मानभंजन का अर्थ है,सम्मान के टुकड़े टुकडे़ हो जाना जो कि इस कहानी की नायिका के साथ हुआ,उसने जिससे सबसे अधिक प्रेम किया,जिस पर विश्वास किया उसी ने समाज में उसका मान गिरा दिया, नायिका ने किस प्रकार अपने अपमान का बदला लिया,वो इस कहानी में दर्शाया गया है..... समृद्धिपुर गाँव के एक मन्दिर में एक पागल के पीछे पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं,उसे चिढ़ा रहे हैं सता रहे हैं,फिर उस पागल ने परेशान होकर एक पत्थर उठाकर एक बच्चे के सिर पर मार दिया जिससे उस बच्चे के सिर पर चोंट लग गई और खून बहने लगा,उस बच्चे के सिर से खून बहता देखकर वहाँ मौजूद बच्चों ने उस बच्चे की माँ को बुलाया और उस पगले की शिकायत लगा दी,उस बच्चे की माँ उस पगले के पास गई और उसे जोर का झापड़ धरते हुए बोली.... क्यों रे! पागल बुड्ढे!अब तू बच्चों पर पत्थर भी बरसाने लगा,आज मैं तुझे नहीं छोड़ूगीं।। इतना कहकर जैसे ही उस बच्चे की माँ ने उस पर दोबारा हाथ उठाना चाहा तो पीछे से एक युवती की आवाज़ आई..... खबरदार!जो तुमने इन पर हाथ उठाया,अपने बच्चे को सम्भालकर रख,इन सभी बच्चों की गलती है,ये सारे बच्चे मिलकर इन्हें चिढ़ा रहे थे,
Full Novel
मानभंजन--भाग(१)
मानभंजन का अर्थ है,सम्मान के टुकड़े टुकडे़ हो जाना जो कि इस कहानी की नायिका के साथ हुआ,उसने जिससे अधिक प्रेम किया,जिस पर विश्वास किया उसी ने समाज में उसका मान गिरा दिया, नायिका ने किस प्रकार अपने अपमान का बदला लिया,वो इस कहानी में दर्शाया गया है..... समृद्धिपुर गाँव के एक मन्दिर में एक पागल के पीछे पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं,उसे चिढ़ा रहे हैं सता रहे हैं,फिर उस पागल ने परेशान होकर एक पत्थर उठाकर एक बच्चे के सिर पर मार दिया जिससे उस बच्चे के सिर पर चोंट लग गई और खून बहने लगा,उस बच्चे ...Read More
मानभंजन--भाग(२)
विक्रम सिंह जी के स्वर्ग सिधारने के बाद सारे जमीन जायदाद की सारी जिम्मेदारी अब रूद्रप्रयाग पर आ पड़ी,उसका दिन मुनीम जी के साथ बहीखातों की जाँच करने में ही ब्यतीत हो जाता और वो अब प्रयागी को कम समय दे पाता था,फिर भी प्रयागी बुरा ना मानती और घर-गृहस्थी के कामों में स्वयं को उलझाएं रखती,अब प्रयागी के पिता हरगोविन्द भी ना रहें थें लम्बी बिमारी के चलते उनका निधन हो चुका था,इसलिए प्रयागी के पास मायके में कोई अपना ना रह गया था, वह ही आगंतुकों का अतिथि-सत्कार करती थी,कोई भी मेहमान उसके द्वार से अप्रसन्न होकर ...Read More
मानभंजन--भाग(३)
प्रयागी की समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपने पति की बात माने या नहीं,क्योंकि उसकी अन्तरात्मा बात को मानने के लिए कतई राजी नहीं थी,वो मन ही मन सोच रही थी कि कैसे कोई पति अपनी पत्नी से परपुरूष से प्रेम का अभिनय करने को कह सकता है,उसे अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे और वो सोच रही थी कि वो अपने प्रश्नों के उत्तर किससे जाकर पूछें.... तभी एक रोज़ ऐसा हुआ जो प्रयागी ने कभी सोचा ना था,रूद्रप्रयाग ने तो मन में ठान ही लिया था प्रेमप्रताप से बदला लेने का और ...Read More
मानभंजन--भाग(४)
सुबह होने को अभी बाकीं थी,सूरज धीरे धीरें अपनी लालिमा बिखेरता हुआ पहाड़ो के गर्भ से प्रासरित हो रहा भी अपने कोटरों से निकलकर झुण्डों में सम्मिलित होकर भोजन की तलाश में निकल चुके थे,लेकिन प्रयागी अभी तक ना जागी थी,रूद्रप्रयाग जागकर अब तक स्नान भी कर चुका था,वो स्नान करके लौटा तो देखा प्रयागी अभी भी निंद्रा में मग्न है,उसने सोचा प्रयागी ऐसा तो कभी नहीं करती,इतनी देर तक वो तो कभी नहीं सोई,मुँहअँधेरे ही नदी पर स्नान करने चली जाती है,लेकिन आज क्या हो गया है इसे?चलो नहीं जागती तो मैं ही जगा देता हूँ और यही ...Read More
मानभंजन--(अन्तिम भाग)
प्रेमप्रताप का ऐसा बदला हुआ व्यवहार देखकर मोती की प्रसन्नता की सीमा ना रही,उसे अचरज हो रहा था कि भी बुरा इन्सान प्रेम की धारा में बहकर इतना स्वच्छ और निर्मल हो सकता कि वो अपने सारे दुर्गुण भूल जाएं,इसका मतलब है कि प्रेम में बड़ी ताकत होती है जो किसी भी जानवर को इंसान बना सकता है,प्रेमप्रताप का प्रयागी के प्रति स्वार्थ रहित प्रेम देखकर मोतीबाई को असीम आनंद की अनुभूति हो रही थी,उसने ये बात रूद्रप्रयाग से भी कही लेकिन रूद्र को मोती की बात पर भरोसा ना हुआ और वो उससे बोला.... मोती!तुम प्रेमप्रताप को समझने ...Read More