दार्शनिक दृष्टि

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देखा ही है की, हर लड़का कितना भी ज्ञान प्राप्त करके सफलता को प्राप्त नहीं हो पाता। कितनी भी सावधानी बरतने के बाद भी वह सफल नहीं हो पाता। यहां तक की अत्यंत दुष्कर कार्य को अच्छे से संपूर्ण करने के बाद भी उसे उतना सम्मान नहीं मिल पाता। ऐसा आखिर क्यों होता है!? कहां समस्या आती है ?! किसी भी व्यक्ति को अपनी सफ़लता से रोकने में उस व्यक्ति का स्वयं का अभिमानी अथवा क्रोधी स्वभाव उतना महत्व नहीं रखता। यहां देखा गया है की उस उस लड़के के साथ हो रहा पारिवारिक बर्ताव, उस व्यक्ति पर किया जाने वाला अकारण अविश्वास, यह उस व्यक्ति को स्वयं की गलतियां ढूंढने पर मजबूर करता है। बार बार प्रतिदिन यह क्रिया होते रहने पर, हर परिस्थिती में वह व्यक्ति अपनी गलती ढूंढने लगता है। यह बात उस व्यक्ति का स्वयं पर से विश्वास कम कर देता है।

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -1 - समाज मे युवाओं पर भरोसे के हालात

समाज मे युवाओं पर भरोसे के हालातदेखा ही है की, हर लड़का कितना भी ज्ञान प्राप्त करके सफलता को नहीं हो पाता। कितनी भी सावधानी बरतने के बाद भी वह सफल नहीं हो पाता। यहां तक की अत्यंत दुष्कर कार्य को अच्छे से संपूर्ण करने के बाद भी उसे उतना सम्मान नहीं मिल पाता।ऐसा आखिर क्यों होता है!?कहां समस्या आती है ?!किसी भी व्यक्ति को अपनी सफ़लता से रोकने में उस व्यक्ति का स्वयं का अभिमानी अथवा क्रोधी स्वभाव उतना महत्व नहीं रखता।यहां देखा गया है की उस उस लड़के के साथ हो रहा पारिवारिक बर्ताव, उस व्यक्ति पर ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -2 - स्त्री शिक्षा कहां तक सही?

स्त्री शिक्षा कहां तक सही?मित्रो आज के समय में स्त्रियां शिक्षण, नौकरी और धंधे के क्षेत्र में अच्छी - तरक्की कर रही है। अधिकतर स्थानों में पुरुषों से अधिक स्त्रियां कार्यरत है। पिछले कुछ दशकों के मुकाबले यह अच्छी बात है की स्त्रियां प्रयास करने लगी है, उनका शोषण कम होगा।हालाकी यह भी देखने में आ रहा है की पुरुषों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और अधिकतर पुरुषों की आय परिवार का स्वतंत्र रूप से पालन पोषण करने लायक नहीं हो पा रही।शिक्षा का सीधा अर्थ है शिक्षण। अर्थात कुछ ऐसा सीखना जो सब के लिए शुभ हो ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -3 - ब्याह कब ? आमदनी के बाद या पहले ?

आज के शिक्षित समाज की यह विचार धारा बढ़ रही है की पढ़ाई पूरी होने के बाद अच्छी आमदनी लगे तब जा कर लड़के और लड़की के ब्याह के विषय में सोचा जाता है।वैसे यह आवश्यक भी है की विवाह उपरांत जीवन चलाने के लिए धन होना अनिवार्य है। यहां धन की अपेक्षा संसाधन होना अधिक इच्छनीय है। आज के समय में संसाधन प्राप्त करने के लिए भी धन की ही अवश्यकता रहती है। स्त्री से धन संसाधन की अपेक्षा करी नहीं जाती और पुरूष यदि उसके लिए प्रयास करे तो उसके प्रयासों पर किसी कारण कोई विश्वास नहीं ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -4 - विचारधारा

अधिकतर ऐसा होता है की जो भी कार्य आरंभ होता है अथवा किया जाता उसमे कुछ न कुछ समस्या है। उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी होता है। यह समाधान अधिकतर परिस्थितियों में वास्तविक कार्य रेखा से भिन्न अथवा विपरित होता है। ठीक वैसे ही समाधान की खोज और कार्य सरल करने हेतु व्यक्ति को विचार का बदलाव लाना आवश्यक हो जाता है।जब कभी समाज अथवा संगठन अथवा देश अथवा कोई समुदाय में कोई बदलाव आता है अथवा लाया जाता है तो उसके लिए कोई न कोई नियम और मर्यादा सुनिश्चित करी जाती है।किसी भी समुदाय, समाज ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -5 - स्त्री द्वारा बाज़ार में आमदनी

हम सब यह जानते हैं कि आज से कुछ दशक पहले स्त्रीयों को बाज़ार जा कर आमदनी करने नही दिया जाता था। यह बात को अचानक से स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री स्वाभिमान के नाम पर रद्द किया जा रहा है।यदि वास्तविकता देखे तो उस समय की अधिकतर स्त्रियां गृह उद्योग चलाकर आय करती थी। आज कदाचित ही कहीं किसी गृह में गृह उद्योग चल रहा होगा। हां स्त्रियां अपने परिवार को भावनात्मक सहयोग करने में आगे रहती है तथा अपना हल्का सा भी अपमान सह नहीं पाती।बाज़ार में अक्सर ऐसा होता है की सब अपने धंधे रोजगार के संबंध ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -6 - समुद्रमंथन - १

दोस्तो, आपने समुद्रमंथन वाली पौराणिक कथा तो सुनी ही होगी।जिसमे देवों और दानवों ने मिलकर पर्वत और शेषनाग जैसे सांप की मदद समुद्र को मथा था जिससे अमृत तथा लक्ष्मीजी की उत्पत्ति हुई थी। उसके साथ ही प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न विष को शिवजी ने पिया था और उन्हें निलकंठ कहा गया।दोस्तों यह कथा अक्सर हम सुनने के बाद दिमाग के किसी कोने में दफन कर देते है। क्योंकि यह कथा हमारे काम जरा भी नहीं आती। किंतु यह कथा क्यों बनाई गई, जिसमे इतने सारे किरदारों ने अलग महत्व पूर्ण कार्य करे थे? आखिर इतनी जटिल कहानी क्यों ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -7 - समुद्र मंथन -भाग २

दोस्तों!जिन तीन तरह के लोगो का वर्णन हमने आगे देखा ठीक नहीं तीन तरह के लोग इस संसार में है और उन्ही की कार्यशैली के अनुरूप संसार आज भी चल रहा है।यहां सबसे अधिक धनवान, श्रीमान वहीं होंगे जो त्रिदेव और त्रिदेवीयों के समान कार्यभार देख रहे होंगे। जैसे की किसी बड़ी वैश्विक अथवा राष्ट्र स्तरीय कंपनी के मालिक और अथवा सरकार में उच्चतम पदवी वाले, न्यायालय के उच्चतम पदवी के लोग, गांव आदि के मुखिया अथवा प्रमुख, किसी सामान्य आवश्यक वस्तु आदि के मुख्य निर्माता आदि लोग।बाकी बचे लोग जो की सरकार में मुख्य निर्णय करता के नीचे ...Read More

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दार्शनिक दृष्टि - भाग -8 - समुद्रमंथन भाग ३ (समुद्रमंथन का अंतिम भाग)

दोस्तों ! हमने आगे के भाग में देखा की संसाधनों का भी व्यय होता है। फिर चाहे वह मानव हो, धन हो, समय हो अथवा किसी वस्तु विशेष का हो।दोस्तों,जब किसी कार्य के लिए लोग एक साथ इकठ्ठा हो जाते है, तब वे हमेशा ही अपने अपने मत रखते है और कार्य के अमल में देर होती है। फिर जब वे जुड़ने को तैयार हो जाते है तब अपने अपने फायदे का हमेशा ही पूछते है। यह स्वाभाविक भी है।कथा के अनुसार समुद्रमंथन के वक्त भी यह बात अवश्य हुई भी थी। कई सारे लोग दोस्तों ! हमने आगे ...Read More