मोहन और शालू हर रोज़ सुबह अपनी तीन पहियों की साइकिल लेकर कचरा बीनने जाते थे। उसी से उनकी जीविका चलती थी। गाड़ी भले ही कचरे की हो पर वह अपनी गाड़ी को बड़ा ही सजा कर रखते थे। जैसे-जैसे पहिये घूमते घुंघरुओं की मद्धम-मद्धम आवाज़ कानों में एक तरंग छोड़ देती, जो कानों को बड़ी अच्छी लगती थी। आने जाने वाले उनकी गाड़ी की तरफ़ एक नज़र देखते ज़रूर थे। शालू ने विवाह के एक वर्ष के अंदर ही एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा था गंगा। गंगा के जन्म के समय ही डॉक्टर ने कहा, "अब तुम्हें बस इस अकेली बेटी से ही संतोष करना पड़ेगा। अब दूसरी बार गर्भवती होना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।" गंगा दो-तीन हफ्ते की ही हुई थी कि शालू ने गंगा को भी साथ ले जाने का मन बना लिया। शालू क्या करती मजबूरी इंसान को मज़बूत बना देती है और मजबूर भी कर देती है। मोहन अकेले कचरे में से उतना प्लास्टिक नहीं ला पाता, जितना शालू बीन कर ले आती थी। अपने पति का हाथ बटाने के लिए शालू भी जल्दी ही काम पर लग जाना चाहती थी।
Full Novel
अकेली - भाग 1
मोहन और शालू हर रोज़ सुबह अपनी तीन पहियों की साइकिल लेकर कचरा बीनने जाते थे। उसी से उनकी चलती थी। गाड़ी भले ही कचरे की हो पर वह अपनी गाड़ी को बड़ा ही सजा कर रखते थे। जैसे-जैसे पहिये घूमते घुंघरुओं की मद्धम-मद्धम आवाज़ कानों में एक तरंग छोड़ देती, जो कानों को बड़ी अच्छी लगती थी। आने जाने वाले उनकी गाड़ी की तरफ़ एक नज़र देखते ज़रूर थे। शालू ने विवाह के एक वर्ष के अंदर ही एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा था गंगा। गंगा के जन्म के समय ही डॉक्टर ने ...Read More
अकेली - भाग 2
गंगा इसी तरह कचरा बीनने की ज़िद करती रही पर शालू ने कभी उसकी एक ना सुनी। देखते-देखते 12 गुजर गए। हर रोज़ की तरह आज फिर गंगा ने वही कहा, "वो देख अम्मा कितना सारा कचरा दिखाई दे रहा है। आज तो तू बैठ अम्मा मैं ही जाऊंगी।" "नहीं गंगा ..." "अरे अम्मा देख कितनी बड़ी हो गई हूँ। तुझसे ज़्यादा लंबी भी हो गई हूँ। अब सब सीखने दे मुझे, साइकिल चलाना भी फिर तुम दोनों पीछे बैठना मैं तुम दोनों को खींचूंगी।" "बहुत ज़िद्दी है तू, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती रहती है; जा ले आ।" ...Read More
अकेली - भाग 3
अपने माता पिता के पार्थिव शरीर के साथ गंगा पूरे समय अस्पताल में ही थी। घर पहुँचते ही उसने उसकी खोली के सामने भीड़ लगी है, जिसमें उसके नज़दीकी रिश्तेदार और अड़ोसी पड़ोसी खड़े उनका इंतज़ार कर रहे थे। उसके तुरंत बाद ही मोहन और शालू की अंतिम विदाई की तैयारियाँ होने लगीं। जैसे ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए उठाकर कंधा दिया जाने लगा, तब पहली बार गंगा फूट-फूट कर ज़ोर से रोने लगी। "अम्मा बापू मत जाओ मैं अकेली क्या करूंगी? कैसे खींचूंगी कचरे की गाड़ी। अम्मा तुम मुझे कचरा बीनने नहीं जाने देती ...Read More
अकेली - भाग 4
एक-एक करके सभी रिश्तेदार गंगा को छोड़ कर चले गए और अपने-अपने ठिकाने पहुँच गए। गंगा के मन के भभकता हुआ दिया एकदम से बुझ गया। अब वह बिल्कुल अकेली थी। मोहन और शालू कभी उसे कचरा बीनने नहीं जाने देते थे। वह पहला दिन था जब उसे शालू ने कहा था, "तू बहुत ज़िद्दी है, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती है, जा ले आ।" गंगा के कानों में बार-बार यही शब्द गूँजा करते थे। वह सोच रही थी शायद भगवान ही उसे बचाना चाहते थे। अम्मा कभी हाँ नहीं कहती थी पर उस दिन उन्होंने हाँ कह दिया ...Read More
अकेली - भाग 5
आज ज़िंदगी में पहली बार गंगा अकेली कचरा बीन रही थी। उसकी आँखों से आँसू गिर कर उस कचरे मिलते जा रहे थे भले ही शालू और मोहन बेहद गरीब थे फिर भी गंगा के लिए उनके सपने बड़े थे। थैला भर कर कचरा बीनने के बाद गंगा उसे अपने कंधे पर टांगे चल रही थी। उसे अपनी माँ की कही बातें याद आ रही थीं। "गंगा मैं तुझे कचरा बीनने के काम में कभी नहीं लगाऊँगी। तेरी शादी भी ऐसे लड़के से करूंगी जो तुझे अच्छे से रखेगा और वह भी कचरा बीनने का काम नहीं करता होगा।" ...Read More
अकेली - भाग 6
गंगा की खोली से कुछ ही दूरी पर उसकी बचपन की सहेली फुलवंती अपने परिवार के साथ रहती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति गंगा जितनी खराब नहीं थी। उसके माता-पिता, दोनों भाई मैकू और छोटू, सब काम पर जाते थे। फुलवंती और गंगा एक दूसरे के घर खेलने जाते थे। गंगा फुलवंती की ही तरह मैकू और छोटू को अपना भाई मानती थी। बचपन में सब साथ-साथ खेलते थे लेकिन अब गंगा जवान हो रही थी। उसने लड़कों के साथ खेलना भी बंद कर दिया था। फुलवंती भी बड़ी हो रही थी। अब वह मिलतीं तो अकेले शांति से ...Read More
अकेली - भाग 7
गंगा के माता पिता को गुजरे दो माह बीत चुके थे लेकिन अभी तक भी उसकी मासी जो कह तो गई थी कि वह चक्कर लगाती रहेगी परंतु अब तक उन्होंने पलट कर गंगा की सुध नहीं ली। चाचा, मामा, ताऊ कोई काम ना आया। गंगा ने भी यह मान लिया था कि अब तो उसे अकेले ही सब कुछ करना है। अकेले ही जीना है और अकेले ही मरना है। धीरे-धीरे छः महीने गुजर गए लेकिन शांता ताई और मनु काका कहीं भी नहीं गए। शांता ताई काम पर जाती तब भी मनु काका तो घर पर डटे ...Read More
अकेली - भाग 8
फुलवंती के मुँह से उसके भाइयों के मनसूबों के बारे में सुनकर गंगा ने उसे गले से लगा लिया अपनी आँखों से टपकते हुए आँसुओं को पोंछते हुए बोली, "फुलवंती तू चिंता मत कर। मुझ में इतनी शक्ति है कि मैं ऐसे अमानुष लोगों का मुकाबला कर सकती हूँ। मैं जानती हूँ, मैं अकेली हूँ, बेसहारा हूँ, साथ ही जवान हूँ। मुझे ऐसे हालातों से निपटना ही होगा। मेरे बापू जब भी किसी औरत पर अत्याचार या बलात्कार का समाचार सुनते थे तब कहते थे कि शालू और गंगा अपनी रक्षा ख़ुद करना सीखो। बचपन में सीखे हुए कुश्ती ...Read More
अकेली - भाग 9
खोली का दरवाज़ा खुलते ही छोटू और मैकू अंदर घुस गए। छोटू ने गंगा कुछ पूछ सके उससे पहले उसका मुँह दबा दिया और मैकू गंगा की ओढ़नी खींचने लगा। छोटू ने कहा, "बहुत इंतज़ार किया है तेरे लिए गंगा हमने।" वह जबरदस्ती गंगा को बिस्तर पर पटकने ही वाला था कि फुलवंती ने खोली को रौशनी से भर दिया। लाइट के जलते ही जो दृश्य दिखाई दे रहा था वह बहुत ही डरावना था। छोटू का हाथ गंगा के मुँह पर था। मैकू के हाथों में गंगा की ओढ़नी थी जिसे वह हमेशा अपने वक्ष स्थल पर ओढ़ ...Read More
अकेली - भाग 10 - अंतिम भाग
पुलिस को बुलाने की बात सुनकर गंगा ने कहा, "नहीं फुलवंती जाने दे इन्हें। इतनी बड़ी सज़ा जो तू इन्हें दी है उसके आगे कुछ हफ़्तों की जेल की सज़ा कोई मायने नहीं रखती। अब तो यह तेरे से कभी नज़रें नहीं मिला पाएंगे। यही इनकी सबसे बड़ी सज़ा होगी।" आज फुलवंती के अंदर माँ काली का रूप समाया था। उसने गुस्से भरे स्वर में कहा, "जाओ चले जाओ यहाँ से। आज मुझे तुम्हारी शक्ल देख कर भाई नहीं दो बलात्कारी नज़र आ रहे हैं।" उसके बाद उनके जाते से फुलवंती गंगा से लिपट कर, "मुझे माफ़ कर दे ...Read More