झोपड़ी

(25)
  • 87k
  • 4
  • 38.8k

मैं एक महानगर में अच्छी - खासी सर्विस करता हूं। गांव में बहुत पहले हम सब कुछ बेच कर शहर शिफ्ट हो गए थे। मेरे पास ठीक-ठाक पैसा था। लेकिन मेरा स्वास्थ्य कुछ कमजोर रहता था। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर मैं कुछ दिन अपने गांव शुद्ध हवा में रहने के लिए वापस आ गया। गांव में थोड़ा दूर के रिश्ते के मेरे एक दादाजी रहते थे। वह बहुत गरीब थे। वह एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। हालांकि वह गरीब जरूर थे, लेकिन उन्होंने कुछ बकरियां पाल रखी थी और कुछ छोटे - मोटे खेत उनके पास थे। मैं दादाजी के घर उनसे मिलने गया। मैंने दुआ सलाम की। दादाजी ने कहा आओ बेटा बैठो क्या बात है? बहुत दिनों बाद आए हो। तुम्हें गांव की याद तो आती ही होगी। हालांकि तुमने यहां का सब कुछ बेच दिया है। मैंने कहा दादा जी यह तो ऊपर वाले की कृपा है। आज मैं शहर में अच्छी - खासी प्रॉपर्टी का मालिक हूं और अच्छा खासा पैसा भी कमा रहा हूं। दादा जी हंस कर बोले फिर गांव में वापस लौट कर क्यों आए भाई। मैंने कहा दादा जी यह तो कुदरत का खेल है। डॉक्टर ने कहा तुम्हारा शरीर थोड़ा कमजोर हो गया है। किसी हिल स्टेशन पर कुछ महीने रहो। तो मैंने सोचा मेरा गांव क्या किसी हिल स्टेशन से कम है। कुछ महीने मैं यही रहूंगा। आप मेरे रहने का और खाने का जुगाड़ कहीं पर फिट कर दें। इसके लिए मैं थोड़ा बहुत खर्च भी कर दूंगा। दादाजी मुस्कराए और बोले बेटा इतनी बड़ी झोपड़ी है। एक कोने पर मैं रह लूंगा। एक कोने पर तुम रह लेना।

New Episodes : : Every Monday, Wednesday & Friday

1

झोपड़ी - 1

दादाजी की झोपड़ी मैं एक महानगर में अच्छी - खासी सर्विस करता हूं। गांव में बहुत पहले हम सब बेच कर शहर शिफ्ट हो गए थे। मेरे पास ठीक-ठाक पैसा था। लेकिन मेरा स्वास्थ्य कुछ कमजोर रहता था। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर मैं कुछ दिन अपने गांव शुद्ध हवा में रहने के लिए वापस आ गया। गांव में थोड़ा दूर के रिश्ते के मेरे एक दादाजी रहते थे। वह बहुत गरीब थे। वह एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। हालांकि वह गरीब जरूर थे, लेकिन उन्होंने कुछ बकरियां पाल रखी थी और कुछ छोटे - मोटे खेत ...Read More

2

झोपड़ी - 2 - दादाजी की झोपड़ी भाग 2

गांव में रहते रहते मुझे काफी समय बीत गया। दादाजी मुझे नई-नई एक्सरसाइज सिखाते। जीवन जीने का नया बढ़िया सिखाते। जड़ी - बूटियों से उन्होने मेरे शरीर को स्वस्थ किया। धीरे-धीरे मेरा शरीर हष्ट -पुष्ट और बलवान होने लगा। दादा जी के घर में एक अच्छी नस्ल की गाय थी। उसका दूध मैं रोज एक -एक किलो पीने लगा। इससे मेरा शरीर बहुत जल्दी विकसित और सुंदर होने लगा। कुछ ही महीनों में मेरा शरीर किसी बलवान पहलवान की तरह हो गया। मेरी छातियां बाहर को आ गई। हाथ की मांसपेशियां तगड़ी हो गई। पैर भी तगड़े हो गये। ...Read More

3

झोपड़ी - 3 - बंजर जमीन

हमारे देश में जंगल बहुत तेजी से खत्म हो रहे हैं और अनाज की भी थोड़ा बहुत कमी है। मैंने सोचा कि कहीं बहुत ज्यादा बंजर जमीन मिल जाए तो उसको ठीक करके मैं वहां हरियाली उगाऊंगा और साथ ही पशुपालन और खेती भी करूंगा। भगवान की कृपा से मुझे एक जगह बहुत सस्ते में बहुत ही ज्यादा बंजर जमीन मिल गई। मैंने वह जमीन खरीद ली। उस जमीन को मैंने समतल किया और जमीन के चारों और बाउंड्री करवाई। उस जमीन का मैंने जैविक उपचार कराया। धीरे-धीरे वो जमीन शस्य श्यामला हो गई और वहां हरियाली छा गई। ...Read More

4

झोपड़ी - 4 - बेसहारा लोग

मेरा सब कुछ ठीक चल रहा था। दादाजी भी स्वस्थ और हट्टे- कट्टे थे। अभी लगता था 20- 25 और उन्हें यमराज भी नहीं हिला सकता है। मेरे गांव वाले भी सभी खुश और प्रसन्न थे। सब अपने काम को अच्छे ढंग से निपटाते और सुबह- शाम योगासन और भगवान की आराधना करते। सात्विक रूप में गांव की दिनचर्या चल रही थी। सभी गांव वाली हट्टे -कट्टे और निरोग थे। तभी एक समस्या उत्पन्न हो गई। दूर के कई गांवों में बिना बारिश के सूखा पड़ गया और वहां लोग मरने लगे। कोई इधर भागा, कोई उधर भागा। शरणार्थियों ...Read More

5

झोपड़ी - 5 - मौसी जी का किया सम्मान

एक बार मैं शहर की झुग्गी- झोपड़ियों में घूम रहा था और झुग्गी -झोपड़ी वालों को खाना, वस्त्र, कंबल प्रदान कर रहा था। तभी मुझे एक बहुत बूढ़ी औरत दिखाई दी। उसके साथ उसका 6 साल साल का एक पोता भी था। दोनों की शक्ल मुझे जानी पहचानी सी लगी। मैंने उन्हें भी खाना, कंबल और वस्त्र दिए। लेकिन उन्होंने नहीं लिए। मैं सोचने लग गया यह तो किसी बड़े घर के दिखाई देते हैं। मैंने उनसे पूछताछ करनी शुरू की। उन्होंने बड़े प्रेम से मुझे चाय, नाश्ता आज कराया। बूढ़ी औरत ने कहा बेटा हम किसी से कुछ ...Read More

6

झोपड़ी - 6 - राजपूत का प्यार

राजपुत्र शब्द का अपभ्रन्श राजपूत है। अभय सिंह एक राजपूत परिवार से है। वह एक लड़की निर्मला से प्यार है निर्मला भी उससे बहुत प्यार करती है। अभय सिंह एक छोटी- मोटी नौकरी करता है। दैव योग से अभय सिंह का एक्सीडेंट हो जाता है। उसकी प्राइवेट नौकरी भी छूट जाती है। वह दाने-दाने को मोहताज हो जाता है। निर्मला और अभय सिंह की शादी होने वाली थी। अभय सिंह शादी के लिए इंकार कर देता है। क्योंकि उसकी कंडीशन अपना परिवार पालने की और शरीर संभालने की नहीं रही। लेकिन निर्मला को इससे कोई असर नहीं पड़ा। वह ...Read More

7

झोपड़ी - 7 - नया पंचांग

नया साल शुरू हो गया। इसलिए मैंने दादाजी के लिए एक सुंदर पंचांग खरीदने की सोची। दादा जी, मौसी और मैं पैदल ही घूमते -घूमते गांव के बाजार में पहुंचे। वहां हम पुस्तकों की दुकान पर पहुंचे। पुस्तकों की दुकान पर बड़ी सुंदर-सुंदर अच्छी-अच्छी पुस्तकें सजी हुई थी और अच्छे-अच्छे पंचांग भी थे। हमने दादाजी की मर्जी के अनुसार सुंदर-सुंदर 1-2 पंचांग खरीदे और कुछ पुस्तकें भी खरीदी। इसके बाद हमने वस्त्र मार्केट की ओर कदम बढ़ाए। वहां जाकर हमने सुंदर- सुंदर वस्त्र खरीदे। फिर हमने निराश्रित लोगों के लिए भी काफी मात्रा में वस्त्र, कंबल आदि खरीदे। इसके ...Read More

8

झोपड़ी - 8 - मंदिर गांव का

दादा जी को अपने भजन -पूजन से जब टाइम मिलता तो वह गांव में घूमने निकल जाते। गांव में किनारे पर एक सुरम्य स्थल था। वहां एक पुराना टूटा -फूटा शिव का मंदिर था। दादाजी के पास अब काफी रुपए इकट्ठे हो गए थे। इसलिए उनको खुजली होने लग गई थी कि इतने सारे रुपए कहां खर्च करें। तो दादाजी ने इस शिव मंदिर का पुनर्निर्माण करने की ठानी। उन्होंने अपना विचार मुझे बताया। मैं समझ गया कि दादाजी की नजर शिव के मंदिर पर ही है। अब वह उसको ठीक करके ही मानेंगे। मैंने सारे गांव में इसका ...Read More

9

झोपड़ी - 9 - अगर तुम साथ हो

दादाजी और मैंने गांव वालों के साथ मिलकर अपनी शक्ति से बहुत ज्यादा काम कर दिया था। इसलिए हमने समय आराम करने की सोची। हमने काफी दिनों आराम किया। घूमे- फिरे। इससे हमें काफी रिलैक्स महसूस हुआ। काफी दिनों बाद हम पूरा आराम कर-कर के जब बोर हो गये। मतलब हमने जी भर कर आराम कर लिया, तब हमने कोई और कार्य करने की सोची। एक मेरे रिश्ते के चाचा गांव से बाहर जाकर बस गये थे। उनका घर काफी दिनों से खाली था। यह एक -दो कमरों का घर मुझे बहुत पसंद आया। क्योंकि यह एकांत में था। ...Read More

10

झोपड़ी - 10 - बनारस के पंडित

हमारे गांव के गुरुकुल में बहुत अच्छी व्यवस्था चल रही थी। एक बार दादा जी, मैं और मौसी एक बुक करके बनारस घूमने गये। यह गाड़ी एक बड़ी बस थी। यह अच्छी शानदार बस थी। हम तीनों के साथ गांव के कई लोग थे। पूरी बस भरी हुई थी। बस में एक कुक, एक ड्राइवर, एक कंडक्टर, 1-2 नौकर चाकर आदि थे। हमने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस क्रम में हम बनारस में घूमने के लिए गए। हमने बनारस के घाटों की यात्रा की। बनारस की सुंदरता को देखकर हम बड़े प्रसन्न हुए। इस दौरान मुझे बनारस के ...Read More

11

झोपड़ी - 11 - प्राचीन तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय की पुस्तकें

नालंदा विश्वविद्यालय में हजारों पुस्तकें थी। जो बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर नष्ट कर दी थी और यह आग महीनों तक जलती रही थी। तक्षशिला महाविद्यालय कुछ ऐसे ही धवंस हुआ होगा। मुझे ऐसे ही इतिहास की जानकारी थी। लेकिन मेरा मन मचलने लगा कि इन विश्वविद्यालयों में कई पुस्तकें होंगी जो शायद इस समय नहीं हैं। अगर इन पुस्तकों को मैं प्राप्त कर लूं तो कैसे रहेगा? ये शायद एक बचकानी सोच थी। क्योंकि वह पुस्तकें तो हजारों साल पहले जल गई थी, खत्म हो गई थी। मैं इनको कैसे प्राप्त कर सकता था? तभी मेरे गुरुकुल के ...Read More

12

झोपड़ी - 12 - महाशक्ति

इस सारे ब्रह्मांड को, इस दुनिया को एक शक्ति चलाती है। जिसे महाशक्ति, आदि शक्ति आदि नामों से पुकारा है। यही शक्ति ईश्वर है। इसी शक्ति से ब्रह्मा, विष्णु, महेश उत्पन्न हुये हैं। इसी आदिशक्ति से अन्य शक्तियां उत्पन्न हुई हैं। ईश्वर को वेदों में निराकार माना गया है। इस्लाम में भी उसे निराकार ही माना गया है और अन्य कई प्रमुख धर्मों में भी उसे निराकार ही माना गया है। इस तरह से परमब्रह्म निराकार ही है। वह परम ईश्वर परमपिता निराकार ही है। वह केवल एक महाशक्ति के रूप में है। लेकिन भक्तों को दर्शन देने के ...Read More

13

झोपड़ी - 13 - जात -पात छोड़ो

रमेश प्रसाद एक उच्च कुल की ब्राह्मण हैं। बचपन में ही उनके माता- पिता की मृत्यु हो चुकी थी। तीन -चार भाई-बहन और थे। रमेश ने अपनी पूरी जिंदगी अपने भाई -बहनों के पीछे लगा दी। उन्हें अच्छी शिक्षा दी। उनकी शादी वगैरह की और उन्हें अच्छी तरह जीवन में स्थापित किया। अब उनके सभी भाई-बहन अपने -अपने परिवारों में खुश थे। पर रमेश आज अकेले रह गए। समय पर उनकी शादी भी नहीं हुई। आज वह 55 बरस के हो चुके हैं। अकेलेपन से घबरा कर उन्होंने शादी करने की सोची। लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए किसी ...Read More

14

झोपड़ी - 14 - मेरी जान

किसी की जान बहुत कीमती होती है। यह पता तभी चलता है जब खुद किसी अपने की जान पर आती है। दादाजी और मैं एक दिन जंगल में घूम रहे थे। जंगल को भी हम लोगों ने अपनी तरफ से सुंदर और सजीला बना रखा था। जंगल में एक हिरण का बच्चा हमें दिखा। हमें देखते ही वो लंगड़ा कर भागने लगा। लेकिन कुछ दूर जाकर वह गिर पड़ा और कातर नजरों से हमारी तरफ देखने लगा। शायद वह समझ गया था कि अब उसकी जिंदगी का अंत आ गया है। हम जैसे ही उसके पास पहुंचे। वह आत्मसमर्पण ...Read More

15

झोपड़ी - 15 - बसेरा

मैंने और दादा जी ने चिंतन किया तो हमने देखा। कई लोग ऐसे भी हैं जिनका कोई घर- द्वार है। या जो बाहर से रोजगार की तलाश में आए हैं। उनको कोई रोजगार नहीं मिला है। और वहीं सड़क पर ही सो जाते हैं। उनके खाने का कोई हिसाब- किताब नहीं है। कपड़ों का कोई हिसाब- किताब नहीं है। कोई खास बिस्तर भी नहीं है। यह देखकर दादाजी और मैंने एक प्रोग्राम बनाया और हमने एक विशाल बिल्डिंग एक अच्छी सी जगह देखकर बनवा दी। उस बिल्डिंग में सभी अत्याधुनिक सुविधाएं थी। हालांकि हमारा काफी पैसा लगा। लेकिन हमारे ...Read More

16

झोपड़ी - 16 - प्यार

यह पूरी कायनात टिकी है दया और प्यार पर। मनुष्य कितना भी शक्तिशाली हो। कितना भी बुद्धिमान हो। कितना पढ़ा लिखा हो। कितने भी पैसे वाला हो। अगर उसके अंदर दया और प्यार नहीं है तो वह सिर्फ एक रोबोट है एक मनुष्य नहीं। मनुष्य में दया और प्यार के गुण स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। दया मनुष्य को जहां मानव बनाती है, वहां प्यार उसे एक महामानव बनाता है। प्यार के कारण बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने अपने सिंहासन त्याग दिए। राजा भरत को प्यार के कारण ही मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ और वह जड़ भरत नाम से ...Read More

17

झोपड़ी - 17 - अर्थशास्त्री राजा

अर्थशास्त्री राजा एक राजा के बहुत से लड़के थे। उनमें से एक लड़के का नाम था अनुज। अनुज एक अर्थशास्त्री था जब पिता ने राज्य का बंटवारा किया तो अनुज ने सबसे गरीब और सबसे पिछड़ा हुआ प्रांत अपने पिता से लिया। इससे उसके सभी भाई बहुत खुश हुए। भाइयों को खुश देखकर अनुज बहुत प्रसन्न हुआ। अनुज को इस प्रांत से यह फायदा हुआ कि यह प्रांत अन्य प्रांतो से काफी दूर था और वह स्वतंत्रता से इसका विकास कर सकता था। कुछ ही दिन में अनुज ने अपनी बुद्धि से प्रांत का विकास कर दिया। प्रांत खुशहाल ...Read More

18

झोपड़ी - 18 - बेचारा लेखक

बेचारा लेखक मैं एक लेखक हूं। मैं अपने को बहुत बुद्धिमान समझता हूं। मैं अपने को साहित्य प्रेमी समझता मैं अपने को साहित्य का सेवक समझता हूं। मैं समझता हूं कि कभी मुझे साहित्य का नोबेल मिलेगा। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुझे बधाई देंगे और मुझे हाथ मिलाएंगे। दुनिया के बड़े-बड़े देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुझे शाबाशी देंगे और मेरा अभिनंदन करेंगे। मेरी सोच समाज की प्रति क्रांतिकारी है। देश के प्रति सुधारवादी है। मानवता के प्रति कल्याणकारी है। मेरी सोच बहुत महान है। अगर मुझे मौका मिले। तो में देश से बेरोजगारी हटा दूंगा। अगर मुझे ...Read More

19

झोपड़ी - 19 - बेचारा लेखक सीजन 2

बेचारा लेखक सीजन 2 एक दिन में अपनी कुटिया में बैठकर साहित्य सृजन कर रहा था। अचानक सामने सुनहरे का एक यान उतरा। उसमें से वही लड़की बाहर निकली। वह लड़की असल में उस ग्रह की राजकुमारी थी। इतने सालों के बाद भी राजकुमारी की ज्यों की त्यो जवान थी। राजकुमारी तुरंत अपने अंगरक्षकों के साथ मेरी कुटिया में आई। प्रिय पाठको इससे पहले की कहानी जानने के लिए मेरी रचना बेचारा लेखक सीजन 1जरूर पढ़िए। राजकुमारी का सुंदर मुखड़ा खुशी से भरा हुआ था। मेरी कुटिया में आते ही उसने मुझे प्रणाम किया। मैंने भी नमस्कार का जवाब ...Read More