्थिति गहड़वाल, चन्देल एवं परिहारों की थी। चंदावर के युद्ध में गहड़वालों की पराजय के बाद भी कान्य कुब्ज के विशाल राज्य पर तुर्की का कब्जा नहीं हो सका। तुर्क सेनाएँ लूट पाट करतीं पर विद्रोही भी ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 42 - मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है
62. मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है कच्चे बाबा के आश्रम में कुछ नागरिक प्रश्नाकुल बैठे हैं। बाबा पारिजात रोगी को औषधि देने गए हैं। अभी लौट नहीं पाए। 'जजिया कर लगा दिया गया है। हमारे मंदिर नष्ट किए जा रहे हैं। बालिकाएँ पकड़ ली जाती हैं। ऐसे में......।' एक नागरिक ने समस्या रखी। 'हमें किसी प्रकार तुर्क शासन को उखाड़ फेंकना चाहिए । तभी इससे मुक्ति मिल सकेगी।' दूसरे नागरिक ने अपनी बात रखी। पर उखाड़ फेंकना क्या इतना सरल है?" पहले ने प्रश्न किया। 'शासक बदल जाने पर क्या आस्था भी बदल जाएगी? अपनी इच्छानुसार कोई ...Read More
शाकुनपाॅंखी - 43 - सवाल अहम है
63. सवाल अहम है कच्चे बाबा का आश्रम। बरगद के पेड़ के नीचे बाबा, सूफी फकीर और पं पारिजात बैठे हैं। उनके सामने आश्रम के विद्यार्थी । कान्यकुब्ज कुछ ही कोस की दूरी पर है। उसके पतन से तुर्क सैनिकों का आना-जाना बढ़ गया है। कभी कभी वे गाँव भी लूट के शिकार होते हैं जिनके बच्चे इस आश्रम में पढ़ते है। बालकों में उस समय आक्रोश का स्वर उभर उठता है। आज सूफी फकीर ने प्रेम और भाईचारे पर अपना प्रवचन दिया। बच्चे प्रभावित हुए पर जो कुछ सामने घट रहा था, उससे आहत थे। एक बच्चा खड़ा ...Read More