वीर प्रताप सिंह कॉलेज के समय से ही रागिनी नाम की एक लड़की से बेहद प्यार करता था। रागिनी भी उसे उतना ही चाहती थी। पाँच साल से उनका इश्क़ परवान चढ़ रहा था। वीर प्रताप सिंह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बिज़नेस करना चाहता था लेकिन पैसों की कमी के कारण वह यह काम कर नहीं पा रहा था। जब बिज़नेस के लिए वीर को पैसों की कमी होने लगी, उन्हीं दिनों एक बहुत ही धनाढ्य परिवार से उसके लिए रिश्ता आया। लड़की का नाम था रुक्मणी, जो दिखने में भी बहुत ही सुंदर थी। वीर की बिज़नेस की सारी तमन्ना पूरी हो सकती थी यदि वह इस रिश्ते के लिए हाँ कह दे तो। ऊँची पूरी, बहुत ही खूबसूरत रुक्मणी को देखते ही वीर प्रताप उस पर इस तरह फिदा हुआ कि उसने घर जमाई तक बनना स्वीकार कर लिया। इस तरह से उसके प्यार पर दौलत और सुंदरता हावी हो गई। रुक्मणी और उसके पिता घनश्याम को वीर बहुत पसंद आ गया।
Full Novel
घुटन - भाग १
वीर प्रताप सिंह कॉलेज के समय से ही रागिनी नाम की एक लड़की से बेहद प्यार करता था। रागिनी उसे उतना ही चाहती थी। पाँच साल से उनका इश्क़ परवान चढ़ रहा था। वीर प्रताप सिंह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बिज़नेस करना चाहता था लेकिन पैसों की कमी के कारण वह यह काम कर नहीं पा रहा था। जब बिज़नेस के लिए वीर को पैसों की कमी होने लगी, उन्हीं दिनों एक बहुत ही धनाढ्य परिवार से उसके लिए रिश्ता आया। लड़की का नाम था रुक्मणी, जो दिखने में भी बहुत ही सुंदर थी। वीर की बिज़नेस ...Read More
घुटन - भाग २
रुक्मणी तो रसोई में चली गई किंतु उसकी कही हुई यह बात कि "हमने कभी किसी का दिल नहीं वीर प्रताप के दिल को छलनी कर गई। रात को वीर जब बिस्तर पर गया तब उसका दिल और दिमाग भूतकाल की उन गलियों में भटकने लगा जिन्हें वह बेवफाई की चादर ओढ़ा कर भूल चुका था। उन गलियों में वह प्यार की एक ऐसी कहानी छोड़ आया था जो सिर्फ़ कहानी नहीं उसके जीवन की वह सच्चाई थी जिसे उसने अपने दिल के एक छोटे से पिंजरे में कैद कर रखा था। उस पिंजरे की सलाखों पर उसने इतना ...Read More
घुटन - भाग ३
वीर के मुँह से शादी की बात सुनते ही अपना आपा खोते हुए रागिनी ने वीर को झकझोरते हुए "तय कर दिया है, यह क्या कह रहे हो वीर," और वह वीर की बाँहों से अलग हो गई। "किसके साथ वीर?" वीर ने लड़खड़ाती ज़ुबान से कहा, "मैं नहीं जानता रागिनी, है एक लड़की रुकमणी।" "तुम नहीं जानते और बिना तुमसे पूछे, तुम्हें दिखाए बिना, विवाह तय कर दिया और तुम चुप रहे, कुछ नहीं बोले वीर? हमारे प्यार के बारे में अंकल आंटी को सब कुछ तो पता है, फिर कैसे?" आज वीर की ज़ुबान बार-बार लड़खड़ा रही ...Read More
घुटन - भाग ४
वीर रागिनी के ख़्यालों में खोया हुआ था कि तभी उसके कानों में आवाज़ आई, "वीर उठो " वीर चमकते हुए जैसे ही आँखें खोलीं, उसके सामने अप्सरा की तरह खूबसूरत रुक्मणी खड़ी थी। रुक्मणी ने वीर के पास बैठकर उसके गाल पर एक प्यारा सा चुंबन कर दिया तो वीर ने उसकी सुंदरता पर मोहित होकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया और रात की बेचैनी को भूलने की कोशिश करने लगा। रुक्मणी ने कहा, "क्या हुआ वीर, आज रात तुम बेचैन लग रहे थे। बार-बार करवटें बदल रहे थे, तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी?" "अरे रुकमणी ...Read More
घुटन - भाग ५
दूसरे शहर में जाने के बाद भी रागिनी की माँ अपनी बेटी की चिंता करती रहती थीं। इसी तनाव दिन पर दिन वह कमज़ोर होती जा रही थीं। अपनी बेटी के कुंवारी माँ बनने के आघात के कारण वह ख़ुद को संभाल ही नहीं पाईं और कुछ ही हफ़्तों में हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई। इतना बड़ा दर्द सहन करने की ताकत रागिनी में नहीं थी। वह मर जाना चाहती थी पर इस सब के बाद भी ज़िंदा रहने के लिए अब उसके पास दो कारण थे। एक तो उसके पिता जिनका इस दुनिया में उसके अलावा और ...Read More
घुटन - भाग ६
कहानी सुनते समय अपनी माँ की डबडबाई आँखों को देख कर तिलक पूछता, "माँ आप रो क्यों रही हो?" बार रागिनी उसके प्रश्न को टाल दिया करती लेकिन अपने प्रश्न का उत्तर ना मिलने के कारण यह प्रश्न तिलक के मन में गहराई तक बस गया था। उधर विवाह के दो वर्ष के बाद वीर प्रताप के घर भी किलकारी गूँजने की ख़बर आ गई और रुक्मणी ने एक बहुत ही खूबसूरत बिटिया को जन्म दिया। पंद्रह वर्ष का होने के बाद एक दिन तिलक ने रागिनी से कहा, "माँ मैं वो ही कहानी एक बार फिर से सुनना ...Read More
घुटन - भाग ७
रागिनी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा, "तिलक बेटा कई बार लोग एक चेहरे के ऊपर कई चेहरे लेते हैं जिसके कारण उनका असली रूप पहचान में नहीं आता। वह नायक तो पीठ दिखा कर हमेशा-हमेशा के लिए चला गया परंतु वह नायिका प्यार की आग में जलती रही। समाज के तानों की चिंता छोड़ कर हर दुःख दर्द सह कर उसने अपने बेटे को जन्म दिया। नायिका के पिता ने हमेशा उसका साथ दिया। अपनी बेटी को आदर सत्कार दिया। उसके प्यार का उन्होंने सम्मान किया। वह जानते थे कि उनकी बेटी तो अपने प्यार को पूजा ...Read More
घुटन - भाग ८
दरवाज़े के बाहर खड़े रागिनी के पिता यह सब सुनकर बरसों से अपनी आँखों में थमे हुए आँसुओं को रोक नहीं पाए। जिन आँसुओं को उन्होंने आज से पहले कभी आँखों से बाहर आने की इजाज़त ही नहीं दी थी; अपनी बेटी की हिम्मत बँधाने के लिए इतने वर्षों से यह आँसू उनकी कैद में थे। लेकिन आज वह आज़ाद हो चुके थे और वर्षों से भरी हुई आँखों को हल्का कर रहे थे। आँखों के साथ ही आज उनका मन भी हल्का हो रहा था क्योंकि कहीं ना कहीं उन्हें भी यह चिंता खाये जा रही थी कि ...Read More
घुटन - भाग ९
तिलक की नाराज़ी देख कर रागिनी ने उसे समझाते हुए कहा, "नहीं-नहीं तिलक तुम मुझे वचन दो कि तुम उस तरफ नहीं जाओगे जहाँ से उसके घर का रास्ता मिलता है। कभी उसके जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करोगे।" "माँ आप यह कैसा वचन मांग रही हो मुझसे? उसे उसकी ग़लतियों का एहसास तो कराना ही पड़ेगा। जिस ने मेरी नानी की जान ले ली, जिसने मेरी माँ को घुट-घुट कर जीने के लिए छोड़ दिया, जिसने मुझसे पिता का साया छीन लिया, उसके लिए आप वचन मांग रही हो?" "तिलक जो बीत गया उसके पीछे भागने से अच्छा ...Read More
घुटन - भाग १०
हवेली की बालकनी में खड़े इंसान को और अच्छे से देखने के लिए तिलक बाइक पार्क करके हवेली के के एक शानदार होटल के खुले हिस्से में जाकर बैठ गया और उसने वेटर को एक चाय का आर्डर दिया। दूर से वह उस बालकनी पर खड़े इंसान को देख रहा था। वही नैन नक्श, वैसी ही काठी, देख कर तिलक को यह समझने में देर नहीं लगी कि यही वीर प्रताप है। वह सोच रहा था कि जब उसकी उम्र उसके जितनी होगी तब वह भी शायद बिल्कुल वैसा ही दिखेगा। वेटर से बात करने पर उसे पता चला ...Read More
घुटन - भाग ११
अब तक तिलक पूरे कॉलेज में बहुत लोकप्रिय हो चुका था । वह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ आगे रहा था। अपने कॉलेज के आने वाले चुनाव के लिए भी वह बढ़-चढ़ कर काम कर रहा था। अब सांस्कृतिक कार्यक्रम का दिन भी आ गया। सभी विद्यार्थी बहुत ही उत्साहित हो रहे थे। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में वीर प्रताप सिंह और उनकी पत्नी रुक्मणी को आमंत्रित किया गया था। शाम के छः बज चुके थे वीर प्रताप के आने का इंतज़ार हो रहा था। कुछ ही समय में वीर प्रताप और उनकी पत्नी रुक्मणी कॉलेज ...Read More
घुटन - भाग १२
वीर प्रताप यह नाटक देख कर ख़ुद भी भूतकाल के काले साए में समाते जा रहे थे। प्रिया को देखकर उसकी माँ ने पूछा, "प्रिया क्या हुआ बेटा, तुम इतनी उदास क्यों हो?" "माँ अमर ने मुझे धोखा दे दिया।" "यह क्या कह रही हो बेटा?" "हाँ माँ मैं सच कह रही हूँ, वह किसी और से विवाह करने जा रहा है।" प्रिया आगे कुछ और कहे उसके पहले ही उसकी माँ इस आघात को सुनकर चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर पड़ीं। प्रिया की माँ उस समय ठीक तो हो गईं लेकिन जब उसे यह पता चला कि उसकी ...Read More
घुटन - भाग १३
तिलक को देखते ही वीर प्रताप अपनी कुर्सी से उठकर खड़े होने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे सामने कोई शीशा है जिसमें उनका भूतकाल का प्रतिबिंब नज़र आ रहा है। रुकमणी ने वीर का हाथ पकड़कर उन्हें नीचे बिठाते हुए कहा, "अरे आप खड़े क्यों हो गए?" "रुकमणी देखो कौन है यह लड़का? कितनी मिल रही है उसकी शक्ल मुझसे।" "मेकअप किया है उसका, आपकी तरह दाढ़ी मूँछ लगाई है, कभी-कभी ऐसा होता है किसी का चेहरा हमसे थोड़ा बहुत मिलता हो। फिल्मों में भी तो डुप्लीकेट होते हैं ना। पर आप यूँ खड़े क्यों हो गए ...Read More
घुटन - भाग १४
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। ना जाने कितने ही हाथों में रुमाल थे जो अपनी से बहते आँसुओं को पोंछते-पोंछते अपनी क्षमता खो चुके थे, पूरे भीग चुके थे। तभी स्टेज के पीछे से आवाज़ आई, " बहुत-बहुत धन्यवाद, इस नाटक के लेखक थे तिलक रागिनी गुंजन।" यह नाम सुनते ही वीर प्रताप के होश उड़ गए, उनके हाथ में जो पानी का गिलास था वह उनके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया और उस गिलास का पानी उनका कुर्ता गीला कर गया। उस गीले कुर्ते पर उनकी आँख से कुछ आँसू टपक ...Read More
घुटन - भाग १५
धीरे-धीरे कॉलेज के चुनाव का समय नज़दीक आ रहा था। कुमुदिनी तिलक के प्रति बहुत आकर्षित हो रही थी जब कुमुदिनी ने तिलक को अपने भाई वरुण के विरुद्ध चुनाव में खड़ा होने की बात जानी तब वह उससे नाराज़ हो गई। तिलक तो हमेशा उसका बहुत ख़्याल रखता था। वह आख़िर उसकी बहन थी लेकिन उसके ख़्याल रखने को भी कुमुदिनी उसका भी अपनी तरफ आकर्षण ही समझती थी। एक दिन कुमुदिनी ने तिलक से नाराज़ होते हुए कहा, "तिलक मेरे दिल में तुम्हारे लिए बहुत इज़्जत थी, प्यार भी पनप रहा था लेकिन मेरे भाई वरुण के ...Read More
घुटन - भाग १६
अपने पिता के बारे में कुमुद का प्रश्न सुनते ही तिलक ने तुरंत ही कहा, "नहीं-नहीं, हैं वह इस में हैं लेकिन मुझे अपना बेटा नहीं मानते।" "लेकिन क्यों?" "जानना चाहती हो?" तभी ट्रे में चाय की दो प्याली लेकर रागिनी वहाँ आ गई। वैसे भी बेचैन रागिनी कान लगा कर उनकी बातें सुन रही थी। जानना चाहोगी सुनते ही रागिनी के तो होश ही उड़ गए। रागिनी का हाथ ट्रे पकड़े हुए काँप रहा था। उन्होंने टेबल पर चाय रखते हुए कहा, "तिलक अंदर आओ।" "नहीं माँ " "तिलक शांत रहो, तुम कुछ नहीं बोलोगे।" कुमुदिनी दंग होकर ...Read More
घुटन - भाग १७
कुमुदिनी कुछ भी नहीं कह पा रही थी। उसके मन में इस समय दुःख और क्रोध का संगम हो था। दुःख तिलक और रागिनी के लिए और क्रोध अपने पिता वीर प्रताप के लिए। उसकी आँखों से कुछ आँसू क्रोध के टपक रहे थे, कुछ दुःख के और कुछ प्यार के। रागिनी कुछ भी समझ नहीं पा रही थी लेकिन तिलक ने ऐसा किसी बड़ी वज़ह के कारण ही किया होगा, वह जानती थी। कुमुदिनी बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गई। उसके पीछे-पीछे तिलक भी बाहर आ गया और उसने कहा, "कुमुद रोओ मत, चलो मैं तुम्हें ...Read More
घुटन - भाग १८
वीर प्रताप और रुक्मणी की नज़र उन पर पड़ने के बाद कुमुदिनी तिलक से अलग हुई और उसे बाय हुए धीरे से कहा, "भैया कल मिलोगे?" "हाँ कुमुद बिल्कुल मिलूँगा।" जैसे ही कुमुदिनी ऊपर आई रुक्मणी ने सवालों की झड़ी लगा दी, "कौन था वह? बीच सड़क पर यह क्या कर रही थीं। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अपने पापा की इज़्जत का तुम्हें जरा भी ध्यान नहीं रहा। पूरे शहर में सब कितनी इज़्जत करते हैं उनकी और तुम?" "माँ मेरी बात तो सुनो, आप ग़लत सोच रही हो। वैसे भी मैंने किया ही क्या है? दोस्तों के गले ...Read More
घुटन - भाग १९
जीतने के बाद तिलक फूलों के हार से लदा हुआ ओपन जीप में बैठा कॉलेज के छात्र-छात्राओं के बड़े के साथ हवेली के सामने से गुजर रहा था। हवेली के सामने आते ही उनका कारवाँ रुक गया। वीर प्रताप आज अपनी बालकनी में नहीं रुक्मणी के साथ अपनी हवेली के गेट पर खड़े दिखाई दिए। उनके हाथों में गुलाब के फूलों से महकता हुआ एक बड़ा ही खूबसूरत हार था। यूँ तो वीर प्रताप पहले यह हार वरुण को ही पहनाना चाहते थे लेकिन तिलक की सच्चाई जानने के बाद अब वो हार वह अपने ख़ुद के बेटे के ...Read More
घुटन - अंतिम भाग
एक दिन कुमुदिनी ने तिलक से कहा, "तिलक भैया आप क्यों मेरी मम्मी को यह बात नहीं बता देते। दो ना? मेरे पापा, मम्मी से बहुत डरते हैं। यदि माँ के सामने वह स्वीकार कर लेंगे तो शायद फिर वह समाज के सामने भी . . ." "नहीं कुमुदिनी मैं नहीं चाहता कि जिस दर्द को मेरी माँ ने वर्षों तक झेला है, उसका एक छींटा भी रुकमणी आंटी के ऊपर पड़े। इस सब में उनकी क्या ग़लती है। वह तो पिक्चर में थीं ही नहीं। हो सकता है उन्हें वह सब मालूम होता तो शायद वह यह शादी ...Read More