सेहरा में मैं और तू

(34)
  • 64.8k
  • 5
  • 31.6k

ओह! शुरू शुरू में ये अविश्वसनीय सा लगा था। बिल्कुल असंभव! नहीं, ऐसा हो ही कैसे सकता है? इसकी कल्पना करना भी कल्पनातीत है। आख़िर नियम कायदे भी तो कुछ चीज़ होती है या नहीं! ऐसा हो ही कैसे सकता है? और क्यों होगा?? शहर से तीस किलोमीटर दूर स्थित एक सुरम्य मनोरम घाटी में घुमावदार पहाड़ी रास्ते पर स्थित वो खूबसूरत छोटी सी इमारत शान से खड़ी थी। इमारत बेशक छोटी सी हो, किंतु उसके इर्द गिर्द फ़ैला मैदान कोई छोटा नहीं था। मज़बूत चारदीवारी से घिरा यह हरा भरा नज़ारा शहर के नामी गिरामी राज परिवार का देश के युवाओं को एक अनमोल तोहफ़ा ही तो था। राज परिवार ने अपनी यह मिल्कियत एक खेल अकादमी को सौंप दी थी। राजमाता के निधन के बाद जब उनके दोनों पुत्रों और एक पुत्री के बीच लंबी चौड़ी संपत्ति का बंटवारा हुआ तब एकांत में बना हुआ ये भवन और इसका लंबा चौड़ा अहाता ज़िला प्रशासन के माध्यम से उस स्पोर्ट्स अकादमी को दान में दे दिया गया जिसका गठन अपने निधन से कुछ समय पूर्व राजमाता ने निर्धन प्रतिभाशाली ग्रामीण युवकों को अंतरराष्ट्रीय खेलों के लिए तैयार करने के उद्देश्य से एक हॉस्टल बनाने के लिए दे दिया था। इस खेल विद्यालय का विधिवत गठन हो चुका था। इसमें पांच वर्ष के लिए बीस लड़कों का चयन आदिवासी, भील, वनवासी, खानाबदोश और घुमंतू जनसंख्या के लोगों के बीच से किया गया था। यह पूरी तरह निशुल्क था और इसके संचालन का सारा खर्चा राजपरिवार की ओर से सुरक्षित रखे गए एक फंड से किया जाना था।

Full Novel

1

सेहरा में मैं और तू - 1

ओह! शुरू शुरू में ये अविश्वसनीय सा लगा था।बिल्कुल असंभव! नहीं, ऐसा हो ही कैसे सकता है? इसकी कल्पना भी कल्पनातीत है।आख़िर नियम कायदे भी तो कुछ चीज़ होती है या नहीं! ऐसा हो ही कैसे सकता है? और क्यों होगा??शहर से तीस किलोमीटर दूर स्थित एक सुरम्य मनोरम घाटी में घुमावदार पहाड़ी रास्ते पर स्थित वो खूबसूरत छोटी सी इमारत शान से खड़ी थी। इमारत बेशक छोटी सी हो, किंतु उसके इर्द गिर्द फ़ैला मैदान कोई छोटा नहीं था। मज़बूत चारदीवारी से घिरा यह हरा भरा नज़ारा शहर के नामी गिरामी राज परिवार का देश के युवाओं को ...Read More

2

सेहरा में मैं और तू - 2

ये उन दिनों की बात थी जब राजमाता जीवित थीं। इतना ही नहीं, बल्कि तब तक महाराज साहब ने इस दुनिया से कूच नहीं किया था और राजमाता तब महारानी कहलाती थीं। क्या शान थी, क्या दिन थे।उन्हीं दिनों कोलंबिया के एक क्लब ने एक इंटरनेशनल स्पर्धा का आयोजन किया। उसमें भाग लेने के लिए महारानी ने अपने छोटे बेटे को भेजने की व्यवस्था कर दी। खेल आयोजन निजी तौर पर था इसलिए कहीं से चयन आदि की कोई सरकारी औपचारिकता पूरी करने की ज़रूरत नहीं थी फ़िर भी महारानी ने केवल अपने पति की जानकारी में लाकर बेटे ...Read More

3

सेहरा में मैं और तू - 3

पुरानी बातों का कोई भी अस्तित्व चिन्ह अब यहां नहीं था। अब न राजमाता जीवित थीं और न ही उस छोटे सुपुत्र के बारे में कोई ये जानता था कि वो अपनी वृद्धावस्था कहां और किस अवस्था में रह कर गुजार रहा है।अब तो एक से बढ़ कर एक इन उत्साही खिलाड़ी नौजवानों का दिन हर रोज़ सूरज के साथ ही यहां उगता था और दिन भर उमंगों से लबरेज़ रहता था। ये सभी युवक यहां निशाने बाज़ी का प्रशिक्षण ले रहे थे। इन्हें देश विदेश की छोटी बड़ी स्पर्धाओं के लिए तैयार किया जाता था। एक अलग ही ...Read More

4

सेहरा में मैं और तू - 4

( 4 )हल्की - हल्की धूप सिर पर चढ़ आई थी। मैस वाला लड़का बार बार पहाड़ी की तरफ़ फिर सेब के रस के बर्तन को देखता। वह अब इंतजार करते करते ऊब सा गया था। उसने बचे हुए सेब के रस को एक जग में डाल कर ढक दिया था और वहां से समान समेटने की तैयारी में था।सुबह के अभ्यास के बाद रसोई में काम करने वाले ये दोनों लड़के मैदान के इस कोने में चले आते थे। यहां रोज़ कोई न कोई जूस सभी शिविरार्थियों को दिया जाता था। मेहनत से थके हुए जवान लड़के गिलास ...Read More

5

सेहरा में मैं और तू - 5

आज अकादमी में बहुत खुशी का माहौल था। जिसे देखो वही एक दूसरे से हंस - हंस कर उत्साह बात कर रहा था। ऐसा लगता था जैसे कोई बड़ा त्यौहार आने वाला हो।मैस में काम करने वाले लड़के ये तो नहीं जानते थे कि ऐसा क्या हुआ है जो सब इतने खुश हैं, पर सबको खुश देख कर उनमें भी एक अनजाना सा जोश भर गया था। वो दोनों भी दौड़ भाग करके अपने काम खुशी से निपटा रहे थे।लो, खुलासा भी हुआ। आख़िर सबको पता चला कि सारे में ऐसे उमंग भरे माहौल का कारण क्या है?लड़कों की ...Read More

6

सेहरा में मैं और तू - 6

ऐसा लगता था जैसे वहां परिसर में रहने वाले सभी लोग इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। रसोई काम करते हुए लड़के भी सलाद के लिए खीरा और टमाटर काटते हुए चाकू से ऐसा निशाना साधने की कोशिश करते थे मानो उन्हें भी बेहतर चाकू चलाने के पॉइंट्स मिलने वाले हैं।उधर सुबह मैदान में हर लड़का जैसे धनुर्धर अर्जुन ही बन जाता था। दिखाई देती थी तो केवल मछली की आंख। और कुछ नहीं। सबका ध्यान केवल निशाना साधने में सिमट गया था।लेकिन आज दोपहर को एक मज़ेदार घटना घटी। मैस वाला लड़का बड़े साहब को उनके कमरे ...Read More

7

सेहरा में मैं और तू - 7

आज आते - जाते हर एक की नज़र मेन गेट पर ही थी। कुछ मेहमान वहां आए थे जिन्हें के चौकीदार ने बाहर ही रोक रखा था।मैदान में दौड़ते हुए लड़के हर चक्कर में एक निगाह उधर ज़रूर डाल लेते थे मगर तभी प्रशिक्षक की एक ज़ोरदार झिड़की सुनाई पड़ती और सब उधर से ध्यान हटा कर दौड़ने लग जाते।मेहमानों को गेट पर रोक रखने का मुख्य कारण यह था कि मेहमानों में दो महिलाएं भी थीं। बल्कि एक तो कम उम्र की लड़की ही थी पर उसने ग्रामीण ढंग की पोशाक इस तरह पहन रखी थी कि वो ...Read More

8

सेहरा में मैं और तू - 8

छी छी छी...इतना तंदुरुस्त पौने छः फिट का जवान मर्द और इस तरह रोना?? वो भी प्रशिक्षक होकर।रात को तरह छिप- छिपा कर चमड़ी के रोग के कारण अकेला अपने कमरे में रह रहा वह ट्रेनी लड़का जब छोटे साहब के कमरे में पहुंचा तो उसे साहब को इस तरह रोते देख कर भारी हैरानी हुई।आज उसमें गज़ब की हिम्मत आ गई। आज उसे इस बात का डर भी नहीं लगा कि अगर अभी दूसरे ट्रेनर साहब राउंड पर आ गए तो इतनी रात को उसे यहां देख कर क्या सोचेंगे? हो सकता है कि उसे ट्रेनिंग से ही ...Read More

9

सेहरा में मैं और तू - 9

दिन कोई आराम थोड़े ही करते हैं। जल्दी में तो रहते ही हैं। जल्दी से बीत गए।वो दिन भी गया जब अकादमी के लड़कों को यहां से कुछ दूरी पर स्थित महानगर में चयन के लिए जाना था। कड़े अभ्यास और सलेक्शन के बाद आठ लड़कों को इस चयन की पात्रता मिली थी। दोनों प्रशिक्षक भी उनके साथ जा रहे थे। और उनके खाने पीने और दूसरी व्यवस्थाओं के लिए दो सहायक भी।चमचमाती हुई लग्जरी बस गेट पर लगी थी और ऐसी ही चहल - पहल थी जैसे किसी घर के दरवाज़े से बारात जाने के वक्त होती है। ...Read More

10

सेहरा में मैं और तू - 10

अब माहौल थोड़ा बदल गया था। दोनों लड़के कबीर और रोहन अब जैसे हीरो बन गए थे।छोटे साहब कुछ और बुझे बुझे से रहने लगे थे। अब उनका कबीर से अकेले में मिलना उतना नहीं हो पाता था क्योंकि वह और लड़कों से घिरा हुआ रहने लगा था।उड़ती उड़ती ख़बर ये भी आई थी कि तीनों ही प्रशिक्षक भी अपनी ओर से इस बात के लिए ज़ोर लगा रहे थे कि खिलाड़ियों के साथ कोच के रूप में जाने के लिए उन्हें चांस मिले। इतना तो तय था कि दोनों खिलाड़ी इस अकादमी से चुने जाने के कारण उनके ...Read More

11

सेहरा में मैं और तू - 11

( 11 )वो खबर भी अकादमी में ऐसे आई जैसे कोई कटी पतंग आसमान से आकर वहां मैदान में हो। हर लड़का इस पतंग को चाव से देखता हुआ लूटने के लिए लपका पर जैसे कटी पतंग दौड़ते हुए लड़कों में से किसी एक के ही हाथ लगती है वैसे ही ख़बर का ये लिफाफा भी उन्हीं को मिला जिनका नाम उस पर लिखा था।सारे में हलचल सी मच गई। कबीर और रोहन के पासपोर्ट तैयार होकर आ गए थे। वीज़ा की कार्यवाही भी शुरू हो रही थी।वे ने जु ए ला... वे ...नेरोहन और कबीर से तो ये ...Read More

12

सेहरा में मैं और तू - 12

( 12 )सिर से हेलमेट उतरते ही लड़कों ने अपने प्रशिक्षक छोटे साहब को पहचान लिया जो कुछ दिन एकाएक किसी को बताए बिना यहां से चले गए थे। लड़कों ने उन्हें घेर लिया और एक के बाद एक सवालों की झड़ी लगा दी।सबको ये जान कर घना अचंभा हुआ कि वो सब लोग उनके बारे में जो कुछ सोच रहे थे वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। न तो वो बीमार ही थे और न उनके किसी रिश्तेदार ने पुलिस में उनकी कोई शिकायत की थी। ये सब तो कोरी अफवाहें थीं जो न जाने कैसे यहां फैल ...Read More

13

सेहरा में मैं और तू - 13

( 13 )वैसे तो कबीर और रोहन दोनों की कड़ी मेहनत के अभ्यस्त थे मगर यहां आकर उनका प्रशिक्षण भी सख्त हो गया था। स्टेडियम के आसपास बड़े शहर की रौनकें बिखरी पड़ी थीं जिन्हें देख कर शुरू शुरू में तो उन दोनों का जी खूब ललचाता। ज़रा सा समय मिले तो ये करें, वो देखें, यहां जाएं, वो लाएं...पर वहां का रूटीन ही इतना कड़ा था कि सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक किसी और बात के लिए समय ही नहीं मिलता था। रात तक इतनी थकान में चूर होते कि बिस्तर पर गिरते ही सोने ...Read More

14

सेहरा में मैं और तू - 14

एयरपोर्ट पर पहुंचते ही जब एक बड़े से कांच में कबीर ने अपना चेहरा देखा तो उसे कुछ अजीब लगा था। सुबह अकादमी परिसर से निकलते समय लड़कों ने जो शानदार विदाई दी थी उसके चिन्ह चेहरे पर अब भी दिखाई दे रहे थे। फूलों की माला तो रास्ते में ही गले से उतार कर उन तीनों ने ही रास्ते में एक ठेले पर फल बेचने वाले लड़के को दे दी थी पर माथे पर बड़ा सा तिलक कबीर के माथे पर अब भी लगा हुआ था। बल्कि हाथ लगने से कुछ और फैल कर पूरे माथे पर छिटक ...Read More

15

सेहरा में मैं और तू - 15

(15 )यात्रा लंबी थी। उन्हें रास्ते में एक बार जहाज बदलना भी पड़ा। रास्ते में खाने या नाश्ते के उन्हें जो कुछ भी परोसा गया था वो उन वस्तुओं का नाम तो नहीं जानते थे पर इतना उन्हें समझ में आ गया था कि उन्हें दिया गया सारा नाश्ता और खाना बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक था। उन्होंने बहुत चाव से उसे खाया।तरह तरह के पेय और फलों के रस भी उन्होंने पहली बार चखे।कबीर को केवल एक असुविधा ज़रूर हुई कि वो जहाज के भीतर बने वाशरूम में सहज महसूस नहीं करता था। एक अनजाना सा भय उसे लगता ...Read More

16

सेहरा में मैं और तू - 16

दुनिया भर से आए लोगों का ये जमावड़ा देख कर अगली सुबह सबकी तबीयत खिल गई।अलग अलग परिधान, अलग भाषाएं...फिर भी एक राह के राही होने का अहसास!लेकिन यहां आकर कबीर छोटे साहब को और भी मिस कर रहा था। वह वहीं थे, चाहे जब दिखाई भी दे जाते थे पर फिर भी न जाने क्यों कबीर को मन ही मन ऐसा लगता था कि एक बार उसे छोटे साहब से कहीं अकेले में मिलने का मौक़ा मिल जाए। उसके शरीर का पोर पोर जैसे उससे कहता था कि एक बार उनके शरीर को छूना ज़रूरी है। कबीर का ...Read More

17

सेहरा में मैं और तू - 17

( 17 )रोहन चला गया। कबीर कुछ मुस्कुराते हुए उसे जाता हुआ देखता रहा।कबीर ने लैंप ऑफ़ किया और फ़ैला कर बिस्तर पर पसर गया। उसे कुछ अजीब सी थकान थी, जल्दी ही नींद आ गई।आधी रात का वक्त हो चला था और आसपास से आती हुई आवाज़ें भी मंद पड़ चुकी थीं। सारा आलम जैसे नींद के आगोश में आने लगा हो।कबीर गहरी नींद में था।तभी उसने अपनी पीठ पर बंदर की तरह उछल कर कूदते हुए किसी को महसूस किया। शायद रोहन लौट आया था।ओह! उसे ये बात ज़रा भी पसंद नहीं थी। ये रोहन भी यहां ...Read More

18

सेहरा में मैं और तू - 18

( 18 )भिनसारे ही जो सूरज निकला, वो और दुनिया के लिए चाहे जैसा भी हो, कबीर के लिए ठंडी आतिश और दहकती बर्फ़ सरीखा था। ज़िंदगी की डोर जैसे फिर हाथों में आ गई थी। ज़िंदगी लौट आई थी बदन में।बराबर में रोहन बेसुध होकर सोया पड़ा था।कबीर को सोते हुए रोहन पर एक वात्सल्य भरा प्यार उमड़ आया।इसे देखो, कैसा ड्रामा किंग निकला। न जाने क्या- क्या बातें बना कर रात भर कमरे से गायब रहा और न जाने कैसे छोटे साहब को कबीर के कमरे में भेज दिया।यार ऐसे ही होते हैं जो यारियों के मकसद ...Read More

19

सेहरा में मैं और तू - 19

( 19 )करिश्मा हो गया।कोई सोच भी नहीं सकता था वो हो गया। पहली ही बार वेनेजुएला अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी में भाग ले रहे भारतीय खिलाड़ी कबीर वनवासी ने स्वर्ण पदक के साथ ये प्रतियोगिता जीत ली। उन्होंने अंतिम राउंड में केवल एक प्वॉइंट खोया। यह किसी नए प्रतिभागी के लिए चमत्कार से कम नहीं रहा।स्पर्धा के शेष दोनों पदक वेनेजुएला की स्थानीय टीमों ने ही जीते।रोहन बंजारा को पहले दस निशानेबाजों में तो जगह मिली पर वो अंतिम आठ में स्थान नहीं बना पाए। ये पहला मौका था कि ये प्रतियोगिता एशियाई देश के किसी खिलाड़ी ने जीती। टीम ...Read More

20

सेहरा में मैं और तू - 20

( 20 )एकांत में बने उस शानदार बंगले में प्रवेश करते ही श्रीकांत, कबीर और रोहन की तबीयत जैसे बाग हो गई। इस सज्जित आवास में केवल कुछ गिने- चुने कर्मचारी ही दिखाई दे रहे थे।इसका चौरानवे वर्षीय मालिक पीछे की ओर बने अपने कक्ष में था। बाहर लॉन के इर्द- गिर्द कुछ बेहद खूबसूरत पंछियों और अद्भुत दुर्लभ प्रजातियों के जानवर अपने एक से एक आकर्षक पिंजरों में बंद थे। कुछ एक छोटे जीव हरे भरे बगीचे में भी टहल रहे थे।किसी रोबोट की तरह कर्मचारियों का इधर- उधर आना जाना था। एक नीरव सन्नाटा चारों ओर पसरा ...Read More

21

सेहरा में मैं और तू - 21 (अंतिम भाग)

दो दिन की तूफानी यात्रा के बाद जब तीन सदस्यों का ये काफ़िला वापस अपने ठिकाने पहुंचा तो बेहद से इनका स्वागत हुआ। कुछ लड़के तो एयरपोर्ट पर लेने भी आए थे।बैंड- बाजे के साथ अपने परिसर में पहुंचे तीनों।कबीर ये नहीं समझ पा रहा था कि उसके मन में खुशी की ये जो उद्दाम लहर किलोल कर रही है इसका कारण क्या है? क्या सचमुच वो जीत, जिसने उसे देश से बाहर ले जाकर सोना दिलाया? या कुछ और!छोटे साहब श्रीकांत के मन में भारी असमंजस था। ये सही है कि कबीर अब उनके लिए उनकी ज़िंदगी बन ...Read More