श्री सुरेश बाबू मिश्रा हिन्दी कथा साहित्य का जाना-पहचाना नाम है। आपकी अनेक रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती रहती हैं। आपका नया कहानी संग्रह ‘कैक्टस के जंगल’ नाम से प्रकाशित होेने जा रहा है जिसमें 20 कहानियाँ हैं जिनके शीर्षक हैं-‘आमंत्रण भरी आँखें’, ‘सेल्फ डिफेंस’, ‘हौंसलों का सफर’, ’कैक्टस के जंगल’, ‘लक्ष्मण रेखा’, ‘भंवर’, ‘बदला हुआ आदमी’, ‘पथराई आँखें’, ‘पिंडदान’, ‘कढ़ा हुआ रूमाल’, ‘वतन की खातिर’, ‘नियति का खेल’, ‘सरहद’, ‘प्यार की सरगम’, ‘सरहद का प्यार’, ‘झंझावात’, ‘हाटस्पाट’, ‘क्या करूँ देश भक्ति का’, ‘जीत का सेहरा’ और ‘समय चक्र’। इन बीस कहानियों में जो बात मुख्य है वह है कहानी के सरोकार। ‘सरोकार’ बहुत विस्तृत शब्द है जिसका परिप्रेक्ष्य ग्रामीण और शहरी समाज दोनों से होता है। श्री सुरेश बाबू मिश्रा जितनी तन्मयता से शहरी वातावरण का सृजन अपने साहित्य में करते हैं, उतनी गहनता से ग्रामीण परिवेश की भी पड़ताल करते हैं। संग्रह की पहली कहानी ‘आमंत्रण भरी आँखें’ में प्रेम की पराकाष्ठा का चित्रण है। यहाँ कहानीकार की संवेदना अतृप्त आत्मा की पुकार सुनती है तब वे कहते हैं- रास्ते में मैं सोचने लगा कि अभी थोड़ी देर पहले मैंने जिसे देखा था वह क्या था सुजाता की अतृप्त आत्मा या मेरे मन में बसी हुई उसकी स्मृतियों की परिणति, मेरे मन का बहम या फिर मेरी आँखों का भ्रम?’ दूसरी कहानी सैल्फ डिफेन्स’ समाज में स्त्री के प्रति फैले अनाचार-दुराचार का सामना स्वयं स्त्री को ताकतवर बनकर करना होगा, का संदेश देने वाली है। इस कहानी की नायिका कहती है-“यह बात मुझे अच्छी तरह समझ में आ गयी थी कि लड़कियों के भय और कमजोरी का ही लोग गलत फायदा उठाते हैं। मैं उनके दिलों में बसे भय को दूर कर उनमें आत्म विश्वास भरना चाहती हूँ। इसलिए मैंने यह सेन्टर खोला है।“
Full Novel
कैक्टस के जंगल - भाग 1
कहानी संग्रह सुरेश बाबू मिश्रा **** अपनी बात साहित्य संस्कृति एवं संस्कारों का वाहक होता है। एक पीढ़ी द्वारा अनुभव एवं ज्ञान का लाभ साहित्य द्वारा दूसरी पीढ़ी को सहज ही प्राप्त हो जाता है। यह समाज को रचनात्मक दिशा देने का कार्य करता है। इस समय पूरा देश और समाज कोरोना आपदा के कठिन दौर से गुजर रहा है। प्रतिदिन लाखों नये संक्रमित मिलना और हजारों लोगों के असमय निधन का समाचार अन्तर्मन को झकझोर कर रख देता है। आपदा के इस दौर में साहित्य मन को संयत रखने का सबसे सरल और सशक्त माध्यम है। साहित्य पढ़ने ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 2
2 सैल्फ डिफेन्स आज अंजलि को आवश्यक कार्यवश कालेज से जल्दी घर जाना था। वह शहर के गल्र्स डिग्री में बी.एस.सी. प्रथम वर्ष मंे पढ़ती थी। अपनी सहेलियों को बताकर वह फिजिक्स क्लास अटेन्ड करने के बाद कालेज से बाहर निकली। साइकिल स्टैण्ड से साइकिल लेकर वह घर के लिए चल दी। अंजलि जैसे ही एक सुनसान गली में पहुंची बाइकों पर सवार शोहदों ने उसका रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती दो शोहदों ने उसे साइकिल से खींचकर अपनी बाइक पर बैठा लिया और बाइक स्टार्ट करके चल दिए। अंजलि सहायता के लिए चिल्लाई। ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 3
3 हौंसलों का सफर लाॅकडाउन का दूसरा चरण शुरू हो गया था। किशन का काम बन्द हुए लगभग एक हो गया था। वह यहां गुड़गांव में एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। अपनी पत्नी राजबाला के साथ वह यहां एक किराए का कमरा लेकर रहता था। उसका दो साल का बेटा था। वे लोग देवरिया जिले के रहने वाले थे। तीन साल पहले उसने अपने छोटे भाई रमेश को भी गाँव से यहीं बुला लिया था। वह यहां फलों का ठेला लगाता था। वह भी किशन के पास ही रहता था। गुजर-वसर आराम से हो रही थी। दोनों ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 4
4 कैक्टस के जंगल पहाड़ों की सुरमई वादियों की गोद में दूर-दूर तक फैले हरे-हरे चाय के बागानों को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने जमीन पर दूर-दूर तक हरी चादर बिछा दी हो। बागानों के बीचो-बीच बना था मेजर रमनदीप का खूबसूरत और भव्य मकान। मेजर रमनदीप अब अपने पैरों पर नहीं चलते थे। एक एक्सीडेंट में उनका पैर खराब हो चुका था इसलिए वह व्हील चेयर का सहारा लेते थे और घर की बाॅलकोनी से ही अपने चाय के बागानों की देखा करते थे। उनके बागानों में दजर्नों स्त्री-पुरुष काम किया करते थे। उस दिन ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 5
5 लक्ष्मण रेखा शर्मा जी कपड़े पहनकर बाहर जाने के लिए तैयार हो गए। “आप कहां जा रहे हैं उनकी पत्नी ने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखते हुए पूछा। कहीं नहीं ऐसे ही थोड़ी देर बाहर घूमने जा रहा हूँ। घर में बैठे-बैठे मेरा तो दम घुटने लगता है।“ शर्मा जी बोले। “पापा जी रोज टी.वी. पर बार-बार प्रसारित हो रहा है कि साठ साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है। वे लॉकडाउन में घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलें, फिर आप रोज क्यों बाहर जाते हैं। अगर बाहर से कुछ ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 6
6 भंवर रात्रि का समय था। चारों ओर गहरी नीरवता का साम्राज्य था। कौशाम्बी के घाट पर गंगा के शाही डोगी रस्सी से बंधी हुई थी। डोंगी में खड़े हुए कौशाम्बी के युवराज विक्रम पतित पावनी गंगा की फेनिल लहरों को निहार रहे थे। युवराज विक्रम इस समय नितान्त अकेले थे। उनके साथ न तो कोई सेवक था और न ही कोई सिपाही। डोंगी भी शायद वह स्वयं ही खेकर आए थे। शुक्ल पक्ष के पूर्ण चन्द्रमा की रजत चांदनी चारों ओर फैली हुई थी। इस चांदनी में गंगा के किनारे दूर-दूर तक बिखरे रेत के कण चांदी के ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 7
7 बदला हुआ आदमी (यह एक ऐसे शिक्षित नौजवान की कहानी है जिसे गाँव के दबंगों, नेताओं एवं पुलिस गठजोड़ ने अपराध के रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया और वह एक दुर्दान्त डाकू बन गया। बाद में एक सहृदय पुलिस अफसर के समझाने पर उसका हृदय परिवर्तन हुआ और उसने अपने रचनात्मक कार्यों से उस गाँव और आसपास के गाँवों की तस्वीर ही बदल दी।) गाड़ी स्कूल के मैदान में आकर रुक गई। गेट पर मौजूद लोगों ने अन्दर जाकर मुख्य अतिथि के आगमन की सूचना दी। यह सुनकर आयोजकों में खुशी की लहर दौड़ गई। स्कूल ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 8
8 पथराई आँखें पूरे कस्बे में यह खबर फैल गई थी कि दान सिंह की बारात लौट आई है वह अपनी बहू को लेकर आ गया है। छोटा सा पहाड़ी कस्बा वमुश्किल दो सौ मकान, आठ-दस दुकानें एक इण्टर कालेज और ब्लाक कार्यालय बस यही सब मिलकर वह कस्बा बनता था। सभी एक-दूसरे से परिचित थे और सभी एक-दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होते थे। खबर सुनते ही कस्बे की औरतें अपने-अपने काम छोड़कर दान सिंह के यहां पहुंचना शुरू हो गई थीं। देखते ही देखते वहां औरतों का जमघट लग गया था। सबके मन में दान सिंह की ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 9
9 पिंडदान रामकरन की ट्रेन अठारह मार्च को प्रातः दस बजे गया रेलवे स्टेशन पहुंची। वे अपने गृह जनपद से अपनी पत्नी के साथ अपने पुरखों का पिंडदान करने गया आए थे। स्टेशन से उतरकर उन्होंने एक आटो किया और एक धर्मशाला में पहुंच गए। चौबीस घंटे की रेल यात्रा के कारण वे और उनकी पत्नी काफी थके हुए थे इसलिए दोपहर का भोजन करने के बाद वे सो गए। शाम को कुछ देर तक वे अपनी पत्नी के साथ गया के बाजार में घूमते रहे। एक-दो मंदिरों में गए और फिर धर्मशाला वापस लौट आए। अगले दिन वे ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 10
10 कढ़ा हुआ रूमाल तिनसुखिया मेल के ए.सी. कोच में बैठे प्रोफेसर गुप्ता कोई पुस्तक पढ़ने में मशगूल थे। एक सेमीनार में भाग लेने गौहाटी जा रहे थे। सामने की सीट पर बैठी एक प्रौढ़ महिला बार-बार प्रोफेसर गुप्ता की ओर देख रही थी। वह शायद उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही थी। जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई तो वह उठकर प्रोफेसर गुप्ता की सीट के पास गई और उनसे शिष्टता पूर्वक पूछा-“सर! क्या आप प्रोफेसर गुप्ता हैं ?“ यह अप्रत्याशित सा प्रश्न सुनकर प्रोफेसर गुप्ता असमंजस में पड़ गए। उन्होंने महिला की ओर देखते हुए कहा-“मैंने ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 11
11 वतन की खातिर पूरे गाँव में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि गाँव पहाड़ी के पास किसी की लाश पड़ी हुई है। कश्मीर के बारामूला सेक्टर में ऊँची पहाड़ी के पास बसा हुआ यह एक छोटा सा गाँव था जहाँ पचास-साठ परिवार रहते थे। आनन-फानन में गाँव के सारे लोग पहाड़ी के पास जमा हो गए। लाश पहाड़ी के नीचे एक झाड़ी में पड़ी हुई थी। दो नवयुवकों ने लाश को झाड़ी से बाहर निकाला। सब लोग यह देखकर हैरान रह गये कि वह एक सैनिक की लाश थी। उसके सीने में गोली ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 12
12 नियति का खेल मैं परिवार सहित हरिद्वार गंगा स्नान करने आया था। हरि की पैड़ी पर गंगा स्नान के बाद हम लोग होटल की ओर लौट रहे थे। मेरी पत्नी वहाँ बैठे भिखारियों को फल बांटने लगी। मैं भी उनके साथ था। अचानक मेरी नजर एक भिखारी पर पड़ी। उन्नत ललाट बड़ी-बड़ी आँखें चैड़े कन्धे, उन्नत ग्रीवा, लम्बी कद काठी, सफेद बाल और बढ़ी हुई सफेद दाढ़ी। उसने सादा मगर साफ कपड़े पहने हुए थे। मुझे उसका चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा। उससे मेरी पत्नी से फल लिये निश्चिन्त भाव से बैठा उन्हें खा रहा था। मैं ठिठक ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 13
13 सरहद शाम का धुंधलका धीरे-धीरे चारों ओर छाने लगा था। बॉर्डर पर तैनात बी.एस.एफ. के सूबेदार ने सरहद ओर देखा था। दूर-दूर तक फैले कटीले तार भारत-पाक सरहद के गवाह थे। रघुराज सिंह पिछले दस सालों से सरहद पर तैनात है। इन दस सालों में सरहद पर कुछ नहीं बदला है। दूर-दूर तक फैली रेत, गर्मियों में लू के थपेड़े, रेत के अंधड़ और दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही सब कुछ वैसा ही है, जैसा दस साल पहले था। दुनियां जाने कहां से कहां पहुंच गई है मगर सरहद पर परिवार वालों की कुशलक्षेम जानने का ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 14
14 प्यार की सरगम सेमीनार समाप्त हो गई थी। मैं आटो में बैठकर स्टेशन के लिए चल दिया। आटो बार-बार मुड़कर मेरी ओर देख रहा था। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने उससे पूछा-“तुम बार-बार मुड़कर मेरी ओर क्यों देख रहे हो ?“ उसने उत्तर देने की बजाय मेरी ओर देखते हुए पूछा-“क्या आप कहानीकार हैं साहब।“ “हाँ, मैंने कहा, फिर मैंने उससे पूछा-“मगर तुम यह क्यों पूछ रहे हो ?“ उसने आटो सड़क की साइड में खड़ा कर मेरी ओर देखते हुए पूछा-“क्या आप मेरे दोस्त दीपक की कहानी लिखेंगे ?“ “दीपक कौन था और उसकी क्या कहानी है।“ ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 15
15 सरहद का प्यार रेशमा चिनाव नदी के किनारे बैठी हुई थी। वह एकटक नदी की शांत लहरें चंचल गति से वह रही थी। चारों तरफ गहरी निस्तब्धता थी। यहां से बहती हुई चिनाव नदी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर जाती है। यहीं पर भारत और पाकिस्तान की सरहद मिलती है। रेशमा कश्मीर में रहती थी। वह सोपिया रेंज के एस.पी.के.आर. खान की इकलौती सन्तान थी। काफी देर तक रेशमा नदी की फेनिल लहरों को निहारती रही। फिर उसकी नजरें पश्चिम की तरफ उठ गईं। उसे सरफराज के आने का इंतजार था। उसने घड़ी पर नजर डाली। चार ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 16
16 झंझाबात शाम का समय था। पार्क में चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था। यह पार्क शहर के बाहर सुनसान जगह पर था, इसलिए यहाँ इक्का-दुक्का लोग ही घूमने आते थे। बाबा सुखदेव सिंह पार्क में बनी एक बेंच पर बैठे विचारों में खोए हुए थे। बाबाजी को काबुल में रहते हुए लगभग एक महीना बीत चुका था। श्रद्धालुओं की सेवा भक्ति में कोई कमी नहीं आयी थी। रोज़ बाबाजी को नये-नये उपहार मिलते, चढ़ावा चढ़ता, परन्तु बाबाजी जिस काम के लिए आए थे, उसके पूरे होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। इसलिए उनका मन हर ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 17
17 हॉटस्पॉट रात के ग्यारह बजे थे। राधारमन अपने कमरे में सो रहे थे। तभी उनकी पत्नी ने आकर राधारमन अचकचा कर उठ बैठे। “क्या बात है माधुरी तुम इतनी घबराई हुई सी क्यों हो ?“ उन्होंने अपनी पत्नी की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए पूछा। “जल्दी उठो विक्रम की बहू के दर्द उठना शुरू हो गया है। उसे तुरन्त किसी नर्सिंग होम में डिलीवरी के लिए लेकर चलना होगा।“ माधुरी ने घबराए स्वर में कहा। “मगर इस समय तो लॉकडाउन है। अपना एरिया तो हॉटस्पॉट होने की वजह से कई दिन से सील है। ऐसे में नर्सिंग ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 18
18 क्या करूं देशभक्ति का ? दफ्तर में पेन्शन बाबू की खिड़की के सामने लम्बी लाइन लगी हुई थी। छः तारीख थी। प्रतिमाह छः तारीख को पेन्शन भोगियों को पेन्शन मिलती थी, इसलिए लोग नौ बजे से ही जमा थे। मास्टर किशोरी लाल ने एक नजर खिड़की के सामने लगी लम्बी लाइन पर डाली। वे मन ही मन कुछ बुदबुदाए और फिर चुपचाप लाइन में जाकर खड़े हो गए। उनसे आगे लाइन में तीस-चालीस आदमी और खड़े हुए थे। दस बजे दफ्तर खुल गया परन्तु पेन्शन बाबू गुलाठी साढ़े दस बजे अपने केबिन में तशरीफ लाए। वे आकर अपनी ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 19
19 जीत का सेहरा चौधरी धारा सिंह बेचैनी से कोठी में चहल-कदमी कर रहे थे। उनके चेहरे पर चिंता रेखाएँ साफ झलक रही थीं। अभी थोड़ी देर पहले ही वह क्षेत्र से चुनावी दौरा करके लौटे थे। चौधरी धारा सिंह तीन बार इस क्षेत्र से एम.पी. रह चुके थे। वह इस चुनाव में चौथी बार एम.पी. के लिए खड़े हुए थे। इस बार चैधरी धारा सिंह को हवा अपने खिलाफ बहती दिखाई दे रही थी। इस बार दूसरी पार्टी ने देवादीन पांडेय को धारा सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा था। देवादीन पांडेय बेहद ईमानदार और कर्मठ आदमी थे। ...Read More
कैक्टस के जंगल - भाग 20 - (अंतिम भाग)
20 समय का चक्र कल्जीखाल की पहाड़ियों पर धूप पसर आई थी। जसमतिया धूप का आनन्द लेती रही। अक्टूबर हो गया था, इसलिए हवा में ठंडक बढ़ गई थी। जसमतिया को धूप में बैठना बड़ा अच्छा लग रहा था। मगर धूप में बैठने से काम चलने वाला नहीं था। जसमतिया उठी। उसने दुकान खोलकर अंगीठी सुलगाई और फिर दुकान झाड़ने पोंछने लगी। कल्जीखाल एक पहाड़ी कस्बा है। नाम कस्बे का है, मगर दो-चार सरकारी दफ्तर, एक अदद सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दस-पन्द्रह घर, यही सब मिलकर कस्बा बनता है। नीचे गाँव के कुछ लोगों ने होटल और चाय ...Read More