अथ गूँगे गॉंव की कथा

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होली के अवसर पर खेतों में मसूर उखाड़ने का कार्य तेजी से शुरू हो गया था । आज मौजी जल्दी ही जाग गया था। यों तो रोज ही जल्दी जागना पड़ता है, पर होली के दिन की उमंग और भी जल्दी जगा देती है। उसकी पत्नी संपतिया उर्फ पचरायवारी सरपंच विष्णु शर्मा शर्मा उर्फ विशन महाराज के यहां गोबर डालने चली गई। मौजी पत्नी के जाते ही कल खेत से लौटकर रखें गोफन को यहाँ वहाँ खोजने लगा, उसकी बड़ी लड़की रधिया यह देख कर बोली, दादा सुबह-सुबह जाने का खखोर रहे हो । मौजी बोला, कल महाते के खेत में से मैं चिड़िया बिडार के आओ, मैंने अपनो गोफन झेंईं कहूं धर दओ। जाने कहां चलो गओ । रधिया बोली, दादा तुम बड़े खराब हो ,सबेरें सबेरें गोफन लेकें चिड़ियाँ खेत पै पहुंचबे से पैलें खेत पर पहुंच जाओगे। जब चिड़ियाँ खेत पै पहुंचेंगीं, तुम चिल्ला चिल्ला कें हाय हाय करोगे ।अरे दादा चिड़ियाँ अपनों पेट भरिबे कहां जाएं । विनकें का खेती होते। मौजी बोला ,बेचारा किसान भी क्या करें ,जो देखो उसी से आस लगाए बैठा है ।दिन-रात किसान मेहनत करे, तब कहीं ये दाने दिखते हैं ।इन पर भी जिनकी देखो उसकी दाड़ है। मंडी में तो इन अनाज के दानों पर मोटे पेट वाले सेठ, चीलों की तरह झपटते हैं ।

Full Novel

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 1

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथगूँगे गॉंव की कथा 1 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त संपर्कः कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0) पिन- 475110 मोबा- 9425715707 8770554097 एक होली के अवसर पर खेतों में मसूर उखाड़ने का कार्य तेजी से शुरू हो गया था । आज मौजी जल्दी ही जाग गया था। यों तो रोज ही जल्दी जागना पड़ता है, पर होली के दिन की उमंग और भी जल्दी जगा देती है। उसकी पत्नी संपतिया उर्फ पचरायवारी सरपंच विष्णु ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 2

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथगूँगे गॉंव की कथा 2 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त उनकी ये बातें सुनकर मौजी की होली ढीली पड़ गई। अपराधी की भाँति उनके सामने खड़े होकर बोला-‘महाते, खेतन्नों पहुँचत में दानास की बेर हो जायगी।’ वे बोले-‘तुम्हें दानास की परी है। जही खेती-बाड़ी से सब अच्छे लगतयें। जही से सबैय बड़ी-बड़ी बातें आतें।’ मौजी समझ गया कि ये काम पर पहुँचा कर ही रहेंगे,बोला-‘महाते, आज चाहें कछू कह लेऊ, आज तो नहीं चल सकत।’ यह सुनकर महाते गुस्से में आ गये, बोले-‘तो हमाओ हिसाब कर ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 3

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 3 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त अथ गूँगे गॉंव की कथा वह प्रसिद्ध उपन्यास है जो ऐसे भारत के लाखों गांवो की कथा कही जा सकती है जिनमें जाति पाँति और शोषण की निर्मम घटनाओं के बाद भी न प्रतिकार होता न विद्रोह, हर आदमी गूँगा है लाखों गाँवों में। सन 78 में लिखा अविस्मरणीय उपन्यास है यह। 3 इस बस्ती के जमींदार ठाकुर लालसिंह का यह पुस्तैनी मन्दिर है। जमींदारी के जमाने से ही दानास के यहाँ ठहरने की परम्परा रही है। ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 4

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 4 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति भीड़ में से किसी ने उनकी बात का विरोध किया-‘अरे! ऐसी अटकी हू का है। भेंऊँ भलिनकों को पूछतो। गुण्डन की चलती सब जगह हो गई है। फिर जैसे तुम सोच रहे हो वैसे वेऊ सोच रहे हैं कै नहीं?’ किसुना गोली बोला-‘ जे बातिन में टेम खराब मति करो। अरे !जब वे इतै नहीं ढूँके ,अपुन बितै काये कों चलतओ?’झगड़े के डर से अधिकांश लोग गैल काटकर चलने के मूड़ में आ गये। यह ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 5

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 5 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 5 तेज धूप के कारण कुन्दन का मुँह सूखने लगा। इसी समय तुरही का स्वर गूँजा। लोग आलस्य का परित्याग करके उठ खड़े हुये। बाबड़ी के पास से नीचे उतर कर मरधट में जा पहुँचे। इस सास्वत सत्य पर गुलाल चढ़ाकर सभी ने अभिनन्दन किया। तालाब के किनारे से चलकर दानास बालाजी के बाग में पहुँच गया। बालाजी मन्दिर की दुर्दशा देखकर उनका मन क्रोधित होने लगा। मन्दिर की दीवारें फट गईं थीं। मूर्तियों की ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 6

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा6 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त 6 आम चुनाव में मौजी को खूब मजा आया। दिन भर घूम-घूम कर नारे लगाते रहो। रात को भरपेट भोजन करो,ऊपर से पचास रुपइया अलग मिलते। दिनभर के थके होते, थकान मिटाने रात पउआ पीने को मिल जाता। महीने भर में वह खा-खा कर सन्ट पड़ गया था। उसने तो जी तोड़ नारे लगाये किन्तु बेचारे पण्डित द्वारिकाधीश जीत न पाये। जीत जाते तो मौजी की पहुँच भोपाल तक हो जाती। मौजी ने भोपाल घूमने के कितने ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 7

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 7 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 7 अब तक सभी बैठ चुके थे। मौजी भी बैठ गया। वह जाजम पर नहीं बल्कि उसके किनारे पर अछूतों की तरह बैठा था। उसे अपने लोगों और सवणों में कोई अन्तर नहीं दिख रहा था।श्रद्धेय भन्तेजी तख्त पर जो आसन बिछी थी उस पर विराजमान थे। उनके पीछे लोढ़ लगा था जिसके सहारे वे टिके आराम से बैठे थे। सभा की कार्यवाही शुरू हो गई। अतिथि को मालायें पहनाने का कार्यक्रम चला। मौजी से ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 8

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 8 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 000 8 मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित, शिक्षा और संस्कृति का केन्द्र ग्वालियर जिला और जिले की संस्कृत साहित्य के गौरव महाकवि भवभूति की कर्म स्थली डबरा,भितरवार तहसीलें। यह भाग पंचमहल के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध है- आठ वई नौ दा। पंचमहल कौ हो तो बता।। इसका अर्थ यह है कि पंचमहल क्षेत्र के ऐसे आठ गाँव के नाम बतायें जिनके नाम के अन्त में वई आता हो ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 9

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 9 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 9 मौजी का सारा गाँव शोषण करने खड़ा है। ब्याज पर त्याज लगाकर उससे नौकरी करवाये जा रहे हैं। भोजन व्यवस्था हर बार उधार लेकर चलती है। घर के सभी सदस्य मजदूरी करने जाते हैं। मौजी का छोटा भाई रनधीरा अविवाहित है। भाई के परिवार के लिए ही समर्पित है। एक लड़का है मुल्ला, उसकी पत्नी का एक पैर खराब है, वह लगड़ाकर चलती है। लोग उसे इसीलिये लंगची के नाम से बुलाते ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 10

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 10 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त 10 दुनियाँ में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता और न किसी काम के करने से आदमी का मूल्य ही कम हो जाता है। सफाई करने का जो काम, लोग अपनाये हुए हैं, वे उसे तब तक करते रहेंगे जब तक उन्हें अपने काम से हीनता की भावना नहीं आती। जब-जब जिसे अपना काम छोटा लगने लगा, उसी दिन वे उस काम को तिलांज्जलि दे देंगे। वैसे काम तो काम है। हमारे जिस काम को लोग घृणा ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 11

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 11 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 11 लोकतंत्र का पौधा जब पनपता है और सत्ता के केन्द्र में जाकर ब्राजमान होता है,। तब वही जन- जन की इच्छायें पूरी करने में समर्थ होता है। इसमें अधिकांश के विकास को समग्र का विकास मान लिया जाता है। विश्व में प्रजातंत्र से सफल कोई शासन की श्रेष्ठ प्रणाली नहीं हो सकती। मानव के विकास में यह बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय की उत्तम परम्परा विकसित हुई है। जब यह प्रणाली ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 12

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 12 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 12 चुनाव में शाम, दाम ,दण्ड और भेद की बातों का सहारा लेकर दोनों पक्षों ने अपने -अपने पैंतरे चलाये। शराब भी खूब चली। बातों के लोभ और लालच से सब के धर भर गये। वोटों की जोड़-तोड़ में ,व्यक्तिगत लाभ-हानि का ध्यान रखकर वोट डाले गये। परिणाम निकला-‘सरदार अमरजीत सिंह विजयी हुये। परिणाम सुनकर सरपंच के आदमी लाठियाँ लेकर मौजी को मारने आ गये। यह देखकर तो मौजी के घर की औरतें चीख-चीख कर रोने ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 13

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 13 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 13 उसी दिन शाम होंने से पहले ही गंगा को तेज बुखार आ गया। यह देखकर घर के सभी लोग अखल-वखल दिखाई देने लगे। मौजी बेचैन होते हुये बोला-‘जाय कोऊ लग तो नहीं बैठो?खारे कुआ नो से निकरी होयगी। पन्ना महाते की जनी बामें गिर कें मरी है। ससुरी वही होयगी। ओऽऽ जलिमा, जातो, तंत्रन -मंत्रन के जानकार कांशीराम कड़ेरे को बुला ला।’ वह कांशीराम कड़ेरे बुलाने चला गया। गंगा जोर-जोर से रोने ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 14

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गॉंव की कथा 14 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त कृति 14 कुछ की बातों से आभास हो रहा था कि वे नहीं चाहते कि उनकी लड़ाई शान्त हो। जिससे वे एक जुट होकर न रह सकें। दोनों न्यारे होंगे फिर कर्ज माँगने वाले दबाव डालकर अपना कर्ज माँगेंगे। परिणाम स्वरूप उनके खेत बिचेंगे। लोग लूट का माल समझकर उसे मन माने भाव खरीदेंगे। ब्याज-त्याज में सब हड़प कर जायेंगे। बेचारा कुड़ेरा इस स्थिति में दर-दर भटकेगा। ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 15

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 15 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 कृति 15 पूँजीवादी व्यवस्थाके नये-नये आयाम सामने आते जा रहे हैं। रुपये का मूल्य गिरता जा रहा है। डालर की कीमत बढ़ती जा रही है। महगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इधर सभी धर्म वाले अपने-अपने धर्म में चारित्रिक गिरावट महसूस कर रहे हैं। इसी कारण कुछ लोग संस्कृति की रक्षा की आवश्यकता अनुभव करने लगे हैं। इससे निजात पाने राष्ट्रबाद की आवश्यकता महसूस की जा रही है। कुछ धर्म को महत्व देकर देश को बचाने ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 16

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 16 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 16 समाज में दो वर्ग स्पष्ट दिख रहे हैं। एक शोषक वर्ग दूसरा शोषित वर्ग। आज समाज में ऐसे जनों की आवश्यकता है जो पीड़ित जन-जीवन में जूझने के प्राण भर सकें। यह काम कर सकता है बुद्धिजीवी, किन्तु ये बुद्धिजीवी तो चन्द टुकड़ों की खातिर शाषकों के हाथों बिक गये हैं। इसी कारण मौजी को किसी सलाह पर विश्वास नहीं हो रहा है। वह अपने-पराये की ही पहचान नहीं कर पा रहा ...Read More

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अथगूँगे गॉंव की कथा - 17

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 17 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 17 दोपहर बाद अचानक तेज आँधी आ गई। धूल उड़-उडकर आकाश को छूने लगी। आकाश में बादल छा गये। किसान लम्बे समय से वरसात की प्रतीक्षा कर रहे थे। आज जाने किस पुण्य से बादलों के दर्शन हो रहे हैं। पथन बारे से कन्डे उठाने औरतें घरों से अपनी-अपनी पिरियाँ लेकर निकल पड़ीं। पथन बारे से पिरियों में कन्डे भर-भर कर बिटौरों में डालने लगीं। आँधी थमी तो पानी के बड़े-बड़े बूँदा पड़ने लगे। छोटे-छोटे ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 18

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 18 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त 18 कुन्दन समझ गया माँ का पारा गरम है। उन्हें शान्त करते हुये बोला-‘ माँ छोड़ इन बातों को, पिताजी के दायित्व का एक यही काम बचा है। वह भी अब तो निपट ही जायेगा। फिर हम किसलिये हैं। बहन के प्रति हमारा भी कोई दायित्व है कि नहीं!’ वे झट से बात काट कर बोलीं-‘ अभी तक सारे काम पुरखों की जायदाद बेच-बेच कर निपटाये हैं। मेरे बाप ने भी इतना दिया था कि सँभल नहीं ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 19

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 19 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 कृति 19 अकाल का स्थिति में जितनी चिन्ता गरीब आदमी को अपने पेट पालने की रहती है उतनी ही तृष्णा घनपतियों को अपनी तिजोरी भरने की बढ़ जाती है। गाँव की स्थिति को देखकर ठाकुर लालसिंह रातों-रात अनाज की गाडियाँ भरवाकर बेचने के लिये शहर लिवा गये। सुबह होते ही यह खबर गाँव भर में फैल गई। इससे लोगों की भूख और तीव्र हो गई। उन्हें लगने लगा-यहाँ के सेठ-साहूकार हमें भूख से मारना चाहते हैं। ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 20

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 20 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 प्राप्त 20 दूसरा बोला-‘भैया, अनाज तो साहूकारन के यहाँ से ही लेनों पड़ेगो कि नहीं? हम तो झें काऊ कैसी कहिवे बारे नाने।’ मौजी वहाँ पहले से ही मौजूद था। कुन्दन बिन बुलाये ही, हनुमान बब्बा के दर्शन करने के बहाने वहाँ पहुँच गया। जिन-जिन से मौजी ने आने की कहा था, वे सभी वहाँ आ गये। आपस में खुसुर-पुसुर के स्वर में सलाह-मसवरा किया जाने लगा। खुदावक्स बोला-‘काये मौजी भज्जा, जे सब काये कों इकट्ठे ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 21

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 21 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 कृति 21 आज रात मौजी को नींद नहीं आई। तरह-तरह के खट्टे-मीठे संकल्प-विकल्प बनते और मिटते रहे। कभी लगता गाँव में भारी-मारकाट मची है। गरीब और अमीर आमने-सामने लड़ रहे हैं। गरीब निहत्थे हैं। अमीरों ने एक सेना बना ली है, जिनके पास बन्दूकें और बम के गोले हैं। एक नये महाभारत की लड़ाई शुरू हो गई है। ज लड़ाई गाँव-गाँव फैल गई है। जाति, सम्प्रदाय, भाषा और धर्म के बन्धन जनता ने तोड़ डाले हैं। इस लड़ाई का ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 22

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 22 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार 2005 कृति 22 गाँव में चार लोग इकट्ठे हुये कि पहले वे अपने-अपने दुखना रोयेंगे।उसके बाद गाँव की समस्याओं पर बात करने लगेंगे। उस दिन भी दिन अस्त होने को था, गाँव के लोग हनुमान जी के मन्दिर पर हर रोज की तरह अपने पशुओं को लेने इकट्ठे होने लगे। लोगों में पशुओं के चारे की समस्या को लेकर बात चल पड़ी। मौजी भी वहाँ आ गया। उसने लोगों में चल रही चर्चा सुन ली थी। वह ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 23

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 23 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति 23 गाँव में राहत कार्य तेजी से चलने लगा। दोनों तालाबों की मरम्मत का काम चल रहा था। मजदूर अपने-अपने घेरे बनाकर काम कर रहे थे। कुछ मिट्टी खोद रहे थे, कुछ लोग उस मिटटी को पिरियों एवं तस्सलों में भर रहे थे। कुछ पिरियों एवं तस्सलों की मिटटी को तालाब की पार पर ले जाकर डाल रहे थे। यों घर के बूढ़े- बड़े भी अपनी सामर्थ के अनुसार काम कर रहे थे। मौजी ने ...Read More

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अथ गूँगे गॉंव की कथा - 24 - अंतिम भाग

उपन्यास- रामगोपाल भावुक अथ गूँगे गॉंव की कथा 24 अ0भा0 समर साहित्य पुरस्कार प्राप्त कृति अ 24 जन जीवन से जुड़ी कथायें ही भारत की सच्ची तस्वीर है।’ यह बात हमारे मन-मस्तिष्क में उठती रही है। किन्तु इस प्रश्न को हल करने से पहले मैं अपने इस गाँव की गढ़ी के इतिहास की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ। यह किला जाट राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजा बदन सिंह की वीरता प्रसिद्ध रही है। इसकी हम चर्चा कर चुके हैं। राजा बदनसिंह ...Read More