हडसन तट का ऐरा गैरा

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हडसन नदी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह अत्यंत तेज़ वेग से बहती थी। और तो और, इसे मौसम के साथ बदलना भी खूब आता था। जाड़ों के मौसम में जब तेज़ हिमपात होता तो यहां ठंडे पानी में बर्फ़ की बड़ी बड़ी सिल्लियां बहती हुई देखी जाती थीं। गर्मियों में तो कहना ही क्या? पानी पर थिरकती सूर्य की किरणें देखने वालों की आंखें खुशी से आंज देतीं। देखने वाले भी कोई यूं ही नहीं थे। इनमें शामिल थे एक से बढ़ कर एक दुनिया के करामाती प्राणी जो दुनिया से दो कदम आगे चलते थे। ऐसे

Full Novel

1

हडसन तट का ऐरा गैरा - 1

हडसन नदी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह अत्यंत तेज़ वेग से बहती थी। और तो और, मौसम के साथ बदलना भी खूब आता था। जाड़ों के मौसम में जब तेज़ हिमपात होता तो यहां ठंडे पानी में बर्फ़ की बड़ी बड़ी सिल्लियां बहती हुई देखी जाती थीं। गर्मियों में तो कहना ही क्या? पानी पर थिरकती सूर्य की किरणें देखने वालों की आंखें खुशी से आंज देतीं। देखने वाले भी कोई यूं ही नहीं थे। इनमें शामिल थे एक से बढ़ कर एक दुनिया के करामाती प्राणी जो दुनिया से दो कदम आगे चलते थे। ऐसे ...Read More

2

हडसन तट का ऐरा गैरा - 2

ये बहुत अच्छा था कि रॉकी हडसन नदी से थोड़ी सी दूरी पर बनी एक छोटी सी कंदरा में था। क्योंकि नदी इतनी तेज़ी से बहती थी कि उसके किनारे रह पाना बहुत ही मुश्किल था। अब कोई इतनी तेज़ धारा के समीप आखिर कब तक रह सकता है? कभी तो थकान के कारण ध्यान चूकेगा ही। और बस, ऐसे में लहरें उसे बहा कर ले जाएंगी तथा न जाने कहां का कहां लेजाकर पटकेंगी। कोई सोच सकता है कि पानी की लहरों से रॉकी को कैसा भय? वह तो खुद एक उम्दा तैराक है! लेकिन कहा जाता है ...Read More

3

हडसन तट का ऐरा गैरा - 3

रॉकी एक सुबह घास पर बैठा धूप सेक रहा था। क्या करता, ठंड ही इतनी थी। रात में तो सी पानी की बूंदें भी गिरी थीं। पानी उसके लिए कोई नई चीज़ नहीं था, वह तो रहता ही पानी के किनारे था। लेकिन ये पानी जो आसमान से गिरता था न, इसकी सिफत कुछ अलग ही थी। ये बदन को तो भिगोता ही था साथ में आसपास की हवा को भी ठंडा कर देता था। बस, सर्दी बढ़ जाती। तभी रॉकी ने कोई आवाज सुनी। बिल्कुल उसकी जैसी ही आवाज। वह सिर उठा कर इधर- उधर देखने लगा। सामने ...Read More

4

हडसन तट का ऐरा गैरा - 4

ऐश की वो प्रवासिनी मां कई शामों के ढलते अंधेरे अपने जोड़ीदार उस मेहमान के साथ गुजार कर आख़िर दिन घनी घास के उस कटोरेनुमा ठंडे गड्ढे में बैठ गई। मेहमान कुछ दिन तो दूर बैठा जब- तब उसे टुकुर - टुकुर देखता रहा फिर उससे दूर हो गया। मां के पास अब अपने अंडे सेने का नया काम जो आ गया था। वह ख़ाली कहां थी।हां, उसका पेट अलबत्ता ज़रूर खाली हो गया जब दो प्यारे से गोल - मटोल अंडे उसके जिस्म से निकल कर सुनहरी घास के बीच बने उस छोटे से गड्ढे में आ गए।सर्दियां ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 5

एक बात तो है ऐश, हम चाहे दिन भर कितना भी पानी में तैरते रहें पर जो मज़ा झरने नीचे नहाने में आता है उसकी तो बात ही कुछ और है। रॉकी ने झरने की धार के नीचे सिर को झटकते हुए कहा। ऐश ने सिर हिला कर हामी भरी। लेकिन उसके चेहरे से उदासी अब भी झलक रही थी। वह बोली - आ रॉकी, अब हम थोड़ी देर आंखें बंद करके उन मछलियों और मेरे भाई को याद करें जिन्हें वह बूढ़ा खाने के लिए ले गया। - तुझे क्या मालूम कि वो उन्हें खाने के लिए ही ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 7

ऐश ख़ूब नाराज़ हुई रॉकी पर। जब तक वो यहां नहीं था तब तक तो न जाने किस अनहोनी आशंका के बारे में सोच - सोच कर उसे याद कर रही थी पर अब जब वो सामने आकर साक्षात खड़ा हो गया तब ऐश को उस पर क्रोध आ गया। - तू समझता क्या है रे अपने आप को? बिना बताए गायब हो गया। ये भी नहीं सोचा कि अकेले मेरा क्या हाल होगा? - क्या बात करती है ऐश! तेरे मिलने से पहले मैं अकेला ही था, मेरे मिलने से पहले तू अकेली ही थी। हम कहां किसी ...Read More

7

हडसन तट का ऐरा गैरा - 6

ऐश को थोड़ी हताशा हुई जब उसे रॉकी कहीं दिखाई नहीं दिया। लेकिन उसने सोचा - नहीं, वो रोएगी ये गलत है। ज़िंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके चले जाने पर हम रोएं। हम लाए क्या थे? जो कुछ मिला यहीं मिला न, फिर मिलेगा। ऐश ने एक हल्की सी अंगड़ाई ली और उसका बदन ऐसा हो गया मानो वो किसी सर्विस सेंटर से अपने शरीर की सर्विसिंग करवा कर निकली हो। वह अकेली ही चल दी। देर तक वो नदी के किनारे टहलती रही। दोपहर में पास की एक झाड़ी में जाकर उसने थोड़ी देर नींद ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 8

आज पानी के किनारे टहलते- टहलते ही ऐश और रॉकी काफी दूर निकल आए। मौसम भी बहुत सुहाना था। छाए हुए होने से धूप नहीं थी और रात की वर्षा ने गर्मी से भी छुटकारा दिला दिया था और ठंडी हवा चल रही थी। तभी रॉकी ने देखा कि ऐश कुछ चिंतामग्न सी बैठी है। - क्या हुआ, किस सोच में बैठी है? मौसम की बेइज्जती मत कर ऐश! रॉकी ने कहा। - मैं ये सोच रही थी रॉकी, हम परिंदे हैं तो क्या हुआ, हम रहते तो एक संपन्न देश के खूबसूरत शहर में हैं। यहां ढेर सारी ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 9

रॉकी ध्यान से ऐश की ओर देखने लगा। उसे जल्दी से जानना था कि नदी के तट पर हरियाली रास्ता बनाने से जब प्रवासी परिंदे आयेंगे तो उनसे नाम और दाम कैसे मिलेगा। उसे सहज ही ये विश्वास नहीं हो पा रहा था कि उसे बैठे- बिठाए बिजनेस करने का मौक़ा मिल सकता है, वो भी इतनी आसानी से। वह किसी मासूम बच्चे की तरह ऐश की ओर ताकने लगा जो किसी टीचर की भांति उसे अपना आइडिया समझाने के लिए तैयार बैठी थी। ऐश बोली - देखो, दुनिया भर से प्रवासी पक्षी यहां आयेंगे, यदि उन्हें यहां हमारी ...Read More

10

हडसन तट का ऐरा गैरा - 10

- वंडरफुल! ऐसी चिड़िया तो मैंने कहीं भी नहीं देखी। मैं सारी दुनिया में घूमी हूं। कितने की है - क्या आप इसकी खासियत जानती हैं? - मैं कैसे जानूंगी, अभी तो आई हूं। पहली बार ही देखा है इसे? - मैं बताता हूं। इसकी मां इंडियन थी और इसका पिता ब्राज़ील से आया था। इससे भी बड़ी बात ये है कि जब इसका जन्म हुआ तब इसका पिता जेल में था। - अरे, कैसे? बेचारे निरीह पक्षी को किसने जेल में डाला? और क्यों? - उसे एक बीमा कंपनी की शिकायत पर जेल हुई थी। इसने सेना के ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 11

कभी ऐश और रॉकी प्रवासी पंछियों की संतान की तरह हडसन तट पर संयोग से आ गए थे, लेकिन इस हंसों के जोड़े का यहां नदी के किनारे एक फलता-फूलता कारोबार था। उन्होंने एक सुंदर सा बगीचा बना रखा था जिसे फल- फूल और तरह- तरह की खाने - पीने की चीज़ों से भर रखा था। बाहर के विपरीत मौसम में कई दुर्लभ और खूबसूरत पक्षी अपने- अपने देस की आपात व्याधियों से बचने को लंबी उड़ान भरके यहां आया करते थे और इस शानदार तट पर कुछ समय रहने का अलौकिक आनंद लिया करते थे। वापस जाते समय ...Read More

12

हडसन तट का ऐरा गैरा - 12

ऐश और रॉकी का कारोबार दिनों- दिन खूब फल- फूल रहा था। जबसे उन्होंने बूढ़े नाविक का दिया हुआ का दिमाग़ खाया था तब से तो उनको खूब नए- नए विचार सूझते थे। नए - नए आइडियाज़ आते और वो खूब तरक्की करते। और क्या, परिंदों और इंसानों में फ़र्क ही क्या था? एक दिमाग का ही तो अंतर था। इंसान बस दिमाग़ के सहारे ही हर बात में आगे बढ़ कर कहां से कहां पहुंच गया था जबकि अन्य प्राणी बेचारे वहीं के वहीं थे जहां वो दुनिया शुरू होने के समय थे। खाना, सोना, बच्चे पैदा करना, ...Read More

13

हडसन तट का ऐरा गैरा - 13

ऐश से विवाह की बात सुन कर रॉकी के मानो अच्छे दिन आ गए। वह हर समय एक उन्माद खुमारी में खोया रहता। उसे घास और भी हरी नज़र आती, पानी और भी नीला।जबसे उसने बूढ़े नाविक का दिया हुआ इंसानी दिमाग खाया था तब से उसकी मानो दुनिया ही बदल गई थी। उसके लिए ज़िंदगी के अर्थ नए हो गए थे।सांस तो वो पहले भी लेता ही था मगर अब उसके जिगर से खुशबूदार हवा में घुली उम्मीदें निकलती थीं। वह भूल जाता था कि वह कोई राजकुमार नहीं बल्कि बचपन में अनाथों की तरह पला- बढ़ा एक ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 14

रॉकी एक पल के लिए चकराया लेकिन तुरंत ही संभल कर बोला - अच्छा, क्या तुम्हारी दुनिया में भी नाम होता है? अदभुत! बहुत प्यारा नाम है। तुम्हारी पसंद तो कमाल की होगी ही। दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी चाहत की! - रॉकी, गलत मत समझो, मैं उसी ऐश से शादी कर रहा हूं जो तुम्हारे साथ तुम्हारे ही मोहल्ले में रहती है। उसने बताया नहीं तुम्हें? अब रॉकी को सचमुच चक्कर आया। वह गिरता- गिरता बचा। फिर लड़खड़ा कर संभलता हुआ बोला - लेकिन उसकी और तुम्हारी कैसे निभेगी? वो परिंदा और तुम चौपाए! - ये सब पुरानी दकियानूसी ...Read More

15

हडसन तट का ऐरा गैरा - 15

जब रॉकी ऐश के पास पहुंचा तो वो न जाने कहां - कहां से खाने की बहुत सारी चीज़ें आई थी। ढेर सारे फल भी थे। वह रॉकी को देखते ही बोली - वाह, तुम बहुत अच्छे टाइम से आ गए, आओ खाना खाओ। - मुझे नहीं खाना, खाना - वाना। कह कर रॉकी ने उपेक्षा से मुंह फेर लिया। ऐश को बड़ी हैरानी हुई। रॉकी खाने के लिए मना करे, ये तो संभव नहीं, ज़रूर दाल में कुछ काला है। ऐश अपनी आवाज़ को भरसक विनम्र और मीठी बना कर बोली - क्या मैं जान सकती हूं कि ...Read More

16

हडसन तट का ऐरा गैरा - 16

गजब हो गया। रॉकी को क्या मालूम था कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ेंगे। वह दमादम ऐश को चूमे रहा था कि उधर खिड़की में दो आंखें दिखाई देने लगीं। भारी हैरत और गुस्से से भरी ये आंखें उसी डॉगी की थीं जिसने कुछ देर पहले रॉकी को बताया था कि वो ऐश का मंगेतर है। वह तो बेचारा ऐश से मिलने आ रहा था मगर यहां तो माजरा ही कुछ और था। माना कि चुंबन रॉकी ने ही लेना शुरू किया था और बेचारी ऐश की उसमें कोई गलती नहीं थी, पर ये सिद्ध कैसे होता कि गलती ...Read More

17

हडसन तट का ऐरा गैरा - 17

लोग कहते हैं कि इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है। लेकिन सिर्फ़ इंसान ही क्यों, इन के साथ भी तो ऐसा ही हुआ। और तो और, सपनों में डूबे डॉगी तथा ख्याली पुलाव पकाती कैटी के प्लान पर भी पानी फिर गया। सबकी शादी रुक गई। हुआ यूं कि एक सुबह अपने- अपने घर से निकल कर ये सारी मित्र मंडली बाहर खुली हवा और गमकती धूप में आई ही थी कि सभी ने हडसन तट पर बड़े - बड़े रंग- बिरंगे पोस्टर लगे देखे। झटपट सब पोस्टरों की ओर दौड़े कि देखें, इनमें क्या लिखा ...Read More

18

हडसन तट का ऐरा गैरा - 18

ये सवाल वायरल हो गया। धीरे- धीरे पूरी दुनिया इसी प्रश्न में उलझ गई कि आख़िर प्यार है क्या, ये कैसे मापा जाए?हडसन तट से उठी ये चर्चा पूरे न्यूयॉर्क में फैल गई। इसने उस पार जर्सीसिटी को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया। चौबीस घंटे बीतते न बीतते क्या वॉशिंगटन और क्या पेनसिलवेनिया, सब इसी प्रश्न को सुलझाने में व्यस्त हो गए कि प्यार किसे कहें?आंधियों के न कोई रास्ते होते हैं और न सरहदें। वर्जीनिया हो या एरिजोना, जॉर्जिया हो या मिशिगन देखते- देखते सबको पार करता ये अंधड़ केलिफोर्निया जैसे दूसरे तट तक जा पहुंचा। एलिनॉय ...Read More

19

हडसन तट का ऐरा गैरा - 19

सुबह- सुबह हडसन नदी के किनारे टहल कर रॉकी जो ताज़े मुलायम घोंघे एक खुशबूदार पत्ते में रख कर था उन्हें ऐश को देते हुए बोला - क्या बात है? तुम सुबह - सुबह इतनी खोई - खोई उदास सी क्यों लग रही हो? - रॉकी, मैं कुछ सोच रही हूं। - जो कुछ सोचा है वो झटपट मुझे बता दे। केवल सोचते रहने से बातें फलित नहीं होती हैं! - वाह! आज तो सुबह- सुबह बड़ा दर्शन झाड़ रहा है, किससे मिलकर आया है? - किससे मिलूंगा? मेरा है ही कौन। - क्यों, आज कैटी नहीं मिली क्या? ...Read More

20

हडसन तट का ऐरा गैरा - 20

सफ़ेद रुई जैसे बादल थे। ऐश ने ज़मीन पर चलते हुए ही न्यूयॉर्क में बादल देखे तो कई बार मगर ख़ुद बादलों से बीच से उड़ कर गुजरने का ये अनोखा अनुभव उसे पहली बार ही हुआ था।सच पूछो तो पहले इतनी ऊंची उड़ान उसने भरी भी कब थी? वो अपने मम्मी- पापा की ऊंची उड़ान की चर्चा तो अपने दोस्तों के बीच हज़ारों बार कर चुकी थी पर इतनी ऊंचाई पर उड़ने की बात तो उसने कभी सोची तक न थी। उसे इसी बात का आश्चर्य था कि उसके पास उड़ने की इतनी गज़ब की क्षमता है। आखिर ...Read More

21

हडसन तट का ऐरा गैरा - 21

ऐश ने हडसन नदी में छोटी- बड़ी, रंग - बिरंगी नावें और जहाज देखे तो खूब थे पर किसी जहाज पर सवार होने का मौक़ा उसे पहली बार ही मिला था। उसका ध्यान दाना- पानी से ज़्यादा इस खूबसूरत जहाज को देखने पर अधिक था। उसने देखा कि जहाज के पिछवाड़े की एकांत सुनसान सीढ़ियों पर एक बहुत उम्रदराज महिला सफ़ाई कर रही है। शायद वो जहाज के भोजन कक्ष की मेजों पर बिछे रहने वाले कवर वहां धोने के लिए लाई थी। एक बड़ी सी मशीन में उन्हें डाल कर वो सीढ़ियों की सफ़ाई में जुटी थी। ऐश ...Read More

22

हडसन तट का ऐरा गैरा - 22

घना अंधेरा था। ये दो - तीन घने पेड़ों का एक झुरमुट सा था जो रात के इस वीराने सहरा के किसी नखलिस्तान की भांति उन आकाश में उड़ते पंछियों को अकस्मात दिखाई दे गया था। आराम के लिए यहीं ठहरने को सब उतर गए। आते ही ऐश को बहुत गहरी नींद आई थी। शायद कई दिनों तक ठीक से न सो पाने का ही नतीजा था। चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था। जो भी आवाज़ थी वो इसी दल के मुसाफिरों की कानाफूसी सी थी। जैसे कई बार देर रात को स्टेशनों पर रेल में चढ़ने वाले मुसाफिरों ...Read More

23

हडसन तट का ऐरा गैरा - 23

अगली सुबह जब ये परिंदों का कारवां वहां से फिर उड़ा तो खामोश उदास पेड़ स्तब्ध से खड़े रह बीट, विष्ठा, मल - मूत्र, टूटे बीमार पंख, खाए- कुतरे फल - फूल और न जाने क्या - क्या वहां छितरा गया। लेकिन वीराने के उन पेड़ों ने एक ही रात में जैसे ज़िंदगी देख ली। ये कारवां अब एक घने जंगल के ऊपर से गुज़र रहा था। आसमान साफ़ था। सब अपनी- अपनी मंजिल की कल्पनाओं में खोए उड़े चले जा रहे थे। तभी अचानक खलबली सी मची। कोई सनसनाता हुआ तीर उल्का सा गुज़र गया। इसके साथ ही ...Read More

24

हडसन तट का ऐरा गैरा - 24

ये ऐसा क्षण था जब ऐश एक विचित्र सी मनस्थिति में थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था वो इस घटना को किस तरह ले।जो बूढ़ा चाचा एक दिन पहले रात के अंधेरे में ऐश से प्यार जताने आया था वह अकस्मात शिकारी के तीर से मारा गया। ये ज़िंदगी है, बस, और कुछ नहीं सोचा ऐश ने। किसी से प्यार जताना कोई गुनाह तो नहीं है। सच पूछो तो भीतर से सब प्यार के भूखे हैं, किसी को बुरा नहीं लगता वो। ऐश को भी तब बुरा इसीलिए तो लगा था कि वो नींद में अचानक पहले ...Read More

25

हडसन तट का ऐरा गैरा - 25

दोपहर होते - होते ज्यादातर परिंदे घने पेड़ों पर विश्राम के लिए जा चढ़े। धूप तेज़ थी। धूप का पानी की लहरों पर पड़ता तो ऐसा लगता था मानो चमक के मोती- माणिक बिखरे हुए हों। ऐश ने एक बार पानी में ही अपने पैरों को झाड़ कर पंखों को फड़फड़ाया और गर्दन उठा कर नज़दीक के एक पेड़ का जायज़ा लेने लगी, जैसे उड़ान भरने वाली हो। तभी उसने पास से आती हुई एक आहट सुनी। आवाज़ ऐसी थी जैसे सूखे पत्तों के ढेर पर कोई चल रहा हो। ऐश ने गर्दन उठा कर देखा। एक विशालकाय भैंस ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 26

थोड़ी देर बैठे- बैठे ज़रा सी झपकी ले लेने के बाद ऐश को याद आया कि वह यहां के निवासियों से इस तरह क्यों घुल- मिल गई, वह तो परदेसी है। उसे तो कुछ समय बाद यहां से उड़ ही जाना है। जब उनके दल का मुखिया उड़ने का संकेत देगा, उन्हें ये ज़मीन छोड़नी ही होगी। लेकिन फिर भी उसका मन ये सोच कर खट्टा हो गया कि जो लोग जीवन भर कहीं आते- जाते नहीं, एक ही जगह जमे रहते हैं वो कितने खुदगर्ज हो जाते हैं। घाट- घाट का पानी पी लेने वाले तो ख़ुद बहते ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 27

ऐश कुछ समझ पाती इससे पहले ही उन उड़ते पंछियों को नीचे ज़मीन छोड़ती हुई हरियाली और नीला पानी देने लगा। उन्हें समझते देर न लगी कि वो फ़िर किसी दरिया के ऊपर से गुज़रने वाले हैं। और तब ऐश को भी समझ में आई उस युवा परिंदे की शरारत। वह मन ही मन शरमा कर रह गई। वह उत्साही युवा पक्षी एक प्रकार से ऐश को ये संकेत दे रहा था कि अब फ़िर न जाने कितनी देर तक समंदर के ऊपर से उड़ते रहना होगा, अगर ऐश चाहे तो थोड़ी देर के लिए किनारे के पेड़ों पर ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 28

अच्छा!!! ऐश को अब जाकर समझ में आया कि ये क्या था। असल में बहुत सारे सैलानी इंसान दूर दूर से यहां घूमने के लिए आए हुए थे। इन्हें सागर के बीच में एक बहुत ही मनोरम दृश्य दिखाने के लिए लाया गया था। समुद्र के बीचों- बीच जहां पानी बहुत गहरा होता है, जल का सबसे विशाल प्राणी व्हेल यहीं आकर रहता है। व्हेल क्योंकि एक मछली है इसलिए इसे मादा के नाम से ही संबोधन दिया जाता है। ये विशालकाय व्हेल मछली किनारों पर नहीं पाई जाती इसलिए ज्यादातर लोग इसे देख नहीं पाते। यहां गहरे पानी ...Read More

29

हडसन तट का ऐरा गैरा - 29

नहीं नहीं...ये सब तो खेल था, कौतुक था, मज़ा था। इसमें प्यार - व्यार कुछ नहीं था। ऐश ने बैठे सोचा। जहाज के मस्तूल पर बैठी ऐश ध्यान से उस लड़की को देखे जा रही थी जो जहाज की गैलरी में एक सुंदर चटाई बिछा कर अपने शरीर पर कोई लोशन मल रही थी। एक छोटी खुशबूदार शीशी उसके करीब ही रखी थी। उसे इस व्हेल वॉच में मानो कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। वह अपने मित्रों या संबंधियों के साथ यहां आ तो गई थी पर वो केवल समुद्री सैर का आनंद लेने में ही खोई हुई थी। ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 30

ऐश की आंखों में आंसू आ गए। वह इधर- उधर उड़ती- हांफती न जाने कितनी देर से बदहवास सी रही थी पर उसे उसके साथी लोग कहीं नहीं दिख रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि उसे इतना दिशाभ्रम हो जाए। फिर भी उसने सुबह से हर तरफ उड़ - उड़ कर देख लिया। चप्पे- चप्पे की ख़ाक छान ली। पहली बात तो यही थी कि परिंदों का वह समूह दो- एक दिन वहां रुकने वाला ही था। इतनी जल्दी सब कहां चले गए, कैसे चले गए। फिर अगर किसी वजह से वो विश्राम स्थल छोड़ना भी पड़ा ...Read More

31

हडसन तट का ऐरा गैरा - 31

बहुत गहरी नींद आई। लोग उखड़ी - उखड़ी नींद को मुहावरे के तौर पर "चिड़िया की सी नींद" कह हैं, पर आज उस चिड़िया को गहरी और लंबी नींद आई। एक तो थकान, दूसरे भय, तीसरे पश्चाताप... इतने सारे कारण हों तो नींद क्यों नहीं आएगी। नींद भी आख़िर शरीर की एक क्रिया ही तो है, शरीर बेदम होगा तो नींद भी आयेगी। लेकिन हल्की- पीली धूप की तिरछी किरणों ने ऐश के मुंह पर आकर भी उसके शोक को कम नहीं किया। उसे हल्की भूख भी लग आई थी। उसने एक बार नीचे झांक कर दलदल की ओर ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 32

ऐश इस चहल- पहल के बीच नीचे उतर आई। ये एक विशालकाय प्रांगण था जिसमें सुंदर सजावट के साथ - जाते लोगों का जमघट भी था, खान - पान की बेशुमार दुकानें, मेले सा उत्साह और पूजाघरों सी मंगलकारी शांति भी। नज़दीक ही विशाल पार्क में पानी के सुरम्य सरोवर और उनमें अठखेलियां करते कई नस्लों और प्रजातियों के जीव- जंतुओं की उपस्थिति देख कर ऐश अपनी तमाम निराशा को भूल गई। ये नई दुनिया बेहद उम्मीद भरी थी। सबसे पहले तो ऐश ने एक साफ़ सा किनारा चुन कर ठंडे जल में एक डुबकी लगाई और फिर बदन ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 33

ओह! अद्भुत बंदर है, ऐश ने सोचा। बंदर वास्तव में अब आंखें बंद किए किसी ऋषि की भांति ध्यान में बैठा था। ऐश ने देखा कि बंदर के साथ उसके वार्तालाप को कौतुक से देखते हुए कुछ और परिंदे भी दाना चुगना छोड़ कर वहां इकट्ठे हो गए थे। अब वो सभी ऐश की तरह ही जिज्ञासा से इस प्रतीक्षा में थे कि बंदर आंखें खोले और कुछ कहे। सचमुच बंदर ने आंखें खोल दीं। फिर कुछ गंभीर हो कर ऐश से बोला - देख लिया। मैंने सब देख लिया। ऐश हैरानी से बोली - क्या देख लिया श्रीमान? ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 34

रात गहराने लगी थी। शाम का झुटपुटा देखते- देखते घने पेड़ों के पीछे ओझल हो चुका था। आसमान में से टिमटिमाते तारे धीरे- धीरे बढ़ते जा रहे थे। नीरव सन्नाटा सा पसरने लगा था क्योंकि सारा जगत दिन भर की चहल- पहल के बाद नींद के आगोश में चला गया था। अचानक एक ऊंचे से पेड़ के घनेरे पत्तों में कुछ हलचल सी हुई। उसकी हर डाली महीन आवाज़ में सरसराने सी लगी। एक- एक करके कई पंछी और छोटे- मोटे जीव उड़ते, सरकते, रेंगते, उछलते, कूदते हुए चले आ रहे थे और इधर - उधर जगह देख कर ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 35

सब साथियों के खुल कर साथ में आ जाने के बाद अब ऐश का भय तो बिल्कुल ख़त्म हो था पर वो अब सहसा कुछ सोच कर अफ़सोस सा करने लगी थी क्योंकि बंदर महाराज ने उसकी गर्दन पर हाथ ज़रूर रखे थे पर उसे कोई कष्ट या नुकसान बिल्कुल नहीं पहुंचाया था। वह तो अचानक ऐसा होने से अकारण ही घबरा गई थी और चीख पड़ी थी। हो सकता है कि उसकी गर्दन पर हाथ लगाना बंदर महाराज के पूजा- पाठ के उपक्रम का ही कोई हिस्सा हो। पर अब सब साथी निकल आए थे और अपनी- अपनी ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 36

रात का अंतिम पहर बीत रहा था। लेकिन कोई अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं था। सब जैसे रोके बैठे थे और बंदर महाराज की कहानी सुन रहे थे। खुद ऐश को भी भारी अचंभा हो रहा था कि ये सब घट गया और उसे पता तक न चला। उसे अपने रॉकी की याद भी बेसाख्ता आ रही थी। वो अब न जाने कहां होगा, किस हाल में होगा, क्या पता अब उससे कभी मिलना हो भी सकेगा या नहीं। काश, एक बार किसी तरह वो यहां आ जाता, या फिर ऐश ही उड़कर उसके पास पहुंच सकती। ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 37

न भूख, न प्यास, न नींद, न थकान और न बोरियत! कोई अपनी जगह से हिला तक नहीं। सब होकर सुन रहे थे बंदर महाराज की कहानी। - मेरे पिता नाव लेकर युवाओं की भांति दुनिया भर में घूमने के लिए निकल तो गए पर उनके पास था क्या? न कोई धन- दौलत और न कोई कीमती सामान। थोड़े ही दिनों में फाकाकशी की नौबत आने लगी। चलो, शरीर ढकने के लिए तो उन्हें इधर- उधर कुछ न कुछ मिल भी जाता पर पेट भरने के लिए तो रोज़ सुबह- शाम कुछ न कुछ चाहिए ही था। दुनिया की ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 38

अगली सुबह से ही ऐश की ज़िंदगी बेहाल हो गई। उसके बारे में बंदर महाराज से ये सारी कहानी लेने के बाद उसके सारे दोस्त उससे कटे - कटे से रहने लगे। न जाने कब क्या हो जाए और ये भोली सी चिड़िया न जाने किस तरह कोई युवती बन जाए। एक शंकालु से बगुले ने तो बंदर महाराज से तत्काल पूछ भी लिया था - "आपको कैसे पता चला कि आपके पिताजी ने मानव का मस्तिष्क इसी चिड़िया को खिलाया है। और ये तो बहुत पुरानी बात हो गई, यदि इसने मनुष्य का दिमाग़ खाया भी है तो ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 39

उड़ती हुई ऐश के दो मन हो गए। एक मन तो कहता था कि वह अभी बंदर महाराज की की सच्चाई का पता लगाए। ये कोई मुश्किल भी नहीं था। नीचे झील के उस पार बहुत से पक्षी बैठे ही थे। बस एक बार नीचे उतरने की देर थी। कोई न कोई उसे देखते ही जीभ लपलपाता हुआ आ ही जाता। मर्दों को तो औरतों को देखते ही कुदरती बुखार चढ़ ही जाता है। फिर ऐश जैसी युवा और खूबसूरत चिड़िया के लिए इन नरों की क्या कमी होती। वह तो खुद ही अब तक इनसे अपने आप को ...Read More

40

हडसन तट का ऐरा गैरा - 40

ऐश ने अपने पंखों को कुछ ढीला छोड़ा और झील के किनारे उतरने लगी। उसे काफ़ी देर से भूख लगी हुई थी।उसने पहले तो पानी के किनारे से कुछ स्वादिष्ट कीट- पतंगों को चुन कर पेट की आग बुझाई फ़िर वो एक भीगी सी चट्टान पर बैठ गई। उसे आलस्य और नींद ने एक साथ ही घेर लिया। वह पलक झपकते ही नींद के आगोश में थी।आसमान पर सफ़ेद बादलों के छितराए हुए टुकड़े तैर रहे थे जिनके कारण उस पर कभी धूप तो कभी छांव पड़ती। लेकिन झील का पानी ठंडा था इसलिए वातावरण सुहा रहा था।पिछले दिनों ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 41

बार - बार घोषणा हो रही थी। अब जो महिला आई उसने चारों ओर देखते हुए तेज़ आवाज़ में - ये पैसेंजर जॉर्ज बब्लू के लिए लास्ट एंड फाइनल कॉल है। हवाई जहाज़ के गेट बंद होने वाले हैं...वो जहां भी हैं तत्काल गेट पर पहुंचें। वेटिंग लाउंज में बैठे बाकी उड़ानों के यात्री वहां सन्नाटा पसरा देख कर यही सोच रहे थे कि मिस्टर जॉर्ज बब्लू जो भी हैं, उनकी फ्लाइट तो छूटेगी ही। आवाज़ लगाने वाली महिला भी चौकन्नी निगाहों से चारों ओर देखती हुई गेट पर खड़े गार्ड को आंखों ही आंखों में दरवाज़ा बंद कर ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 42

भारी भीड़ थी।कैप्टन को बार - बार आकर दखल देना पड़ता था पर लोग थे कि मानते ही नहीं आते - जाते उसी केबिन के बाहर खड़े हो जाते और इधर - उधर ताक- झांक करके पता लगाने की कोशिश करते कि ये कौन से विचित्र जीव हैं जो शिप पर अभूतपूर्व रूप से विशेष सुरक्षा में न्यूयॉर्क ले जाए जा रहे हैं।अब तक कोई भी उन्हें देख नहीं पाया था। सब सुनी- सुनाई बातों के आधार पर ही एक दूसरे को इनके बारे में बता रहे थे या पूछ रहे थे।कोई कहता - मैं तो लोडिंग के समय ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 43

अब इस समुद्री यात्रा के तीन दिन बीत जाने के बाद उस विशालकाय शिप के यात्रियों में दुर्लभ प्रजाति इस पक्षी जोड़े के लिए कोई ख़ास आकर्षण नहीं रह गया था। अब तो कॉरिडोर से गुजरते हुए इक्का- दुक्का लोग ही कभी- कभी उस रेलिंग के पास खड़े होकर इन परिंदों को देख लेते थे। उनके केयर- टेकर के ऊपर भी उनकी सुरक्षा- संरक्षा का पहले जैसा ज़्यादा दबाव नहीं रहता था क्योंकि उन्होंने भी अब सामान्य होकर समय पर अपना दाना पानी लेना शुरू कर दिया था। वो खूबसूरत पंछी शायद परिस्थिति को समझ गए थे और उन्होंने ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 44

केयर- टेकर बाल - बाल बचा। बेचारा बचा भी क्या, यूं समझो कि उसकी जिंदगी बच गई। उसके पेट कुछ ऊपर पसली के पास बहुत गहरा ज़ख्म हुआ। जैसे किसी ने तेज़ चाकू से सीना चीरने की कोशिश की हो। खून की नाली सी बह निकली। चमड़ी इस तरह कटी थी कि हड्डियों के बीच से लीवर का छोटा सा हिस्सा किसी भुनी शकरकंदी की तरह लटक कर झांकने लगा। तुरंत उपचार मिल जाने से जान बच गई। कई टांके लगे। गनीमत थी कि आंख नहीं फूटी। उसके अनुसार पहला हमला तो आंख पर ही हुआ। लेकिन केयर- टेकर ...Read More

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 45 - (अंतिम भाग)

कुछ दूर तक तो ऐश और रॉकी पानी के भीतर ही भीतर तैरे किंतु जब उन्हें पक्का यकीन हो कि न तो उनका पीछा किया जा रहा है और न अब दूर - दूर तक उस जहाज का कोई नामो- निशान दिख रहा है, तब वे सतह पर आए और फड़फड़ाते हुए धीरे - धीरे तैरने लगे ताकि थोड़ी देर में उनके पंख पूरी तरह सूख जाएं और वो उन्मुक्त उड़ान भर सकें। दूर क्षितिज पर सूरज के निकल आने से गर्म मुलायम धूप की किरणें सागर पर पड़ने लगी थीं और धीरे- धीरे पानी भी गुनगुना सा होने ...Read More