वीर सावरकर

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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। — श्रीमद्भगवद्गीता संसार में दो प्रकार के पुरुष होते हैं। एक तो वह जो संसार के पीछे चलते हैं और दूसरे वह जो संसार को अपने पीछे चलाते हैं। पहले प्रकार के सभी मनुष्य संसार के प्रवाह में बह जाते हैं और जिनके जन्म और मरण से उनके कुछ निकट सम्बन्धियों के अतिरिक्त और कोई परिचित नहीं होता। किन्तु दूसरे प्रकार के मनुष्य बिरले ही होते हैं, जो अद्भुत शक्ति के द्वारा संसार को अपने पीछे चलाते हैं। ये महापुरुष होते हैं। इनके जन्म और मरण का समस्त देश और जाति पर प्रभाव पड़ता है। जब देश में धर्म का ह्रास होने लगता है और चारों ओर अधर्म का साम्राज्य फैलने लगता है तो परमात्मा धर्म की रक्षा के लिये किसी महापुरुप को जन्म दिया करता है। भारत में जब हिन्दु धर्म का ह्रास होने लगा, हिन्दुपति महाराणा प्रताप का रक्त जब उनकी सन्तानों की धमनियों में मन्द गति से प्रवाहित होने लगा, छत्रपति शिवाजी द्वारा संरक्षित हिन्दु जाति जब अपने धर्म और उद्देश्य को भूलने लगी, विजेता बुन्देलखण्ड-केसरी महाराज छत्रसाल की विजय दुन्दुभि का नाद जब हिन्दुओं के श्रवणपुटों से शान्त हो चुका, गुरु गोबिंद सिंह के आदेश और पांचकक्के जब हिन्दुजाति के मस्तिष्क से लुप्त होने लगे,

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वीर सावरकर - 1 - कथा प्रसंग

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।— श्रीमद्भगवद्गीता संसार में दो प्रकार के पुरुष होते हैं। एक तो जो संसार के पीछे चलते हैं और दूसरे वह जो संसार को अपने पीछे चलाते हैं। पहले प्रकार के सभी मनुष्य संसार के प्रवाह में बह जाते हैं और जिनके जन्म और मरण से उनके कुछ निकट सम्बन्धियों के अतिरिक्त और कोई परिचित नहीं होता। किन्तु दूसरे प्रकार के मनुष्य बिरले ही होते हैं, जो अद्भुत शक्ति के द्वारा संसार को अपने पीछे चलाते हैं। ये महापुरुष होते हैं। इनके जन्म और मरण का समस्त देश और जाति पर प्रभाव ...Read More

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वीर सावरकर - 2 - जन्म और बाल्यकाल

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के निवास से पवित्र पंचचटी और दण्डकारण्य के मार्ग में नासिक पड़ता है। यह पवित्र तीर्थं माना जाता है। इसी नासिक जिले की पवित्र भूमि में एक छोटा-सा ग्राम भगूर है। यह गांव अपने सावरकर के कारण महाराष्ट्र राज्य में पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।इसी ग्राम मे चितपावन ब्राह्मण श्री विनायक दीक्षित रहा करते थे। चितपावन ब्राह्मणो का भी इतिहास बहुत रहस्यमय है। ये विगत दो सौ वर्षो से ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध और भारत कीस्वतन्त्रता के लिये निरन्तर प्रयत्न करते रहे हैं। इसीलिये ब्रिटिश साम्राज्य की आंखो मे चितपावन ब्राह्मण सदा खटकते ...Read More

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वीर सावरकर - 3 - विद्याध्ययन

बालक सावरकर ने ६ वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्त करना आरम्भ कर दिया। यों तो ये इससे भी अपने माता-पिता से मौखिक शिक्षा ग्रहण करता रहे। रामायण-महाभारत की कथायें और वीर पुरुषों की गाथायें सुनता रहे किन्तु ९ सितम्बरसन् १८८९ में इन्होंने भारत में ही गुरुमुख से विद्याध्ययन आरम्भ किया । सातवें वर्ष में बालक का मौजीबन्धन भी हो गया । सावरकर प्रतिदिन अपनी माता जी के चरण स्पर्श और उनसे आज्ञा प्राप्त करके पढ़ने जाया करते थे। एक दिन किसी बात से यह माता जी से रूठ गये इसलिये बिना चरण स्पर्श और आज्ञाप्राप्त किये स्कूल चले ...Read More

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वीर सावरकर - 4 - कालिज के दिन

नासिक से सन् १९०१ में सावरकर जी ने मैट्रिक की परीक्षाउत्तीर्ण कर ली । उसी वर्ष आप बीमार भी गये। बीमारी के दिनो में आपको चिन्ता हुई कि मैं मैट्रिक से आगे की शिक्षा कैसे प्राप्त करूंगा क्योंकि इतना पैसा पास नहीं कि कालिज का खर्चं सहन कर सके । इनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने कहा कि यदि तुम भाऊराव चिपलूणकर की लड़की से विवाह कर लो तो वे तुम्हारी सारी शिक्षा का व्यय उठा सकते है, फलतः सावरकर जी ने उनकी कन्या से विवाह करना स्वीकार कर लिया और उन्होंने ही इनकी शिक्षा का व्यय उठाया। ...Read More

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वीर सावरकर - 5 - इंगलैण्डआन्दोलन

श्री सावरकर जी श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा की छात्रवृत्ति द्वाराउच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये बम्बई से 9 जून 1906 को चलकर 2-3 जुलाई को इंगलैण्ड पहुॅचे। जहाज पर भी सावरकर जी ने अपना कार्य जारी रखा। इंगलैण्ड जाने वाले भारतीय यात्रियों से देश तथा धर्म के विषय में वाद-विवाद करना उनका स्वभाव था। जहाज में आपकी एक बंगाली युवक रमेशदत्त तथा एक पंजाबी युवक हरनामसिंह से विशेष भेंट हुई। हरनामसिंह इंगलैण्ड पहुँचने भी न पाया था कि रास्ते से ही उसका विचार वापिस भारतवर्ष लौटने का हो गया। परन्तुसावरकर जी ने उससे आग्रह किया और अपना उद्देश्य समझाया ...Read More

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वीर सावरकर - 6 - मार्सेलिस बन्दरगाह

श्री सावरकर जी को मोरिया नामक जहाज द्वारा इंगलैण्डसे भारत के लिये ले जाया गया। जहाज के चलने से ही सावरकर जी की मि० अय्यर से भेंट हुई। दोनों ने, इस अभिप्राय से कि अंग्रेज उनकी बात न समझ सकें, हिन्दी में बातें कीं। उन्होंने यह विचारा कि अब क्या उपाय करना चाहिये, जहाज मार्ग में कहां ठहरेगा, और अय्यर को अमुक दिवस अमुक स्थान पर अवश्य पहुँच जाना चाहिये। इनकी बातें हिन्दी में हुई थीं किन्तु खुफिया पुलिस वाले समझ ही गये और उन्होंने मि० अय्यर को भी पकड़ने की सोची पर सफल न हो सके । रास्ते ...Read More

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वीर सावरकर - 7 - कालापानी

सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का अभियोग लगाकर धारा 121 A के आधीन वीर सावरकर जी पर मुकद्दमा चलाया इन्हें बम्बई से नासिक हथकड़ी लगाकर लाया गया था। जब ये नासिक में पहुॅच गये तो वहां किसी ने इन्हें एक पत्र दिया जिसमें इस बात का उल्लेख था कि फ्रांस की सरकार ने, इंगलैण्ड से, अपनी सीमा में से गिरफ्तार करके ले जाया गया हुआ व्यक्ति वापिस मांगा है। उन दिनों क्रान्तिकारियों के मुकद्दमों की जंग में सर्वत्र चर्चा हो रही थी और सावरकर जी के मुकद्दमे की तो बहुत ही हलचल थी। इनको नासिक से बम्बई हाईकोर्ट ले ...Read More

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वीर सावरकर - 8 - कालापानी के बाद

मैं अब शीघ्र ही अपनी प्यारी मातृभूमि के दर्शन करूंगा इसका सावरकर जी को स्वप्न में भी ध्यान न । २१ जनवरी सन् १९२१ के दिन उनका डी० टिकट निकाल लिया गया। इससे सावरकर जी को कुछ सन्देह तो अवश्य हुआ किन्तु फिर भी उन्हें यह विश्वास न था कि वे भारत ले जाये जायेंगे। एक दिनअकस्मात एक वार्डर ने सावरकर जी को एक पत्र लाकर दिया जिसमे यह लिखा था कि अब आपको बम्बई की जेल में रखा जायेगा । सावरकर जी के हृदय में भारतभूमि के दर्शनों की कुछ आशा उत्पन्न हो गई और उनकी दर्शनों के ...Read More

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वीर सावरकर - 9 - गृहस्थ-जीवन और सावरकर हिन्दू महासभा में

संसार में जो सज्जन होते हैं उनके सब कार्य-कलाप और समस्त जीवन परोपकार के लिये ही होता है। हमारे वीर सावरकर का भी सारा जीवन देश सेवा और जेलों में ही कटा । इसीलये इनके जीवन में देश सेवा ही दृष्टिगोचर होती है, गृहस्थ जीवन का कुछ महत्त्व ही नहीं। सावरकर जी के जितने भी जीवन चरित्र आज तक लिखे गये हैं, उनमें इनके गृहस्थ जीवन पर प्रकाश नहीं डाला गया है।सन् १९०१ में सावरकर जी ने मैट्रिक पास कर लिया तब इनके विवाह का प्रश्न भी उपस्थित हुआ। सावरकर जी पहले तो अपना विवाह कराने से मना करते ...Read More

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वीर सावरकर - 10 - हैदराबाद-सत्याग्रह

निजाम हैदराबाद में हिन्दुओं और विशेषकर आर्यसमाजीयो पर दिन-रात अत्याचार किये जाने लगे। हिन्दुओं के यज्ञोपवीत तोड़े जाते थे, को मन्दिर और हवन कुण्ड तक बनाने की आज्ञा नहीं थी, कोई हिन्दुओं का जलसा बिनास्वीकृति के नहीं हो सकता था । यदि कोई हिन्दू नेता बाहर से आता तो उसकी बहुत-बहुत जांच पड़ताल की जाने लगी । मुसलमान गुण्डे सरासर हिन्दुओं को दिन दहाड़े लूटते, डाका मारते और उनका खून तक भी कर डालते तो उनको कोई दण्ड नहीं दिया जाता था । हिन्दुओं में इसकी प्रतिक्रिया होने लगी और यह हैदराबाद का ही नहीं, अपितु अखिल भारतवर्षीय प्रश्न ...Read More

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वीर सावरकर - 11 - भागलपुर का मोर्चा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के मदुरा- अधिवेशन में निर्णय हुआ कि महासभा का अधिवेशन बिहार प्रान्त के किसी नगर जो स्वागतकारिणी नियत करेगी, दिसम्बर सन् १९४१ के बड़े दिनों की छुट्टियों में होगा। ऐसा निर्णय वार्षिक अधिवेशन पर प्रति वर्ष हुआ ही करता था, इसलिये जब आगामी अधिवेशन बिहार में करने का निश्चय हुआ तो किसी के ध्यान में भी यह बात न आई कि यह अधिवेशन महासभा के इतिहासमें एक स्मरणीय अधिवेशन रहेगा और बिहार में हिन्दू महासभा एक कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपना मस्तक सन्मान के साथ ऊँचा कर सकेगी। अस्तु, बिहार प्रान्त में नियमानुसार स्वागतकारिणी ...Read More

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वीर सावरकर - 12 - अखण्ड भारत-नेता सम्मेलन

भारत के कुछ बड़े-बड़े नेताओं का यह विश्वास हो गया है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बिना भारत को स्वराज्य प्राप्ति असम्भव है । महात्मा गांधी और कांग्रेस ने इस हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अनेक बार प्रयत्न किये किन्तु सब में मुसलमानों की हठधर्मी और अन्याय्य मांगों के कारण उन्हें असफल ही होना पड़ा। इन नेताओं के इन प्रयत्नों का परिणाम यह हुआ कि दूसरी पार्टी अपनी असम्भव मांगें बढ़ाती हुई पाकिस्तान पर आ पहुॅची है। पाकिस्तान का अभिप्राय यह है कि भारत के दो खण्ड कर दिये जायें, एक का नाम पाकिस्तान हो और दूसरे का हिन्दुस्तान। हिन्दुस्तान में ...Read More

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वीर सावरकर - 13 - सत्यार्थप्रकाश' पर प्रतिबन्ध

मुस्लिम लीग कराची के अधिवेशन में सत्यार्थप्रकाश को जब्त कराने का कुछ स्पष्ट सा प्रस्ताव पेश हुआ। मि० जिन्ना भी व्यक्त किया कि इससे हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा होने का भय है, जिसके कारण साम्प्रदायिक कलह की जड़ें ही केवल जमेंगी ।फिर १५-१६ नवम्बर १९४३ में दिल्ली में मुस्लिम लीग की एक कौंसिल हुई और उसमें सत्यार्थप्रकाश के विरुद्ध एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें भारत सरकार से जोर के साथ कहा गया कि सत्यार्थ प्रकाश के वे समुल्लास जिनमें धर्म-प्रवर्त्तकों, विशेषकर इस्लाम के पैगम्बरों के बारे में आपत्तिजनक और अपमानकर बातें हैं, तुरन्त जब्त कर लिये जायें। इसके बाद सिन्ध ...Read More

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वीर सावरकर - 14

वीर सावरकर द्वारा हिन्दू महासभा के वार्षिक अधिवेशनों पर दिये गये भाषणों का सारअहमदाबाद (सन् १९३७ ई०)प्रारम्भ में आभार और स्वतन्त्र हिन्दू साम्रज्य नेपाल का अभिवादन करते हुए वीर सावरकर ने अपना भाषण इस प्रकार प्रारम्भ किया:हिन्दुस्थान सर्वदा एकरस एवं अविभाज्य हीरहना चाहिये । वर्त्तमान समय में भारतवर्ष पर जो कृत्रिम एवं राजनैतिकबलात्कार जनित प्रान्तीय बटवारा लादा गया है उसके विचार को अलग हटाया जाय, तो हम पर यह बात स्पष्ट होगी कि हम सब रक्त, धर्मं तथा देश इन प्रबल, अविभाज्य एवं टिकाऊ बन्धनों के द्वारा परस्पर के साथ जकड़े गये हैं। चाहे जो हो,हमें अपना ध्येय समझकर ...Read More

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वीर सावरकर - 15

नागपुर ( सन् १९३८ ई० )मत विभाजन के सम्बन्ध में तथा अपने इतिहास पर एक दृष्टि डालते हुए श्री जी ने कहा—हिन्दू राष्ट्र जीवन तत्वों से बढ़ा है, काग़ज की सन्धि से नहीं।यह स्पष्ट हो गया होगा कि कम से कम ५ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज वैदिक काल में ही हमारे देश के लोगों को धार्मिक, जातीय, सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन तत्वों से संगठित कर एक राष्ट्रबना रहे थे जो आज हिन्दू राष्ट्र के नाम से समस्त भारत में फैला हुआ है और सब लोग भारतवर्षं को अपनी पितृभू पुण्यभूमि मानते हैं। चीन को छोड़कर संसार का कोई ...Read More