तलाक .....तलाक ......तलाक....... इन तीन अल्फ़ाजों को, बिल्कुल किसी मालिकाना हक की तरह बोल कर, उसका शौहर आरिज़ कमरें से बाहर निकल गया। जलजले की तरह आये इन लब्जों के मायनों ने उस बैडरूम में कोहराम मचा दिया था। उस कमरें के सारे काँच दरक गये और दीवारें चटखने लगीं थीं। कमरें में मौत जैसा सन्नाटा छा गया था। वह बुत की तरह बैड पर बैठी हुई थी और घुटनों को मोड़ कर सीने से लगा लिया था उसके बाजुओं का घेरा घुटनों के इर्द-गिर्द फैला हुआ था और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। आरिज़ के इन अल्फ़ाज़ों ने उसके कानों के परदों को फाड़ दिया था। जो अभी-अभी वह कह कर कमरें से बाहर निकल गया था। "या अल्लाह...! ये हमनें क्या सुना है? ये कौन से गुनाह की सजा है? रहम कर हे! पर्वरदिगार..हम पर रहम कर..." फिज़ा ने अपने दोनों कानों को अपने हाथों से ढ़ाँप लिया। उसे लग रहा था जैसे उफनता हुआ गर्म लावा किसी नें उसके कानों में डाल दिया हो और उसकी गर्मी से उसका पूरा जिस्म पिघल रहा हो। पूरा का पूरा बैडरुम धरती की तरह अपनी धुरी पर घूम रहा था। होंठ सिल गये थे और अब्सार से आसूँओ का रेला फूट पड़ा था। वह गूँगी -बहरी सी हो गयी। हाथ-पाँव काँप रहे थे और दिल धड़क कर गर्दन में अटक गया था। दीवार पर लगी तस्वीरें काँपने लगी थीं और कमरे की वाकि चीजें धुँआँ-धुँआँ सा होकर आड़ी- तिरछी रेखाओं में तबदील हो गयी थीं। आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा और वह पलंग पर कच्चे घड़े की तरह लुढ़क पड़ी। रोते-रोते वह बेहोश हो गयी थी और घण्टे भर बेहोश ही पड़ी रही।
Full Novel
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 1
भाग 1तलाक .....तलाक ......तलाक....... इन तीन अल्फ़ाजों को, बिल्कुल किसी मालिकाना हक की तरह बोल कर, उसका शौहर आरिज़ से बाहर निकल गया। जलजले की तरह आये इन लब्जों के मायनों ने उस बैडरूम में कोहराम मचा दिया था। उस कमरें के सारे काँच दरक गये और दीवारें चटखने लगीं थीं। कमरें में मौत जैसा सन्नाटा छा गया था। वह बुत की तरह बैड पर बैठी हुई थी और घुटनों को मोड़ कर सीने से लगा लिया था उसके बाजुओं का घेरा घुटनों के इर्द-गिर्द फैला हुआ था और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। आरिज़ के इन अल्फ़ाज़ों ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 2
भाग 2उसने नजर उठा कर पूरे घर का चप्पा-चप्पा निहारा था। दीवारों को हाथ से छुआ था। आइने को कर आँखें छलछला पड़ी थीं, ये वही आइना था जिसमें सुबह-शाम वह दौड़ी-छूटी खुद को निहारा करती थी। कभी अम्मी जान से नजर बचा कर तरह-तरह के चेहरे बनाती तो कभी खुद पर ही लजा जाती और मुस्कुरा कर भाग जाती। उसने विदाई के वक्त घर के फर्नीचर से लेकर छत तक सब से विदाई की इजाज़त माँगी थी। घर के सामान से, भरी हुई आँखों ने छुप कर बातें भी की थीं, बगैर ये जाने उन्होनें सुनी भी होगीं ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 3
भाग 3आरिज़ ने तो कई बार उसके साथ मार-पीट भी की थी। तब भी कोई कुछ नही बोला था। गुनाह था कि उसने कठपुतली बनने से इन्कार कर दिया था। मजलूम औरतों के हक़ के लिये लड़ने की ठानी थी। ये दो चीजें थी जो उन्हें नश्तर के माफिक चुभ रही थीं। हलाँकि एक हद तक उसने सहा भी था।उनके बाहर निकल जाने के बाद फिज़ा ने जैसे ही खुद को महसूस किया एक अन्जाने दर्द से वह चिल्ला उठी। गिरियां कर रो पड़ी। पेट के निचले हिस्से में भयंकर दर्द उठा था, साथ ही उसे अपने नीचें कुछ ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 4
भाग 4उसकी सारी जान जैसे निकल चुकी थी और वह बेसुध हो गयी थी। सिर्फ आरिज़ की अम्मी ही साथ थीं, आरिज़ भी नही। वह होता भी क्यों? अब उसके साथ उसका रिश्ता बचा ही क्या था? वैसे रिश्ता तो उसकी अम्मी के साथ भी नही बचा था, मगर हालात के मद्देनजर उन्हे ये करना पड़ा था। जिसमें उनकी मर्जी शामिल नही थी। उनकी बेरुखी इस बात की गवाह थी। वैसे भी उनका होना या न होना बराबर ही था।अस्पताल आ गया था। ड्राइवर चाचा ने अस्पताल के ठीक गेट के पास गाड़ी लगाई थी ताकि फिज़ा को उतरने ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 5
भाग 5दो जोड़ा कपड़े लेकर वह मायके आ गयी थी। ये दो जोड़ा कपड़े वही थे जो चलते समय की अम्मी ने एक बैग में रखे थे। शायद उन्होंने पहले से तय कर रखा था कि अब इसे वापस घर नही लाना है। इसके वालदेन तो आ ही रहे हैं वहीँ उन्हें सौंप दिया जायेगा। फिज़ा का नकाब आँसुओं से भीग-भीग कर तर हो चुका था। घर आते ही अम्मी से लिपट कर बिलख पड़ी। अब वह खुल कर रो पाई थी। दहाड़े मार-मार कर रो रही थी। घर में कोहराम मच गया। उसकी आँखों से जारो-कतार आँसू बह ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 6
भाग6बीता हुआ एक-एक लम्हा, किसी खौफ़नाक मंजर के माफिक उसके सामने से गुजरने लगा। आँखों को अश्कों से डुबोती फिज़ा बैड पर बैठी हुई सिसक पड़ी। अब तो उसका काम बात- बात पर सिसकना ही रह गया था। ये वक्त की नज़ाकत थी कि दिलासा जैसे लब्ज़ अन्दर जाते ही नही थे। जो तस्वीरें उसके आस-पास उभरतीं उनमें आरिज़ का चेहरा सबसे ऊपर रहता था। उसके दिल में आरिज़ के लिये ये नफरत थी या चाहत इसका सही-सही अन्दाजा लगाना तो मुश्किल था, मगर ये तय था कि ये चाहत तो हरगिज नही हो सकती। चाहने के लिये एक ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 7
भाग 7नुसरत फूफी की वैसे तो किसी से भी कम ही पटती थी मगर नूरी फूफी के अहज़ान के से वह भी परेशान रहने लगी थीं। कुछ कहानियाँ नुसरत फूफी ने भी हमें सुनाईं थी, मगर उनकी कहानियों में हमें उतना मजा नही आता था जितना नूरी फूफी जान की कहानियों में आता था। कभी-कभी हमें लगता था जब हम और नूरी फूफीजान लिहाफ मुँह से ढ़क कर बातें करते थे तो नुसरत फूफी को अकेलापन महसूस होता था और वह थोड़ी अफ़सुर्दा हो जाती तो हमें खुशी होती थी। हम उन्हें और चिढ़ाते थे। उस वक्त हमारी सोच ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 8
भाग 8कोतवाली से उन्हे शिनाख्त के लिये लाशघर भेजा दिया गया।वह लाश नूरी फूफी की ही थी। वह इस को बर्दाश्त नही कर पाईं थीं, उन्होनें खुदकुशी कर ली थी। सुबह-सुबह फ़ज्र की नबाज से पहले ही वह चुपचाप बुर्का पहन कर निकल गई थीं। अम्मी-अब्बू को तब पता चला जब अब्बूजान बुजू के लिये पानी लेने गये तो उन्होनें देखा था घर के लोहे के जाल वाले मेन गेट की कुण्डी नही लगी थी। वह खुली हुई थी। उसको सिर्फ भेड़ा हुआ था। सबसे पहले तो वह डरे थे। रात में जरुर चोर घुस आये हैं और उनके ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 9
भाग. 9अप्रैल सन उन्नीस सौ चौरानवे, अल्लाह के फ़ज्लोकरम से मुमताज खान के घर बेटी का जन्म हुआ था। नाम उन्होंने फ़िजा रखा था। फिज़ा के जन्म की यह तारीख मुमताज खान के लिये बहुत मायने रखती थी। बहुत खास थी उनके लिये यह तारीख। वह इसे कभी नही भूल सकते थे। इसीलिए आज उनके घर जम कर रौनक थी। वह खुशियाँ मना रहे थे घर में बेटी आने की। वैसे तो फिज़ा से पहले भी उनके घर एक औलाद आ चुकी थी। जो जन्म के कुछ घण्टों बाद ही खुदा को प्यारी हो गयी थी। उसके बाद फिज़ा ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 10
भाग. 10 फिज़ा ने सी.ए. सी.पी.टी. का फार्म डाल दिया था। इसके लिये उसे बाहर जाने की जरूरत नही थी। घर में बैठ कर लैपटाप पर ही सब काम हो गया था। ये देख कर शबीना और मुमताज खान बड़े हैरत में थे। उनका हैरत में होना भी जायज था। उनके जमाने में ये सब कहाँ था। एक-एक फार्म भरने के लिये कितना झमेला करना पड़ता था। तमाम फोटोस्टेट कराओ फिर जमा करने के लिये घण्टों लाइन में खड़े रहो। आजकल सब आनलाइन जो गया है। कितना आसान लग रहा था सब। शबीना का दिल चाह रहा था दुबारा ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 11
भाग. 11"आप सच कह रहे हैं अब्बू जान?" फिज़ा को अपने कानों पर यकीन नही हुआ। उसके आँखों से के आँसू बहने लगे। उसने खुशी की इंतहा से भरभरा कर कहा- "लाइये हमारी बात करवाईये अमान से।" अमान ने उसे एतवार दिलाया और कहा- " नैट खोल कर खुद देख लो।" उसने फौरन लैपटाप खोल कर चैक किया। ये सच था। उसने अपना रोल नम्बर डाल कर सर्च किया। सामने स्क्रीन पर उसकी मार्कशीट खुल गई थी। जिसमें वह पास थी। शबीना तो खुशी के मारे कुछ बोल ही नही पाई। उसने फिज़ा को अपने आगोश में ले लिया। ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 12
भाग. 12ज़ुहर की नमाज़ का वक्त हो गया था। शबीना और मुमताज खान दोनों ही पाँचों वक्त के नमाज़ी शबीना ने दुपट्टा सिर से डाला और नमाज़ की तैयारी में लग गयी।फिज़ा की समझ में नही आ रहा था कि क्या करे? चुपचाप कमरें में चली गयी। वह सोचने लगी अब्बू जान के घर में आने के बाद फिर से इस मुतालिक बातचीत होगी। 'पता नही अब्बूजान क्या फैसला लें? ये तो तय है वह जो भी फैसला लेंगें हमारे हक में ही होगा।' फिर भी वह डर रही थी।फिज़ा को अब्बूजान का इंतजार था। उसका दिल आज किताबों ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 13
भाग 13आज फिज़ा के पाँव धरती पर नही पड़ रहे थे। वह खुशी से फूली नही समा रही थी। उसने खुद को परदे की ओट में छुपा लिया था। ड्राइंग रूम में कुछ खास तरह के मेहमान इकट्ठा थे। जिनके लिये उम्दा किस्म का नाश्ता लगाया गया था। जिसमें शहर की सबसे मशहूर दुकान के रसगुल्ले, गुलाब जामुन, पेस्टी, पैटीज, मसाले वाले काजू, और कबाव शामिल थे। घर में गर्मजोशी का माहौल था। एक अलग तरह की हलचल सी थी। सभी के चेहरों पर तसल्ली और इत्मीनान के मिलेझुल तास्सुरात झलक रहे थे। फिज़ा के पूरे बदन में सिहरन ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 14
भाग. 14फ़िजा ने लजा कर अपनी रजामंदी दे दी थी। जिसे सुन कर तो शबीना निहाल हो गयी और फौरन खान साहब को जाकर ये खुशखबरी सुनाई-"सुनिये, हमारी बेटी ने इस रिश्ते के लिये हाँ कर दी है।" शबीना ने खुश होकर ये खबर सुनाई।"आप सच कह रहीं हैं बेगम? हम जानते थे वो इस रिश्तें से कभी इन्कार नही करेगी। अल्लाह! तेरा बहुत-बहुत शुक्र है।" खान साहब भी अपनी खुशी को जाहिर करने से नही रोक पाये थे।"अब हमें तैयारियां शुरु कर देनी चाहियें। वक्त बहुत कम है। देख लेना ये वक्त भी पँख लगा कर उड़ जायेगा ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 15
भाग। 15पूरा दिन वो लोग खूब घूमें थे। वहाँ ठ़ड थी इसलिये रियाज़ ने उसका हाथ नही छोड़ा था। झील में जब वो लोग वोटिंग कर रहे थे तो रियाज़ ने उसके गाल पर, उसके हाथ पर कई बार चूम लिया था। उसे डर लगा था पर साथ में अच्छा भी लग रहा था। वो पहले भी कई बार यहाँ आई थी पर ये इतना खूबसूरत कभी नही था। पूरा नैनीताल उसे रोमांस से भरा हुआ लग रहा था। हर नजारा सुहाना लग रहा था। इतनी सुन्दर जिन्दगी का उसने कभी तसब्बुर नही किया था, इसलिये वो एक-एक लम्हा ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 16
भाग 16वह और शमायरा पूरा दिन साथ रहते थे। अक्सर शमायरा रात को उसके घर पर रूक जाती या शमायरा के घर पर। पूरी रात वह अपने शौहर की बातें ही करती। उनकी पसंद-नपसंद, उनके शौक, उनके घर और न जाने क्या-क्या? इसके अलावा वह बाकी सब भूल गयी थी। उसे इतना भी याद नही था कि वह हमारे साथ है।उसने उसे वह सभी गिफ्ट दिखाये थे जो उसका शौहर उसे भेजता रहता था। एक बार उसने एक पैकेट को सबसे छुपा कर हमें अकेले में दिखाया था। वह उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुये अपने कमरें में ले ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 17
भाग 17नुसरत ने आते ही शबीना के हाथ से काम ले लिया, जिसे वह तल्लीनता से कर रही थी। सेवईयों के लिये मेवें काट रही थी। नुसरत ने अपने हाथ से खिसका कर प्लेट अपनी तरफ कर ली और खुद मेवें काटने लगी, शबीना मुस्कुरा कर किचिन के दूसरे काम निबटाने लगी। नुसरत ने कई बार कहा- "भाभी देखना राज करेगी हमारी फिज़ा।" इस बात पर शबीना मुस्कुरा भर दी। उसे लगा था कहीँ नजर न लग जाये और फिर नुसरत के बड़बोलेपन से भी गुरेज था उसे, वह जानती थी नुसरत को छोटी से छोटी बात जताने की ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 18
भाग 18वह सोचने लगी काश! कोई आकर उसे कपड़े बदलने की इजाज़त देदे।आरिज़ की बड़ी भाभी साहब अफसाना ने फिज़ा को रस्मों के बारें में इत्तिला दी और ये भी कहा- "दुल्हन आप तैयार हो जायें, एक घण्टे में रस्मों के लिये औरतें आने वाली हैं। ये भारी भरकम शरारा कुर्ती उतार दें और सिल्वर जरी वाला सूठ पहन लें। और हाँ दुल्हन, जेवर अभी न उतारें उसे पहने रहें। जब तक मोहल्ले, खानदान के सब लोग न देख लें। नई नवेली दुल्हन के जिस्म पर जेवर न हों तो खानदानी रसूख चला जाता है, तब तक मैं कुछ ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 19
भाग 19पलंग के चारों तरफ गोलाई में गुलाब और सफेद चम्पा के फूलों की लड़ियाँ लगाई गयी थीं। उसके में सेे पलंग पर पड़ी हल्की गुलाबी चादर थोड़ी-थोड़ी ही दिख रही थी, क्यों कि पलंग पर भी बहुत सारे गुलाब बिखरे हुये थे। कमरें की दीवारों पर भी बड़े-बड़े फूलों के गुच्छे लगाये गये थे। वह कमरा न होकर पूरा गुलशन था जो अपनी ही नही बल्कि महोब्बत की महक से भी महक रहा था। लेकिन आज खुद को ही वहाँ पर देख कर लाज से गढ़ गयी। लाज से ज्यादा आने वाले लम्हों का दीदार था जो वस ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 20
भाग 20निकाह को पूरा एक महीना गुजर गया था। अब जाके फिज़ा को वहाँ के तौर-तरीके, रवायतें और माहौल में आया था। हर वक्त मेहमान खाना मेहमानों से भरा रहता। दिन भर दुआयें माँगने वालों का ताँता लगा रहता। आरिज़ के अब्बू जान जब मेहमान खाने से फारिग हो जाते तो दालान में आकर बैठ जाते। कभी-कभी कुछ नजदीकी लोगों की महफिल वहीं तख्त पर जम जाती थी। तब घर की तीनों दुल्हनों को बाहर आने की मनाही होती थी। वैसे अफसाना भाभी साहब जरूरी काम हो तो निबटा लिया करती थीं। उनके सिर से दुपट्टा कभी नही हटा। ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 21
भाग 21कालेज कैम्पस में घुसते ही फिज़ा पुराने अहसासों से भर उठी उसके सारे ख्वाब मुँह उठाने लगे। बाहर को मचलने लगे। उसे अपने कालेज के दिन याद आ गये। वह सोचने लगी, अब उसके ख्वाबों को पूरा होने से कोई नही रोक सकता। वो हर हालत में ये इग्साम पास करके रहेगी और अपना चार्टेट अकाउंटेंट बनने का ख्वाब पूरा करेगी। जी-जान से पढ़ेगी। कोई कोर कसर नही छोड़ेगी वह अपने फर्ज़ में। ससुराल की जिम्मेदारियों के साथ-साथ वह अपना मुतालाह जारी रखेगी। ये सब सोच कर उसके दिल में अजीब सी गुदगुदी होने लगी थी। ये कालेज ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 22
भाग 22काॅलेज कैम्पस के अन्दर वो सभी दोस्त पहले से मौजूद थे। जो फिज़ा को देखते ही खुश हो थे। उसने आते ही नकाब को उतार दिया था। चूंकि निकाह के बाद आज वह पहली मर्तवा सबसे मिल रही थी। चारों तरफ से मुबारकां.... मुबारकां.... यही आवाज़ उसे सुनाई पड़ रही थी। सब उसे शादी की मुबारकबाद दे रहे थे। उसने मुस्कुरा कर सबका शुक्रिया अदा किया। तभी नग़मा ने आकर उसे पीछे से दबोच लिया। फिज़ा ने बनावटी नाराजगी जताते हुये कहा- "जा मैं तुझसे बात नही करती। तू शादी में क्यों नही आई??"जितने गिले-शिकवे करना है तुझे ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 23
भाग 23आरिज़ चुपचाप सब सुन रहा था मगर बोल कुछ नही रहा था। बड़ी भाभी साहब अपने कमरें में वैसे भी वह घर में सबसे दूर ही रहती थीं। छोटी फरहा भाभी जान वही बैठी प्याज और लहसुन काट रही थीं। शायद उन्हे कुछ खास डिश बनानी होगी वरना तो सब काम नौकर चाकर ही करते हैं। बीच-बीच में बातें सुन कर अन्दर ही अन्दर फूल रही थीं। शायद वह इस झगड़े से खुश हो रही थी। पक्के तौर पर तो नही कहाँ जा सकता मगर उनके चेहरे से लग रहा था। घर में उनका ही सिक्का चलता है, ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 24
भाग 24निकाह के बाद की जो रातें मोहब्बत के आगोश में बीतनी चाहिये थीं वो रातें नश्तर के माफिक दे रही थीं। उसे नही पता था सुहागरात पर पड़े हुये गुलाब के फूल काँटों में बदल जायेंगे। उसकी महक और जाज़िफ आराईश इतनी जल्दी बदसूरत हो जायेगी। ख्वाबों में सलीके से तराशी गईं, सभी तस्वीरें मिटने लगेंगी। हवाओं में तितलियों सा उड़ना, नदियों सा बह जाना एक ख्वाब ही रह जायेगा। उसकी चाहतें उसके अहज़ान का अस्बाब होंगीं। वह खुद को एक बदनसीब की तरह देख रही थी।जिस्मानी तौर पर किसी भी हाल में, किसी भी हालात में जबरदस्ती ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 25
भाग 25रात को डिनर के वक्त आरिज़ की अम्मी जान, बड़े भाई जान, अफसाना भाभी साहब और फरहा भाभी के दोनों बच्चे ही आये थे। वाकि लोग क्यों नही आये इसका कोई पुख्ता बहाना या अस्बाब नही था किसी के पास।खाने में बिरयानी, शाही पनीर और कोरमा था। तंदूरी चपाती को खान साहब ने बाहर से स्पेशल आर्डर कर मँगवा लिया था। शबीना ने आज अपनी ओपल वियर की वही क्राकरी निकाली थी जो वह और फिज़ा साथ में जाकर खरीद कर लाये थे और ये सिर्फ किसी खास मौकों के लिये थी। शबीना और खान साहब के लिये ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 26
भाग 26 देर रात आरिज़ कमरें में नही आये थे। शायद वह घर में ही नही थे। फिज़ा ने जाकर अम्मी जान से पूछा- "अम्मी जान! बारह बज गया है अभी तक आरिज़ नही आये हैं। क्या बात है?"वह अभी जाग रही थीं और अब्बू जान मेहमान खाने में ही थे। वहाँ तो आधी-आधी रात तक जगार होती ही रहती थी।आरिज़ की अम्मी ने फिज़ा को घूर कर देखा- "फिज़ा दुल्हन, क्या आप अपने शौहर की तहकीकात कर रही हैं?" उन्होंने ऐसा उलटा सवाल किया जिससे फिज़ा बगैर किसी गलती के उजलत में आ गई।"नही नही अम्मी जान, हम ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 27
भाग 27पूरी रात फिज़ा ने आँखों में काट दी। वह रात भर जागी थी और रोई भी थी इसलिए आँखें सूज के कुप्पा हो गयीं थीं। पूरी रात कैसे कटी ये वह ही जानती थी। सुबह होते ही अम्मी जान से जाकर मिली और फिर से वही सवाल जाकर पूछा जो उसे रात भर खंजर की तरह चुभा था। और उसकी चुभन अभी भी बिल्कुल वैसी ही थी। मगर वह अभी भी चुप ही रहीं और ये जताया जैसे उन्हे उस बाबत कुछ नही पता है। जब आप किसी अहज़ान से टूटे हुये हों और कोई इन्सान वहाँ पर ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 28
भाग 28पूरे तीन दिन के बाद आज किचिन में भाभी साहब दिखाई दीं। वह रोज की तरह बच्चों का बना रही थीं। खुशी के मारे वह उछल पड़ी जैसे कोई निआमत मिल गयी हो। सुख के लम्हों को गुजरने में वक्त नही लगता मगर दुख की एक भी घड़ी काटे नही कटती। फिज़ा लपक कर किचिन की तरफ पहुँच गयी और जाकर सीधा शिकायती लहज़े में पूछ लिया- "भाभी साहब, हमसे कोई गुस्ताखी हुई है क्या? क्यों बात नही कर रही आप हमसे? बताइये न..?" अफसाना गुमसुम सी काम करती रही। उसने न तो फिज़ा की बात का जवाब ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 29
भाग 29 "नही..नही.........तलाक नही आरिज़......" कह कर फिज़ा चीख पड़ी। उसने अपनें दोनों कानों पर हाथ रख लिये। वह के उस तमाचे की टीस को महसूस कर तड़प उठी। एक ठंडी साँस लेकर उसने खुद को उस जहन्नुम सी यादों से बाहर किया। उसे याद आया वह तो मायके में है। और सब कुछ खत्म हो चुका है। तलाक का तूफान और हमल गिरने का कहर दोनों ही उसकी जिन्दगी से गुजर कर एक बीता हुआ हिस्सा बन चुके हैं।फिज़ा के चीखने की आवाज़ सुन कर शबीना दौड़ कर कमरें में आ गयी- " फिज़ा मत रो बच्ची, कितना ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 30
भाग 30उसने अपने फैसलें की धार को तेज किया। जिसकी चमक उसकी आँखों में साफ दिखाई दे रही थी। के उस हिस्से में पहुँची जहाँ पर फूफी जान और अब्बू जान बैठे गुफ्तगूं कर रहे थे। "अब्बू जान आज हमने एक फैसला कर लिया है हम अपनी आबरू से खेलने वालों को छोड़ेगें नही। अपने बच्चे के कातिल को आजाद नही घूमने देंगें। हम अपनी ख्वाबों की बिखरी हुई किरचों को फिर से समेटेगें अब्बू जान! , हम हारेगें नही, हमें हराना है। उन्हे जिल्लत की जिन्दगी जब तक नही दे देते हमें चैन नही आयेगा। अब्बू जान, आप ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 31
भाग 31 तलाक के करीब तीन महीने बाद फिज़ा ने कोर्ट में केस दायर कर दिया था। वकील साहब तजुर्बे और उस वक्त के हालात को देखते हुये ज़हेज, घरेलू हिँसा, अबार्शन का केस बना था। जिसके लिये धारा चार सौ अठठानवें, तीन सौ तेरह, तीन सौ तेइस, चार सौ बावन, पाँच सौ छ: के तहत छ: मुकदमें फाइल हुये थे। केस फाइल होते ही ये खबर पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गयी थी। सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये थी कि उसका साथ देने के बजाय ज्यादातर लोग उसके खिलाफ खड़े हो ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 32
भाग 32फिज़ा के मुहँ पर तो जैसे ताला लग गया था। जो हिम्मत और विश्वास उसने जुटाया था सब लगा। उसके पैर भी काँप रहे थे। शबीना भी गुस्से से आग बबूला हो गयी। उसने फिज़ा को वहाँ से हटा दिया और अन्दर वाले कमरें में धकेल दिया था और खुद उसके सामने आकर खड़ी हो गई थी- "मुझे बताओ क्या कहना है तुम्हे? क्या कर लोगे तुम हमारा? आरिज़ तुम बड़े ही गलीच और ऐयाश किस्म के इन्सान हो ये तो हम समझ चुके थे लेकिन हैवान भी हो ये आज जान लिया। तुमने तो अपनी सारी हदें ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 33
भाग 33माना कि जिस तरह एक बच्चे की परवरिश में लाड- प्यार के साथ-साथ थोड़ी सख्ती की भी जरुरत है उसी तरह परिवार को चलाने में भी इन दोनों ही चीजों की जरुरत होती है। मगर अफसोस सिर्फ इस बात का है, यहाँ भी औरत एक कठपुतली की तरह ही रही है। जो औरत खुद को कुर्बान करने से इन्कार कर दे या खुद से महोब्बत करने की सोच ले उसे फौरन औरत जाति से बाहर धकेल दिया जाता है।आज फिज़ा के मुकदमें की, शहर की निचली अदालत में पहली सुनवाई थी। मुमताज खान, शबीना और फिज़ा वक्त से ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 34
भाग 34तारीखें पड़ने लगीं थी। हर दफ़ा कोर्ट में आरिज़ मिलता और हर दफा वो फिज़ा को डराने की करता। वह, वो सारे पैतरे आजमाता था जिससे वह अपना केस वापस ले लें। मगर फिज़ा ने भी ठान लिया था। वह हारेगी नही अपने ह़क की लड़ाई मरते दम तक लड़ेगी। जीत और हार का फैसला तो खुदा के हाथ में है। मगर जो हमारे हाथ में है वह हमें करने से कोई नही रोक सकता।समाज से बेदखली के बाद अकेलेपन की मार झेल रहे उस खान परिवार के पास अपना कोई नही था। मीडिया ने इस केस को ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 35
भाग 35खान साहब पाँचों वक्त के नमाज़ी थे। जब से ये ऐलान जारी हुआ था उनका मस्जिद जाना छूट था। दिन-रात वो उसी चिन्ता में घुले रहते थे। ये ऐलान उनके लिये बहुत बड़ा सदमा था। जुह़र की नम़ाज के वक्त उन्हें मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से रोका गया था। वह अपनी इस बेईज्ज़ती को बर्दाश्त नही कर पाये थे और अन्दर-ही-अन्दर घुट रहे थे।परिवार के कुछ रिश्तेदार थे जो वाकई उनका साथ दे रहे थे। वैसे ज्यादातर लोग तो हमदर्दी दिखाने के बहाने राज जानना चाहते हैं या जख्म कुरेदने का लुत्फ उठाते हैं। इन सब बातों का ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 36
भाग 36फिज़ा के मामू जान दो-चार दिन रूक कर वापस लौट गये थे। जाते वक्त उन्होनें अपनी जेब से सौ का नोट निकाल कर फिज़ा को दिया था। जिसे उन्होनें चुपचाप अकेले में दिया था। वह जानते थे उनकी आपा के घर की औकात सौ रूपये की नही है उससे कहीँ बहुत ज्यादा है। इससे ज्यादा तो वह लोग घर के नौकरों को दे देतें हैं। मगर क्या करते उनकी जेब की हैसियत इससे ज्यादा नही थी।अपने जानिब से उन्होने खान साहब को काफी समझाया भी था। नतीजा सिफर निकला। जाते-जाते वह इतना जरुर कह गये थे- "आपा, कभी ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 37
भाग 37केस अपनी जगह चल रहा था और जिन्दगी अपनी जगह। शहर क्या पूरा मुल्क ही फैसले के इन्तजार था। यही कि फिज़ा क्या कर रही है? उसका अगला कदम क्या होगा? तीन तलाक को लेकर कोर्ट क्या फैसला सुनाता है? बगैहरा-बगैहरा। राजनैतिक पार्टियां अपनी रोटियाँ सेकने में लगी थीं और फिज़ा की खीचा तानी हो रही थी। सभी उसे अपनी पार्टी का मील का पत्थर मान रहे थे। एक ही नही बल्कि कई पार्टियां उसे अपने यहाँ आने का न्योता दे चुकी थीं। लेकिन अक्सर ऐसी आपा-धापी इन्सान को गुमराह कर देती है। समझ में नही आता क्या ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 38
भाग 38उसे अकेले बाहर निकलने की इज़ाज़त नही थी। फिर भी जब मंजिल सामने हो तो जोश आ ही है और रास्तें दिखाई देने लगते हैं। वैसे भी आज वो किसी की प्रेरणा बाहर निकाल रही थी।चेतना ने घर से निकल कर ई रिक्शा किया और उस इलाके में पहुँच गयी जहाँ वो जाँबाज लड़की अपने वालदेन के संग रहती थी। थोड़ी सी पूछताछ के बाद पता लग गया। किसी ने बताया- 'आगे से बायें मुड़िये, बस आपको पुलिस की बर्दी दूर से दिख जायेगी, जो उसकी हिफाज़त के लिये है। वहीँ उसका घर है।'चेतना जब वहाँ पहँची तो ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 39
भाग 39इस बार दोनों ही ठहाका लगा कर हँस दी थी। फिज़ा की अम्मी कभी चेतना तो कभी फिज़ा बात को अपनी रजामंदी की मोहर लगा रही थीं। वहाँ का माहौल बड़ा ही खुशगवार था। जरा भी नही लग रहा था कि वो दोनों एक गंभीर मुद्दे पर बात कर रहीं थीं। लगभग एक घण्टें से ऊपर हो चुका था। चेतना ने अपनी कहानी का खाका खींच लिया था। अभी कुछ सवाल और बाकी थे। शायद बीच में एक ब्रेक जरुरी था। चाय एक बार फिर से आ गयी थी। चेतना अपनी कहानी के हर किरदार के साथ आदिल ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 40
भाग 40उस मुलाकात के करीब चार माह के बाद उन्नीस सितम्बर दो हजार अटठाहरह को केन्द्र सरकार ने एक जारी किया जिस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी थे। जिसमें साफ-साफ कहा गया था- 'आज के बाद एक साथ तीन तलाक प्रतिबन्धित होगा। एक साथ तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल हो सकती है। अत: इसे अब अपराध की श्रेणी में रखा जायेगा। साथ ही ये भी यकीन दिलाया गया कि जल्दी ही ये अध्यादेश संसद में पारित किया जायेगा।' इस अध्यादेश के पारित होते ही पूरे मुल्क़ में खुशी की लहर दौड़ गयी थी। चर्चाओं ने एक ...Read More
मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 41 - अंतिम भाग
भाग 41आज शाम को पाँच बजे आरिज़ से मिलने का वक्त तय हुआ था। ठीक पाँच बजे चेतना फिज़ा बीती हुई जिन्दगी से रु-ब-रू हुई। वह उस घर में आई थी जहाँ फिज़ा ने एक बरस गुजारा था। एक बड़े से हॉलनुमा ड्राइंगरुम में उसे बैठाला गया था, जहाँ शानदार नक्काशी का वुडवर्क, कीमती, बड़े और गुदगुदे सोफे, दीवारों पर डिजाइनर पेंट और चमचमाती टाइलों का फर्श, चेतना ने वहाँ की शानोशौकत का अन्दाजा लगा लिया था। उसके साथ ड्राइंगरुम में आरिज़ और उसकी अम्मी बैठे थे। चाँदी सी चमचमाती ट्रे में दो पानी के गिलास के साथ बादाम, ...Read More