बादलों से टपकता पानी, धूप -छाँव की आँख मिचौली और जीवन की आँख मिचौली कभी-कभी एक सी ही तो लगती है | जब जी चाहा धूप-छाँह और जब मन किया मन के आसमान से बौछारों का सिलसिला कुछ ऐसा ही हो जाता है जैसे मन के आँगन के कोने में सिमटे कुछ ख़्वाबों के टैंट जो कभी लगा लो, कभी उखाड़ लो, उखाड़ दो क्या, जीवन की धूप-आँधियों में वे अपने आप ही बदरंगे हो जाते हैं और उखड़ जाते हैं, पता भी नहीं चलता | आख़िर आदमी कहाँ ले जाए अपने सपनों को, उनसे जुड़ी हुई संवेदनाओं को, धड़कनों को, प्रेम के उन अहसासों को जो पल-पल रंग बदलते रहते हैं वैसे वे गिरगिट नहीं होते, साँप की केंचुली भी नहीं लेकिन फिर भी कभी भी रंग बदल लेते हैं, मन को उदास कर जाते हैं | अकेला मन इस धूप-छाँव सा ही होता रहता है | मैं एक पब्लिक-फ़िगर, हर प्रकार के लोग मुझसे मिलते, उनकी समस्याएँ भी कचौटतीं लेकिन उस अहसास का क्या जो मेरे मन के समुद्र में उछालें मारती रहतीं थीं |
Full Novel
प्रेम गली अति साँकरी - 1
प्रेम गली अति साँकरी ------------- दो शब्द ---बस अधिक नहीं --- मेरे स्नेहिल साथियों ! मेरा सभी को स्नेहपूर्ण शब्दों की इस दुनिया में मातृभारती से मुझे भरपूर स्नेह मिला है जिसने मुझे सोचने के लिए बाध्य कर दिया कि बेशक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हों अथवा न हों, मेरे इस पटल के पाठक मेरे साथ स्नेहपूर्वक जुड़े रहेंगे यह मेरी कोरी कल्पना ही नहीं अटूट विश्वास है आपका स्नेह पाने के लिए मेरा रविवारीय कॉलम ‘उजाले की ओर’और एक उपन्यास तो लगातार चलता ही रहता है व्यस्तताओं और उम्र के चलते मैं कहानियाँ, लघु कथाएँ, दानी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 2
2 --- मेरी माँ अपने बालपन में केरल में रहती थीं हाँ, मैं यह बताना तो भूल गई कि माँ दक्षिण भारतीय थीं और पापा उत्तर प्रदेश से जब पापा बैंगलौर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए, वहीं माँ-पापा की मित्रता हुई थी उन दिनों अपने बच्चों को बाहर भेजकर पढ़ाना एक वर्ग विशेष का प्रदर्शन व आत्मसंतोष हुआ करता था मेरी माँ, पापा की दोनों की किशोरावस्था थी, कुछ दिन--- शायद दो वर्ष दोनों मिलते रहे पापा के कॉलेज के पास ही माँ का नृत्य संस्थान था वह रोज़ ही वहाँ जातीं और पापा से ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 3
3 --- इस अजीब सी ज़िंदगी के कितने कोण हो सकते हैं भला ? कैसे होंगे ? जब कहा है कि दुनिया गोल है फिर भी हम खुद को कभी किसी कोने में तो कभी किसी कोने में सिमटा हुआ महसूस करते हैं कोनों में से तरह -तरह की आवाज़ें आती हैं, महसूस होता है, हम न जाने कितने छद्म वेषों में भटकते रहते हैं पापा अपने प्यार को कभी भी भूलने वाले तो थे नहीं न जाने उन्हें कौन सी अदृश्य शक्ति भीतर से ढाढ़स बँधाती रहती कि वे माँ के प्रति अपने प्रेम ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 4
4-- क्या यही प्यार था ? वेदान्त की हालत उस बच्चे की तरह हो रही थी जिसके हाथ में ने गैस के गुब्बारों का गुच्छा पकड़ा दिया हो और वह उसके हाथ से छूटकर उड़ गया हो वह उत्सुकता और उत्साह से उसे फिर से पकड़ने के प्रयास में अनमना हो कि अचानक वह गुब्बारे फिर उसके सामने लहराने लगे हों, कि लो पकड़ लो हमें ! यूँ तो दिल के धड़कने के लिए कालिंदी की यादें, उसका नाम ही काफ़ी था किन्तु उस पर समय का आवरण चढ़ चुका था, आज अचानक आवरण में से उसका ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 5
5 -- वेदान्त और श्यामल दोनों की जैसे लॉटरी लग गई थी डॉ मुद्गल के पास सूचना दी गई और उन्होंने सपत्नीक दिल्ली आने का कार्यक्रम बना लिया था वेदान्त की माँ ने कालिंदी को बुलाया और उनकी आँखें आँसुओं से भीग उठीं इतने वर्षों के बाद उनके बेटे के जीवन का सूनापन दूर होने वाला था कालिंदी के चमकते, साँवले रूप पर वे कितनी लट्टू हो चुकी थीं कि उसके आते ही अपने गले से खासी मोटी चेन उतारकर उन्होंने उसे पहन दी थी अरे ! मेरा बेटा तो मेरी काली ले आया--- उन्होंने कालिंदी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 6
6- ---- सगाई का दिन आ गया और यूनिवर्सिटी कैंपस के खूबसूरत स्थल पर गिने-चुने महत्वपूर्ण लोगों के साथ का कार्यक्रम सम्पन्न किया गया दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर, कई डिपार्टमेंट्स के हैड्स, दोनों परिवारों के करीबी संबंधी और मित्र आदि सभी उपस्थित थे दोनों परिवार पहले से ही परिचित थे, दोनों सासें खुशी के मारे फूली न समाईं सुंदर, सुशील, सम्मानित परिवार की बेटियाँ उनके घर में लक्ष्मी के रूप में प्रवेश कर रही थीं चौधरी साहब के परिवार में तो दो और बेटे भी थे लेकिन वेदान्त की माँ के पास एक वही था ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 7
घर में सन्नाटा पसर गया दादी का जाना जैसे एक वट-वृक्ष का जड़ से कट जाना ! तो उ.प्रदेश से काफ़ी रिश्तेदारों की गहमा-गहमी रही कालिंदी के व्यवहार से तो पहले ही रिश्तेदार चकित रहा करते थे अब सास के लिए इतना दुखी होते हुए देखकर बहुत से रिश्तेदार तो आश्चर्य ही कर रहे थे कि उनके परिवार की कोई भी बहुएँ ऐसी प्यार, सम्मान देने वाली और सुगढ़ न थीं जैसी ये मद्रासन निकली थी पापा बताया करते थे कि उनकी शादी में उनके रिश्तेदारों ने कितने मुँह बनाए थे उन्हें पापा गोरे लगते ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 8
खासा लंबा समय लगा उन काँटों की चुभन को छुड़ा पाने में समय के काँटे सबके दिलों चिपक गए थे लेकिन ज़िंदगी जब तक होती है, उसका मोह कहाँ छूटता है? उसके कर्तव्य कहाँ छूटते हैं ? उसकी रोजाना की तकलीफ़ें कहाँ छूटती हैं ? वे तो चंदन वृक्ष पर सर्प सी लिपटी रहती हैं सर्प अपना काम करते हैं, चंदन अपनी महक फैलाने का ! दिव्य बार-बार अपने पिता जगन से पूछता कि वह पढ़ाई के साथ अगर संगीत की शिक्षा भी ले लेता तो उसका भविष्य सुधर जाता मुझे भी हमेशा ऐसा ही लगा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 9
9 ज़िंदगी हर इम्तिहान ही तो लेती है, सबका लेती है गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित—कोई भी क्यों न हो ! कोई कितना भी छिपाने का प्रयत्न करे, छिपा भी ले, बाहरी तौर पर लेकिन खुद से कभी कोई कुछ छिपा सका है ? किसी न किसी क्षण उसे उस पीड़ा के सामने ऐसे खड़ा होना पड़ता है जैसे कोई मुजरिम ! कई बार लगता है कि मनुष्य सच में मुजरिम होता है क्या ? उसे खुद भी लगता है कि आखिर उसे किस जुर्म की सज़ा मिल रही है जीवन की भूल-भुलैया उसे उसमें से बाहर आने ही ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 10
10 रतनी को जिस स्थिति में ब्याहकर लाया था, वह कितनी भयावह रही होगी उसके लिए जिसके प्यार को छीनकर उसको एक शराबी के पल्ले बाँध दिया गया था लेकिन उसमें शीला दीदी की भी इतनी गलती नहीं थी क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था रतनी की ज़िंदगी के बारे में, केवल इसके कि वह अपने माता-पिता के बाद भाइयों के रहम पर पल रही थी उसके भाई ही तो अपनी बहन का रिश्ता लेकर आए थे और शीला ने उन्हें अपने भाई की हरकतों के बारे में स्पष्ट रूप से बताया था “बहन जी, हमें तो आपके ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 11
11 हड़बड़ा उठा, पिता को देखकर वह अचंभित भी हुआ और भयभीत भी अपने समझदार होने के बाद उसने कभी भी अपने कसाई पिता को इस समय घर पर देखा ही नहीं था उसने क्या, शायद किसी ने भी नहीं देखा होगा जगन के घर में न रहने से सब खुलकर साँस ले पाते थे रतनी को अच्छे घरों के कपड़े सिलने के लिए मिलने लगे थे, वह कहती थी कि वह सब पहले दादी के और अब मेरे कारण हो रहा था लेकिन ऐसा कुछ नहीं था यदि उसमें इतनी होशियारी और काम ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 12
12 – न जाने क्या होता था, मैं क्यों अपने की बड़ी सी खिड़की के सामने उस सड़क की तरफ़ अक्सर खड़ी हो जाती थी जिधर रतनी का घर था सड़क के ठीक सामने के पीछे के भाग में मेरे कमरे की खिड़की पड़ती थी जहाँ से केवल सड़क पार करके रतनी और शीला दीदी का घर पूरा ऐसे दिखाई देता था जैसे वह मेरे लिए ही बनाया गया हो उस तरफ़ के रास्ते बंद करवाकर पीछे की चौड़ी सड़क पर भव्य सिंहद्वार ‘गेट’बरसों पहले बनवा दिया गया था कारण, वही था कि इस रास्ते ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 13
13— बरसों ऐसे ही निकलते जा रहे थे जैसे पवन के झौंके !पापा व्यापार और अम्मा का संस्थान बुलंदियाँ छू रहा था और कभी-कभी यह प्रश्न भी उठता ही था कि आखिर कौन चलाएगा उन व्यवसायों को बाद में? समय के साथ-साथ मन की साँकल कुछ प्रश्नों की खटखटाहट करने ही लगती है पापा-अम्मा, दोनों का स्टाफ़ बहुत अच्छा था कितने लोग जुड़े हुए थे उनसे और काम था कि बढ़ता ही जा रहा था वे कभी काम कम करने के बारे में सोचते या चर्चा भी करते तो न जाने क्यों निष्कर्ष हर बार ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 14
14— उस दिन रतनी का चेहरा देखकर मैं असहज हो गई थी शायद यह सच है कि खराब बातों का असर बहुत जल्दी मनोमस्तिष्क पर पड़ता है और गहरा भी मेरे सामने अच्छे दृष्टांत भी तो थे जिनका असर बड़ा प्यारा और सकारात्मक था लेकिन इस परिवार का असर तो इतना नकारात्मक था कि कभी-कभी मुझसे सहन ही नहीं होता था देखा जाए तो मुझे क्यों उस सबसे इतना प्रभावित होने की ज़रूरत थी?क्या मालूम दुनिया में और कितने लोग इनके जैसे थे जिनका हमें पता भी नहीं चलता था लेकिन यही तो है न, ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 15
15 – दिव्य कितना अच्छा गाने लगा था जगन को पता चल गया था कि वह संस्थान में रियाज़ कर रहा है आखिर कितनी देर बात छिप सकती है ? लेकिन उसने अब कुछ भी कहना बंद कर दिया था, न जाने क्यों? लेकिन बीच में जैसे वह घर पर जल्दी आने लगा था, अब उसने फिर से पहले की तरह बाहर रहना शुरू कर दिया था “एक दिन मैंने इनसे कहा कि कभी तो बैठकर बात करो, बच्चे बड़े हो रहे हैं उनके बारे में कुछ सोचना होगा तो इन्होंने मुझे धक्का दे दिया ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 16
16— ========= सड़क के उस पार से भयंकर शोर की आवाज़ आ रही थी | होगा कुछ पागलपन, किसी किसीका झगड़ा या फिर जगन का ही कुछ होगा जो तूफ़ान बरपा हो रहा था वातावरण में ! ’हद है---’मन में सोचा मैंने | ‘इतना दूर हो जाने यानि पीछे का पूरा आना-जाना बंद कर देने पर भी उस ओर के लोगों को देखना हो ही जाता था | वैसे मेरी ही तो गलती थी न!क्या ज़रूरत थी मुझे उधर की ओर की खिड़की खोलकर झाँकने की? लेकिन मन था न शैतान का ---!’मैंने अपने आपको ही दुतकारा | फिर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 17
17 – =========== अपने कमरे के दरवाज़े पर नॉक सुनकर मैंने कहा –“आ जाइए | ” मुझे मालूम था होंगे मेरी कॉफी और अखबार के साथ ! “गुड मॉर्निंग दीदी ---” महाराज ने कमरे में आकर ट्रे मेरी खिड़की के पास की मेज़ पर रख दी| “क्या हुआ दीदी?आपकी तबीयत तो ठीक है न ?” महाराज ने अपनत्व से पूछा तब मेरा ध्यान गया कि वह महाराज नहीं उनका बेटा रमेश था | “गुड मॉर्निंग ---हाँ, बिलकुल –क्यों?” मैंने उसके चिंतित चेहरे पर दृष्टि डाली| “वो, आपके कमरे की लाइट बहुत देर से खुली हुई थी ---” धीरे से ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 18
18 --- =========== काफ़ी देर हो गई थी आज, अम्मा कब की तैयार होकर कला-केंद्र यानि संस्थान चली गईं उन्होंने मुझे उठाया भी नहीं था | अब तक काफ़ी उजाला हो चुका था, अम्मा ने मुझसे कहा था कि संस्थान में चर्चा के लिए यू.के की कोई टीम आने वाली थी, मैं वहाँ की तैयारियाँ देख लूँ लेकिन कमाल था, मेरी भयंकर नींद ने मुझे न जाने कब दूसरी दुनिया में पहुँच दिया था | जिस प्रकार मैं हड़बड़ा कर उठी थी अम्मा या कोई और मुझे देखता तो ज़रूर परेशान हो जाता | मैं खुद भी चौंक उठी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 19
19 --- ================ अम्मा के साथ शीला दीदी और स्टाफ़ के लोग व कुछ विजिटिंग फ़ैकल्टी थी | सब कॉन्फ्रेंस-रूम में थे | अम्मा के यू.के के वो स्टूडेंट्स जो वहाँ नृत्य की कक्षाएँ चला रहे थे और उनके साथ वहाँ के दो ब्रिटिश स्पॉन्सरर्स भी आए हुए थे | वे वहाँ के केंद्र को एक बड़े संस्थान के रूप में परिवर्तित करना चाहते थे | अभी तक अम्मा के स्टूडेंट्स निजी तौर पर नृत्य-केंद्र संभाल रहे थे | उन लोगों की इच्छा थी कि यहाँ की तरह वहाँ भी विभिन्न भारतीय शास्त्रीय कलाओं का समावेश किया जा सके ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 20
20 --- =============== सब कुछ बहुत अच्छी तरह हो गया जैसे अम्मा-पापा की आदत थी किसी ने मुझसे कुछ पूछा | मैं गलत थी इसीलिए अंदर से गिल्ट महसूस कर रही थी | सबसे बड़ी बात जो परेशान कर रही थी, वह यह थी कि वह अभी तक रतनी से बात नहीं कर पाई थी कि आखिर सुबह-सुबह उनके घर में शोर कैसा था? कुछ दिनों से शांति थी तो अच्छा लग रहा था | वैसे वह क्या सब ही जानते थे कि सड़क के पार वाले घर में शांति हो ऐसा तो लगभग असंभव ही सा था लेकिन ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 21
21 --- ========= रतनी की आँखों के आँसू मुझे सदा बेचैन करते थे | जीवन है या कचराखाना? शायद के लिए मयखाना और परिवार के बाकी सदस्यों के लिए कचराखाना, कबाड़खाना---झुंझलाहट के मारे कई बार तो मेरा काम में मन लगता ही नहीं था| दिव्य कितना प्यारा निकल आया था और डॉली एक भरी हुई गोलमटोल युवा सीढ़ियों पर जाने को तत्पर गुड़िया सी लगने लगी थी लेकिन उनके चेहरों पर वह स्वाभाविक मुस्कान नहीं थी जो इस उम्र के बच्चों के चेहरों पर झलकती है| एक बेफिक्र और अल्हड़ मुस्कान ! मुझे लगता कि उन दोनों को वहाँ ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 22
22 ---- ========= कितने लोगों का काफ़िला तैयार हो रहा था | पहले तो कई बार अम्मा-पापा के बीच हुई कि भविष्य में कार्यक्रम न लिए जाएं या लिए भी जाएं तो बहुत कम और महत्वपूर्ण कार्यक्रम ही लिए जाएं लेकिन ऐसा हो कहाँ पाता है ? अधिकतर महत्वपूर्ण स्थानों से महत्वपूर्ण लोगों के द्वारा ही निवेदन किया जाता था| स्थिति कुछ ऐसी बन गई थी कि सिर ओखली में था और अम्मा उसमें से निकलने की कोशिश करें तो भी कठिन था कि उसमें से निकल सकें क्योंकि जब निकलने की कोशिश करते कि एक नया प्रहार हो ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 23
23 -- प्यार के बारे बात करना जितना आसान है उतना ही उसे महसूस करके उस राह पर चलना कठिन! प्यार बाँधता नहीं, खोलता है, मुक्ति देता है प्यार भौतिक से आध्यात्म की यात्रा है इसीलिए जब प्यार शरीर पर आकर ठहर जाता है तब आपस में बैर-भाव, अहं ---अपने साथी को समझने की जगह उस पर दोषारोपण बड़ी आसानी से होने लगता है दरसल, बिना किसी समझदारी के हमबिस्तर होना प्यार नहीं हाँ, उसे शारीरिक ज़रूरत कहा जा सकता है मेरे सामने शरीर की ज़रूरत के कई उदाहरण थे और मेरे मन में जो ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 24
24---- ============ व्यस्तता के बावज़ूद हम सब ही कोशिश करते कि खाने की मेज़ पर तो साथ-साथ बैठें | कुछ नहीं तो थोड़ी देर के लिए ही सही सबके चेहरे आमने-सामने तो रहेंगे| उत्पल इधर अम्मा-पापा के भी बहुत करीब आता जा रहा था इसलिए कभी-कभी जब वह चाय या खाने के समय वहाँ होता, अम्मा उसे अपने साथ टेबल पर बैठने का आग्रह करतीं | धीरे-धीरे वह इतना खुल गया कि चर्चा में भी सम्मिलित हो जाता और अम्मा को न जाने एक तसल्ली सी होने लगती | वह उस पर भाई यानि अपने बेटे जैसा प्यार लुटाने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 25
25— ============ अम्मा का यू.के जाने का समय पास आता जा रहा था| सारी तैयारियाँ ज़बरदस्त चल रही थीं उत्पल ने अम्मा का काम बड़ी खूबसूरती से किया था| अम्मा बहुत खुश थीं और उत्पल से बार-बार कहती थीं कि अम्मा-पापा के यू.के जाने के बाद उसकी ज़िम्मेदरी बढ़ने वाली है | वह मुस्कुराकर अम्मा को आश्वासन देता| दिव्य की बूआ और माँ से बात करके चुपचाप दिव्य का पासपोर्ट बनवा दिया गया था | लड़के की ज़िंदगी संवर जाएगी| जगन तो कभी उसे किसी भी बात की इजाज़त देने वाला नहीं था| क्या फिर वह ज़िंदगी भर यूँ ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 26
26--- ============ उत्पल वाकई बहुत श्रद्धा व लगन से काम कर रहा था | उसका एनीमेशन का काम छूट था लेकिन उसने इस प्रकार की वीडियोज़ बनाने में इतना हुनर हासिल कर लिया था कि सच में उसकी कल्पनाशीलता की दाद देनी पड़ती | कर्मठ तो था ही वह ! कैसी कैसी टेक्नीक्स प्रयोग में लाता था वह कि दर्शक देखते ही रह जाएं | जब से वह संस्थान में जुड़ा था तब से ही यह काम शुरू हुआ था | नृत्य सीखने वाली छात्राओं के अभिभावक अपनी बच्चियों की वीडियोज़ लेना चाहते थे | उन्हें अपनी बेटियों के ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 27
27 =============== उत्पल वाकई बहुत अच्छा, सभ्य लड़का था और मेरा मन बार-बार उसकी ओर झुक रहा था | मैं उसे अपने से दूर रखने का प्रयास करती लेकिन मन कभी कोई बात सुनता है क्या? जितना मैं उससे दूर रहने का प्रयास करती, उतना ही मेरी आँखों के सामने उसकी तस्वीर बार-बार आ जाती | वह और दिव्य दोनों मेरी दोनों आँखों में झिलमिलाते रोशनी से चमक पैदा करते रहते | मैं समझ नहीं पा रही थी इतनी उद्विग्न क्यों रहती हूँ? हाँ, एक महत्वपूर्ण बात थी, कला-संस्थान का काम मेरे साथ मिलकर सब ही लोगों ने संभाल ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 28
28 आज आचार्य प्रमेश बर्मन की क्लास थी, मुझे नहीं मालूम था | मैंने उन्हें दूर से देखा, वे सितार की कक्षा लेने में तल्लीन थे| 4/5 छात्र उनके सामने थे जिन्हें वे कुछ समझा रहे थे| मेरी दृष्टि दूर से प्रमेश के ऊपर पड़ी, वे अपने छात्रों के साथ कार्य में निमग्न थे | मेरे मन में अम्मा-पापा की बात घूम रही थी | अधेड़ावस्था के प्रमेश का पूरा व्यक्तित्व मुझे कुछ ऐसा नहीं लगा कि वे कहीं से मेरे साथ फिट बैठेंगे | मैं भी तो उम्र की उस ड्योढ़ी पर आ खड़ी हुई थी जहाँ अम्मा-पापा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 29
29 =============== “बैठो न ! कुछ काम है क्या? ” शीला दीदी ने सामने मेज़ पर रखे हुए ग्लास से बची पानी की घूँट भरने का प्रयत्न करते हुए मुझसे कहा | “हाँ, है भी और नहीं भी----उत्पल आने वाला है। उसी के साथ स्टूडियो में बिज़ी होना है लेकिन अभी उसे आने में कुछ देर है ----” कहते हुए मैंने अपने आपको कुर्सी में से निकाला और मेज़ पर पानी से भरे जग को उठाकर उनके खाली ग्लास में पानी भर दिया| “थैंक--यू---” उन्होंने धीरे से कहा और ग्लास उठाकर दो/तीन लंबे घूँट पानी के मुँह में भर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 30
30 ============= मन उद्विग्न हो उठा, मन में कहीं था कि शीला दीदी से प्रमेश के बारे में बात | हम अधिकतर सभी बातें साझा कर लेते थे लेकिन इतनी बड़ी बात सुनकर मैं सकते में आ गई थी | उस पार के शोर-शराबे, लड़ाई-झगड़े तो एक नॉर्मल बात थी लेकिन एक तो अभी तक दिव्य पिता के सामने बोला नहीं था जो मुझे भीतर से परेशान करता रहता था | पिता था तो क्या उसने अपने बच्चों के लिए अपनी कोई ड्यूटी की थी? वह तो उसने जो भी किया, जिस प्रकार भी किया अपने खुद के शारीरिक ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 31
========= बीहड़ झंझावात से घिरी हुई मैं बिलकुल भी सहज नहीं हो पा रही थी | कोई न कोई बात सामने आकर ऐसे खड़ी हो जाती जिसमें मैं घूमती ही रह जाती | कभी लगता जीवन इतना सहज नहीं है ---फिर लगता क्या मेरा ही ? और सब नहीं हैं इस जीवन से जुड़े ? जीवन तो सबके सामने परीक्षा लेकर आता है | मैं दिव्य के लिए बड़ी चिंतित होती जा रही थी | मन उसकी माँ के लिए सोचता रह जाता | क्या इतना बड़ा अपराध किया था रतनी ने जो उसको हर दिन कोई न कोई ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 32
================= क्षण भर बाद ही मुझे स्वयं पर अफ़सोस भी हुआ| सचमुच मैं पगला गई हूँ? अम्मा के बारे कितनी नेगेटिव होती जा रही हूँ मैं? आखिर उन्होंने किया क्या है? यही न कि वे मेरी चिंता करती हैं | सबको एक साथी की ज़रूरत होती है | एकाकीपन को ओढ़ना-बिछाना किसे अच्छा लगता है भला ? अम्मा-पापा जिस उम्र में आ पहुँचे थे और मैं जिस यौवनावस्था को पार कर चुकी थी, उसमें उनका मेरे लिए चिंतित होना बड़ी सहज सी बात थी| पता नहीं प्रमेश को देखकर मेरे मन में उपद्रव सा क्यों होने लगा था ? ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 33
================ उस दिन संस्थान में ही रतनी दिव्य का सामान उठा लाई | शीला दीदी ने ऑफ़िस के लॉकर उसका पासपोर्ट संभालकर रख दिया था और यह बात और भी पक्की हो गई थी कि किसी न किसी तरह दिव्य को वहाँ से निकलना है | डॉली भी स्कूल से संस्थान आ गई थी और दिव्य ने फ़्लैट झड़वा-पुंछवाकर फिलहाल सोने योग्य बना लिया था | उस दिन रात को वह वहीं सोया | शायद बहुत दिनों बाद उसे चैन की नींद आई होगी | वैसे उस परिवार के भाग्य में चैन की नींद थी क्या? अगले दिन डॉली ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 34
======== वह खुद तो शानदार व्यक्तित्व का था ही, उसका बात करने का अंदाज़ भी प्रभावित करने वाला था| करते-करते मैं उसे उस बड़े से संस्थान के बारे में बताती जा रही थी | वह बड़ी सहजता से मुझसे बात करता रहा और मैं भी सहज रही | उसके काले बालों में चाँदी चमक रही थी और कानों के ऊपर कलमों से भी खिचड़ी बाल झांक रहे थे जो उसके ऊपर बहुत सूट कर रहे थे | उसकी स्मार्ट चाल पर भी मेरा ध्यान गया और उसके साथ चलते-चलते मैं सोचने लगी कि इतना सुदर्शन व पद पर प्रतिष्ठित ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 35
35--- =============== उस रात कितने ही चित्र मेरी आँखों के सामने गड्डमड्ड होते रहे | कभी-कभी मुझे लगता कि किसी खोज में चलती ही जा रही हूँ, चलती ही जा रही हूँ लेकिन कहाँ? धूल भरे रास्तों की ओर, नदी-पर्वत को पार करते हुए, किसी की निगाह को पहचानने की कोशिश में----पता नहीं कहाँ ? धुंध भरे रास्ते और किन्ही सँकरी गलियों में से निकलने को आतुर मन ! लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं होता था | सच कहूँ तो मुझे बड़ी शिद्दत से लगने लगा था, मुझे किसी मनोवैज्ञानिक इलाज़ की सख्त ज़रूरत थी जो मेरे मन के ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 36
36---- =============== कुछ देर बाद अम्मा-पापा मेरे कमरे की ओर आए और उन्होंने मुझे बताया कि वे दोनों सड़क ‘मुहल्ले’ में जा रहे हैं, उनके पास महाराज का फ़ोन आ गया था | मेरी आँखों में प्रश्न देखकर पापा ने मेरे सिर पर हाथ रखकर कहा कि वे देख लेंगे, वहाँ जिस चीज़ की ज़रूरत होगी, मुझे चिंता नहीं करनी चाहिए | उन्होंने ड्राइवर को फ़ोन कर दिया था और वह बड़े गेट पर गाड़ी ले आया था | जितना वह स्थान पीछे से पास दिखाई देता था उतना ही घूमकर जाने पर लगभग आधा कि.मीटर जाना पड़ता था ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 37
37— ================== इतने लंबे-चौड़े परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ था, संस्थान में छुट्टी घोषित कर दी गई थी | प्रकार का वातावरण था, उदासी से भरा ! मैं तो मन में हमेशा जगन के बारे में यही सोचती रहती थी, इसका मतलब मैं यही चाहती थी फिर इस घटना से क्यों इतनी अधिक उदास व उद्विग्न थी? “मे आई कम इन ----? ”मैं नहाकर निकली ही थी कि बाहर से आवाज़ आई | “आओ उत्पल ----” मैंने अपने बालों को तौलिए में लपेट रखा था | यहाँ से जाते हुए अम्मा-पापा कह गए थे कि वे फ़्रेश होने जा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 38
38--- ================= हम दोनों संस्थान के परिसर से बाहर निकल आए | संस्थान में आने वालों के लिए परिसर जुड़े एक जमीन के टुकड़े पर गाडियाँ रखने के लिए शेड बना हुआ था | हम दोनों बिना कुछ बोले हुए वहाँ तक पहुँचे | गाड़ी खोलकर उत्पल ने मेरे बैठने के लिए दरवाज़ा खोल दिया और मुझे बैठने का इशारा करके खुद ड्राइवर-सीट पर जाने लगा | “इतनी दूर तो हम पैदल भी जा सकते थे---”बैठकर दरवाज़ा बंद करते हुए मैं यूँ ही बुदबुदाई | अगर मुझे पैदल जाना होता तो उत्पल से पहले न कहती? मैं मन में ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 39
39--- =============== शांति दीदी के घर से निकलकर मैं उत्पल के साथ बाहर आ गई | चार कदम पर सड़क थी, हम दोनों चलते हुए सड़क पर आ गए जहाँ उत्पल ने गाड़ी खड़ी की थी | एक उदासी और बेचैनी भरी शाम थी यह! कई दिन बाद संस्थान से बाहर निकली थी लेकिन मन में उदासी की परत दर परत चढ़ती चली जा रही थीं | मैं और उत्पल हम दोनों ही चुप थे, जैसे बात करने के लिए शब्दों का अकाल हो, क्या बात करते ? यूँ ही गुमसुम से हम गाड़ी में आ बैठे | “दीदी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 40
40-- ================ उस दिन फिर से एक सुहानी सी पुरवाई चली जैसे मन के भीतर ! अंदर का भाग खूबसूरत था कि मुझे वाकई अफ़सोस हुआ कि भई मैं ज़िंदा भी हूँ कि नहीं? क्यों मैं इतनी अलग-थलग रही? हम मित्रों के साथ पर्यटन पर नहीं गए हों अथवा एन्जॉय न किया हो, ऐसा तो नहीं था लेकिन मेरी इस सबकी जैसे कुछ सीमाएँ रहीं | क्यों? मालूम नहीं, घर से तो हम दोनों भाई-बहनों को एक सी आज़ादी, एक सा वातावरण, एक सा प्यार-दुलार और हर बात में एक साथ ही खड़ा किया गया था | वह बात ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 41
41-- =============== खासी रात हो गई थी उस दिन, मैं उत्पल को प्रमेश और श्रेष्ठ के बारे में बताना थी | उसके मन में अपने प्रति कोमल भाव जानकर भी मैं एक मित्र होने के नाते उससे सलाह लेना चाहती थी | कुछ तो बोलेगा, क्या बोलेगा? देखना चाहती थी लेकिन नहीं कह पाई | रास्ते भर फिर से हम दोनों लगभग चुप्पी ही साधे रहे | मैं जानती थी, उसके मन में उथल-पुथल चल रही होगी | किसी से कोई बात कहना शुरू करो और फिर बीच में चुप्पी साध लो---स्वाभाविक है मन में तरह-तरह के विचार उठना ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 42
42-- ================ अम्मा–पापा अभी आकर बैठे ही थे कि मैं पहुँच गई | कमरे से बाहर निकलकर मैंने देखा के शांत, अचेत से वातावरण में आज कुछ चेतना सी दिखाई दे रही थी | इसका कारण था कि कल संस्थान में छुट्टी की घोषणा हो गई थी अत: किसी विषय के भी गुरु अथवा छात्र नहीं आए थे कल के मुकाबले में आज कुछ चहल -पहल सी दिखाई दे रही थी क्योंकि 10 बज गए थे और साफ़-सफ़ाई का अभियान समाप्त हो चुका था और लोगों का आना-जाना शुरू हो चुका था | “कल काफ़ी देर हो गई थी? ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 43
43--- =============== ‘जगन था तो एक मुसीबत थी और अब नहीं रहा तब भी मुसीबत लग रहा है’यह मेरे में हलचल मचा रहा था | इससे हमारे परिवार का तो काफ़ी नुकसान हुआ ही था न ! मैं यह क्यों नहीं समझ पा रही थी कि परिस्थितियों व घटनाओं पर हमारा अधिकार नहीं होता है, वे तो बस घट जाती हैं | हमें उन्हें घटते हुए देखना होता है और उनके साथ चलना होता है | मेरा उपद्रवी मन यह मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि हम चाहें भी तो भी कुछ नहीं कर सकते | मैं ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 44
44— =============== शीला दीदी अम्मा से और मेरे से भी फ़ोन पर बात करती रहतीं | बड़ी दुविधा में क्या करें ? क्या न करें? एक तरफ़ उनकी व उनके परिवार की छत्रछाया हमारा परिवार था तो दूसरी ओर उन बिना बुलाए रिश्तेदारों की आँखों में वो दोनों बच्चे भी खटक रहे थे | दीदी ने रोते हुए अम्मा को बताया था कि उन रिश्तेदारों की इच्छा है कि उनके बाप के बाद उन्हें गाँव ले जाएँ और उन्हें वैसा ही पालतू बना लें जैसा उनकी माँ रतनी को बनाकर रखा हुआ था | माँ-बाप दोनों के रिश्तेदारों में ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 45
45— =========== संस्थान के काम में दिक्कत तो आ रही थी, मैं भी आजकल गंभीरता से काम संभालने लगी | उत्पल तो पहले से ही मुझसे अधिक सिन्सियर था | अम्मा-पापा ने किसी तरह मैनेज करके, एम्बेसी से सारी स्थिति स्पष्ट बताकर एक छोटे ग्रुप को नृत्य के दो गुरुओं के साथ यू.के के लिए रवाना कर दिया था | भाई अमोल और एमिली से भी सब बातें हो गईं और उन्होंने आश्वासन दिया कि वह और वे वहाँ की व्यवस्था देख लेंगे, जहाँ तक होगा भई छुट्टी लेकर यहाँ से जाने वाले लोगों के साथ रहेगा | कई ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 46
46---- ============ कुछ होना थोड़े ही था, कुछ नहीं हुआ लेकिन उन रिश्तेदारों के दिलों की धड़कनें बढ़ानी थीं, भयभीत करना था, पापा ने वही किया लेकिन धूर्त लोग थे, ऐसे नहीं और कुछ सही | उन्होंने शीला और रतनी के चरित्र के बारे में बातें उड़ानी शुरु कर दीं | एक तरफ़ जगन की आत्मिक शांति के लिए पूजा करवा रहे हैं और दूसरी ओर उनके अपनों के ऊपर उलटी-सीधी बातें बनाकर उनके ही चरित्र से खेलने की कोशिश कर रहे हैं | कैसी है ये दुनिया ? मैं वैसे ही असहज थी और अब तो और भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 47
47----- ========== सच में, जीवन कैसा मज़ाक करता है ! कभी मैं अपनी आयु को गिनती, कभी कभी शीशे आगे खड़े होकर अपने उस चेहरे को देखती जो कभी मुस्कुराता रहता था, आज दुविधा में दिखाई देता है | ऐसा होना नहीं चाहिए था लेकिन हुआ और इसका प्रभाव न केवल मुझ पर वरन अम्मा-पापा पर बहुत अधिक पड़ रहा था | मुझे इस बात से बहुत पीड़ा होती कि मेरे कारण पूरे परिवार को एक अजीब सी स्थिति में से गुजरना पड़ रहा था लेकिन मैं क्या कर सकती थी ? सच में मेरे हाथ में कुछ भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 48
48---- ================ मन में कुछ ऊटपटाँग चल रहा था और मैं झुँझलाते हुए सोच रही थी कि इस सूनेपन कैसे खत्म किया जाए?सोचा, आज बहुत दिनों बाद अपनी पसंद के कपड़े पहनूँ | मैं आज कुछ ठीक से तैयार होने अपने वॉशरूम से लगे ड्रेसिंग रूम में चली गई जिसमें दीवार के दोनों ओर कई लंबी-चौड़ी अलमारियाँ लगी हुईं थीं जिनके काँच के दरवाज़ों से ड्राईक्लीन की हुई साड़ियाँ कितने करीने से लगी हुई मुस्कुरा रहीं थीं, उसी में ऊपर के खाने में न जाने कितनी रंग-बिरंगी स्टार्च लगी, रोल प्रैस की गईं साड़ियाँ हैंगर्स में टँगी हुई थीं| ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 49
49---- =============== मैं गाड़ी में बैठ ही रही थी कि मुझे रुक जाना पड़ा | उत्पल ड्राइविंग-सीट पर बैठ था और बैल्ट लगा रहा था | वैसे उसकी आदत थी कि जब वह कहीं भी मुझे अपने साथ ले जाता, पहले मेरी ओर का दरवाज़ा खोलकर बड़े आदब से जैसे मुझे बैठने का संकेत करता लेकिन आज उसने ऐसा नहीं किया था, मुझसे नाराज़ जो था | मेरे भीतर उसका बचपना हँस रहा था लेकिन अचानक ही----आवाज़ सुनाई दी और शिष्टाचार के लिहाज़ से पूछना पड़ा| “ओह ! आप ?कैसे हैं ?"उसकी गाड़ी हमारे समीप ही आकर रुकी थी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 50
50--- =========== उस दिन वाकई बड़ा मज़ा आया | पहले तो जितने भी दोस्त आए थे वे मुझ पर गए, मैं होस्ट थी और मैं ही लेट पहुंची थी फिर जो मस्ती की है कि लोगों को लगा वह किन्ही पागलों का ग्रुप है | मुझे लग रहा था ज़िंदगी में कभी पागल बनना भी बहुत जरूरी है | एक बच्चे जैसा मासूम और मस्त रहने में ही आम जीवन की बकवासबाज़ी को एक कोने में सरका सकते हैं ! उधर शीला दीदी और रतनी की मुसीबत चल ही रही थी | हाँ, एक बात थी----जब से पुलिस ने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 51
============ शीला दीदी के साथ एक अजनबी को देखकर हम सबकी समझ में कुछ आ तो रहा था लेकिन तक परिचय न हो जाए कैसे स्पष्टता हो ?“ पापा-अम्मा ने उनको सिटिंग-रूम में बड़ी इज़्ज़त और आदर से बैठाया और महाराज को नाश्ता बनाने का इशारा कर दिया | कोई स्पेशल तो था, अब शीला दीदी बताएं तब न!सबके मन में उत्सुकता के घोड़े दौड़ने लगे | खैर, उस समय हम तीनों ही तो थे और शीला दीदी जो उन मेहमान को लेकर आईं थीं, वो थे| “सर ! इनको मिलाना था आपसे ---” उन्होंने बड़ी झिझक से कहा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 52
============== जय के निकम्मे चाचा ने अपने बड़े भाई की मानसिकता का लाभ उठाकर उनसे घर के कागज़ात पर करवा लिए| इस प्रकार की घटनाएं न नई होती हैं, न ही आश्चर्य में डालने वाली ! इतिहास से पता चलता है कि मनुष्य गरीब है या अमीर सदा एक-दूसरे का दुश्मन रहा है| हमेशा से ही इस प्रकार की चालाकियाँ चलती आ रही हैं| यह बड़ी आम सी बात है लेकिन जिसके ऊपर बीतती है, उसे पता चलती है न जीवन की सच्चाई !कितना भी मजबूत इंसान क्यों न हो जब मन की दीवारें चटखने लगती हैं तब शरीर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 53
============= उत्पल का संस्थान में आना-जाना वैसे ही ज़ारी था, उसकी आँखों, चाल-ढाल यानि पूरी बॉडी लैंग्वेज न जाने कहती| जगन की उस दुर्घटना के बाद सब लोग आ चुके थे, सबने अपना-अपना काम संभाल लिया था और अम्मा का भार व चिंता कम हो रही थी लेकिन मेरी चिंता से उनकी आँखें कभी खाली दिखाई नहीं देतीं| मुझसे कुछ कहती भी नहीं लेकिन उनके मन में उठते हुए सवाल मेरे मन में बिना कुछ कहे हुए भी कचोटते| दूसरों को सलाह देने वाले अम्मा-पापा की अधेड़ उम्र की बेटी उनके सामने बिना साथी के घूम रही थी | ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 54
========== आज वह बिलकुल मूड में नहीं था मेरी 'न' सुनने के | जैसे उसने बताया था कि अम्मा-पापा मुझे बाहर ले जाने की बात करके आया था | अम्मा-पापा तो चाहते ही थे कि मैं किसी की तरफ़ तो बढ़ूँ, किसी में तो रुचि दिखाऊँ| चाहे वह प्रमेश हो, जिनकी बहन न जाने क्यों मुझे इतना चाहने लगी थीं कि जब भी आतीं कोई न कोई मंहगे उपहार लेकर आ जातीं| “अम्मा ! क्या है ये ?कोई मतलब है क्या ?आखिर किस रिश्ते से उनके उपहार ले लूँ ?”मैं चिढ़ती | “बेटा! मैं मना भी कैसे करूँ ?मेरी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 55
========== आज तो श्रेष्ठ के साथ आना ही पड़ा था | अम्मा की लिस्ट में वह पहले नं पर और उसके बाद प्रमेश! डॉ.पाठक से भी अम्मा की बात होती रहतीं और वे उनसे यही कहतीं कि डिसीज़न तो अमी को ही लेना है | पिछले दिनों इतना कुछ घटित हो गया था कि कोई भी चैन से नहीं रह पाया था | आजकल भी अम्मा-पापा का ध्यान संस्थान और मेरे अलावा शीला दीदी के परिवार के सदस्यों पर भी केंद्रित था | जीवन की धूप में मैं भी जल रही थी और छाँह का नामोनिशान दिखाई नहीं दे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 56
========== थोड़ी देर में झुँझलाते हुए श्रेष्ठ ने रेस्टोरेंट में प्रवेश किया | उनके चेहरे पर कुछ अनमनाहट सी हुई थी लेकिन मेरे चेहरे पर मुस्कान व सुकून तथा आँखों में खुशी की चमक देखकर शायद उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई और वह उस मेज़ की ओर आए जहाँ मैं बैठी थी | अंदर सब अच्छा ही था लेकिन उनके मन में तो फ़ाइव स्टार से नीचे की बात गले से उतर ही नहीं रही थी फिर से थोड़ा सा मूड ऐसा ही लगा मुझे श्रेष्ठ का! “आखिर इसमें ऐसा क्या है ?” उसने मेरे सामने बैठते हुए पूछा | ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 57
=========== घर पर शीला दीदी, रतनी, जेम्स और एक नया आदमी जिसे मैंने तो कभी नहीं देखा था, सिटिंग-रूम बैठे हुए थे | आश्चर्य हुआ, अभी तक?मुझे तो लगा था अब तक सब डिस्पर्स हो चुके होंगे | “हैलो एवरीबड़ी---” मैंने सिटिंग रूम में घुसते ही सबको विश किया | “हो गया लंच---?” अम्मा की आँखों से उत्सुकता झाँक रही थी | “आज लंच नहीं, लस्सी पीकर आई हूँ ---” मैंने मुस्कुराते हुए कहा और पूछा; “आप लोगों का हुआ ?” “हम्म, बहुत बढ़िया---महाराज और रमेश ने बहुत बढ़िया खाना खिलाया | ” अरे वाह! अच्छा लगा सुनकर रमेश ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 58
========= वह रात मेरे लिए फिर करवटें बदलने की रात थी | मालूम नहीं क्या हो जाता था ?क्यों हलचल रहती थी?क्यों मन अक्सर उदास, अनमना सा हो जाता था | ऐसी चुप्पी क्यों लगी है ज़िंदगी के बावज़ूद, क्यों अँधेरों में छिपी है ज़िंदगी के बावज़ूद | मुझे बार-बार लगता कि ज़िंदगी मेरे लिए ही क्यों इतनी गुमसुम सी है?यह जानते हुए भी कि कमी मेरी ही है, निर्णय न लेने का साहस क्यों नहीं कर पाती मैं?हम जिन्हें सड़क पार के मुहल्ले का कहते हैं, देखा जाए तो कितने ही परिवार वहाँ ऐसे थे जिन्होंने किसी की ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 59
59-- शादी में महाराज का, ड्राइवर का पूरा परिवार आया था | संस्थान में काम करने वाले कोई दो-चार थे नहीं एक लंबी पंक्ति थी | सबको बड़े प्रेम व आदर से निमंत्रण दिए गए थे | पापा, अम्मा ने शीला दीदी-प्रमोद, रतनी-जय, दोनों बच्चे दिव्य और डॉली, इनके अलावा प्रमोद की माता जी सबके लिए कपड़े मँगवाए थे | कितने गिफ्ट्स मँगवाकर शीला दीदी और रतनी को दिए गए कि सब भौंचक रह गए | लोगों के पास पैसा होता है लेकिन इतने बड़े दिल कहाँ होते हैं जो अपने परिवार की तरह खुलकर खर्च करें | अभी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 60
60--- ======= कितने लंबे समय के बाद एक सुकून सा महसूस हुआ था सबको | जगन की कहानी एक हुआ दुखद स्वप्न था | जिसको जितनी जल्दी दिलोदिमाग से खुरचकर फेंक दिया जाए, उतना ही अच्छा था | वह एक ऐसी भीगी हुई पीड़ा थी जैसे कोई किसी भीगे कपड़े को निचोड़कर कोड़े मारता हो | कितना सहा था इस पूरे परिवार ने केवल एक आदमी के कारण लेकिन होता है, ऐसे ही होता है जीवन में, एक मछली जैसे सारे तालाब को गंदा करती है ऐसा ही कुछ हुआ था शीला दीदी के परिवार में | मैं भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 61
61--- ===== आज श्रेष्ठ काफ़ी खुश था | व्यक्तित्व तो उसका शानदार था ही, आज ड्रेसअप भी कमाल का | उस स्काई ब्लू और रॉयल ब्लू के कॉमबिनेशन ने उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा दिए थे, एक अलग ही रंग में रंग दिया था उसे | ‘सच है, इंसान के लिबास का उस पर कितना फ़र्क पड़ता है, और अगर वह खूबसूरत हो तब तो बात ही क्या है!’मैं उसको देख रही थी और कहीं न कहीं दिल में खुश भी थी | क्या मैं उसके साथ फ़िट बैठ सकूँगी या वह मेरे ?एक ही बात है वैसे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 62
62---- ======== हम किसी बड़े सुंदर हॉलनुमा कमरे में पहुँच चुके थे | हमारे साथ ही होटल का कर्मचारी जिसने डोर ओपनिंग कार्ड से कमरे का दरवाज़ा खोलकर श्रेष्ठ को वह कार्ड पकड़ा दिया था और कुछ पीछे की ओर हाथ बांधकर खड़ा हो गया था | “सर---”श्रेष्ठ को अपनी ओर देखते ही उसने धीरे से कहा | “यू कैन गो, आई विल ऑर्डर ऑन द फ़ोन ---थैंक यू --” “यस सर---थैंक यू----” उसने बड़ी तहज़ीब से कहा और मुड़कर चला गया | “आओ----” श्रेष्ठ ने कमरे में प्रवेश करते समय मेरा हाथ छोड़ दिया था और बहुत बड़े ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 63
63--- ====== हम कमरे के बाहर निकल चुके थे | वैसे घर से निकले हुए मुझे दो घंटे तो ही गए होंगे लेकिन अभी तक उसका कोई ऐसा प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ सका था कि मैं उसकी ओर आकर्षित होती | वैसे उसके व्यक्तित्व से तो मैं पहले से ही प्रभावित थी | धीरे-धीरे मुझे पता लगने लगा था कि इस बंदे का ‘लिविंग स्टाइल’ ज़रा ज़्यादा ही मॉर्डन है | हमारे घर के डिनर से शायद उसने अंदाज़ा लगाया था कि हम बड़े हाई-फ़ाई लोग हैं लेकिन वह यह नहीं समझ पाया था कि हम काफ़ी समृद्ध ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 64
64- ============== रतनी और शीला दीदी की गृहस्थी शुरू हो गईं और जैसे एक तसल्ली भरा खुशनुमा माहौल संस्थान कोने-कोने में मुस्कुराने लगा | रतनी के बच्चों को लगता, अब उन्हें पिता मिला है | जेम्स यानि जय एक इंसान के रूप में इतना सही, गंभीर, विवेकी और प्रेमी व्यक्तित्व था कि उसने दिव्य और डॉली को अपने गले से ऐसे लगाया मानो वे उनके ही अपने बच्चे हों | इन्हें कम पढे-लिखे लोग कहते हैं ? तो अधिक पढे-लिखे कैसे होते हैं? लोग वही---- उनसे जुड़े प्रश्न वही, उत्तरों में बदलाव और उन उत्तरों से झाँकती खनखनाती हँसी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 65
65 ========== एक असमंजस में झूल रही थी मैं, न जाने कब से | मन केवल और केवल उत्पल ओर झुक रहा था और सामाजिक रूप से, खुद अपने मन में कहीं गिल्ट भी महसूस कर रहा था लेकिन प्रेम पर कैसे कंट्रोल किया जा सकता है? अगले दिन नाश्ते पर अम्मा-पापा की आँखों में न जाने कितने सवाल भरे हुए थे लेकिन मैं उनकी आँखों में भरे हुए सवालों को समझते हुए भी नहीं समझ रही थी | आखिर क्या बताती? ये सब बातें दोस्तों –वो भी किसी करीब के दोस्त से शेयर करने तक तो ठीक---पर अम्मा-पापा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 66
66 ========= मैंने नहीं पूछा, हम कहाँ जा रहे थे | जहाँ भी जाएं क्या फ़र्क पड़ता है ? करेंगे, खाएंगे-पीएंगे और थोड़ी सी शरारत भी ! कुछ क्वालिटी टाइम साथ में बिताएंगे | और हाँ, उसे कुछ शेयर करना है, वह भी सुन लूँगी, यही सब सोच रही थी मैं गाड़ी में बैठी | “आपने पूछा नहीं, हम कहाँ जा रहे हैं ? ”उत्पल ने अचानक शरारत से पूछा | उसने बहुत धीमी आवाज़ में मेंहदी हसन की गज़ल लगा रखी थी जो मुझे बहुत पसंद थी, शायद उसे भी | मैंने कितनी बार उसे उसके चैंबर में ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 67
================= जीवन की भागदौड़ में भी न जाने कितनी बातें ऊपर-नीचे होती रहती हैं, फिर भी इंसान अपनी इस से पीछा कहाँ छुड़ा पाता है---और दरअसल भाग-दौड़ होती है उसके मस्तिष्क से! मस्तिष्क में उमड़ते झंझावात उसे चैन से रहने ही नहीं देते और फिर मस्तिष्क के साथ उसकी शारीरिक थकान भी शुरू हो जाती है | मेरा मस्तिष्क थकता था, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था जीवन के चक्र में से कैसे निकलूँ या उसमें ही मकड़ी की तरह चक्कर मारती रहूँ? उलझनों के जाले में अटका हुआ इंसान कोई स्पष्ट राह नहीं तलाश कर पाता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 68
=============== दिनोंदिन मन की आकांक्षा मुझे उत्पल की ओर खींचती रही और मैं असहज होती रही | बार-बार लग था, अपना मन उसकी ओर से हटा लेना चाहिए लेकिन किसी दिन दिखाई न दे तो बेचैनी से मन घबराने लगे | ये प्यार के अलावा और क्या हो सकता है जो विवश कर देता है | अम्मा-पापा कुछ कहें न कहें, उनकी कातर दृष्टि में मुझे जो असहाय और करुणा दिखाई देती कि लगता, जीवन की हर अमीरी, प्रसिद्धि, सुख-सुविधाएँ होने पर भी वे ताउम्र कितने बेचारा सा महसूस करते रहे हैं और मैं जैसे उनकी अपराधी थी | ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 69
======== “क्या रहा उस दिन---श्रेष्ठ जी से मीटिंग---” शीला दीदी ने कॉफ़ी का आखिरी सिप लेते हुए पूछा | मुझे सब कुछ खुलकर बता देना चाहिए? मन में उथल-पुथल थी | एक तरफ़ सब कुछ शेयर करना ज़रूरी लग रहा था तो दूसरी ओर न जाने एक प्रकार की झिझक सामने मुँह फाड़े खड़ी हो जाती थी | मैं खुद भी तो कब से सोच रही थी, बात करने की लेकिन न जाने कौन और क्या मुझे रोक देता? जैसे एक दीवार सी खड़ी थी मेरे सामने, उसको हटाना तो होगा ही किन्तु कैसे ? यही तो सबसे बड़ी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 70
============== आखिर अम्मा को बताना ही पड़ा कि मैं श्रेष्ठ के साथ कंफ़रटेबल नहीं थी | दोपहर का समय इस समय लगभग शांति सी ही रहती थी संस्थान में ! सुबह की कक्षाएँ समाप्त हो जाती थीं और एक तरह से सबका ही यह‘लेज़ी टाइम’ होता था फिर संध्या की कक्षाएँ शुरू होतीं जिसके लिए संध्याकाल पाँच बजे के करीब फिर से सब संस्थान में आने शुरु होते | दोपहर में सब लगभग रिलैक्स मूड में ही होते और अपने घरों को चले जाते या अपने चैंबर्स में संस्थान में ही रिलैक्स करते | एक उत्पल था जो अपने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 71
=========== उत्पल कॉफ़ी मँगवाने के लिए कहता रह गया लेकिन उसने जब अपने एफ़ेयर्स के बारे में बात बताई, उलझन में आ गई | मेरा दिल उसके लिए क्यों धड़कता था? उसके व्यवहार में जो शैतानी थी, अपनापन था, मुझे लेकर जो एक उत्साह व चंचलता थी, उसके लिए मैं उसकी बातों में डूबी जा रही थी, अचानक ही जैसे एक झटका लगा था और उसके पास अधिक देर नहीं बैठ पाई थी | उस दिन बहुत अनमनी हो उठी मैं ! मुझे बड़ी शिद्दत से लगा कि मैं ही इतनी बेचारी क्यों हूँ जिसका अभी तक सही अर्थों ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 72
============ बार-बार दिल में आता कि मैं क्यों न अविवाहित रहने का व्रत ले लूँ लेकिन वह भी तो पाना या पचा पाना, कठोर निर्णय ले पाना इतना आसान नहीं था | जानती हूँ कि एक बार अम्मा-पापा असहज ज़रूर होते लेकिन वे भी समझते तो थे ही कि बिना पसंदगी के शादी-विवाह जैसे मामले में आगे बढ़ना कैसे ठीक हो सकता है ? यह केवल तन का मिलन नहीं होता, जब तक मन न मिले तह तक कैसे? या तो यह होता कि मुझ पर साधुपने का बुखार चढ़ गया होता | जो बिलकुल भी नहीं था और ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 73
============ आज अम्मा-पापा से खुलकर सारी बातें कहने वाली थी | उनसे वायदा किया था कि लंच पर हम रहे हैं | क्या, हो क्या गया था हमारे परिवार को ? दुख तो होता था मुझे, कहाँ वो दिन जो समय खास तौर पर शैतानी के लिए, हँसने के लिए, खिलखिलाने के लिए, एक –दूसरे की खिंचाई के लिए निकाला जाता था | डिनर पर तो हर दूसरे दिन कोई न कोई होता या हम कहीं न कहीं इन्वाइटेड होते | हँसी-ठहाकों में भी जैसे व्यंजनों की सुगंध पसरी रहती और अब जैसे चुप्पी पसरी रहती है | तब ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 74
74 =============== अम्मा-पापा से बात कुछ और करना चाहती थी लेकिन उत्पल को देखकर अपने डाँस को शुरू करने बात फिर कई बार दोहराती रही| क्या इसका कोई खास कारण रहा होगा? कोई ऐसी वजह जिसके लिए मैं उत्पल को तकलीफ़ में देख पाने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी फिर भी स्वयं आहत होकर उसे भी आहत करना चाहती थी, क्यों ऐसा? एक ओर उसकी बात सुनकर भीतर से झुलसता दिल और दूसरी ओर उसकी बात से खुद कष्ट पाकर उसको भी शायद पीड़ा देना| दो विरोधी बातें ! क्या मैं उसकी बात जानकर उससे पीछा छुड़ाना ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 75
75 =============== मौन में बड़ी ताकत होती है लेकिन जो मैं ओढ़-बिछा रही थी वह मौन नहीं था, वह थी| ऐसी चुप्पी जिसमें आग नहीं थी, धुआँ इतना था कि मन के आसमान में कोई सितारा टिमटिमाता दिखाई ही नहीं दे रहा था| अंधकार में भटकता मन अपनी गलियों को भुला रहा था, मार्ग अवरुद्ध थे और प्रकाश में जीने की ललक हृदय की धड़कन को जैसे ‘आर्टिफ़िशियल पंप’ के सहारे जिलाए हुए थी| नहीं कर पाई मैं कुछ भी, न ही मैडिटेशन और न ही नृत्य---कला की पुजारिन माँ की बेटी रजिस्टरों के बीच फँसी रह गई थी| ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 76
76---- ---------------------- इस बीमारी की कहर ने स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों में ताले लगवा ही दिए थे, काफ़ी दिनों बाद ‘ऑन-लाइन’ का चक्कर शुरू हुआ, निर्णय लिया गया था कि क्लासेज़ ऑन लाइन ली जानी चाहिए अन्यथा बिना रियाज़ के सब छात्र-छात्राएं सब कुछ भूल जाएंगे| स्कूलों में भी ऑन-लाइन क्लासेज़ शुरू की गईं थीं और कला-क्षेत्रों में भी काम का पुनरारंभ ऑन-लाइन हुआ | जो पहले स्वप्न की सी बात लगती थी अब जीवन की वास्तविकता लगने लगी|इतनी दूरी हुई कि आम आदमी उखड़ने लगा, टीन एज के बच्चों की मानसिकता पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा और सबको ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 77
77--- ----------------------- उद्विग्न, विचलित मन का नक्शा जिसमें न जाने कौन कौन से अनजाने शहर, गाँव, गलियों का बसेरा | जिनमें बंद होते, खुलते दरवाज़े थे, जिनमें प्यार की कोमल संवेदनाएं थीं और कुछ ऐसी फुलझड़ियाँ जिन्हें ज़रा सी आँच मिली नहीं कि फटने को बेकरार थीं लेकिन सब कुछ ऐसे हालत में तब्दील होता जा रहा था जो मूक दर्शक सा बन अपने आपको समर्पित कर रहा था विश्व के उस उलझाव में जिसे विधाता ने गडा था और जो शायद -----नहीं, शायद नहीं, सच ही अपनी ही बनाई कठपुतली यानि इंसान को एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 78
78— =========== महामारी की दूसरी लहर में बुरा हाल देखने को मिल रहा था और अम्मा ने रतनी से हुए कपड़ों और पापा के द्वारा मँगवा दिए गए सॉफ़्ट कपड़े के थान में से ढेरों ढेर मास्क बनवाए | ये मास्क ऐसे थे जिन्हें धोया जा सकता था | शीला दीदी ने कहा कि वे घर में ही सेनेटाइज़र बना सकती हैं | देखने में यह आ रहा था कि सेनेटाइजर्स की नई-नई ब्रांडस बाज़ार में धड़ल्ले से आ रही थीं | सभी कंपनियों ने सेनेटाइज़र बनाकर टी.वी पर उसका ‘एड’ देना शुरू कर दिया था | ऐसा लगता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 79
79 ---- ============= हमारे संस्थान में दो बब्बर शेर थे जर्मन शेफर्ड़ जो बहुत खतरनाक था और एक लेबराडोर बहुत फ्रैंडली था लेकिन दोनों को ज़रा सी सूँघ भी आ जाए कि कोई आदमी खराब नीयत से संस्थान में घुसा है तो दोनों जब तक उसके चिपट न जाएं तब तक भौंकना बंद ही नहीं करते थे | अगर संस्थान के क्लासेज़ या फिर किसी के आने की सूचना मिलने पर उन्हें बंद न करते तो वे आने वाले नए लोगों को फाड़कर ही दम लेते | दोनों लंबे, बड़े, खूब ताकतवर ! जिनके नाम रखे गए थे विक्टर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 80
80---- ============ इंसान हो अथवा साथ में रहने वाला कोई भी छोटा, बड़ा प्राणी क्यों न हो, यदि अचानक हो जाता है तो एक सूनापन छोड़ ही जाता है | विक्टर, कार्लोस के डॉक्टर की सलाह पर उन्हें होमयोपैथिक पशु चिकित्सा केंद्र में भेजने की बात हुई | इससे पहले तो उनके बचपन से ये ही वैटरनरी डॉक्टर डॉ. अशोक सब्बरवाल इन दोनों का इलाज कर रहे थे | ये ही दोनों को समय-समय पर इंजेक्शन और एलोपैथिक दवाइयाँ देते रहे थे | अब इन्होंने ही सलाह दी थी कि दोनों की इम्यूनिटी बहुत कमजोर हो गई थी इसलिए ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 81
81- ============= विक्टर, कार्लोस की स्थिति सुधर रही थी और पापा-अम्मा और संस्थान के सभी लोग जो उनकी तीमारदारी थे, विशेषकर उनको जैसे चैन की साँस आने लगी थी | कुछ ही दिनों में दोनों का स्वास्थ्य काफ़ी अच्छा हो गया था | फिर भी अभी उन्हें यहाँ संस्थान में वापिस लाने की कोई बात या विचार नहीं था | उन्हें पहले स्वस्थ होना था फिर कहीं यहाँ लाने की बात सोची जाती | संस्थान में एक बात बहुत ही कमाल की हुई कि कोविड के दो चरणों में कोई भी बीमार नहीं पड़ा | सब स्वस्थ रहे, वहाँ ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 82
82- ========= टीका लगवाने तो जाना ही था सो मैं उत्पल के साथ एक दिन टीका-सेंटर पर जाने के निकली | पापा ने कहा कि ड्राइवर रामदीन को साथ ले जाएँ | वह ही सबको ले जाता था और बड़ी सावधानी से ले आता था | वैसे इन दिनों तो संस्थान के कई ड्राइवर्स खाली ही थे जो पीछे की ओर उनके लिए बनाए गए क्वार्टर्स में रहते थे | संस्थान क्या था एक पूरा सिटी बन चुका था जिसमें सिवा बाज़ार व स्कूलों के सब कुछ ही तो था | एक छोटी सी कुछ कमरों की कोठी इतने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 83
83 ---- ============= अपनी बारी की प्रतीक्षा में चारों ओर का जायज़ा लेती मेरी आँखें वापिस लौटकर बार-बार उत्पल चेहरे पर ठहर जातीं जिसका चेहरा क्या और सभी की तरह केवल आँखें खुली हुई थीं | उसकी उन उत्सुक आँखों को हर बार मैंने अपने ऊपर टिका हुआ ही पाया | मुझे लगा मैं कितनी दोगली थी, मैं देखूँ तो क्षम्य और वह देखे तो अक्षम्य ! गुनाह ! ये भला क्या बात हुई मैं भी न ! वास्तव में मुझे अपने ऊपर अजीब सी कोफ़्त हो आई | ऐसा होना चाहिए क्या? एक ही बात के लिए अगर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 84
84— ============= वैसे ठीक ही था सब, अचानक उत्पल ने कहा कि अगर सब कुछ ठीक होता तो इतने समय के बाद एक लॉंग ड्राइव तो बनती थी | लेकिन पापा-अम्मा की अवज्ञा हममें से कभी करने की कोई सोचता तक नहीं था, करने की बात तो दूर रही, हममें से कोई सोच भी नहीं सकता था कि उनकी कही हुई बात को काट दिया जाए | कभी-कभी पापा-अम्मा इस बात का जिक्र करते भी थे और वे ही क्या मौसी के परिवार में, मित्रों में, संस्थान से जुड़े सभी लोगों को यह बात बहुत अच्छी लगती थी और ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 85
85---- ================ आज के आदमी की परेशानी यह है कि वह दूसरे को देखकर यह नहीं सोच पाता कि वाला किन कठिनाइयों, परेशानियों और अपने श्रम से आज की स्थिति पर पहुँचा होगा | जैसे पूरा जीवन लग जाता है किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में लेकिन सामने वाला केवल उसकी सफलता का परिणाम देखता है, उसका वर्षों का श्रम, रात-दिन का जागना, उसका जूझना नहीं देखता | उसे बस वह चमक दिखाई देती है जो उसके सामने चमक रही होती है | इसीलिए उसे रातों-रात उस स्थान पर पहुंचना होता है जिस पर वह सामने वाले को ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 86
86--- ================ मुझे उत्पल में कभी पापा की झलक दिखाई दे जाती जो मुझे प्रभावित करती | पापा का रोमांटिक मूड मुझे अक्सर याद आ जाता था जब वे अम्मा को छेड़ा करते थे | सपनों की तरह भागती है ज़िंदगी, वे सपने जो मुझे तो कभी आते ही नहीं थे | अब मैं सपनों को खोजने लगी थी या फिर सपने मुझे, पता ही नहीं चलता | यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि बेटी पिता के व्यक्तित्व से प्रभावित होती है और अधिक लाड़ली रहती है तो बेटा माँ की ओर अधिक आकर्षित रहता है | यह मनोविज्ञान कहता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 87
87---- ============ हद ही हो गई, सबके ही तो टीके लगे थे और सब बड़े मज़े में घर वापिस थे, मैं कोई अनोखी थी क्या? मेरी इस स्थिति से संस्थान का बड़े से लेकर छोटा बंदा तक मेरे लिए चिंतित हो गया था | क्या मैं सबको परेशान करने के लिए ही हूँ ---कारण कोई भी हो? यह सोचकर मुझे बहुत खराब लगा मैं सोच रही थी कि कमरे में ही कुछ हल्का-फुल्का मँगवा लेती हूँ लेकिन रतनी और शीला दीदी के सामने चलती होगी मेरी ! “शीला दीदी ! अगर अभी आराम कर लूँ तो कैसा रहेगा?” मैंने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 88
88--- ================ इंसान की कैफ़ियत है। उसे जिससे दूर जाना होता है, उसके बारे में ही ज्यादा सोचता है यानि सोचना कोई ऐसी क्रिया नहीं है जिसमें वह जान-बूझकर कूदे या फिर उसे करना या न करना चाहे | यह तो अपने आप ही साँस जैसे चलती रहती है, पिघलती रहती है, मचलती रहती है, ऐसी ही कोई प्रक्रिया है | कुछ करने से कुछ नहीं होता जैसे प्रेम करने की कोशिश से प्रेम नहीं होता | प्रेम जाने दिल की गलियों में से, साँसों की अनदेखी नसों, अनदेखी, अनपहचानी गलियों में अपने आप ऐसे समाने लगता है जैसे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 89
89 ---- =============== अब वातावरण काफ़ी सामान्य हो चुका था | सरकार ने भी काफ़ी छूट दे दी थी, खुल गईं थीं लेकिन सरकार ने अभी सबको ध्यान रखने की सलाह दी थी | दूसरे दौर में जो हालत हुई थी उससे सब लोग घबरा गए थे लेकिन किसी भी स्थिति में हमेशा कुछ ऐसे लोग भी होते ही हैं जो अपने आपको पहलवान समझना नहीं छोड़ते | और तो और वे यह भी समझने की कोशिश नहीं करते कि उनके कारण और लोगों को परेशानी होगी | सामने सड़क के पार वाले मुहल्ले में ऐसे बहुत लोग थे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 90
90--- =============== तय किया गया कि इस बार दिव्य टूर के साथ जाएगा, ग्रुप लीडर की तरह | मुझे गिल्ट परेशान करता मेरे कारण अम्मा पापा अटक जाते हैं कहीं भी जाने से | अब या तो मैं शादी कर लूँ या फिर पक्का निश्चय कर लूँ और अम्मा-पापा को बता ही दूँ कि मुझे शादी करनी ही नहीं है | यहीं तो मार खा रही थी मैं! शादी का लड्डू खाना भी था और---नहीं भी! दो नावों में पैर रखने की आयु थी क्या मेरी?बरसों से यही तो कर रही थी | दिव्य के साथ जाने वाले ग्रुप ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 91
91---- ================ सब लोगों का ध्यान पल भर में रमेश की पत्नी सुधा की ओर चला गया, स्वाभाविक था उसकी गर्भावस्था के दिन पूरे होने को ही थे, सब जानते थे | उन दिनों अम्मा उसे अस्पताल न भेजकर संस्थान में ही डॉक्टर को बुलवाकर चैक करवाती रही थीं | डर था अम्मा को कोविड का!अब तो सब काफ़ी रिलैक्स होने लगे थे | अम्मा ने डॉक्टर से बात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि खतरे की कोई बात नहीं थी | उनका अस्पताल रोज़ सेनेटाइज़ करवाया जाता है, खासकर डिलीवरी वाला व बच्चों का वार्ड और ऑपरेशन थियेटर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 92
92--- ================ संस्थान की पार्किंग में पापा की गाड़ी देखकर पता चल गया कि पापा आ गए थे, बिटिया आने की खबर से वहाँ खुशी फैल गई थी | आखिर परिवार का एक सदस्य बढ़ गया था | पापा अपने कमरे के बाहर ही खड़े थे, उनके मुख पर भी मुस्कान खिली थी | “पधार गईं लक्ष्मी जी?कैसे हैं माँ बेटी। दोनों?” पापा ने मुस्काते हुए पूछा | “सब अच्छा है, बस सुधा का सीज़िरियन करना पड़ा | ”अम्मा ने बताया | “एक खुशखबरी मैं देता हूँ ---”पापा बोले | “अच्छा, क्या भला ?”अम्मा को उत्सुकता थी | उत्पल ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 93
93--- =============== अगले दिन मौसी का पूरा परिवार दोपहर में ही आ गया | माता-पिता की दुर्घटना यानि उनके रहने से, स्वाभाविक था मौसी और मौसा जी कुछ अधिक ही उदास थे | हम सबको उनके कोविड-अटैक के बारे में पता चल गया था लेकिन समय ऐसा कठिन था कि हममें से कोई भी उनको देखने नहीं जा पाया था | और तो और मौसा जी के दूसरे भाई भी माता-पिता को नहीं मिल पाए थे | यह सब उस हादसे में हुआ था जब उन्हें अस्पताल में बड़ी मुश्किल से जगह मिली थी लेकिन बहुत कम मरीज़ ही ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 94
94— =============== अल्बर्ट और आना को अच्छी हिन्दी बोलनी सिखा दी थी अंतरा ने | पहले बातें अँग्रेज़ी में रहीं फिर जब पापा ने देखा कि अल्बर्टन अच्छी खासी हिन्दी बोल लेते हैं, पापा अपनी प्यारी हिन्दी पर उतर आए | पापा ज़बरदस्त हिन्दी प्रेमी थे, उन्हें अल्बर्ट को हिन्दी बोलते देखकर बहुत अच्छा लगा था | फ़र्क था केवल उच्चारण का जो स्वाभाविक था | अल्बर्ट वाकई में बड़ा सरल, अच्छे स्वभाव का था | थोड़ी ही देर में वह सबमें ऐसे घुल-मिल गया जैसे न जाने कब से दोस्ती हो सबसे | पापा और मौसा जी भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 95
95--- ================ कुछ देर बात उत्पल भी पहुँच गया | मौसी और मौसा जी उसे देखकर प्रसन्न हो उठे वह किसी से कोई कॉन्टेक्ट नहीं रखता था, इस बात की शिकायत की गई और वह मुस्काता बैठा रहा | वह कोई उत्तर देना नहीं चाहता था या दे नहीं सकता था,कुछ समझ नहीं आया|कुछ पर्सनल बातें मौसा जी ने उससे पूछने की कोशिश की फिर मुझे लगता है कि मौसी ने अपने पति को आँखों से इशारा कर दिया जिससे वे चुप हो गए यानि उत्पल से कुछ खास बात पूछने की उत्सुकता को दूर करने की कोशिश की ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 96
96--- =============== उस दिन वाकई गैदरिंग में बहुत मज़ा आया | Guten tag ---आते ही उसने मुस्काकर कहा था हम सब उसका मुँह देखने लगे थे,हमारी समझ में कहाँ से आता बंदा क्या बोल रहा था लेकिन अम्मा ने उसी तरह,उसी लहज़े में उसे जवाब दिया और खिलखिलाकर हँस पड़ीं थीं |बड़े दिनों बाद अम्मा को इतना खिलखिलाकर हँसते देखा था| “सीधा सा ‘हैलो’कह रहा है ये अपनी भाषा यानि जर्मन में वैसे इतना बुद्धू तो वहाँ कोई नहीं था कि अल्बर्ट क्या कह रहा थयह समझ न पाते लेकिन उन्ही शब्दों में उत्तर देना तो कठिन ही था ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 97
97--- ============ मैंने अपने आपको प्रमेश से बात करने के लिए तैयार तो कर लिया था लेकिन मन से महसूस कर रही थी | उत्पल मेरे दिमाग के आसमान पर टिमटिमा रहा था लेकिन जाने क्यों मुझे लगा कि आसमान से टपकने वाली बरखा की बूंदें उसकी आँखों में सिमट आई हैं | मुझे मह्सूस हुआ कि मैं कहीं उन आँसुओं में सिमट तो नहीं जाऊँगी? मैं असहज थी, बहुत असहज---नहीं होना चाहिए था लेकिन थी और कारण था कि अंतरा ने जाने से पहले मुझे बताया था कि कोविड में जो कलकत्ता में गुज़र गईं थीं वो उत्पल ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 98
98---- ============= आज मैं प्रमेश के साथ कैनॉट प्लेस के उसी रेस्टोरेंट में बैठी थी जिसमें अम्मा-पापा का स्थाई हुआ था | वैसे अस्थाई रूप में तो वे दोनों पहले मिल ही चुके थे लेकिन फिर बिछड़ जाना और उस तड़प को भोगना उन दोनों के लिए काफ़ी पीड़ादायक था | अम्मा का वह समय हमने देखा नहीं था लेकिन पापा तो जैसे दादी माँ अक्सर ज़िक्र करतीं थीं कि उनका लाल सूखकर काँटा हो गया था | इस रेस्टोरेंट में मिलने के बाद वे फिर से महकता, गमकता फूल ही नहीं बगीचा बन गए थे जिसमें से न ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 99
99--- =========== ‘किसी लड़की के साथ इतने नाज़ुक विषय पर बात करने की ऐसी शुरुआत कितनी बोरिंग थी? ’मैंने | हाँ, लेकिन शायद उसका अपना तरीका था या वह जानता ही नहीं था कि किसी लड़की को ‘डेट’पर ले जाने का क्या मतलब होता है ? प्रमेश की दीदी अम्मा की जान खाती रही थीं कि प्रमेश और अमी को डेट पर जाना चाहिए | यह एक रिश्ते की शुरुआत थी और उसकी दीदी शायद उसे यह पाठ पढ़ाना भूल गई थीं कि वह मुझसे कैसे बात करे? वैसे इतने बड़े आदमी को यह सिखाना पड़े, कमाल ही था ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 100
100---- ============= संस्थान की कक्षाएँ अपने समय से चल रहीं थीं और यू.के से भाई की पुकार कुछ ऐसे बस अम्मा-पापा को अब भेज ही दो कुछ दिनों के लिए| उसे आजकल जाने क्यों अम्मा-पापा की बड़ी याद आ रही थी | मैंने उन्हें कहा भी कि वे दोनों कुछ दिनों के लिए संस्थान के काम के लिए नहीं भाई-भाभी के प्यार के लिए जाएँ| बेशक वह अपनी इच्छा से गया था लेकिन किसी का दिल दुखाकर नहीं गया था| पूरा परिवार उसके निर्णय से खुश था बल्कि आनंदित ही था| वैसे इस पर भी काफ़ी चर्चा तो हो ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 101
101---- =============== जब भी मैंने उत्पल से उसको अपने लिए कोई ‘कंपनी’बना लेने की बात की, वह हमेशा ऐसी कहता कि मेरा व्यथित मन और भी पीड़ित हो जाता | देखने में खासा सुंदर, प्रभावित करने वाला व्यक्तित्व, इतना हँसमुख, अपने काम के प्रति समर्पित लड़का और उसे कोई ऐसी कंपनी नहीं मिल रही थी जिससे वह अपने मन-तन को साझा कर सके | “अभी टॉर्च लेकर निकलता हूँ---या---खरीदा जा सकता है क्या प्यार कहीं, बता दो कहाँ जाऊँ ?”जब ऐसी बातें कहता, दिल ज़ोर से धड़कने लगता और मन दुखी हो जाता और उसके प्रति पहले से और ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 102
102 ---- ================= मुझे बाहर ही खड़ा करके प्रमेश बर्मन अपनी गाड़ी लेने अंदर चला गया | मुझे फिर याद आ गया | कैसा नाटक करता है वह जब कभी उसके साथ मेरा बाहर जाना होता है | मुझे उसकी इन्ही बातों से ही तो प्यार हो गया था| जाने कितनी बार चुपके से कानों में फुसफुसा देता; “आपकी माँग भरने का मन करता है----” फिर मुँह घूम लेता| “क्या—क्या कह रहे हो उत्पल ? ज़ोर से बोलो न, कुछ सुनाई नहीं दिया---”मैं सब सुन लेती थी वह कितनी भी धीमे से बोले तब भी लेकिन दिखाती ऐसे थी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 103
103---- =============== मैं ढीठ की तरह प्रमेश के सामने बैठी रही |उसने एक बार मेरी ओर नज़र उठाकर फिर एक सैंडविच उठाकर दूसरी क्वार्टर प्लेट में रख लिया और एक प्लेट मेरी ओर बढ़ाई| “प्लीज़ हैव,ऐट लीस्ट वन पीस---”शायद वह समझ चुका था कि मैं उसके लिए आया या केयरटेकर बनने वाली नहीं थी|मैंने महसूस किया उसके चेहरे पर एक खिसियाहट सी पसर गई थी और वह बोल रहा था, “सॉरी डिड यू माइंड इट ?”मैं फिर भी चुप बनी रही | “अमी जी प्लीज़ गिव कंपनी---” मुझे महसूस हुआ वह काफ़ी भूखा है,शायद मैं न ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 104
104--- =============== गाड़ी न जाने किन-किन रास्तों से गुज़र रही थी और हम दोनों गुमसुम से बैठे थे| “यू दीदी लाइक्स यू सो मच----” अचानक प्रमेश जैसे बड़ा खुश होकर बोला| शायद वह मेरे साथ थोड़ा-थोड़ा खुलने की कोशिश कर रहा था| अरे ! खुद की बात करता तो थोड़ा समझ में आता, उसकी दीदी से शादी करनी थी क्या मुझे? मैंने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया, क्या देती कहाँ कुछ समझ पा रही थी? मैंने महसूस किया, वह कनखियों से मुझे देख रहा था| उसके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान भरा सुकून सा भी दिखाई दे रहा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 105
105---- =============== “श्रेष्ठ?---”फ़ोन पर नाम उभरा देखकर मेरे मुँह से निकला| “हाऊ आर यू डूइंग ?” उधर से जानी आवाज़ व स्टाइल था| “गुड—व्हाट हैप्पन्ड ?”मेरी आवाज़ एक दोस्त के जैसी तो नहीं थी| होती भी कैसे?जिन परिस्थितियों में से मैं उसके साथ निकलकर आई थी वे मेरे लिए बहुत आनंददायी नहीं थीं| “क्या अभी तक मुझसे नाराज़ हो?”उसने इतने आराम से पूछा मानो हमारे बीच बच्चों की तरह कोई खिलौने के लिए झगड़ा या गुड्डा-गुड़िया की शादी में कोई छोटी-मोटी बात हो जाने पर वे एक-दूसरे से नाराज़ हो जाते हैं फिर अपने आप किन्हीं लम्हों में घुल-मिल ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 106
106---- घर बड़ी खूबसूरती से सजाया गया था| यह ऐसी कॉलोनी में था जो बड़ी व प्रतिष्ठित कॉलोनियों में थी यह जगह! प्रतिष्ठित लोग रहते थे यहाँ| कुछ तो बड़े व्यापारी वर्ग के लोग थे और कुछ बड़े आई.ए.एस, आई.पी.एस जैसे ऑफ़िशियल्स ! माहौल में एक नफ़ासत तो थी जो मुझे पसंद आ रही थी| जितना मैं देख और समझ पाई थी लोगों का लिविंग-स्टेंडर्ड डिसेन्ट लग रहा था हमारी कॉलोनी के अन्य बंगलों की तरह,लेकिन उनमें भी कितने लोगों के भीतर की बात जब हमें मालूम चली थीं, कभी ऐसा भी महसूस होता कि सड़क पार के मुहल्ले ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 108
पूरे रास्ते हम तीनों में से कोई कुछ नहीं बोला | सबके मुँह में जैसे ताले पड़ गए थे अजीब सी मानसिक स्थिति में चक्कर खाते हम तीनों ही मानो किसी विचित्र सी दुनिया में से लौटकर आए थे | मैं कहाँ थी? पहले भी तो मैं शून्य ही थी अब तो जैसे गहरे गड्ढे में जा गिरी थी | क्या उसमें से ऊपर आने के लिए कोई सीढ़ियाँ थीं अथवा कोई ऐसा रस्सी पकड़ने वाला जो मुझे ऊपर खींच लेता और अपनी बाहों में भरकर मुझे लोरी सुनाकर चैन की नींद सुला देता | नींद तो पहले से ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 109
109--- ================ संस्थान में रोज़ाना की तरह कक्षाएं शुरू हो चुकी थीं और सभी कलाओं के गुरुओं ने अपनी-अपनी में पहुँचकर अपने छात्रों के साथ अपना काम शुरू कर दिया था | संस्थान में कई सैशन्स होते थे जो बँटे हुए थे | नृत्य के बच्चे अधिकतर शाम को आते थे लेकिन कार्यक्रम की तैयारी करने के लिए कलाकारों की अलग-अलग कक्षाएँ चलती ही रहती थीं | अब अम्मा आवश्यकतानुसार चैंबर मैं बैठतीं अथवा कभी भी किसी क्लास में चक्कर मारतीं, ज़रूरत पड़ने पर मीटिंग्स में रहतीं | आज तो माहौल कुछ अजीब सा ही था | सभी मेरे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 107
107---- =============== कुछ तो था जो मुझे परेशान कर रहा था लेकिन पता नहीं क्या था?यह सब पता था के घर पर हैं, अम्मा-पापा यानि हम सब,मेरे हाथों में मंहगे रत्नजड़ित कंगन झिलमिला रहे थे | सामने प्रमेश और उसकी बहन भी थे, कुछ अजीब था लेकिन क्या? मस्तिष्क जैसे कुछ सोचने का काम कर ही नहीं पा रहा था | हँसी-खुशी खाना खत्म हुआ, सब आकर फिर से सुसज्जित सिटिंग रूम में बैठ गए| “आज मेरा मनोकामना पूरा हुआ, जय देबी माँ, तुम्हारा ही सहारा है|”प्रमेश की दीदी ने जब हर बात में माँ को पुकारना शुरू किया ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 110
110---- ================ श्रेष्ठ ने मुझसे मिलने का बहुत प्रयास किया लेकिन न जाने क्यों मैं उससे मिलने के नाम ही बिदकने लगी थी | एक जैसी ही बात दो लोग करें, उसमें से एक आपको नॉर्मल भी क्या प्यारा लगने लगता है तो दूसरे से वितृष्णा होती है | यह गलत ही है वैसे लेकिन होती है तो होती है | इसमें सोच सारी मन की है जो इंसान को चुप तो रहने ही नहीं देता, नचाता ही तो रहता है | शायद मैं इस गोल-गोल नाच से थक चुकी थी और किसी भी स्थिति में अब किसी और ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 111
111--- ================= उत्पल बहुत सलीके से चलने वाला ! खास प्रकार से, बड़ी नफ़ासत से हर चीज़ का स्तेमाल वाला और हर चीज़ को बड़ा व्यवस्थित रखने वाला!उसका चैंबर इतना व्यवस्थित रहता कि हमारे पूरे संस्थान को संभालने वाले भी इतनी व्यवस्था नहीं रख पाते थे संस्थान में ! शुरू-शुरू में संस्थान के वे कर्मचारी उसके चैंबर की सार-संभाल करते थे जो सबके कमरों को संभालते थे लेकिन वह जल्दी ही उनसे परेशान हो गया | उसने अम्मा से कहा था कि अपना चैंबर वह खुद व्यवस्थित रखेगा | उसे किसी की ज़रूरत नहीं थी | और सच में ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 112
112— ================ उत्पल के कंधे को आँसुओं से भिगोने के बाद मैं शायद कुछ सहज हुई, नहीं सहज तो हुई लेकिन इतने आँसु निकल जाने के बाद मेरे मस्तिष्क ने शायद कुछ सोचना शुरू कर दिया था | कर तो मैं वही रही थी जिससे भागती रही थी फिर इतने दिन इस भाग-दौड़ का क्या अर्थ रहा? दो-तीन दिनों तक मेरी मनोदशा अजीब सी तो रही लेकिन मैं तो ठान चुकी थी अपने मन में, मैंने शीला दीदी से कहा कि मैं अब इस रिश्ते को लटकाए नहीं रख सकती | उन्होंने जाने कब यह बात अम्मा से बता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 113
113---- =============== जो कुछ नहीं हो रहा था, जो बरसों से नहीं हो रहा था यानि बरसों से मैं साथी की खोज में भटक रही थी न! कुछ निर्णय की स्थिति आई ही नहीं थी और अब? क्या मैं या और सब मेरे इस निर्णय से संतुष्ट थे? क्यों हुआ होगा ऐसा? मैं सोच रही थी, प्रमेश के व्यवहार से इतनी अधिक असन्तुष्ट होने के बावज़ूद भी मैंने क्यों और कैसे और किन क्षणों में पूरे जीवन उसके साथ बिताने का फैसला किया होगा? लेकिन ऐसा अब हो चुका था | जीवन साथ बिताने का निर्णय इतना आसान होता ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 114
114--- =============== एक बहुत बड़ी और अजीब बात जो हुई वह यह कि उत्पल अपने असिस्टेंट को स्टूडियो का समझा कर जाने कहाँ गायब हो गया | अम्मा ने जब उसको दो दिन नहीं देखा तब कुछ विचलित सी हुईं | ऐसे तो उत्पल कभी बिना बताए कहीं नहीं जाता था | कोविड के दिनों में वह यहाँ रहा था उसके बाद अपने फ़्लैट पर चला गया था और तब से समय पर आना-जाना, समय पर गप्पें मारना , खिलखिलाना और दूसरे को भी अपनी खिलखिलाहट में शामिल करना उसका रोज़ाना का काम था | जब कभी बाहर जाना ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 115
115 --- =============== मन बीहड़ बन में घूम रहा था| क्या और कैसे करूँ, कैसे संभालूँ इस शादी को? देखा है, महसूस भी किया है प्रेमी जोड़ों की मुहब्बत को जो डूबे रहते हैं, मैं क्यों नहीं कोई उत्साह महसूस कर रही थी उत्साह? क्या मैं एक ऐसी नदी सी बन रही थी जिसके बहाव को पत्थर रोक लेते हैं और नदी की कलकल ध्वनि अचानक बंद हो जाती है| पत्थरों की आड़ से बनाती हुई वह न जाने कितनी पीड़ा झेलती हुई तरलता, सरलता से बहने के स्थान पर घायल होती हुई शिथिलता से आगे बढ़ती है| प्रमेश ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 116
116--- =============== पता नहीं क्यों मेरी बेचैनी और भी बढ़ने लगी| परसों? चाहे इस घर में आना-जाना बना रहे एक तरह से पराई तो हो ही जाऊँगी न ! दूर तो हो जाऊँगी न ! अभी तक मैं खुद को अम्मा की नाल से बँधा हुआ महसूस करती थी| लगा, अब वह नाल से बंधा रिश्ता खतम हो जाएगा ! क्या कुछ ऐसा ही सब लड़कियाँ अपनी शादी के समय महसूस करती होंगी?यह ‘पराई’ शब्द कितना कठिन है !कितना कष्टकर ! अपने रिश्तों में जब कोई औपचारिकता की बात होने लगती है, तुरंत बोला जाता है; ’हमें पराया मत ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 117
117 --- =============== यह गुलाबी रंग का एक बड़ा सुंदर सा लिफ़ाफ़ा था जो मैंने चुपचाप उत्पल के कमरे ड्राअर से उठा लिया था जैसे ही मैंने उस ड्राअर को खोला, उसमें से मीठी सी सुगंध का झौंका आकर मुझे छू गया| मेरी आँखें बंद हो गईं जैसे उत्पल की सुगंध उस ड्राअर से आ रही थी| यह सुगंध बहुत परिचित थी, जब कभी मैं उत्पल के करीब हुई थी इस सुगंध ने हमेशा मुझे नहला दिया था जैसे! मैं उसमें डूब जाती थी| हर देह की एक खास गंध होती है, यदि उसका अहसास हो तो वह एक-दूसरे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 118
118 – ================ आज संस्थान का वातावरण कितना खुला-खिला था सिवाय मेरे दिल के!सारे संस्थान में गहमा-गहमी और लोगों हाथों-पैरों में बिजलियाँ और चेहरों पर मुस्कान ! अम्मा की इच्छा थी कि उनकी बेटी कुछ तो सजे सँवरे लेकिन मैं अपने मन की टूट-फूट को कैसे रफ़ू करती भला ! जब से उत्पल के करीब हुई थी मैं अपने आपको आईने में कुछ अधिक ही निहारने लगी थी| मैं सचमुच सुंदर थी ! मुझे महसूस होने लगा था और चेहरे की ललाई स्वाभाविक रूप से सबको दिखाई देने लगी थी| जब अम्मा-पापा मेरे खिले चेहरे को लाड़ से देखते, ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 119
(अपने प्रिय पाठकों से दो शब्द ) मातृभारती के मेरे प्रिय पाठकों!आप सबसे बिछुड़कर मैं स्वयं को अकेला महसूस रही थी| मेरी आँख की सर्जरी की गई थी जो ईश्वर की कृपा, मेरे योग्य सर्जन के श्रम और आप सबकी दुआओं से बिलकुल ठीक हो गई थी आप सबका स्नेह व सम्मान मेरे जीवन जीने की शक्ति है और मातृभारती का सहयोग जीने की ऊर्जा!सब ठीक था किन्तु हम सब इस बात से भी वाकिफ़ हैं कि ‘जो भी होता है, आप होता है, यानि इसकी बिसात कुछ भी नहीं, हम जो अक्सर उदास रहते हैं, बात यह है ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 120
120— =============== लीजिए, हो गया सब ताम-झाम, क्या हुआ? कुछ खबर ही नहीं, हाँ जिस समाज से भयभीत हो यह उत्कृष्ट कृत्य किया था क्या वह समाज इस पर मुझे ठप्पा लगाकर भेज सकता था कि मैं सही थी, मैंने बहुत बड़ी कुर्बानी करके समाज में कोई आदर्श स्थापित कर दिया था? क्या मेरे दिल की धड़कनों को एक सच्चे प्रेम के अहसास से सींच सकता था? क्या मैं जानती, समझती भी थी कि आखिर यह ‘सच्चा’था किस चिड़िया का नाम ? यह तो सूखे हुए वृक्ष की एक लटकी हुई डाली पर इधर से उधर ही डोलता रहा ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 121
121=== =============== दिल्ली के पौष होटल ‘द लीला पैलेस’का शानदार इंतज़ाम ! शाहनाई के सुरों का पवन के साथ जाना और महत्वपूर्ण अतिथियों का वैभव्यपूर्ण समागम !ए हाई शो जिसमें डरे-सहमे लम्हों के बीच पसरे मेरे दिल की धरती पर सुराग!सब कुछ अंदर-बाहर का खेल! पार्टी में संस्थान को ही अधिक भाव दिया जा रहा था, कुछ और भी व्यक्तित्व थे जिनका खास ख्याल रखा जा रहा था, प्रमेश रबर के खिलौने सा मुस्कुरा रहा था| जिसे देखकर मेरी भीतर की कुढ़न का अंदाज़ा लगाना किसी के लिए भी संभव नहीं था| अम्मा-पापा, भाई-भाभी के पहुंचते ही जैसे सबके ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 122
122-== ============== कुछ होश ही नहीं था मुझे, न जाने रेशमी झालरदार सुंदर पलंग पर सहमी-सिकुड़ी पड़ी मैं किन रास्तों में कभी गिरती-पड़ती, अजीब सी मन:स्थिति में पड़ी रही होऊँगी? सुंदर कक्ष में एक अजीब प्रकार का अरोमा, हाँ, अजीब प्रकार की गंध तो थी जो कुछ स्पष्ट न थी लेकिन कुछ अलग थी| एक भिन्न वातावरण, उस पर एक प्रेम में निचुड़ी हुई अजीब स्त्री ! हाँ, स्त्री ही तो, लड़की तो रही नहीं थी जिसको न अपना कुछ पता था, न ही कुछ पाने, खोने का| भविष्य का क्या, वर्तमान की स्थिति से भी तो अवगत नहीं ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 123
123=== ================ फ़्रेश होकर मैं फिर से पलंग पर ही बैठ गई | सामने शानदार सोफ़े थे लेकिन मेरा वहाँ तक जाने का नहीं हुआ | एक आलसी शरीर व मन का निढाल सा अहसास लिए मैंने अपनी कॉफ़ी मग में निकाली और एक कुकी को थोड़ा सा काटकर मुँह में उसका स्वाद लेने की कोशिश में ही थी कि बाहर ‘नॉक’ हुई | मुँह में जाता कुकी का स्वाद जैसे कहीं दाँत में अटककर रह गया, शायद कुछ बेस्वाद भी कर गया क्योंकि जिस अंदाज़ से बैठी थी उसमें व्यवधान पड़ा था | मुझे व्यवधान ही महसूस हो ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 124
124==== =============== मैं जानती थी कि मेरे दीदी के पास पहुँचने से दीदी और उनके लाडले प्रमेश को एक ही लगने वाला था | एक सूनापन उनकी दृष्टि में से पसरकर मेरे भीतर रेंग गया लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और जैसा मैं समझती हूँ उन्हें मुझसे कुछ कहने का कोई साहस नहीं था | मैं बिंदास वहाँ जाकर खड़ी हो गई | “खीर बनाएगा ?” दीदी ने मुझे ऊपर से नीचे तक लगभग घूरते हुए पूछा जिससे मेरे मुँह में कुछ मीठा सा हो आया | क्यो आखिर किस बात से डरते हैं ये लोग? ऐसे ही ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 125
125=== ================ मुझे कम से कम उस दिन या उसके कुछ दिनों बाद तक तो प्रतीक्षा करनी ही पड़ती तक अम्मा-पापा भाई के साथ जाने वाले थे | वैसे, प्रमेश के घर में रहने का कोई न तो औचित्य समझ में आ रहा था और मन तो था ही नहीं | कुछ बातों को दिल को मसोसकर करना ही पड़ता है जीवन में जैसे मैं कर ही रही थी, करती आई थी | कुछ दिन और सही---मन का भटकाव चरम सीमा पर और थोड़ा सा कर्तव्य-बोध दिल के किसी कोने में हुंकार मारता सा---न, न, प्रमेश या उसकी दीदी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 126
126==== ============== वह रात पहली रात से भी अधिक दम घोंटने वाली थी | कुछ समझने जैसा था ही किसी के साथ कुछ साझा करना भी खुद मेरे जैसी स्वाभिमानी, प्रौढ़ा, अपने निर्णय की स्वयं निर्णायक के लिए अपना स्वयं का मज़ाक बनाने वाली बात थी | न जाने मैंने कितनी झपकी ली होंगी लेकिन रबर के आदमी का हाथ मेरी ओर बढ़ते देख मैंने फिर से मोटे तकिए घसीटकर बीच में एक पुल खींच लिया | डिम रोशनी अब भी कमरे में थी | मैंने करवट ली और देखा कि प्रमेश की बेशर्म दीदी की आँखें मसहरी की ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 127
127==== ================= संस्थान में प्रवेश करते ही मेरा मन किसी जकड़न से छूटने लगा और गाड़ी रुकते ही जैसे खुले पवन के झौंके की तरह मैं एक बच्चे की तरह भागती हुई बरामदे की ओर जैसे उड़ आई | गार्ड मुझे नमस्ते करता रह गया | मैं अपना सारा सामान गाड़ी में छोड़कर भाग आई थी | जबकि शोफ़र ने बरामदे तक आकर गाड़ी रोकी थी | मुझे देखते ही वहाँ के कर्मचारियों में शोर मच गया | मेरे इतनी जल्दी किसी को भी आने की आशा नहीं होगी | अभी सब नाश्ते पर बैठे ही थे कि महाराज ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 128
128=== =============== न जाने कब तक अपने बिस्तर की गर्माहट को समेटते हुए मैं पड़ी रही थी | पड़ी क्या रही थी जिस असहजता, बनावटीपन और मानसिक त्रास से जूझ रही थी, वह जैसे कहीं दूर बहता जा रहा था लेकिन बिलकुल नहीं था, ऐसा भी नहीं था | क्या कई दिनों से मेरे भीतर कोई ऐसा सपना चल रहा था जो शायद कुछेक समय से शुरू हुआ था लेकिन मन व मस्तिष्क के बीहड़ में मुझे घसीट ले जाने वाला अंतहीन सपना था | यूँ तो सपने मुझे कभी आते नहीं थे लेकिन अब ? प्रश्न बहुत थे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 129
129==== ============== अम्मा-पापा की वाकई इस बार जाने की पूरी तैयारी थी, अब मेरे भीतर एक खाली ठंडेपन की महसूस होने लगी थी जिसे केवल मुझे ही दबाकर रखना था| भाई भी नहीं होंगे, जो था अब शीला दीदी का पूरा परिवार और मैं---और करने के लिए, समस्याओं का समाधान निकालने के लिए गठरी भर पोटला जो न जाने अभी किस स्थिति में खुलने वाला था और जिसे मेरे सिवाय और कोई कुछ समझने की स्थिति में हो ही नहीं सकता था| संस्थान के पेपर्स की मेरे नाम पर पहले ही ‘पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी’करवा दी गई थी जिनमें मेरे ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 130
130==== =============== कुछ लोगों की अजीब ही प्रकृति होती है, किसी बात में अपनी एंट्री मारे बिना उन्हें चैन पड़ता | वे यह भी समझने में अशक्य रहते हैं कि यहाँ उनकी कितनी ज़रूरत है अथवा उन्हें कितना सम्मान मिल रहा है | उनका यहाँ स्वागत भी है या नहीं ? आखिर ऐसे लोगों से परेशानी तो होती ही है लेकिन किया क्या जाए? दुनिया में भाँति-भाँति के लोग जिनसे कभी किसी बात के लिए तो कभी बिना बात ही आमना-सामना होता ही रहता है | एक ओर संस्थान का अचानक महत्वपूर्ण बन जाने वाला दामाद जिसको यह भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 131
131==== =============== यू. के की उड़ान के दिन दोनों भाई-बहन पधार गए | अम्मा-पापा, भाई-भाभी के लिए यह उनका एक नॉर्मल सी बात थी लेकिन मेरे मन में तो शंका के बीज उग चुके थे | किसी मनुष्य में इतनी दुष्टता हो सकती है और वह चीज़ों को किस प्रकार ऊपर-नीचे करने में अपने मस्तिष्क का दुरुपयोग कर सकता है, यह एक चिंता का विषय तो था ही | इसके पीछे वास्तव में था क्या? मुझे इसका खुलासा तो करना ही था | मैं प्रमेश की बहन को इस मामले में छोड़ने के किसी प्रकार भी मूड में नहीं ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 132
132=== =============== अगला दिन एक नई सुबह जैसा ही था | सूर्य देव अपनी छटा से संस्थान के प्रांगण लेकर वहाँ के सभी लोगों के मन में ऊर्जा का स्रोत लेकर पधार चुके थे | हम बेशक उदास हों, छुट्टी कर लें, अपने बिस्तर में मुँह छिपाएँ, बहाने बनाकर पड़े रहें लेकिन संस्थान की दिनचर्या बरसों से जैसी थी, वैसा ही था दिन बस, चुप था, उदास था, उसके चेहरे पर कुछ जमने के निशान थे, कुछ आँसुओं के, कुछ बेचारगी के, कुछ नाराज़गी के! मुझे लगा मैं दीवारों में, अस्थिर चीज़ों में भी मानवीकरण कर रही हूँ | ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 133
133=== ================ “बहुत सी बातें करनी हैँ शीला दीदी!”मेरे गीले शरीर का आधे से अधिक भाग उनके कंधे पर गया था | उन्होंने महसूस किया कि मेरी सारी देह ऐसे काँप रही थी जिसे कोई करंट छू गया हो | “ठीक हो न ?”उन्होंने पूछा और एक बार फिर से मेरी आँखों से आँसुओं के बांध ने टूटना शुरू कर दिया | “एक काम करो, पहले ज़रा व्यवस्थित हो जाओ, अच्छा है अपनी नाइट-ड्रेस पहन लो | सिर में तेल मलवा लेतीं तो अच्छा था पर अब सब बाल गीले हैं | ” उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपटाए ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 134
134==== ============== जब शर्बत की बॉटल के बारे में पता चला था मैंने महाराज से वह बॉटल अपने कमरे एक ऐसे कोने में रखवा दी थी जिससे किसी की नज़र उस पर न पड़े और बाद में उसके बारे में असलियत पता की जा सके | एक ज़रा सी शर्बत की बॉटल क्या हो गई जैसे उसके चारों ओर ज़िंदगी ही घूमने लगी लेकिन जिस बात से ज़िंदगी पर फ़र्क पड़ जाए, वह भी इतना अधिक कि साँसें लेना मुहाल होने लगे उसकी वास्तविकता तो जाननी ही थी | अब समय था कि महाराज उस लड़के से पूछें कि ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 135
135==== =============== संस्थान का कामकाज उसी गति से चल रहा था जैसे हमेशा चलता रहता था, कोई कहीं व्यवधान हाँ, सूनापन तो होना ही था जो सबको महसूस हो रहा था यहाँ तक कि संस्थान के बच्चों को भी!अभी तक यह तय हुआ था कि अभी कोई बात किसी से साझा न करके अपनी उस ‘डिटेक्टिव एजेंसी’से संपर्क करेंगे जिससे पापा कई बार पापा करते थे, कभी अपने किसी काम के लिए तो कभी किसी और के काम के लिए भी | बड़े शहरों में इतने बड़े काम-काज के लिए सारी जुगाड़ रखनी पड़ती हैं, यह भी कोई अलग ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 136
136=== =============== दो/तीन दिनों तक शर्बत की जांच के बारे में सबके मन में स्वाभाविक खलबली मची रही | शर्बत का रहस्य सामने आया जो वैसे तो प्रत्याशित ही था | लैब में उसकी सूक्ष्म जाँच की गई थी | वैसे वह एक नॉर्मल लीची का जूस ही था लेकिन जिस प्रक्रिया से उसे बनाया गया था और उसमें जिन चीज़ों का मिश्रण किया गया था, उन सबको करने की ज़रूरत इसीलिए पड़ी थी जिनसे पीने वालों के मनोमस्तिष्क पर उनका इतना दुष्प्रभाव डालना हो जिससे लंबे समय उन्हें वशीकरण किया जा सके | प्रश्न कठोर था कि अब ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 137
137==== =============== जहाँ नमी आने लगती है, वहीं कुछ हरियाली के तिनके दिखाई देने लगते हैं वरना तो दिलोदिमाग जमीन सूखी हुई, पपड़ी जमी हुई ही दिखाई देती है | भीनास से रहित उखड़ी, फटी हुई जमीन पर भला क्या दिखाई देगा? मिट्टी के ढेले जिनमें दूर-दूर तक जीवन का कोई सुराग चिन्हित नहीं होता | मेरे भीतर एक आक्रमण शुरू हो चुका था और यही महसूस हो रहा था कि हमारी यह सुदृढ़ टीम किसी ऐसे निर्णय पर पहुंचेगी जो समाज में एक नयी दृष्टि लेकर आएगी और ऐसे न जाने कितने पर्देफ़ाश होंगे | मुझे लगा कि ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 138
138==== ================ “ओहो ! अमी आ गया तुम ? कैसी हो ? तुमको मिलने को आया, अम्मा-पापा सब बढ़िया न वहाँ ? हमेरा फ़ोन नहीं लगता हाई, मैंने और प्रमेश ने काल केतना ट्राई किया | ”कितनी बड़ी नाटककार है यह स्त्री ! मैं जानती थी कि वे कुछ न कुछ ऐसा बोलती ही रहेंगी जिससे मुझमें उनके प्रति और खीज, गुस्सा और अनादर भर जाएगा | वैसे भी उन दोनों बहन-भाई के लिए आदर शब्द का अर्थ भी मेरे लिए अर्थहीन हो चुका था | वास्तविकता तो उनके मुँह से पहले भी एक बार सुन ली थी हमने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 139
139==== =============== रोज़ ही बात होती थी सबसे, वीडियो कॉल! कितनी सुविधाएं जुटा रखी थीं इन लोगों ने एक देश में जिसकी न तो भूमि अपनी थी, न ही वातावरण और तो और संस्कृति भी | कितने प्यार व अपनेपन से सुबह संध्या की आरती होती, प्रसाद बनता और सबमें वितरित होता | सच है, स्वीकारोक्ति होनी चाहिए अन्यथा मनुष्य मन की संवेदनाएं तो उसकी भीतरी सतह में होती ही हैं | अमोल, एमिली के पूरे परिवार में न कोई काल-गोरा था, न ऊंचा, नीचा था, न ही बड़ा छोटा!यह बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण बात थी कि एक प्रेमिल ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 140
140=== ================ अमोल की बात मुझ अकेली से ही तो हुई थी, मुझे सब बातें अपनी टीम से साझा जरूरी थीं, वैसे भी जब तक सब मेरे चैंबर में आए मेरा दिमाग घूमकर चक्कर खाने लगा था | ठीक है, जो कुछ पहले हुआ था लेकिन यहाँ से सब लोग बिलकुल ठीक गए थे। वो तो पहले की बात थी जब सबने दीदी के घर में शर्बत पीया था। उसका असर तो जो पड़ना था, वह पड़ ही चुका था लेकिन अब पापा के साथ जो हुआ था, वह क्या इसलिए कि केवल पापा का ‘स्टेमिना’ ही इतना कमज़ोर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 141
141==== =============== ये अजीब और अप्रत्याशित घटनाएं ही थीं जिनका कोई सिर-पैर समझ में नहीं आ रहा था | और क्या-क्या होना था, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी जैसे चित्र किसी आवरण में लिपटा हुआ हो, जैसे कोई परछाई! अब परछाई में क्या तलाश किया जाता, वह तो वैसे ही भ्रम में घुमा ही रही थी | अचानक एक बात और सामने आई, वह भी कुछ अजीब ही लगी | पता चला, पापा ने अम्मा से संस्थान से निकलते हुए न जाने क्यों कहा; “संस्थान में कभी मच्छर नहीं हुए, आज मुझे लगा किसी मच्छर ने ज़ोर ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 142
142===== ================ संस्थान में तो सब ठीक-ठाक चल रहा था जैसे अम्मा के अनुसार हमेशा चलता रहा था | कर्मचारी वर्षों से अपने काम में इतने माहिर हो चुके थे कि उन्हें किसी विशेष काम के लिए ही कुछ कहने या पूछने की ज़रूरत होती वरना सब काम अपनी गति से चलते रहते | इस प्रकार बहुत कम स्थानों पर हो पाता है वर्ना आध्यात्म के आश्रमों में तक कुछ न कुछ गड़बड़ी होती ही रहती हैं | “स्वार्थ ही सबसे बड़ी परेशानी लेकर आता है बेटा, नि:स्वार्थ भाव सबसे बड़ी कसौटी है!”हमारी दादी! सच में कमाल ही थीं ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 143
143==== =============== मंगला को देखते ही जाने क्यों महसूस हुआ था कि आज कारूँ का खज़ाना हाथ लग गया और मैं उसका कोई लाभ उठा सकूँगी लेकिन कैसे संभव था? मंगला को अपनी मालकिन के साथ जाना था, वह गई | उसे रोकने की कोशिश भी करने का कोई बहाना मेरे पास नहीं था और वह भी उस स्थिति में ! सब लोग अपना ‘होम वर्क’करके ला चुके थे, उनके अपने कागज़ उनके सामने थे जिससे हर प्वाइंट पर चर्चा की जा सके, सब अपने विचारों को एक दूसरे के साथ साझा कर सकें, कहीं कोई बात छूट न ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 144
144=== ================ भाई से रोज़ बात होती, वहाँ पर पापा का इलाज डॉक्टर्स की काबिल टीम कर रही थी भारत के डॉक्टर्स के भी संपर्क में थी लेकिन पापा के स्वास्थ्य में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा था | सब परेशान ! आज के जमाने में विज्ञान की इतनी तरक्की के बाद मंत्र, तंत्र पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है लेकिन आज भी दूर बैठे हुए अपने स्वार्थ के लिए ‘काले-जादू’ का प्रयोग किया जाता है और अपने लाभ के लिए दूसरों का नुकसान करने में लोग पीछे नहीं हटते | न चाहते हुए भी ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 145
145=== =============== उस रात जैसे बाहर के सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट से मन के भीतर की खड़खड़ाहट संवाद करती और मैं एक बेभान सी स्थति में मन के एक कोने से दूसरे में चहलकदमी करती रही | सारे आलम में दूर देश में, वो भी अस्पताल में, डॉक्टर्स-नर्स की सख्त निगरानी में लेटे पापा का आध्यात्मिक चिंतन इतना प्रबल, प्रबुद्ध था जो ज़िंदगी भर साथ रहने के उपरांत भी समझ में नहीं आया था | अब इतनी दूर से बातों की क्लेरिटी हो रही थी | सारी बातों की एक बात थी, सारे चिंतन का एक समग्र परिणाम था ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 146
146-=== =============== सच कहा जाए तो सबसे प्यारी सपनों की नगरी और देखा जाए तो स्वप्न ही स्वप्न!इन दिनों को स्वप्न के अलावा कुछ भी नहीं समझ पा रही थी | मैं ही नहीं, कोई और भी होता वह भी इस उलझन से बाहर नहीं निकल पाता क्योंकि जीवन भी तो स्वप्न ही है बेशक हम किसी भी खुमार में उसे बिता दें | कल भाई और पापा से दो अलग-अलग प्रकार की बातें जिनका कोई भी छोर कहीं से बांधा जा सकना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था | फिर भी मनुष्य अपने जीवन में होने वाली बातों को ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 147
147==== =============== आदमी की ज़िंदगी कहानियों से किस तरह अटी पड़ी है, इस बारे में न जाने कितने-कितने उत्तरविहीन और कुछ अलग सी बातें मेरे दिमाग के गलियारे में टहलने लगीं थीं और पापा का तो कमाल ही था| अब हर दिन मुझसे बात करना उनका शगल बन गया था| बात ही कुछ ऐसी थी कि कौन भरोसा करता? इसीलिए मैंने किसी को बताना ठीक नहीं समझा था| यह बात बिलकुल सही थी कि भाई और एमिली की उम्र के फ़र्क को देखते हुए हम सब परिवार वाले एक बार को चौंक गए थे लेकिन उतनी ही जल्दी हम ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 148
148==== ============== सब कुछ बड़ा अजीब था लेकिन सच था और सच इसलिए था कि मैं उसे स्वयं अनुभव रही थी| संसार में जन्म लेना केवल एक अवसर की बात नहीं है बल्कि एक ऐसा रहस्य है जो सबको अपने-अपने तरीके से मनोमस्तिष्क के दायरे में धूमने के लिए बाध्य करता है| इस जीवन के होने, न होने के बीच भी तो न जाने कितने विद्वानों के चिंतन रहे हैं और चलते ही रहते हैं, रहेंगे भी क्योंकि जीवन का रहस्य किसने जाना है और जहाँ तक है जानना असंभव ही है| हाँ, शरीर की उत्पत्ति जब हुई है, ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 149
149=== =============== दो ही दिन बीते थे कि अचानक अपने सामने मंगला को देखकर मैं चौंक गई | तैयार अपने चैंबर में जा रही थी कि सामने बरामदे से आती हुई मंगला को देखकर मेरा दिल धड़कने लगा | उसका वहाँ अकेले आना एक सपना ही तो था | उसे देखकर जैसे अच्छे खासे मूड में व्यवधान डलने से खीज सी हो आई जैसे मन में आंधी सी चलने लगी| “आज फिर ये प्रमेश की दीदी पहुँच गई? अभी कई दिनों से शांति थी और उनका कोई फ़ोन आदि भी नहीं आया था| दूसरे पापा, अम्मा और भाई और ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 150
150==== =============== “दीदी ! मैं मंगला नहीं हूँ | ”उसने धीरे से कहा | अब एक बार फिर से और शीला दीदी के चौंकने की बारी थी | “मतलब? खुलकर बोलो मंगला, डरो नहीं| यहाँ तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता| नाम तो तुम्हारा मंगला ही है न? ” “दीदी ! मेरा नाम मंगलप्पा है और मैं दक्षिण भारत की रहने वाली हूँ | ” “मतलब? तुम बंगाली नहीं हो? ”मैंने आश्चर्य से पूछा | “नहीं दीदी, मैं दक्षिण भारतीय हूँ और इन्होंने मुझको कई सालों से अपने यहाँ एक तरह से कैद करके रखा है| ”मंगला ने बताया| ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 151
151=== =============== संस्थान में शनिवार/रविवार की दो दिनों की छुट्टियाँ थीं इसलिए काफ़ी शांत वातावरण था | अभी तक और शीला दीदी ही केवल मंगला के बारे में जानते थे, हम रतनी से भी सब कुछ साझा किए बिना नहीं रहते थे लेकिन उसके पास आजकल फुर्सत ही नहीं थी अपने नए कॉस्टयूम से, अपने कारीगरों से, अपने नए डिज़ाइनों से| घर की व्यवस्था करके आती और समय होता तब कुछ देर कभी दो/पाँच मिनट दिखाई देती फिर चल पड़ती अपनी कार्यशाला में! इस बार रतनी को अम्मा के बिना पहली बार अपनी कला दिखाने का सुनहरा अवसर मिला ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 152
152==== =============== संस्थान से पता चला सोमवार को सितार की प्रमेश वाली कक्षाएं नहीं ली गईं थीं| संस्थान के सभी को अपनी एंट्री रजिस्टर करनी पड़ती थी अथवा छुट्टी लेने पर सूचना देनी पड़ती थी| यह सब सूचनाएं पहले अम्मा के या शीला दीदी के पास जाती थीं अब शीला दीदी और मेरे पास आतीं| उस दिन ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया| अगले दिन जब सुबह मंगला कॉफ़ी और पेपर लेकर आई भौंचक सी और घबराई हुई थी| कॉफ़ी टेबल पर रखकर उसने गुड मॉर्निंग कहा और मैं उसे जवाब देकर वॉशरूम की ओर चली| कुछ ही देर में ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 153
153=== ================ संस्थान के खुलते ही आज बेहद चहल-पहल हो गई | अखबारों में, टी.वी पर सब जगह इस घटना का सनसनीखेज खुलासा किया जा रहा था| इन स्कैंडल्स में जितने लोग पकड़े गए थे वे कोई छोटे-मोटे लोग नहीं थे, वे सब अपने आपको बड़ा दिखाने वाले कलाकार, बड़ी व्यवसायिक कंपनियों वाले और न जाने कितने और कैसे उच्च वर्ग के ‘महान’ लोग जुड़े थे | पापा-अम्मा, भाई को सब बातें पता चलनी ही थीं | पता चलते ही पापा ने मुझसे कहा कि उन्होंने क्या कहा था कि सब चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी। इन बेकार ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 154
154 ==== =============== वही तो मुश्किल था कि उत्पल नहीं था, उसके बिना उसके चैंबर में जाना यानि खुद ही खोजने लगना | दिव्य के साथ जाना जरूरी था| मैं उसके साथ गई और उसे वहाँ काम करने वाले लड़कों से मिलवा दिया| उत्पल के साथ जो काम करता था, वह पहले से ही उससे परिचित था, दूसरे से भी मुलाकात हो गई| पूरी टीम तो तभी होती थी जब उत्पल को अधिक काम होता और वह सबको बुला लेता| “कैसा सूना-सूना लगता है न दीदी उत्पल दादा के बिना---” चैंबर में घुसते ही उसने कहा| मैं तुझे क्या ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 155
155=== ============== खुशी को लपकना पड़ता है, खुशी आई और हम आँखें मूँदे बैठे रहे तो जैसे बिल्ली को चूहा आँखें मूँद लेता है, ऐसा ही कुछ हो जाता है | अवसर मिलते हैं समय-समय पर लेकिन हम उन्हें हाथ से जाने देते हैं | मैंने यही तो किया था | मन में आशा की रोशनी जैसे कहीं छिपी हुई हो और पत्तों के बीच से छनकर मेरे भीतर बिखर रही हो उस रोशनी को मैंने अँधियारे से भर दिया था, कुछ प्रयास रहता तो ! दिल की धड़कनें सप्तम पर पहुँच गईं जब मैंने देखा कि मि.कामले ने ...Read More
प्रेम गली अति साँकरी - 156 (अंतिम भाग)
156==== ================= मि.कामले और उनका बेटा नाश्ता करने के बाद मुझे दिलासा देते हुए बाहर निकल गए थे कि चिंता न करूँ, यदि कुछ बदलाव करना हो तो बिना संकोच के बता दूँ | आज कुछ फ़ाइलें चैक करनी थी, सब अपने-अपने प्रोजेक्ट्स में व्यस्त थे | अम्मा-पापा की अनुपस्थिति में सब अपना ‘बैस्ट’देना चाहते थे | अभी ड्राअर से फ़ाइलें निकालकर मेज़ पर रखी ही थीं कि फिर नॉक हुई | ”कौन?” “मैं हूँ दीदी---”दिव्य की आवाज़ थी | “आ जाओ न आंदर---” वह खाली हाथ था, मुझे लग रहा था वह वीडियोज़ लेकर आया होगा | “चलिए ...Read More