हर्जाना

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आज की यह रात अमावस की काली अंधियारी रात थी। इस रात के बीच में बिजली की चमक अँधेरे का सीना चीरती हुई धरती पर आ गिरती कभी मद्धम कभी भीषण। बादल नाराज़ लग रहे थे, ऐसा लग रहा था इस भयानक गरज के साथ वह कहीं फट ना जाएँ। इस तरह ध्वनि और बिजली का आवागमन जारी था, यूँ लग रहा था मानो तेज तूफ़ान आने वाला है। अनाथाश्रम में रात के सन्नाटे को रौंदता हुआ यह मौसम अपने साथ कुछ और भी लेकर आया था; लेकिन क्या जिसकी आवाज़ को वह किसी और तक पहुँचने ही नहीं दे रहा था पर दस्तक देकर किसी को बाहर बुला ज़रूर रहा था। तभी मौसम के भयानक मिज़ाज के कारण अनाथाश्रम की मैनेजर गीता मैडम की नींद खुल गई। वह उठीं और तेज कदमों से बाहर की खिड़की की तरफ़ जाकर उन्होंने झांका। वह देखने तो गई थीं मौसम का मिज़ाज लेकिन इससे पहले कि वह चारों तरफ़ अपनी नज़र घुमाएँ उन्हें नीचे अनाथाश्रम के दरवाजे के बाहर खून से लथपथ एक नन्हा बालक दिखाई दे गया। उन्होंने दौड़ कर दरवाज़ा खोला और बच्चे को उठाकर अपनी गोद में लिया। उसके बाद उन्होंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई लेकिन इस तरह बच्चे को छोड़कर जाने वाले रुकते कहाँ हैं। गीता मैडम ने समय व्यर्थ गंवाए बिना अंदर जाना ही बेहतर समझा।

Full Novel

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हर्जाना - भाग 1

आज की यह रात अमावस की काली अंधियारी रात थी। इस रात के बीच में बिजली की चमक अँधेरे सीना चीरती हुई धरती पर आ गिरती कभी मद्धम कभी भीषण। बादल नाराज़ लग रहे थे, ऐसा लग रहा था इस भयानक गरज के साथ वह कहीं फट ना जाएँ। इस तरह ध्वनि और बिजली का आवागमन जारी था, यूँ लग रहा था मानो तेज तूफ़ान आने वाला है। अनाथाश्रम में रात के सन्नाटे को रौंदता हुआ यह मौसम अपने साथ कुछ और भी लेकर आया था; लेकिन क्या जिसकी आवाज़ को वह किसी और तक पहुँचने ही नहीं दे ...Read More

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हर्जाना - भाग 2

गीता मैडम के उठने के तुरंत बाद ही उनकी दो सह कर्मी महिमा और माया भी मौसम की भीषण के कारण उठ गई थीं। उन्होंने गीता मैडम की गोद में रोते हुए बच्चे को देखते ही तैयारी शुरू कर दी। गीता मैडम ने कहा, “महिमा जल्दी गर्म पानी लेकर आओ और माया तुम दूध की बोतल तैयार करो।” बच्चे की टूटती साँसों को देखकर माया ने कहा, “मैडम इसकी हालत तो काफ़ी खराब लग रही है। मुझे नहीं लगता कि यह बच्चा टूटती साँसों के बिखराव को समेट पाएगा।” “ऐसा मत कहो माया, जितना कह रही हूँ उतना करो। ...Read More

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हर्जाना - भाग 3

लिव इन रिलेशनशिप के बारे में गीता मैडम की बात सुनते ही माया ने कहा, “हाँ मैडम आप सही रही हैं। अरे मैडम अब तो ऐसी माँ भी हैं, जो भगवान का दिया आँचल में छुपा हुआ उपहार स्तन, उसे भी अपनी सुंदरता के साथ जोड़ लेती हैं और बच्चे को उस सुख से वंचित रखती हैं। भगवान ने इसलिए यह उपहार नहीं दिया है। यह उपहार तो दुनिया में जन्म लिए बालक का पेट भरने का साधन है।” महिमा ने कहा, “अरे यह बदलाव तो अब यहाँ से बहुत आगे तक अपने पैर पसार चुका है। जिनके पास ...Read More

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हर्जाना - भाग 4

आयुष्मान की मेहनत, इच्छा शक्ति, दृढ़ निश्चय और महत्वाकांक्षा ने उसे इस अनाथाश्रम का पहला डॉक्टर बना दिया। उसे डिग्री मिलते से ही पूरे अनाथाश्रम में ख़ुशी ने डेरा डाल दिया। वहाँ के बच्चे, आयुष्मान के साथी उसके दोस्त और सबसे ज़्यादा गीता मैडम की ख़ुशी का ठिकाना ना था। आज वहाँ सभी अपने अनाथाश्रम को गर्व से भरा हुआ महसूस कर रहे थे। आयुष्मान के बढ़ते क़दम अब भी रुकने को तैयार नहीं थे। उसने गीता मैडम से कहा, “गीता माँ मुझे अभी और आगे पढ़ाई करना है। एम डी करना है। माँ मैं भी आप ही की ...Read More

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हर्जाना - भाग 5

आज अचानक सुहासिनी के अनाथाश्रम आने से गीता मैडम के मन में खलबली मची हुई थी। वह सोचने लगीं, आज अचानक कैसे और क्यों? 25 साल पहले सोलह साल की उम्र में अनाथाश्रम से भाग जाने वाली सुहासिनी आज आख़िर यहाँ क्यों आई है? कितनी बदनामी हुई थी उसके कारण अनाथाश्रम की, इस पावन घर की। उसे इस घर ने बचपन से पाला था और उसने क्या सिला दिया? यह सोचते हुए उनका चेहरा गुस्से में तमतमा रहा था, आँखें आग उगल रही थीं, लग रहा था मानो सुहासिनी के ऊपर तो आज सवालों का वज्रपात ही होने वाला ...Read More

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हर्जाना - भाग 6

सुहासिनी उस रात अकेले रहने का वह दर्द आज तक नहीं भूल पाई थी। गीता मैडम के समझाने पर थोड़ी हिम्मत आई और उसने कहा, “गीता दीदी आप लोग पिकनिक पर क्यों चले गए थे, मुझे अकेला छोड़कर …” बीच में ही गीता मैडम ने कहा, “सुहासिनी विजय राज जी ने सभी की बुकिंग कर दी थी। अच्छा होटल, अच्छा खाना-पीना, बहुत सारे कमरे भी बुक किए थे उन्होंने। उनका बहुत पैसा लग गया था इसलिए हम वह पिकनिक कैंसिल नहीं कर सकते थे। वैसे भी यहाँ के बच्चों के लिए कौन इतना करता है? कौन इतना सोचता है? ...Read More

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हर्जाना - भाग 7

सुहासिनी ने रोते हुए कहा, "उसके बलात्कार का नतीजा मेरी कोख में आ चुका था दीदी। मैं हर रोज़ रही, हर रात तड़पती रही लेकिन कौन था मुझे संभालने वाला। सोचा था बच्चे को गिरा दूँ पर वह भी मैं ना कर पाई। पेट में पल रहे बच्चे की हत्या कर मैं हत्यारन नहीं बनना चाहती थी। भगवान ने किसी को मारने का हक़ हमें नहीं दिया है। दीदी आज से 25 साल पहले आज के ही दिन खून से लथपथ एक नवजात को मैं आपकी पनाह में यहाँ छोड़ गई थी। उस दिन केवल वह बालक ही खून ...Read More

8

हर्जाना - भाग 8

आयुष्मान अब तक समझ चुका था कि सुहासिनी कोई और नहीं उसकी माँ है क्योंकि जब उसने यह कहा कि आज से 25 साल पहले मैं खून से लथपथ एक बच्चे को आप की पनाह में छोड़ गई थी, आज उसका जन्मदिन है और वही मेरा बेटा है दीदी। आयुष्मान को उसके बाद यह समझने में बिल्कुल समय नहीं लगा था। वह अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाता था क्योंकि इसे तो वह मनहूस दिन मानता था। आज ही के दिन तो उसका तिरस्कार हुआ था। आयुष्मान आज के दिन केवल गीता माँ के पास आकर उनके पांव को स्पर्श ...Read More

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हर्जाना - भाग 9

सुहासिनी को इस तरह रोता देख गीता मैडम ने कहा, "तुम्हें कुछ नहीं होगा सुहासिनी तुम हिम्मत रखो।" "बस तो नहीं है ना दीदी वरना ..." "नहीं सुहासिनी हमारे समाज में इस तरह बच्चे को जन्म देना आसान नहीं है। तुम कहाँ डरीं तुमने तो उसे जन्म दिया। यदि कोई और होती तो बच्चे को ख़त्म करके ख़ुद के जीवन को आगे बढ़ा लेती और फिर धीरे-धीरे उस हादसे को शायद भूल भी जाती पर तुमने ऐसा नहीं किया। पाप तो उसने किया है सुहासिनी। सजा तो भगवान ने उसे देनी चाहिए थी। भगवान ने भले ही उसे छोड़ ...Read More

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हर्जाना - भाग 10

आयुष्मान ने सुहासिनी का इलाज़ शुरू कर दिया। अपने सीनियर डॉक्टर्स के संपर्क में रहकर वह अच्छे से अच्छी के साथ सुहासिनी का इलाज़ कर रहा था। उन्हें बचाने के लिए, वह अपनी पूरी जान लगा रहा था। धीरे-धीरे सुहासिनी में होते हुए सुधार को वह महसूस भी कर रहा था। इसी बीच हर साल की तरह इस साल भी अनाथाश्रम के वार्षिकोत्सव का समय नज़दीक आ रहा था, जिसकी तैयारी बच्चे कर ही रहे थे। इसमें हर वर्ष मुख्य अतिथि के रूप में विजय राज जी को आमंत्रित किया जाता था। गीता मैडम उसके नाम को सभी के ...Read More

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हर्जाना - भाग 11 - अंतिम भाग

आयुष्मान के साथ विजय राज शब्द सुन कर पूरा हॉल स्तब्ध था। आयुष्मान को अपने कानों पर यक़ीन ही हो रहा था कि जिसे वह आज तक इस अनाथाश्रम का भगवान मानता था, उसी इंसान ने उसका और उसकी माँ का जीवन बर्बाद किया है। आयुष्मान ने उस दिन सब कुछ सुन लिया था लेकिन वह विजय राज का नाम ना सुन पाया था और सुहासिनी से वह नाम पूछने की हिम्मत उसमें नहीं थी। तालियों की आवाज़ अब थम-सी गई थी, उसका स्थान सन्नाटे ने ले लिया था। बड़े-बड़े राजनेता हैरान थे। विजय राज की पत्नी और बच्चे ...Read More