एक ऐसी प्रेमकहानी जो हमेशा के लिए अधूरी रह गई,एक शक ने दोनों को हमेशा के लिए एकदूसरे से जुदा कर दिया... "सौरभ कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हमें शहर जाना है,तुम्हारी माँ को जेल से लेने,कल उनकी उम्र कैद की सजा खत्म हो रही है,बृजनाथ जी बोले.... "मामा जी!मैनें आपसे पहले ही कहा था कि मैं किसी को लेने शहर नहीं जाऊँगा"सौरभ बोला... "लेकिन क्यों"?बृजनाथ जी ने पूछा... "वो मेरे पिता की हत्यारिन हैं,मैं उन्हें कभी भी माँफ नहीं कर सकता"सौरभ बोला... "तुम दुर्गा जीजी को गलत समझ रहे हो बेटा!",बृजनाथ जी बोले.... "मैं बिल्कुल सही समझ रहा हूँ, मैनें अपनी आँखों के सामने उन्हें पिता जी को हँसिए से मारते हुए देखा था",सौरभ बोला... "वो तुम्हारी आँखों का धोखा था"बृजनाथ जी बोले... "मैनें किसी और को ये सब कहते हुए सुना होता तो अलग बात थी,लेकिन उस रात मैनें वो सब अपनी आँखों के सामने घटते देखा था",माना कि मैं उस समय सात बरस का था लेकिन इतना छोटा भी नहीं था कि कुछ समझ ना पाता",सौरभ बोला... "तुम्हारी माँ ने तुम्हारे पिता का कत्ल किया,ये एकदम सच है लेकिन किन हालातों में किया वो तुम्हें नहीं पता"बृजनाथ जी बोले....
Full Novel
ओ...बेदर्दया--भाग(१)
एक ऐसी प्रेमकहानी जो हमेशा के लिए अधूरी रह गई,एक शक ने दोनों को हमेशा के लिए एकदूसरे से कर दिया... "सौरभ कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हमें शहर जाना है,तुम्हारी माँ को जेल से लेने,कल उनकी उम्र कैद की सजा खत्म हो रही है,बृजनाथ जी बोले.... "मामा जी!मैनें आपसे पहले ही कहा था कि मैं किसी को लेने शहर नहीं जाऊँगा"सौरभ बोला... "लेकिन क्यों"?बृजनाथ जी ने पूछा... "वो मेरे पिता की हत्यारिन हैं,मैं उन्हें कभी भी माँफ नहीं कर सकता"सौरभ बोला... "तुम दुर्गा जीजी को गलत समझ रहे हो बेटा!",बृजनाथ जी बोले.... "मैं बिल्कुल सही समझ रहा ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(२)
शास्त्री जी जैसे ही सौरीगृह में पहुँचें तो उन्हें देखकर शैलजा खुशी से रो पड़ी और उनसे बोली... "लीजिए!आपका आपका इन्तजार कर रहा था" शास्त्री जी ने शैलजा से कुछ नहीं कहा,बस एक उत्साह भरी दृष्टि उस पर डाली और वें नवजात शिशु के पास चारपाई के नीचें बैठ गए और लालटेन की मद्धम रौशनी में उन्होंने कपड़े में लिपटे हुए शिशु को निहारा और हौले से उसके माथे को चूमा फिर शैलजा से बोलें.... "मैं बाहर जा रहा हूँ, इतनी खुशी मुझसे बरदाश्त ना होगी" और ये कहते कहते उनकी आँखें भर आईं,जाते जाते शैलजा से कहते गए ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(३)
शैलजा का अन्तर्मन तड़प रहा था कि उसने इतनी बड़ी बात अपने पति से छुपाई,उसका वश चलता वो अभी सबकुछ बता देती,लेकिन बच्चे के भविष्य का सवाल था,ऐसा ना हो कि उन्हें सब पता चल जाएं और उनका मन बच्चे से कट जाए,वो बाप-बेटे के बीच अलगाव का कारण नहीं बनना चाहती थी,इसलिए वो भावनाओं में ना बही और उसने उस वक्त चुप रहना ही बेहतर समझा.... दिन गुजरने लगें और अब अभ्युदय छः महीने का हो चला था,छः महीने का होने पर उसका अन्नप्राशन हुआ,शास्त्री जी ने सुनार से कहकर खासतौर पर अभ्युदय के लिए चाँदी के बरतन ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(४)
जब शास्त्री जी घर लौटे तो शैलजा ने उन्हें सब बता दिया,इस बात से शास्त्री जी बहुत नाराज हुए शैलजा से बोलें... "मैं अभी नालायक के घर जाता हूँ उसकी ख़बर लेने" तब शैलजा बोली... "सुनिए जी!बात मत बढ़ाइए,आपके उसके बीच कहा सुनी हुई और उसने आपको अशब्द बोल दिए तो मैं सह नहीं पाऊँगी,वैसे भी सारा गाँव जानता है कि उसका कैसे कैसे लोंगो के साथ उठना बैठना,चौबीसों घण्टों गाँजा पीता रहता है,गलती मेरी थी जो आपके घर पर ना होने पर मैनें उसके लिए दरवाजा खोल दिया,मुझे क्या पता था कि वो नीच इस हद तक गुजर ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(५)
शैलजा भीतर से बहुत डरी हुई थी,क्योंकि वो लल्लन की हरकतों से पूरी तरह से वाकिफ थी,लल्लन का मेल नेताओं और गुण्डों के साथ था,जबकि उसका पति तो एक सीधा सादा समाज के अनुरूप चलने वाला इन्सान था,उसके पति का फालतू लोगों और फालतू के व्यसनों से दूर दूर तक का नाता नहीं था,लल्लन और उसका पति एक ही परिवार से ताल्लुक रखते थे,लेकिन दोनों भाइयों के व्यवहार में जमीन और आसमान का अन्तर था,शैलजा यही सब सोच रही थी कि तब तक शास्त्री जी स्नानघर से हाथ मुँह धोकर निकल आए और शैलजा से बोलें.... "एक गिला ठण्डा ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(६)
और अभ्युदय ने शास्त्री जी की बात नहीं मानी और उसने काँलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया और बात का फायदा लल्लन ने उठाया और वो एक दिन अभ्युदय को विधायक जी के पास ले गया,विधायक जी ने देखा कि नया लड़का है तो उन्होंने सोचा क्यों ना इसे काँलेज के चुनाव में उम्मीदवार बनाकर पेश किया जाए,अगर जीत गया तो फिर काँलेज में भी हमारा जलवा हो जाएगा और यही सब सोचकर उन्होंने अपनी बात अभ्युदय के सामने रखी लेकिन अभ्युदय इस बात के लिए तैयार ना हुआ, लेकिन लल्लन ने विधायक जी को आश्वासन दिया कि ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(७)
जब सुबह हुई तो अभ्युदय जागते ही आँगन में टहलने लगा क्योंकि उसके सिर में ज्यादा पी लेने से हो रहा था,तब शास्त्री जी भी आँगन में आए और उन्होंने अभ्युदय की क्लास लेनी शुरू कर दी,वें उससे बोले.... "बेटा!बहुत नाम रौशन कर रहे हो खानदान,क्या बात है?,हम बुड्ढे-बुढ़िया को समाज में रहने लायक छोड़ोगे या नहीं" शास्त्री जी की बात पर अभ्युदय कुछ ना बोला,बस यूँ ही मौन खड़ा रहा तो शास्त्री जी और ज्यादा बिफर पड़े और फिर बोलें... "कुछ बोलोगे भी साहबजादे!या मुँह में दही जमा रखा है" "मुझसे गलती हो गई बाबूजी!आइन्दा से ऐसा नहीं ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(८)
फिर शैलजा सुकन्या बहू के साथ बाजार जाकर कुछ साड़ियाँ और श्रृंगार का सामान दिलवा लाई और उस रात ने सुकन्या को अपने घर ही रोक लिया,दूसरे दिन ही उसे जाने दिया,अब लल्लन की भी गृहस्थी बस गई थी इसलिए लल्लन की शराब पीने की आदत छूटती जा रही थी,सुकन्या बहुत ही अच्छी पत्नी साबित हुई उसने आते ही लल्लन को और गृहस्थी को सम्भाल लिया,सुकन्या अपनी जेठानी शैलजा का भी बहुत मान करती थी लेकिन सुकन्या का बेटा शक्तिमोहन वैसा ना सोचता था जैसा कि सुकन्या शैलजा के परिवार के बारे में सोचती थी,शक्तिमोहन जब भी शास्त्री जी ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(९)
सभी अभ्युदय का इन्तज़ार कर करके थक गए लेकिन अभ्युदय घर ना लौटा,तब लड़की के पिता बोले... "तो शास्त्री हम चलते हैं,मुझे नहीं लगता कि अब आपका बेटा लौटेगा,शायद उसका ब्याह करने का इरादा नहीं है" इस पर शास्त्री जी बोलें.... "मुझे माँफ कर दीजिए तिवारी जी! मैं अपने बेटे की हरकत पर बहुत शर्मिन्दा हूँ" तब तिवारी जी बोले... "ऐसा मत कहिए शास्त्री जी! अब आपके बेटे के कारण आपको शर्मिन्दा होने की जरूरत नहीं है,आप या मैं हम दोनों अब किसी से ब्याह के लिए जबर्दस्ती तो कर नहीं सकते,मैं ने सोचा था कि इतना अच्छा घर ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(११)
भोर हुई तो शास्त्री जी अभ्युदय के कमरें में पहुँचे,उन्होंने कमरें की लाइट जलाई और देखा कि अभ्युदय अभी सो रहा था,वें धीरे से उसके सिराहने बैठ गए,पहले तो उन्होंने उसके माथे को चूमा फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलें.... "मुझे माँफ कर दे मेरे बच्चे,मुझे कल ऐसा नहीं बोलना चाहिए था" तभी शैलजा भी अभ्युदय के कमरे में आई और शास्त्री जी से बोली... "आपकी दी हुई परवरिश कभी गलत नहीं हो सकती,जो उसने किया था वही ठीक था" "तुम शायद सही कह रही हो",शास्त्री जी बोले... दोनों की आवाज़ सुनकर शक्ति जाग उठा और बोला... ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(१०)
शक्तिमोहन की बात सुनकर शास्त्री जी बोलें.... "इसीलिए....बस इसीलिए मैं नहीं चाहता था कि ये राजनीति में जाए,राजनीति ऐसी है जहाँ बैठे बिठाए दुश्मन बन जाते हैं,अब देखो इसकी क्या हालत कर दी है उस लड़के ने,ये तो उस लड़के से उलझकर,हाथ-पाँव तुड़वाकर घर आ गया और अब हमें बूढ़े माँ बाप को भुगतना पड़ेगा" " आप जरा शान्त हो जाइए ना!उसकी हालत पर कुछ तो तरस खाइए",शैलजा बोली... "इसकी इस हालत का ये खुद ही जिम्मेदार है,हजार बार समझाया कि किसी के फटे में टाँग मत अड़ाया करो ,लेकिन ये हम लोगों की सुनता कहाँ है",शास्त्री जी गुस्से ...Read More
ओ...बेदर्दया--भाग(१२)
शक्तिमोहन अपने लफंगे दोस्तों के साथ ठेके पर दारू पीता रहा और दोपहर तक घर ना पहुँचा,वहाँ शैलजा दोपहर खाने पर उसका इन्तजार करती रही,शैलजा ने सोचा कि शक्ति शाम तक लौट आएगा इसलिए उसने शास्त्री जी और अभ्युदय को खाना खिलाकर खुद भी खा लिया,फिर शाम होने को आई लेकिन शक्तिमोहन घर ना लौटा,आधी रात गए वो शराब के नशे में धुत घर लौटा,उसकी हालत देखकर शैलजा और शास्त्री जी परेशान हो उठे,शक्ति ऐसी हालत में भी नहीं था कि उससे बात की जा सके,वो लड़खड़ाता हुआ अपने कमरें जाकर बिस्तर पर लेट गया,इसलिए उस रात अभ्युदय के ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(१३)
दुर्गा और शक्ति की शादी की तैयारियांँ जोरों पर चलने लगीं,शक्ति बहुत खुश था इस शादी से क्योंकि दुर्गा पहली ही नजर में भा गई थी,दोनों कभी कभी किसी मंदिर या तीज-त्यौहार पर मिल भी लेते थे,दुर्गा को भी शक्ति पसंद था,शक्ति देखने में अभ्युदय से भी ज्यादा खूबसूरत था क्योंकि शक्ति की माँ सुकन्या भी बहुत सुन्दर थी और शक्ति के नैन-नक्श बिलकुल अपनी माँ सुकन्या जैसे थे,भूरी आँखें और गोरा रंग था उसका,बस वो थोड़ा स्वाभाव का अच्छा नहीं था और हमेशा शास्त्री जी के परिवार का बुरा ही चाहता था,लेकिन ये बात वो किसी को महसूस ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(१४)
शक्ति और दुर्गा दोनों का आपस में बहुत प्रेम था और उनका प्रेम देखकर शैलजा को बहुत अच्छा लगता कभी कभी वो ये सोचा करती थी कि काश अभ्युदय भी ब्याह कर ले और वो भी अपनी पत्नी के संग ऐसे ही खुशी खुशी जिन्दगी बिताएं,लेकिन शैलजा के लाख कहने पर भी अभ्युदय ब्याह के लिए राजी ना होता और शैलजा को ये बात कहने पर हमेशा निराश होना पड़ता.... ऐसे ही दिन बीत रहे थे और पता चला कि दुर्गा उम्मीद से है,ये खुशखबरी पाकर पूरा परिवार खुशी से उछल पड़ा और फिर कुछ महीने बाद दुर्गा ने ...Read More
ओ..बेदर्दया--भाग(१५)(अन्तिम भाग)
पारूल शास्त्री जी और शैलजा को पसंद आ गई थी इसलिए शास्त्री जी विधायक जी से बोलें.... "अब सगाई शादी में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए,लड़की अपने घर को छोड़ चुकी है और जितनी जल्दी बहू बनकर वो हमारे घर आ जाएं तो उतना ही अच्छा रहेगा.." तब विधायक जी बोलें... "जी!बिल्कुल सही,मैं भी यही चाहता हूँ,लड़की अपने परिवार के विरूद्ध चली गई ये उसने ठीक नहीं किया लेकिन दिल से मजबूर इन्सान और कर भी क्या सकता है उसे अभ्युदय पसंद आ गया था तो बेचारी क्या करती"? "अब ये सब बातें छोड़िए,अब तो वो हमारे घर की ...Read More