बेमेल

(151)
  • 139.6k
  • 3
  • 73.2k

ज़िंदगी जब बदरंग और बेमेल होती है तो अपना साया तक साथ छोड़ देता है। क्या हुआ जब धनाढ्य जमींदार राजवीर सिंह की बेटियों ने अपने छोटे भाई मनोहर की मंदबुद्धि का फायदा उठाकर उसकी सारी सम्पत्ति से बेदखल कर दिया। कैसे फिर मनोहर की पत्नी श्यामा अपने पति और बच्चों का ढाल बनकर आगे आयी? ज़िंदगी की किन बेमेल परिस्थिति से उसे दो-चार होना पड़ा! क्या हुआ जब पूरे समाज से अकेले लोहा लेनेवाली श्यामा का आंचल उसके ही घर के चिराग से धू-धू कर जल उठा? पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ें, श्वेत कुमार सिन्हा की उपन्यास – "बेमेल"

Full Novel

1

बेमेल - 1

गांव का धनाध्य जमींदार राजवीर सिंह। मां लक्ष्मी की असीम कृपा थी उसपर। सैंकडों एकड जमीन और अथाह सम्पत्ति मालिक। आकाश छुती अमीरी ने कभी भी उसके पांव जमीन से न डगमगाने दिए। ना कभी कोई घमंड किया और न ज्यादा पाने की लालच ने कभी उसे मुनाफाखोरी की दलदल में ढकेला। गरीब और बेसहारों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहता। परिणाम यह हुआ कि देखते ही देखते उसके रसुख और दरियादिली की चर्चा आस-पडोस के गांवों तक फैल गई। पर कहते हैं न कि घर को सबसे बडा खतरा घर के चिरागों से ही होती है। राजवीर ...Read More

2

बेमेल - 2

....पिता की चल और अचल सम्पत्ति पर अधिकार पाकर त्रिदेवियां- नंदा, सुगंधा, अमृता तथा उनके पतियों के पांव तो पर ही नहीं टिक रहे थे। इस बात का उन्हे तनिक भी ख्याल न रहा कि पिता ने छोटे भाई मनोहर की ताउम्र देखभाल और सेवा करने की जिम्मेदारी भी सौंपी है। सम्पत्ति की सुरक्षा से निश्चिंत राजवीर सिंह के दिमाग में अब बस एक ही बात कौंध रही थी वह थी बेटे का ब्याह। पर सौंपता कौन इस विक्षिप्त के हाथों में अपनी बेटी को? आखिर कौन अपनी फूल-सी बेटी की जीवनडोर पगले मनोहर के संग बांधता? पर इस ...Read More

3

बेमेल - 3

…“आइए दीदी, बिटिया को सुला रही थी!अच्छा लगा आप सबको एक साथ यहाँ देखकर। समझ में नहीं आ रहा सबको कहाँ बिठाऊं! देख ही रही हैं....यहाँ एक कुर्सी भी नहीं है!” – कमरे में चारो तरफ इशारा करते हुए श्यामा ने कहा फिर अपने पलंग पर जगह बनाते हुए बोली- “आपलोग यहाँ बैठिए! देखिए, आपकी भतीजी भी अपनी बुआ के आने के एहसास से कुलबुलाने लगी है।” नंदा, सुगंधा और अमृता आंखे गुरेड़कर श्यामा की बातें सुनती रही फिर कमरे में मौजुद अपने पगले भाई मनोहर की तरफ एक नज़र फेरा जो फर्श पर बैठा ढेर सारे खिलौने बिखेरे ...Read More

4

बेमेल - 4

…बंशी की बातें सुन श्यामा मुस्कुरायी और कहा – “काका, बचपन में माँ ने सिखाया था कि पालनहार ने दिया है उसी को अपनी नियती मान ईमानदारी से आगे बढ़ने का प्रयास करती रहना। परिस्थिति चाहे कितनी भी बुरी आए, चाहे कितना भी दु:ख सहना पड़े, कभी किसी का अनिष्ट मत करना! माँ का साथ तो बचपन में ही छूट गया! पर उसकी सीखायी बातें मैंने अभेऐ तक गांठ बांध रखी है। फिर ननद-ननदोई भी कोई पराए थोड़े ही है, वे भी तो अपने ही है न! वे जैसा भी करते हैं वो उनका स्वभाव है और मैं जो ...Read More

5

बेमेल - 5

हवेली का नौकर बंशी श्यामा से बातें कर रहा था जब कमरे से मनोहर की आवाज सुनकर वे दोनों गए और मनोहर को हाथों में सांप पकड़े खेलते देखकर उसे उससे दूर किया। वहीं पास ही उनकी नौनिहाल बेटी बिस्तर पर पड़ी अपने हाथ-पांव मार रही थी। गनीमत था कि सांप ने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। दिन बितते गए और श्यामा ने दो और बेटियों को जन्म दिया। अब उसकी कुल तीन संताने थी, तीनों बेटियां – सुलोचना, अभिलाषा और कामना। अपने ही ससुराल यानि हवेली में ननद-ननदोइयों और उनके परिवार की सेवा कर श्यामा अपने पति और ...Read More

6

बेमेल - 6

....सुलोचना अपनी माँ के कोख से मनहूस पैदा हुई थी या नहीं- इसका कोई प्रमाण तो नहीं मौजुद। पर बात से भी कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि हर तरफ फैले उसकी मनहूसियत के चर्चे ने उसकी ज़िंदगी पर मनहूस होने का ठप्पा जरूर लगा दिया था। यही वजह थी कि श्यामा के कई प्रयासों के बावजूद भी अबतक सुलोचना का विवाह तय न हो पा रहा था। ***एकदिन। बाजार से एक बड़े से डोंगे में श्यामा खाने का कुछ सामान लेकर आयी और मँझली बेटी अभिलाषा की तरफ बढ़ा दिया। अभिलाषा ने डोंगे में झाँककर देखा तो ...Read More

7

बेमेल - 7

…सुलोचना के ब्याहकर ससुराल चले जाने के पश्चात उसके मायके की स्थिति दयनीय हो गई। जहाँ अकेले दम पर पूरे घर का बागडोर सम्भाले रहती थी और बेफिक़्र होकर उसकी दोनों बहनें अपनी सहेलियों संग खेत-खलिहानों में घुमती फिरती। वहीं उसके ससुराल जाने के पश्चात अब दोनों बहनों के पांव में मानो बेड़ियां सी पड़ गई। मां श्यामा तो तड़के ही काम पर निकल जाती और घर के कामकाज के लिए दोनों बहनें फिर एक-दूसरे का मुंह देखती। उनके आलस की वजह से कई मर्तबा पिता मनोहर को भूखे पेट ही रहना पड़ता। पिता से नज़रें बचाकर वे दोनों ...Read More

8

बेमेल - 8

...सुलोचना एक कुशल गृहिणी थी। पिछले कुछ वर्षों में पति ने घर चलाने के लिए जो पैसे दिए थे, में से कुछ बचाकर इन्ही बूरे दिनों के लिए तो संचित किया था। संदूक निकालकर उसने विनयधर के आगे कर दिया। पत्नी की असली पहचान पति के विपत्ति के दिनों में होती है और सुलोचना ने अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय तो दे ही दिया था। पर विनयधर को यह गंवारा न था। उसे जितना स्नेह अपनी जीवनसंगीनी से था उतना ही भरोसा अपनी मेहनत पर था। अपनी पत्नी के संचित धन की शरण में जाने की अपेक्षा अपनी उद्यमिता का ...Read More

9

बेमेल - 9

*** बगीचे से भांति-भांति के पुष्प लेकर सुलोचना पूजनकक्ष में आयी तो देखा कि ईश्वर के आगे नतमस्तक होकर मां ध्यानमग्न होकर बैठी थी। थोड़े से पुष्प इश्वर के चरणों में अर्पित कर बाकी सास की तरफ बढ़ाया तो आज उसे बड़ी हैरत हुई। आंखे तरेरने के बजाय आज सास ने बड़ी सहजता से पुष्प स्वीकर कर लिए और वहीं रख देने को कहा। फिर इशारे से सुलोचना को बाहर जाने को कहा ताकि पूजन में ध्यान लगा सके। सुलोचना पूजनकक्ष से बाहर आ गई और घर के आंगन में बने तुलसी पिंड के समक्ष खड़ी हो उसकी अराधना ...Read More

10

बेमेल - 10

...“मां...ओ... मां! जरा बाहर आकर देखना, कौन आया है! विजेंद्र आ गया, मां!”- अभिलाषा ने आवाज देकर उसे बुलाया। को कमरे में ही बैठने को बोल वह बाहर आयी और उसके पैर दरवाजे पर ही जड़ हो गये। यह वही युवक था जिसे आते-जाते अक्सर वह गलियों में यार-दोस्तों संग हंसी-ठिठोली करते देखा करती। यह वही युवक था जिसका गौरवर्ण वाला सौम्य, सजीला और गठीला बदन नाहक ही उसकी नज़रें अपनी तरफ खींच लिया करता था। पर नयनों को अपनी मर्यादा का एहसास दिला वह आगे बढ़ जाती। आज अचानक अपने सम्मुख उसे अपनी पुत्री के प्रेमी के रूप ...Read More

11

बेमेल - 11

...अधीर स्वभाव वाली कामना ने मनचाहे युवक से प्रेमविवाह तो कर लिया। पर विवाहोपरांत अपने दायित्वों का निर्वहण न सकी। पति की अनुपस्थिति में अपने मातापिता तूल्य बीमार और असहाय सास-ससूर को बोझ समझती एवं उनकी सेवा-सुश्रुषा का उसे कोई ख्याल न रहता। एक दिन जब उनके प्राणों पर बन पड़ी, तब जाकर बात खुली। पति ने उसे समझाने की कोशिश क्या की उसने इसे अपने अहं पर ले लिया और जी भरकर खरी-खोटी सुना डाला। यहाँ तक कि पंचों में शिकायत करने की धमकी तक दे डाली। कामना का पति उसके अधीर और चंचल स्वभाव से परिचित हो ...Read More

12

बेमेल - 12

*** “कितना काम करेगी तू मां? देख, मैं आ गई हूँ! चल, तू हट और जाकर आराम कर ! जबतक मैं ससुराल वापस न चली जाऊं, तुझे चुल्हे- चौंके और घर का किसी काम के लिए चिंता करने की तनिक भी आवश्यकता नहीं!”- मायके पहुंची अभिलाषा ने अपनी मां से लाड़ लगाते हुए कहा जो रसोई में चुल्हे- चौंके में व्यस्त थी। चेहरे पर मुस्कान लिए अभिलाषा और विजेंद्र् रसोई के दरवाजे पर खड़े श्यामा को निहारते रहे। साड़ी के पल्लू से अपने गीले हाथ साफ करती हुई श्यामा रसोई से बाहर आयी। “अरे, तुमलोग अचानक? सब ठीक तो ...Read More

13

बेमेल - 13

थोड़ी ही देर में किबाड़ खुली और अपना सिर नीचे किए सुलोचना शरमाती हुई खड़ी थी जो विनयधर की साड़ी में बला की खुबसुरत लग रही थी। उसे देख विनयधर की आंखें भी चमक उठी। सुलोचना पर नज़रें टिकाए वह उसकी तरफ बढ़ने लगा। उसे यूं अपनी तरफ बढ़ते देख सुलोचना का दिल जोरों से धड़कने लगा था।......“ऐसे मत देखिए मुझे! कुछ-कुछ होता है!”- शर्म से लाल होकर अपनी आंखें मुंदती सुलोचना ने कहा। “क्या होता है? जरा मैं भी तो सुनूं!”- कहकर विनयधर ने सुलोचना को अपनी बाहों में भरा और उसके माथे को चूम लिया। तभी कमरे ...Read More

14

बेमेल - 14

*** रसोईघर से आज स्वादिष्ट मिष्ठानों की खुशबू आ रही थी। बड़े चाव से अभिलाषा ने खुद अपने हाथों भांति- भांति के पकवान बनाए थे।मनोहर और विजेंद्र खाने के लिए बैठा तो थाली में परोसे स्वादिष्ट पकवान देख मुंह में पानी भर आया। उन्होने फिर छककर सारे व्यंजनों के लुत्फ उठाए। “मां, आपके हाथो में तो जादू है! वाह....कितने स्वादिष्ट पकवान बने हैं!! जी तो कर रहा है आपके हाथ चुम लूं! अर्र...म मेरा मतलब है जवाब नहीं आपके हाथो का!!”- श्यामा के तारीफ के पुल बांधता विजेंद्र बोला। जबकि वहीं पास ही बैठी अभिलाषा उसे आंखें दिखाती रही ...Read More

15

बेमेल - 15

...“तुम निफिक़्र होकर जाओ मां! मैं सब सम्भाल लुंगी।” – अभिलाषा ने कहा और घर आए बच्चे संग श्यामा से बाहर निकल गयी। उधर अपने कमरे में लेटा मनोहर खुद में ही बड़बड़ा रहा था। उसकी आवाज सुन विजेंद्र कमरे में दाखिल हुआ। “यूं अकेले में क्या बड़बड़ा रहे हैं बाबूजी?”- विजेंद्र ने पुछा फिर वहीं बैठ मनोहर के साथ काफी देर तक बतियाता रहा। घंटे भर बाद जब अभिलाषा ने उन्हे नाश्ते के लिए आवाज लगाया तो दोनों कमरे से बाहर आए। “ठीक है अभिलाषा...! मैं थोड़ा गांव का चक्कर लगाकर आता हूँ। वैसे भी दिनभर घर में ...Read More

16

बेमेल - 16

...“अरे रहने दो बेटा....ये चापाकल के चोंचले! एक तो इतनी दूर तक पानी भरने आओ और ऊपर से चापाकल अब इतनी मेहनत कौन करता है भला? और मरना-जीना तो सब भगवान के हाथ में है! जिसे इस दुनिया से जाना है वो किसी न किसी भांति चला ही जाएगा! जाने वाले को कौन रोक पाया है भला! ऐसा जान पड़ता है कि उन डॉक्टरों ने तुम्हे भी उल्टी- पुल्टी पट्टी पढ़ाई है! मैं तो कहती हूँ, कामचोर हैं वे मेडिकल कैम्प वाले! केवल मुफ्त की रोटियां तोड़ना उनकी आदत लगती है! तभी तो अपना काम हम गांववालों को सौंपना ...Read More

17

बेमेल - 17

....तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। घर के लिए कुछ खरीददारी करने अभिलाषा पंसारी की दुकान पर गयी हाथो में थैले लिए उसने घर के भीतर प्रवेश किया। पिता के कमरे में झांका तो वह गहरी निंद्रा में लीन थे। कदम फिर आगे बढ़े। अपने कमरे में हलचल पाकर अभिलाषा ने उधर झांका और वहीं जड़ होकर रह गई। हाथो को अब इतनी शक्ति नहीं बची थी कि थैले का बोझ उठा सके और वह वहीं गिरकर बिखर गए । आंसू खुद ही सैलाब बनकर उमड़ने लगे थे। ऐसे घिनौने दृश्य की कल्पना उसने अपने सपने में भी ...Read More

18

बेमेल - 18

.....श्यामा जो अबतक बिल्कुल चुप थी, ननद की बातों ने उसके शरीर में मानो आग लगा डाला। “क्यूं जाउंगी गांव से?? हाँ!! होते कौन हो तुम मुझे इस गांव से निकालने वाले! कहीं के जमींदार हो? जज-कलक्टर हो? हो क्या तुम!! मैं भी देखती हूँ कौन निकालता है मुझे इस गांव से! कान खोलकर सुन लो तुम सबके सब... मैं कहीं नहीं जाने वाली, कहीं नहीं!!! ...और जाओगे तो तुमसब! चलो निकलो मेरे घर से! भागो यहाँ से.... आएं है बड़ा जमींदारी दिखाने! मनोहर को पागल करार कर सारी धन-सम्पत्ति पर कुंडली जमा बैठे और मुझे आए हैं सही-गलत ...Read More

19

बेमेल - 19

..…कुछ महीने और बीते। अब श्यामा का उभरा हुआ पेट दिखने लगा तो गांववालों ने फिर तरह-तरह की बातें शुरु कर दी। पर इसका चुनाव तो श्यामा ने खुद किया था। वह चाहती तो पेट में ही अपने गर्भ को मार कर सकती थी। पर एक पाप करने के पश्चात महापाप करना उसे गंवारा न था। कानों में रुई डाल और दिल पर पत्थर रख वह दिन काटती रही। किसी की बातों से अब उसे कोई फर्क न पड़ता। वहीं दूसरी तरफ गांव में हैजे से हाहाकार फैलता ही जा रहा था। लोग मर रहे थे। अनाज की कमी ...Read More

20

बेमेल - 20

*** “काकी राम राम!” – घर में प्रवेश करते हुए पड़ोस की रमा ने विनयधर की मां अभिवादन किया। राम बिटिया, आओ बैठो! बहुत दिन बाद आना हुआ! कहो, कैसी हो?” – विनयधर की बुढ़ी मां आभा ने कहा फिर अपनी बहू सुलोचना को आवाज लगाते हुए उसे गुड़ का ठंडा मीठा शर्बत लाने को कहा। “अरे काकी, ये मैने क्या सुना है तुम्हारे बहू के मायकेवालों के बारे में?” – रसोई में काम करती सुलोचना की तरफ इशारा करते हुए रमा ने अपनी भौवें मटकाते हुए कहा। “बहुत बुरा हुआ इसके मायकेवालों के साथ! इतनी कम उम्र में ...Read More

21

बेमेल - 21

*** फाटक पर किसी की दस्तक सुन हवेली के भीतर मौजुद कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे थे। “कौन हो कहो, क्या काम है? किससे मिलना है?”- हवेली के बाहर खड़े दो मुस्टंडों ने श्यामा को भीतर जाने से रोकते हुए उससे पुछा फिर उसके निकले हुए पेट पर निगाह डाली। “भीतर जाकर कहो कि श्यामा आयी है! और ये क्या तुम मेरा रास्ता रोककर खड़े हो! ये मेरा ससुराल है! हटो, मुझे भीतर जाने दो!”- श्यामा ने मुस्टंडों से कहा और भीतर जाने का असफल प्रयास करने लगी।“नहीं, मालिक का हुक़्म है कि बिना उनकी अनुमति के भीतर किसी ...Read More

22

बेमेल - 22

... “भगवान के लिए गांववालों पर तरस खाओ! उन्हे अनाज की सख्त जरुरत है! मां बाबूजी रहते तो वे के लिए अन्न-धान्य की कहीं कोई कमी न होने देते! विनती करती हूँ तुम सबसे, उनपर तरस खाओ!!”- श्यामा ने कहा जिसके बांह पकड़कर द्वारपाल हवेली से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था। एक झटके से श्यामा ने उन मुस्टंडे द्वारपालों से हाथ छुड़ाया और हवेली से बाहर निकल आयी। शोरगुल सुनकर हवेली के बाहर गांववालों की भीड़ जमा हो चुकी थी। सबने सुना कि अपने मान-सम्मान की परवाह किए बगैर श्यामा गांववालों की भलाई के लिए हवेली के ...Read More

23

बेमेल - 23

......इधर श्यामा का गर्भ अब सात मास का हो चुका था। अपना बढ़ा हुआ पेट लिए वह रोगियों की में जी-जान से जुटी रहती। पर गांव में फैलती महामारी और गांववालों के समक्ष भूख की समस्या देख उसका सब्र का बांध अब टूटने लगा था। “श्यामा काकी, रौशन लाल की तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। फिर घर में अनाज भी खत्म होने को आए हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा, कहाँ जाऊं, किससे मदद की गुहार लगाऊं !” – रौशनलाल की बीवी कमला ने भयभीत होकर पुछा। जहाँ एक तरफ उसका पति हर दिन मौत ...Read More

24

बेमेल - 24

*** श्यामा ने जौहरी की दुकान पर अपने गहने रख छोड़े थे और उसे गिरवी रखने के एवज में लेने आयी थी। “काका, कल जो जेवर आपके पास गिरवी रखने के लिए दिए थे। जो मुनासिब लगे उसके पैसे दो ताकि वे गांववालों के काम आ सके!” – मंगल जौहरी के दूकान पर खड़ी श्यामा ने कहा। पर मंगल ने तो मन ही मन कुछ अलग ही खिचड़ी पका रखी थी जिससे भोलीभाली श्यामा बिल्कुल अंजान थी। “जेवर!! कौन-से जेवर??” – मंगल ने आंखें दिखाकर पुछा तो श्यामा के जैसे होश ही उड़ गए। “काका, वही जेवर जो मैने ...Read More

25

बेमेल - 25

***सुलोचना के शादी के काफी दिन होने को आए थे। कई नीम-हकीम, वैद्य से इलाज कराने के बाद भी मां नहीं बन पा रही थी। एक बार गर्भ धारण किया भी, लेकिन पांच माह से अधिक गर्भ न ठहरा। इसका खामियाजा ये भुगतना पड़ा कि सास के ताने दिन- प्रतिदिन बढ़ते ही गए। हालांकि पति विनयधर काफी धीर प्रकृति का सुलझा हुआ इंसान था जिसने एक तरफ अपनी पत्नी के दुखी मन को शांत किया, वहीं दूसरी तरफ मां की तंज भरी बातों से अपने कान बंद करके रखा।विनयधर की अनुपस्थिति में सुलोचना की सास उससे ऐसा बर्ताव करती ...Read More

26

बेमेल - 26

….“तुम सोयी थी। इसिलिए तुम्हे जगाना ठीक नहीं समझा! क्या हुआ है? इस वक़्त तो तुम्हे कभी सोते हुए पाया! तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?”- विनयधर ने चिंतित होते हुए पुछा। इससे पहले कि सुलोचना कुछ बोल पाती, सास आभा का कमरे में प्रवेश हुआ और उसने शिकायतों के अम्बार लगा डाले। “सोयी थी?? या सोने का नाटक कर रही थी विनयधर!! जरा पुछ इससे! कितना आवाज लगायी, पर महारानी के कानों पर जू तक नहीं रेंगे! मेरी कुछ सहेलियां आज मुझसे मिलने आयी थी। इसकी मां ने इसे इतने संस्कार भी नहीं दिए कि घर आए मेहमानों ...Read More

27

बेमेल - 27

*** “काकी, कुछ समझ में नहीं आ रहा! अपने छोटे भाई-बहनों का पेट कैसे पालूं? पिताजी तो पहले ही दुनिया को छोड़कर चले गए। अब मां ने भी बिस्तर पकड़ लिया है। इसे अकेला छोड़कर मैं काम पर भी नहीं जा सकती। घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा! क्या करूं? किससे मदद की गुहार लगाऊं?”- गांव में रहनेवाली और हैजे का दंश झेल रही रूपा ने कहा तो श्यामा से उसकी तकलीफ देखी न गई। “ये कुछ रूपए रख और जाकर अनाज ले आ! जबतक मेरी आंखें खुली है तेरे परिवार को भूख से बिलकते नहीं ...Read More

28

बेमेल - 28

....श्यामा को सामने खड़ा देख विजेंद्र के आंखों से पश्चातापरूपी आंसू चेहरे पर आ लुढ़के। उसकी धुंधली होती निगाहें श्यामा के गर्भ पर पड़ी तो सब्र का बांध टूट गया। “हे मां!! मैं गुनाहगार हूँ तेरा! हो सके तो ईश्वर से प्रार्थना करना कि मुझ जैसे दुराचारी को इस कीचड़रूपी शरीर से मुक्ति दे दे! मां!!” – विजेंद्र के मुंह से लड़खड़ाते हुए शब्द निकले फिर सदा के लिए शांत हो गए। श्यामा कुछ पल वहीं खड़ी उसे निहारती रही फिर बिना कुछ बोले मेडिकल कैम्प से बाहर निकल आयी। अपने प्राण त्यागकर आज विजेंद्र ने खुद के पापों ...Read More

29

बेमेल - 29

....“तो और क्या करें!! आज हवेलीवालों ने श्यामा काकी को मारने के लिए अपने आदमियों को लगाया है! अगर यूं ही जाने दिया तो इससे उनका मन बढ़ेगा और कल वे और भी कुछ भी कर सकते हैं! मारो... इसे, खत्म कर डालो!” – भीड़ में से आगे आकर एक अधेड़ उम्र के ग्रामीण ने गुस्से से कहा। “सही कह रहा है ये! इन्हे छोड़ना नहीं चाहिए! हवेलीवालों को मजा चखाना चाहिए! उन्होने उस श्यामा काकी की जान लेनी चाही जो अपना और अपने पेट में पल रहे बच्चे की परवाह किए बगैर इस गांव के हरेक इंसान की ...Read More

30

बेमेल - 30

.....मुखिया के मुख से श्यामा के लिए अपमानजनक बातें सुन भीड़ में खड़ी औरतें एक सूर में उसपर टूट “ओ मुखिया, किसी औरत पर कोई तोहमत लगाने से पहले एकबार अपने गिरेबान में झांककर देख ले! सब पता है हमें कि तू गांव की बहू-बेटियों पर गंदी निगाह रखता है! श्यामा काकी के बारे में एक शब्द भी बोला तो तेरा मुंह नोच लुंगी! ये श्यामा काकी ही हैं जिन्होने खुद की परवाह किए बगैर पूरे गांव की मदद उस समय की, जब लोग अपने घर से बाहर निकलने में भी डरते हैं! और इनके साथ जो भी हुआ ...Read More

31

बेमेल - 31

“अब समझ में आया! ये सब इस श्यामा रानी का किया-धरा है! इसी ने इन भोले- भाले गांववालों को है और जिसके कहने में आकर ये मुखिया हमें आंखें दिखा रहा है!” – नंदा ने आंखें तरेरते हुए कहा और कुटिल मुस्कान चेहरे पर उंकेरी। उसकी बातें सुन उदय ने भीड़ के बीच खड़े हवेली के मुस्टंडों को आगे कर दिया जिसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। तभी भीड़ एक तरफ छंटी और कुछ लोगों ने खुंखार कुत्तों की लाशें हवेली के दरवाजे पर लाकर रख दी जिसे देखकर हवेलीवालों के चेहरे की रंगत फीकी पड़ चुकी थी। “क क ...Read More

32

बेमेल - 32

.....आज श्यामा के पास अच्छा मौका था हवेलीवालों से बदला लेने का। शादी के बाद से आजतक उसने बहुत सहे और इन सबके पीछे सबसे बड़ी वजह इन ननद-ननदोईयों की लालच और उनका बुरा स्वभाव था। वह चाहती तो आज गिन-गिनकर बदला ले सकती थी। पर उसने ऐसा नहीं किया। उसने एक नज़र वहां खड़े गांववाले, दीन-हीन से दिखते छोटे-छोटे बच्चों की तरफ डाला फिर उसका ख्याल उनलोगों की तरफ भी गया जो वहां मौजुद नहीं थे और गांव के ही घरों में, मेडिकल कैम्प में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। “मुझे इनलोगो से कोई बदला ...Read More

33

बेमेल - 33

“भगवान के लिये ऐसे कसम न दें! मैने आजतक इश्वर को तो नहीं देखा! लेकिन जरुर उनका चेहरा आपसे खाता होगा! आखिर अच्छे सोच और अच्छे कर्म ही तो हम इंसानों को असुर और ईश्वर बनाता है!”- सुलोचना के कहा और विनयधर ने उसे अपने सीने से लगा लिया। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। “विनयधर भैया?? विनयधर भैया??” दरवाजे पर खड़ा कोई लगातार आवाज लगा रहा था। “हाँ, कहो? क्या बात है?”- दरवाजे तक आकर विनयधर ने आगंतुक से पुछा। “विनयधर भैया, आपकी सास, मेरा मतलब सुलोचना भाभी की मां का देहांत हो गया है। गांव के ...Read More

34

बेमेल - अंतिम भाग

“सुलोचना, मां के ये जेवर अभी भी जौहरी काका के पास गिरवी पड़े हैं। हम इन्हे वापस नहीं ले आज अगर मां जीवित होती तो बिना कर्ज चुकाए वह भी इसे स्वीकर नहीं करती। इसलिए अभी इन्हे वापस कर दो। पूरी रक़म अदायगी कर हम इन्हे वापस ले जाएंगे।”- विनयधर ने अपनी पत्नी सुलोचना से कहा।विनयधर की बातें सुनकर जौहरी की आंखें भर आयी। उसने तो आजतक यही सीखा था कि पैसे और जेवर जहाँ से भी आ रहे हो, बिना कुछ सोचे-विचारे अपने कब्जे में कर लो। पर उसे कहाँ पता था श्यामा के समान उसके बच्चे भी ...Read More