आई-सी-यू

(33)
  • 22.9k
  • 2
  • 13k

अस्पताल के आई-सी-यू में जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती नीलिमा इस वक़्त होश में नहीं थीं किंतु उनकी आँखों में जीवन का एक-एक पल सपना बन कर दृष्टिगोचर हो रहा था। आई-सी-यू के बाहर इस समय उनके चारों बच्चे खड़े थे लेकिन हफ्तों से इंतज़ार करती आँखें अब थक चुकी थीं। इस इंतज़ार ने शायद उन्हें अब तक तोड़ दिया था। उनकी आँखें अब खुलना ही नहीं चाह रही थीं। कुछ बेहोशी और कुछ होश के आलम में उनकी आँखों में इस समय सुख और दुख का मिला जुला संगम हो रहा था। कभी परिवार में उन्हें उनका महत्त्व दिखाई देता तो अगले ही पल होता हुआ तिरस्कार भी दिखाई देने लगता। आई-सी-यू के सन्नाटे में उन्हें अपने जीवन की हर घटना एक फ़िल्म बन कर दिखाई दे रही थी। उन्हें दिख रहा था कैसे वह नई-नई शादी करके ससुराल आई थीं। कैसे सब ने मिलकर उनका गृह प्रवेश करवाया था। किस तरह परिवार में वह सब को साथ लेकर चली थीं। पूरी तरह से अपने सारे कर्तव्य निभाते हुए उनके जीवन का सफ़र जारी था। सास-ससुर, जेठ-जेठानी सब के साथ कितने मधुर सम्बंध थे।

Full Novel

1

आई-सी-यू - भाग 1

अस्पताल के आई-सी-यू में जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती नीलिमा इस वक़्त होश में नहीं थीं किंतु आँखों में जीवन का एक-एक पल सपना बन कर दृष्टिगोचर हो रहा था। आई-सी-यू के बाहर इस समय उनके चारों बच्चे खड़े थे लेकिन हफ्तों से इंतज़ार करती आँखें अब थक चुकी थीं। इस इंतज़ार ने शायद उन्हें अब तक तोड़ दिया था। उनकी आँखें अब खुलना ही नहीं चाह रही थीं। कुछ बेहोशी और कुछ होश के आलम में उनकी आँखों में इस समय सुख और दुख का मिला जुला संगम हो रहा था। कभी परिवार में उन्हें उनका ...Read More

2

आई-सी-यू - भाग 2

जब घर में सुख और शांति का वास होता है तब कहीं ना कहीं से ऐसा कोई हादसा हो है, जिससे सुख और शांति को विघ्न बाधा बाहर का रास्ता दिखा कर ख़ुद घर में प्रवेश कर जाते हैं। मालती की मौत ने उसके पति को तोड़ दिया उन्हें ऐसा सदमा लगा कि वह अपने आप को बहुत दिनों तक संभाल ना पाए। समय के काल चक्र ने उनका जीवन भी समाप्त कर दिया। धीरे-धीरे समय की रफ़्तार के साथ बच्चे बड़े होने लगे। नीलिमा के ऊपर बूढ़े सास ससुर की जवाबदारी तो थी ही साथ में बच्चों के ...Read More

3

आई-सी-यू - भाग 3

नीलिमा और सौरभ अब दो ही लोग घर में बचे थे। जब तक सास-ससुर ज़िंदा थे हालातों से जूझती ने सच्चे मन से उनकी ख़ूब सेवा की लेकिन ढलती उम्र के कारण वे दोनों भी उनका साथ छोड़ कर चले गए। अपनी व्यस्ततम ज़िन्दगी से समय निकालकर बच्चे कभी-कभी मां-बाप को याद कर लिया करते थे, जिसे केवल औपचारिकता ही कहा जा सकता है। विवाह के कुछ वर्ष बाद पराग की पत्नी प्रेगनेंट हो गई। तब एक दिन पराग का फ़ोन आया, “हैलो मम्मा” “हैलो पराग, कैसे हो बेटा?” “माँ सब ठीक है, आपकी बहू प्रेगनेंट है। आप लोगों ...Read More

4

आई-सी-यू - भाग 4

तीनों बेटों के बच्चों को भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझ कर जितना बन सका उतना किया। बड़ा ही महत्त्व उनका, जब वह यह जिम्मेदारी उठा रही थीं। सब बच्चे तब उन्हें अपनी ओर खींचना चाहते थे लेकिन यह सब करते-करते उनकी उम्र भी बुढ़ापे की कुछ सीढ़ियाँ चढ़ चुकी थीं। थक गई थीं अब वह, उनकी हड्डियाँ कमजोर पड़ चुकी थीं। जैसे ही शरीर ने काम करना कम कर दिया, महत्त्व भी अपने आप ही कम होता चला गया। ना कहीं घूम फिर पाईं, ना जीवन का एक भी दिन ख़ुद के लिए जी ही पाईं। एक दिन चिराग ...Read More

5

आई-सी-यू - भाग 5

अपने पति की बात सुनकर नीलिमा ने कहा, “सौरभ ये क्या कह रहे हो, आप शांत हो जाओ।” “नहीं मैं तुम्हारा तिरस्कार होता देख नहीं सकता। सच पूछो तो यह तिरस्कार हमारा नहीं है, यह तिरस्कार है उस बुढ़ापे का जो हर इंसान को एक ना एक दिन अपने शिकंजे में ले ही लेता है परंतु पता नहीं फिर क्यों लोग …?” बीच में ही सौरभ को टोकते हुए नीलिमा ने कहा, “तुम शांत हो जाओ सौरभ, ऐसा नहीं है कि हमारे बच्चे हमें प्यार नहीं करते। परिस्थितियों और हालातों ने उन्हें मजबूर कर दिया है। तुम बच्चों को ...Read More

6

आई-सी-यू - भाग 6

कमरे में पसरे सन्नाटे को चीरते हुए पराग ने कहा, “सब की बीवी नौकरी करती हैं, मेरी भी करती इसलिए नौकरी का बहाना कोई मत करना प्लीज और हाँ शुभांगी तुम इस भ्रम में मत रहना कि लड़की हो, तुम्हारी शादी हो चुकी है तो तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। तुम प्रोपर्टी में बराबरी से हिस्सा लेने आईं थी ना, क्योंकि वह तुम्हारा हक़ था लेकिन अब यह कर्तव्य है इसे भी निभाना होगा। यह बहाना मत बनाना कि सास-ससुर तुम्हारे साथ हैं। हम जानते हैं तुम सबसे अलग रहती हो।” “मैं कहाँ मना कर रही हूँ भैया, तुम ...Read More

7

आई-सी-यू - भाग 7 - अंतिम भाग

अंतिम घड़ी में शायद नीलिमा सोच रही थीं कि काश सौरभ की उनके साथ घूमने जाने की इच्छा उन्होंने कर दी होती। अपने साथ उन्हें भी थोड़ी दुनिया देख लेने दी होती। सौरभ भी खुद के लिए कहाँ जिए वह भी तो हमेशा सब के लिए करते ही रहे और करते-करते ही एक दिन बिना जिए ही मर गए। गलती तो उनकी ही है जो उन्होंने सौरभ की बात नहीं मानी वरना दोनों ने नदियों और पर्वतों की हरी-भरी वादियों की मस्त हवा का सुख उठा लिया होता। नीलिमा के प्राण निकलने को तैयार ही नहीं थे। आँखें बंद ...Read More