पौराणिक कथाओं के सबसे अधिक लोकप्रिय पात्र हैं "देवर्षि नारद।" शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण घटना घटित होती होगी जिसमें नारद की भूमिका न रहती हो। उनकी एक विशेषता यह बताई जाती है कि वे कहीं टिक कर नहीं बैठते थे। कभी देवताओं के बीच, तो कभी मानवों के और कभी असुरों के बीच नारद विचरण करते थे। सभी उनका बड़ा आदर-सम्मान भी करते थे। नारद जी को भगवान् विष्णु का अनन्य भक्त कहा जाता है। यद्यपि पौराणिक कथाओं में नारद का उल्लेख सदा सम्मान के साथ किया जाता है तथापि जन-साधारण यह कह कर भी उनकी हंसी उड़ाते हैं कि वे तो इधर की उधर लगाकर झगड़े करवाते फिरते हैं। वास्तविकता यह है कि वे जो भी करते थे उससे दुष्टों का पराभव तथा सज्जन लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ती थी। मान्यता है कि वीणा का आविष्कार नारद ने किया है। वे भगवान् की भक्ति और माहात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद् गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण किया करते थे। इन्हें 'भगवान् का मन' भी कहा गया है। "नारद स्मृति" तथा "नारद भक्ति सूत्र" की रचना नारद जी ने ही की। प्रस्तुत सभी कहानियां विभिन्न पुराणों और कुछ दंत कथाओं पर आधारित हैं। इनमें बताया गया है कि देवर्षि होते हुए भी नारद प्रलोभनों में फंस गए और उन्हें अहंकार हो आया। किन्तु जब-जब वे इन दुर्बलताओं के शिकार हुए भगवान् विष्णु ने उन्हें उबार लिया। नारद धीर-धीरे मानवीय दुर्बलताओं से ऊपर उठते गए और उन्होंने सम्यक ज्ञान प्राप्त कर लिया।
Full Novel
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 1
पौराणिक कथाओं के सबसे अधिक लोकप्रिय पात्र हैं "देवर्षि नारद।" शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण घटना घटित होती होगी नारद की भूमिका न रहती हो। उनकी एक विशेषता यह बताई जाती है कि वे कहीं टिक कर नहीं बैठते थे। कभी देवताओं के बीच, तो कभी मानवों के और कभी असुरों के बीच नारद विचरण करते थे। सभी उनका बड़ा आदर-सम्मान भी करते थे। नारद जी को भगवान् विष्णु का अनन्य भक्त कहा जाता है। यद्यपि पौराणिक कथाओं में नारद का उल्लेख सदा सम्मान के साथ किया जाता है तथापि जन-साधारण यह कह कर भी उनकी हंसी उड़ाते हैं ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 2
एक बार फिर देवर्षि नारद के मन में यह अभिमान पैदा हो गया कि वे ही भगवान् विष्णु के बड़े भक्त हैं। वे सोचने लगे 'मैं रात-दिन भगवान् विष्णु का गुणगान करता हूँ। फिर इस संसार में मुझसे बड़ा भक्त और कौन हो सकता है? किन्तु पता नहीं श्रीहरि मुझे ऐसा समझते हैं या नहीं? यह विचार कर नारद भगवान् विष्णु के पास क्षीर सागर में पहुँचे और उन्हें प्रणाम किया। विष्णु जी बोले "आओ नारद, कहो कैसे आना हुआ?" नारद बोले "भगवन्, मैं आपसे एक बात पूछने आया हूँ।" भगवान् विष्णु बोले "मैं तुम्हारे मन की बात जानता ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 3
लंका विजय के पश्चात् जब राम अयोध्या लौटे और राजतिलक हो गया तो एक दिन राजदरबार में महर्षि वशिष्ट, नारद तथा अन्य कई ऋषि धार्मिक विषयों पर विचार-विमर्श के लिए पधारे। जब उसी प्रकार के विषयों पर चर्चा चल रही थी तो देवर्षि नारद ने एक प्रश्न उठाया कि नाम और नामी में कौन श्रेष्ठ है? ऐसे प्रश्न को सुनकर ऋषियों ने कहा "नारद जी! नामी से तुम्हारा क्या तात्पर्य है, स्पष्ट करो।" नारद जी ने कहा "ऋषियों नाम तथा नामी से तात्पर्य है कि भगवन् नाम का जप-भजन श्रेष्ठ है या स्वयं भगवान् श्रेष्ठ हैं?" नारद जी की ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 4
इस ब्रह्माण्ड में कहीं कोई बात हो और वह नारद जी के कानों में पड़ जाए और उसका प्रचार हो, यह कदापि संभव नहीं है। उन्हें तो संचार तंत्र का आदि गुरु कहना अधिक उपयुक्त होगा। बैकुण्ठलोक से चलकर नारद जी सीधे मथुरा के राजा अत्याचारी कंस के पास पहुँचे। कंस ने नारद जी का समुचित आदर-सत्कार किया और उनके दर्शनों के लिए आभार प्रकट किया। कुछ पल शान्त रहने के बाद नारद जी ने कंस से कहा "राजन्! अब अत्याचार करना बंद कर दो, क्योंकि तुम्हारा वध करने के लिए तुम्हारी बहन देवकी के गर्भ से आठवीं संतान ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 5
एक समय की बात है, नारद ने विषय-वासनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए परब्रह्म की कठोर साधना की। हिमालय पर्वत के एक निर्जन स्थान में जाकर समाधिस्थ हो गए और परब्रह्म की आराधना करने लगे। उनको इस प्रकार कठोर साधना करते देख देवराज इंद्र भयभीत हो गए। उन्होंने इस विषय में देव गुरु बृहस्पति से परामर्श करने का विचार किया। वे आचार्य बृहस्पति के पास पहुँचे और उनसे कहा “आचार्य! नारद हिमालय पर्वत पर बड़ी कठिन साधना कर रहे हैं। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि वे इतना कठोर तप किस उद्देश्य के लिए कर रहे ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 6
राजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं। बड़ी रानी का नाम सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था। सुनीति पुत्र का नाम ध्रुव था और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम। राजा छोटी रानी और उसके पुत्र से विशेष स्नेह रखते थे, बेचारी सुनीति और बेटे ध्रुव की हमेशा उपेक्षा होती थी। महल की परिचारिकाएं भी सुरुचि से प्रसन्न नहीं रहती थीं। वे प्रायः घृणा से उनकी ओर देखती और बोलती, "देखो, वो आ रही है रानी सुरुचि।" "देखो तो कैसी अकड़ है, इसका तो बस एक ही लक्ष्य है कि किसी तरह से इसके पुत्र उत्तम को ही ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 7
एक बार अचानक देवराज इंद्र के हाथी ऐरावत को न जाने क्या जुनून सवार हुआ कि उसने खाना-पीना बंद दिया। क्रोध के मारे जैसे वह पागल हुआ जा रहा था। महावत ने उसे पुचकारा, तो ऐरावत सूंड ऊपर उठा कर चिंघाड़ा। उसने महावत को पकड़ने के लिए सूंड हवा में घुमाई। महावत पहले ही ऐरावत के मिजाज को भांप गया था, इसीलिए वह तेजी से पीछे हट गया और भागा-भागा देवराज इंद्र के पास आया। इंद्र उस समय कहीं जाने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने पहले ही संदेश भेज दिया था कि ऐरावत को खिला-पिलाकर लाया जाए। महावत ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 8
विधाता होते हुए भी ब्रह्मा जी ने पूर्वकाल में अपने पुत्रों को सृष्टि की उत्पत्ति के लिए कहा तो सब इन्कार करके तप करने को चल दिए। पुत्रों के इस व्यवहार पर ब्रह्मा जी को इतना अधिक क्रोध आया कि उनका मस्तक ब्रह्मतेज से जलने लगा, जिससे ग्यारह रुद्र उत्पन्न हुए। जिनमें से एक का नाम कालाग्नि रुद्र है। यह रुद्र सृष्टि का संहार करने वाला है। ब्रह्माजी ने पुनः सृष्टि रची। उनके दांये कान से पुलस्त्य, बांये कान से पुलह, दांये नेत्र से अग्नि, बांये नेत्र से क्रतु, नासिका के दांये पुट से अराणि, बांये पुट से अंगिरा, ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 9
त्रेतायुग में एक बार भयंकर अकाल पड़ा। वर्षा न होने से सब वनस्पतियां सूख गई। तपोवनों में भी कन्द-मूल जल मिलना दुर्लभ हो गया। ऐसी स्थिति में कौशिक मुनि अपने परिवार को लेकर किसी ऐसी जगह की खोज में चले जहाँ जीवन-यापन के लिए अन्न-जल सुलभ तरीके से प्राप्त हो सके। वे चलते गए, चलते गए। दूर तक अकाल की छाया पड़ी थी। उनका सबसे छोटा पुत्र लगातार चलने में असमर्थ हो गया था। एक रात उन्होंने उसे एक वन में वृक्ष के नीचे सोता हुआ, ईश्वर के भरोसे छोड़ आगे चले गए। प्रातः जब बच्चा जागा तो उसने ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 10
दोपहर के पश्चात् का समय था। महाभारत के रचयितावेदव्यास जी ब्रह्म नदी के तट पर बड़े ही उदास, बड़े खिन्न बैठे हुए थे। नदी कल-कल स्वरों से बह रही थी। सामने पर्वत की चोटी पर बिछी हुई बर्फ के ऊपर सूर्य की सुनहरी किरणें खेल रही थी। पर्वत के नीचे वृक्षों पर कल-कंठों से पक्षी गा रहे थे, पर वेदव्यास जी के लिए प्रकृति का वह वैभव बिल्कुल निस्सार था। वे उदास मुख, विचारों में खोए हुए थे। वेदव्यास जी अपने भीतर घुसकर अपनी उदासी का कारण खोज रहे थे। वे सोच रहे थे, उनकी तो किसी में कोई ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 11
देवर्षि नारद बहुत बड़े संत थे। वे जहाँ चाहें, आ-जा सकते थे। नारायण के भक्त थे। लेकिन एक बार मन में यह जानने की इच्छा पैदा हुई कि आखिर संत के क्या लक्षण हैं? संत कैसा होना चाहिए? संत कौन होता है? वे श्रीकृष्ण के पास गए और अपनी जिज्ञासा बताई। बोले “भगवन्, मेरी शंका का समाधान करें।” श्रीकृष्ण ने कहा “नारद जी आप अमुक यादव के पास जाओ। उसकी पत्नी गर्भवती है। उसके घर बच्चा पैदा होने वाला है। जब बच्चा पैदा हो, तो तुम उस बच्चे से यह सवाल पूछना, वह सब कुछ बता देगा।” नारद जी ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 12
[शुकदेवजी को ज्ञानोपदेश]यद्यपि परम तपस्वी एवं त्यागी मुनिप्रवर शुकदेवजी स्वयं परमज्ञानी एवं बड़े तपस्वी थे और उनकी भागवत-वृत्ति जगत्भर प्रसिद्ध थी, तथापि उनकी ज्ञानगरिमा को बढ़ानेवाली, भगवद्भक्ति को पल्लवित करने वाले, शान्तिमय, अहिंसामय तथा सनातनधर्म के अनुसार गीता के महामन्त्र का उपदेश देकर, पांचभौतिक शरीर से मुक्त कर उनको दिव्य शरीरधारी बनाने वाले थे, उनके गुरुवर देवर्षि नारद। जिस समय शुकदेवजी अपने पूज्यपाद पिता कृष्णद्वैपायन वेदव्यास को पुत्रवात्सल्यरस में निमग्न कर तपोवन को चले गये, उस समय भगवदिच्छास्वरूपदेवर्षि नारदजी उनके निकट जा पहुँचे। देवर्षि नारद को सामने देख शुकदेवजी उनका सम्मान करने के लिये उठ खड़े हुए और यथाविधि ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 13
द्वापर युग में कुबेर जैसा धनवान कोई नहीं था। उसके दो पुत्र थे। एक का नाम नलकूबेर था और का मणिग्रीव। कुबेर के ये दोनों बेटे अपनी पिता की धन-संपत्ति के प्रमाद में घमंडी और उद्दंड हो गए थे। राह चलते लोगों का छेड़ना, उन पर व्यंग्य कसना, गरीब लोगों की मखौल उड़ाना उन दोनों की प्रवृत्ति बन गई थी। एक दिन दोनों भाई नदी में स्नान कर रहे थे। तभी आकाशमार्ग से आते हुए उन्हें देवर्षि नारद दिखाई दिए। उनके मुख से 'नारायण-नारायण' का स्वर सुन कर नदी पर स्नान के लिए पहुँचे लोग उन्हें प्रणाम करने लगे, ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 14
एक दिन भक्त शिरोमणी देवर्षि नारद वीणा पर हरिका यशोगान करते हुए ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ कुछ ब्राह्मण खिन्न और उदास अवस्था में बैठे थे। उन्हें दुखी देखकर नारद जी ने पूछा पूज्य ब्राह्मण देवों! आप सब इस प्रकार उदास क्यों हो रहे हैं? कृपया मुझे अपने दुख का कारण बताइए, संभवतः मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूं। ब्राह्मणों ने उत्तर दिया मुनिवर! एक दिन सौराष्ट्र के राजा धर्मवर्मा ने आकाशवाणी सुनीद्विहेतु जाडधिष्ठानं जाडडूं च द्विपाकयुक्।चतुष्प्रकार त्रिवधं त्रिनाशं दानमुच्यते।। राजा को दान विषयक इस श्लोक का कुछ भी अर्थ समझ में नहीं आया। उन्होंने देवी वाणी से इसका ...Read More
परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 15
महाराज पृथु का पौत्र बर्हि बड़ा कर्मकांडी था। वह दिन-रात तरह-तरह के कार्यों में लगा रहता था। वह श्रीहरि उपासना न करके देवी-देवताओं की उपासना किया करता था। वह देवी और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान आदि किया करता था। केवल यही नहीं बर्हि देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जीवों की बलि भी दिया करता था। जीवों को बलि देते समय वह हर्षित होता था और अपने आपको धन्य मानता था। एक दिन देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए बर्हि की सेना में उपस्थित हुए। बर्हि ने उनका स्वागत किया और बैठने के ...Read More