एक योगी की आत्मकथा

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योगी कथामृत का विश्व व्यापक अभिनन्दन हजारों पुस्तकें जो हर वर्ष प्रकाशित होती हैं उनमें से कुछ मनोरंजक होती हैं, कुछ शिक्षा प्रदान करती हैं, कुछ ज्ञानवर्धक होती हैं। एक पाठक अपने को भाग्यशाली समझ सकता है यदि उसे ऐसी पुस्तक मिले जो यह तीनों काम कर दे। योगी कथामृत इन सबसे और भी अनपम है - यह एक ऐसी पुस्तक है जो मन और आत्मा के द्वार खोल देंती है। — इण्डिया जर्नल “एक अद्वितीय वृत्तान्त।” — न्यू यॉर्क टाइम्स “इसके पृष्ठ अद्वितीय शक्ति एवं स्पष्टता के साथ, एक विमोहक जीवन को प्रदर्शित करते हैं। एक ऐसे व्यक्तित्व को जिसकी महानता की कोई मिसाल न हो, जिससे पाठक प्रारम्भ से अन्त तक अवाक् रह जाता है.... इन पृष्ठों में अखण्डनीय प्रमाण है कि मनुष्य की मानसिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का ही केवल स्थायी महत्व है, और वह सभी सांसारिक बाधाओं पर आंतरिक शक्ति से विजय प्राप्त कर सकता है.... इस महत्वपूर्ण आत्मकथा को हमें अवश्य ही एक आध्यात्मिक क्रान्ति ला सकने की शक्ति का श्रेय देना चाहिये।” — श्लेसविग होस्टीनीशे टाजेस्पोस्ट, जर्मनी “एक स्मारकीय कार्य।”— शेफील्ड टेलीग्राफ, इंग्लैंड

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एक योगी की आत्मकथा

परमहंस योगानंद की यह आत्मकथा, पाठकों और योग के जिज्ञासुओं को संतों, योगियों, विज्ञान और चमत्कार, मृत्यु एवं पुनर्जन्म, व बंधन, की एक ऐसी अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाती है, जिससे पाठक अभिभूत हो जाता है। सहज-सरल शब्दों में भावाभिव्यक्ति, पठनीय शैली, गठन कौशल, भाव-पटुता, रचना प्रवाह, शब्द सौन्दर्य इस आत्मकथा को एक नया आयाम देते हैं और पुस्तक को पठनीय बनाते हैं। एक सिद्ध पुरुष की जीवनगाथा को प्रस्तुत करती यह पुस्तक जीवन दर्शन के तमाम पक्षों से न सिर्फ हमें रूबरू कराती है, बल्कि योग के अद्भुत.. ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 1

{ मेरे माता-पिता एवं मेरा बचपन }परम सत्य की खोज और उसके साथ जुड़ा गुरु-शिष्य संबंध प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है।इस खोज के मेरे अपने मार्ग ने मुझे एक भगवत्स्वरूप सिद्ध पुरुष के पास पहुँचा दिया जिनका सुघड़ जीवन युग-युगान्तर का आदर्श बनने के लिये ही तराशा हुआ था । वे उन महान विभूतियों में से एक थे जो भारत का सच्चा वैभव रहे हैं। ऐसे सिद्धजनों ने ही हर पीढ़ी में अवतरित हो कर अपने देश को प्राचीन मिश्र (Egypt) एवं बेबीलोन (Babylon) के समान दुर्गति को प्राप्त होने से बचाया है।मुझे याद आता ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 2

{ माँ का देहान्त और अलौकिक तावीज }मेरी माँ की सबसे बड़ी इच्छा मेरे बड़े भाई के विवाह की “अहा ! जब मैं अनन्त की पत्नी का मुख देखूँगी तब मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग मिल जायेगा !” इन शब्दों में माँ को अपने वंश को आगे चलाने की प्रबल भारतीय भावना व्यक्त करते मैं प्रायः सुनता था। अनन्त की सगाई के समय मैं लगभग ग्यारह वर्ष का था । माँ कोलकाता में अत्यंत उल्लास से विवाह की तैयारियों में जुटी हुई थीं । केवल पिताजी और मैं ही उत्तरी भारत में स्थित बरेली में अपने घर में ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 3

{ द्विशरीरी संत }“पिताजी! यदि मैं बिना किसी दबाव के घर लौटने का वचन दूँ, तो क्या दर्शन यात्रा लिये बनारस जा सकता हूँ?”मेरे यात्रा-प्रेम में पिताजी शायद ही कभी बाधा बनते थे। मेरी किशोरावस्था में भी अनेक शहरों और तीर्थस्थलों की यात्रा करने की अनुमति वे मुझे दे देते थे। साधारणतया मेरे साथ मेरे एक या अधिक मित्र होते। पिताजी द्वारा प्रदत्त प्रथम श्रेणी के पासों पर हम लोग आरामपूर्वक यात्रा करते। हमारे परिवार के खानाबदोश लोगों के लिये पिताजी का रेलवे अधिकारी का पद पूर्णतः संतोषप्रद था।पिताजी ने मेरे अनुरोध पर यथोचित विचार करने का वचन दिया। ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 4

{ हिमालय की ओर मेरे पलायन में बाधा }“कोई भी छोटा-मोटा बहाना बनाकर अपनी कक्षा से बाहर निकल आओ एक घोड़ागाड़ी किराये पर ले लो। हमारी गली में ऐसी जगह आकर ठहरना जहाँ तुम्हें मेरे घर का कोई सदस्य न देख सके।”हिमालय में मेरे साथ जाने की योजना बनाने वाले उच्च माध्यमिक विद्यालय के अपने सहपाठी अमर मित्तर को मेरा यह अंतिम निर्देश था। अपने पलायन के लिये हम लोगों ने अगला दिन तय किया था। अनन्त दा मुझ पर कड़ी दृष्टि रखते थे, इसलिये सावधानी बरतना आवश्यक था। उन्हें पूरा सन्देह था कि मेरे मन में भाग जाने ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 5

{ गंधबाबा के चमत्कारी प्रदर्शन }“इस संसार में हर वस्तु की एक विशेष ऋतु और हर काम का एक होता है।” ¹ अपने मन को सांत्वना देने के लिये सोलोमन ² का यह ज्ञान उस समय मुझे प्राप्त नहीं था; घर से बाहर जहाँ कहीं भी मैं घूमने जाता, मेरी आँखें अपने इर्दगिर्द मेरे लिये नियत गुरु को ढूंढती रहतीं। परन्तु मेरी हाई स्कूल की पढ़ाई पूर्ण होने तक मेरी उनसे भेंट न हो सकी। अमर के साथ हिमालय की ओर पलायन और श्रीयुक्तेश्वर जी के मेरे जीवन में आगमन के महान् दिवस के बीच दो वर्ष व्यतीत हो ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 6

{ बाघ स्वामी }“मैंने बाघ स्वामी का पता खोज निकाला है। चलो, कल उनका दर्शन किया जाय।”यह स्वागतार्थ प्रस्ताव के मेरे एक मित्र चण्डी से मिला। अपने संन्यासपूर्व जीवन में केवल अपने नंगे हाथों से बाघों के साथ लड़ने और उन्हें पकड़ने वाले इस सन्त का दर्शन करने के लिये मैं भी उत्सुक था। ऐसे असाधारण साहसिक कार्यों के प्रति बाल सुलभ उत्साह मुझ में भरपूर था।दूसरे दिन प्रातःकाल बहुत ठण्ड पड़ रही थी, पर मैं चण्डी के साथ अत्यन्त उत्साह और स्फूर्ति के साथ चल पड़ा। कोलकाता के बाहर भवानीपुर में बहुत देर तक व्यर्थ खोज करने के ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 7

{ प्लवनशील सन्त }“कल रात एक सभा में मैंने एक योगी को जमीन से कई फुट ऊपर हवा में हुए देखा।” मेरा मित्र उपेन्द्र मोहन चौधरी बड़े ही प्रभावशाली ढंग से बोल रहा था।मैंने उत्साहपूर्ण मुस्कान के साथ कहाः “शायद मैं उनका नाम बता सकता हूँ। कहीं वे अप्पर सर्क्युलर रोड के भादुड़ी महाशय तो नहीं थे?”उपेन्द्र ने स्वीकृति में सिर हिलाया। यह बात मुझे पहले ही ज्ञात है। यह देखकर उसका चेहरा थोड़ा उतर गया। सन्तों के बारे में मेरी जिज्ञासा से मेरे सभी मित्र भली-भाँति परिचित थे; कोई नयी जानकारी मिलते ही मुझे उनके पीछे लगा देने ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 8

{ भारत के महान् वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र बोस }“जगदीशचन्द्र बोस ने वायरलेस का आविष्कार मार्कोनी से पहले ही कर था।”यह उत्तेजक टिप्पणी सुनकर मैं रास्ते के किनारे खड़े होकर विज्ञान विषयक चर्चा कर रहे प्राध्यापकों के एक दल के पास जाकर खड़ा हो गया। यदि उनमें सम्मिलित होने के पीछे मेरी भावना जाति के अभिमान की थी, तो मुझे उसका खेद हैं। भारत न केवल गूढ़ चिन्तन में, वरन् भौतिक विज्ञान में भी प्रमुख भूमिका निभा सकता है इस बात के प्रमाण में अपनी गहरी अभिरुचि को मैं अस्वीकार नहीं कर सकता।“आप कहना क्या चाहते हैं, सर?”प्राध्यापक महोदय ने ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 9

{ परमानन्दमग्न भक्त और उनकी ईश्वर के साथ प्रेमलीला }“छोटे महाशय, बैठो। मैं अपनी जगन्माता से वार्तालाप कर रहा मैंने अत्यन्त श्रद्धा के साथ कमरे में चुपचाप प्रवेश किया था। मास्टर महाशय के देवता सदृश रूप ने मुझे चकाचौंध कर दिया। श्वेत रेशम समान दाढ़ी और विशाल तेजस्वी नेत्रों से युक्त वे पवित्रता का साक्षात् अवतार लग रहे थे। ऊपर की ओर उठा हुआ उनका चेहरा और जुड़े हुए हाथ देखकर मैं समझ गया कि उनके पास मेरे उस प्रथम आगमन ने उनकी अर्चना में बाधा डाली है।उस समय तक मुझे जितने धक्के लगे थे उन सब से बढ़कर ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 10

{ अपने गुरु श्रीयुक्तेश्वरजी से मेरी भेंट }“ईश्वर में श्रद्धा कोई भी चमत्कार कर सकती है, केवल एक को – अध्ययन के बिना परीक्षा में उत्तीर्ण होना।” झुंझलाकर मैंने वह “प्रेरणाप्रद” पुस्तक बंद कर दी जिसे मैंने खाली समय में एक दिन उठा लिया था।“लेखक का यह अपवाद कथन उसकी ईश्वर में श्रद्धा का पूर्ण अभाव दर्शाता है”, मैंने सोचा। “बेचारा! रात-रात भर पढ़ाई करने में उसे अत्यधिक विश्वास है!”मैंने पिताजी को वचन दे रखा था कि मैं अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूर्ण करूँगा। मैं परिश्रमी विद्यार्थी होने का दावा नहीं कर सकता। महीने पर महीने बीतते गये ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 11

{ दो अकिंचन बालक वृन्दावन में }“यदि पिताजी तुम्हें उत्तराधिकार से वंचित कर दें तो कोई अन्याय नहीं होगा, कितनी मूर्खता से तुम अपना जीवन व्यर्थ गँवा रहे हो!" ज्येष्ठ भ्राता का हितोपदेश मेरे कानों पर आक्रमण कर रहा था।जितेन्द्र और मैं ताज़े-ताज़े ( केवल एक वाक्यालंकार! हम थे धूलिधूसरित) रेलगाड़ी से उतरकर अनन्त दा के घर पहुँचे थे जो हाल ही में कोलकाता से स्थानान्तरित होकर इस प्राचीन नगरी आगरा में रहने आये थे। वे सरकारी लोकनिर्माण विभाग (PWD) में सुपरवाइजिंग एकाउण्टेन्ट थे।“आप को भली भाँति मालूम है अनन्त दा, कि मैं अपने परमपिता से अपना उत्तराधिकार प्राप्त ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 12

{ अपने गुरु के आश्रम की कालावधि }“तुम आ गये!” श्रीयुक्तेश्वरजी ने बरामदे के पीछे स्थित बैठक में बिछे व्याघ्रचर्म पर बैठे-बैठे ही मुझ से कहा। उनका स्वर ठंडा था, ढंग भावशून्य।“जो गुरुदेव! मैं आपके अनुसरण के लिये आया हूँ।” झुककर मैंने उनका चरणस्पर्श किया।“परन्तु यह कैसे हो सकता है? तुम तो मेरी इच्छाओं की अवहेलना करते हो।”“अब ऐसा नहीं होगा, गुरुजी! आप की इच्छा ही मेरा धर्म होगी।” “तब ठीक है! अब मैं तुम्हारे जीवन का उत्तरदायित्व ले सकता हूँ।” “मैं स्वेच्छा से अपना सारा भार आपको सौंपता हूँ, गुरुदेव!”“तो अब मेरा पहला अनुरोध यह है कि तुम ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 13

{ विनिद्र संत }“कृपया मुझे हिमालय में जाने की अनुमति दीजिये। मुझे लगता है कि वहाँ के अखण्ड एकान्त मैं ईश्वर से अनवरत तादात्म्य स्थापित कर सकूँगा।”एक बार सचमुच मैंने अपने गुरु से ये कृतघ्र शब्द कहे। कभी-कभी साधक के मन में अप्रत्याशित रूप से उत्पन्न होने वाले भ्रम के जाल में मैं फँस गया था। कॉलेज की पढ़ाई और आश्रम के कर्तव्यों के प्रति दिनप्रतिदिन बढ़ती उदासीनता मुझे अधिकाधिक अधीर किये जा रही थी। इस कृतघ्नता के पातक को किंचित् हल्का करने वाली बात यह थी कि मैंने यह प्रस्ताव तब रखा था जब श्रीयुक्तेश्वरजी के साथ रहते ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 14

{ समाधि-लाभ }“मैं आ गया हूँ, गुरुजी!” मेरा लज्जित चेहरा मेरे मनोभावों को अधिक स्पष्टता से व्यक्त कर रहा रसोईघर में चलकर खाने के लिये कुछ देखते हैं।” श्रीयुक्तेश्वरजी का बर्ताव इतना सहज था मानों हम कुछ दिनों के लिये नहीं बल्कि कुछ घंटों के लिये ही अलग रहे हों।“गुरुदेव! मेरे द्वारा आश्रम के कर्त्तव्यों को अचानक छोड़ कर चले जाने से आपको अवश्य निराशा हुई होगी। मुझे तो लगा था आप मुझ पर क्रोधित होंगे!”“नहीं, बिलकुल नहीं! क्रोध केवल इच्छा के अवरोध से उत्पन्न होता है। मैं कभी दूसरों से कोई अपेक्षा नहीं रखता, इसलिये उनका कोई भी ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 15

{ फूलगोभी की चोरी }“गुरुदेव! आपके लिये भेंट! इन छह बड़ी-बड़ी फूलगोभियों को मैंने अपने हाथों से लगाया था इनकी देखभाल उसी ममता के साथ की थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे की देखभाल करती है।” इतना कहकर मैंने बड़ी भाव भंगिमा के साथ गोभियों की टोकरी प्रस्तुत की।“शाबाश!” श्रीयुक्तेश्वरजी ने सस्नेह मुस्करा कर अपनी स्वीकृति प्रकट की। “अभी इन्हें अपने कमरे में ही रखो; कल एक विशेष भोज में ये काम आ जायेंगी।” कॉलेज की गर्मियों की छुट्टियाँ अपने गुरु के साथ उनके समुद्र तट पर स्थित पुरी आश्रम में बिताने के लिये मैं अभी-अभी पुरी पहुँचा था। ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 16

{ ग्रह-शान्ति } “मुकुन्द! तुम ज्योतिष सम्बन्धी एक कड़ा क्यों नहीं ले आते ?” “क्या मुझे लाना चाहिये, गुरुदेव मैं तो ज्योतिष में विश्वास नहीं करता !”“यह विश्वास का प्रश्न नहीं है; किसी भी विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह होना चाहिये कि यह सत्य है या नहीं। गुरुत्वाकर्षण का नियम न्यूटन से पहले भी उसी तरह कार्य करता था जैसा उसके बाद। ब्रह्माण्ड में अच्छी खासी अराजकता मच जाती यदि उसके नियम मानवीय विश्वास की मान्यता के बिना कार्य न कर पाते। “पाखंडी ज्योतिषियों ने प्राचीन ज्योतिष विज्ञान को उसकी वर्तमान बदनाम अवस्था में लाकर रख दिया है। गणितीय¹ ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 17

{ शशि और तीन नीलम }“तुम्हारी और मेरे बेटे की स्वामी श्रीयुक्तैश्वरजी के बारे में इतनी ऊँची धारणा होने कारण ही में किसी दिन उनसे मिलने आ जाऊंगा।” डॉक्टर नारायण चंदर राय के स्वर से यह स्पष्ट था कि वे केवल मूर्खों की सनक के प्रति सौजन्य दिखा रहे थे। मतांतरण करने वालों की परंपरा के अनुसार मैंने अपने रोष को अन्दर ही अन्दर दबा लिया।ये डॉक्टर महोदय, जो पशु चिकित्सक थे, विचारों से पक्के नास्तिक थे। उनके युवा पुत्र सन्तोष ने मुझसे उनमें रुचि लेने के लिये अनुनयविनय किया था। अभी तक तो मेरी अमूल्य सहायता कुछ अदृश्य ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 18

{ एक मुस्लिम चमत्कार प्रदर्शक }“कई वर्ष पहले, ठीक इसी कमरे में जहाँ तुम अभी रहते हो, एक मुस्लिम प्रदर्शक ने मेरे समक्ष चार चमत्कार दिखाये थे।”श्रीयुक्तेश्वरजी मेरे नये कमरे में पहली बार आये तब उन्होंने यह बात कही। श्रीरामपुर कॉलेज में प्रवेश लेने के तुरन्त बाद ही मैंने निकट स्थित पंथी नामक छात्रावास में एक कमरा लिया था। यह गंगा तट पर स्थित पुराने ढंग का ईंटों का एक भवन था।“यह कैसा संयोग है, गुरुदेव ! क्या ये नव-शृंगारित दीवारें स्मृतियों को अपने में छिपाये इतनी पुरातन हैं ?” अपने सीधे-सादे तरीके से सजाये गये कमरे में मैंने ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 19

{ मेरे गुरु कोलकाता में, प्रकट होते हैं श्रीरामपुर में }“ईश्वर के अस्तित्व के विषय में शंकाओं से मैं उद्विग्न हो जाता हूँ। फिर भी एक कष्टप्रद विचार बार-बार मुझे सताता रहता है: क्या आत्मा में ऐसी सम्भावनाएँ नहीं हो सकतीं जिन्हें मानवजाति ने कभी प्रयुक्त ही न किया हो ? यदि इन सम्भावनाओं का पता मनुष्य नहीं लगा पाता, तो क्या वह अपने वास्तविक लक्ष्य से चूक नहीं जाता ?”यह मन्तव्य पंथी छात्रावास के कमरे में मेरे साथ रहने वाले दिजेन बाबू ने तब प्रकट किया जब मैंने उन्हें आकर अपने गुरु से मिलने के लिये कहा।“श्रीयुक्तेश्वरजी तुम्हें ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 20

{ कश्मीर-यात्रा में बाधा }“पिताजी! मैं गर्मी की छुट्टियों में गुरुदेव और चार मित्रों को लेकर हिमालय की तलहटी स्थित पहाड़ियों के क्षेत्र में जाना चाहता हूँ। क्या आप मुझे कश्मीर के छः रेलवे-पास और यात्रा में खर्च के लिये पर्याप्त रुपया देंगे?”मेरी अपेक्षा के अनुरूप ही पिताजी ठहाका मारकर हँसने लगे। “यह तीसरी बार है कि तुम मुझे फिर वही शेखचिल्ली की कहानी सुना रहे हो। पिछले साल और उसके पिछले साल भी तुमने मुझसे यही अनुरोध किया था न ? अन्तिम क्षण में श्रीयुक्तेश्वरजी जाने से मना कर देते हैं।” “यह सच है, पिताजी! पता नहीं क्यों ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 21

{ हमारी कश्मीर - यात्रा }"अब तुम यात्रा करने योग्य स्वस्थ हो गये हो। मैं भी तुम्हारे साथ कश्मीर श्रीयुक्तेश्वरजी ने एशियाटिक कॉलरा से मेरे ठीक हो जाने के दो दिन बाद मुझसे कहा।उसी दिन शाम को छह लोगों का हमारा दल उत्तर की ओर जाने के लिये गाड़ी पर सवार हो गया। हमारा पहला पड़ाव शिमला में हुआ, जो हैमालय के पहाड़ों के सिंहासन पर विराजमान रानीसदृश शहर है। भव्य दृश्यों का आनन्द लेते हुए हम ढलानयुक्त सड़कों पर घूमे।“विलायती स्ट्राबेरी ले लो,” एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करते स्थान में लगे खुले बाजार में बैठी एक वृद्धा चिल्ला ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 22

{ पाषाण प्रतिमा का हृदय }“मैं एक पति-परायणा हिन्दू नारी हूँ। मेरा उद्देश्य अपने पति की शिकायत करना नहीं पर मेरी यह तीव्र इच्छा है कि उनके भौतिकतावादी विचारों में परिवर्तन हो। मेरे ध्यान के कमरे में लगी संतों की तस्वीरों का मज़ाक उड़ाने में उन्हें बड़ा आनन्द आता है। मेरे भाई, मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उन्हें बदल सकते हो। बोलो, क्या यह काम करोगे ?”मेरी सबसे बड़ी बहन रमा अनुनयपूर्ण दृष्टि से मुझे देख रही थी। मैं थोड़ी देर उनसे मिलने के लिये कोलकाता के गिरीश विद्यारत्न लेन में स्थित उनके घर गया हुआ था। उनके ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 23

{ विश्वविद्यालय से उपाधि की प्राप्ति }“तुम दर्शनशास्त्र के अध्ययन कार्य की उपेक्षा कर रहे हो। इसमें सन्देह नहीं तुम परीक्षा में पास होने के लिये परिश्रमविहीन 'अंतः प्रेरणा' पर निर्भर कर रहे हो। परन्तु यदि तुम एक विद्यार्थी की तरह मेहनत से पढ़ाई नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें इस परीक्षा में पास नहीं होने दूँगा।”श्रीरामपुर कॉलेज के प्रोफेसर डी. सी. घोषाल मुझसे सख्ती के साथ बोल रहे थे। यदि मैं उनकी लिखित फाइनल क्लास रूम टेस्ट में पास नहीं होता, तो मैं विश्वविद्यालय की परीक्षा में बैठने के लिये अयोग्य ठहराया जाता। ये नियम कोलकाता विश्वविद्यालय के बनाये ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 24

{ मेरा संन्यास- ग्रहणः स्वामी-संस्थान के अन्तर्गत }“गुरुदेव ! मेरे पिताजी मुझसे बंगाल-नागपुर रेलवे में एक अधिकारी का पद करने के लिये आग्रह करते रहे हैं। परन्तु मैंने साफ मना कर दिया है।” फिर मैंने आशा के साथ आगे कहाः “गुरुदेव ! क्या आप मुझे स्वामी परंपरा की संन्यास दीक्षा नहीं देंगे ?” मैं अनुनयपूर्वक अपने गुरु की ओर देखता रहा। विगत वर्षों में मेरे निश्चय की गहराई की परीक्षा लेने के लिये उन्होंने मेरे इसी अनुरोध को कई बार ठुकरा दिया था। परन्तु आज अनुग्रहपूर्ण मुस्कान उनके मुखमण्डल पर आ गयी।“ठीक है। कल मैं तुम्हें संन्यास दीक्षा दे ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 25

{ भाई अनन्त एवं बहन नलिनी }“अनन्त अब अधिक दिन जीवित नहीं रह सकता; इस जन्म के लिये उसके का भोग पूरा हो चुका है।”एक दिन प्रातःकाल जब मैं गहन ध्यान में बैठा हुआ था, तो मेरी अन्तर्चेतना में ये निष्ठुर शब्द उभर आये। संन्यास लेने के थोड़े ही दिन बाद मैं अपने जन्मस्थान गोरखपुर में अपने बड़े भाई अनन्त के घर गया हुआ था। अचानक अस्वस्थ होकर अनन्त दा ने बिस्तर पकड़ लिया था। मैं आत्मीयता के साथ उनकी सेवा में जुट गया।अन्तर में उठी इस सत्यनिष्ठ घोषणा से मैं दुःखी हो उठा। मुझे लगा कि अपनी असहाय ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 26

{ क्रियायोग विज्ञान }इस पुस्तक में बार-बार जिस क्रियायोग विज्ञान का उल्लेख हुआ है, उसका आधुनिक भारत में दूर-दूर प्रसार मेरे गुरु के गुरु लाहिड़ी महाशय के माध्यम से हुआ । क्रिया शब्द संस्कृत कृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है करना, कर्म और प्रतिकर्म करना; इसी धातु से कर्म शब्द भी बना है, जिसका अर्थ है कार्य-कारण का नैसर्गिक नियम। अतः क्रियायोग का अर्थ होता है “एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनंत परमतत्त्व के साथ मिलन (योग)।” इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करने वाला योगी धीरे-धीरे कर्म बंधन से या कार्य-कारण संतुलन की नियमबद्ध श्रृंखला ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 27

{ रांची में योग-विद्यालय की स्थापना }“तुम संगठनात्मक कार्य के इतने विरुद्ध क्यों हो ?”गुरुदेव के इस प्रश्न से कुछ अचम्भित हुआ। यह सच है कि उस समय मेरा व्यक्तिगत मत यही था कि संगठन “बर्रो के छत्ते” मात्र होते हैं।“यह ऐसा कार्य है, गुरुदेव, कि व्यक्ति चाहे जो करे, या न करे, उसके सिर केवल दोष ही मढ़ा जाता है।”“तो क्या सारी दिव्य मलाई तुम अकेले ही खा जाना चाहते हो?” यह प्रश्न करते समय मेरे गुरु कठोर दृष्टि से मेरी ओर देख रहे थे। “यदि उदार हृदय गुरुओं की लम्बी परम्परा अपना ज्ञान दूसरों को देने की ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 28

{ काशी का पुनर्जन्म और उसका पता लगना }“कोई भी पानी में मत उतरना। सब लोग बाल्टी से पानी ही नहाएँगे।”आठ मील की दूरी पर स्थित एक पहाड़ी पर मेरे साथ चल रहे राँची के विद्यालय के बच्चों को मैं निर्देश दे रहा था। हमारे सामने फैले हुए तालाब में उतरने की इच्छा तो हो रही थी, परन्तु मेरे मन में उस तालाब के प्रति एक प्रकार की अरुचि पैदा हो गयी थी। अधिकांश बच्चे तो पानी में अपनी बाल्टियाँ डुबाने लगे, पर कुछ लड़के ठंडे पानी के आकर्षण का विरोध नहीं कर सके। जैसे ही उन्होंने पानी में ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 29

{ रवीन्द्रनाथ टैगोर और मेरे विद्यालयों की तुलना }“रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हम लोगों को आत्माभिव्यक्ति के एक स्वाभाविक रूप पक्षियों की भाँति सहज ढंग से गीत गाना सिखाया।”एक दिन प्रातः काल जब मैंने राँची के अपने विद्यालय के एक चौदह वर्षीय छात्र भोलानाथ के सुरीले गायन की प्रशंसा की, तो उसने यह बात बतायी। बीच-बीच में वह गाता ही रहता था। चाहे उसे कोई गाने के लिये कहे या न कहे, वह सुरीली तानों की झड़ी लगा देता था। मेरे विद्यालय में आने से पहले वह रवीन्द्रनाथ टैगोर के बोलपुर स्थित सुप्रसिद्ध शान्तिनिकेतन विद्यालय का छात्र रहा था।मैंने उससे ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 30

{ चमत्कारों का नियम }महान उपन्यासकार लियो टालस्टाय¹ ने एक अत्यंत रोचक कथा लिखी थी– “वैरागी।” उनके मित्र निकोलस ने उसे संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत कियाः–“एक द्वीप पर तीन वृद्ध वैरागी रहते थे। वे इतने भोले-भाले थे कि उन्हें केवल एक ही प्रार्थना आती थीः ‘हम तीन हैं, तू (ईश्वर) तीन है – हम पर दया कर!’ इस अत्यन्त सीधी-सादी, भोली प्रार्थना के समय महान चमत्कार प्रकट होते थे।“वहाँ के बिशप² ने इन तीन वैरागियों और उनकी अस्वीकार्य प्रार्थना के बारे में सुना और उसने उन्हें धर्मनियमों के अनुसार अधिकृत प्रार्थना सिखाने के लिये उनके पास जाने का ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 31

{ पुण्यशीला माता से भेंट }“पूज्य माताजी, मैं जब नन्हा-सा था, तभी आपके अवतारी पति का आशीर्वाद मुझे प्राप्त गया था। वे मेरे माता-पिता और मेरे गुरु श्रीयुक्तेश्वरजी के भी गुरु थे। अतः क्या आप अपने पावन जीवन के कुछ प्रसंग सुनाकर मुझे धन्य करेंगी ?” मैं लाहिड़ी महाशय की धर्मपत्नी श्रीमती काशीमणि से बात कर रहा। मैं थोड़े समय के लिये बनारस में था, अतः इस पूज्य महिला से मिलने की अपनी चिरकालीन आकांक्षा पूर्ण कर रहा था।बनारस के गरुड़ेश्वर मुहल्ले में लाहिड़ी परिवार के घर में उन्होंने अत्यंत प्रेम के साथ मेरा स्वागत किया। वृद्ध होने पर ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 32

{ मृतक राम को पुनः जीवन-दान } 'अब लाज़ारस नाम का एक व्यक्ति बीमार था... जब ईसा मसीह यह सुना, तो उन्होंने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं है, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, जिससे परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो सके।' एक सुहानी सुबह श्रीयुक्तेश्वरजी श्रीरामपुर के अपने आश्रम की बाल्कनी में बैठकर ईसाई धर्मग्रन्थ पर भाष्य कर रहे थे। गुरुदेव के कुछ अन्य शिष्यों के अतिरिक्त मैं भी राँची के अपने छात्रों के एक दल के साथ वहाँ उपस्थित था। यहाँ पर ईसामसीह अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कह रहे हैं। यद्यपि वे वास्तव में ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 33

{ आधुनिक भारत के महावतार बाबाजी }बद्रीनाथ के आसपास के उत्तरी हिमालय के पहाड़ आज भी लाहिड़ी महाशय के बाबाजी की जीवंत उपस्थिति से पावन हो रहे हैं। जन संसर्ग से दूर निर्जन प्रदेश में रहने वाले ये महागुरु शताब्दियों से, शायद सहस्राब्दियों से अपने स्थूल शरीर में वास कर रहे हैं। मृत्युंजय बाबाजी एक “अवतार” हैं। इस संस्कृत शब्द का अर्थ है नीचे उतरना। यह “अव,” अर्थात् “नीचे” और “तृ,” अर्थात् “तरण” शब्दों से बना है। हिंदू शास्त्रों में “अवतार” शब्द का प्रयोग ईश्वरत्व का स्थूल शरीर में अवतरण के अर्थ में होता है। बाबाजी की आध्यात्मिक अवस्था मानवी ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 34

हिमालय में महल का सृजन“बाबाजी (महाअवतारी बाबा) के साथ लाहिड़ी महाशय की प्रथम भेंट एक रोमांचक कहानी है और उन कई कहानियों में से केवल एक है जिनसे उस मृत्युंजय महागुरु की विस्तृत झाँकी मिलती है।”ये उस अद्भुत कहानी को शुरू करने से पहले स्वामी केवलानन्दजी के प्रस्तावना शब्द थे। पहली बार उन्होंने जब यह कहानी मुझे बतायी थी, तो मैं अक्षरशः मंत्रमुग्ध हो गया था। अन्य कई अवसरों पर भी मैं अपने शान्त प्रकृति संस्कृत शिक्षक को यह कहानी फिर से मुझे सुनाने के लिये मना लिया करता था। बाद में श्रीयुक्तेश्वरजी से भी मुझे लगभग उन्हीं शब्दों ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 35

लाहिड़ी महाशय का अवतार सदृश जीवन"हमें इसी प्रकार सारी धार्मिक परंपराओं का पालन करना होगा।" बैप्टिस्ट यूहन्ना को यह उनसे दीक्षा देने का अनुरोध करने में ईसा मसीह अपने गुरु के दिव्य अधिकारों को स्वीकार कर रहे थे।पौर्वात्य दृष्टिकोण से बाइबिल के श्रद्धापूर्ण अध्ययन और अन्तः प्रेरणा से मुझे यह पूर्ण विश्वास हो गया है कि गतजन्मों में बैप्टिस्ट यूहन्ना ईसा मसीह के गुरु थे। बाइबिल के अनेक परिच्छेदों से यह ध्वनित होता है कि यूहन्ना और यीशु अपने पिछले जन्म में क्रमशः एलाइजा और उनके शिष्य एलीशा थे। (पुराने नियम (Old Testament) में यही नाम दिये गये हैं। ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 36

पश्चिम के प्रति बाबाजी (महाअवतारी बाबा) की अभिरुचि“गुरुदेव! क्या आपको कभी बाबाजी का दर्शन हुआ है ?”गर्मियों के मौसम शान्त रात्रि का समय था। सिर पर आकाश में बड़े-बड़े तारे चमक रहे थे। मैं श्रीरामपुर के आश्रम में दूसरे तल्ले के बरामदे में श्रीयुक्तेश्वरजी के पास बैठा हुआ था।मेरे इस सीधे प्रश्न पर मुस्कराते हुए उन्होंने कहाः “हाँ, हुआ है।” और उनकी आँखें श्रद्धा एवं आदर से चमक उठीं। “अमर गुरु का तीन बार दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। प्रथम दर्शन प्रयाग के कुम्भ मेले में हुआ था।”अति प्राचीन काल से ही भारत में कुम्भ मेले ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 37

मेरा अमेरिका-गमन“अमेरिका! निश्चय ही ये लोग अमेरिकी हैं!” मेरे मन में यही विचार उठा जब मेरी अंतर्दृष्टि के सामने पाश्चात्य चेहरों की लम्बी कतार गुज़रने लगी।राँची में अपने विद्यालय के भंडार गृह में कुछ धूलि धूसरित पेटियों के पीछे मैं ध्यानमग्न बैठा था। बच्चों के बीच व्यस्तता के उन वर्षों में एकान्त स्थान मिलना बहुत कठिन था !ध्यान में वह दृश्य चलता रहा। एक विशाल जनसमूह मेरी ओर आतुर दृष्टि से देखते हुए मेरी चेतना के मंच पर अभिनेताओं की तरह मेरे सामने से गुज़र रहा था।इतने में भंडार गृह का द्वार खुल गया । सदा की तरह एक ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 38

लूथर बरबैंक एक सन्त गुलाबों के बीच“उन्नत किस्म के पौधे तैयार करने का रहस्य वैज्ञानिक ज्ञान के अलावा एक भी है; वह है प्रेम ।” लूथर बरबैंक ने ज्ञान के ये शब्द तब कहे जब मैं कैलिफोर्निया में सैंटा रोज़ा स्थित उनके बगीचे में उनके साथ टहल रहा था । मनुष्य के खाने योग्य नागफनी की एक क्यारी के पास हम रुक गये ।उन्होंने आगे कहाः “जब मैं कंटकहीन नागफनी की नस्ल तैयार करने का प्रयोग कर रहा था, तब मैं प्रायः इन पौधों के साथ बातें किया करता था, ताकि प्रेमपूर्ण स्पन्दन पैदा हो सकें । मैं उनसे ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 39

ईसा-क्षतचिह्न-धारिणी कैथोलिक संत टेरेसा नॉयमन—“भारत लौट आओ। पन्द्रह वर्षों तक मैंने धीरज के साथ तुम्हारी प्रतीक्षा की है। शीघ्र मैं शरीर त्याग कर अनंत धाम चला जाऊँगा । योगानन्द, चले आओ!” एक दिन जब मैं माऊण्ट वाशिंगटन स्थित अपने आश्रम में ध्यान कर रहा था, तब अचानक आश्चर्यजनक रूप से श्रीयुक्तेश्वरजी की आवाज़ मुझे अपने अन्तर में सुनायी दी। दस हज़ार मील की दूरी को पलक झपकते ही पार कर उनके सन्देश ने बिजली की भाँति मेरे अन्तर में प्रवेश कर लिया।पन्द्रह वर्ष! हाँ, मुझे एहसास हुआ यह सन् १९३५ है। मैंने अमेरिका में अपने गुरुदेव की शिक्षाओं का ...Read More

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एक योगी की आत्मकथा - 40

मेरा भारत लौटनाअत्यंत आनन्द के साथ मैं भारत की पवित्र हवा में फिर एक बार श्वास ले रहा था हमारा जहाज “राजपूताना” २२ अगस्त १९३५ को मुंबई के विशाल बन्दरगाह में आकर खड़ा हो गया। जहाज से उतरते ही, पहले ही दिन, आगे आने वाला वर्ष किस प्रकार मुझे अनवरत रूप से व्यस्त रखने वाला है, इसका स्वाद मुझे मिल गया । बन्दरगाह पर मित्र गण फूलमाला लिये स्वागत के लिये खड़े थे। शीघ्र ही ताजमहल होटल के मेरे कक्ष में प्रेस-संवाददाताओं और फोटोग्राफरों का ताँता लग गया।मुम्बई शहर मेरे लिये नया था। मुझे यह शहर आधुनिक उत्साहपूर्ण वातावरण ...Read More