अपना आकाश

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उपन्यास समाज का यथार्थ बिम्ब है विविधता से भरा एवं चुनौतीपूर्ण । उपन्यास लिखना इसीलिए समाज को विश्लेषित करना है। 'कंचनमृग', 'शाकुनपाँखी', ‘कोमल की डायरी' एवं 'मनस्वी' के पश्चात् 'अपना आकाश' मेरा पाँचवाँ उपन्यास है। कथा साहित्य ने एक लम्बी यात्रा तय की है। यह यात्रा विविधतापूर्ण एवं जटिल है। उपन्यासों ने मन की गहन गुत्थियों के साथ समाज के अन्तर्द्वन्द्रों को भी गहराई से उजागर किया है। उत्तर प्रदेश के मध्य एवं पूर्वीक्षेत्र में बसाव छिटके हुए हैं। एक ही ग्राम पंचायत में अनेक पुरवे होते हैं। यद्यपि कुछ बड़े गाँव भी हैं पर उनकी संख्या कम है। गाँवों की दशा एवं दिशा में काफी बदलाव हुआ है। आबादी बढ़ी, प्रति व्यक्ति भूमि का क्षेत्रफल घटा। कभी-कभी पूरे पुरवे में सभी के पास प्रति घर एक-आध एकड़ ही खेत होते हैं। कुछ घरों के पास केवल एक दो बिस्वा ही । गाँवों और शहरों की सुविधाओं में काफी अन्तर दिखता है खासकर बिजली उपलब्धता में। इस अन्तर ने भी शहरों की आबादी को बढ़ाने में मदद की है। गाँव का विकास कैसे हो, यह एक बड़ा प्रश्न है। खेती के साथ अन्य सहयोगी धन्धों का जाल नहीं बन पाया। यद्यपि धन्धे की तलाश में बहुतों को घर छोड़ना पड़ता है पर इन पुरवों के बच्चों को अकुशल श्रम के रूप में भाग कर जीविका तलाश करनी पड़ती है। गाँवों के लिए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना चलाई गई पर उसकी कुछ कमियाँ अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई ।

Full Novel

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अपना आकाश - 1

'क' से कथा ?उपन्यास समाज का यथार्थ बिम्ब है विविधता से भरा एवं चुनौतीपूर्ण । उपन्यास लिखना इसीलिए समाज विश्लेषित करना है। 'कंचनमृग', 'शाकुनपाँखी', ‘कोमल की डायरी' एवं 'मनस्वी' के पश्चात् 'अपना आकाश' मेरा पाँचवाँ उपन्यास है। कथा साहित्य ने एक लम्बी यात्रा तय की है। यह यात्रा विविधतापूर्ण एवं जटिल है। उपन्यासों ने मन की गहन गुत्थियों के साथ समाज के अन्तर्द्वन्द्रों को भी गहराई से उजागर किया है। उत्तर प्रदेश के मध्य एवं पूर्वीक्षेत्र में बसाव छिटके हुए हैं। एक ही ग्राम पंचायत में अनेक पुरवे होते हैं। यद्यपि कुछ बड़े गाँव भी हैं पर उनकी संख्या ...Read More

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अपना आकाश - 2 - सपनों की खेती

अनुच्छेद-२ ‌ ‌ सपनों की खेतीवीरेश ने लालटेन जलाई। तख्ते पर बैठ गणित के प्रश्न हल करने लगा। तन्नी बना रही थी। तवे पर ही रोटी फुलाने की कला में वह प्रवीण हो चुकी है। लकड़ी जलाकर खाना बनाना भी एक कला है। एक शीशी को ढिबरी बनाकर उसी के उजाले में तन्नी रोटी सेंकती रही। जुलाई का महीना, पूरा शरीर पसीने से तर। रोटी बना चुकी तो आलू उबालने के लिए रख बाहर आ गई। हाथ का पंखा झलकर पसीना सुखाने लगी। माँ भी बाहर ही बैठी थी। लड़कियों को भोजन बनाना माएँ सिखाती हैं। तन्नी का अभी ...Read More

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अपना आकाश - 3 - तुम लोगों का नाम तो न होगा

अनुच्छेद- ३ तुम लोगों का नाम तो न होगाआज डिग्री कालेज में प्रवेश सूची को सूचना पट्ट पर लगा गया। बी.एस-सी. गणित में ६५.३% से ऊपर वालों का ही नाम देखकर द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण छात्र / छात्राएँ निराश हुए। तन्नी और तरन्ती भी सूची देखने के लिए पहुँचीं। सूची को जगह जगह लोगों ने फाड़ दिया था। सूची देखकर तन्नी हताश हो गई। शायद प्रवेश न हो पाए वह सोचने लगी। आस-पास ऐसे बच्चे अधिक थे जिनका नाम सूची में नहीं था । पिन्टू भी कुछ बच्चों के साथ बात कर रहा था। 'प्रवेश देना पड़ेगा। कैसे नहीं ...Read More

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अपना आकाश - 4 - तू कितनी भोली है? 

अनुच्छेद-४ तू कितनी भोली है? सायंकाल मंगल खाना खाकर बैठे। भँवरी से बताया कि बोरिंग और पंपसेट की व्यवस्था से हो जाएगी। अलग से कुछ नहीं देना पड़ेगा। मड़हा की थूनी से टंगी लालटेन जल रही थी। 'बोरिंग और मशीन का खर्चा तो ज्यादा होगा ?' भँवरी जिज्ञासु की तरह पूछ बैठी । 'बहुत ज्यादा नहीं, कुल बाईस हजार लगेगा।' 'इतना तुमको ज्यादा नहीं लगता वीरू के बाबू?" भँवरी को आश्चर्य हो रहा था। एक साड़ी का डेढ़ सौ रूपया दाम तुम्हें ज्यादा लगता है और यह बाईस हजार. ।' 'पर इससे हमारे पास सिंचाई का साधन हो जायगा। ...Read More

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अपना आकाश - 5 - आपका लक्ष्य?

अनुच्छेद-5 आपका लक्ष्य? दशहरे के एक सप्ताह पूर्व कक्षाएँ प्रारम्भ हो गई। बी.एस-सी. प्रथम वर्ष की अन्तिम प्रवेश सूची इण्टरमीडिएट में ६४.७ प्रतिशत से ऊपर जिनके अंक थे केवल उन्हीं का प्रवेश हो पाया। वे छात्र जो छात्रसंघ का चुनाव लड़ना चाहते थे, दौड़-धूप कर छात्र-छात्राओं को आश्वस्त करते रहे पर कोई दबाव नहीं बना सके । पिन्टू और उनके साथी क्रमिक अनशन पर बैठे । इसी बीच शासन ने लिंगदोह समिति की संस्तुतियों को आधार बनाकर छात्रसंघ गठन के नए नियम बना दिए। इन नियमों के आधार पर पिन्टू चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्होंने कहना प्रारम्भ किया कि ...Read More

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अपना आकाश - 6 - 'चाहिए' और 'है' में अंतर है

अनुच्छेद-६ 'चाहिए' और 'है' में अंतर है तन्नी ओर तरन्ती दोनों का प्रवेश बी.एस-सी. प्रथम वर्ष में नहीं हो दोनों के परिवार दुखी हुए। तरन्ती की शादी की चर्चा जोर पकड़ रही थी। उसके माता-पिता शादी को अधिक ज़रूरी समझ, उसी को तय करने के लिए दौड़ने लगे। पढ़ाई छूट रही थी पर शादी हो जाने की उम्मीद बँध रही थी। तरन्ती भी भोजन बनाने में माँ की सहायता करती। उसे एक कुशल गृहिणी के गुर सिखाए जा रहे थे। वह भी अब एक गृहिणी बनने के सपने में डूबने लगी। सपनों का राजकुमार उसके मन मस्तिष्क में छाने ...Read More

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अपना आकाश - 7 - खेतिया कैसे सँभरी ?

अनुच्छेद-७ खेतिया कैसे सँभरी ? कुवार की रात का अन्तिम प्रहर। मंगल उठे। देखा रात खिसक गई है। उषा आभा क्षितिज पर दिख रही है । हल्की सिहरन । उन्होंने अंगोछे को सिर में बाँधा। भैंस भी जग गई। उसकी आवाज़ सुन वे दुहने के लिए तैयार हुए। भँवरी की भी नींद खुली। वह भी उठी। मुँह हाथ धोया, दूध दुहने के लिए बाल्टी साफ कर रख दिया। दही मथने बैठ गई। अभी तन्नी और वीरू सो रहे थे। भँवरी मथानी को धीरे-धीरे चलाती रही। बच्चे देर तक पढ़ते हैं। उनकी नींद न टूट जाय। मंगल ने भैंस को ...Read More

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अपना आकाश - 8 - सीखो प्रताप सीखो

अनुच्छेद- 8 सीखो प्रताप सीखो तन्नी ने स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में प्रवेश लिया। एक दिन वह तरन्ती को लेकर गई। प्रयोगशाला का नाम भर था न कोई सामान, न कोई प्रयोग कराने वाला। तन्नी ने सोचा प्राचार्य जी से मिलकर महाविद्यालय की कार्य पद्धति के बारे में जाना जाय उसने एक बाबूनुमा व्यक्ति से पूछा, 'प्राचार्य जी कब मिलेंगे?' 'क्या काम है?' उसने पूछा । 'पढाई-लिखाई परीक्षा के बारे में बात करती।' 'प्रवेश ले लिया है न?‘हाॅं’,'तो सारी शंकाओ का समाधान यहाँ प्रबन्धक जी करते हैं। वह ऊपर वाले कमरे में बैठे हैं। वे नहीं होते हैं तो प्रताप ...Read More

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अपना आकाश - 9 - ई सब कब तक चली?

अनुच्छेद- 9 ई सब कब तक चली?हटीपुरवा में इक्यावन घर हैं। ग्राम पंचायत में बारह पुरवे, दो बड़े शेष । यह अवध का गाँव ऊपरी सरयूपार का हिस्सा। भाभर-तराई को छोड़कर हर जगह नल गाड़कर पानी निकालना सरल। दस से बीस हाथ नीचे पानी । चाहे कुआँ खोदकर निकालो या नल गाड़कर। सिंचाई के लिए बोरिंग भी कठिन नहीं। ऊपरी परत के पानी की शुद्धता पर सवाल जरूर उठ रहे हैं पर पानी की सहज उपलब्धता से कोई कहीं भी बस सकता है। एक मड़ई एक नल से गृहस्थी शुरू हो सकती है। इसीलिए आवासीय प्रारूप छोटे-छोटे पुरवों का ...Read More

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अपना आकाश - 10 - कुछ करना तो ईमानदारी से

अनुच्छेद- 10 कुछ करना तो ईमानदारी सेवत्सला अपनी माँ अंजलीधर को साथ ले आईं। उन्हें दमे की शिकायत है। कभी दमा बढ़ जाता और खाँसते खाँसते उनका दम निकलने लगता । ऐसा पूरी जिन्दगी में तीन बार ही हुआ है। पर जब दमा उभरा, उन्हें दो-तीन सप्ताह दवा करनी पड़ी। आज रविवार हैं। वत्सला ने दो कप चाय बनाया। एक कप माँ को देकर दूसरा कप हाथ में ले वे सोफे पर बैठ गईं। वे स्कूल चली जातीं तो माँ अकेली हो जाती। अंजलीधर बराबर कहतीं, बेटे तुम चिन्ता न करो, हम रह लेंगे। दिन में कोई दिक्कत न ...Read More

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अपना आकाश - 11 - सपने अँखुआए

अनुच्छेद- 11 सपने अँखुआएतन्नी ने कोचिंग में जाना शुरू किया। वत्सलाधर का घर ही उसका अड्डा था। माँ जी सेवा करती, बतियाती, पढ़ती और घर लौटती । भँवरी को भी लगा कि तन्नी गाँव का नाम करेगी। गाँव की किसी भी लड़की ने बी. एस-सी नहीं किया है। तन्नी नया इतिहास बनाएगी। मंगल को सरकारी गोदाम में फिर खाद नहीं मिल सकी। उन्होंने गुप्ता की दूकान से ही खाद लिया। दाम अधिक देना पड़ा पर मिल तो गई। उन्होंने लहसुन बोया । सुतिन बाबू भी बहुत दौड़े। मंगल को भी दौड़ाया और बोरिंग हुई। मंगल ने कर्जे की फाइल ...Read More

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अपना आकाश - 12- वत्सला के घर तन्नी

अनुच्छेद- 12 वत्सला के घर तन्नीवत्सला का घर तन्नी का भी बन गया। सुबह वह गाँव से निकल आती। में पढ़ती, ग्यारह बजे लौटती । वत्सला बहिन जी के यहाँ पहुँचती। अंजली माँ का प्रश्न होता, 'क्या पढ़ा ?" तन्नी विस्तार से पढ़े हुए अंश का विवरण देती। माँ कुछ संतुष्ट होती। अदरख डालकर चाय बनाती। माँ को देती, स्वयं भी पीती। कडुवा तेल लेकर माँ जी के शरीर पर मालिश करती । उन्हें नहलाने में मदद करती। रोटियाँ सेंक कर माँ के लिए थाली लगाती । 'अपने लिए भी लाओ।' माँ कहती। तन्नी अपने लिए भी एक थाली ...Read More

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अपना आकाश - 13 - बेटियाँ सब जानती हैं

अनुच्छेद- 13 बेटियाँ सब जानती हैंतरन्ती की माई कुछ परेशान सी आज सबेरे ही भँवरी के घर आई । ने गले मिलकर स्वागत किया। तन्नी प्रणाम कर छाछ में जीरा नमक डालकर ले आई। फूलमती धीरे-धीरे पीती और बतियाती रही। 'अब नए लड़के नई नई बात करते हैं। देन लेन सब तय हो गया तो दामाद जी ने कहा कि लड़की देखेंगे । तरन्ती के बापू तो तैयार नहीं हो रहे थे लेकिन मैंने समझाया, नया युग है लड़का अगर देखना ही चाहता है तो लड़की को दिखा दो। देखे रहेगा तो यह कहने का मौका तो नहीं रहेगा ...Read More

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अपना आकाश - 14 - हम तो डरे हुए थे

अनुच्छेद- 14 हम तो डरे हुए थेतरन्ती की माँ आज तड़के ही उठ गई। राधा को जगाया। जल्दी से धोकर तैयारी में जुट गई। आलू-परवल की सब्जी उन्होंने स्वयं बनाई। राधा ने आटा गूंधा, पूड़ियाँ बेलने लगी। फूलमती छानती रही। आज उन्होंने दही मथा नहीं है। जमा हुआ दही उन्होंने एक बर्तन में रखा। पूड़ी सब्जी और दही को सहेज कर उठीं तो लेन देन के बारे में सोचने लगीं। माई बाप और बेटा आ रहा है देखने। माई के लिए साड़ी, बाप बेटे के लिए कपड़ा कुछ नकदी सब कुछ सहेजते नौ बज गया। तरन्ती के पिता घर ...Read More

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अपना आकाश - 15 - घर स्नेह से चलता है

अनुच्छेद- 15 घर स्नेह से चलता हैअंजलीधर पूछती जातीं और तन्नी हँसती हुई बताती जाती। अंजली को लग रहा कि वे अपनी लड़की की शादी कर रही हैं। 'लड़का कितना पढ़ा हैं?' 'इण्टर तक माँ जी।' 'ठीक है, कोई हर्ज नहीं। दोनों इण्टर तक पढ़े हैं। लड़का चार पैसा कमा रहा है।' 'हाँ, माँ जी बहुत सरल लगे वे लोग । लड़का भी अच्छा है ।''लड़के-लड़की और परिवार का समायोजन बढ़िया होना चाहिए। रुपया पैसा कमबेश हो सकता है। यदि परिवार में स्नेह.......एका है तो बड़ी बात है।' 'हाँ, माँ जी।' तन्नी मालिश करती रही। 'अच्छा घर, वर मुश्किल ...Read More

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अपना आकाश - 16 - मंगल की छलांग

अनुच्छेद- 16 मंगल की छलांगमंगल अपने खेत की अन्तिम सिंचाई में लगे थे। आज उन्होंने तन्नी और वीरू को बुलाया। दोनों की परीक्षाएँ निकट हैं अधिक से अधिक समय वे पढ़ाई पर दें। कोहा भरते समय वे फसल को देखते और खुश होते । रामदयाल भी बाजार से लौटते समय वहीं आ गए। एक क्षण रुके। राम जुहार के बाद बोले, 'इस बार तो तुम्हारे पास गेहूँ एक ही बीघा हैं।' 'पर लहसुन तो है, सब निबटा देगा।''लहसुन तो जिलाजीत है भाई।' 'बिना किसी विघ्न बाधा के आप सब की कृपा से सामकूल निभ जाय ।''अब यह अन्तिम पानी ...Read More

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अपना आकाश - 17 - नकेल हमारे हाथ में

अनुच्छेद- 17 नकेल हमारे हाथ मेंसप्ताह भर बाद रविवार का दिन। मंगल ने भंवरी से कहा, 'जरा भाव-ताव भी कर लूँ। वीरू की आज छुट्टी है। खेत पर ही पढ़ाई करता रहेगा। तू भी बीच-बीच में देखती रहना।' 'होशियारी से काम करना । तनिक सी चूक बहुत दुख देती है। हिसाब-किताब की बारीकी समझ कर कदम उठाना।' भँवरी ने सचेत किया।जल्दी से रोटियाँ सेंकी।रोटी दही खाकर मंगल तैयार हुए। तन्नी वत्सला बहिन जी के यहाँ गई थी। वीरू भी दही रोटी खाकर बस्ता ले खेत पर चला गया। मड़ई में चारपाई पर बैठकर पढ़ता और लहसुन का खेत भी ...Read More

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अपना आकाश - 18 - बच्चों का जोड़ घटाव

अनुच्छेद-18 बच्चों का जोड़ घटाव मंगल लहसुन की खुदाई के लिए योजना बनाने लगे। खेत की मिट्टी सख्त न उसके पहले ही लहसुन खोद लिया जाय। जो बच्चे रात में खेत पर रखवाली करते थे, उन सब ने तय किया कि युवाओं का दल बनाकर कार्य किया जाय ही, पुरवे के सभी घरों को बता दिया जाय कि खुदाई कराकर वे अपने घर के लिए भी लहसुन प्राप्त कर सकते हैं। स्त्री-पुरुष जो समय दे सकते थे, सभी ने खुदाई को अभियान का रूप दे दिया। फलतः चार दिन में ही खुदाई हो गई। गेहूँ की कटाई- दवाई भी ...Read More

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अपना आकाश - 19 - फुलौरी बना रही हूँ

अनुच्छेद- 19 फुलौरी बना रही हूँआज नया लहसुन हजार रुपये कुन्तल बिका है। नागेश के मुनीम ने मंगल को । । सुनते ही मंगल को झटका लगा। हजार रुपये......कुन्तल । वे गिरते गिरते बचे। 'यह भी कोई भाव है', उनके मुख से निकला । 'भाव हम लोग तो बनाते नहीं, भैया जी । भाव तो भाव है। कभी ऊपर चढ़ता है कभी नीचे जाता है। कभी आसमान छूता है तो कभी पाताल में बैठ जाता है । भाव का यही तो मजा है। कुछ भी निश्चित नहीं।' मुनीम जी बताते रहे । 'किसी की गाढ़ी कमाई होती है मुनीम ...Read More

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अपना आकाश - 20 - निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे?

अनुच्छेद- 20 निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे? तन्नी की परीक्षा का पहला दिन। भौतिकी प्रथम प्रश्न पत्र के आदमियों ने आकर पूछा, 'आपने रुपये नहीं जमा कराए। अच्छे अंक की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं हो सकता है उत्तीर्ण होने में भी बाधा आए।' 'दस दिन बाद रसायन का प्रश्न पत्र है । उस दिन दे दूँगी।' तन्नी के मुख से कैसे निकल गया यह वह स्वयं न जान पाई। बापू पैसा पाते ही पाँच हजार दे देंगे। इतना वह अनुभव करती है। किसी काम के लिए उन्होंने मना नहीं किया, चाहे गेहूँ बेचकर ही देना पड़ा हो। ...Read More

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अपना आकाश - 21 - सही प्रतीत होने वाली कहानी

अनुच्छेद- 21 सही प्रतीत होने वाली कहानीअपराह्न मंगल शहर जाने लगे तो भँवरी ने कहा, 'गेहूँ में डालने के दवा ले लीजिएगा।' वह छोटी सी डेहरी में गेहूँ भर चुकी है। घुन से बचाने के लिए दवा चाहिए। कई तरह की दवाएँ बाजार में बिक रही हैं। अनेक दवाओं को प्रतिबन्धित कर दिया गया है पर चोरी छिपे लोग बेचते खरीदते हैं। बाजार से गेहूँ में डालने की दवा लेकर मंगल नागेश की दूकान पर पहुँचे । आज वे मिल गए। मंगल की पीड़ा सामने आ गई। 'लाला जी, आपने पैदावार क्या देखी, भाव ही खा गए।' 'भाव पर ...Read More

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अपना आकाश - 22 - सवाल करेंगे तो चैन छिन जाएगा

अनुच्छेद-२२ सवाल करेंगे तो चैन छिन जाएगा भँवरी और वीरू लालटेन जलाए मंगल की प्रतीक्षा में। एक हत्थी भैंस अणेर मचाने लगी, भँवरी ने पड़िया को दूध पीने के लिए छोड़ दिया। क्या हो गया? अभी तक लौटे नहीं । वीरू को खिला दिया। नौ, दस, ग्यारह बजते रहे। दोनों ऊँघते हुए बैठे रहे। जब नींद का जोर पड़ा, तख्ते पर ही लुढ़क गए। तेल खत्म हुआ। लालटेन भी बुझ गई। उषाकाल में गाँव के लोग दिशा-जंगल के लिए निकले। किसी ने एक आदमी को रास्ते के निकट पड़ा हुआ देखा। उसकी साइकिल भी वहीं पड़ी है। उसने दूसरे ...Read More

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अपना आकाश - 23 - कंकड़ी उवाच और........

अनुच्छेद- २३ कंकड़ी उवाच और........ भँवरी, नन्दू और हरबंश के हस्ताक्षर से एक प्रार्थना पत्र जब पुलिस अधीक्षक के आया, वे चौंक पड़ीं। डाक से प्रार्थना-पत्र की प्रति डी. आई.जी. और मुख्य मंत्री को भी भेजी गई थी। उन्होंने चटपट सी. ओ. सदर को जाँच के लिए दे दिया। शाम तक कोतवाल को भी सूचना मिल गई। वे अपनी कुर्सी पर बैठे चाय की चुस्की ले रहे थे। एक बार उनके मुँह से निकला 'हूँ।' दौड़ रहा है उनका दिमाग । फिर एक बार निकला 'हूँ।' वे अकेले बैठे हैं। दो घूँट पीने के बाद चाय का प्याला रख ...Read More

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अपना आकाश - 24 - माई को क्या बताऊँगी?

अनुच्छेद- 24 माई को क्या बताऊँगी?‌ अंगद, राम सुख और नरसिंह पैरवी करते रहे । नन्दू और हरबंश को मिली। पैसा जरूर ज्यादा खर्च हुआ। जेल से जब दोनों युवक निकले तीनों से लिपट गए। राम सुख चबेना और लड्डू लिए थे। एक पेड़ के नीचे आकर पांचो ने चबेना- लडडू खा कर पानी पिया। 'गाँव का हाल चाल ठीक है काका?" नन्दू ने अंगद से पूछ लिया। “ठीक है। पहले तुम गांव चलो। सभी तुम दोनों को देखने के लिए बेचैन हैं।' अंगद ने साइकिल पर बैठते ही कहा । नन्दू उन्हीं की साइकिल पर पीछे बैठ गया ...Read More

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अपना आकाश - 25 - नन्दू की आँखें पढ़ो

अनुच्छेद- 25 नन्दू की आँखें पढ़ो दिन के तीन बजे थे । इतवार का दिन। अंजलीधर ने वत्सला को पुरवा लहकी हुई थी। आसमान में बादल थे पर वर्षा की शीघ्र संभावना न थी । ज़मीन को छीलती हुई पुरवा जब दो-चार दिन चलती है तो बारिश की उम्मीद बँधती है। कहावत है 'भुइयाँ छोल चले पुरवाई । तब जानो बरखा रितु आई ।' 'माँ जी आपने बुलाया ?" ‘हाँ बेटे। कई दिन हो गया तन्नी से भेंट नहीं हुई। मैं चाहती हूँ उसके घर चला जाए। सब दुखी होंगे।' 'बदली तो है ।' 'पर ये बरसने वाले बादल ...Read More

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अपना आकाश - 26 - उम्मीद की किरण

अनुच्छेद- 26 उम्मीद की किरण जेठ के दिन। दिन में झुलसाने वाली लू । उत्तर भारत में कितने ही लू की चपेट में परलोक सिधार जाते हैं। शाम को पछुआ धीमी हुई। चाँद निकला तो कुछ शीतलता का आभास होने लगा। लोग कमीज़, बनियाइन उतार कर गाँव के बाहर बैठते जिससे हवा शरीर में लगे। नन्दू और अंगद ने गाँव में ही कुछ करने की बात क्या चलाई, नर-नारी सभी में उत्साह की एक लहर सी पैदा हो गई। बालिग होते ही लोग बाहर भागते हैं। अब अगर गाँव में ही कुछ काम का जुगाड़ हो सके तो कितना ...Read More

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अपना आकाश - 27 - वह दृष्टि ही अलग है

अनुच्छेद- 27 वह दृष्टि ही अलग है सायं पाँच का समय । वत्सला जी सब्जी लेने के लिए तैयार । माँ से कहा, ‘माँ, मैं सब्जी लेने जा रही हूँ ।' 'जाओ', कहते हुए माँ जी उठीं। हाथ मुँह धोया। बैठक में अखबार पढ़ने लगीं । वत्सला जी ने झोला लिया और उतर गईं। अखबार पढ़ते हुए अंजलीधर की नज़र एक ख़बर पर पड़ी। लिखा था - कृषि की वृद्धि दर में कमी। पूरी रिपोर्ट पढ़ने पर उनका माथा ठनक उठा । आखिर किसानों का भविष्य कैसे सुधेरगा? वे सोचने लगीं। थोड़ी खेती ऊपर से मौसम और बाज़ार की ...Read More

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अपना आकाश - 28 - हम तो अभी डकैत है माँ जी

अनुच्छेद- 28 ‌ ‌ हम तो अभी डकैत है माँ जी हठीपुरवा के किनारे एक छतनार पाकड़ का पेड़ उसकी छायामें बैठना सुखद। आज पाँच बजे सायं अंगद ने एक बैठक बुलाई है गाँव के विकास के सम्बन्ध में विचार के लिए। अंजली-वत्सला ही नहीं, इसमें कान्तिभाई भी आमंत्रित हैं। पांच बजते बजते कान्तिभाई साइकिल चलाकर तथा अंजली और वत्सला रिक्शे से गाँव पहुँच गए। अंगद ने पाकड़ के नीचे दरी बिछा रखी है। अंजली का कुछ ऐसा आकर्षण है कि उनका रिक्शा दिखते ही पुरवे के नर-नारी उनका स्वागत करने के लिए चल पड़ते हैं। अंजली का रिक्शा ...Read More

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अपना आकाश - 29 - देख लूँगा सबको

अनुच्छेद- 29 देख लूँगा सबकोमंगल की मौत का प्रकरण अभी जीवित होने से कोतवाल वंशीधर परेशान रहते । उनका चन्दौली हो गया किन्तु वे बराबर इस सम्बन्ध में जानकारी इकट्ठी करते रहते। शासकीय सेवा में कब कहाँ आफ़त आ जाए क्या ठिकाना? उन्हें जब पता चला कि मंगल की मौत में मानवाधिकार आयोग भी रुचि ले रहा है, वे चौंके। उन्होंने अपने सामने लाश जलवाया था । कोई सुबूत नहीं छोड़ा था। फिर मानवाधिकार आयोग ? अपने एक सिपाही को उन्होंने पता करने के लिए आयोग के कार्यालय भेजा था। आज जब लौटकर उसने भँवरी तथा अन्य की ओर ...Read More

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अपना आकाश - 30 - तुम यहाँ कैसे आ गए विपिन ?

अनुच्छेद- 30 तुम यहाँ कैसे आ गए विपिन ? माँ अंजलीधर की बैठक। कान्तिभाई, अंगद, तन्नी और विपिन सरकार विचार विनिमय कर रहे हैं। इन्हें बिठाकर वत्सला जी कालेज चली गई। आज छुट्टी का दिन था पर बहिन जी ने इण्टर की लड़कियों को पढ़ाने के लिए बुला लिया था। माँ जी स्नान कर रही हैं। 'मानवाधिकार आयोग ने भँवरी के प्रार्थना पत्र पर कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है। कोतवाल वंशीधर को भी नोटिस भेजी गई है। बृजलाल के शपथ-पत्र को आयोग ने गम्भीरता से लिया है।' कान्तिभाई बताते रहे। विपिन ने जानकारी को नोट करते हुए कहा, 'मैं ...Read More

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अपना आकाश - 31 - विकल्प डेयरी

अनुच्छेद- 31 विकल्प डेयरी पहली तारीख । आज ही विकल्प डेयरी का उद्घाटन । यद्यपि उद्घाटन भँवरी देवी को करना है पर बिना अंजलीधर के संभव नहीं। माँ जी भी सवेरे चार बजे से ही तैयारी कर रही हैं। नहा धोकर पति के चित्र के सामने खड़ी हो गईं। 'तुम्हारा ही छूटा हुआ काम कर रही हूँ। देखना इसे रिक्शा पहले से ही तय कर रखा था। सुबह छह बजे उन्हें हठीपुरवा पहुँचना ही है । वे लड्डू के पैकेट और कैमरा साथ लिए रिक्शे पर बैठ गईं । विपिन और कान्तिभाई को भी पहुँचना था। माँ अंजली का ...Read More

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अपना आकाश - 32 - बचा कर रखता हूँ दिव्यास्त्र

अनुच्छेद- 32 बचा कर रखता हूँ दिव्यास्त्र कोतवाल वंशीधर ने नागेश लाल के पैसे से बनारस में सवा लाख मंत्र का जाप कराया। पंडितों को दिलखोल कर दान दिया। पंडित चिन्ताहरण भी प्रसन्न हुए। वंशीधर आज कोतवाली के अपने आवास में बैठे चाय पी रहे हैं। सुबह नौ बजे का समय । मानवाधिकार आयोग हर कीमत पर मंगल की मौत के रहस्य से पर्दा हटाना चाहता है। हर सप्ताह कोई न कोई चिट्टी आ ही जाती। 'क्या मैं भी अपना अस्त्र उठाऊँ?" वे बुदबुदाए। 'नहीं, नहीं, ऐसा न करना। उनके मन ने ही संकेत किया। सच और झूठ का ...Read More

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अपना आकाश - 33 - चलूँगी, ज़रूर चलूँगी

अनुच्छेद- 35 चलूँगी, ज़रूर चलूँगी विकल्प डेयरी का काम चल निकला। अंगद, नन्दू, तन्नी ही नहीं सभी स्त्री-पुरुष डेयरीमय गए। सभी ने दूधारू गाय भैसों के दाना पानी पर ध्यान देना शुरू किया। दूध का उत्पादन बढ़ा इक्यावन लीटर दूध से प्रारम्भ डेयरी एक महीने बाद ही उन्हीं जानवरों से सत्तर लीटर की आपूर्ति करने लगी। पुरवे के लोगों के चेहरे दिप दिप करने लगे। उनके अन्दर इस डेयरी ने एक सपना उगा दिया है। सपनों के होने से ही जीवन में कितना फर्क पड़ जाता हैं? डेयरी के काम-काज की समीक्षा के लिए आज अंगद -तन्नी ने एक ...Read More

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अपना आकाश - 34 - सोलहवाँ लग गया

अनुच्छेद- 36 सोलहवाँ लग गया विवाह की तिथि निश्चित हो जाए तो तीस वर्ष की अवस्था में भी सोलहवाँ सकता है। वत्सला जी कालेज में ज्या कोज्या का हिसाब लगातीं पर घर में बहुत कुछ बदलने लगा । इण्टरमीडिएट में गणित पढ़ने वाली लड़कियों ने भी इस परिवर्तन को अनुभव किया। अब मैडम वत्सला की साड़ियों का रंग गहराने लगा है। लटों को बड़ी सावधानी से सँवारा जाता है। मेक अप आज भी बहुत हल्का है पर चेहरे की लालिमा में चमक पैदा हो गई है। एक दो चूड़ियाँ जो भी पहन रहीं हैं उनका रंग कपड़ों से मिलता ...Read More

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अपना आकाश - 35 - अपना आकाश खींच लाना है

अनुच्छेद- 37 अपना आकाश खींच लाना हैहठी पुरवा में एक ही मंडप में कभी दो विवाह नहीं हुए थे न कभी दिन में कोई शादी हुई। माँ अंजलीधर की योजना से दोनों संभव। आज हठीपुरवा उत्सव में डूबा हुआ। बाल युवा वृद्ध सभी के चेहरे खिले हुए। सभी अपने साफ-सुथरे दमकते कपड़ों में दौड़-दौड़ कर काम करते माँ अंजलीधर के निर्देशन में। माँ जी का भी उत्साह सातवें आसमान पर। रोटी, पूड़ी, सब्जी, खीर, पुलाव की महक परिवेश में। अंगद पुरवे के लोगों के साथ भोजन की तैयारी में। नन्दू और हरवंश तथा अन्य युवा जलपान का दायित्व सँभालते ...Read More