त्रिजटा पर्वत श्रृंखला पर घनें वन के बीच एक पुराना महल बना है जहाँ रहती है एक प्रेतनी,जिसका नाम कालवाची है,उसकी आयु लगभग पाँच सौ वर्ष होगी,किन्तु वो अभी भी नवयौवना ही दिखाई पड़ती है,इसका कारण है कि दस दिनों के पश्तात् किसी भी नवयुवक या नवयुवती का हृदय उसका भोजन बनता है,जब उसे किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खाने को नहीं मिलता तो वो वृद्ध होती जाती है,उसके केश श्वेत होते जाते हैं,आँखें धँस जातीं हैं एवं उसका त्वचा की रंगत समाप्त होती जाती है,इसलिए वो इस बात का बहुत ध्यान रखती है,अपनी इस अवस्था के आने पहले ही वो किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खा लेती है और इसी कार्य हेतु वो कुछ समय पहले राजा कुशाग्रसेन के राज्य वैतालिक राज्य गई थी...... वैतालिक राज्य में उसने भ्रमण किया और उसे वैतालिक राज्य अत्यधिक पसंद आया तो उसने सोचा क्यों ना मैं कुछ दिनों के लिए इस राज्य में रूक जाऊँ,यहाँ मुझे सरलता से हृदय का भक्षण करने को मिल जाया करेगा,फिर मैं तो प्रेतनी हूँ किसी भी वृक्ष पर सरलता से वास कर सकती हूँ,अपनी गोपनीयता बनने में मुझे यहाँ सरलता भी रहेगी,दिन में सुन्दर युवती का वेष धर लिया करूँगी और रात को किसी वृक्ष पर सो जाया करूँगी और फिर यही सब सोचकर कालवाची ने वैतालिक राज्य में रहने का निर्णय लिया.....
Full Novel
कलवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(१)
त्रिजटा पर्वत श्रृंखला पर घनें वन के बीच एक पुराना महल बना है जहाँ रहती है एक प्रेतनी,जिसका नाम है,उसकी आयु लगभग पाँच सौ वर्ष होगी,किन्तु वो अभी भी नवयौवना ही दिखाई पड़ती है,इसका कारण है कि दस दिनों के पश्तात् किसी भी नवयुवक या नवयुवती का हृदय उसका भोजन बनता है,जब उसे किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खाने को नहीं मिलता तो वो वृद्ध होती जाती है,उसके केश श्वेत होते जाते हैं,आँखें धँस जातीं हैं एवं उसका त्वचा की रंगत समाप्त होती जाती है,इसलिए वो इस बात का बहुत ध्यान रखती है,अपनी इस अवस्था के आने पहले ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(२)
कालवाची मोरनी का रूप धरकर कुशाग्रसेन को निहारने लगी एवं उस पर दृष्टि रखकर उसके क्रियाकलापों को देखने लगी,कुशाग्रसेन कुछ समय तक उस वन में कुछ खोजने का प्रयास किन्तु उसे वहाँ कुछ भी दिखाई ना दिया,उसे ये ज्ञात था कि उस वन के आस पास ही उन मृतकों के मृत शरीर मिले थे,इसका तात्पर्य था कि वो हत्यारा उसी स्थान पर ही वास करता है किन्तु कुशाग्रसेन को अभी तक उस हत्यारे के विषय में कोई भी चिन्ह्र नहीं मिले थे,इसलिए उन्होंने पुनः राजमहल जाने का सोचा क्योंकि उन्हें अपने माता पिता और रानी कुमुदिनी की चिन्ता हो ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(३)
कालवाची वृक्ष पर मोरनी के रूप में यूँ ही अचेत सी लेटी थी,तभी एक कठफोड़वा उसके समीप आया एवं बगल में बैठ गया,पक्षियों की भाषा में उसने कालवाची से कुछ पूछा,किन्तु कालवाची पक्षी होती तो उसकी भाषा समझ पाती,इसलिए उसकी भाषा समझने हेतु उसने उसे मानव का रूप दे दिया एवं स्वयं युवती का रूप धारण कर लिया.... ऐसा चमत्कार देखकर पक्षी स्तब्ध रह गया एवं अब उसका रूप मनुष्य की भाँति हो गया हो गया था इसलिए वो मनुष्यों की भाँति वार्तालाप भी कर सकता था,अन्ततः उसने कालवाची से पूछा.... तुम कौन हो एवं यहाँ वृक्ष पर क्या ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(४)
कुशाग्रसेन ने सोचा क्यों ना वो उसी झरने के समीप वाले वृक्ष के तले रात्रि बिताएं जिस स्थान पर रात्रि बिताई थी,यही सोचकर वो उस झरने के समीप बढ़ चला,अग्निशलाका(मशाल) का प्रकाश उन्हें मार्ग दिखाता चला जा रहा था और वें उस ओर बढ़े चले जा रहे थे..... कुछ समय पश्चात वें झरने के समीप पहुँचे एवं उन्हें वो वृक्ष भी दिखा,उन्हें उस वृक्ष तले आता देखकर मोरनी बनी कालवाची के मुँख पर प्रसन्नता के भाव प्रकट हुए एवं उसने कौत्रेय को निंद्रा से जगाया,कौत्रेय भी अभी कठफोड़वे के रूप में था,जागते ही कौत्रेय ने कालवाची से पूछा.... मुझे ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(५)
कौत्रेय अतिथिगृह में बैठा राजा की प्रतीक्षा करने लगा,कुछ समय पश्चात कुशाग्रसेन अतिथिगृह पहुँचे और कौत्रेय से पूछा..... जी!आपका नाम जान सकता हूँ... जी!मेरा नाम कौत्रेय है,कौत्रेय बोला... आप को उस हत्यारे के विषय में क्या क्या ज्ञात है?कुशाग्रसेन ने पूछा..... जी!मुझे तो केवल इतना ज्ञात है कि उस हत्यारे को एक युवती ने देखा था और मुझे उसने ही बताया कि उसने हत्यारे को देखा है,कौत्रेय बोला.... युवती ने देखा....किस युवती ने देखा.....कहाँ रहती है वो....?कुशाग्रसेन ने पूछा... वो वन में मिली थी मुझे तभी उसने मुझसे ये बात कही थी,किन्तु वो कहाँ रहती है ये तो मुझे ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(६)
कालवाची की दृष्टि जैसे ही कुशाग्रसेन से मिली तो उसने लज्जावश अपने नयनपट बंद कर लिए,कुशाग्रसेन भी अभी तक को एकाग्रचित होकर देख रहे थे,दोनों के मध्य का मौन कौत्रेय ने तोड़ने का प्रयास किया एवं वो राजा कुशाग्रसेन से बोला.... महाराज!इसका नाम कालिन्दी है एवं ये उस ओर एक कुटिया में रहती है,बेचारी अत्यन्त निर्धन है,बेचारी के भाग्य में पर्याप्त मात्रा में भोजन भी नहीं लिखा,मुझे इस पर दया आ गई तो मैने इससे कहा कि हमारे वैतालिक राज्य के राजा कुशाग्रसेन अत्यन्त ही दयालु प्रवृत्ति के हैं,वें अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेगें,इसे तो मेरी बात पर विश्वास ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(७)
तभी कालवाची बोल पड़ी.... महाराज!ये तो आपके राज्य में ही निवास करते हैं,मैंने देखा है इनका निवासस्थान,क्योंकि एक दिन इनके निवास पर काम माँगने गई थी तो इनकी पत्नी ने मुझसे बड़ी निर्दयता से बात की और मुझे वहाँ से भगा दिया,मुझे उनका स्वाभाव तनिक भी नहीं भाया.... कौत्रेय!क्या तुम्हारी पत्नी इतनी निर्दयी है?कुशाग्रसेन ने पूछा.... महाराज!वो क्या है ना!मेरी पत्नी अत्यधिक कुरूप है,तन हथिनी की भाँति भारी एवं बैडौल हो गया है,रूप के नाम पर ईश्वर ने ना नैन-नक्श दिए एवं ना रंग ,सो किसी रूपवान युवती को देखकर उसे सहन नहीं होता इसलिए अपने समक्ष वो ऐसे ...Read More
कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(८)
कुशाग्रसेन के मुँख पर चिन्ता के भाव देखकर सेनापति व्योमकेश बोले.... महाराज!ऐसे चिन्तित होने से कुछ नहीं होने वाला,अब उस हत्यारे को बंदी बनाना अनिवार्य हो गया है,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते.... सेनापति व्योमकेश आप इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं?क्या उस हत्यारे को बंदी बनाना इतना कठिन है,राजनर्तकी मत्स्यगन्धा ने पूछा.... राजनर्तकी मत्स्यगन्धा आप यहाँ कैसें?सेनापति व्योमकेश ने पूछा..... जी!मैं तो कालिन्दी के विषय में महाराज से वार्ता करने आई थी,किन्तु यहाँ आकर देखती हूँ कि महाराज तो किसी और ही समस्या से घिरे हुए,मैने उन्हें एक और समस्या बता दी....मत्स्यगन्धा बोली... ओह....महाराज के ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(९)
योजना पर सभी का विचार विमर्श होने के पश्चात सेनापति व्योमकेश एवं राजनर्तकी मत्स्यगन्धा दोनों ही अपने अपने निवासस्थान गए,रानी कुमुदिनी एवं राजा कुशाग्रसेन भी अपने कक्ष में रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगे,रात्रि हुई तो रानी कुमुदिनी ने दासी से राजा कुशाग्रसेन के लिए भोजन परोसने को कहा,राजा कुशाग्रसेन भोजन करने बैठे एवं रानी कुमुदिनी उन्हें बेनवा(पंखा)झलने लगी,महाराज कुशाग्रसेन ने शीघ्रतापूर्वक भोजन ग्रहण किया एवं रानी कुमुदिनी को अपनी योजनानुसार किसी कार्य को पूर्ण करने हेतु संकेत दिया,रानी कुमुदिनी शीघ्र ही राजभोजनालय पहुँची एवं वें कुछ भोजन पत्रको में लपेटकर राजा कुशाग्रसेन के समक्ष उपस्थित हुईं,राजा कुशाग्रसेन ने ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१०)
जब कालवाची ने कोई उत्तर ना दिया तो कुशाग्रसेन ने तनिक दीर्घ स्वर से पुनः कालिन्दी से पूछा.... कौत्रेय है कालिन्दी!मेरे प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देती? जी!महाराज!वो बाहर गया है,कालिन्दी ने झूठ बोला... किन्तु!क्यों?रात्रि को बाहर क्यों गया है वो?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... जी!महाराज!अपनी पत्नी से मिलने,कालिन्दी ने पुनः झूठ बोला... ठीक है यदि वो अपने निवासस्थान गया है तो तुम्हें मुझसे झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी कि वो अपने कक्ष में सो रहा है,ये तो समझ आ गया मुझे कि वो अपनी पत्नी से भेट करने गया है,परन्तु!ये कठफोड़वा!यहाँ क्यों है?महाराज कुशाग्रसेन ने क्रोधित होकर कालिन्दी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(११)
कुछ समय पश्चात सबके मध्य कुछ वार्तालाप हुआ एवं कोई योजना बनी,इसके उपरान्त सेनापति व्योमकेश एवं राजनर्तकी मत्स्यगन्धा अपने निवासस्थान लौट गए,राजा कुशाग्रसेन पुनः रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगें किन्तु उनका पूर्ण दिन बड़ी कठिनता से बीता,रात्रि हुई एवं वें रानी कुमुदिनी से कुछ वार्तालाप करने के पश्चात शीशमहल की ओर चल पड़े,वें शीशहमल पहुँचे एवं उन्होंने कालिन्दी के कक्ष की ओर प्रस्थान किया,वें अब कालिन्दी के कक्ष के समक्ष थे उन्होंने किवाड़ पर थाप देकर पुकारा..... कालिन्दी.....कालिन्दी!मैं कुशाग्रसेन,किवाड़ खोलो प्रिऐ! किन्तु भीतर से कोई स्वर ना आया,राजा कुशाग्रसेन ने पुनः प्रयास किया,पुनः किवाड़ पर थाप देकर कालिन्दी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१२)
अब महाराज कुशाग्रसेन अत्यधिक चिन्तित थे,उन्हें शीघ्रतापूर्वक ये समाचार सेनापति व्योमकेश को देना था,किन्तु वें यदि शव को वहीं चले जाते तो कोई ना कोई वन्य जन्तु पुनः उस शव का भक्षण करने हेतु उस स्थान पर आ पहुँचता इसलिए महाराज कुशाग्रसेन ने इस विषय पर पुनः विचार करके राजमहल जाने की इच्छा त्याग दी और वहीं उस शव का निरीक्षण करने लगें,किन्तु वहाँ उन्हें कठिनता हो रही थी,ना वहाँ बैठने योग्य स्थान था और ना ही वृक्षों की छत्रछाया थी जिसके तले महाराज कुशाग्रसेन अपनी रात्रि काट सकते,चूँकि रात्रि का समय था एवं वहाँ अग्नि प्रज्वलित करने हेतु ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१३)
कालवाची ने मत्स्यगन्धा की ग्रीवा को अत्यधिक दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा था,मत्स्यगन्धा बोलने का प्रयास कर रही थी किन्तु वो कर भी बोल नहीं पा रही थीं,वो निरन्तर ही स्वयं की ग्रीवा कालवाची के हाथ से छुड़ाने का प्रयास करती रही ,किन्तु सफल ना हो सकी.... कालवाची मत्स्यगन्धा की ग्रीवा पकड़े हुए यूँ ही पवन वेग से उड़कर शीशमहल के प्राँगण की वाटिका में जा पहुँची,कालवाची का बीभत्स रूप एवं अँधियारी रात्रि,आज तो मत्स्यगन्धा के प्राण जाने निश्चित थे,जब मत्स्यगन्धा की दशा अत्यधिक दयनीय हो गई एवं कालवाची को पूर्ण विश्वास हो गया कि वो अपनी सहायता हेतु किसी को ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१४)
कालिन्दी का ऐसा अभिनय देखकर महाराज कुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश अचम्भित थे कि ये हत्यारिन पहले तो अत्यधिक निर्मम से निर्दोष प्राणियों की हत्या कर देती है इसके उपरान्त झूठे अश्रु बहाकर अभिनय करती है,एक ओर खड़े होकर महाराज कुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश कालिन्दी का ये स्वाँग देख ही रहे थे कि अब वहाँ कौत्रेय आ पहुँचा,अब कालिन्दी यूँ रो रही थी तो कौत्रेय भी कहाँ शान्त रहने वाला था,उसने भी कालिन्दी की भाँति अपना अभिनय प्रारम्भ कर दिया.... दोनों का ये झूठा अभिनय अब महाराज कुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश के लिए असहनीय था,इसलिए कुशाग्रसेन ने शीघ्र ही सैनिकों ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१५)
इधर शीशमहल में कालवाची और कौत्रेय,कालवाची के कक्ष में बैठकर आपस में वार्तालाप कर रहे थे,जो कुछ इस प्रकार कालवाची!कहीं ऐसा तो नहीं कि महाराज को हम दोनों पर संदेह हो गया हो,कौत्रेय बोला... मुझे तो कुछ भी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ,मुझे सब सामान्य सा लगा,कालवाची बोली.... तुम्हें सब सामान्य क्यों लगा?कौत्रेय ने पूछा... ऐसे ही,राजनर्तकी की हत्या हुई है तो महाराज एवं सेनापति का चिन्तित होना एक सामान्य सी बात है,किसी भी राज्य का राजा ऐसा ही व्यवहार करता ,जो महाराज कर रहे थे,कालवाची बोली.... यदि ये सामान्य सी बात थी तो महाराज ने इतना पहरा क्यों लगा ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१६)
कौत्रेय के शीशमहल से बाहर जाते ही गुप्तचर हीरामन सुए ने कालवाची और कौत्रेय के मध्य हुई सभी बातें सेनापति व्योमकेश को बता दीं,सेनापति व्योमकेश तो इसी प्रतीक्षा में थे कि कब कालवाची का शरीर क्षीण हो एवं कौत्रेय कठफोड़वें के रूप में शीशमहल के बाहर जाएं और वें अपनी योजना को परिणाम तक पहुँचा सकें,सेनापति व्योमकेश ने एक बात को सभी से गुप्त रखा था और वो बात ये थी कि उनके तातश्री के मित्र बाबा कालभुजंग आ चुके थे,ये बात सेनापति व्योमकेश ने महाराज कुशाग्रसेन से भी गुप्त रखी थी,सेनापति व्योमकेश नहीं चाहते थे कि ये बात ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१७)
अब कालवाची कक्ष के पटल से नींचे उतर कर आई और अचेत होकर धरती पर गिर पड़ी,क्योंकि वो कक्ष पटल पर चिपके चिपके निढ़ाल हो चुकी थीं,थकान ने उसके शरीर को मंद कर दिया था,कालवाची की ऐसी दशा देखकर महाराज कुशाग्रसेन बोले.... कालवाची! क्या हुआ तुम्हें? किन्तु कालवाची ने कोई उत्तर ना दिया,तब महाराज कुशाग्रसेन ने कालवाची के समीप जाकर उसके हाथ को स्पर्श करके डुलाया,तब जाकर कालवाची कराहते हुए बोली.... महाराज!मैं अत्यधिक दयनीय अवस्था में हूँ,जब तक मुझे मेरा भोजन नहीं मिलेगा तो मैं ऐसे ही मृतप्राय सी रहूँगी,मैं बिना भोजन के कई वर्षों तक जीवित तो रह ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१८)
अन्ततः कौत्रेय उन दोनों पक्षियों के समीप वार्तालाप हेतु पहुँचा एवं उसी शाखा पर जाकर उन दोनों के समीप बैठ गया,तब उन दो पक्षियों में से एक ने पूछा.... मित्र!क्या तुम मार्ग भटक गए हो? तब कौत्रेय बोला.... नहीं मित्र!मैं तो ये ज्ञात करना चाहता था कि अभी जो तुम दोनों के मध्य वार्तालाप हो रहा था क्या वो सत्य है? यदि ये सत्य है तो कृपया करके मुझे उस स्थान के विषय में कुछ बताओगे... तब वो पक्षी बोला... हाँ!मित्र!ये बिल्कुल सत्य है,कल रात्रि मैंने अपनी आँखों के समक्ष ये घटित होते देखा था... तो वो स्थान किस ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१९)
किन्तु कौत्रेय निरन्तर प्रयास करता रहा और ऐसे ही दो वर्ष और व्यतीत हो चुके थे,अन्ततः कौत्रेय को अपने में सफलता प्राप्त हुई,वृक्ष के तने को फोड़कर उसने कालवाची को उस वृक्ष से मुक्त करवा लिया,किन्तु अभी कालवाची इस अवस्था में नहीं थी कि वो कोई कार्य कर सके,वो अत्यधिक वृद्ध एवं निष्प्राण सी हो चुकी थी,कालवाची को भोजन की आवश्यकता थी एवं उसका भोजन किसी प्राणी का हृदय था,कौत्रेय ये सोच रहा था कि कालवाची के लिए भोजन कहाँ से लाएं? इसके लिए वो विचार कर रहा था, वह कालवाची को यूँ ऐसी दशा में छोड़ भी नहीं ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२०)
कालवाची की बात सुनकर कौत्रेय बोला... "कालवाची!इतनी उदास मत हो,कदाचित यही तुम्हारा भाग्य और समय की नियति है,मैं तो एक कठफोड़वा था,किन्तु तुम्हारे कारण मैं ये मानव रूप लेकर तुमसे वार्तालाप कर पा रहा हूँ,सभी को यहाँ सबकुछ अपनी इच्छा अनुसार नहीं मिलता,संसार में हमें जीवन जीने के लिए कोई ना कोई समझौता करना ही पड़ता है," "कदाचित तुम सत्य कह रहे हो कौत्रेय!"कालवाची बोली.... "अच्छा अब ये सब छोड़ो एवं ये बताओ कि तुम इसी वृक्ष पर रहना चाहोगी या हम दोनों कहीं और चलें" ,कौत्रेय ने पूछा.... तब कालवाची बोली... "नहीं! कौत्रेय!मैं यहाँ कदापि नहीं रहना चाहूँगी,यदि ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२१)
कालवाची ने जब स्वयं को सुन्दर युवती एवं कौत्रेय को मानव रूप में परिवर्तित किया तो तभी कौत्रेय ने से पूछा.... "अब क्या चेष्टा है तुम्हारी?" "बस तुम देखते जाओ" कालवाची बोली.... "मैं कुछ समझा नहीं,तुम करना क्या चाहती हो"?,कौत्रेय ने पूछा.... "मैनें कहा ना हस्तेक्षप मत करो,तुम बस देखते जाओ कि अब आगें क्या होगा?",कालवाची बोली... "मुझे तुम्हारे प्रयोजन पर संदेह हो रहा है"कौत्रेय बोला.... "तुम तो अकारण ही मेरे ऊपर संदेह कर रहे हो"कालवाची बोली... "संदेह नहीं कर रहा,बस तनिक भयभीत हूँ"कौत्रेय बोला... "भयभीत....वो भला क्यों?" कालवाची ने पूछा... "वो इसलिए कि अभी जो बारह वर्षों से ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२२)
कालवाची की बात सुनकर भूतेश्वर बोला.... "आज मेरी इच्छा पूर्ण हुई" "कौन सी इच्छा"?,कालवाची ने पूछा... "प्रेत देखने की",भूतेश्वर "तो बताओ मेरी सहायता करोगे"कालवाची ने पूछा... तब भूतेश्वर बोला... "मुझे सिद्धियाँ तो प्राप्त हैं किन्तु मैंने ऐसी विद्या प्राप्त नहीं की जो किसी प्रेत को मानव रूप में परिवर्तित कर सके" "ओह!तो मुझे निराश होना पड़ेगा"कालवाची बोली... तब भूतेश्वर बोला... "तुम्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है,मेरा एक मित्र है जिसे प्रेत को मानव रुप में परिवर्तित करने की विद्या आती है,कदाचित वो तुम्हारी कोई सहायता कर सके" "किन्तु मैं उससे कैसें मिल सकती हूँ"?,कालवाची ने पूछा... "इसके लिए ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२३)
कालवाची को चिन्तित देखकर भैरवी ने पूछा.... "मेरा नाम सुनकर तुम चिन्तित क्यों हो गई"? "कुछ नहीं,ऐसे ही",कालवाची बोली.... सब बातें छोड़ो ,ये बताओ कि तुम दोनों कौन हो?",भैरवी ने पूछा... "ये मेरी बहन और मैं इसका भ्राता हूँ"कौत्रेय बोला... "अच्छा!वो तो ठीक है ,परन्तु तुम दोनों इतनी रात्रि में यहाँ क्या कर रहे हो?कहीं तुम दोनों भी मेरी भाँति दस्यु तो नहीं",भैरवी ने पूछा... "नहीं!ऐसा कुछ नहीं है,हम दोनों तो यात्री हैं ,यात्रा करने निकले थे,यहाँ लोगों की पुकार सुनी तो रूक गए",कालवाची बोली.... "मेरा नाम तो तुम लोगों ने जान लिया किन्तु अभी तक तुम दोनों ने ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२४)
कुमुदिनी के मुँख से जलपान की बात सुनकर कालवाची बोली... "भैरवी!जलपान का प्रबन्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है,क्योंकि दोनों ने व्रत ले रखा है,हम केवल फलाहार करते हैं,वो भी सायंकाल में" "इतनी कठिन तपस्या करने की क्या आवश्यकता है भला?",भैरवी बोली... "कर्बला को सुन्दर एवं बलिष्ठ पति चाहिए होगा,इसलिए इतनी कड़ी तपस्या कर रही है,कुमुदिनी बोली... ये सुनकर सभी हँसने लगे तभी कर्बला बनी कालवाची बोली... "ना रानी कुमुदिनी!अभी विवाह करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है,वो कारण तो कुछ और ही है ,जो मैं अभी आपको नहीं बता सकती" "मुझे रानी मत कहो कर्बला!मैं अभागन अब कहीं ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२५)
अब तक सब गहरी निंद्रा में डूब चुके थे,परन्तु कालवाची की निंद्रा उचट चुकी थी,वो सोच रही थी कि किसी दिन माँ पुत्री को ये ज्ञात हो गया कि मैं ही कालवाची हूँ तो तब क्या होगा?कितने विश्वास के संग भैरवी मुझे अपने घर ले आई है,यदि उसका विश्वास टूटा तो उसके हृदय पर क्या बीतेगी? अब जो भी हो,मुझे माँ पुत्री की सहायता करनी ही होगी,उनका राज्य वापस दिलवाना ही होगा,महाराज ने जो व्यवहार मेरे संग किया था, उसका दण्ड इन माँ पुत्री को नहीं मिलना चाहिए,ये दोनों तो बेचारी निर्दोष हैं और यही सोचते सोचते कालवाची निंद्रा ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२६)
अत्यधिक खोजने के उपरान्त उन सभी को किसी ने एक अश्वों के व्यापारी के विषय में बताया,तो तीनों उस पर पहुँचें,उस स्थान का पर्यवेक्षण करने के पश्चात उन सभी ने ये योजना बनाई कि रात्रि के समय यहाँ आकर वें अश्वों को वहाँ से ले जाऐगें,योजना के अनुसार वें सभी रात्रि के समय वहाँ पहुँचे एवं अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया,कर्बला एवं कुबेर तो अपने अपने अश्वों को लेकर भाग निकले किन्तु बेचारी भैरवी को उन अश्वों के संरक्षक ने पकड़ लिया एवं भैरवी के मुँख पर पट्टी बाँध दी,इसके पश्चात उस संरक्षक ने उसे एक एकान्त स्थान पर ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२७)
जब कर्बला और कुबेर को ये ज्ञात हो गया कि वो ही अचलराज है तो दुर्गा बनी भैरवी अचलराज बोली... "यही मेरे मित्र हैं,ये है कर्बला एवं ये इसका भ्राता कुबेर एवं मुझसे तो तुम परिचित ही हो कि मैं दुर्गा हूँ" जब कुबेर बने कौत्रेय ने ये सुना तो वो बोला... "दुर्गा...परन्तु तुम तो...." तब कुबेर की बात मध्य में काटते हुए दुर्गा बनी भैरवी बोली... "हाँ...हाँ...मैं दुर्गा हूँ...और कितनी बार मेरा नाम पुकारोगे कुबेर"! "हाँ...हाँ...दुर्गा!तुम ठीक तो हो ना!",कर्बला बनी कालवाची बोली... "हाँ!मैं ठीक हूँ,तुम कितनी अच्छी हो सखी जो मुझे लेने आ गई",भैरवी बोली... तब कर्बला ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२८)
उस दिन से वें तीनों अश्वशाला में ध्यानपूर्वक कार्य करने लगें,यदि उन्हें कुछ ज्ञात नहीं होता तो अचलराज उनका कर देता,वें दिनभर अश्वशाला में कार्य करते और रात्रि में अचलराज के घर पर विश्राम करते,समय यूँ ही अपनी गति से चल रहा था,दुर्गा बनी भैरवी जब भी अचलराज को देखती तो उसे अपने बाल्यकाल के दिन स्मरण हो आते,कभी कभी तो वो यूँ ही अचलराज को पलक झपकाए बिना देखती रहती एवं मन में ये सोचती कि कितना अच्छा हो कि वो अचलराज को ये बता दे कि वो ही भैरवी है और तुम्हें खोजने ही आई है,किन्तु अत्यधिक ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२९)
ज्यों ही अचलराज ने दुर्गा बनी भैरवी का हाथ पकड़ा तो भैरवी बोली.... "मेरा हाथ छोड़ो,कोई देख लेगा तो समझेगा?" "क्या समझेगा भला? यही कि कहीं तुम मेरी प्रेयसी तो नहीं",अचलराज बोला... "ए!अपनी सीमा में रहो",भैरवी क्रोधित होकर बोली... "सीमा में तो हूँ ही देवी जी! और तुम जैसी लड़की भला किसी की प्रेयसी बनने योग्य है,मैं तो कभी भी तुम्हें अपनी प्रेयसी ना बनाऊँ",अचलराज बोला... "तुम्हारी प्रेयसी बनने में रुचि है भला किसे",दुर्गा बनी भैरवी बोली... "ओहो....तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि ना जाने कितनी ही सुन्दरियाँ मुझसे विवाह करने हेतु मरी जा रहीं है," अचलराज बोला... "ओहो....तो फिर ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३०)
कौत्रेय के कहने पर कालवाची ने अचलराज पर ध्यान देना प्रारम्भ किया तो कर्बला बनी कालवाची ने पाया कि अत्यधिक सुन्दर है एवं उसका हृदय भी करूणा से भरा था,उसकी मृदु वाणी एवं सौम्य व्यवहार ने अश्वशाला के सभी जनों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा था,कालवाची ने ये भी देखा कि अचलराज वीर एवं साहसी भी है,वें सभी गुण अचलराज में उपस्थित थे जो उसने कभी महाराज कुशाग्रसेन में देखे थे,किन्तु कालवाची किसी से प्रेम करके पुनः वही भूल नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने इस विचार को मन से त्याग दिया, कुछ दिवस यूँ ही बीते कि ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३१)
अचलराज के प्रश्न पूछने पर व्योमकेश बोले... "पुत्र! ना जाने नगर में कैसा कोलाहल मचा है तुम तनिक जाकर देखो कि क्या बात है"? "जी!पिताश्री!आप तनिक समय यहाँ प्रतीक्षा करें मैं अभी देखकर आता हूँ कि क्या बात है"? और ऐसा कहकर अचलराज अपने बिछौने से उठा और नगर की ओर चला गया एवं कुछ समय पश्चात वो लौटकर वापस आया तो व्योमकेश ने पूछा... "पुत्र!कुछ ज्ञात हुआ कि क्या बात है?" तब अचलराज बोला.... "पिताश्री!किसी की हत्या हो गई है और हत्यारे ने मृत प्राणी की दशा अत्यधिक बिगाड़ दी है,उसका रक्त चूस लिया एवं उसके शरीर में ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३२)
कालवाची के मुँख के भावों को देखकर दुर्गा बनी भैरवी ने पूछा... "क्या हुआ सखी! तुम इस समाचार को भयभीत हो उठी क्या ?" "नहीं!मैं भयभीत नहीं हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली... "किन्तु तुम्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम इस घटना से अत्यधिक चिन्तित हो उठी हो", दुर्गा बनी भैरवी बोली... "नहीं!सखी!मैं तो कुछ और ही सोचकर विकल हो उठी थी",कर्बला बनी कालवाची बोली.... "मुझे अपने हृदय की बात नहीं बताओगी,क्या मैं तुम्हारी कोई नहीं लगती?",दुर्गा बनी भैरवी बोली.... तब बात को सम्भालते हुए कौत्रेय बना कुबेर बोला.... " वस्तुतः बात ये है दुर्गा! कि वर्षों पूर्व हमारे ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३३)
जब कर्बला को अत्यधिक खोजने पर वो ना मिली तो अचलराज ने अपने पिता व्योमकेश जी से अनुमति माँगते कहा.... "पिताश्री!यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं कर्बला को खोजने जाऊँ" "नहीं!पुत्र!तुम्हें उसके विषय में कोई जानकारी नहीं है कि वो कहाँ है तो उसे खोजने तुम कहाँ जाओगे ? " , व्योमकेश बोले... "पिताश्री!उसके विषय में जानकारी ना सही किन्तु उसे खोजने का प्रयत्न तो किया ही जा सकता है", अचलराज बोला... "ईश्वर करें ऐसा ना हुआ हो किन्तु यदि उस हत्यारे ने उसके साथ कुछ बुरा किया हो तब क्या होगा"?, व्योमकेश जी बोले... "आप ऐसा ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३४)
अब कुबेर बने कौत्रेय ने इस बात का लाभ उठाया और एक दिवस एकान्त में जाकर कर्बला बनी कालवाची बोला.... "कालवाची!तुमने देखा था ना कि तुम्हारे खो जाने पर अचलराज किस प्रकार व्याकुल हो उठा था", "तो इसका आशय मैं क्या समझूँ"?,कालवाची ने पूछा... "इसका आशय ये है बावरी कि वो तुमसे प्रेम करता है",कौत्रेय बोला... "किन्तु!ये कोई पूर्णतः विश्वास करने योग्य बात तो ना हुई",कालवाची बोली.... "अब तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं होता तो मैं क्या करूँ"?,कौत्रेय बोला.... "कौत्रेय! तुम तो रुठ गए",कालवाची बोली... "रूठूँ ना तो क्या करूँ?,तुम बात ही ऐसी कह रही हो,मैनें अचलराज की ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३५)
अन्ततः भैरवी अचलराज के अंकपाश से दूर हुई और दुखी होकर बोली.... "मुझे क्षमा करो अचलराज!मैनें आज तक तुमसे बात छुपाकर रखी कि मैं ही भैरवी हूँ" "किन्तु भैरवी!सच्चाई छुपाने का कारण क्या था"?,अचलराज ने पूछा... "मैं अत्यधिक निर्धन थी,लोगों के घरों में चोरी करके अपना जीवनयापन कर रही थी,इसलिए तुम्हें ये सब बताने में मुझे तनिक संकोच हो रहा था",भैरवी बोली... "तो तुमने मुझी उसी रात पहचान लिया था इसलिए तुमने मुझे अपना नाम दुर्गा बताया",अचलराज बोला.... "हाँ!,यही कारण था अपनी पहचान छुपाने का",भैरवी बोली... "पहचान छुपाने की क्या आवश्यकता थी भैरवी!मैं भी तो निर्धन हूँ",अचलराज बोला... "किन्तु!तुम ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३६)
कौत्रेय का ऐसा कथन सुनकर कालवाची बोली.... "ये क्या कह रहे हो कौत्रेय"? "ठीक ही तो कह रहा हूँ ही क्यों नहीं अचलराज के लिए भैरवी बन जाती",कौत्रेय बोला... "ये तो अचलराज के संग विश्वासघात होगा",कालवाची बोली... "कैसा विश्वासघात कालवाची? जो महाराज कुशाग्रसेन ने तुम्हारे संग किया था क्या वो विश्वासघात नहीं था, तुम उन्हें प्रेम करती थी और उन्होंने तुम्हारे संग क्या किया था वो तो स्मरण होगा ना तुम्हें कि भूल गई", कौत्रेय बोला.... "कुछ नहीं भूली कौत्रेय...! कुछ नहीं भूली किन्तु जो भूल महाराज कुशाग्रसेन ने की ,वही भूल मैं अचलराज के संग नहीं करना चाहती",कालवाची ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३७)
अचलराज के अंकपाश में जाते ही कालवाची अपना सुध-बुध खो बैठी और उसे स्वयं पर नियन्त्रण ना रहा,भैरवी का अनुचित व्यवहार देखकर अचलराज ने भैरवी बनी कालवाची को स्वयं से विलग करते हुए कहा... "भैरवी! ये क्या हो गया है तुम्हे,तुम आज ऐसा अनुचित सा व्यवहार क्यों कर रही हो"? "क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?",भैरवी बनी कालवाची ने पूछा... "नहीं!मैं तुमसे ऐसी अपेक्षा नहीं रखता भैरवी!",अचलराज बोला... "तुम तो मुझसे प्रेम करते हो ना! तो ये अनुचित कैसें हुआ",भैरवी बनी कालवाची बोली... "ये प्रेम नहीं वासना है भैरवी!",अचलराज बोला... "मेरे प्रेम को तुम वासना कह रहे हो अचलराज!",भैरवी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३८)
अन्ततः सभी की सहमति पर उन सभी ने उस नगर को त्यागकर वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान किया,वें मार्ग ही थे ,अभी वैतालिक राज्य नहीं पहुँचे थे,इसलिए रात्रि को वें सभी किसी वृक्ष के तले विश्राम करते और अगले दिन पुनः अपनी यात्रा प्रारम्भ करते,उस रात्रि भी सभी ने ऐसा ही किया,सभी ने एक वृक्ष के तले अग्नि प्रज्वलित करके भोजन पकाया एवं भोजन ग्रहण करके विश्राम करने लगे,अर्द्धरात्रि होने को थी,एकाएक कर्बला बनी कालवाची अपने भोजन हेतु जागी,कालवाची जागी तो एकाएक भैरवी भी जाग उठी किन्तु मारे आलस्य के वो अपने बिछौने पर ही लेटी रही ,बिछौने से ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३९)
जब अचलराज से वो कर्बला बन गई तो भैरवी ने उससे पूछा... "यदि तुम कर्बला हो तो अचलराज कहाँ "अचलराज कुबेर के संग गया है",कर्बला बोली... "मुझे ज्ञात है कि तुम कर्बला भी नहीं हो,यदि तुम कर्बला भी नहीं हो तो सत्य सत्य बताओ कि कौन हो तुम"?,भैरवी ने पूछा... "तुम सुनना चाहती हो तो सुनो कि मैं कौन हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली.... कर्बला बनी कालवाची अपना सत्य बताने ही जा रही थी कि तब तक वहाँ पर व्योमकेश जी आ पहुँचे और उन्होंने भैरवी के भयभीत एवं चिन्तित मुँख को देखकर पूछा.... "क्या हुआ भैरवी? तुम इतनी चिन्तित ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४०)
कालवाची के अश्रु कौत्रेय से देखे ना गए ,कुछ भी हो ,वो ही तो एकमात्र मित्र है उसकी इस में,कालवाची को उसने बारह वर्षों के कड़े परिश्रम एवं प्रतीक्षा के पश्चात पुनः पाया था इसलिए उससे उसका दुख देखा ना गया और वो उससे बोला.... "चिन्ता मत करो कालवाची!, अब चाहे जो भी परिणाम हो किन्तु आज मैं उन सभी को हम दोनों की सच्चाई बताकर रहूँगा,मैं भी झूठा अभिनय करते करते उकता गया हूँ और मैं भी अब अपने इस दोहरे चरित्र से मुक्ति चाहता हूँ" "तुम सच कह रहे हो कौत्रेय!तुम ऐसा करोगें", कालवाची ने कौत्रेय से ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४१)
उस दिन वें सभी अपनी यात्रा समाप्त नहीं कर पाएं क्योंकि रात्रि अधिक हो चुकी थी ,इसलिए उन्होंने एक के तले शरण ली,तब भैरवी बोली... "कालवाची!आज रात्रि तो तुम्हें अपना भोजन ग्रहण करने नहीं जाना,यदि जाना चाहती हो तो मैं अपना स्थान बदलकर कहीं और अपना बिछौना बिछा लूँ,क्योंकि अब मैं तुम्हारा वो बीभत्स रूप नहीं देख सकती", "नहीं!भैरवी!अभी मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं है,इतनी शीघ्र मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती",कालवाची बोली... "तब ठीक है,अब मैं निश्चिन्त होकर सो सकती हूँ",भैरवी बोली... "हाँ! तुम निश्चिन्त होकर सो जाओ सखी! तुम्हें भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है",कालवाची बोली... तब ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४२)
प्रातःकाल हुई तो सभी जागें और सभी बिलम्ब ना करते हुए नियत कार्यों से निश्चिन्त होकर यात्रा के लिए हो गए,त्रिलोचना ने सभी के लिए भोजन का प्रबन्ध किया और जब सभी ने वहाँ से जाने का विचार किया तो तभी भूतेश्वर व्योमकेश जी से बोला... "सेनापति व्योमकेश ! मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ", "हाँ! कहो भूतेश्वर कि क्या बात है",व्योमकेश जी बोलें... "मैं कहना चाह रहा था कि क्या हम दोनों भाई बहन भी आप सभी के संग वैतालिक राज्य चल सकते हैं,आपको इसमें कोई आपत्ति तो नहीं होगी", भूतेश्वर बोला.... "यदि तुम दोनों की इच्छा है ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४३)
"तो अचलराज ! अब चले राजमहल को ओर",कालवाची बोली... "हाँ! सखी! चलो",अचलराज ने युवती के स्वर में बोला... अचलराज बात पर पुनः सबको हँसी आ गई और तभी भैरवी ने पूछा... "अचलराज! अभी तुमने अपना नामकरण तो किया नहीं,वहाँ जाकर क्या कहोगे सबसे कि तुम कौन हो?", भैरवी बोली... "हाँ! इस बात का तो मैनें ध्यान ही नहीं दिया",अचलराज बोला.... "वैशाली....हाँ...वैशाली नाम उचित रहेगा",रानी कुमुदिनी बोली... "हाँ! तो वैशाली अब चले",कालवाची बोली... "हाँ! चलो कर्बला सखी!",अचलराज बोला... क्योंकि इस कार्य के लिए कालवाची पुनः कर्बला बन गई थी और दोनों सखियाँ आपस में बहनें बनकर राजमहल की ओर चल ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४४)
उधर कर्बला सेनापति बालभद्र के संग राजनर्तकी के पास चली गई और इधर महाराज गिरिराज ने वैशाली से अपने पर बैठने के लिए संकेत करते हुए कहा... "यहाँ बैठो प्रिऐ !" और वैशाली महाराज गिरीराज से कुछ दूरी पर बैठी तो महाराज गिरिराज बोलें.... "मेरे समीप बैठो प्रिऐ! इतनी सुन्दर युवती का मुझसे दूर बैठना उचित नहीं है,मैं तो तुम्हें अपने हृदय में स्थान देना चाहता हूंँ और तुम हो कि मुझे दूर जा रही हो",महाराज गिरिराज बोले... "ऐसी बात नहीं है महाराज! मैं निर्धन आपके बिछौने पर बैठने के योग्य नहीं हूँ",वैशाली बोली... "नहीं! प्रिऐ! किसने कहा कि ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४५)
"वत्सला क्या हुआ था,तुम्हारे विवाह वाले दिन",वैशाली बने अचलराज ने पूछा... तब वत्सला बोली... "राजकुमार सूर्यदर्शन पहले ही दूल्हे रूप में मण्डप में पधार चुके थे एवं मैं दुल्हन बनकर मण्डप में प्रवेश करने ही वाली थी कि तभी उस क्रूर गिरिराज ने हमारे राजमहल पर आक्रमण कर दिया,वो ये षणयन्त्र कई दिनों से रच रहा था एवं उसने इस कार्य हेतु मेरे विवाह वाला दिन ही चुना था" "इसके पश्चात क्या हुआ वत्सला!",वैशाली ने पूछा... तब वत्सला बोली.... "इसके पश्चात उसने मेरे पिता समृद्धिसेन ,मेरी माता अहिल्या और भाई चन्द्रभान की हत्या कर दी और जब राजकुमार सूर्यदर्शन ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४६)
"अचलराज! ये क्या कह रहे हो तुम?,महाराज कुशाग्रसेन एवं उनके माता पिता जीवित हैं",कालवाची ने पूछा... "हाँ! ये सत्य सूचना मुझे वत्सला ने दी",अचलराज बोला... "कौन वत्सला",?,कालवाची ने पूछा... "वो भी हम दोनों की भाँति यहाँ की दासी है,वो भी गिरिराज की सताई हुई है,गिरिराज ने उसके समूचे कुटुम्ब की हत्या कर दी,उसके होने वाले पति को भी मार दिया,वत्सला एक राजपरिवार से सम्बन्ध रखती है,वो प्रशान्त नगर के राजा समृद्धिसेन की पुत्री है",अचलराज बोला... "ओह...तो वो भी पीड़िता है",कालवाची बोली.... "हाँ!वो भी रात्रि के दूसरे पहर के पश्चात यहाँ आ जाएगी,तब तुम स्वयं ही उससे मिल लेना",अचलराज बोला.... ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४७)
अब तीनों राजमहल पहुँचकर पहले तो वैशाली के कक्ष में घुसे,इसके पश्चात कालवाची ने सभी का रुप बदला,तत्पश्चात सभी अपने कक्ष की ओर चले गए,दूसरे दिन पुनः महाराज गिरिराज ने वैशाली को रात्रि के समय अपने कक्ष में बुलाया और अपने समीप बैठने को कहा... वैशाली महाराज गिरिराज के समीप बैठते हुए अत्यधिक भयभीत थी कि कहीं गिरिराज के समक्ष उसका ये भेद ना खुल जाएं कि वो एक पुरूष है स्त्री नहीं, ये सभी विचार वैशाली बने अचलराज के मस्तिष्क में आवागमन कर रहे थे तभी गिरिराज बोला..... "प्रिऐ! तुम कितनी सुन्दर हो,मैं तुम्हारे समीप आने हेतु कब ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४८)
"मेरी इस विवशता पर तुम हँस रही हो कालवाची"!,वैशाली बना अचलराज बोला... "ना चाहते हुए भी मुझे तुम्हारी बातों हँसी आ गई अचलराज"!,कर्बला बनी कालवाची बोली... तब वैशाली बना अचलराज बोला... "तुम्हें ज्ञात ही कालवाची! कल रात्रि उस राक्षस ने मेरे कपोलों पर प्रगाढ़ चुम्बन लिया वो तो मैंने सहन कर लिया ,किन्तु जब उसने मेरे अधरों को छूने का प्रयास किया तो मैंने उसके मुँख में मदिरा का पात्र घुसा दिया,उसके स्पर्श से ही मुझे घृणा हो रही है,मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यदि मैं सारा दिन भी इत्र के सरोवर में डूबा रहूँ तो ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४९)
"तुम अचलराज हो और ये कालवाची! क्या सच कह रहे हो तुम दोनों",महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... "हाँ! महाराज! मैं अपराधिनी कालवाची हूँ,यहाँ हम दोनों रूप बदल कर आए हैं",सेनापति बालभद्र बनी कालवाची बोली... "किन्तु! तुम्हें तो वृक्ष के तने में स्थापित कर दिया गया था,तुम वहाँ से कैसें मुक्त हुई"?,महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... तब अचलराज बोला.... "महाराज!वो बहुत ही लम्बी कहानी और वो सब अभी सुनाने का हम लोगों के पास समय नहीं है,हम यहाँ रूप बदल कर केवल आपको ये सूचित करने आए थे कि राजकुमारी भैरवी और महारानी कुमुदिनी सकुशल हैं और मेरे पिताश्री सेनापति व्योमकेश जी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५०)
कौत्रेय को उदास देखकर कालवाची को कुछ अच्छा नहीं लगा और वो कौत्रेय से बोली.... "तुम्हें उदास होने की नहीं है कौत्रेय! बहुत ही शीघ्र मैं तुम सभी को भी वहाँ ले चलूँगी,क्योंकि मैं और अचलराज इस कार्य को अकेले नहीं कर सकते,मैं चाहती हूँ कि कुछ समय हम दोनों वहाँ रहकर सभी के भेद ज्ञात कर लें,इसके पश्चात ही तुम सभी को हम वहाँ ले जाएँ", "मुझे भी ले चलोगी ना!",त्रिलोचना ने पूछा... "हाँ...हाँ...तुम्हें भी ले चलूँगी और तुम्हारे भ्राता भूतेश्वर को भी",कालवाची बोली... "किन्तु! मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा"?,भूतेश्वर ने पूछा... "तुम भी हम सभी की सहायता ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५१)
अब रानी कुमुदिनी ने मन में सोचा ये तो इस बेचारी को भी ज्ञात नहीं कि इसकी पुत्रवधू धंसिका है? अब मैं क्या करूँ,कुछ समझ में नहीं आ रहा,अब मेरा यहाँ और अधिक समय तक रुकना उचित नहीं होगा,ये सूचना मुझे शीघ्र ही सभी तक पहुँचानी होगी, रानी कुमुदिनी ये सब सोच ही रही थी कि चन्द्रकला देवी ने उससे पूछा.... "पुत्री! तुम इतनी चिन्तामग्न क्यों हो गई"? तब रानी कुमुदिनी बोली.... "जी! मैं यह सोच रही थी कि जिस स्त्री का स्वामी ही उसका त्याग कर दे तो तब वो बेचारी स्त्री कहाँ जाए,अब मुझे ही देखिए,मेरे तो ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५२)
त्रिलोचना और कौत्रेय जब फल एकत्र करके वापस लौटे तो भैरवी ने पूछा.... "अत्यधिक बिलम्ब कर दिया तुम दोनों वापस आने में,कहीं पुनः तो नहीं झगडने लगे थे", "नहीं! भैरवी! भला हम क्यों झगड़ेगें?,हमें तो फल एकत्र करने में समय लग गया",त्रिलोचना बोली... "ये तो अद्भुत बात हो गई कि तुम दोनों बिना झगड़े ही यहाँ वापस गए",अचलराज बोला.... "ये सब बातें छोड़ो,लो ये फल खाओ,तुम्हें अत्यधिक भूख लग रही थी ना!",कौत्रेय बोला.... "हाँ! भूख तो अत्यधिक लग रही है,लाओ पहले मुझे फल दो",अचलराज बोला.... "हाँ...हाँ...तुम भी लो,हम दोनों बहुत से फल लेकर आए हैं,इन्हें खाकर सभी की छुधा ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५३)
और उन्होंने उस व्यक्ति से प्रसन्नतापूर्वक पुनः पूछा... "क्या आप सत्य कह रहे हैं,यही प्रसिद्ध वैद्य धरणीधर हैं"? "हाँ! यदि आपको मेरी कही बात पर संदेह है तो आप स्वयं वैद्य जी के पास जाकर उनसे उनका परिचय पूछ सकते हैं",वो व्यक्ति बोला.... "ऐसी कोई बात नहीं है महाशय! मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है और जो वट वृक्ष के तले समाधि लगाकर बैठीं हैं,वें युवती कौन हैं"?,व्योमकेश जी ने पूछा.... "जी! वें वैद्य जी की भान्जी हैं,जिनका नाम धंसिका है,सुना है वें किसी राज्य की रानी थी,किन्तु उनके स्वामी ने उनका त्याग कर दिया है"वो व्यक्ति बोला.... "ओह...ये ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - (५४)
मदिरापान करते करते सारन्ध अचेत सा होने लगा तो कालवाची ने सोचा कि अब क्या करूँ,इसे ऐसी अवस्था में छोड़कर चली जाऊँ या इसकी हत्या कर दूँ,किन्तु इसकी हत्या करने का विचार तो मुझे किसी ने नहीं दिया तो मैं भला इसकी हत्या कैसें कर दूँ,यदि मैनें किसी से बिना परामर्श के इसकी हत्या कर दी तो कहीं कुछ अनुचित ना हो जाएं,इसलिए अभी मैं इसकी हत्या का विचार त्याग देती हूँ,सबके विचार पर ही मैं इसे कोई दण्ड दे सकती हूँ और यही सब सोचकर सारन्ध के अचेत हो जाने पर कर्बला बनी कालवाची अपने कक्ष में लौट ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५५)
सभी धंसिका को लेकर चिन्तित थे किन्तु त्रिलोचना को धंसिका की अत्यधिक चिन्ता हो रही थी,वो जब रात्रि को करने हेतु अपने बिछौने पर लेटी तो,वो समझ नहीं पा रही थी कि धंसिका का ममता भरा स्पर्श उसे इतना प्रिय क्यों लगा? क्या कारण है कि उसके मन में धंसिका के लिए प्रेम की भावना उत्पन्न हो गई है,उसके समक्ष धंसिका एक जटिल प्रहेलिका की भाँति खड़ी थी जिसे वो सुलझा नहीं पा रही थी और उसने अपने मन में उठ रहे अन्तर्द्वन्द्व को अपने भ्राता भूतेश्वर से साँझा करना चाहा,इसलिए वो अपने बिछौने से उठकर भूतेश्वर के पास ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५६)
सभी धंसिका को लेकर चिन्तित थे किन्तु त्रिलोचना को धंसिका की अत्यधिक चिन्ता हो रही थी,वो जब रात्रि को करने हेतु अपने बिछौने पर लेटी तो,वो समझ नहीं पा रही थी कि धंसिका का ममता भरा स्पर्श उसे इतना प्रिय क्यों लगा? क्या कारण है कि उसके मन में धंसिका के लिए प्रेम की भावना उत्पन्न हो गई है,उसके समक्ष धंसिका एक जटिल प्रहेलिका की भाँति खड़ी थी जिसे वो सुलझा नहीं पा रही थी और उसने अपने मन में उठ रहे अन्तर्द्वन्द्व को अपने भ्राता भूतेश्वर से साँझा करना चाहा,इसलिए वो अपने बिछौने से उठकर भूतेश्वर के पास ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५७)
गिरिराज और धंसिका सरोवर तक पहुँचे और दोनों रथ से उतरने लगे तो धंसिका गिरिराज से बोली.... "सेनापति! कृपया!आप पर ही विराजमान रहें,केवल मैं ही पुष्प चुनने जाऊँगी", "किन्तु! धंसिका ! मैं भी तुम्हारे संग पुष्प चुनने हेतु जाना चाहता हूँ",गिरिराज बोला... "कृपया! आप इस कार्य हेतु कष्ट ना उठाएं,आपको पुष्पों की पहचान भी तो नहीं है कि कैसें पुष्प इत्र बनाने योग्य होते हैं,इसलिए आप यहीं ठहरें", ऐसा कहकर धंसिका रथ से उतरी और सरोवर के समीप गई,इसके पश्चात वो सरोवर के तट से लगी हुई नाव पर जाकर उसे खेते हुए कमल के पुष्प चुनने लगी,वो पुष्प ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५८)
अब गिरिराज के मस्तिष्क में कौन सा षणयन्त्र चल रहा था,ये रुपश्री को ज्ञात नहीं था,उधर गिरिराज धंसिका से अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहा था और इधर रुपश्री से भी वो अपना झूठा प्रेम जताता रहता था, एक दिवस रुपश्री गिरिराज से बोली.... "गिरिराज! अब तो तुम स्वतन्त्र हो चुके हो तो अपनी माता से कह दो कि तुम उस इत्र विक्रेता की कन्या से विवाह नहीं करना चाहते", "किन्तु रानी रुपश्री! मैं अभी उनसे ये सब नहीं कह सकता",गिरिराज बोला.... "किन्तु क्यों गिरिराज! क्या तुम मुझसे प्रेम नहीं करते",रानी रुपश्री ने पूछा.... "मैं आपसे अत्यधिक प्रेम करता हूँ ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५९)
गिरिराज जब उस राज्य का राजा बन गया तो उसे अब किसी का भी भय नहीं रह गया था,क्योंकि उसके मार्ग पर कोई भी पत्थर बिछाने वाला ना बचा था,गिरिराज के इस षणयन्त्र को ना तो उसकी माता चन्द्रकला देवी समझ पाई और ना ही राज्य की प्रजा,उसने केवल राज्य पर अपना आधिपत्य पाने हेतु पहले सेनापति का पद हथियाया,इसके पश्चात उसने उस राज्य के राजा को विश्वास में लिया,जब राजा को उस पर पूर्णतः विश्वास हो गया तो उसने राजा की सबसे छोटी रानी रुपश्री के संग प्रेम का झूठा अभिनय कर उनका विश्वास जीत लिया,इसके पश्चात उसने ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६०)
मृत शिशुकन्या की बात सुनकर धंसिका स्वयं को सम्भाल ना पाई और फूट फूटकर रो पड़ी,वो रोते हुए गिरिराज बोली.... "स्वामी! ऐसा क्या अपराध हुआ था मुझसे ,जो ईश्वर ने मुझे उसका ऐसा दण्ड दिया,मैंने अपनी आने वाली सन्तान के लिए क्या क्या स्वप्न संजोए थे,वो सब धरे के धरे रह गए,जब माता कुलदेवी के दर्शन करके लौटेगी तो मैं क्या उत्तर दूँगीं उन्हें,हे! ईश्वर! जब आपको मेरी सन्तान लेनी ही थी तो दी ही क्यों थी,आपकी पूजा अर्चना में मुझसे क्या कमी रह गई थी जो आपने मुझसे मेरी सन्तान छीन ली", "शान्त हो जाओ धंसिका! कदाचित ये ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६१)
अब चन्द्रकला देवी राजमहल वापस आ गईं थीं और जब उनकी भेंट गिरिराज से हुई तो वें उससे बोलीं.... ये तुमने ठीक नहीं किया,तुमने तो धंसिका से प्रेमविवाह किया था,तब भी तुमने उसे स्वयं से दूर कर दिया,बिना पुत्रवधू के ये राजमहल सूना है,वो यहाँ की रानी है और अपनी रानी के बिना एक राजा सदैव अपूर्ण रहता है" "तो क्या इसमें मेरा दोष है,वो स्वयं यहाँ से गई है,मैंने नहीं कहा था उसे यहाँ से जाने के लिए",गिरिराज बोला.... "दोष किसी का भी वो पुत्र! किन्तु इसमें हानि सम्पूर्ण राज्य की है,वो तुम्हारी अर्धान्गनी है, विवाह के समय ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - (६२)
कौत्रेय और त्रिलोचना वैद्यराज धरणीधर से भेंट करके वापस सभी के समीप पहुँचे,तब तक भूतेश्वर भी उन सभी के आ चुका था और त्रिलोचना ने दुखी मन से धंसिका के जीवन की व्यथा सबके समक्ष सुनाई जिसे सुनकर सभी का मन द्रवित हो उठा ,तब भूतेश्वर बोला.... "अब इसके आगें का वृतान्त मुझसे सुनो", "ये क्या कह रहे हो तुम भूतेश्वर? तुम्हें कैसें ज्ञात है धंसिका के जीवन की कहानी",रानी कुमुदिनी ने पूछा...... "क्योंकि! राजसी वस्त्रों में लिपटी हुई वो कन्या शिशु और कोई नहीं त्रिलोचना है",भूतेश्वर बोला.... "क्या कहा तुमने वो कन्या शिशु त्रिलोचना है,किन्तु ये कैसें हो ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६३)
सभी के मध्य यूँ ही वार्तालाप चल ही रहा था कि रानी कुमुदिनी अचलराज से बोली.... "पुत्र अचलराज! मेरी इच्छा पूर्ण करोगे", "जी! कहें रानी माँ!",अचलराज बोला.... "मैं महाराज के दर्शन करना चाहती हूँ,इतने वर्ष बीत गए उन्हें देखे हुए",रानी कुमुदिनी बोलीं... "किन्तु! उनके दर्शन हेतु आपको तो राजमहल के कारागृह में जाना होगा,जहाँ उन्हें बंधक बनाकर रखा गया है",अचलराज बोला... "आपका वहाँ जाना सम्भव नहीं है माता!",भैरवी बोली... "यदि कालवाची चाहे तो मैं उनसे मिलने वहाँ जा सकती हूँ",रानी कुमुदिनी बोली.... "किन्तु! वहाँ आप पर कोई संकट आन पड़ा तो"कालवाची बोली.... "ऐसा कुछ भी नहीं होगा,मैं सावधान रहूँगीं",रानी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६४)
जब सारन्ध ने पिंजरे को अपने हाथों में पकड़ा तो उसने मैना बनी धंसिका से वार्तालाप करना प्रारम्भ किया मैना बनी धंसिका को इतनी प्रसन्नता हुई कि वो प्रसन्नता के कारण रो पड़ी,अपने पुत्र को इतने वर्षों के पश्चात देखकर उसके हृदय में दबी ममता जाग उठी और उसका जी चाहा कि वो अपने युवा पुत्र को अपने हृदय से लगाकर ये कहे कि...... " मैं ही तुम्हारी जननी हूँ पुत्र!,इतने वर्षों तक तुमसे दूर रहकर मैंने कैसें अपना समय बिताया है ये केवल मैं ही जानती हूँ,तुम्हारे बालपन की स्मृतियों को मैं कभी भी अपने मन से नहीं ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६५)
जब धंसिका शान्त हुई तो अचलराज रानी कुमुदिनी से बोला.... "तो माता कुमुदिनी आप तत्पर हैं हम सभी के राजमहल चलने हेतु" "हाँ! पुत्र! मैं तत्पर हूँ",रानी कुमुदिनी बोलीं... "तो क्या मैं अब आपको मैना रुप में बदल दूँ?",कालवाची ने पूछा.... "हाँ! बदल दो कालवाची!",रानी कुमुदिनी बोलीं.... और कालवाची ने रानी कुमुदिनी को मैना में परिवर्तित कर दिया,उसने और सभी को भी पंक्षी रुप में बदल दिया,इसके पश्चात वत्सला, कालवाची, अचलराज और रानी कुमुदिनी महल की ओर उड़ चले,रात्रि में मैना बनी कुमुदिनी पिंजरें में रही,प्रातःकाल हुई एवं सभी उसी प्रकार व्यवहार करते रहे जैसे कि सदैव करते थे,किन्तु ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६६)
वें सब बंदीगृह से बाहर आएँ तो वत्सला ने पूछा.... "सब अच्छा रहा ना!", "हाँ! पहले मेरे कक्ष में वार्तालाप करते हैं,"अचलराज बोला... इसके पश्चात सभी अचलराज के कक्ष में पहुँचे और उन्हें कालवाची ने अपना अपना रुप दे दिया,तब कालवाची वत्सला से बोली.... "हाँ! सब ठीक रहा एवं हम पर किसी को कोई भी संदेह नहीं हुआ", "हाँ! मैंने महाराज और माता पिता के दर्शन भी कर लिए,मुझे आज विशेष प्रकार की संतुष्टि का अनुभव हो रहा है,इतने वर्षों पश्चात महाराज को देखा तो मैं तो भाव विह्वल हो उठी",रानी कुमुदिनी बोलीं.... "तो अब मैं आपको मैना में ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६७)
अन्ततः वो कुशाग्रसेन से बोला.... "कुशाग्रसेन! अब तुम सीमाओं का उलंघन कर रहे हो" तब महाराज कुशाग्रसेन बोले.... "मैं क्यों सीमाओं का उलंघन करने लगा गिरिराज!,ये सत्य नहीं है क्या कि तुम और तुम्हारा पुत्र पूर्ण समय सुरा एवं सुन्दरी में लिप्त रहते हो,जिस राज्य का राजा ऐसा हो तो उस राज्य के सैनिकों एवं प्रजा से आशा ही क्या की जा सकती है,क्या मैं सत्य नहीं कह रहा,तुमने कभी सोचा कि जब रात्रि को तुम अपनी विलासिता में लिप्त रहते हो तो तुम्हारे सैंनिक कुछ और ना सही मदिरापान तो कर ही सकते हैं", "ये कैसें सम्भव है? ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६८)
उस रात्रि रानी कुमुदिनी महाराज कुशाग्रसेन से मिलकर आ चुकी थीं और उन सभी ने बताया कि कितना बड़ा आ पड़ा था उन सभी के ऊपर, किन्तु कालवाची ने अपनी सूझबूझ से उस समस्या का समाधान कर लिया और अब सभी के मध्य ये योजना बनने लगी कि अब कैसें भी करके महाराज कुशाग्रसेन और उनके माता पिता को उस बंदीगृह से मुक्त करा लिया जाए,किन्तु कैसें इसका उपाय सभी सोच ही रहे थे कि तभी कौत्रेय बोला.... "मेरे पास एक अद्भुत योजना है" "ओह...तो अब तुम भी योजना बनाने लगे",त्रिलोचना बोली.... "लो नहीं बताता योजना,मुझे ऐसा प्रतीत होता ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(६९)
कालवाची बनी कर्बला शान्त होकर कक्ष में खड़ी ये सोच रही थी कि गिरिराज ने उसे अपने कक्ष में को क्यों कहा,कहीं उसे संदेह तो नहीं हो गया मुझ पर और तभी गिरिराज उसके समीप आकर बोला.... "तुम वैशाली की बहन हो ना!" "जी! महाराज!",कर्बला बनी कालवाची बोली... "तुम तो बहुत ही अच्छा नृत्य करती हो",गिरिराज बोला... "बहुत बहुत धन्यवाद महाराज!",कर्बला बनी कालवाची बोली.... "तुम अत्यधिक रुपवती और गुणवती भी हो,किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हें तुम्हारी योग्यता के अनुसार वो स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था",गिरिराज बोला.... "आपके कहने का तात्पर्य क्या है महाराज?",कर्बला बनी ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७०)
अन्ततोगत्वा गिरिराज ने अचलराज,वत्सला,महाराज कुशाग्रसेन,सेनापति व्योमकेश एवं कालवाची को अपने पुराने राज्य के बंदीगृह में बंधक बना दिया,वें सभी ही बंदीगृह के अलग अलग कक्ष में बंदी थे,अभी उन्हें बंदी बनाएँ दो तीन बीत चुके थे और सभी को यही चिन्ता सता रही थी कि अब कालवाची का क्या होगा? यदि कालवाची को समय पर उसका भोजन नहीं मिला तो वो वृद्ध होती जाएगी एवं उसकी शक्तियांँ भी कार्य करना बंद कर देगीं,तब क्या होगा? वें सभी अलग अलग कक्ष में थे इसलिए उनके मध्य कोई वार्तालाप भी नहीं हो पा रहा था,ना ही वें कोई योजना बना पा ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७१)
इसके पश्चात विपल्व चन्द्र उन सभी को कुछ सैनिकों के निरीक्षण में अपने संग अपने राज्य मगधीरा ले आया उन्हें एक ऐसे स्थान पर बंदी बना दिया जो उसके राजमहल से अत्यधिक दूर था,वो एक कन्दरा थी,वो बाहर से देखने में कन्दरा की भाँति दिखाई देती थी,किन्तु वो कन्दरा नहीं थी,उस के भीतर एक बड़ा सा प्राँगण था एवं वहाँ एक कूप भी था,उस प्राँगण में ही विपल्व चन्द्र ने उन सभी को बंदी बनाकर रखा था,किन्तु यहाँ उसने एक धूर्तता कर दी थी,कालवाची और महाराज कुशाग्रसेन को उसने एक ही कारागार में रखा था एवं दूसरे में उसने ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७२)
किन्तु इधर त्रिलोचना,भूतेश्वर,धंसिका,भैरवी,रानी कुमुदिनी,प्रकाशसेन,मृगमालती और कौत्रेय भी योजना बना रहे थे कि किस प्रकार सभी को खोजा जाएंँ,किन्तु इतना उन्हें ज्ञात हो चुका था कि गिरिराज उन सभी को वैतालिक राज्य के बंदीगृह में बंधक बनाकर नहीं रखेगा,तभी धंसिका ने सभी से सांकेतिक भाषा में कहा.... "कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने उन सभी को उनके पुराने राज्य के बंदीगृह में बंधक बनाकर रखा हो", धंसिका का ये विचार सभी को पसंद आया और सभी ने गिरिराज के पुराने राज्य जाने का निश्चय लिया और वें सभी वहाँ पहुँचे,किन्तु समस्या ये थे कि उन सबको कहाँ खोजा जाएंँ एवं ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७३)
तब एकाएक कौत्रेय बोला... "यदि सारन्ध राजमहल के बाहर किसी सुन्दरी से मिले ,तब तो सरलता से उसका आपहरण जा सकता है" "हाँ! इस कार्य के लिए हमें राजमहल के किसी सदस्य की सहायता लेनी होगी",महाराज कुशाग्रसेन बोले... "किन्तु! ये असम्भव है,वहाँ कोई भी हमारी सहायता नहीं करेगा",कुशाग्रसेन के पिता प्रकाशसेन बोले... "इस कार्य में राजमहल का सदस्य ही हमारी सहायता कर सकता है",कालवाची बोली.... "ये कैसें सम्भव है कालवाची! तुम्हारी दृष्टि में ऐसा कौन है जो हमारी सहायता कर सकता है",भैरवी बोली... "सेनापति बालभद्र हमारी सहायता करेगें",कालवाची बोली.... "किन्तु! उन्हें हमारी सहायता हेतु कौन सहमत करेगा",भूतेश्वर ने पूछा.... ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७४)
भैरवी सारन्ध से मीठी मीठी बातें करते हुए उसे उस स्थान पर ले गई,जहाँ सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे ही सारन्ध उन सभी के समीप पहुँचा तो भैरवी सारन्ध से बोली.... "ठहरिए ना राजकुमार! मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ", "कहो ना सुन्दरी! मैं तुम्हारी मधु समान बातें सुनना चाहता हूँ"सारन्ध बोला... "तो इस वृक्ष के तले तनिक देर बैठकर विश्राम करते हैं ना! मैं थक चुकी हूँ चलते चलते" भैरवी बोली... "हाँ...हाँ...सुन्दरी क्यों नहीं", और ऐसा कहकर सारन्ध वहाँ बैठ गया,इसके पश्चात सभी वहाँ आ पहुँचे,सभी को देखकर सारन्ध ने वहाँ से भागने का प्रयास किया किन्तु वो ...Read More
कलवाची--प्रेतनी रहस्य - (अन्तिम भाग)
सारन्ध जैसे ही राजमहल के द्वार पर पहुँचा तो उसकी दयनीय स्थिति को देखकर द्वारपाल शीघ्रता से गिरिराज के पहुँचा और उससे बोला.... "महाराज! राजमहल के मुख्य द्वार पर राजकुमार सारन्ध खड़े हैं", "सारन्ध...मेरा पुत्र सारन्ध आ गया,ये अत्यधिक प्रसन्नता की बात है,मैं स्वयं ही उसे लेकर आऊँगा" और ऐसा कहकर गिरिराज प्रसन्नतापूर्वक राजमहल के मुख्य द्वार पर भागा और अपने पुत्र सारन्ध को उसने हृदय से लगा लिया,उसकी दयनीय स्थिति को देखकर उससे बोला.... "उन पापियों ने कैसी दशा बना दी मेरे पुत्र की", तब सारन्ध बोला.... "हाँ! पिताश्री! उन्होंने मुझे अत्यधिक प्रताड़ित किया,मुझे भोजन नहीं दिया,मैं किस ...Read More