टॉम काका की कुटिया

(50)
  • 146.6k
  • 4
  • 67.3k

माघ का महीना है। दिन ढल चुका है। केंटाकी प्रदेश के किसी नगर के एक मकान में भोजन के उपरांत दो भलेमानस पास-पास बैठे हुए किसी वाद-विवाद में लीन हो रहे थे। कहने को दोनों ही भलेमानस कहे गए हैं, पर थोड़ा ध्यान से देखने पर साफ मालूम हो जाएगा कि इनमें से एक की गणना सचमुच भले आदमियों में नहीं की जा सकती। यह आदमी देखने में नाटा और मोटा है। इसका शारीरिक गठन बहुत ही मामूली है। कपड़े-लत्तों से अलबत्ता खूब बना-ठना है। उसके और रंग-ढंग भी ऐसे हैं जिनसे जान पड़ता है कि यह बड़ा आदमी बनना चाहता है। लगता है, मानो इस समय धन इकट्ठा करके समाज के अंधकूप से बाहर निकलने की चेष्टा कर रहा हो। वह टूटी-फूटी और अशुद्ध अंग्रेजी में बातचीत कर रहा है। बीच-बीच में तरह-तरह के भद्दे और अश्लील शब्द भी उसके मुँह से निकल पड़ते हैं। दूसरा आदमी घर का मालिक है। वह देखने में सज्जन जान पड़ता है। इसका नाम आर्थव शेल्वी है और पहले का हेली। उन दोनों में देर से बातें हो रही थीं, पर हम बीच से ही आरंभ करते हैं। शेल्वी ने कहा - "मैं चाहता हूँ कि यही बात पक्की रहे।" हेली बोला - "नहीं मिस्टर शेल्वी, हम इस बात को कभी नहीं मान सकते, कभी नहीं!" शेल्वी - "क्यों, तुम सच्ची बात नहीं जानते। टॉम मामूली दास नहीं है। इन दामों पर तो मैं कहीं भी उसे सहज ही बेच सकता हूँ। वह बड़ा सच्चरित्र, ईमानदार और चतुर है। मेरे सारे काम बड़ी चतुराई से करता है।" "अजी, बस करो, बहुत शेखी मत बघारो। गुलाम लोग जैसे सच्चरित्र और ईमानदार होते हैं, हम खूब जानते हैं। तुम्हारा टॉम ही कहाँ का अनोखा ईमानदार आ गया!" "नहीं-नहीं, वास्तव में टॉम सच्चरित्र और धार्मिक है। बरसों से वह मेरा काम करता चला आया है, लेकिन कभी किसी काम में उसने मुझे धोखा नहीं दिया है।"

Full Novel

1

टॉम काका की कुटिया - 1

हैरियट वीचर स्टो अनुवाद - हनुमान-प्रसाद-पोद्दार 1 - गुलामों की दुर्दशा माघ का महीना है। दिन ढल चुका केंटाकी प्रदेश के किसी नगर के एक मकान में भोजन के उपरांत दो भलेमानस पास-पास बैठे हुए किसी वाद-विवाद में लीन हो रहे थे। कहने को दोनों ही भलेमानस कहे गए हैं, पर थोड़ा ध्यान से देखने पर साफ मालूम हो जाएगा कि इनमें से एक की गणना सचमुच भले आदमियों में नहीं की जा सकती। यह आदमी देखने में नाटा और मोटा है। इसका शारीरिक गठन बहुत ही मामूली है। कपड़े-लत्तों से अलबत्ता खूब बना-ठना है। उसके और रंग-ढंग ...Read More

2

टॉम काका की कुटिया - 2

2 - स्वतंत्रता या मृत्यु इलाइजा शेल्वी साहब के घर बड़े लाड़-प्यार से पली थी। श्रीमती शेल्वी इलाइजा पर स्नेह रखती थी। अपनी कन्या की भाँति उसका लालन-पोषण करती थी। अमरीका में और जो बहुत-से गोरे अंग्रेजी सौदागर थे, वे सुंदर दासियों के गर्भ से लड़के-लड़की पैदा करके बाजार में उन्हें ऊँचे दामों पर बेच डालते थे। उन पापी कलंकी गोरे अंग्रेज सौदागरों के घर इन अभागी सुंदर दासियों के सतीत्व की रक्षा की कोई संभावना न रहती थी। पर सौभाग्यवश इलाइजा वैसे दुःख, यंत्रणा और पापों से बची हुई थी। शेल्वी साहब की मेम ने उसे ईसाई धर्म ...Read More

3

टॉम काका की कुटिया - 3

3 - बिदाई की व्यथा दोपहर को शेल्वी साहब की मेम के बाहर चले जाने पर इलाइजा घर में बैठी हुई चिंता कर रही थी। इतने में किसी ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। वह चौंक उठी। पीछे घूमकर देखा तो उसका स्वामी था। जार्ज को देखते ही इलाइजा आनंदित होकर बोली - "जार्ज, तुम बड़े वक्त से आए हो? माँ घूमने गई हैं।" पर जार्ज के मुख पर हँसी नहीं थी। उसका दिल बहुत ही दुःखी था। वह इलाइजा से जन्म भर के लिए बिदा माँगने आया था। आज वह और दिनों की भाँति इलाइजा ...Read More

4

टॉम काका की कुटिया - 4

4 - टॉम की बिक्री टॉम को बेचने के संबंध में हेली से शेल्वी साहब की जो बातचीत हुई वह पहले अध्याय में लिखी जा चुकी है। उसे पढ़कर पाठकों को केवल इतना मालूम हुआ होगा कि शेल्वी साहब के यहाँ टॉम नाम का एक स्वामिभक्त क्रीत दास था और उसे खरीदने के लिए ही हेली शेल्वी साहब के पास आया था। इस अध्याय में हम टॉम का विशेष परिचय देते हैं। टॉम यद्यपि अफ्रीका-वासी काला क्रीत दास था, फिर भी उसे धर्माधर्म का खूब ज्ञान था। वह बहुत ही सीधा, परिश्रमी और सदाचारी था। स्वार्थपरता उसे छू तक ...Read More

5

टॉम काका की कुटिया - 5

5 - एक हृदयविदारक दृश्यट टॉम और इलाइजा के पुत्र को बेचकर शेल्वी साहब रात को अपने सोने के में जाकर दुखित चित्त से कुर्सी पर पड़े चिट्ठी-पत्री पढ़ रहे थे। उनकी मेम आईने के सामने खड़ी होकर कपड़े बदल रही थी। शेल्वी साहब को इस प्रकार उदास देखते ही उसे इलाइजा के पुत्र के विक्रय की बात याद आ गई। उसने अपने पति से पूछा - "आर्थर, वह कौन था, जो आज अपने यहाँ बड़े ठाट-बाट से आया था?" "उसका नाम हेली है।" "हेली! यह कौन है? यहाँ क्यों आया था?" "नेसेज नगर में उससे मेरा कुछ काम ...Read More

6

टॉम काका की कुटिया - 6

6 - इलाइजा की खोज रात गई। दिन निकला। प्रभात का सूर्य गगन में उदय होकर गोरे, काले सब समान भाव से अपनी मनोहर प्रभा फैलाने लगा। सारा संसार उठकर अपने-अपने कामों में लग गया, पर शेल्वी साहब के कमरे के किवाड़ अभी तक नहीं खुले। कारण यही था कि कल रात को मेम और वे ठीक समय पर नहीं सो सके थे, इसी से आज बड़ी देर तक सोते रहे। मेम बिस्तर से उठते ही इलाइजा को पुकारने लगी, पर कोई जवाब न मिला। कुछ देर बाद उसने आंडी नामक दास को इलाइजा को बुलाने भेजा। आंडी ने ...Read More

7

टॉम काका की कुटिया - 7

7 - माता का रोमांचकारी पराक्रम श्रीमती शेल्वी के अनुरोध पर हेली भोजन के लिए ठहर गया। पर इधर तेजी से कदम बढ़ाती चली जा रही थी। उसकी उस समय की दुर्दशा सोचकर पत्थर का दिल भी पिघल जाएगा। इस संसार में इलाइजा का कोई नहीं है। उसका पति घोर अत्याचार से तंग आकर भागने की फिक्र कर रहा है, पर भाग न पाया तो आत्महत्या कर लेगा। अब इस जन्म में इलाइजा को पति के दर्शन की आशा नहीं है। यह संसार इलाइजा के लिए अपार समुद्र है। उसे मालूम नहीं कि सांसारिक घटना-स्रोत उसे किधर बहा ले ...Read More

8

टॉम काका की कुटिया - 8

8 - पकड़नेवालों की तैनाती संध्या से पहले ही इलाइजा नदी पार करके दूसरे किनारे पहुँच गई। धीरे-धीरे अँधेरा गया। इससे अब वह हेली को दिखाई न पड़ी। हेली निराश होकर सराय में वापस चला आया। उस घर में अकेला बैठा-बैठा अपने भाग्य को कोसता हुआ मन-ही-मन कहने लगा - "इस संसार में न्याय नहीं है। यदि न्याय होता तो मेरे इतने रुपयों का नुकसान क्यों होता?" इसी समय वहाँ दो आदमी और आ गए। उनमें एक ज्यादा लंबा था। उसके चेहरे से निर्दयता टपकती थी। जान पड़ता था, मानो नरक का द्वारपाल है। उसके कपड़े और चाल-ढाल भी ...Read More

9

टॉम काका की कुटिया - 9

9 - साम की वक्तृवत्वी-कला हेली को ओहियो नदी के किनारे ही छोड़कर साम और आंडी घोड़े लेकर घर ओर लौट पड़े थे। राह में साम को बड़ी हँसी आ रही थी। उसने आंडी से कहा - "आंडी, तू अभी कल का लड़का है। आज मैं न होता तो तुझमें इतनी अक्ल कहाँ थी? देख, दो रास्तों की बात बनाकर मैंने हेली को दो घंटे तक कैसे हैरान किया। यह चाल चलकर दो घंटे की देर न की जाती तो इलाइजा अवश्य पकड़ी जाती।" इस प्रकार बातें करते हुए रात को दस-ग्यारह बजे वे शेल्वी के घर पहुँच गए। ...Read More

10

टॉम काका की कुटिया - 10

10 - मानवता का हृदयस्प र्शी दृश्य जिस दिन संध्या को इलाइजा ओहियो नदी पार हुई थी, उस दिन सात बजे व्यवस्थापिका-सभा के सदस्य वार्ड साहब घर में बैठे अपनी स्त्री से तरह-तरह की बातें कर रहे थे। नीति-विशारद वार्ड साहब और उनकी मेम के बीच जो बातें हो रही थीं, वे इस प्रकार थीं : मेम ने कहा - "मैं स्वप्न में भी नहीं सोचती थी कि तुम आज घर आ सकोगे।" "हाँ, मेरे आने की कोई आशा नहीं थी; पर दक्षिण देश की ओर जाना है, इससे सोचा कि आज की रात घर पर बिताकर कल सवेरे ...Read More

11

टॉम काका की कुटिया - 11

11 - दारुण बिछोह गोरे बनियों की अर्थ-लोलुपता के कारण अफ्रीकी उपनिवेशों के जो अभागे काले हब्शी अमरीका में जाकर दास बनाकर बेचे जाते थे, उनकी स्वाभाव-प्रकृति से हम भारतवासियों की किसी-किसी विषय में बड़ी समानता है। भारतवासियों की भाँति इन अभागे क्रीत दास-दासियों में भी संतान-वात्सल्य, दांपत्य-प्रेम, पारिवारिक स्नेह और कृतज्ञता की मात्रा बहुत अधिक दिखाई पड़ती थी। परिवार से किसी एक व्यक्ति को पृथक करके बेचने में इन्हें कैसा भयानक कष्ट होता था, इसे वज्र हृदय अर्थ-पिशाच गोरे बनिए क्या समझ सकते थे? शेल्वी साहब ने टॉम को हेली के हाथ बेच तो डाला ही था, पर ...Read More

12

टॉम काका की कुटिया - 12

12 - दास की रामकहानी दिन ढल चुका है। आकाश मेघाच्छन्न है। थोड़ी बूँदा-बाँदी हो रही है। बटोही संध्या आगमन देखकर होटलों में आश्रय लेने लगे। एक होटल केंटाकी प्रदेश के सदर रास्ते के बहुत निकट था। यहाँ सदैव लोगों का आना-जाना बना रहता था। इस होटल के सामने की कोठरियाँ औरों की निस्बत अधिक गंदी थीं। बड़े आदमियों के नौकर-चाकरों तथा मजदूरों से ही ये कोठरियाँ भरी हुई थीं। पीछे की ओर की कोठरी में राह की थकावट मिटाने के लिए दो आदमी बैठे हुए हैं। उनमें एक का नाम विलसन है। विलसन ने जवानी बिताकर बुढ़ापे में ...Read More

13

टॉम काका की कुटिया - 13

13 - नीलाम की मार्मिक घटना टॉम को साथ लिए हुए हेली चलते-चलते एक नगर के निकट पहुँचा। मार्ग दोनों ही चुप थे। कोई किसी से कुछ न बोलता था। दोनों अपनी-अपनी धुन में मस्त थे। देखिए, इस संसार में लोगों की प्रकृति में कितना निरालापन दिखाई पड़ता है। दोनों एक ही जगह बैठे हुए थे। आँखों के सामने का द्रश्य भी दोनों के लिए एक ही-सा था, पर विचारों की लहर एक-दूसरे से बिलकुल ही भिन्न थी। उनके पृथक्-पृथक् विचारों का नमूना देखिए। हेली सोच रहा था कि खूब लंबा-चौड़ा और ताकतवर मर्द है। इसे दक्षिण के देश ...Read More

14

टॉम काका की कुटिया - 14

14 - दास-प्रथा का विरोध समय सदा एक-सा नहीं रहता। आज जिस प्रथा को सब लोग अच्छा समझते हैं, दिनों बाद कितने ही उसका विरोध करने लगते हैं। धीरे-धीरे दासत्व-प्रथा की बुराइयाँ कितनों ही को खटकने लगीं। उन्होंने इस प्रथा का विरोध करना आरंभ कर दिया। सन् 1865 ईसवी में अमरीका से यह प्रथा दूर हो गई। पर पहले दासत्व-प्रथा के विरोधियों को समय-समय पर बड़े-बड़े सामाजिक अत्याचार सहने पड़ते थे, और लोगों के ताने और गालियाँ सुननी पड़ती थीं। जो लोग गिरजों में या और कहीं इस घृणित प्रथा का समर्थन करते थे, वे ही सच्चे देश-हितैषी समझे ...Read More

15

टॉम काका की कुटिया - 15

15 - आशा की नई किरण जिस जहाज पर दास-व्यवसायी हेली सवार था वह चलते-चलते मिसीसिपी नदी में पहुँच इस जहाज पर रूई के ढेर-के-ढेर लदे हुए थे। इस कारण दूर से यह एक सफेद पहाड़-सा दिखाई देता था। जहाज के डेकों पर बड़ी भीड़ थी। सबसे ऊँचे डेक के एक कोने में एक रूई के गट्ठे पर टॉम बैठा हुआ था। कुछ तो शेल्वी साहब के कहने से और कुछ टॉम का सीधा स्वाभाव देखकर, हेली का उस पर विश्वास हो गया था। पहले वह उसे हर समय अपनी आँखों के सामने रखता था और जंजीर से जकड़े ...Read More

16

टॉम काका की कुटिया - 16

16 - टॉम का नया मालिक यहाँ से टॉम के जीवन के इतिहास के साथ और भी कई व्यक्तियों संबंध आरंभ होता है। अत: उन लोगों का कुछ परिचय देना आवश्यक है। अगस्टिन सेंटक्लेयर के पिता लुसियाना के एक रईस और जमींदार थे। इनके पूर्वज कनाडा-निवासी थे। अगस्टिन के पिता जन्मभूमि छोड़कर लुसियाना चले आए और वहाँ कुछ जमीन लेकर बहुत से गुलामों से काम लेने लगे और धीरे-धीरे एक अच्छे जमींदार हो गए। अगस्टिन के चाचा वारमंट में जा बसे और वहाँ खेती करने लगे। अगस्टिन की माता का जन्म हिउग्नो संप्रदाय के एक फ्रांसीसी उपनिवेशी के घर ...Read More

17

टॉम काका की कुटिया - 17

17 - नई मालकिन मिस अफिलिया कर्त्तव्य-परायण थी। हम उसे कर्त्तव्य-मत्त नहीं समझते। कर्त्तव्य-पालन में वह कभी पीछे नहीं दुर्गम पर्वत उसके कर्त्तव्य-मार्ग में कभी बाधा नहीं डाल सकता। अगाध समुद्र या प्रचंड अग्नि कर्त्तव्य-पालन से विमुख नहीं कर सकती। हृदय की अनिवार्य निर्बलता के साथ वह सदा घोर संग्राम किया करती थी। यदि वह उस विकट संग्राम में कभी हार जाती तो अपनी निर्बल प्रकृति का ध्यान करके बहुत खिन्न होती थी। अत: इन कारणों से उसका हार्दिक धर्म-विश्वास उसे प्रसन्न बनाकर उल्टा कभी-कभी उसके अंत:करण को विषाद के अंधकार से पूर्ण कर देता था। पर बड़ा आश्चर्य ...Read More

18

टॉम काका की कुटिया - 18

18 - गुलामी का समर्थन! आज रविवार है। मेरी इन दिनों मन गढ़ंत रोगों से सदा खाट पर पड़ी पर भी हर रविवार को गिर्जा अवश्य जाया करती थी। इससे गिर्जे के पादरी साहब मेरी की बड़ी तारीफ किया करते थे। वह मेरी की तारीफ में सदा कहा करते - "स्त्रियों में मैडम सेंटक्लेयर आदर्श-धर्मपालिका है। रोग, शोक, आँधी, पानी चाहे जो हो, वह गिर्जा जाने से नहीं चूकती। उसकी प्रबल धर्म-तृष्णा रविवार के दिन उसके दुर्बल शरीर में बिजली की तरह बल भर देती है।" रविवार को मणि-मुक्ता खचित बड़े सुंदर कपड़े पहनकर मेरी गिर्जा जाने की तैयारी ...Read More

19

टॉम काका की कुटिया - 19

19 - दासता के बंधन तोड़ने का प्रयास अब हम थोड़ी देर के लिए टॉम से विदा होकर जार्ज, जिम और उसकी वृद्ध माता का वृत्तांत सुनाते हैं। संध्या का समय निकट है। जार्ज अपने लड़के को गोद में लिए हुए और अपनी स्त्री इलाइजा का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए बैठा है। दोनों चिंता-मग्न और गंभीर जान पड़ते हैं। उनके गालों पर आँसुओं के चिह्न दीख पड़ते हैं। जार्ज ने कहा - "हाँ, इलाइजा, मैं जानता हूँ कि तुम जो कहती हो, सब सच है। तुम्हारा हृदय स्वर्गीय भावों से पूर्ण है। इसके विपरीत, मेरा हृदय बिलकुल ...Read More

20

टॉम काका की कुटिया - 20

20 - सच्‍ची प्रभु-भक्ति सदाचार और सुशीलता का सभी जगह आदर होता है। जिसके हृदय में धर्मभाव और साधुभाव राज्य है, उसके लिए इस संसार में, किसी दशा में, विपत्ति और कष्ट का भय नहीं है। ऐसे आदमी को सभी प्यार करते हैं। सचमुच सद्भाव के प्रभाव से पाषाण-हृदय भी नरम पड़ जाता है। दया, उदारता, स्नेह, सच्चे त्याग और नि:स्वार्थ प्रेम के सम्मुख लोगों का सिर सदा झुका रहता है। इसी से टॉम अपने निष्कपट सरल व्यव्हार के कारण दिन-प्रति-दिन अपने मालिक की आँखों में चढ़ता गया। रुपए-पैसे के मामले में सेंटक्लेयर बड़ा लापरवाह था। वह अपने आय-व्यय ...Read More

21

टॉम काका की कुटिया - 21

21 - घर की देख-भाल कुछ दिनों बाद बुढ़िया प्रू की जगह एक दूसरी स्त्री बिस्कुट और रोटियाँ लेकर उस समय मिस अफिलिया रसोईघर में थी। दीना ने उस स्त्री से पूछा - "क्यों री, आज तू रोटी कैसे लाई है? प्रू को क्या हुआ?" "प्रू अब नहीं आएगी" , उस स्त्री ने यह बात ऐसे ढंग से कही, जैसे इसमें कुछ रहस्य हो। दीना ने पूछा - "क्यों नहीं आएगी? क्या वह मर गई?" उस स्त्री ने मिस अफिलिया की ओर देखते हुए कहा - "हम लोगों को ठीक-ठीक मालूम नहीं है। वह नीचे के तहखाने में है।" ...Read More

22

टॉम काका की कुटिया - 22

22 - आपसी चर्चाएँ मिस अफिलिया सेंटक्लेयर की इस बात का प्रतिवाद करने जा रही थी, पर सेंटक्लेयर ने रोककर कहा - "तुम जो कहना चाहती हो, उसे मैं जानता हूँ। मैं यह नहीं कहता कि वे बिलकुल एक से-ही थे। मैं मुक्त कंठ से स्वीकार करता हूँ कि तुम्हारे और मेरे पिता के कामों में भिन्नता थी, पर इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वाभाव दोनों का एक ही-सा था। इस संसार में दो तरह के आदमी होते हैं। एक तो जो वृथाभिमान में फूलकर लोगों के साथ बात तक नहीं करते, मनुष्यों को मनुष्य नहीं गिनते; अपने को ...Read More

23

टॉम काका की कुटिया - 23

23 - अफिलिया की परीक्षा एक दिन सवेरे जब मिस अफिलिया घर के कामज-काज में लगी हुई थी, उसी सेंटक्लेयर ने सीढ़ी के पास खड़े होकर उसे पुकारा - "बहन, नीचे आओ, मैं तुम्हें दिखाने के लिए एक चीज लाया हूँ।" मिस अफिलिया ने नीचे आकर पूछा - "कहो, क्या दिखाते हो?" सेंटक्लेयर ने आठ-नौ वर्ष की एक हब्शी लड़की को खींचकर उसके सामने कर दिया। लड़की बहुत ही काली थी। अपने चंचल नेत्रों से वह कमरे की चीजों को बड़े कौतूहल से देख रही थी। जिस प्रकार अत्याचार से पीड़ित होकर हृदय की नीचता और दुष्टता बाहरी गंभीर ...Read More

24

टॉम काका की कुटिया - 24

24 - शेल्वी की प्रतिज्ञा गर्मी के दिन थे। दोपहर की सख्त गर्मी के कारण शेल्वी साहब अपने कमरे खिड़कियाँ खोले हुए बैठे चुरुट पी रहे थे। उनकी मेम पास बैठी हुई सिलाई का बारीक काम कर रही थीं। बीच-बीच में मेम के बड़ी उत्सुकतापूर्वक शेल्वी साहब की ओर देखने से प्रकट हो रहा था, जैसे वह अपने मन की कोई बात कहने के लिए मौका ढूँढ़ रही हों। थोड़ी देर बाद मेम ने कहा - "तुम्हें मालूम है, क्लोई के पास टॉम की चिट्ठी आई है?" शेल्वी बोला - "हाँ, चिट्ठी आई है? जान पड़ता है, टॉम को ...Read More

25

टॉम काका की कुटिया - 25

25 - पुष्पी की कुम्हालाहट दिनों के बाद महीने और महीनों के बाद वर्ष, देखते-देखते सेंटक्लेयर के यहाँ टॉम दो वर्ष यों ही बीत गए। टॉम ने अपने घर जो पत्र भेजा था, कुछ ही दिनों बाद उसके उत्तर में मास्टर जार्ज का पत्र आ पहुँचा। इस पत्र को पाकर टॉम को बड़ा आनंद हुआ। टॉम के छुटकारे के निमित्त क्लोई के लूविल में नौकरी करने जाने, टॉम के दोनों पुत्र मोज और पिटे बड़े आनंद में है और कुछ काम-काज करने लायक हो गए हैं, उसकी छोटी कन्या का भार सैली को सौंपा गया है, ये सब बातें ...Read More

26

टॉम काका की कुटिया - 26

26 - हेनरिक का संकल्प जब अगस्टिन अपने झीलवाले मकान में था, उस समय सेंटक्लेयर का भाई अल्फ्रेड अपने वर्ष की उम्र के बड़े बेटे हेनरिक को साथ लेकर वहाँ आया और दो-तीन दिन रहा। यह बड़े आश्चर्य की बात थी कि इन दोनों भाइयों में परस्पर किसी तरह की समानता - न रंग-रूप में, न विचार ही में होने पर भी आपस में बड़ा स्नेह था। प्रकट में ये दोनों सदा एक-दूसरे का मजाक उड़ाया करते थे, पर इनमें आंतरिक प्रेम कम न होता था। दोनों हाथ मिलाकर बाग में टहलते और खूब बातें किया करते थे। अल्फ्रेड ...Read More

27

टॉम काका की कुटिया - 27

27 - मृत्यु के पूर्व-लक्षण दो दिन के बाद अल्फ्रेड पुत्र सहित सेंटक्लेयर से बिदा होकर अपने घर गया। तक अल्फ्रेड वहाँ था, तब तक सब लोग हँसी-खुशी में भूले हुए थे। इस बीच में इवान्जेलिन के स्वास्थ्य की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। एक तो वह पहले ही से अस्वस्थ थी, इधर हेनरिक के साथ खेल-कूद में उस पर बहुत अधिक श्रम पड़ने के कारण वह और भी थक गई। उसका शरीर इतना निर्बल हो गया कि उसमें चलने-फिरने की शक्ति न रही। अब तक तो सेंटक्लेयर ने मिस अफिलिया की बातों पर ध्यान न दिया था, ...Read More

28

टॉम काका की कुटिया - 28

28 - प्रेम का चमत्काकर रविवार का दिन था। दोपहर बीत चुका था। सेंटक्लेयर अपने घर के बरामदे में सिगरेट पी रहा था। बरामदे के सामनेवाले कमरे में उसकी स्त्री मेरी एक गद्दीदार कुर्सी पर बैठी हुई थी। मेरी के हाथ में एक बड़ी सुंदर भजनों की जिल्ददार पुस्तक थी। मेरी का खयाल है कि रविवार के दिन धर्म-पुस्तक पढ़ी न जा सके तो कम-से-कम हाथ ही में रहे। खुली हुई पुस्तक सामने थी। उस समय मेरी उसे पढ़ नहीं रही थी। केवल कभी-कभी आँख उठाकर देख लेती थी। इवा को साथ लेकर मिस अफिलिया मेथीडिस्टों के किसी गिरजे ...Read More

29

टॉम काका की कुटिया - 29

29 - इवा की मृत्युक इस संसार में सच्चा वीर कौन है? जिसने अपनी दृढ़ भुजाओं के प्रताप से राजाओं का गर्व चूर किया है, सहस्रों नर-नारियों पर आधिपत्य जमाया है, क्या वह सच्चा वीर है? जिसके बल से निर्बल सदा थरथराते, काँपते रहते हैं, जिसकी निर्दयता को स्मरणकर रोमांच हो आता है, क्या वह सच्चा वीर है? नहीं, कभी नहीं! वीर वह है, जो मौत से जरा भी नहीं डरता, सदा सुख-शांति से मरने को तैयार रहता है। वीर वह है, जो संसार की भलाई के निमित्त, जन-साधारण के हितार्थ, अपने जीवन का बलिदान करने में जरा भी ...Read More

30

टॉम काका की कुटिया - 30

30 - मृत्यु के उपरांत इवान्जेलिन की निर्मल आत्मा मंगलमय के मंगल-धाम को चली गई। जीवन से शून्य शरीर में पड़ा हुआ है। उसके शयनागार में रखी पत्थर की मूर्तियों और चित्र आदि को सफेद वस्त्रों से ढक दिया जाता है। घर में गहरा सन्नाटा है। बीच-बीच में पैरों की मंद-मंद आहट सुनाई पड़ जाती है। बंद खिड़कियों से बाहर की धुँधली रोशनी अंदर आकर घर के सन्नाटे को और भी बढ़ा रही है। बिस्तर सफेद चादर से ढका पड़ा है और उसी पर वह नन्हीं सोयी हुई है - ऐसी नींद में, जो कभी खुलने की नहीं। बालिका ...Read More

31

टॉम काका की कुटिया - 31

31 - पिता-पुत्री का पुनर्मिलन समय किसी की बाट नहीं देखता। हफ्तों-पर-हफ्ते, महीनों-पर-महीने और वर्षों-पर-वर्ष निकले जा रहे हैं। भर के नर-नारियों को अपनी छाती पर लादकर काल का प्रवाह अनंत-सागर की ओर दौड़ा जा रहा है। इवा की नन्हीं-सी जीवन-नौका भी अनंत-सागर में समा गई। दो-चार दिन घर-बाहर सभी ने शोक मनाया और आँसू बहाए, पर ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, लोग अपने दु:ख को भूलते गए। सब अपने-अपने धंधों में लग गए। गाना-बजाना, खाना-पीना, सभी ज्यों-के-त्यों होने लगे। पर देखना यह है कि क्या सभी एक-से हैं? क्या सेंटक्लेयर के जीवन की गाड़ी भी उसी चाल से चल ...Read More

32

टॉम काका की कुटिया - 32

32 - मेरी की क्रूरता गुलामों के मालिक के मर जाने पर या कर्जदार हो जाने पर गुलामों पर विपत्ति आया करती है। इस दशा में पहले मालिक के उत्तराधिकारी या उनके महाजन इन अभागे, असहाय तथा अनाथ गुलामों को प्राय: नीलाम कर डालते हैं। उस समय माता की गोद से बालक को और लज्जा के पास से स्त्री को अलग होना पड़ता है। जिस बच्चे के माँ-बाप मर जाते हैं और उनका पालन-पोषण उसके आत्मीय जन करते हैं, उसे देशप्रचलित कानून के अनुसार, मनुष्य के अधिकारों से वंचित नहीं होना पड़ता। पर क्रीत दासों को किसी प्रकार के ...Read More

33

टॉम काका की कुटिया - 33

33 - गुलामों की बिक्री के हृदय-विदारक दृश्य "गुलामों के बेचने की आढ़त?" शायद यह नाम सुनकर ही लगे यह बड़ा विकट स्थान होगा और माल गोदामों की तरह न मालूम कितना अंधकार से भरा और मैला-कुचैला होगा। पर नहीं, यह बात नहीं है। सभ्यता की उन्नति के साथ-साथ लोग सभ्य प्रणाली और चतुराई से बुरे काम करना सीखते हैं। दासों का व्यापार करनेवाले इस बात की बड़ी फिक्र रखते थे कि मानव-संपदा, अर्थात जीवात्मा-रूपी माल के दाम बाजार में किसी प्रकार कम न आएँ। वे लोग बिकने के पहले गुलामों को अच्छा खाने और अच्छा पहनने को देते ...Read More

34

टॉम काका की कुटिया - 34

34 - नाव में रेड नदी में एक छोटी-सी नाव पाल डाले दक्षिण की ओर बढ़ी चली जा रही नाव में कई दास-दासियों के रोने और सिसकने की आवाजें आ रही हैं। टॉम इन्हीं के बीच बैठा है। उसके हाथ-पैर जंजीर से जकड़े हुए हैं, पर उसका हृदय जिस दु:ख से दबा जा रहा है, उस दु:ख का बोझ हथकड़ी-बेड़ियों से भी अधिक है। उसकी सारी आशा-आकांक्षाओं पर पानी फिर गया है। पीछे छूटते हुए नदी-तट के वृक्षों की भाँति उसके सामने जो कुछ था, वह एक-एक करके पीछे छूट गया। अब वे नहीं दीख पड़ेंगे, अब वे नहीं ...Read More

35

टॉम काका की कुटिया - 35

35 - नरक-स्थरली बड़े ही दुर्गल और बीहड़ रास्ते से एक गाड़ी चली आ रही है। उसके पीछे-पीछे टॉम कई गुलाम बड़ी कठिनाई से मार्ग पार कर रहे हैं। गाड़ी के अंदर हजरत लेग्री साहब बैठे हुए हैं। पीछे की ओर माल-असबाब से सटी दो स्त्रियाँ बँधी हुई बैठी हैं। यह दल लेग्री साहब के खेत की ओर जा रहा है। यह जन-शून्य मार्ग मुसाफिरों के लिए वैसे ही कष्टकर था; पर स्त्री, पुत्र और पिता-माता से बिछुड़े हुए गुलामों के लिए तो यह और भी दु:खदायक था। इस दल में अकेला लेग्री ही ऐसा था, जो मस्त चला ...Read More

36

टॉम काका की कुटिया - 36

36 - अत्याचारों की पराकाष्ठा टॉम ने थोड़े ही समय में लेग्री के खेत के काम ढंग और यहाँ रवैया समझ लिया। कार्य में वह बड़ा चतुर था, और अपने पुराने अभ्यास तथा चरित्र की साधुता के कारण किसी कार्य में भूल अथवा लापरवाही न करता था। उसका स्वाभाव भी शांत था, इससे उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि मेहनत करने में हीला-हवाला न किया जाए तो कदाचित कोड़ों की मार न सहनी पड़े। यहाँ के भयानक अत्याचार और उत्पीड़न देखकर उसकी छाती दहल गई। पर वह ईश्वर को आत्म-समर्पण करके धीरज के साथ काम करने लगा। उसका मन कभी ...Read More

37

टॉम काका की कुटिया - 37

37 - कासी की करुण कहानी रात के दो पहर बीत चुके होंगे। चारों ओर घनघोर अँधियारी छाई हुई सड़ी-गली कपास और इधर-उधर फैली टूटी-फूटी चीजों से भरी हुई एक तंग कोठरी में टॉम अचेत पड़ा है। दिन भर अन्न-पानी नसीब नहीं हुआ। इससे उसके प्राण कंठ में आ लगे हैं। इस पर कोठरी में मच्छरों की भरमार। जरा आँखें बंद करने तक का आराम नहीं है। टॉम जमीन पर पड़ा पुकार रहा है - "हे भगवान! दीनबंधु! एक बार दीन की ओर आँख उठा कर देखो! पाप और अत्याचार पर विजय पाने की शक्ति दो!" तभी उसे अपनी ...Read More

38

टॉम काका की कुटिया - 38

38 - भभकती यंत्रणा लेग्री अपने घर में बैठा ब्रांडी ढाल रहा है और गुस्से से आप-ही-आप भनभना रहा - यह इसी सांबो की बदमाशी है।... इसी का उठाया हुआ सब बखेड़ा है। टॉम एक महीने में भी उठने-बैठने लायक होता नहीं दिखाई देता। इधर फसल का कपास चुनने का समय आ गया। कुलियों की कमी से बहुत नुकसान होगा, कारोबार ही बंद हो जाएगा। सांबो अगर शिकायत न करता तो यह बखेड़ा ही न उठता। लेग्री की ये बातें समाप्त भी न होने पाई थीं कि पीछे से किसी ने कहा - "असल में यही बात है! इन ...Read More

39

टॉम काका की कुटिया - 39

39 - संवेदना का प्रभाव कासी ने कमरे के अंदर पहुँच कर देखा कि एमेलिन एक कोने में दुबकी भयभीत बैठी है। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ है। कासी के आने की आहट सुनकर वह चौंक उठी। पर उसने जब कासी को देखा तो दौड़कर उसकी बाँहें पकड़ लीं और बोली - "कासी! तुम हो? मैंने सोचा था, कोई और आ रहा है। बड़ा अच्छा हुआ जो तुम आ गई। मुझे डर बहुत ही सता रहा था। तुम नहीं जानती हो कि नीचे के कमरे में कितना भयंकर शोर हो रहा है।" कासी ने कहा - "मैं सब जानती ...Read More

40

टॉम काका की कुटिया - 40

40 - स्वततंत्रता का नव-प्रभाव टॉम लोकर एक वृद्ध क्वेकर रमणी के घर पर शारीरिक यंत्रणा से कराह रहा आपने साथी मार्क को गालियाँ दे रहा था और कभी फिर उसका साथ न देने के लिए सौ-सौ कसमें खा रहा था। वह दयालु बुढ़िया लोकर के पास बैठी माता की तरह उसकी सेवा-टहल कर रही है। वृद्ध का नाम डार्कस है। सब लोग उसे "डार्कस मौसी" कहकर पुकारते हैं। वृद्ध कद में जरा लंबी है। उसके मुँह पर दया, ममता, स्नेह और धर्म के चिह्न लक्षित होते हैं। उसके कपड़े भी एकदम सादे और सफेद हैं, वह दिन-रात बड़े ...Read More

41

टॉम काका की कुटिया - 41

41 - जयोल्लांस क्या सभी दशाओं में मृत्यु कष्टकर जान पड़ती है? बहुत-से लोग तो इस दु:खों - यंत्रणाओं भरे संसार में ऐसे होते हैं, जो खुशी-खुशी मरना चाहते हैं। वे मृत्यु को भयानक नहीं समझते। कितने ही ऐसे धर्मवीर हुए हैं, जिन्होंने निर्भीक होकर मृत्यु से भेंट की। सत्य और धर्म के लिए, संसार से अन्याय को दूर करने के लिए, कितने ही धर्मवीर और कर्मवीर प्रसन्नता से मृत्यु की वेदी पर बलि हो गए। क्या उन्हें उस समय मृत्यु कष्टकर जान पड़ी थी? कदापि नहीं! मनुष्य जब सत्य विश्वास से उत्तेजित हो जाता है और हृदय में ...Read More

42

टॉम काका की कुटिया - 42

42 - पलायन की योजना पहले बताया जा चुका है कि बहुत धनी और बड़े जमींदार के दिवालिया हो पर लेग्री ने बहुत सस्ते में उसका यह मकान और खेत खरीद लिया था। यह मकान बहुत बड़ा था, इसमें बहुत पुरानी कोठरियाँ थीं। जमींदार के शासन में यहाँ अनजान लोग रहते थे; पर जब से यह मकान लेग्री के हाथ में आया है, तब से इसके चार-पाँच सहन तो बिलकुल सूने पड़े रहते हैं। लेग्री का व्यापार कोई बहुत लंबा-चौड़ा न था, और न वह वैसा संपन्न ही था। कुछ दिनों पहले, जब वह जहाज का कप्तान था, उसने ...Read More

43

टॉम काका की कुटिया - 43

43 - कसौटी चलते-चलते हजारों मील की मंजिल तय हो जाती है और देखते-देखते अमावस्या की घोर निशा बीतकर का सूर्य निकल आता है। काल का अबाध-अनंत प्रवाह पाप-पंक में डूबे दुराचारियों को धीरे-धीरे उस घोर अमा-निशा की ओर धकेल रहा है, परंतु साधुओं और महात्माओं को विपत्ति-वेदनाओं से हटाकर धीरे-धीरे सूर्य की शत-शत किरणों से प्रदीप्त दिवस की ओर ले जा रहा है। पार्थिव पद और प्रभुत्व से शून्य टॉम के जीवन में कितने ही उलटफेर हुए। पहले वह स्त्री-पुरुषों सहित सुख से सानंद जीवन बिताता था, अकस्मात् दिन फिरे, और सुख की घड़ियों की जगह दु:ख की ...Read More

44

टॉम काका की कुटिया - 44

44 - टॉम की महायात्रा इसके दो दिनों के बाद एक छोटी गाड़ी पर चढ़कर एक नौजवान लेग्री के आया और झटपट गाड़ी से उतरकर वहाँ के लोगों से बोला - "मैं इस घर के मालिक से मिलना चाहता हूँ।" यह जार्ज शेल्वी था। पाठकों को स्मरण होगा कि टॉम के नीलाम में भेजे जाने के पहले, मिस अफिलिया ने शेल्वी साहब की मेम के पास टॉम को छुड़ाने के लिए एक पत्र भेजा था। पर विधि की विडंबना देखिए, डाकखाने की गलती से वह पत्र इधर-उधर मारा-मारा फिरा और दो महीने बाद श्रीमती शेल्वी को मिला। वह टॉम ...Read More

45

टॉम काका की कुटिया - 45

45 - का अंत कासी और एमेलिन के भाग जाने के बाद लेग्री के दास-दासियों में भूतों की चर्चा बड़ा जोर पकड़ा। हर घड़ी उन्हीं की चर्चा होने लगी। रात को बंद किए हुए दरवाजे खुले मिलते, रात को किसी के दरवाजा खटखटाने की-सी आवाज आती, इससे सबने यही नतीजा निकाला कि यह सारी कार्रवाई भूतों के सिवा और किसी की नहीं है। दासों में से कोई-कोई कहता - "भूतों के पास सब दरवाजों की तालियाँ जरूर हैं। बिना ताली के वे दरवाजा कैसे खोल सकते हैं? दूसरे उसका खंडन करते - "यह कोई बात नहीं, भूत बिना ताली ...Read More

46

टॉम काका की कुटिया - 46

46 - टॉम काका के बलिदान का सुफल जार्ज शेल्वी ने अपने घर लौटने के कुछ ही दिन पहले माता को जो पत्र लिखा था, उसमें केवल अपने घर पहुँचने की तारीख के सिवा और किसी बात की चर्चा नहीं की थी। टॉम की मृत्यु का समाचार देने की उसकी हिम्मत न पड़ी। कई बार उसने लेखनी उठाई कि टॉम की मृत्यु के समय की घटनाएँ विस्तार से लिखे, पर कलम उठाते ही उसका हृदय शोक से भर जाता था। दोनों आँखों में आँसू बहने लगते थे। वह तुरंत कागज को फाड़कर फेंक देता था और कलम एक ओर ...Read More

47

टॉम काका की कुटिया - 47 - अंतिम भाग

47 - उपसंहार जार्ज ने मैडम डिथो से इलाइजा के संबंध में जो बातें की थीं, उन्हें सुनकर कासी निश्चय हो गया कि हो न हो, इलाइजा ही मेरी बेटी है। उसके निश्चय का विशेष कारण था। जार्ज ने अपने पिता द्वारा इलाइजा के खरीदे जाने की जो तारीख बताई थी, ठीक उसी तारीख को उसकी कन्या बिकी थी। इस प्रकार दोनों तारीखों के एक मिल जाने से यह अनुमान पक्का हो गया कि मृत शेल्वी साहब ने जिस कन्या को खरीदा था, वह कासी की ही लड़की थी। अब कासी और मैडम डिथो में बड़ी घनिष्ठता हो गई। ...Read More