सत्य ना प्रयोगों

(55)
  • 48.7k
  • 9
  • 21.9k

गांधीजी के बारे मे हर कोई जानता है पर बहोत कम लोग होंगे जिन्होंने उनकी आत्मकथा को पुरा पढ़ा होगा। इस लिए हम आपके लिए ये कहानी लेके आये है। गांधीजी के जीवन के कुछ मजेदार और दुःख प्रसंगो। सत्य के प्रयोग' महात्मा गांधी द्वारा लिखी वह पुस्तक है, जिसे उनकी आत्मकथा का दर्जा हासिल है। यह किताब दुनिया की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. मोहनदास करमचंद गांधी ने 'सत्य के प्रयोग' अथवा 'आत्मकथा' का लेखन बीसवीं शताब्दी में सत्य, अहिंसा और ईश्वर का मर्म समझने-समझाने के विचार से किया था. गांधी जी ने 29 नवंबर, 1925 को इस किताब को लिखना शुरू किया था और 3 फरवरी, 1929 को यह किताब पूरी हुई थी। गांधी-अध्ययन को समझने में 'सत्य के प्रयोग' को एक प्रमुख दस्तावेज का दर्जा हासिल है, जिसे स्वयं गांधी जी ने कलमबद्ध किया था।

Full Novel

1

सत्य ना प्रयोगों - भाग 1

गांधीजी के बारे मे हर कोई जानता है पर बहोत कम लोग होंगे जिन्होंने उनकी आत्मकथा को पुरा पढ़ा इस लिए हम आपके लिए ये कहानी लेके आये है। गांधीजी के जीवन के कुछ मजेदार और दुःख प्रसंगो। सत्य के प्रयोग' महात्मा गांधी द्वारा लिखी वह पुस्तक है, जिसे उनकी आत्मकथा का दर्जा हासिल है। यह किताब दुनिया की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. मोहनदास करमचंद गांधी ने 'सत्य के प्रयोग' अथवा 'आत्मकथा' का लेखन बीसवीं शताब्दी में सत्य, अहिंसा और ईश्वर का मर्म समझने-समझाने के विचार से किया था.गांधी जी ने 29 नवंबर, 1925 ...Read More

2

सत्य ना प्रयोगों - भाग 2

आगे की कहानी....... पोरबंदर से पिताजी राजस्थानिक कोर्ट के सदस्य बनकर राजकोट गए। उस समय मेरी उमर सात साल होगी। मुझे राजकोट की ग्रामशाला में भरती किया गया। इस शाला के दिन मुझे अच्छी तरह याद हैं। शिक्षकों के नाम भी याद हैं। पोरबंदर की तरह यहाँ की पढ़ाई के बारे में भी ज्ञान के लायक कोई खास बात नहीं हैं। मैं मुश्किल से साधारण श्रेणी का विद्यार्थी रहा होगा। ग्रामशाला से उपनगर की शाला में और वहाँ से हाईस्कूल में। यहाँ तक पहुँचने में मेरा बारहवाँ वर्ष बीत गया। मुझे याद नहीं पड़ता कि इस बीच मैंने किसी ...Read More

3

सत्य ना प्रयोगों - भाग 3

आगे की कहानी.... हिंदू-संसार में विवाह कोई ऐसी-वैसी चीज नहीं। वर-कन्या के माता-पिता विवाह के पीछे बरबाद होते हैं, लुटाते हैं और समय लुटाते हैं। महीनों पहले से तैयारियाँ होती हैं। कपड़े बनते है, गहने बनते है, जातिभोज के खर्च के हिसाब बनते हैं, पकवानों के प्रकारों की होड़ बदी जाती है। औरतें, गला हो चाहे न हो तो भी गाने गा-गाकर अपनी आवाज बैठा लेती हैं, बीमार भी पड़ती हैं। पड़ोसियों की शांति में खलल पहुँचाती हैं। बेचारे पड़ोसी भी अपने यहाँ प्रसंग आने पर यही सब करते हैं, इसलिए शोरगुल, जूठन, दूसरी गंदगियाँ, सब कुछ उदासीन भाव ...Read More

4

सत्य ना प्रयोगों - भाग 4

आगे की कहानी हास्कुल मे...... मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि विवाह के समय मैं हाईस्कूल में पढ़ता था। समय हम तीनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे। जेठे भाई ऊपर के दर्जे में थे और जिन भाई के विवाह के साथ मेरा विवाह हुआ था, वे मुझसे एक दर्जा आगे थे। विवाह का परिणाम यह हुआ कि हम दो भाइयों का एक वर्ष बेकार गया। मेरे भाई के लिए तो परिणाम इससे भी बुरा रहा। विवाह के बाद वे स्कूल पढ़ ही न सके। कितने नौजवानों को ऐसे अनिष्ट परिणाम का सामना करना पड़ता होगा, भगवान ही ...Read More

5

सत्य ना प्रयोगों - भाग 5

आगे की कहानी Sad occasion...मैं कह चुका हूँ कि हाईस्कूल में मेरे थोड़े ही विश्वासपात्र मित्र थे। कहा जा है कि ऐसी मित्रता रखनेवाले दो मित्र अलग-अलग समय में रहे। एक का संबंध लंबे समय तक नहीं टिका, मैंने दूसरी दोस्ती की, इसलिए पहले ने मुझे छोड़ दिया। दूसरी दोस्ती मेरे जीवन का एक दुखद प्रकरण है। यह दोस्ती बहुत वर्षों तक रही। इस दोस्ती को निभाने में मेरी दृष्टि सुधारक की थी। इन भाई की पहली मित्रता मेरे मँझले भाई के साथ थी। वे मेरे भाई की कक्षा में थे। मैं देख सका था कि उनमें कई दोष ...Read More

6

सत्य ना प्रयोगों - भाग 6

आगे की कहानी... उस समय तो मुझे जान पड़ा कि मेरी मर्दानगी को बट्टा लगा और मैंने चाहा कि जगह दे तो मैं उसमे समा जाऊँ। पर इस तरह बचने के लिए मैंने सदा ही भगवान का आभार माना है। मेरे जीवन में ऐसे ही दूसरे चार प्रसंग और आए हैं। कहना होगा कि उनमें से अनेकों में, अपने प्रयत्न के बिना, केवल परिस्थिति के कारण मैं बचा हूँ। विशुद्ध दृष्टि से तो इल प्रसंगों में मेरा पतन ही माना जाएगा। चूँकि विषय की इच्छा की, इसलिए मैं उसे भोग ही चुका। फिर भी लौकिक दृष्टि से, इच्छा करने ...Read More

7

सत्य ना प्रयोगों - भाग 7

आगे की कहानी पिताजी की मृत्यू....उस समय मैं सोलह वर्ष का था। हम ऊपर देख चुके हैं कि पिताजी की बीमारी के कारण बिलकुल शय्यावश थे। उनकी सेवा में अधिकतर माताजी, घर का एक पुराना नौकर और मैं रहते थे। मेरे जिम्मे 'नर्स' का काम था। उनके घाव धोना, उसमें दवा डालना, मरहम लगाने के समय मरहम लगाना, उन्हें दवा पिलाना और जब घर पर दवा तैयार करनी हो तो तैयार करना, यह मेरा खास काम था। रात हमेशा उनके पैर दबाना और इजाजत देने पर सोना, यह मेरा नियम था। मुझे यह सेवा बहुत प्रिय थी। मुझे स्मरण ...Read More

8

सत्य ना प्रयोगों - भाग 8

आगे की कहानी धर्म की झाँकी... छह या सात साल से लेकर सोलह साल की उमर तक मैंने पढ़ाई पर स्कूल में कहीं भी धर्म की शिक्षा नहीं मिली। यों कह सकते है कि शिक्षकों से जो आसानी से मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। फिर भी वातावरण से कुछ-न-कुछ तो मिलता ही रहा। यहाँ धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात आत्मबोध, आत्मज्ञान। मैं वैष्णव संप्रदाय में जन्मा था, इसलिए हवेली में जाने के प्रसंग बार-बार आते थे। पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा नहीं लगा। हवेली में चलनेवाली अनीति की ...Read More

9

सत्य ना प्रयोगों - भाग 9

आगे की कहानी विलायत की तैयारी... सन 1886 में मैंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। देश की और गांधी-कुटुंब गरीबी ऐसी थी कि अहमदाबाद और बंबई-जैसे परीक्षा के दो केंद्र हों, तो वैसी स्थितिवाले काठियावाड़-निवासी नजदीक के और सस्ते अहमदाबाद को पसंद करते थे। वही मैंने किया। मैंने पहले-पहल राजकोट से अहमदाबाद की यात्रा अकेले की।बड़ों की इच्छा थी कि पास हो जाने पर मुझे आगे कॉलेज की पढ़ाई करनी चाहिए। कॉलेज बंबई में भी था और भावनगर में भी। भावनगर का खर्च कम था। इसलिए भावनगर के शामलदास कॉलेज में भरती होने का निश्चय किया। कॉलेज में मुझे ...Read More

10

सत्य ना प्रयोगों - भाग 10

आगे की कहानी जाति से बाहर... माताजी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर और पत्नी की गोद में कुछ महीनों बालक छोड़कर मैं उमंगों के साथ बंबई पहुँचा। पहुँच तो गया, पर वहाँ मित्रों ने भाई को बताया कि जून-जूलाई में हिंद महासागर में तूफान आते है और मेरी यह पहली ही समुद्री यात्रा है, इसलिए मुझे दीवाली के बाद यानी नवंबर में रवाना करना चाहिए। और किसी ने तूफान में किसी अगनबोट के डूब जाने की बात भी कही। इससे बड़े भाई घबराए। उन्होंने ऐसा खतरा उठाकर मुझे तुरंत भेजने से इनकार किया और मुझको बंबई में अपने मित्र ...Read More

11

सत्य ना प्रयोगों - भाग 11

आगे की कहानी मेरी पसंद.... डॉक्टर मेहता सोमवार को मुझसे मिलने विक्टोरिया होटल पहुँचे। वहाँ उन्हें हमारा नया पता इससे वे नई जगह आकर मिले। मेरी मूर्खता के कारण जहाज में मुझे दाद हो गई थी। जहाज में खारे पानी से नहाना होता था। उसमें साबुन घुलता न था। लेकिन मैंने तो साबुन का उपयोग करने में सभ्यता समझी। इससे शरीर साफ होने के बदले चीकट हो गया। उससे दाद हो गई। डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने एसेटिक एसिड दी। इस दवा ने मुझे रुलाया। डॉक्टर मेहता ने हमारे कमरे वगैरा देखे और सिर हिलाया, 'यह जगह काम की नहीं। ...Read More

12

सत्य ना प्रयोगों - भाग 12

आगे की कहानी 'सभ्य' पोशाक में... अन्नाहार पर मेरी श्रद्धा दिन पर दिन बढ़ती गई। सॉल्ट की पुस्तक ने के विषय में अधिक पुस्तकें पढ़ने की मेरी जिज्ञासा को तीव्र बना दिया। जितनी पुस्तकें मुझे मिलीं, मैंने खरीद ली और पढ़ डाली। उनमें हावर्ड विलियम्स की 'आहार-नीति' नामक पुस्तक में अलग-अलग युगों के ज्ञानियों, अवतारों और पैगंबरों के आहार का और आहार-विषयक उनके विचारों का वर्णन किया गया है। पाइथागोरस, ईसा मसीह इत्यादि को उसने केवल अन्नाहारी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। डॉक्टर मिसेस एना किंग्सफर्ड की 'उत्तम आहार की रीति' नामक पुस्तक भी आकर्षक थी। साथ ही, ...Read More

13

सत्य ना प्रयोगों - भाग 13 - अंतिम भाग

अंतिम भाग "Change"... कोई यह न माने कि नाच आदि के मेरे प्रयोग उस समय की मेरी स्वच्छंदता के है। पाठकों ने देखा होगा कि उनमें कुछ समझदारी थी। मोह के इस समय में भी मैं एक हद तक सावधान था। पाई-पाई का हिसाब रखता था। खर्च का अंदाज रखता था। मैंने हर महीने पंद्रह पौंड से अधिक खर्च न करने का निश्चिय किया था। मोटर में आने-जाने का अथवा डाक का खर्च भी हमेशा लिखता था। और सोने से पहले हमेशा अपनी रोकड़ मिला लेता था। यह आदत अंत तक बनी रही। और मैं जानता हूँ कि इससे ...Read More