असमर्थों का बल समर्थ रामदास

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युगों-युगों से पृथ्वी पर महापुरुषों का आगमन होता आया है। उनके द्वारा ज्ञान, ध्यान, निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति से वर्तमान समाज की पात्रता बढ़ाने का कार्य निरंतरता से चलते आया है। समाज के उद्धार के लिए उन्होंने अनासक्ति और अव्यक्तिगत जीवन की कई मिसालें कायम की हैं. इसके लिए कई महात्माओं ने समाज के रोष और कड़े विरोध का सामना किया मगर अपने लक्ष्य से नहीं हटे। आज हम ऐसे ही महापुरुष के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भक्ति द्वारा लोगों में शक्ति जगाने का कार्य किया, जिनके नाम में ही उनका सामर्थ्य छिपा हुआ है, वे महात्मा हैं– स्वामी समर्थ रामदास! वर्तमान में परिस्थितिजन्य कोलाहल के बीच सुख, समाधान, शांति पाने हेतु महान संतों की जीवनी तथा उनके कार्यों का अध्ययन निश्चित रूप से हमें प्रेरणा देता है। समर्थ रामदास को केवल संत कहना उचित नहीं होगा क्योंकि वे तपस्वी के साथ ही प्रतिभावान कवि और दिग्गज विद्वान भी थे, हैं और रहेंगे। महान समयदर्शी व राजनीतिज्ञ समर्थ रामदास अपने प्रांत में देवतुल्य तथा हनुमानजी का अवतार माने जाते हैं।

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 1

युगों-युगों से पृथ्वी पर महापुरुषों का आगमन होता आया है। उनके द्वारा ज्ञान, ध्यान, निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति से समाज की पात्रता बढ़ाने का कार्य निरंतरता से चलते आया है। समाज के उद्धार के लिए उन्होंने अनासक्ति और अव्यक्तिगत जीवन की कई मिसालें कायम की हैं.इसके लिए कई महात्माओं ने समाज के रोष और कड़े विरोध का सामना किया मगर अपने लक्ष्य से नहीं हटे। आज हम ऐसे ही महापुरुष के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भक्ति द्वारा लोगों में शक्ति जगाने का कार्य किया, जिनके नाम में ही उनका सामर्थ्य छिपा हुआ है, वे महात्मा हैं– स्वामी समर्थ रामदास! ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 2

बाल्यकाल और नया पड़ाव माँ राणुबाई की परवरिश में दोनों बच्चे पल-बढ़ रहे थे। दिन बीतते गए और देखते देखते बड़ा बेटा गंगाधर विवाह योग्य हो गया। एक सुयोग्य वधु ढूँढ़कर उसका विवाह किया गया। लेकिन इससे नारायण के सामने एक समस्या उत्पन्न हो गई। अकसर घर में बड़ों की शादी के बाद छोटों के विवाह की भी चर्चाएँ शुरू होती हैं। नारायण इससे भला कैसे छूटते! बारह साल की उम्र में ही घर में नारायण के विवाह की बातें शुरू हो गईं। बड़े भाई से अब तक नाममंत्र नहीं मिला था और ऊपर से शादी की चर्चाएँ! इससे ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 3

ईश्वर का संकेत और नारायण का गृहत्याग नारायण में आए बदलाव माँ की नज़रों से छिपे नहीं थे। पिता देहांत के बाद बड़े धैर्य से उन्होंने दोनों बच्चों का पालन-पोषण किया था। नाममंत्र मिलने के बाद नारायण शांत और गंभीर हो गए थे। माँ से वे बड़े आदर और प्रेम से पेश आने लगे थे। उनकी हर बात मानने लगे थे। यह देखकर कुछ ही दिनों में माँ ने फिर से नारायण को शादी के लिए मनाना शुरू कर दिया। एक दिन मौका पाकर, माँ ने नारायण से पूछा, “बेटा, क्या तुम मुझे तकलीफ में देखना चाहते हो?” नारायण ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 4

पंचवटी में प्रभु दर्शन विवाह मंडप से भागने के बाद आगे कहाँ जाएँ, क्या करें, किससे मिलें, नारायण को पता नहीं था। उन्हें खोजने के लिए बड़े भाई और बाराती ज़रूर आएँगे, यह वे भली-भाँति जानते थे। उनके हाथों पकड़े गए तो गले में वरमाला पड़ना निश्चित था। इसलिए वे एक बड़े से पीपल के पेड़ की जड़ में जाकर छिप गए। उन्हें खोजने आए हुए लोग कुछ देर तक यहाँ-वहाँ उनकी खोज करके, मायूस होकर चले गए। सारा कोलाहल शांत होने के बाद, चार-पाँच दिन यहाँ-वहाँ छिपने के बाद नारायण उस गाँव से निकल पड़े। अचानक ही घर ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 5

टाकली में साधना करना टाकली में साधना करना नारायण के लिए आसान नहीं था। शुरुआत में उस गाँव के दुष्टों ने, शरारती लोगों ने उन्हें काफी परेशान किया। उनका मज़ाक उड़ाकर, उन्हें वहाँ से भगाने की कोशिश तक की। जब कोई आपको जान-बूझकर परेशान करता है तो आपका परेशान होना सामनेवाले को और ऊर्जा देता है। आपको परेशान देखकर उसे मज़ा आता है। इसके विपरीत यदि आप परेशान नहीं होते तो उसका उद्देश्य सफल नहीं होता और उसकी ऊर्जा निकल जाती है। बिलकुल ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई, जब नारायण ने अपना ध्यान लोगों की दी हुई परेशानी पर ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 6

रामदास से 'समर्थ' बनने की कहानीटाकली गाँव के लोग अब रामदास स्वामी को अच्छी तरह पहचानने लगे थे इसलिए खयाल रखते थे कि उनके तप में कोई बाधा न आए। हाँ, कभी उन्हें समाधि अवस्था से बाहर देखते तो उनसे आशीर्वाद ज़रूर लेते।एक दिन स्वामी रामदास किसी वृक्ष के तले, एकांत में ध्यानमग्न होकर बैठे थे। उस दिन पास वाले गाँव में एक नि:संतान ब्राह्मण का देहांत हो गया था। उस समय की सामाजिक प्रथा अनुसार उस ब्राह्मण की पत्नी ने पति के शव के साथ सती होने का निर्णय लिया।उस समय अज्ञानवश, अच्छा-बुरा सोचने की लोगों की मानसिकता ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 7

सामाजिक बदहाली बनी देशाटन के लिए निमित्तटाकली गाँव में निवास के दौरान समर्थ रामदास की कीर्ति दूर-दूर तक पहुँचने थी। कई लोग उनके भक्त बन गए थे। उनसे मिलकर अपनी समस्या का हल जानने दूर दराज़ के गाँव से लोग आने लगे थे, जिनमें से अधिकतर लोग आर्थिक दुर्दशा में होते थे।देश की प्रजा के लिए उस वक्त बड़ा ही कठिन समय था। कहीं बाढ़ तो कहीं अकाल, ऐसी कुदरती आपत्तियाँ बार-बार आती थीं। लोगों को न पूरा अनाज मिलता और न पीने के लिए ढंग का पानी। किसानों के पालतू जानवरों की चारे के अभाव में मृत्यु होना ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 8

उत्तर भारत और हिमालय में भ्रमणबिना किसी साधन-सुविधा के, अपने जाने-पहचाने स्थल को त्यागकर देशाटन के लिए निकल पड़ना साधारण चुनौती नहीं थी। रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता था।उस समय यातायात के साधन सीमित थे। वनों से, पहाड़ों से होकर, अधिकतर यात्रा पैदल ही करनी पड़ती थी। कई बार तो प्राणों पर संकट भी आते थे। लेकिन राम के इस दास को कोई डर नहीं था। उनकी रक्षा करने के लिए, उन्हें मार्ग दिखाने के लिए उनका रघुवीर समर्थ था। गाँव-बस्तियाँ, पर्वत-नदियाँ पार करते हुए समर्थ रामदास की यात्रा चलती रही।सबसे पहले वे काशी नगरी ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 9

सशक्त सैनिकीकरण का प्रारंभलंबी और निरंतर पैदल यात्रा के पश्चात भी समर्थ रामदास के साहस और उत्साह में कोई नहीं थी। शरीर पर थकान का नामोनिशान तक नहीं था। जितना वे आगे बढ़ते, प्रभु राम की कृपा से उनका मनोबल उतना ही अधिक गहरा होता जाता।उत्तर भारत के बाद वे पूर्व दिशा की ओर चल पड़े। जगन्नाथपुरी में जब उन्होंने भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का मनोरम दृश्य देखा तो उन्हें विचार आया कि वे भी अपने प्रभु श्रीराम को पालकी में बिठाकर उनकी शोभायात्रा निकालेंगे।जगन्नाथपुरी में उनकी भेंट एक ब्राह्मण से हुई, जो रामदासजी से काफी प्रभावित हुआ और ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 10

शिष्य परीक्षा के अनोखे तरीकेसमर्थ रामदास को लोगों की बहुत अच्छी परख थी। अपने शिष्यों के लिए वे गुणपारखी थे। न सिर्फ गुणों की बल्कि शिष्यों की योग्यता की भी परख उनके द्वारा कड़ी परीक्षाओं द्वारा होती थी।एक बार स्वामी कुछ परेशान से थे। शिष्यों ने उनके पास जाकर उनकी परेशानी का कारण पूछा। उन्होंने बताया कि उनके पैर में गाँठ पड़ गई है। उन्होंने अपना वह पैर कपड़े से ढक रखा था। शिष्यों ने उसे ठीक करने का उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि इसे अगर किसी ने अपने मुँह से चूस लिया तो गाँठ के ऊपर बना ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 11

समर्थ रामदास का व्यक्तित्वभक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत, मध्यम ऊँचाई वाला लेकिन मज़बूत कद, गोरा रंग, तेजस्वी कांति, पर फुलाव (उभाड़) ऐसा समर्थ रामदास का रूप था। पहनावे में भगवे रंग का पोशाक (कफनी), पैरों में लकड़ी से बने पादत्राण (खड़ाऊँ), लंबी दाढ़ी और मूँछें, सिर पर जटाएँ, गले में रुद्राक्षमाला, कंधे पर यज्ञोपवीत (जनेऊ), हाथ में कुबड़ी (योगदण्ड) और बगल में झोली। ऐसी मूरत देखकर लोग उन पर मोहित हो जाते।वे बड़े चुस्त थे। तेज़ गति से चलते और ज़्यादा समय एक जगह पर ठहरते नहीं थे। स्नान-संध्या किसी जगह करते तो भोजन कहीं और करते। फिर ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 12

परिवार से पुनर्भेटकुछ ही दिनों में समर्थ रामदास जामगाँव पधारे। गाँव में प्रवेश करते ही बाल्यकाल की यादें ताजा उठीं, मानो कल-परसो की ही घटनाएँ हों। मारुति मंदिर, जहाँ वे अपनी माँ के साथ जाते थे... पेड़ों पर चढ़कर बाल लीलाएँ करते थे... जहाँ स्वयं प्रभु राम ने उन्हें नाम मंत्र दिया था, वह मंदिर आज भी वैसा ही था।सबसे पहले उस मंदिर में जाकर ‘मारुति राया’ के दर्शन करके वे घर की ओर चल पड़े। अभी सूर्योदय होने में समय था। लोग धीरे-धीरे नींद से जागने लगे थे। गाँव से गुज़रते हुए इस सुंदर, तेजस्वी संन्यासी को लोग ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 13

जामगाँव में जनजाग्रतिघर वापस आते ही समर्थ रामदास ने जड़ी-बूटी से बनी दवा माँ की आँखों में डालना शुरू यह करते समय वे प्रभु राम से प्रार्थना करना नहीं भूलते। उनकी कोई भी प्रार्थना प्रभु श्रीराम ने कभी अनसुनी नहीं की। कुछ ही दिनों में माँ की धुँधली दृष्टि साफ होने लगी। अपने पुत्र और परिवार को वह साफ-साफ देखने लगी।यह खबर हवा के झोकों की तरह दूर-दूर तक जा पहुँची कि राणोबाई का पुत्र नारायण चमत्कारी साधु बनकर लौट आया है और उसने चमत्कार से अपनी माँ का दृष्टिदोष दूर किया है। सुनकर लोगों के मन में उनके ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 14

जामगाँव से पुनः प्रस्थान :लगभग चार माह बीत गए। अब जामगाँव के युवाओं में नया चैतन्य भर गया था। अपने धर्म और समाज की रक्षा में सक्षम और तत्पर हो रहे थे। उन्हें किसी बाहरी मदद की आवश्यकता नहीं थी। अपना उद्देश्य सफल हुआ देख, समर्थ रामदास ने वहाँ से प्रस्थान करने का निर्णय लिया। क्योंकि देश में और भी कई स्थान थे, जहाँ लोगों को जगाने की, प्रेरित करने की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने प्रस्थान की बात माँ को सुनाई तो मानो उन पर पहाड़ ही टूट पड़ा। पुत्रवियोग में सारा जीवन बीता था । नारायण के रूप ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 15

कर्म उपदेशसमर्थ रामदास का लोगों की समझ बढ़ाने का तरीका कई बार अनूठा होता था। जब भी वे भिक्षा जाते तो उसके पीछे भी यही उद्देश्य होता कि जनसंपर्क बढ़े और सामाजिक परिस्थिति का आँकलन होता रहे।वे जहाँ भी जाते. लोगों का निरीक्षण और परिस्थिति का अवलोकन करते। लोगों की दिक्कतें जानकर, उनके प्रतिसाद से अपने मन की स्थिति भाँपते। जिससे वे अपनी साधना कितनी सफल हुई है, यह भी परखते।इस बहाने समाज किस तरफ जा रहा है, यह देखना और लोगों का सही मार्गदर्शन करना, यही उनका असली उद्देश्य था। उन्हें कुछ नई बातें भी सुनने को मिलती ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 16

━━{ शिष्य परिवार और रामदासी पंथ का प्रसार }━━ सामाजिक क्रांति की नींवसमाज में जागृति लाते हुए समर्थ रामदास कई जगहों पर भ्रमण किया। उनके भक्त और शिष्य की मंडली में लगातार बढोतरी होती गई। उनके द्वारा स्थापित हर मठ जन चेतना जागृत करने के कार्य में जुटा रहा। उन्होंने लगभग 1400 युवाओं को दीक्षित किया। उनमें से कुछ गृहस्थ थे तो कुछ ब्रह्मचारी। उनके भक्तों में सईबाई, वेणाबाई की कहानियाँ काफी रोचक हैं।सईबाई शाहपुर गाँव में रहनेवाली एक झगड़ालू स्त्री थी। 'राम' नाम से उसे बहुत चिढ़ थी क्योंकि उसका मानना था यह नाम सिर्फ किसी की मृत्यु ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 17

चाफल में राम मंदिर का निर्माणसातारा ज़िले में स्थित चाफल (चाफळ) ग्राम, उस वक्त मुगल शासकों के कब्जे में उस समय नए मंदिरों का निर्माण लगभग बंद हो चुका था। लोग किसी पत्थर को सिंदूर से लेपकर उसे गाँव की सरहद पर रख देते और आते-जाते उसी को नमन करते। उसे ही अपने कुल का देवता मान लेते। मुगल शासन में हिंदुओं के लिए अपने धर्म और संस्कृति का पालन करना बड़े साहस का काम था।समर्थ रामदास के रूप में चाफल ग्रामवासियों को एक साहसी धर्मोपदेशक मिला था। उनकी राह पर चलने के लिए चाफल के युवाओं में काफी ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 18

भक्ति के आदर्श कल्याण स्वामीएक बार कोल्हापूर में समर्थ रामदास का कीर्तन चल रहा था। तब नाशिक के कृष्णाजीपंत की पत्नी रखुमाबाई अपने भाई पाराजीपंत और बच्चे अंबाजी व दत्तात्रेय के साथ कीर्तन सुनने आई थीं। पूरे परिवार ने वहाँ समर्थ रामदास से अनुग्रह किया और उनके साथ तीर्थयात्रा पर चल पड़े।तीर्थयात्रा करते हुए वे शिरगाँव पहुँचे। वहाँ एक मठ स्थापित करके, उसका उत्तराधिकारी दत्तात्रेय को बनाकर रामदास और शिष्य आगे चल पड़े। उनकी माता रखुमाबाई दत्तात्रेय के साथ वहीं रुक गईं लेकिन अंबाजी सबके साथ आगे चल दिए। समर्थ रामदास के साथ ही वे हर पल रहने लगे।एक ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 19

समर्थ रामदास का अनदेखा रूपसमर्थ रामदास के शिष्य धर्मप्रचार के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में भ्रमण कर रहे थे। उस महाराष्ट्र का अधिकतर प्रदेश मुगलों के वश में था। सातारा क्षेत्र विज़ापुर के आदिलशाह के नियंत्रण में था।आदिलशाह का एक दरबारी अधिकारी संगम माहुली में रहता था। वहाँ की हिंदू प्रजा से वह बड़ी बेरहमी से पेश आता। उन्हें प्रताड़ित करता । ब्राह्मण, गोसावी, बैरागी, संन्यासियों को पीड़ाएँ देता। उसने उस क्षेत्र में स्नान-संध्या, पूजा-पाठ, होम-हवन, कथा-कीर्तन आदि धार्मिक कर्म करने पर पाबंदी लगा दी।उद्धवस्वामी और कुछ अन्य शिष्य उस क्षेत्र में कुछ दिन अपने कार्य हेतु गए थे। उन्होंने ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 20

निर्वाण की समझपूरा जीवन समाज जागृति और धर्म प्रचार का कार्य करने के पश्चात, कई ग्रंथों का समाज को देते-देते, आयु अनुसार समर्थ रामदास की काया थक चुकी थी। उन्हें ज्ञात हो चुका था कि अब कुछ समय पश्चात इस काया को त्यागने का क्षण आनेवाला है।जीवन का संध्या समय नामजप के साथ, विश्राम करते हुए बिताने के लिए उन्होंने सज्जनगढ़ को चुना। प्राचीन समय में आश्वलायन ऋषि का यहाँ निवास था इसलिए उसे आश्वलायन गढ़ कहा जाता था। हस्तांतरित होते-होते उसके नाम भी बदलते गए। शिवाजी महाराज ने इसे आदिलशाह से जीत लिया तब वहाँ काफी भालू पाए ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 21

दासबोध ग्रंथ – अल्प परिचयमन, बुद्धि और शक्ति (शारीरिक सामर्थ्य ) का महत्त्व जानकर समर्थ रामदास ने तत्कालीन समाज क्रियाशीलता का मंत्र दिया। आजीवन समाज को एकसंघ और कर्मनिष्ठ बनाने का व्रत निभानेवाले संत श्रीसमर्थ रामदास ने अपने विचारों और वाणी से पूरे हिंदुस्तान में जागृति लाने का कार्य किया।लगभग चार सौ साल पहले उनकी वाणी द्वारा निकले हुए उपदेश– समय के साथ ग्रंथरूप में अमर हो गए। ये ग्रंथ आज भी समाज को ज्ञान का प्रकाश दे रहे हैं। पूरे मानव समाज को सकारात्मकता की तरफ ले जानेवाले ये ग्रंथ ईश्वरीय चैतन्य की अनुभूति से कम नहीं हैं।उनमें ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 22

पढ़त मूर्ख लक्षण सार:अधिकतर लोग अपनी आजीविका चलाने के उद्देश्य से पढ़ाई करते हैं। उनमें से कुछ अपने स्वार्थ, और अहंकार में मूर्खताएँ करते रहते हैं। ऐसे लोगों के पास सिर्फ किताबी जानकारी होती है, जिन्हें समर्थ रामदास पढ़त मूर्ख यानी पढ़ा-लिखा मूर्ख कहते हैं। अहंकार, दुराभिमान, स्वार्थ, लालच, मत्सर ये कुछ अवगुण हैं, जो ज्ञानी को पढ़तमूर्ख बनाते हैं। उससे ज्ञान की बातों का दुरुपयोग करवाते हैं। जिस तरह गोबर भरे बरतन में अगर खीर डाली जाए तो वह खीर दुर्गंधयुक्त हो जाती है, खाने लायक नहीं रहती, उसी तरह मन में यदि विकार हैं तो वह इंसान ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 23

उत्तम लक्षण सार:एक सज्जन इंसान बनने के लिए कौन से गुण, कौन सी आदतें आवश्यक हैं, कौन से आदर्श यह समर्थ रामदास इस भाग में बताते हैं। ये गुण इंसान के आध्यात्मिक विकास के लिए भी आवश्यक हैं। जब हम अपने अवगुणों को स्वीकार करके उन्हें बदलने का निश्चय करते हैं तो यह आध्यात्मिक उन्नति का पहला कदम बन सकता है।आत्म-अवलोकन अध्यात्म का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। इसके द्वारा अपने अवगुणों को दूर कर, गुणों को अपनाना आसान होता है। ऐसे ही कुछ उत्तम गुण हम इस भाग में जानेंगे, जो व्यवहारिक जीवन के साथ आंतरिक विकास में भी ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 24

शिष्यलक्षण और गुरुलक्षण सारगुरु चाहे कितने भी ज्ञानी हों लेकिन शिष्य की अगर ज्ञान ग्रहण करने की, ज्ञान को की पात्रता नहीं है तो उस शिष्य को ज्ञान का कोई लाभ नहीं होगा। गुरु का ज्ञान बीज होता है, जिसे शिष्य अपनी साधना से सींचता है और उसके जीवन में आत्मबोध का वृक्ष फलता है। लेकिन जिस भूमि (शिष्य) में यह बीज बोया जा रहा है, वह भूमि किस गुणवत्ता की होनी चाहिए, इस पर समर्थ रामदास ने ‘शिष्यलक्षण’ समास में मार्गदर्शन दिया है। बेहतरीन गुणवत्ता का बीज बोया गया लेकिन उस बीज की सिंचाई ही नहीं हुई तो ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 25

रजोगुण लक्षण सारइंसान के शरीर में तीन मुख्य गुण होते हैं- रजोगुण, तमोगुण और सत्वगुण। ये गुण इंसान के बोल-चाल, व्यवहार और स्वभाव पर असर करते हैं। जिसका जो गुण प्रभावी है, उसका जीवन उस अनुसार चलता है। समय के साथ, परिस्थिति अनुसार ये गुण कम-ज़्यादा होते रहते हैं। इन तीन गुणों में तमोगुण हीन है, रजोगुण सबल यानी शक्तिशाली है और सत्वगुण शुद्ध एवं सबसे उत्तम गुण है।समर्थ रामदास ने दासबोध में तीनों गुणों के सटीक लक्षण बताए हैं। इन्हें हम एक-एक करके समझेंगे और उनसे ऊपर उठेंगे। अगर आप तमोगुणी हैं तो रजोगुणी बनने का प्रयास करें ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 26

तमोगुण लक्षण सारइंसान का आध्यात्मिक उत्थान होने में तमोगुण बहुत बड़ी बाधा है। अहंकार तमोगुण का सबसे शक्तिशाली मूल अहंकार को ठेस पहुँचती है तो इंसान क्रोधित हो जाता है और क्रोध तमोगुण का सबसे बड़ा लक्षण है। क्रोध के साथ-साथ लालसा, नफरत, ईर्ष्या, जलन, आलस्य, विवेक का अभाव आदि लक्षण भी तमोगुणी में प्रबल होते हैं। तमोगुण इंसान के पतन का कारण बनता है क्योंकि तमोगुणवश जो कर्म उससे होते हैं, उसका फल उसे पूरे जीवन में भुगतना पड़ता है। जिन्हें जीवन में भौतिक तथा आध्यात्मिक विकास करना है, उनके लिए तमोगुण से ऊपर उठना बहुत आवश्यक है। ...Read More

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 27

सत्वगुण लक्षण सारइंसान की युद्ध करने की वृत्ति को तमोगुण माना जाता है। लेकिन वही युद्ध अगर सत्य के किसी की रक्षा के लिए, दुष्टों का संहार करने के लिए किया जाए तो यह सत्वगुण लक्षण माना गया है। अर्थात दूसरों की भलाई के लिए किया गया अव्यक्तिगत कार्य को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, फिर चाहे वह युद्ध ही क्यों न हो।सत्वगुण शुद्ध गुण है यानी सत्वगुणी इंसान में कपट, ईर्ष्या आदि तरह के मन के विकारों की मिलावट नहीं होती। सत्वगुणी इंसान मननशील होता है। इसलिए उसका व्यवहार भी विवेकपूर्ण होता है। विकार रहित निर्मल मन को ...Read More