अनूठी पहल

(22)
  • 75.4k
  • 2
  • 35.9k

शनिवार का दिन था। कॉलेज की छुट्टी थी। सुबह के दस ही बजे थे, लेकिन सूर्य-नारायण अपने पूर्ण यौवन की ऊर्जा उत्सर्जित कर रहे थे। पृथ्वी-लोक के प्राणियों का गर्मी ने हाल बेहाल कर रखा था। जिनके पास आधुनिक विज्ञान द्वारा आविष्कृत साधन थे, वे उनका भरपूर उपयोग करते हुए गर्मी को धत्ता बता रहे थे। प्रवीण को भी पारिवारिक समृद्धि के कारण ये सुविधाएँ उपलब्ध थीं और वह चौबारे में बैठा ए.सी. चलाकर आराम से पढ़ाई कर रहा था कि कृष्णा ने आकर कहा - ‘बेटे, एक बार तुझे दुकान तक जाना होगा। तेरे पापा का शिकंजी के लिए फ़ोन आया था, उन्हें दे आ।’ पढ़ाई के बीच विघ्न अच्छा तो उसे नहीं लगा, लेकिन वह उन बच्चों जैसा नहीं था जो मम्मी-पापा की बात मानने में आनाकानी करते हैं। अतः अन्यमनस्क-सा वह उठा, ए.सी. बन्द किया और मम्मी के पीछे-पीछे नीचे उतर आया।

Full Novel

1

अनूठी पहल - 1

(देहदान के प्रति जागरूकता लाने का एक प्रयास) लाजपत राय गर्ग समर्पण हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘महाकवि सूरदास आजीवन साधना सम्मान’ से विभूषित, रक्तदान अभियान के अग्रदूत, अग्रज भ्राता, डॉ. मधुकांत जी को अपना पाँचवाँ उपन्यास समर्पित करते हुए मुझे अतीव प्रसन्नता हो रही है। ******** जय माँ शारदे! आत्मकथ्य प्रात: वन्दनीय माँ शारदे के आशीर्वाद एवं ‘महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान’ से अलंकृत अग्रज भ्राता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मधुकांत जी की प्रेरणा से यह उपन्यास ‘अनूठी पहल’ लिख पाया हूँ। डॉ. मधुकांत जी ने रक्तदान को अपने जीवन का मिशन बनाया हुआ है। इन्होंने व्यवहारिक जीवन में ...Read More

2

अनूठी पहल - 2

- 2 - गाँव का घर बड़ा तो था, किन्तु आधा कच्चा, आधा पक्का था। लेकिन यहाँ का घर पक्का था। ड्योढ़ी, रसोई के अलावा तीन कमरे थे। बीच में खुला आँगन। गाँव में आँगन कमरों के सामने था। चाहे दो-ढाई फुट की कच्ची चारदीवारी थी, फिर भी गर्मी के दिनों में रात के समय किसी कुत्ते-बिल्ली अथवा अराजक तत्त्वों का डर बराबर बना रहता था, विशेषकर प्रभुदास के पिता के कत्ल के बाद से। लेकिन दौलतपुर आकर इस तरह की दुश्चिंताओं से निजात मिल गई। चाहे आँगन में सोवो, चाहे खुली छत पर। किसी तरह के ख़तरे की ...Read More

3

अनूठी पहल - 3

- 3 - शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि सात पग एक साथ चलने से बन्धुत्व हो जाता है। प्रभुदास के घर पर बिताने के बाद प्रथम सूर्योदय के साथ दोनों मित्रों ने रात को बनाई योजना पर आगे विचार करना आरम्भ किया। रामरतन ने कहा - ‘भाई, हमारी फ़र्म का नाम होगा - मैसर्ज प्रभुदास रामरतन, कमीशन एजेंट्स।’ ‘नहीं भाई, नाम होगा - मैसर्ज रामरतन प्रभुदास, कमीशन एजेंट्स। आप बड़े हैं, अधिक अनुभवी हैं। फ़र्म के नाम में आपका नाम पहले होना चाहिए।’ ‘मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ, परन्तु भाई! ऐसे कामों में भावुकता की बजाय ...Read More

4

अनूठी पहल - 4

- 4 - आढ़त का काम करने के लिए जो दुकान किराए पर ली गई थी, उसके ऊपर दो बने हुए थे। काम शुरू करने के उपरान्त रामरतन ने अपना बोरिया-बिस्तर उन्हीं कमरों में जमा लिया था। जब वह धर्मशाला में रहता था तो वहाँ एक पन्द्रह-सोलह साल की युवती रहती थी जोकि मुलतान से उजड़कर आई थी। उसका भी कोई संगी-साथी नहीं था। साझी रसोई में सहायता करने के अलावा बाक़ी समय में वह गुमसुम रहती थी, किसी से अधिक बातचीत नहीं करती थी। रामरतन ने एक बार किसी को कहते सुना था कि दंगाई उसके साथ दुष्कर्म ...Read More

5

अनूठी पहल - 5

- 5 - विवाह के उपरान्त रामरतन और जमना जीवन की दुखद स्मृतियों को विस्मृत कर सुखद, प्रेममय जीवन करने लगे। कुछ समय पहले तक भरे-पूरे परिवारों में रहने वाले इन दो प्राणियों को कभी-कभी बहुत अकेलापन महसूस होता। रामरतन तो फिर भी सारा दिन दुकान पर व्यस्त रहता और उसे अकेलेपन की टीस कम सालती, किन्तु रामरतन के दुकान पर जाने के बाद जमना के लिए समय व्यतीत करना बड़ा मुश्किल हो जाता। चाहे वह स्वयं को किसी-न-किसी काम में उलझाए रखती, फिर भी उसका मन कभी-कभार उचाट हो जाता। ऐसे में वह नीचे रामरतन के पास आ ...Read More

6

अनूठी पहल - 6

- 6 - प्रभुदास के घर दो बेटों के बाद जब बेटी का जन्म हुआ तो उसके नामकरण वाले खूब गहमागहमी रही। पंडित जी ने पत्रा देखकर कहा कि बिटिया का नाम ‘व’ अक्षर पर रखना उचित होगा। ‘व’ पर विचार करते हुए चन्द्रप्रकाश ने विभा नाम का सुझाव दिया तो प्रभुदास ने कहा, इसे हम विद्या बुलाया करेंगे। नाम अच्छा था। सभी ने स्वीकार कर लिया। मेहमानों के विदा होने के पश्चात् दमयंती का बेटा मामा के बेटों के संग खेल-कूद में मस्त था। सुशीला नवजात शिशु के साथ आराम कर रही थी और प्रभुदास, चन्द्रप्रकाश, दमयंती और ...Read More

7

अनूठी पहल - 7

- 7 - डी.ए.वी. संस्था की स्वीकृति के पश्चात् कॉलेज निर्माण कमेटी का गठन हुआ, जिसका प्रधान प्रभुदास को गया। इस प्रकार प्रभुदास की चर्चा दौलतपुर की सीमाएँ लाँघकर ज़िले भर में होने लगी। कमेटी के सभी सदस्यों ने बहुत परिश्रम किया। बहुत शीघ्र ही काफ़ी चन्दा इकट्ठा हो गया तो ‘सरस्वती पूजन दिवस’ पर कॉलेज का ‘भूमि-पूजन तथा शिलान्यास’ किया गया, जिसमें डी.ए.वी. संस्था के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों के अतिरिक्त ज़िला शिक्षा अधिकारी व कई कॉलेजों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हुए। सर्वसम्मति से कॉलेज का नाम रखा गया - ‘पार्वती देवी डी.ए.वी. कन्या महाविद्यालय।’ अन्ततः कॉलेज ...Read More

8

अनूठी पहल - 8

- 8 - दमयंती प्रभुदास को कई बार कह चुकी थी कि वह उसके ससुराल आए, किन्तु दुकान पर होने की वजह से वह जा ही नहीं पाता था। इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर चन्द्रप्रकाश घर पर था, इसलिए उसने दुकान की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी और एक रात के लिए दमयंती को मिलने चला गया। प्रभुदास बहन के ससुराल वालों के लिए बहुत-से उपहार लेकर गया। बहन और उसके ससुराल वालों ने उसका खूब स्वागत किया। दमयंती के सास-ससुर ने उसे ज़िला प्रशासन द्वारा सम्मानित किए जाने पर बधाई दी। दूसरे दिन सुबह उसका बहनोई विजय उसे सैर ...Read More

9

अनूठी पहल - 9

- 9 - प्रभुदास ने जिस सेठ से मकान ख़रीदा था, मकान के पीछे बाज़ार की ओर खुलता उसी का अहाता था, जो उसने जैन समाज को स्थानक बनाने के लिए दान कर दिया था। इस अहाते में दोमंज़िला स्थानक का निर्माण होने के बाद से चौमासे में जैन साधुओं का ठहरना तथा प्रवचन करना आरम्भ हो गया था। चौमासे के अलावा भी जैन साधु-साध्वियों का आवागमन लगा रहता था। एक रविवार को पार्वती ने प्रवचन सुनकर आने के पश्चात् प्रभुदास को कहा - ‘प्रभु बेटे, स्थानक में एक पहुँचे हुए जैन मुनि आए हुए हैं। वे ‘चौमासा’ यहीं ...Read More

10

अनूठी पहल - 10

- 10 - जब से पवन दुकान का कामकाज सँभालने लगा था, प्रभुदास का अधिक समय जन-कल्याण के कार्यों लगने लगा। स्थानीय पंचायत के चुनाव नज़दीक आने लगे तो मंडी के प्रबुद्ध नागरिकों ने प्रभुदास को चुनाव में नामांकन भरने के लिए प्रार्थना की। जब यह बात पार्वती के कानों में पड़ी तो उसने प्रभुदास से पूछा - ‘प्रभु, क्या तू पंचायत के चुनाव लड़ने की सोच रहा है?’ ‘माँ, मेरा तो मन नहीं था, किन्तु मंडी के लोग दबाव डाल रहे हैं कि मैं चुनाव में खड़ा होऊँ।’ ‘बेटे, वैसे तो तेरी मर्ज़ी है, लेकिन चुनावों में एक ...Read More

11

अनूठी पहल - 11

- 11 - पवन ने दुकान का काम बख़ूबी सँभाल लिया था। हर कम्पनी चाहती कि एजेंसी मैसर्ज प्रभुदास सन्स को ही दी जाए। इस प्रकार कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ने लगा। पवन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे। पार्वती भी पवन के विवाह के लिए उत्सुक थी। एक दिन रात को खाना खाने के बाद प्रभुदास जब उसके पास बैठा उसकी टाँगें दबा रहा था तो उसने कहा - ‘प्रभु बेटे, पवन की विवाह की उम्र हो गई है। उसने दुकान का काम भी पूरी तरह सँभाल लिया है। अब उसका विवाह कर देना चाहिए। दूसरे, मेरी ...Read More

12

अनूठी पहल - 12

- 12 - जमना की अनाथ बच्चा गोद लेने की बात से सहमत होते हुए भी रामरतन ने इस में कोई प्रयास नहीं किया था। विवाह की पहली वर्षगाँठ पर जब जमना ने बच्चा गोद लेने की बात पुनः चलाई तो रामरतन ने कहा था - ‘जमना, मैं तेरी भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता, लेकिन सोच, यदि गोद लिया बच्चा संस्कारवान ना निकला तो क्या होगा? ….. मैंने सोचा है कि एक तो अपनी वर्षगाँठ पर गोशाला में एक फलदार वृक्ष लगाया करेंगे, दूसरे, रोज़ सुबह गोशाला में जाकर थोड़ी-बहुत देर गौओं की सेवा किया करेंगे। चन्द्र भइया ...Read More

13

अनूठी पहल - 13

- 13 - प्रतिदिन की भाँति प्रभुदास काउंटर के पीछे गद्दी पर बैठा ग्राहकों को निपटा रहा था कि ने मैं. प्रभुदास एण्ड सन्स के नाम से आई डाक काउंटर पर रखी। कम्पनियों की डाक के साथ एक अन्तर्देशीय पत्र भी था। पहले उसने वही पत्र उठाया। पत्र भेजने वाली उसकी बहन दमयंती थी। पत्र पढ़कर उसे झटका तो लगा, लेकिन इस पर फ़ुर्सत में विचार करने के लिए पत्र बन्द करके उसने जेब में रख लिया और बाक़ी डाक पर सरसरी नज़र डालकर फिर से ग्राहकों की ओर रुख़ किया। दोपहर के खाने के समय उसने दमयंती के ...Read More

14

अनूठी पहल - 14

- 14 - पवन के विवाह की बात पार्वती ने आरम्भ की, प्रभुदास और सुशीला ने मन बनाया तो काम को सिरे चढ़ने में देर कहाँ लगनी थी? प्रभुदास से फ़ोन पर बात होने के तुरन्त बाद प्रमिला ने अपनी ननद किरण से बात की। किरण ने कहा - ‘भाभी, आप अपनी बहन के बेटे के लिए कृष्णा का हाथ माँग रही हैं, इससे बड़ी ख़ुशी हमारे लिए और क्या होगी? रात को जब ये घर आएँगे तो मैं बात करके आपको सूचित करती हूँ।’ किरण को अपनी भाभी के परिवार की पूरी जानकारी थी। उसे प्रभुदास के कारोबार ...Read More

15

अनूठी पहल - 15

- 15 - दीपक को जब ज़मीन की देखभाल के लिए भेजने का अंतिम निर्णय लिया गया तो दीपक प्रभुदास को कहा - ‘पापा, अब जबकि आपने मुझे ज़मीन की देखभाल करने के लिए घर से दूर भेजने का निर्णय ले लिया है तो एक बात मैं आपके सामने स्पष्ट रूप से कह देना चाहता हूँ और वह बात यह है कि मैं वहाँ खेती ही करूँगा, खेती करते हुए कोई अन्य काम-धंधा नहीं करूँगा।’ ‘बेटे, यह तू क्या कह रहा है? खेती करने के लिए तो सीरी और मज़दूर ही काफ़ी होंगे, तेरे लिए किसी इज़्ज़तदार काम शुरू ...Read More

16

अनूठी पहल - 16

- 16 - दीपक जब घर आया तो सभी को बड़ी ख़ुशी हुई। सुशीला और कृष्णा ने कई तरह पकवान तैयार कर रखे थे। प्रभुदास ने सरकार द्वारा प्रदत्त सम्मान पत्र देखकर कहा - ‘दीपक बेटे, इतनी छोटी उम्र में तेरी यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस पत्र को फ़्रेम करवा लेना।’ ‘जी पापा, मैं कल ही फ़्रेम करवा लूँगा।’ कृष्णा ने भी उसे बधाई दी, किन्तु दीपक को उसके चेहरे पर ख़ुशी की कोई झलक दिखाई नहीं दी। उसने पूछा - ‘भाभी, क्या बात है, आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या?’ ‘नहीं दीपक, ऐसी तो कोई बात नहीं।’ ...Read More

17

अनूठी पहल - 17

- 17 - दीपक के विवाह के बाद पार्वती ढीली रहने लगी। एक दिन दुकान पर जाने से पहले पार्वती के पास गया। वह बिस्तर पर लेटी हुई थी। प्रभुदास ने पूछा - ‘माँ, कई दिनों से तेरी तबियत ठीक नहीं। आज तुझे डॉ. प्रतीक को दिखा लेते हैं।’ ‘प्रभु, अब तो मैं जितने दिन ज़िन्दा हूँ, मुझे डॉक्टरों के चक्करों में ना डाले तो अच्छा होगा।’ ‘माँ, डॉ. प्रतीक तो घर के आदमी जैसा है। वह चक्करों में नहीं डालता।’ ‘फिर जैसी तेरी मर्ज़ी।’ ‘माँ, घंटा-एक दुकान पर हो आऊँ, फिर डॉक्टर के पास चलेंगे।’ डॉ. प्रतीक ने ...Read More

18

अनूठी पहल - 18

- 18 - पार्वती का मृत-शरीर अस्पताल पहुँचाने के दूसरे दिन से घर में गरुड़ पुराण की कथा का हुआ। रस्म-भोग के दिन प्रातः घर में हवन हुआ। तत्पश्चात् ग्यारह ब्राह्मणों को ब्रह्म-भोज करवाकर दक्षिणा आदि देकर विदा करने के उपरान्त घर वाले तथा बाहर से आए हुए रिश्तेदार शोक-सभा स्थल पर पहुँचे। शोक-सभा में ज़िले की बहुत-सी सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधि पधारे या उनके शोक प्रस्ताव प्राप्त हुए। श्रद्धांजलि देने वालों से सभागार खचाखच भरा हुआ था। नियत समय पर मंच पर पुजारी जी ने गरुड़ पुराण का आख़िरी वाचन करने के बाद दिवंगत आत्मा ...Read More

19

अनूठी पहल - 19

- 19 - बी.ए. (अंतिम वर्ष) का परिणाम पार्वती के तेरहवाँ से एक दिन पहले आने के कारण विद्या यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर भी घर में कोई बहुत ख़ुशी न मनाई जा सकी थी। तेरहवाँ होने के अगले दिन कॉलेज वालों ने विद्या के सम्मान में मण्डी भर में जलूस निकाला। खुली जीप में प्रिंसिपल और प्रभुदास को बिठाया गया और विद्या उनके पीछे खड़ी हुई। जीप के आगे बैंड था और पीछे कॉलेज की अन्य प्राध्यापिकाएँ तथा छात्राएँ थीं। छात्राओं के हाथों में ‘प्लैकार्डस’ थे, जिनपर लिखा था - ‘विद्या, हमारे कॉलेज की शान’, ‘विद्या, ...Read More

20

अनूठी पहल - 20

- 20 - विद्या की एम.ए. (प्रथम वर्ष) की परीक्षा आरम्भ होने वाली थी कि हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन एच.सी.एस. एण्ड अलाइड सर्विसेज़ के लिए विज्ञापन निकाला। विज्ञापन में परीक्षा जून-जुलाई में होने की सम्भावना दर्शायी गई थी। विद्या ने सोचा, एम.ए. (प्रथम वर्ष) की परीक्षा तो दस मई को समाप्त हो जाएगी, उसके बाद भी तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। यही सोचकर उसने फ़ॉर्म भर दिया। एम.ए. की परीक्षा देकर आने के बाद उसने अपने आपको अपने स्टडी-कम-बेडरूम तक सीमित कर लिया। जून के अंतिम सप्ताह में एच.सी.एस. की परीक्षा के लिए उसे चण्डीगढ़ जाना ...Read More

21

अनूठी पहल - 21

- 21 - विद्या और प्रफुल्ल हनीमून के लिए नैनीताल गए। पहाड़ों से घिरी घाटी में शहर के बीचोंबीच के आकार की प्राकृतिक झील है, जिसका सौन्दर्य देखते ही बनता है। इस झील को ‘नैनी झील’ कहते हैं। इसी झील के नाम पर शहर का नाम नैनीताल पड़ा है। पहले दिन विद्या और प्रफुल्ल जब नैनीताल पहुँचे तो अँधेरा घिर आया था और सारा शहर जगमगा रहा था। होटलों तथा सार्वजनिक लाइटों की झील के पानी पर पड़ती प्रतिछाया अद्भुत नज़ारे का सृजन कर रही थी। विद्या जिसने अपने जीवन में चण्डीगढ़ की सुखना झील के अलावा और कोई ...Read More

22

अनूठी पहल - 22

- 22 - विवाह के बाद प्रीति दीपक के साथ खेत में बने घर में रहने लगी। दीपक और सारा दिन परिश्रम करते, लेकिन एक-दूसरे के सान्निध्य में थकावट का बिल्कुल भी अहसास न होता। दीपक को ‘आदर्श किसान सम्मान’ मिलने के बाद से उसे मण्डी की स्थानीय संस्थाएँ सार्वजनिक समारोहों में आमन्त्रित करने लगी थीं। अब वह जब भी ऐसे समारोहों में जाता तो प्रीति को भी अपने साथ ले जाता। अपने सद्व्यवहार तथा खुले विचारों के कारण मण्डी में प्रीति की अपनी पहचान बनने लगी। दीपक का खेत नगर परिषद की सीमा में आता था। नगर परिषद ...Read More

23

अनूठी पहल - 23

- 23 - प्रवीण पाँच-छह साल का था। एक साल से स्कूल जाने लगा था। स्कूल में बच्चों के मिलते-जुलते तथा अध्यापिका के पढ़ाने के ढंग ने उसकी जिज्ञासा को बहुत तीव्र कर दिया था। रात को जब प्रभुदास बिस्तर पर पहुँचता तो प्रवीण आ धमकता और दिन में सीखी हुई नई-नई बातें अपने दादा को बताता और मन में उठे सवाल भी पूछता। एक दिन शाम को प्रवीण भी प्रभुदास के साथ दुकान पर बैठा था कि ‘बाबा बर्फ़ानी सेवा मंडल’ के दो लोग दुकान पर आए और प्रभुदास से अमरनाथ यात्रा के दौरान लगने वाले वार्षिक भण्डारे ...Read More

24

अनूठी पहल - 24

- 24 - सब कुछ वैसा ही था, जैसा प्रतिदिन होता था। आकाश साफ़ था। सूर्य-देवता अपने कर्त्तव्य-पथ पर थे। प्रभुदास नाश्ता आदि करके दुकान पर गया था। गर्मी की तपिश रोज़ जैसी ही थी। फिर भी रास्ते में उसे और दिनों की अपेक्षा अधिक पसीना महसूस हुआ। दुकान पर पहुँचा तो कूलर की हवा से कुछ राहत महसूस हुई। अभी घंटा-एक ही बीता होगा कि उसकी छाती में बहुत ज़ोर का दर्द उठा। उसे लगा कि उसका साँस घुट रहा है। पवन ने पापा की तबियत बिगड़ती देखकर घर फ़ोन करके प्रवीण को भेजने के लिए कहा। साथ ...Read More

25

अनूठी पहल - 25 - अंतिम भाग

- 25 - अभी तक ‘देहदान महादान संस्था (रजि.), दिल्ली’ की ओर से पत्र आया था, जिसमें सूचना दी थी कि संस्था द्वारा स्वर्गीय प्रभुदास का नाम मरणोपरान्त पद्मश्री पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया गया था, जिसे सरकार द्वारा गठित चयन समिति ने स्वीकार करते हुए प्रभुदास को मरणोपरान्त पद्मश्री से सम्मानित करने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखा है। अब सरकारी सूचना के अनुसार श्रीमती सुशीला धर्मपत्नी स्व. प्रभुदास को पुरस्कार ग्रहण करने के लिए गणतन्त्र दिवस के एक दिन पूर्व दिल्ली में उपस्थित होना था। सुशीला के साथ दीपक, प्रीति और प्रवीण दिल्ली गए। उनके ठहरने की ...Read More